कुछ
बक बका दिया कर
हर समय नहीं भी
कभी
किसी रोज
चाँद
निकलने से पहले
या सूरज डूबने के बाद
किसने
देखना है समय
किसने सुननी है बकबास
जमीन में बैठे ठाले
मिट्टी फथोड़ने वाले से
उबलते दूध के उफना के
चूल्हे से बाहर कूदने के
समीकरण बना
फिर देख
अधकच्चे
फटे छिलकों से झाँकते
मूंगफलियों के दानों की
बिकवाली में उछाल
सब समझ में
आना भी नहीं चाहिए
पालतू कौए का
सफेद कबूतर से
चोंच लड़ाना भी गणित ही है
चोंच लड़ाना भी गणित ही है
वो बात अलग है
किताब में
सफेद और काले पन्नों की गिनतियाँ
अलग अलग रंगों से नहीं गिनी जाती हैं
इसलिए
उजाले में ही सही निकल कोटर से
दांत
ना भी हों फिर भी
छील कुछ
कुछ दिखा
हाथी के ही सही
‘उलूक’
मर गया और मरा हुआ
दो अलग अलग बातें हैं |
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