उलूक टाइम्स

रविवार, 1 सितंबर 2019

कभी खरीदने आना होता है कभी बेचने जाना होता है आना जाना बना कर ही संतुलन बनाना होता है


कुछ
शब्दों को
इधर

कुछ
शब्दों को
उधर

ही तो
लगाना होता है

बकवास
करने में
कौन सा
किसी को

व्याकरण
साथ में
समझाना
होता है

कौमा
हलन्त चार विराम
अशुद्धि
चंद्र बिंदू
सीख लेना
बोनस
बनाना होता है

उनके लिये
जिन्हें
एक ही बात से
दो का मतलब
निकलवाना होता है

रोज का रोज
उगल दिया जाना

जमाखोरों
की
जमात में जाने से
खुद को
बचाना होता है

केवल
संडे मार्केट में
दुकान
लगाने वाले के लिये

एक
बड़ी मुश्किल
माल को
ठिकाने
लगाना होता है

लोकतंत्र में
कुछ भी
बेच लेने वाले
के
बोलबाले
का
दिवाना
सारा जमाना होता है

‘उलूक’
खाली
हो जायेगी
दुकान
कहना छोड़

सपने में
भी
खाली
देख लेने
वाले को

सबसे पहले
अन्दर
जाना होता है ।

चित्र साभार: https://www.ttu.ee

शनिवार, 31 अगस्त 2019

ठीक नहीं ‘उलूक’ थोड़ा सा समझने के लिये इतने सारे साल लगाना



आभार पाठक
 'उलूक टाइम्स' पर जुलाई 2016 के अब तक के अधिकतम 217629 हिट्स को 
अगस्त 2019 के 220621 हिट्स ने पीछे छोड़ा 
पुन: आभार 
पाठक


सुना गया है
अब हर कोई एक खुली हुयी किताब है 

हर पन्ना जिसका
झक्क है सफेद है और साफ है 

सभी लिखते हैं
आज कुछ ना कुछ
बहुत बड़ी बात है 

कलम और कागज ही नहीं रहे बस
बाकी सब इफरात है 

कोई नहीं लिखता है कहीं
किसी भी अन्दर की बात को 

ढूँढने निकलता है
एक सूरज को मगर
वो भी किसी रात को 

सोचता है साथ में
सब दिन दोपहर में
कभी आ कर उसे पढ़ें

कुछ वाह करें
कुछ लाजवाब
कुछ टिप्पणी
कुछ स्वर्णिम गढ़ें

समझ में
सब के सब कुछ
बहुत अच्छी तरह से आता है 

जितने से
जिसका काम चलता है
उतना समझ गया होता है
उसे
ढोल नगाड़े साथ ला कर
खुल कर
जरूर बताता है 

जहाँ फंसती है जान
होता है
बहुत बड़ी जनसंख्या से जुड़ा
कोई उनवान
शरमाना दिखा कर
अपने ही किसी डर के खोल में
घुस जाता है 

किस अखबार को
कौन कितना पढ़ता है
सारे आँकड़े
सामने आ जाते हैं 

किस अखबार में
कैसे अपनी खबर कोई
हर हफ्ते छपवा ले जाता है
कैसे हो रहा है होता है
ऐसा कोई
पूछने ही नहीं जाता है 

कोई
नजर नहीं आता है का मतलब
नहीं होता है
कि
समझ में नहीं आता है 

उलूक के लिये
बस
एक राय 

लिखना लिखाना छपना छपाना कहीं भीड़ कहीं खालिस सा वीराना
‘उलूक’ ठीक नहीं थोड़ा सा समझने के लिये इतने सारे साल लगाना 

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

जी डी पी और पी पी पी में कितने पी बस गिने कितने हैं मगर किसी को ना बतायें



कुछ
चुटकुले

अगर
समझ में
ना भी आयें

खुल के
खिलखिला के

अगर
हँस
ना भी पायें

कोशिश
कर लें
थोड़ा सा

बिना
बात भी
कभी यूँ ही
मुस्कुरा
जायें 

किस लिये
समझनी
हर बात
अपने
आस पास की

कुछ
हट के
माहौल
भी

जरा जरा
मरा मरा
छोड़ कर

बनाने
को
कहीं चले जायें

कविता कहानी
गजल शेर के
मज़मून
भरे पड़े हैं

जब
फिजाँ में हर तरफ

किसलिये
बेकार में

उलझे हुऐ से
विषय
कबाड़ से
उठा उठा कर
ले आयें

मजबूत हैं
खम्बें
पुलों के
मान कर

उफनती
नदी में
उछलती
नावों में
अफीम ले के
थोड़ी सी

हो सके
तो
सो जायें

खबर
मान लें
बेकार सी
फिसली हुई
‘उलूक’
के
झोले के छेदों से

जी डी पी
पी पी पी
जैसी
अफवाहों को

सपने देखें
खूबसूरत
से
दिन के
चाँद और तारों के

 बॉक्स आफिस
में
हिट होगी
फिर से
फिलम
पड़ोसी के
घर में लगी आग
की
अगले पाँच सालों
में एक बार

जल जला
कर
हो गया होगा
राख

मान लें 

शोर कर
ढोल
और
नगाड़ों का
इतना

कि
पूछने का
रोग लगे
रोगी

किसी से

क्या हुआ
कैसे हुआ
और
कब हुआ

पूछ ही
ना पायें।
चित्र साभार: https://www.cleanpng.com

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

‘फॉग’ चल रहा है ‘डबल क्रॉस’ चल रहा है खुश्बुओं का जोर है बस फैलने फैलाने को मचल रहा है


कहीं 
‘फॉग’
चल रहा है 

कहीं
‘डबल क्रॉस’
चल रहा है 

मौसम
बारिश का है 

मौज में

बस 
भ्रम
फैलाने को
बदल रहा है 

सफल है
सफलता है 

सीखने
सिखाने
को
मिल रहा है 

खाली
तरकश है 
खून खराबे
से ही
बस
उसे
बड़ी नफरत है 

बस
तीर को
ही
छल रहा है 

बन्दूकें हैं
बन्द सन्दूकों में हैं 

अपनी
रक्षा का
अधिकार है 

संवैधानिक है
स्वीकार है 

कुछ खेल हैं
 कुछ खिलौने हैं 

एक धनुष
बिना प्रत्यंचा
का

बस
दिखाने
को ही
निकल रहा है 

तेजी है
रफ्तार है

चाँद छोड़
 मंगल
तक
 जाने को
तैयार है 

घर की
औरतों के

बस
गहने
ही
बेच खाने
को
मचल रहा है 

जश्न
के
शोर हैं

आशाओं
के
सपनों को

बहकाने
वाले
मोर हैं 

सब कुछ
बदल रहा है

‘उलूक’
ध्यान
किस ओर है 

घर
पूरा
हिल रहा है

और 
तेरा
‘फॉग’
चल रहा है 
‘डबल क्रॉस’
चल रहा है

खुश्बुओं
का
जोर है

बस
फैलने
फैलाने को
मचल रहा है ।



बुधवार, 28 अगस्त 2019

दिखाता नहीं है शक्ल के शीशे में कुछ मगर आईना आँखों का चमक रहा होता है



जो
लिखना
होता है

उसी को
छोड़ कर

कुछ कुछ
लिख रहा होता है 

नहीं
लिखा सारा

लिखे
लिखाये
के पीछे खड़ा
छुपा
दिख रहा होता है 

ना
सामान होता है
ना
दुकान होती है
मगर

थोड़ा रोज
बिक रहा होता है 

आदत
से मजबूर
बिकने की
बाजार में
बिना टाँगें भी
टिक रहा होता है 

नसीब
होता है
उस
पढ़ाने वाले का

अपने
पढ़ने वालों से
पिट रहा होता है 

उपद्रव मूल्य
होता है
दोनों का
जहाँ

उपद्रव
खुद ही
अपने से
निपट रहा होता है 

परम्परायें नयी
मूल्य नये
परिभाषायें नयी

नयी गीता
नयी रामायण में
सब कुछ नया
सिमट रहा होता है 

नये कृष्ण
नये राम
नये गाँधी
नये बलराम

सब
इक्ट्ठा किये
जा रहे होते हैं

एक
जगह पर
ला ला कर
फिर भी 

बेशरम
‘उलूक’

हमाम के
अन्दर
के
सनीमा में भी

कपड़ों
की
तस्वीरों
से

पता नहीं
किसलिये

चिपट
रहा होता है ?

चित्र साभार: 



सोमवार, 26 अगस्त 2019

बकवास भटक जाती हैं जब आस पास की लाजवाब कविताएं लेख कहानियाँ बहुत सारी आ कर इठलाती हैं



जन्म
लेने के
साढ़े पाँच
दशक से
थोड़ा
ऊपर जा कर

थोड़ा थोड़ा
अब समझ में
आने लगे हैं
मायने
कुछ
महत्वपूर्ण
शब्दों के

ना
माता पिता
सिखा पाये
ना शिक्षक
ना ही
आसपास
का परिवेश
और
ना ही समाज

ये भी
पता
नहीं लग पाया
कि
ये कुछ शब्द
निर्णय करेंगे
अस्तित्व का

होने
या
ना होने
के बीच
की
रेखा के
इस तरफ
या
उस तरफ

प्रेम
द्रोह
और
देश

आत्मग्लानि
और
आत्मविश्वास
कतार से
आता है

कतार
देख कर
आता है

कोई
कैसे

सीख
सकता है

स्वत: ही
काटते हुऐ
अपने अंगूठे

विसर्जन
करते हुऐ
गुरु के लिये

चीटियाँ
और
उनके
सामाजिक
व्यवहार
की परिभाषाओं
से
सम्मोहित होकर
मान लेना
नियम
प्रकृति के
पीड़ा दे जाये
असंभव है

संभव
दिखाया
जाता है

महसूस
कराया जाता है

और
वही शाश्वत है

जो
दिख रहा है
उसपर
विश्वास मत कर

जो
सुनाई दे रहा है
वो झूठ है

सबसे
बुरी बात
अपनी इंद्रियों पर
भरोसा करना है

इधर उधर
देख
और
समझ
विद्वान की विद्वता

जब तक
किसी के द्वारा
परखी ना गयी हो

उसका
कोई प्रमाण पत्र
कम से कम
तीन हस्ताक्षरों
के साथ ना हो
बेकार है

कतार
बेतार का तार है

बेकतार
सब बेकार है

कुछ
बच्चों से सीख

कुछ
उनके
नारों से सीख

कुछ
कतार
लगाने वालों
से सीख

दिमाग खोल
और
प्रेमी बन

द्रोही
किसलिये

तुझे
समझाने वाले
सब

कहीं ना कहीं
किसी ना किसी
कतार से जुड़े हैं
‘उलूक’

ये सोच लेना
कि
अकेला चना
भाड़ नहीं
फोड़ सकता है

चनों की
बेइज्जती है

उस
चने की
सोच

जिसने
प्रेम द्रोह
और देश
को
परिभाषित
कर दिया है

और
सब कुछ
कतार में है
आज चने की ।

चित्र साभार: https://longfordpc.com

रविवार, 25 अगस्त 2019

कुछ भी लिख ‘उलूक’ मगर लिख रोज लिख हर समय लिख किस लिये कोई दिन बिना कुछ लिखे ही बितारा



कल का 
लिखा

क्या
बिक गया
सारा

आज
फिर से
उसी पर

किसलिये

वही कुछ
लिख लारा
दुबारा

देख

वो
लिख लारा
घड़ियाँ सारी

समय
सबको

जो 
आज
सबका
दिखारा

समझ

पीठ में
लगी चाबियाँ
अपनी
टिक टिक की

दूर कहीं

कहाँ
जा कर
छुपारा

क्यों नहीं

पूछ
कर ही
लिख लेता
किसी से 

कुछ

उसी 

के
हिसाब का

ऐसा
सोच
क्यों नहीं
पारा

सोच

नहीं
सोचा जारा
जिससे

वो
लिखना छोड़

कुछ
पढ़ने को
चला आरा

बता

समझ
में आना

किस ने
कह दिया
जरूरी है

नहीं
आरा
समझ में

तो
नहीं आरा
बतारा

और

जो
समझ भी
जारा
कुछ

कुछ
कहने में
फिर भी
अगर
हिचकिचारा

कौन सा
कुछ

अजब गजब
जो
क्या हो जारा

एक
कविता कहानी साहित्य
के
पन्नों के
थैले बनारा

दूसरा

बकवास
की
मूँगफली के
छिलके
ला ला
कर
फैलारा

तीसरा

इसकी
टोपी
उसके सिर
में
रख कर
के
आरा

सबसे बड़ा

दीवार
चढ़कर
उतरकर
बड़ी खबर
पकारा

उसके
साथ खड़ा

असली
खबर को

देश दुनियाँ
की
फैली
घास बतारा

‘उलूक’

कविता
कहानियों
के बीच

बकवास
अपनी

कई
सालों से
पकारा

सिरफिरा
समझ रा
दिमागदारों
को
पढ़ारा

निचोड़
इन
सब का
अंत में

लिख कर
ये
रख जारा

कुछ
भी लिख

रोज
कुछ
लिखना
जरूरी है

मत कहना
नहीं
बताया

कम कम
लिखने
वालों
का
चिट्ठा दर्जा

आगे
आते आते

पीछे
कहीं
रह जारा।

चित्र साभार: https://www.amazon.in/dp/159020042X?tag=5books-21

बुधवार, 21 अगस्त 2019

चाँद सूरज की मिट्टी की कहानी नहीं भी सही ‘उलूक’ किसी पत्थर को सिर फोड़ने की दवाई बता कर दे ही जायेगा



अभी तो
बस

शुरु सा
ही
किया है
लिखना

किसे
पता है
कहाँ तक
जा कर

सारा सब
लिख
लिया जायेगा

क्या
लिख रहे हैं
और
किसके लिये

किसलिये सोचना
अभी से

कौन सा
पढ़ लेने
वालों को
भी
समझ में

सारा
सब कुछ
इतनी जल्दी
ही
आ जायेगा

वो
लिखते हैं ये

हम
समझते हैं वो

इस उस
से
उलझते हुऐ

बहुत कुछ
गुजर जायेगा

उसका
वो
लपेटेगा उसको
उधर ही

इधर
के
लपेटे में
इधर का ही
तो
लपेटने समेटने
के
लिये आयेगा

छोटी छोटी
कहानी
कुछ पहेली
कुछ झमेले

सब के
अपने अपने
घर गली
मोहल्ले शहर के

किस लिये
सुनाने बताने समझाने

किसी
दूर बैठे
उबासी भरे
मगज के विद्वान को

कौन सा
देश बनना है
मिल मिला कर

घर घर
की
समस्याओं को

घर में
आपस में
मिलबाँट
कर

इधर से उधर
खिसका
दिया जायेगा

वो
चाँद से
सूरज तक
लिखे
बहुत अच्छा है

रात
का निसाचर
‘उलूक’
भी

तारे
नहीं भी सही
नजदीक के

किसी
उल्कापिंड तक
पहुँचा कर
पाठकों को

कुछ
कम ही मगर

उलझा
तो
ले ही जायेगा।

चित्र साभार: https://paintingvalley.com



सोमवार, 19 अगस्त 2019

कलम की भी आँखें निकल सकती हैं कभी चश्मे भी आ सकते हैं बाजार में पढ़ देने वाले निराश नहीं होते हैं




कुछ
लिखते
बहुत कुछ हैं

मगर
किताब
नहीं होते हैं 

कुछ
लिखी
लिखायी
किताबों के

पन्ने
साथ
नहीं होते हैं 

कुछ
किताबें
देखते हैं

लिखते हैं
दिन
और रात
नहीं होते हैं 

किताबों
को
लिखना
नहीं होता है

उनके
हाथ नहीं होते हैं 

कुछ
बस
लिखते
चले जाते हैं

रुकने के
हालात
नहीं होते हैं 

चलती
कलम होती हैं

और

पैर
कभी
किसी के
आँख
नहीं होते हैं 

अजीब
सा रोते हैं

कुछ
रोने वाले
हमेशा
सोच कर

बेबात
नहीं रोते हैं 

लिखें
और
पढ़ें भी

पढ़ें और
लिखें भी

दो रास्ते

एक
साथ
नहीं होते हैं 

सीखने वाले
सीख लेते हैं
लिखते पढ़ते

कुछ ना कुछ
लिखना पढ़ना
‘उलूक’

इतना
भी
हताश
नहीं होते हैं

कलम
की भी

आँखें
निकल
सकती हैं
कभी

चश्मे भी
आ सकते हैं
बाजार में
पढ़
देने वाले

निराश
नहीं होते हैं ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com

शनिवार, 17 अगस्त 2019

झूठ लिखने का नशा बहुत जियादा कमीना है उस के नशे से निकले तो सही कोई तब जाकर तो कोई कहीं एक सच लिखेगा



आखिर
कितना

और

कब तक

इतना

एक
चेहरा


बदसूरत 
सा 
लिखेगा

बहुत सुन्दर

लिखने
का
रिवाज है

लिखे
लिखाये
पर
यहाँ

लिख देने का

कोई
अगर
लिख भी देगा

तो भी
वैसा ही
तो

और
वही कुछ
तो
लिखेगा

लिखे
को
लिखे के
ऊपर रखकर

कब तक

नापने
का
सिलसिला
रखेगा

लिखने
के
पैमाने

कुछ
के पास हैं

नापने
के
पैमाने

नापने
वाला ही
तो

अपने
पास रखेगा

लिखने
का
मिलता है

कुछ
किसी को

किसी
को
लिखे को

फैलाने
का
मिलता है

कुछ

हर
किसी की
आँख

अपनी तरह
से
देखेगी

दूरबीन
तारे देखने
की हो

तो
कैसे

चाँद
उसमें
किसी को

साथ में

कैसे
और क्यों
कर के
दिखेगा

कुछ नहीं
लिखने वालों
की
सोच

अच्छी बनी
रहती है
हमेशा

जो
लिखेगा
उसके लिखे
 पर ही
तो
उसका चेहरा

पूरा
ना सही

थोड़ा सा
तो
कहीं

किसी
कोने में से
कम से कम

झाँकता
सा
तो
दिखेगा

सालों
निकल जाते हैं

सोचने में

सच
अपना
‘उलूक’

सच में

किसी दिन

एक सच

कोई

कहीं
तो

लिखेगा

झूठ
लिखने
का
नशा

बहुत
जियादा
कमीना है

उस के
नशे से

निकले
तो
सही
कोई

तब
जाकर
तो
कोई

एक

झूठा सा
सही

सच

कहीं और
किसी
जगह

जा
कर के
तो
लिखेगा।

चित्र साभार: http://clipart-library.com