उलूक टाइम्स: सच्ची बात

मंगलवार, 26 जून 2012

सच्ची बात

दिमाग
है जितना
अपने पास में
पूरा लगाता हूँ

चालाकी
अपनी ओर
से पूरी कर
ले जाता हूँ

किस्मत
का मारा
मगर कहीं तो
फँसा फिर भी
लिया जाता हूँ

साहब
करते हैं
कोशिश मुझे
घोड़ा अपना
बनाने की

गधा
तक बन
कर बीच में ही
रुक जाता हूँ

देखलो
उनको भी
चूना लगा
इस तरह मैं
ले जाता हूँ

लदवाना
जहाँ
चाहते हैं
बोरा 
एक
मेरे ऊपर


झोला
ही उनका
बस उठा के
ले जाता हूँ

चमचागिरी
करना भी
चाहूँ कभी

ठीक
मौके पर
आकर के
शरमा
ही जाता हूँ

चालाकी
का नमूना
फिर भी
देखिये जनाब

शहर
के हर
कोने में
उनके चमचे
के नाम
से फिर भी
जाना जाता हूँ

अपनी
गली में
पहुँचा नहीं जैसे
शेर
एक बब्बर
सा हो जाता हूँ

प्लास्टिक
के नाखून
पहन कर के
सारे मोहल्ले
की बिल्लियों
को डराता हूँ

सही
जगह पर
माना कि कुछ
कह नहीं पाता हूँ

यहाँ
पहुँच कर
सच्ची बात मगर
दोस्तों को अपने
जरूर बताता हूँ

बताइये
क्या थोड़ा
सा भी
कहीं किसी से
शरमाता हूँ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक कहावत है इस विषय में -'जिसने करी शरम ,उसके फूटे करम .'

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  2. साहब का कड़छा बड़ा, निजी-गली का शेर ।

    साहब का घोड़ा गधा, उनके हाथ बटेर ।

    उनके हाथ बटेर, बटोरें बोरा-बस्ता ।

    चूना किन्तु लगाय, नहीं शर्माता हंसता ।

    कहो नहीं तुम ढीठ, कहे ये दुनिया कब का ।

    खड़े खड़े दूँ पीट, मुंहलगा हूँ साहब का ।।

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    1. Kiyu etna Pareshan ho.
      Jab jalta h deepak andera kat
      Jata hh
      Par lo ke pass jo garmahat hoti hh mahsoos Karo..

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  3. यही दुनियां का दस्तूर है...बहुत सुन्दर व्यंग्य...

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  4. Mere sar par morning ke time two baar ullu nakhun mar ke chala gaya iska kya mtlb h

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