उलूक टाइम्स: जा भटक कर आ

रविवार, 9 सितंबर 2012

जा भटक कर आ

उत्तर का प्रश्न 
खुद अपने से निकाले 

संकरे से 
भटकन भरे रास्ते पर 
चलने की आदत डाले

सामने वाले 
के लिये 
एक उलझन हो जाये
मुश्किल हो जाती है ऎसे में क्या किया जाये

भटकने वाला 
तो
भटकना है 
करके खुद भटक जाता है 

हैरानी की बात 
इसलिये नहीं होती है
कि 
उसको अच्छा भटकना आता है 

सीधे रास्ते पर 
सीधे सीधे चलने वाला 
दूर दूर तक साथ देने वाला 
ढूँढने में जहाँ बरसों लगाता है 

भटकने वाले को 
भटकाने के लिये 
भटकता हुआ कोई
पता नहीं 
कैसे तुरंत मिल जाता है 

भटक भटक कर 
भटकते हुऎ 
भटकाने वाले का बेड़ा 
भटकाव के सागर में भटक जाता है 

सामने वाला 
देख देख कर 
पागल हो जाता है 
उसके पास 
अपने सर के 
बाल नोंचने के अलावा 
कुछ नहीं रह जाता है ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. जो मिल जाए वही बहुत है ... भटकते भटकते ज़िन्दगी खत्म हो जाती है

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  2. अच्छों को अच्छे मिलें ,मिलें नीच को नीच ,
    पानी से पानी मिले ,मिले कीच सो कीच .

    नीचे लुढकना आसान है बरक्स ऊपर चढने के .बढ़िया भटकाव है ,कोई भटकाव सा भटकाव है ,भटकन को देख के घर याद आया ,दोस्त पे एतबार आया,ज़िन्दगी की हर शह पे प्यार आया ,उनपे नूर बे -शुमार आया ,नशा हमपे बे -हिसाब आया ,महफ़िल में यार की यार ने ही भटकाया ....
    ram ram bhai
    सोमवार, 10 सितम्बर 2012

    ग्लोबल हो चुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (गतांक से आगे ...)..बढ़िया प्रस्तुति है .......

    ram ram bhai
    सोमवार, 10 सितम्बर 2012
    ग्लोबल हो चुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (गतांक से आगे ...)

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  3. भटकत भटकत भटकते,वो पागल हो जाय
    सारा जीवन खतम हो,कछु हाथ में न आय,,,,,

    RECENT POST,,,,मेरे सपनो का भारत,,,,

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  4. भटकाव के बाद की जिंदगी का अपना अलग ही मज़ा हैं :)))

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