कभी कहीं किसी ऐसी
जगह चला चल जहाँ
बात कर सकें खुल के
बहुत से मसले हैं
सुलझाने कई जमाने से
रोज मुलाकात होती है
कभी सुबह कभी शाम
कभी रास्ते खासो आम
इसके उसके बारे में तो
रोज कुछ ना कुछ
सामने से आता है
कुछ कर भी
ना पाये कोई
तब भी लिख
लिखा कर
बराबर कर
लिया जाता है
तेरा क्या है तू तो
कभी कभार ही
बहुत ही कम
समय के लिये
मिल मिला पाता है
जब बाल बना
रहा होता है कोई
या नये कपड़े कैसे
लग रहे हैं पहन कर
देखने चला जाता है
हर मुलाकात में ऐसा
ही कुछ महसूस
किया जाता है
अपने तो हाल ही
बेहाल हो रहे हैं
कोई इधर दौड़ाता है
कोई उधर दौड़ाता है
एक तू है हर बार
उसी जगह पर
उसी उर्जा से ओतप्रोत
बैठा नहीं तो खड़ा
पाया जाता है
जिस जगह पर कोई
पिछली मुलाकात में
तुझे छोड़ के जाता है
बहुत कर लिये मजे तूने
उस पार आईने के
रहकर कई सालों साल
अब देखता हूँ कैसे
बाहर निकल कर के
मिलने नहीं आता है
कुछ तो लिहाज कर ले
फिर नहीं कहना किसी से
दुनियाँ भर में कोई कैसे
अपने खुद के अक्स को
इस तरह से बदनाम
कर ले जाता है ।
जगह चला चल जहाँ
बात कर सकें खुल के
बहुत से मसले हैं
सुलझाने कई जमाने से
रोज मुलाकात होती है
कभी सुबह कभी शाम
कभी रास्ते खासो आम
इसके उसके बारे में तो
रोज कुछ ना कुछ
सामने से आता है
कुछ कर भी
ना पाये कोई
तब भी लिख
लिखा कर
बराबर कर
लिया जाता है
तेरा क्या है तू तो
कभी कभार ही
बहुत ही कम
समय के लिये
मिल मिला पाता है
जब बाल बना
रहा होता है कोई
या नये कपड़े कैसे
लग रहे हैं पहन कर
देखने चला जाता है
हर मुलाकात में ऐसा
ही कुछ महसूस
किया जाता है
अपने तो हाल ही
बेहाल हो रहे हैं
कोई इधर दौड़ाता है
कोई उधर दौड़ाता है
एक तू है हर बार
उसी जगह पर
उसी उर्जा से ओतप्रोत
बैठा नहीं तो खड़ा
पाया जाता है
जिस जगह पर कोई
पिछली मुलाकात में
तुझे छोड़ के जाता है
बहुत कर लिये मजे तूने
उस पार आईने के
रहकर कई सालों साल
अब देखता हूँ कैसे
बाहर निकल कर के
मिलने नहीं आता है
कुछ तो लिहाज कर ले
फिर नहीं कहना किसी से
दुनियाँ भर में कोई कैसे
अपने खुद के अक्स को
इस तरह से बदनाम
कर ले जाता है ।
बढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-12-2013) को "जब तुम नही होते हो..." (चर्चा मंच : अंक-1455) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंवाह , बढियां प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत कर लिये मजे तूने
जवाब देंहटाएंउस पार आईने के
रहकर कई सालों साल
अब देखता हूँ कैसे
बाहर निकल कर के
मिलने नहीं आता है
Kya bat hai kud se hee ho rahee hai kaisee ye ladaee.
बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी