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बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

समझना चाहो तो एक इशारा एक पता होता है

लिख देना किसी के 
पढ़ने के लिये ही
नहीं होता है 
पढ़ने वालों को 
अच्छी तरह से 
ये पता होता है 
बहुत भीड़ होती है 
बहुत सी जगहों पर 
सब होता है वहाँ 
अपना ही बस 
पता नहीं होता है 
बगल में होता है 
जब तक कि 
छूना होता है 
छू लेता है
महसूस भी होता है 
हटता है जाकर 
बस दो गज
की दूरी कहीं
मीलों दूर का 
पता उसी जगह पर 
कहीं लिखा होता है 
गहराई लिये बहुत
कुछ दिखाई देता है 
खुद के अंदर ही 
कहीं डूबने का 
इंतजाम होता है 
पता देता है जरूर 
हमेशा एक नया 
हर बार एक नये 
दुश्मन के ठिकाने 
का मगर  देता है 
मयखाने में शराब हो 
इतना जरूरी नहीं 
साकी का गिलास 
खाली भी होता
तो बहुत होता है 
सब कुछ बिकता है 
हर चीज बाजारी है 
कोई पैसे से 
कोई बस बिकने 
के लिये भी कहीं भी 
किसी भी तरह 
से बिकता है 
खरीददार हर कोई है 
इस बाजार में 
कोई दे कर 
खरीद लेता है 
कोई ले कर 
खरीद देता है  
बहुत देख ली
हो दुनियाँ जिसने
उसके लिये कफन
से अजीज कोई
और नहीं होता है 
बहुत सा गोबर 
होता है दिमाग 
में भी ‘उलूक 
भैंस पालना 
इतना जरूरी 
नहीं होता है।

रविवार, 15 दिसंबर 2013

मुझ गधे को छोड़ हर गधा एक घोड़ा होता है

कोई भी
समझदार

पुराना
हो जाने पर

कभी भी
भरोसा
नहीं करता है

इसी लिये
हमेशा
लम्बी रेस
का एक
घोड़ा होता है

पुराना
होने से
बचने का
तरीका भी

बहुत ही
आसान होता है

परसों तक
माना कि
बना रहा
कहीं एक
मकान होता है

आज
के दिन
एक बहुत
माना हुआ
बड़ा किसान होता है

किसी को
नजर भर
अपने को
देखने का
मौका नहीं देता है

जब तक
समझने
में आता है

किसी को
जरा सा भी
कुछ कुछ

आज के
काम को छोड़
कल के किसी
दूसरे काम
को पकड़ लेता है

एक ही
काम से
चिपके
रहने वाला

उसके
हिसाब से
एक गधा होता है

धोबी दर
धोबी के
हाथों में
होते होते
पुराने से पुराना
होता ही रहता है

धोबी
बदल देने
वाला गधा ही
बस खुश्किस्मत होता है

होता होगा
गधा कभी
किसी जमाने में

पर आज
के जमाने का

सबसे
मजबूत घोड़ा
बस वही होता है

रोज का रोज

एक नये
काम को
नये सिरे से
जो कर लेता है

किसी
के पास
इतना बड़ा
दिमाग ही
कहाँ होता है

जो ऐसों के
किये गये
काम को
समझ लेता है

एक ही
आयाम में
जिंदगी
काटने वालों
के लिये

वही तो
एक बहुआयामी
व्यक्तित्व होता है

जिसने
कुछ भी
कभी भी
कहीं भी
पूरा ही नहीं
किया होता है ।

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

कभी तो लिख दिया कर यहाँ छुट्टी पे जा रहा है

बटुऐ की चोर जेब में
भरे हुऐ चिल्लर जैसे
कुछ ना कुछ रोज लेकर
चने मूंगफली की
रेहड़ी लगाने में तुझे
पता नहीं क्यों इतना
मजा आता है
कितना कुछ है
लोगों के पास
भरी हुई जेबों में जब
पिस्ते काजू बादाम
दिखाने के लिये
किसे फुरसत है तेरी
मूंगफली के छिक्कल
निकाल कर दो चार दाने
ढूढ निकाल कर खाने की
एक दिन की बात नहीं है
बहुत दिनों से तेरा ये टंटा
यहाँ चला आ रहा है
करते चले जा तू
मदारी के करतब
खुद को खुद
का ही जमूरा
तुझे भी मालूम है
पता नहीं किस के लिये
यूं बनाये जा रहा है
कभी सांस भी
ले लिया कर
थोड़ी सी देर
के लिये ही सही
नहीं दिखायेगा
कभी कुछ तो
कौन यहाँ पर
लुटा या मरा
जा रहा है
कुछ नहीं
होगा कहीं पर
हर जगह खुदा का
कोई ना कोई बंदा
उसी के कहने पर
वो सब किये
जा रहा है
जिसे लेकर रोज
ही तू यहां पर
आ आ कर
टैंट लगा रहा है
आने जाने वालों का
दिमाग खा रहा है
अब भी सुधर जा
नहीं तो किसी दिन
कहने आ पहुंचेगा यहाँ
कि खुदा का कोई बंदा
तेरी इन हरकतों के लिये
खुदा के यहाँ आर टी आई
लगाने जा रहा है और
ऊपर वाला ही अब तेरी
वाट लगाने के लिये
नीचे किसी को
काम पर लगा रहा है ।

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

ये तो होना ही था


जो हो रहा था अच्छा हो रहा था 
जो हो रहा है अच्छा हो रहा है 
जो आगे होगा वो अच्छा ही होगा 

बस तुझे
एक बात का 
ध्यान रखना होगा 

बंदर के बारे में 
कुछ भी कभी भी नहीं सोचना होगा 

बहुत पुरानी कहावत है 
मगर बड़े काम की कहावत नजर आती है 
जब मुझे
अपने 
दिमाग में घुसी भैंस नजर आती है 

अब माना कि 
अपनी ही होती है 
पर भैंस तो भैंस होती है 
उसपर
जब वो किसी के 
दिमाग में घुसी होती है 

जरा जरा सी बात पर 
खाली भड़क जाती है 
कब क्या कर बैठे 
किसी को बता कर भी नहीं जाती है 

दूसरों को देख 
कर लगता है 
उनकी भी कोई ना कोई 
भैंस 
तो 
जरूर होती होगी 

तो मुझे खाली
क्यों 
चिंता हो जाती है 
अपनी अपनी भैंस होती है
जिधर करेगा मन 
उधर को चली जाती है

अब इसमें मुझे 
चिढ़ लग भी जाती है 
तो कौन सी बड़ी बात हो जाती है 

लाईलाज हो बीमारी
तब 
हाथ से निकल जाती है 

अखबार की खबर से 
जब पता चलता है 
कोई भी ऐसा नहीं है 
मेरे सिवाय यहाँ पर 
जिसके साथ इस तरह की कोई अनहोनी होती हुई
कभी यहां 
पर देखी जाती है 

होती भी है
किसी के 
पास एक भैंस 
वो हमेशा तबेले में ही बांधी जाती है 

सुबह सुबह से
इसी 
बात को सुनकर 
दुखी हो चुकी
मेरे 
दिमाग की भैंस 
पानी में चली जाती है 

तब से भैंस के जाते ही 
सारी बात जड़ से खतम हो जाती है 

परेशान होने की 
जरूरत नहीं 
अगर आपके समझ में
'उलूक' 
की बात बिल्कुल भी नहीं आती है । 

चित्र साभार: http://wazaliart.blogspot.com/

बुधवार, 11 सितंबर 2013

उसका जरूर पढ़ना पर लिखना खुद अपना

ये नया
आईडिया
तेरे दिमाग में
किसने आज
घुसा दिया

वैसे भी तू
कुछ बुरा
तो नहीं
दिखता है
कुछ अजीब
सा क्यों आज
तुझको बना दिया

किसी ने
कहा तुझसे
मोर पंख
अगर कहीं
पर एक
चिपकायेगा
तो कौऎ
से मोर तू
जरूर
हो जायेगा

कोई कुछ भी
लिख रहा हो
उससे क्या
हो जायेगा

तू बहुत अच्छी
बकबास
कर लेता है
उसकी तरह
लिखने को
अगर जायेगा

कैसे सोच
लिया तूने
कवि सम्मेलन
के निमंत्रण
पाना शुरु
हो जायेगा

बच
अगर अभी भी
बच सकता है

लिख वही
जो तू खुद
लिख सकता है

छंद अलंकार
व्याकरण को
बीच में लायेगा
जो है वो भी
नहीं रहेगा
जो बनेगा
उसको कोई
सरकस वाला
जरूर उठा
के ले जायेगा

ये लेखन
की दुनिया
बहुत बड़ी
भूलभुलईया है

इसमें ज्यादा
दिमाग अगर
लगायेगा

कहाँ घुस के
कहाँ
निकल आया
कोई पता भी
नहीं कर पायेगा

अभी जाना
जाता है
पहचाना
 जाता है
कुछ आदमी
जैसा है
आदमियों
के बीच में
ये भी
माना जाता है

जैसा है
वैसा ही रहेगा
कुछ पायेगा
नहीं भी तो भी
ज्यादा कुछ
नहीं गवांऎगा

बंदर गुलाटियाँ
मारता हुआ ही
अच्छा लगता है

खुद सोच
कैसा दिखेगा
अगर कहीं वो
दो टांगो पर
चलता हुआ
देखा जायेगा

तू क्या
समझता है
जो जैसा
लिखता है
वो वैसा ही
दिखता है
बहुत से हैं
मेरी तरह
के बेईमान
यहाँ पर
जिनका ब्लाग
ईमानदार
ब्लाग के
नाम से
चलता है

 देखा देखी
और
भीड़ तंत्र के
जादू से निकल
कोशिश कर
और
अपनी टांगों
में ही चल
ऎसा ना हो
कहीं सब कुछ
तेरे हाथ
से जाये
कहीं निकल
अपनी टाँग
भी करे
चलने से
इनकार
और
बैसाखी जाये
हाथों से
दूर फिसल

बहुत कुछ है
जो तेरे पास है
और
तेरा अपना है
सामने वाले
के पास
दिख रहा
ताजमहल
खुद उसी
के लिये
एक सपना है

अपनी सुन्दर
झोपड़ी को
सबको दिखा
खूब जम
के इतरा
सब के लिखे
को पढ़ जरूर
किसी ने
नहीं रोका है
अपनी
बक बक को
बक बक
ही रहने दे
कविता को
बस एक
पाजामा
पहनाने से
ही तो
तुझे टोका है ।

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

कभी एक रोमानी खबर क्यों नहीं तू लाता है

सब कुछ तो
वैसा 
नहीं
होता है

जैसा 

रोज का रोज
आकर तू यहां
कह देता है

माना कि
अन्दर से
ज्यादातर
वही सब कुछ
निकलता है

जैसा कि
अपने आस
पास में
चलता है

पर
सब कुछ
तुझे ही

कैसे
और क्यों
समझ में
आता है

तेरे
वहाँ तो

एक से
बढ़कर एक
चिंतकों का

आना जाना
हमेशा से ही
देखा जाता है

पर
तेरी जैसी
अजीब
अजीब सी
परिकल्पनाऎं
लेकर

कोई ना तो
कहीं आता है
ना ही कहीं पर
जाकर बताता है

दूसरी
ओर देख

बहुत
सी चीजें
जो होती
ही नहीं है

कहीं
पर भी
दिखती नहीं हैं

उन
विषयों
पर भी

आज जब
विद्वानोंं द्वारा

बहुत कुछ
लिखा हुआ
सामने
आता है

शब्दों के
चयन का
बहुत ही
ध्यान रखा
जाता है

भाषा
अलंकृत
होती है

ऊल जलूल
कुछ भी
नहीं कहा
जाता है

तब तू भी
ऎसा कुछ
कालजयी
लिखने की
कला सीखने
के लिये

किसी को
अपना गुरू
क्यों नहीं
बनाता है

वैसे भी
रोज का रोज
सारी की सारी
बातों को
कहना

कौन सा
इतना जरूरी
हो जाता है

जहाँ
तेरे चारों ओर
के हजारों
लोगों को

अपने सामने
गिरते हुऎ
एक मकान
को देखकर

कुछ भी नहीं
हुआ जाता है

तू
बेकार में
एक छोटी सी
बात को

रेल में
बदलकर
हमारे सामने
रोज क्यों
ले आता है

अपना समय
तो करता ही
है बरबाद

हमारा
दिमाग
भी साथ
में खाता है ।

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

सोच दिखती नहीं फैल जाती है

चल रहा था
मुस्कुरा रहा था
हाथ की अंगुलियां
हिलाये जा रहा था
बड़बड़ा रहा था
उसके आस पास
जबकि कोई भी
दूर दूर तक कहीं
नजर नहीं आ रहा था
ये सब मैं उसके
सामने से देखता
हुआ आ रहा था
बगल से जैसे ही
वो निकला
मेरा दिमाग ऎसे चला
जैसे चलने वाली मशीन
का बटन किसी ने हो
तुरंत ही दबा दिया
मुस्कुरा रहा था
पक्का कोई अच्छी
खबर अभी अभी
सुन कर आ रहा था
हाथ हिला रहा था
पक्का क्या करने
जा रहा था
उसका प्लौट
अपने सामने से
देख पा रहा था
बड़बड़ा रहा था
पक्का शादी शुदा
होगा बता रहा था
जो कुछ बीबी से
कह नहीं पा रहा था
कह ले जा रहा था
अरे अरे देखिये
उसको तो जो भी
हुऎ जा रहा था
ये सब मैं काहे
सोच ले जा रहा था
अच्छा हुआ इस सब
के बीच मेरे अपने
सामने से कोई नहीं
दूर दूर तक आ रहा था।

शनिवार, 2 जून 2012

गोबर

गोबर के जब
उपले बनाता है
बहुत सी टेढ़ी
वस्तुओं को
गलाने की ताकत
उसे जलाने से
पा जाता है
गोबर की खाद
बनाता है
खेत खलिहान
को आबाद
कर ले जाता है
गोबर की चिनाई
करवाये चाहे
गोबर की लिपाई
कीड़े मकोड़ों की
विदाई करवाता है
गोबर के पार्थिव
पूजन से शिव का
आशीर्वाद पा जाता है
शरीर को रोगमुक्त
करवाने का एक
वरदान पा जाता है
गोबर के एक गणेश
की तीव्र इच्छा होना
हर पत्नी की विशलिस्ट
में जरूर पाया जाता है
गोबर का प्रयोग
पर्यावरण को नुकसान
भी नहीं पहुँचाता है
इतने मह्त्वपूर्ण गोबर
को जब मनुष्य अपने
दिमाग में घुसाता है
तो किसी भी वस्तु को
गोबर में बदलने की
महारत हासिल
कर ले जाता है।

सोमवार, 28 मई 2012

कूड़ा प्रबन्धन


रोज
घर के 
कूड़े की 
एक थैली
बनाता है

मुंह अंधेरे 
एक चेहरा 
खिड़की से
बाहर
निकल 
कर आता है

ताकत लगा 
कर
थैली को
दूसरे घर
के
आंगन में
पहुँचाता है

चेहरा 
खिड़की बिना 
आवाज किये
बंद करता 
हुआ

लौट
कर अपने 
बिस्तरे पर 
जा कर 
फिर से 
लुढ़क 
जाता है

इस आँगन 
से उस 
आँगन तक
होता हुवा 
थैला

थैलों 
से टकराते
छटकते 

अंतत: 
कूडे़दान
में
समा तो 
नहीं पाता है

पर कुछ 
मुरझाये 
कुछ
थके हारे 
सा होकर 

सड़क तक 
पहुँच कर
फट फटा 
जाता है 

कूड़ा अंदर 
का निकल 
कर बाहर 
खुले में फैल 
जाता है

बाहरी कूडे़ 
का
सलीकेदार
प्रबंधन

मेरे 
शहर के हर 
पढे़ लिखे
को आता है

जैविक अजैविक
कूडे़ की थैलियाँ

आते जाते
कहीं ना कहीं
टकरा
ही जाती हैं 

घर वालों
की
औकात

कूड़े 
में फेंके गये 
सामान से 
मेल भी 
खाती हैंं

थोड़ी सी 
बात 'उलूक'
के
पाव भर 
के
हवा भरे 
दिमाग में 

बस यहाँ 
पर नहीं 
घुस पाती है 

दिमाग
में 
भरे हुवे 
कूडे़ का 
निस्तारण 

वही चेहरा 

अपने 
अंदर से 
कौन से 
थैले में 
और
कहाँ 
जा कर 
कराता है

टी वी
में 
होता है कुछ 
रेडियो
में 
होता है कुछ 

कुछ
अखबार 
के
समाचार में 
चिपका हुआ 
नजर आता है

चेहरा
अपने 
अंदर के कूड़े 
के साथ 
ईमानदारी 
दिखाता है 

कोई थैला 
कहीं भी 
फटा हुआ 
किसी गली 
किसी सड़क 
में नजर 
दूर दूर 
तक भी 
नहीं आता है ।

चित्र साभार: cliparts.co

रविवार, 25 दिसंबर 2011

पहचानो ना

अंकपत्र हाईस्कूल प्रमाणपत्र 
राशनकार्ड मतदान पहचान पत्र
टेलीफोन का बिल
बैंक की पासबुक
अंगूठे का निशान
आदमी की पहचान

सब के सब अचल
जो चलता है 
मतलब दिमाग से है
बेकार की एक चीज

दिमाग किसी आदमी की 
आईडेंटिटी नहीं हो सकता कभी
पता ही नहीं है
दिमाग आदमी को चलाये
या
आदमी दिमाग को चलाये

चलता दिमाग
किसी को भी अच्छा नहीं लगता
एक कूड़ा दिमाग बौस 
मातहत के दिमाग को 
हलुवा मानता है
जिसे कोई भी पकाये कोई भी खाये

दिमाग को 
आडेंटिटी नहीं बना सकते
पल में जनवरी पल में दिसम्बर 
हो जाता है दिमाग

अन्ना को कोई राय नहीं दे सकता
फिंगर प्रिंट की जगह मेंटल प्रिंट करवायें 
दिमाग हर क्षण बदलता है दिमाग 

और वाकई में हो जाये ऎसा
तो दिमाग पागल का
होगा एक पहचान
और बाकी 
छानते फिरेंगे कूड़ा 
अपनी पहचान के लिए।

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

आईना

आज एक लम्बे
अर्से के बाद
पता नहीं कैसे मैं
जा बैठा घर के
आईने के सामने
मेरे दिमाग की तरह
आईने ने कोई अक्स
नहीं दिखलाया
मैं थोड़ा घबराया
नजर को फिराया
सामने कैलेण्डर में
तो सब नजर
आ रहा था
तो ये आईना
मुझसे मुझको
क्यों छिपा रहा था
सोचा किसी को बुलाउं
आईना टेस्ट करवाउं
बस कुता भौंकता
हुवा आया थोडा़ ठहरा
फिर गुर्राया जब
उसने अपने को आईने
के अंदर भी पाया
मुझे लगा आईना
भी शायद समय
के सांथ बदल रहा होगा
इसी लिये कबाड़ का
प्रतिबिम्ब दिखाने से
बच रहा होगा
विज्ञान का हो भी
सकता है ऎसा
चमत्कार
जिन्दा चीजों का ही
बनाता हो आईना
इन दिनो प्रतिबिम्ब
और मरी हुवी चीजों
को देता हो चेतावनी
कि तुम अब नहीं हो
कुछ कर सकते हो
तो कर लो अविलम्ब।