उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

आदमी और आदमी के घोड़े हो जाने का व्यापार

अनायास
अचानक

नजर
पड़ती है

आस पास

जगह जगह
फैली हुई
लीद पर

कुछ ताजी
कुछ बासी
कुछ अकड़ी

कुछ लकड़ी
हुई सी
चारों तरफ
अपने

माहौल
बनाये हुऐ
किसी बू की

बद कहें
या खुश

समझना
शुरु करने पर
दिखाई नहीं देते

किसी भी
जानवर के
खुरों के निशान

नजर
आते हैं
बस कुछ लोग

जो
होते ही हैं
हमेशा ही
इस तरह की
जगहों पर
आदतन

रास्ते से
भेजे गये
कुछ लोग

कब कहाँ
खो जाते हैं

कब घोड़े
हो जाते हैं

पता
चलता है
टी वी और
अखबार से

घोड़ों के
बिकने
खरीदने के
समाचार से

आदमी का
घोड़ा हो जाना

कहाँ पता
चलता है

कौन
आदमी है
कौन
घोड़ा है

कौन
लीद को
देखता है
किसी की

पर
आदमी कुछ
घोड़े हो
चुके होते हैं
ये सच होता है

घोड़ों का
ऐसा व्यापार

जिसमें
बिकने वाला
हर घोड़ा

घोड़ा कभी
नहीं रहा
होता है

गजब का
व्यापार
होता है

सोचिये

हर पाँच
साल में

पाँच साल भी
अब
किस्मत
की बात है

अगर आप
कुछ नहीं
को भेज रहे हैं
कहीं

उसके
अरबों के
घोड़े हो जाने
की खबर पर

खम्भा भी
खुद का ही
नोचते हैं

लगे रहिये
लीद के इस
व्यापार में

आनंद
जरूरी है

समझ
अपनी
अपनी है

घोड़ों को
कौन बेच
रहा है

कौन
घोड़ा है

लीद
किसके लिये
जरूरी है

लगे रहिये

‘उलूक’
को जुखाम
हुआ है

और
वो लीद
मल रहा है

सुना है
लीद से
ही मोक्ष
मिलता है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

बुधवार, 16 मार्च 2016

जब जनाजे से मजा नहीं आता है दोबारा निकाला जाता है

लाश को
कब्र से
निकाल कर

फिर से
नहला
धुला कर

नये कपड़े
पहना कर

आज
एक बार
फिर से
जनाजा
निकाला गया

सारे लोग
जो लाश के
दूर दूर तक
रिश्तेदार
नहीं थे
फिर से
इक्ट्ठा हुऐ

एक कुत्ते
को मारा
गया था
शेर मारने
की खबर
फैलाई
गई थी
कुछ ही
दिन पहले

मजा नहीं
आया था
इसलिये
फिर से
कब्र
खोदी गई

कुत्ते की
लाश
निकाल कर
शेर के
कपड़े
पहनाये गये

जनाजा
निकाला गया
एक बार
फिर से

सारे कुत्ते
जनाजे
में आये

खबर
कल के सारे
अखबारों
में आयेगी
चिंता ना करें

समझ में
अगर नहीं
आये कुछ
ये पहला
मौका
नहीं है जब

कबर
खोद कर
लाश को
अखबार
की खबर
और फोटो
के हिसाब से
दफनाया और
फिर से
दफनाया
जाता है

कल का
अखबार
देखियेगा
खबर
देखियेगा

सच को
लपेटना
किसको
कितना
आता है

ठंड
रखा कर
'उलूक'
तुझे
बहुत कुछ
सीखना
है अभी

आज बस
ये सीख
दफनाये गये
एक झूठ को
फिर से
निकाल
कर कैसे
भुनाया
जाता है ।

http://www.fotosearch.com/

मंगलवार, 15 मार्च 2016

जमूरे सारे कुछ जमूरों को छोड़ कर मदारी के इशारे पर मदारी मदारी खेलने निकल कर चले

कुछ जमूरे मिलें
शागिर्दी के लिये

तमन्ना है जिंदगी
में एक बार
बस
एक ही बार

मदारी होने का
ज्यादा नहीं
एक ही मिले
मौका तो मिले

जमूरा बना रह
जाये कोई
ताजिंदगी
निकलते चलें
इधर से भी
और
उधर से भी

कब कौन
बन जाये
मदारी
सामने सामने
कैसे किस
तरीके से
कभी तो
ये राज
थोड़ा सा
ही सही
कुछ तो खुले

नहीं दिखा
एक भी
मदारी
सोचता
हुआ सा
भी कभी

उसका
कोई जमूरा
उसके बराबर
आ कर
खड़ा हो कर
उसके जैसा
ही नहीं
कभी भी कुछ
छोटा मोटा
सा भी
मदारी की
तरह का कहीं
गलती से भी
कभी कहीं
जा कर बने

मदारी हों
जमूरे हों
जमूरे मदारी
के ही हो
मदारी जमूरों
के ही हो
दोनो ही रहें

एक दूजे
के लिये
ही बने
होते हैं
दोनो ही रहें
दोनों ही बनें
एक दूसरे
के साथ
रह कर
चलायें
सरकस
कहीं का
भी हो

सरकस चलें
चलते रहें
बिना मदारी का
हो जाये ‘उलूक’
जैसा जमूरा
ना बन पाये
मदारी भी कभी

खबर
जब मिले

जमूरे कुछ
जमूरों को
छोड़ सारे
जमूरों के
साथ मिल
मदारी के लिये

एक बार
फिर
मिल जुल
कर सभी
कुछ सुना है
बहुत कुछ
करने को
हाथ में
लेकर हाथ
ये चले
और
वो चले ।

चित्र साभार: www.garylellis.org

गुरुवार, 10 मार्च 2016

कुछ लोग लोगों को उनके बारे में सब कुछ बताते हैं

कुछ लोग
भगवान
नहीं होते हैं

बस उनका
होना ही
काफी होता है

किसी को भी
अपने बारे में
उतना पता
नहीं होता है
जितना
कुछ लोगों को
सारे लोगों
के बारे में
पता होता है

रात के देखे
सभी सपने
सुबह होने होने
तक बहुत ही
कम याद रहते हैं

बिना धुले
साबुन के
मटमैले कपड़े
जैसे ही धुँधले
हो चुके होते हैं

उन सारे
सपनों की
खबर को
लोगों को
सुनाने में
इन कुछ
लोगों को
महारत
हासिल होती है

अलसुबह
मुँह धोने
से पहले
आईने के
सामने खड़ा
जब तक
कोई खुद
को परख
रहा होता है

इन लोगों
की तीसरी
आँख से
देखा सब कुछ
बिस्तरे की
सिलवट की
गिनतियों के
साथ कहीं
किसी सुबह
के अखबार
के मुख्य
पृष्ठ पर
बड़े अक्षरों में
छप रहा होता है

ये लोग
अपने जैसे
सभी भगवानों
को बारीकी से
पहचानते हैं

बोलते
नहीं है
कुछ भी
कहीं भी
किसी से
किसी के लिये

लेकिन
हवा हवा में
हवा की
धूल मिट्टी को
भी छानते हैं

सारा सब कुछ
इन्हीं की
सदभावनाओं
पर टिका
और चल
रहा होता है

अपने बारे में
अच्छी  दो चार
गलफहमियाँ
पाला हुआ
कोई अपनी
अच्छाइयों के
जनाजों को
कहीं गिन
रहा होता है

उसकी गिनती
सही है और
गलत है
यही
कुछ लोग
बताते हैं

जानकारी
आदमी की
आदमी के
अंदर से
निकाल कर
आदमी को
बेच जाते हैं

आदमी
अपने बारे में
सोचता रहता है

होने ना
होने के
हिसाब से
कुछ लोग
उसका
कहीं भी
नहीं होना
हर जगह
जा जा
कर बताते हैं

भगवानों
में भगवान
धरती में
पैदा हुऐ
इन्सानों
से अलग

कुछ अलग
तरह के लोग
सब कुछ
हो जाते हैं

‘उलूक’
भगवान की पूजा
करने से नहीं
मिलता है मोक्ष

कुछ लोगों
की शरण में
जाना पड़ता है

आज के
जमाने में
भगवान भी
उन्ही लोगों
से पूछने
कुछ ना
कुछ आते हैं ।

चित्र साभार: fremdeng.ning.com

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

ऊपर वाले के जैसे ही कुछ अपने अपने नीचे भी बना कर वंदना कर के आते हैं

आइये साथ
मिलकर
अपनी अपनी
समझ कुछ
और बढ़ाते हैं
दूर बज रहे
ढोल नगाड़ों
में अपने अपने
राग ढूँढ कर
अपनी सोच के
टेढ़े मेढ़े पेंच
अपनी अपनी
पसंद के झोल में
कहीं फँसाते हैं
अपने घर में
सड़ रहे फलों
पर इत्र डाल कर
चाँदी का वर्क लगा कर
अगली पीढ़ी के लिये
आइये साथ
साथ सजाते हैं
शोर नहीं है
नहीं है शोर
कविताएं हैं गीत हैं
झूमते हैं नाचते हैं गाते हैं
आइये सब मिल जुल कर
अपने अपने घर की
खिड़कियाँ दरवाजे के
साथ में अपनी
आँख बंद कर
दूर कहीं चल रहे
नाटक के लिये
जोर शोर से
तालियाँ बजाते हैं
कलाकारी कलाकार
की काबिले तारीफ है
आखिरकार उम्दा
कलाकारों में से
छाँटे गये कलाकार
के द्वारा सहेज कर
मुंडेर पर सजाया गया
एक खूबसूरत कलाकार है
आइये लच्छेदार बातों के
गुच्छों के फूलों को
मरी हुई सोचों के ऊपर
से जीवित कर सजाते हैं
बहुत कुछ है
दफनाने के लिये
लाशों को कब्र से
निकाल निकाल
कर जलाते हैं
कहीं कोई रोक कहाँ है
अपने अपने घर को
अपनी अपनी दियासलाई
दिखा कर आग लगाते हैं
रोशनी होनी है
चकाचौंध खुद कर के
चारों तरफ झूठ के
पुलिंदों पर सच के
चश्में लगा लगा कर
होशियार लोगों को
बेवकूफ बनाते हैं
नाराज नहीं होना है
‘उलूक’
आधे पके हुऐ को
मसाले डाल डाल कर
अपने अपने हिसाब से
अपनी सोच में पकाते हैं
स्वागत है आइये चिराग
ले कर अपने अपने
रोशनी ही क्यों करें
पूरी ही आग लगाते हैं ।

चित्र साभार: www.womanthology.co.uk