लिख देने
के बाद भी
यहीं पर
पड़ा हुआ
नजर आता है
इतनी सी
भी मदद
नहीं करता
कहीं को चला
भी नहीं जाता है
अखबार
से ही सीख
लेता कुछ कभी
कितनो
का लिखा
अपने सिर पर
उठा उठा
कर लाता है
खुद ही जाकर
हर किसी के घर भी
रोज हो ही आता है
अपनी
अपनी खबर
पढ़ लेने का मौका
हर कोई
समानता से
पा भी जाता है
बहुत
कम होते हैं ऐसे
जिन्हे है फुरसत यहाँ
जमाने भर की
और वो
यहाँ आ कर
पढ़ क्या गया तुझको
तू तो
बहुत ही मजे
मजे में आ जाता है
कुछ तो
सऊर सीख भी ले अब
इधर उधर के
पन्नों से कभी
जिसमें
लिखा हुआ
कुछ भी कहीं भी
बहुत
सी जगह
पर जा जा कर
कुछ ना कुछ
लिखवा ही लाता है
एक तू है पता नहीं
किस चीज का बना हुआ
ना खुद लिख पाता है
ना ही कुछ किसी से
लिखवा ही पाता है
जब देखो
जिस समय देखो
यहीं पर पड़ा रह रह कर
बेकार में
सारी जगह
घेरता चला जाता है
अरे ओ
बेवकूफ पन्ने
किसी की समझ में
बात आये ना आये
तेरी समझ में
कभी भी कुछ
क्यों नहीं आता है
'उलूक'
के बारे में
भी कुछ सोच
लिया कर कभी
उससे भी
आँखिर
कब तक और
कहाँ तक सब
लिखा जाता है ।
के बाद भी
यहीं पर
पड़ा हुआ
नजर आता है
इतनी सी
भी मदद
नहीं करता
कहीं को चला
भी नहीं जाता है
अखबार
से ही सीख
लेता कुछ कभी
कितनो
का लिखा
अपने सिर पर
उठा उठा
कर लाता है
खुद ही जाकर
हर किसी के घर भी
रोज हो ही आता है
अपनी
अपनी खबर
पढ़ लेने का मौका
हर कोई
समानता से
पा भी जाता है
बहुत
कम होते हैं ऐसे
जिन्हे है फुरसत यहाँ
जमाने भर की
और वो
यहाँ आ कर
पढ़ क्या गया तुझको
तू तो
बहुत ही मजे
मजे में आ जाता है
कुछ तो
सऊर सीख भी ले अब
इधर उधर के
पन्नों से कभी
जिसमें
लिखा हुआ
कुछ भी कहीं भी
बहुत
सी जगह
पर जा जा कर
कुछ ना कुछ
लिखवा ही लाता है
एक तू है पता नहीं
किस चीज का बना हुआ
ना खुद लिख पाता है
ना ही कुछ किसी से
लिखवा ही पाता है
जब देखो
जिस समय देखो
यहीं पर पड़ा रह रह कर
बेकार में
सारी जगह
घेरता चला जाता है
अरे ओ
बेवकूफ पन्ने
किसी की समझ में
बात आये ना आये
तेरी समझ में
कभी भी कुछ
क्यों नहीं आता है
'उलूक'
के बारे में
भी कुछ सोच
लिया कर कभी
उससे भी
आँखिर
कब तक और
कहाँ तक सब
लिखा जाता है ।
सुंदर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
उलूक के बारे में ही सोच रहे हैं क्या लिखा पढ़ा जा रहा है सब का खाता गढ़े जा रहा है। बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबात आये ना आये
तेरी समझ में कभी भी
कुछ क्यों नहीं आता है
“उल्लूक” के बारे में
भी कुछ सोच
लिया कर कभी
उससे भी आँखिर
कब तक और कहाँ तक
सब लिखा जाता है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (21-12-13) को "हर टुकड़े में चांद" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1468 में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या बात है
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर