उलूक टाइम्स: कुत्ते का भौंकना भी सब की समझ में नहीं आता है पुत्र

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

कुत्ते का भौंकना भी सब की समझ में नहीं आता है पुत्र


कल
दूरभाष
पर 

हो रही
बात पर 
पुत्र
पूछ बैठा 

पिताजी
आपकी 
लम्बी लम्बी
बातें तो 
बहुत हो जा रही हैं 

मुझे
समझ में ही 
नहीं आ रहा है 
ये क्या सोच कर 
लिखी जा रही हैं 

मैं
हिसाब 
लगा रहा हूँ 
ऐसा ही अगर 
चलता चला जायेगा 

तो
किसी दिन 
कुछ साल के बाद 

ये
इतना हो जायेगा 
ना
आगे का दिखेगा 
ना
पीछे का छोर
ही 
कहीं नजर आयेगा 

इतना
सब लिखकर 
वैसे भी
आपका 
क्या
कर ले जाने 
का इरादा है

या 
ऐसा ही
लिखते रहने 
का
आप किसी
से 
कर चुके
कोई वादा हैंं 

सच पूछिये

तो 
मेरी समझ में 

आपकी लिखी 
कोई बात 
कभी भी 
नहीं आती है 

उस
समय 
जो लोग 
आपके लिखे 
की
तारीफ
कर रहे होते हैं 

उनकी
 पढ़ाई लिखाई 
मेरी
पढ़ाई लिखाई
से 
बहुत ही ज्यादा 
आगे
नजर आती है 

ये सब
को
सुन कर 

पुत्र को
बताना 
जरूरी हो गया 

लिखने विखने
का 
मतलब समझाना 
मजबूरी
हो गया 

मैंने
बच्चे को
अपने 
कुत्ते का
उदाहरण 
देकर बताया 

क्यों
भौंकता रहता है 
बहुत बहुत
देर तक 
कभी कभी

इस पर 
क्या
उसने कभी 
अपना
दिमाग लगाया है 

क्या
उसका भौंकना 
कभी
किसी के समझ
में 
थोड़ा सा भी
आ पाया है 

फिर भी
चौकन्ना 
करने की कोशिश 
उसकी
अभी भी जारी है 

रात रात
जाग जाग
कर 
भौंकना नहीं लगता 
उसे
कभी भी भारी है 

मै

और
मेरे जैसे
दो चार 
कुछ
और

इसी तरह 
भौंकते
जा रहे हैं 

कोई
सुने ना सुने 
इस बात
को

हम भी 
कहाँ
सोच पा रहे हैं 

क्या पता
किसी दिन 
सियारों
की 
टोली की तरह 

हमारी
संख्या 
भी
बढ़ जायेगी 

फिर
सारी टोली 
एक साथ
मिलकर 
हुआ हुआ
की 
आवाज लगायेगी 

बदलेगा
कुछ ना कुछ 
कहीं ना कहीं
कभी तो 

और
यही आशा 
बहुत कुछ 
बहुत दिनों
तक 
लिखवाती
ही 
चली जायेगी 

शायद
अब मेरी बात 
कुछ कुछ
तेरी भी 
समझ में
आ जायेगी ।
चित्र साभार: 
https://www.fotosearch.com/

10 टिप्‍पणियां:

  1. बदलेगा कुछ ना कुछ
    कहीं ना कहीं कभी तो
    और यही आशा बहुत कुछ
    बहुत दिनों तक लिखवाती
    ही चली जायेगी
    .....बिल्कुल सच कहा है...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १७/१२/१३को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है ---यहाँ भी आयें --वार्षिक रिपोर्ट (लघु कथा )
    Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR -

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  3. बहुत सुन्दर अर्थ ,व्यंग्य लिए है रचना।

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  4. आपकी बात हम रचनाकारों के अलावा और किसी की समझ में कहाँ आती है :) ?? हमारे लिखने से कुछ बदले न बदले कोई अपने प्रयास से हमे न बदल दे यही सोचकर मै लिखती हूँ ,आजतक कुछ बदला है क्या पढ़कर, जो अब बदलेगा ! जोरदार व्यंग्य , कुछ तो बेटा भी समझ ही गया होगा !

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 28 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. क्या
    उसका भौंकना
    कभी
    किसी के समझ
    में
    थोड़ा सा भी
    आ पाया है

    फिर भी
    चौकन्ना
    करने की कोशिश
    उसकी
    अभी भी जारी है

    रात रात
    जाग जाग
    कर
    भौंकना नहीं लगता
    उसे
    कभी भी भारी है

    मै

    और
    मेरे जैसे
    दो चार
    कुछ
    और

    इसी तरह
    भौंकते
    जा रहे हैं

    कोई
    सुने ना सुने
    इस बात
    को

    हम भी
    कहाँ
    सोच पा रहे हैं

    क्या पता
    किसी दिन
    सियारों
    की
    टोली की तरह

    हमारी
    संख्या
    भी
    बढ़ जायेगी
    बातों में काफी गहराई है ,व्यक्ति स्वभाव से लाचार है ,किसी के कहने से कोई काम रुकता नहीं ,जिसका जो काम है वो करेगा ही ,गीता में कृष्ण उवाच --कर्म किये जा फल की इच्छा न रख इंसान ,सभी अपने अपने हिस्से का कर्म करने में लगे हुए हैं ,बहुत ही बढ़िया लिखा है, दो बार पढ़ी फिर टिप्पणी की, बधाई हो आपको

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