वैसे तो
कुत्ते के पास मूँछ है
पर
ध्यान में ज्यादा रहती
उसकी टेढ़ी पूँछ है
उसको
टेढ़ा रखना अगर उसको भाता है
हर कोई
क्यों उसको फिर
सीधा करना चाहता है
सीधा करना चाहता है
उसकी
पूँछ तक रहे बात
तब भी समझ में आती है
पर
जब कभी किसी को
अपने सामने वाले की
कोई बात पागल बनाती है
ना जाने तुरंत उसे
कुत्ते की टेढ़ी पूँछ ही
क्यों याद आ जाती है
हर किसी की
कम से कम
एक पूँछ तो होती है
किसी की जागी होती है
किसी की सोई होती है
पीछे होती है
इसलिये
खुद को दिख नहीं पाती है
पर
फितरत देखिये जनाब
सामने वाले की
पूँछ पर
पूँछ पर
तुरंत नजर चली जाती है
अपनी पूँछ उस समय
आदमी भूल जाता है
अगले की पूँछ पर
कुछ भी कहने से बाज
लेकिन नहीं आता है
अच्छा किया हमने
अपनी श्रीमती की सलाह पर
तुरंत कार्यवाही कर डाली
अपनी
पूँछ कटवा कर
बैंक लाकर में रख डाली
अब
कटी पूँछ पर कोई
कुछ नहीं कह पाता है
पूँछ
हम हिला लेते हैं
किसी के सामने
जरूरत पड़ने पर कभी
तो
तो
किसी को
नजर भी नहीं आता है
इसलिये
अगले की पूँछ पर
अगर
कोई कुछ
कहना चाहता है
कहना चाहता है
तो
पहले अपनी पूँछ
क्यों नहीं
कटवाता है ।
कटवाता है ।
चित्र सभार: https://gfycat.com/
बिलकुल सही कहा है सुशील सर आपने.
जवाब देंहटाएंकभी न सीधी हो सके, कुत्ते की है पूँछ।
जवाब देंहटाएंरौव जमाती सभी पर, दाढ़ी हो या मूछ।।
उल्लू की दुम कट गई, लाकर रखे संभाल |
जवाब देंहटाएंकिन्तु दबाकर दुम भगा, गृह-पशु करे बवाल |
गृह-पशु करे बवाल, हिला दुम रहा निरंतर |
रविकर टेढ़ी पूंछ, रखे पाइप में अक्सर |
पर उनकी दुम सीध, पडोसी आज दिखाया |
जान चिकित्सक राय, देख *आश्विन में आया ||
*यह उनका विशेष मास है -
जबरदस्त लिखा है आपने। तबियत खुश हो गई। बेहतरीन व्यंग्य लगा यह।..वाह!
जवाब देंहटाएंअजी इस जूठन को ही समाचार कहना पड़ता है .जबकि हिंदी अनुवाद की नहीं भाव की अर्थ और व्यंजना की भाषा है .हर भाषा का अपना मिजाज़ होता है .अब भाई साहब हेंड पम्प को कोई छापा -कल कहे तो कैसा लगेगा .रेल गाडी को आप यदि लौह पथ गामिनी कहे तो आप अपने कपडे फाड़ लेंगे .और ये सिरोपरि उपस्कर क्या है ?हम बताते हैं ये है "ओवर हेड केबिल्स ".
जवाब देंहटाएंहिंदी की खबरें हिन्दुस्तानी में ही अच्छी लगतीं हैं .
scientist(साइंटिस्ट )को साइंसदान बोल लो भैया /विज्ञानी कह लो .लेकिन नहीं scientific को भी वैज्ञानिक कहेंगे और साइंटिस्ट को भी .और विज्ञानियों ने कहा कि जगह कहेंगे वैज्ञानिकों ने कहा -रेडिओ वाले कहेंगे साइंटिस्ट- ओँ ने कहा -रिसर्चरों ने कहा -चल पड़ी है यह भाषा तो हम भी लिख रहें हैं कभी कभार .देवेन्द्र पांडे जी ने मर्म को पकड़ा है हिंदी के समाचार मूल हिंदी में ही हों अनुवाद की हिंदी में नहीं . अब कलम दान का क्या अनुवाद करेंगे आप संस्कृत निष्ठ हिंदी में और क्यों करेंगे .पागल कुत्ती ने काटा है क्या .भाषा बोलती हुई हो जिसे सब समझ सकें .सामाचारीय नहीं .
ऊपर वाली टिपण्णी पूंछ की गफलत में चली आई .माफ़ करना भाई साहब आदमी की "पूछ" कम होने पर पूंछ बहुत तंग करती है स्वत : वक्त बे -वक्त ,मौक़ा बे -मौक़ा हिलती है .कुछ लोग टेढ़ी पूंछ और टेढ़ी खीर दोनों को सीधा करना चाहतें हैं .बान पड़ जाती है इन्हें भी इसीलिए कहा गया -
जवाब देंहटाएंबान हारे की बान न जाए ,कुत्ता मूते टांग उठाय .
पूछ कम होने पर वकत घट जाने पर ,औकात पता चल जाने पर आदमी तरह तरह के प्रपंच करता है .गाली गलौंच पे उतर आता है .पूंछ का स्तेमाल करते हुए अपनी "पूछ " महत्ता बनाए रखना एक कला है .जिसे नहीं आती यह कला वह दुम दबाके भागता है .
बढ़िया व्यंग्य सुशील जी .ऊपर वाली टिपण्णी काजल कुमार जी के कार्टून पर है -रेडिओ हिदी के मौलिक नहीं अनूदित समाचार सुनवाता है .
ओ भाई साहब पूछ और पूंछ में फर्क होता है अगर पूंछ बोले तो tail की बात कर रहे हो तो वर्तनी तो शुद्ध कर लो वरना अर्थ का अनर्थ हो जाएगा .
जवाब देंहटाएं" माफ कीजिएगा पूछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है।
अब तो ईश्वर से ही प्रार्थना कर सकता हूं कि, शायद वो आपको सद् बुद्धि दे।"
पूछ भाई साहब कहते हैं महत्ता को और वह अर्जित गुन है व्यक्ति विशेष का किसी के कम किए कम न होय .
महेन्द्र श्रीवास्तव25 September 2012 12:06
जवाब देंहटाएंगल्ती हो गई शर्मा जी,
मैं आपको एक पढ़ा लिखा सीरियस ब्लागर समझता था।
इसलिए कई बार मैने आपकी बातों का जवाब भी देने की कोशिश की।
सोचा आपकी संगत गलत है, हो जाता है ऐसा, लेकिन मुझे उम्मीद थी
शायद कुछ बात आपकी समझ में आज जाए।
लेकिन आप तो कुछ संगठनों के लिए काम करते हैं और वहां फुल टाईमर
यानि वेतन भोगी हैं। यही अनाप शनाप लिखना ही आपको काम के तौर
सौंपा गया है। एक बात की मैं दाद देता हूं कि आप ये जाने के बगैर की
आपको लोग पढ़ते भी हैं या नहीं, कहां कहां जाकर कुछ भी लिखते रहते हैं।
खैर कोई बात नहीं, ये बीमारी ही ऐसी है। वैसे अब आप में सुधार कभी संभव ही
नहीं है। सुधार के जो बीज आदमी में होते है, उसके सारे सेल आपके मर
चुके हैं। माफ कीजिएगा पूछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है।
अब तो ईश्वर से ही प्रार्थना कर सकता हूं कि, शायद वो आपको सद् बुद्धि दे।
ओ भाई साहब महेंद्र श्रीवास्तव जी हमारी ही बिरादरी के हो इसीलिए बतला रहा हूँ :पूछ और पूंछ में फर्क होता है अगर पूंछ बोले तो tail की बात कर रहे हो तो वर्तनी तो शुद्ध कर लो वरना अर्थ का अनर्थ हो जाएगा .
जवाब देंहटाएं" माफ कीजिएगा पूछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है।
अब तो ईश्वर से ही प्रार्थना कर सकता हूं कि, शायद वो आपको सद् बुद्धि दे।"
पूछ भाई साहब कहते हैं महत्ता को और वह अर्जित गुन है व्यक्ति विशेष का किसी के कम किए कम न होय .
सुप्रिय महेंद्र श्रीवास्तव जी !
जवाब देंहटाएंआपने जो उत्तर दिया उसका स्वागत है .और जो मैं कह रहा हूँ पूरे उत्तरदायित्व से कह रहा हूँ ,जिसे समझने के लिए आपकों पूरे होशो हवाश में होना होगा .
आपने कहा मैं किसी विशेष पार्टी के लिए काम करता हूँ .आप ऐसे व्यक्ति को जो किसी पार्टी के लिए काम करता हो मानसिक रूप से बीमार नहीं कह सकते .आप यह सिद्ध करना चाहतें हैं कि मुझे तो भगवान् भी ठीक अन्हीं कर सकता .कोई मानसिक दिवालिया किसी पार्टी का पेड वर्कर नहीं हो सकता .
अलबत्ता आप अपने बारे में बताइये आप किस गिरोह के सदस्य हैं .आपकी मानसिकता समझ में नहीं आती आप अपने ही तर्कों को काट रहें हैं .मुझे किसी पार्टी के लिए सक्रीय भी बता रहें हैं मानसिक रोगी भी .
मेरे विचार से आप क्या और बहुत से लोग भी असहमत हो सकते हैं .
एक बात बत्लादूं आपको ये शुक्र की बात है आप भगवान को तो मानते हैं बस यही एक समानता है मेरे और आप में .हम दोनों भगवान को मानते हैं .
मैं आपकी तरह किसी संगठन में तो काम नहीं करता पर मेरी संगत अच्छी ज़रूर है .
जब तक पूंछ है,
जवाब देंहटाएंतब तक पूछ है
बाक़ी तो मूंछ रहते हुए भी
नहीं मूंछ है।
पूँछ न सीधी हो सके,जतन करे का होय
जवाब देंहटाएंरौब दिखाती मूंछ तो , नही कटाते कोय,,,,,
RECENT POST : गीत,
पूँछ पर अगर कोई
जवाब देंहटाएंकुछ कहना चाहता है
तो पहले अपनी पूँछ
क्यों नहीं कटवाता है !!
.... सही कहा है सुशील सर आपने.
बहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर सटीक कटाक्ष करती अभिव्यक्ति ...सादर !!!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 02 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअच्छा किया हमने
जवाब देंहटाएंअपनी श्रीमती की सलाह पर
तुरंत कार्यवाही कर डाली
अपनी
पूँछ कटवा कर
बैंक लाकर में रख डाली
वाह!!!
गजब...
सटीक सत्य कहती है ये रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२६-१०-२०२०) को 'मंसूर कबीर सरीखे सब सूली पे चढ़ाए जाते हैं' (चर्चा अंक- ३८६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
गहन व्यंग्य के साथ बहुत सुन्दर सृजन ।।
जवाब देंहटाएंजब कभी किसी को
जवाब देंहटाएंअपने सामने वाले की
कोई बात पागल बनाती है
ना जाने तुरंत उसे
कुत्ते की टेढ़ी पूँछ ही
क्यों याद आ जाती है
100% सच
गहन अभिव्यक्ति
वाह जोशी जी, हर किसी की
जवाब देंहटाएंकम से कम
एक पूँछ तो होती है
किसी की जागी होती है
किसी की सोई होती है ... भावनाओं की जाग्रत अवस्था के लिए इस पूंछ का उदाहरण और व्याख्या बहुत खूबसूरत बन पड़ी है
अनेक प्रश्नों को उजागर करती रचना - - व्यंग्यात्मक शैली में लिखी गई उत्कृष्ट कृति, सत्य की परतों को बड़ी बेबाकी से खोलती है, लिखने का अंदाज़ मंत्रमुग्ध करता है हमेशा की तरह - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं