डर है बस कहीं है खबर में है
वीर हैं बहुत सारे हैं सब फौज में हैं
छुपा है घर में और सब की खोज में है
कांटे खुद की सोज में हैं
बात है जो है बस रोज (गुलाब) में है
बात बस खाली हवा में रखनी है
सच है कहीं है किसी हौज में है
तन्खवाह लेकिन
हर पहली तारीख को
खाते में आना बहुत जरूरी है
पर्ची है
चिकित्सक है
बिना बिमारी मरी महामारी है
मुर्दे हैं सारे भोज में हैं
हर आदमी
कहां है पूछता फिर रहा है
उसकी मजबूरी है
सोच है नोज (नाक) में है
‘उलूक’ का
उसकी बीमारी है
इलाज है नहीं
चिकित्सक की कमजोरी है
सारे हैं
सैल्फी की पोज में हैं ।
चित्र साभार: https://www.aegonlif