बहुत कुछ कहें
या सब कुछ
कोई फर्क
नहीं होता है
एक महापुरुष
के पास जितना
अपना होता है
कहीं भी नहीं
उतना होता है
लिखना शुरु हो जाये
भरते चले जाते हैं
गागर सागरों से
जाते जाते अगर
लिख भी जाता है
जीवनवृतांत
कुछ नदियाँ नीर भरी
नीली नीली सी
फैल जाती हैं
गागर फिर भी
छलकता हुआ ही
नजर आता है
बचा हुआ भी इतना
ज्यादा होता है
एक दूसरा शख्स
उसपर उसकी
आत्मकथा लिख
ले जाता है
पन्ने दर पन्ने
किताब से किताब
होता हुआ वो कहीं
से शुरु होता हुआ
कहीं भी खत्म
नहीं हो पाता है
आज हर शख्स
अपने में एक
महापुरुष पाता है
एक पन्ना लिखना
भी चाहे तो भी
पूरा नहीं कर पाता है
महापुरुषों की
श्रेणी में फिर भी
आने का जुगाड़
लगाने का कोई
भी मौका नहीं
गवाना चाहता है ।
या सब कुछ
कोई फर्क
नहीं होता है
एक महापुरुष
के पास जितना
अपना होता है
कहीं भी नहीं
उतना होता है
लिखना शुरु हो जाये
भरते चले जाते हैं
गागर सागरों से
जाते जाते अगर
लिख भी जाता है
जीवनवृतांत
कुछ नदियाँ नीर भरी
नीली नीली सी
फैल जाती हैं
गागर फिर भी
छलकता हुआ ही
नजर आता है
बचा हुआ भी इतना
ज्यादा होता है
एक दूसरा शख्स
उसपर उसकी
आत्मकथा लिख
ले जाता है
पन्ने दर पन्ने
किताब से किताब
होता हुआ वो कहीं
से शुरु होता हुआ
कहीं भी खत्म
नहीं हो पाता है
आज हर शख्स
अपने में एक
महापुरुष पाता है
एक पन्ना लिखना
भी चाहे तो भी
पूरा नहीं कर पाता है
महापुरुषों की
श्रेणी में फिर भी
आने का जुगाड़
लगाने का कोई
भी मौका नहीं
गवाना चाहता है ।
बढ़िया प्रस्तुती |
जवाब देंहटाएंआभार ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंगणेशचतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सच कहा है..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रश्नाकुल करते रहे सभी हाइगा,सुन्दर मनोहर .
जवाब देंहटाएंलेकिन मेरे दोस्त महापुरुष और उसके प्रोजेक्शन ,उसकी छाया में फर्क है ,सिगार पीने से कोई आइन्स्टीन और चिलम पीने से दार्शनिक नहीं हो जाता है .
(यूं): वक्त की दीवार पे पैगम्बरों के लव्ज़ भी तो ,
बे -खयाली में घसीटे दस्तखत समझे गए हैं ,
होश के लम्हे नशे की कैफियत समझे गए हैं ,
फ़िक्र के पंछी ज़मीं के मातहत समझे गएँ हैं ,
नाम था ,अपना ,पता भी ,दर्द भी ,इज़हार भी ,
पर -
हम हमेशा !दूसरों की मार्फ़त समझे गएँ हैं .
अच्छा विचार मंथन कराता है उलूक टाइम्स .वह तो यह शासन ही उलूकों का है .
आज के महापुरूषो की बात ही अलग है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएं:)यहाँ भी खरगोश कछुए की दौड़-अभिमान और विश्वास की गति हमेशा हर कहीं नज़र आती है- हर युग,हर काल में
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना सर
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर प्रस्तुति सुशील जी,आभार.
जवाब देंहटाएं--How to make Google sitemap for blogger--
सच कहा
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