उलूक टाइम्स: कबूतर
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मंगलवार, 2 जुलाई 2013

कभी बड़ा ढोल पीट



कब तक पीटेगा एक कनिस्तर 

कभी बड़ा 
एक ढोल भी पीट

घर के 
फटे पर्दे छोड़ टांगना
नंगी धड़ंगी सही 
पीठ ही पीट

आती हो 
बहुसंख्यकों को समझ में 
ऎसी अब ना कोई
लीक पीट

अपने घर के 
कूडे़ को कर किनारे 
कहीं छिपा ना दिखा

दूर की एक कौड़ी लाकर 
सरे आम शहर के
बीच पीट

क ख से 
कब तक करेगा शुरु 
समय आ गया है अब 
एक महंगा शब्दकोश 
ला कर के पीट

पीट रहे हैं 
सब जब कुछ ना कुछ 
किनारे में जा कर अपने लिये ही जब 

तू अपने लिये 
अब तो पीटना ले इन से कुछ सीख 
कुछ तो पीट 

कुछ ना 
मिल पा रहा हो कहीं अगर तुझे तो 
छाती अपनी ही खोल  
और  
खुले आम 
पीट 

मक्खियाँ भिनभिनायें 
गिद्ध लाशों को खायें 
किसने कहा जा कर के देख
समझदारी बस दिखा 
महामारी फ़ैलने की
खबर पीट

घर की मुर्गी उड़ा 
कबूतर दिल्ली से ला 
ओबामा का कव्वा
बता कर
के पीट

पीटना 
है नहीं तुझको जब छोड़ना
कुछ बड़ा सोच कर 
बड़ी बातें ही पीट

कब तक पीटेगा 
एक कनिस्तर 
कभी एक बड़ा ढोल
भी पीट । 

चित्र साभार: https://www.cffoxvalley.org/

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

कबूतर कबूतर

नर
कबूतर ने
मादा
कबूतर को

आवाज
देकर
घौंसले से
बाहर
को बुलाया

घात
लगाकर
बैठी हुई
उकड़ू

एक
बिल्ली को
खेत में

सामने
से दिखाया

फिर
समझाया

बेवकूफ
बिल्ली

पुराने
जमाने की
नजर
आ रही है

कबूतर
को पकड़ने
के लिये

खुद
ही घात
लगा रही है

जमाना
कहाँ से कहाँ

देखो
पहुँचता
जा रहा है

इस
पागल को
अब भी

बिल्ली
को देखकर

आँख बंद
करने वाला
कबूतर याद
आ रहा है

अरे
इसे कोई
समझाये

ठेका
किसी

स्टिंग
आपरेशन
करने वाले
को देकर
के आये

किसी भी

ईमानदार

सफेद
कबूतर
पर पहले

काला धब्बा
एक लगवाये

उसके बाद

उसका
जलूस एक
निकलवाये

उधर

अपने
खुद के घर

पत्रकार
सम्मेलन
एक करवाये

फोटो सोटो
सेशन करवाये

इतना कुछ

जब हो
ही जायेगा

कबूतर
खुद ही

शरम के मारे
मर ही जायेगा

समझदारी
उसके बाद

बिल्ली दिखाये

कबूतर
के घर

फूल
लेकर
के जाये

शवयात्रा
में शामिल
होकर

कबूतरों
के दिल में
जगह बनाये

फिर
जब भी
मन में आये

कबूतर
के किसी भी

रिश्तेदार
को घर बुलाये

आराम से

खुद
भी खाये

बिलौटे
को भी
खिलाये ।

सोमवार, 23 जुलाई 2012

आज बस मुर्गियाँ

आज कुछ
मुर्गियाँ
लाया हूँ

खाने वाले
खुश ना
होईयेगा

चिकन नहीं
बनाया हूँ

बस
लिख कर
मुर्गियाँ
फैलाया हूँ

सुबह सुबह
मुर्गियों ने मेरी
बहुत कोहराम
मचाया हुआ था

कल देर से
सोया था
रात को

सुबह के
शोर से जागा
तो बहुत
झल्लाया था

कल ही नयी
कुछ तमीजदार
मुर्गियाँ खरीद
के लाया था

पुराने दड़बे
में पुरानी
कम 

पढ़ी लिखी
मुर्गियों में
लाकर उन को
घुसाया था

नयी मुर्गियाँ
पुरानी 

मुर्गियों से
नाराज नजर
आ रही थी

इसलिये 

सब के सब 
जोर जोर
से चिल्लाये
जा रही थी

मुर्गियों को
मुर्गियों में
ही मिलाया था

मुर्गीखाना था
उसी में डाल
कर के 

आया था

किसी को
लग रहा हो
कबूतर खाना
मैंने तो कहीं
नहीं बनाया था

क्यों कर
रही होंगी
मुर्गियाँ ऎसा

समझने की
कोशिश
नहीं कर
पा रहा था

अपने खाली
दिमाग की
हवा को
थोड़ा सा
बस हिलाये
जा रहा था

थक हार
कर सोचा

मुर्गियों से ही
अब पूछा जाये

इस सब बबाल
का कुछ हल तो
ढूँढा ही अब जाये

मुर्गियों ने बताया
कल जब उनको
लाया जा रहा था

तब उनको ये भी
बताया जा रहा था

इधर की मुर्गियाँ
कुछ अलग
मुर्गियाँ होंगी
कुछ नहीं करेंगी

उनको बहुत
आराम से
सैटल होने को
जगह दें देंगी

पर यहाँ तो
अलग माजरा
नजर आ रहा है
हर मुर्गी में
हमारे यहाँ की
जैसी मुर्गियों का
एक डुप्लीकेट
नजर आ रहा है

मैने बहुत
धैर्य से सुना
और प्यार से
मुर्गियों को
थपथपाया
और समझाया

वहाँ भी मुर्गियाँ थी
यहाँ भी मुर्गियाँ है

वहाँ से यहाँ
आने पर मुर्गी
आदमी तो
नहीं हो जायेगी

हो भी जायेगी
तब भी मुर्गी
ही कहलायेगी

चुप रहे तो
शायद
कोई नहीं
पहचान पायेगा

मुँह खोलते
ही दही दूध
फैलायेगी

अपनी हरकतों से
पकड़ी ही जायेगी

इसलिये
ज्यादा मजे
में तो मत
ही आओ

दाना मिल
तो रहा है
पेट भर के
खाते जाओ

फिर
कुकुड़ूँ कूं
करते रहो

मेरा
बैंड बाजा
पहले से ही
बजा हुआ है
तुम उसको
फिर से तो
ना बजाओ

मुर्गियो
आदमी हो
जाने के ख्वाब
देखने से

 बाज आओ ।

गुरुवार, 31 मई 2012

निठल्ले का सपना

कौआ अगर
नीला होता
तो क्या होता

कबूतर भी
पीला होता
तो क्या होता

काले हैं कौए
अभी भी
कुछ नया कहाँ
कर पा रहे हैं

कबूतर भी
तो चिट्ठियों 

को नहीं ले
जा रहे हैं

एक निठल्ला
इनको कबसे
गिनता हुवा
आ रहा है

मन की कूँची
से अलग
अलग रंगों
में रंगे
जा रहा है

सुरीली आवाज
में उसकी जैसे
ही एक गीत
बनाता है

कौआ
काँव काँव
कर चिल्ला
जाता है

निठल्ला
कुढ़ता है
थोड़ी देर
मायूस हो
जाता है

जैसे किसी
को साँप
सूँघ जाता है

दुबारा कोशिश
करने का मन
बनाता है

कौए को छोड़
कबूतर पर
ध्यान अपना
लगाता है

धीरे धीरे तार
से तार जोड़ता
चला जाता है

लगता है जैसे
ही उसे कुछ
बन गयी
हो बात

एक सफेद
कबूतर
उसके सर
के ऊपर से
काँव काँव कर
आसमान में
उड़ जाता है।

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

आहा मेरा पेड़

मुर्गे
मुर्गियां
कबूतर तीतर
मेरे पेड़ की
एक मिसाल हैं

हर एक
अपना
अपनी
जगह पर
धर्म निभाते हैं

मुर्गियां
मुर्गियों के साथ
कबूतर
कबूतर के साथ
हमेशा
ही पाये जाते हैं
कव्वे
कव्वों से ही
चोंच लड़ाते हैं
धर्म
निरपेक्षता का एक
उत्तम
उदाहरण दिखाते हैं

जंगल के
कानून
किसी को भी
नहीं पढ़ाये जाते हैं
बड़े छोटे
का कोई भेद
नहीं किया जाता है
कभी कभी
उल्लू को भी
राजा बनाया जाता है

कोई
झगड़ा फसाद
नहीं होता है
मेरे पेड़ पर कभी
सरकारी चावल
ताकत के अनुसार
घौंसलों में ही
पहुंचा दिया जाता है

पेड़
के अंदर
कोई लाल बत्ती
नहीं लगाता है

जंगल
जाने पर ही
लाल बत्ती है करके
बस शेर को ही बताता है

कोई किसी
को कभी
थोड़ा सा भी
नहीं डराता है
जिसकी जो
मन में आये
कर ले जाता है

बहुत ही
भाईचारा है,
आनन्द ही
आ जाता है
साल के
किसी दिन जब
सफेद कौआ
काले कौऎ को
साथ लेकर
कबूतर के
घर जाता हुवा
दिखाई दे जाता है।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

छ से छन्द

कविता सविता
तो तब लिखता
अगर गलती से
भी कवि होता

मैं सिर्फ
बातें बनाना
जानता हूँ
छंद चौपाई
दोहे नहीं
पहचानता हूँ

रोज दिखते
हैं यहां कई
उधार लेकर
जिंदगी बनाते

कुछ जुटे
होते हैं
फटती हुवी
जिंदगी में
पैबंद लगाते

जो देखता
सुनता
झेलता
हूँ अपने
आस पास
कोशिश कर
लिख ही
लेता हूँ
उसमें से
कुछ
खास खास

ऎसे में
आप कैसे
कहते हो
छंद बनाओ
हमारी तरह
कविता एक
लिख कर
दिखाओ

गुरु आप
तो महान हो
साहित्य जगत
की एक
गरिमामय
पहचान हो

खाली दिमाग
वालों पर
इतना जोर
मत लगाओ
बेपैंदे के
लोटे को तो
कम से कम
ना लुढ़काओ

क से कबूतर
लिख पा
रहा हो
अगर
कोई यहां
गीत लिखने
की उम्मीद
उससे तो
ना ही लगाओ

हो सके
तो उसे  

ख से
खरगोश
ही
सिखा जाओ

नहीं कर
सको
इतना भी
तो
कम से कम
उसके लिये
एक ताली ही
बजा जाओ।

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

झपट लपक ले पकड़

जमाना
वाकई में
बड़ी तेजी से
बदलता
जा रहा है

कौआ
कबूतर को
राजनीति
सिखा रहा है

कबूतर
अब चिट्ठियाँ
नहीं पहुंचाया
करता है

कौवा भी
कबूतर को
खाया नहीं
करता है

कौवा
उल्लुओं का
शिकार करने
की नयी
जुगत
बना रहा है

कौवा
कबूतर
भेज कर
उल्लूओं को
फंसा रहा है

ये पक्षियों
को क्या होता
जा रहा है

पारिस्थितिकी
को क्यों इस तरह
बिगाड़ा जा रहा है

"आदमी की
संगत का असर 

पक्षियों का
राजनीतिक
सफर"

मूँछ मे
ताव देता
एक प्रोफेसर
टेढ़े टेढ़े मुंह से
हंसता हुवा
यू जी सी की
संस्तुति हेतु
एक करोड़
की परियोजना
बना रहा है।

रविवार, 13 सितंबर 2009

सत्ता


बरसोंं
के 
कौओं
के 
राज से
उकताकर

कबूतरोंं 
ने
सत्ता 
सम्भाली

और

अब
वे भी

बहुत
अच्छा

कांव कांव
करने लगे हैं।