एक झंडा एक भीड़
बेतरतीब होते हुऎ
भी परिभाषित
दे देती है अंदाज
चाहे थोड़ा ही
अपने रास्ते का
अपनी सीमा का
यहाँ तक अपनी
गुंडई का भी
दूसरी भीड़
एक दूसरा झंडा
सब कुछ तरतीब से
कदमताल करते हुऎ
मोती जैसे गुंथे हों
माला में किसी
परिभाषित नजर
तो आती है पर
होती नहीं है
यहां तक कि
अपराध करने का
अंदाज भी होता है
बहुत ही सूफियाना
दोनो भीड़ होती हैं
एक ही पेड़
की पत्तियाँ
बदल देने पर
झंडे के रंग और
काम करने के
ढंग के बावजूद
भी प्रदर्शित
कर जाती हैं
कहीं ना
कहीं चरित्र
बेबस पेड़
बस देखता
रह जाता है
अपनी ही
पत्तियों को
गिरते गिरते
बदलते हुऎ
रंग अपना
पतझड़ में ।
बेतरतीब होते हुऎ
भी परिभाषित
दे देती है अंदाज
चाहे थोड़ा ही
अपने रास्ते का
अपनी सीमा का
यहाँ तक अपनी
गुंडई का भी
दूसरी भीड़
एक दूसरा झंडा
सब कुछ तरतीब से
कदमताल करते हुऎ
मोती जैसे गुंथे हों
माला में किसी
परिभाषित नजर
तो आती है पर
होती नहीं है
यहां तक कि
अपराध करने का
अंदाज भी होता है
बहुत ही सूफियाना
दोनो भीड़ होती हैं
एक ही पेड़
की पत्तियाँ
बदल देने पर
झंडे के रंग और
काम करने के
ढंग के बावजूद
भी प्रदर्शित
कर जाती हैं
कहीं ना
कहीं चरित्र
बेबस पेड़
बस देखता
रह जाता है
अपनी ही
पत्तियों को
गिरते गिरते
बदलते हुऎ
रंग अपना
पतझड़ में ।
एक ही पेड़...और विरोध में खड़खडाते उसके अपने पत्ते ! वस्त्रहीन तो पेड़ को होना है,फिर जड़ से उखड़ जाना है
जवाब देंहटाएंगहन भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंवो जो भीड़ है
जवाब देंहटाएंझंडा लिए
झंडा छिपा है
उसी भीड़ में!
भावपूर्ण प्रस्तुति सर बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसदाबहारों में गिने, जाते हैं जो पेड़ |
जवाब देंहटाएंपतझड़ वाले क्यूँ रहे, उन पेड़ों को छेड़ |
उन पेड़ों को छेड़, नहीं उनका कुछ बिगड़े |
खाद नमी भरपूर, खाय के होते तगड़े |
उल्लू क्यों गमगीन, बहुत शाखाएं हाजिर |
हर शाखा पर एक, किन्तु बैठा है शातिर ||
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
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