उलूक टाइम्स

रविवार, 26 जनवरी 2020

चालीस लाख कदम के लिये आभार

Pageviews today
4,091
Pageviews yesterday
5,924
Pageviews last month
144,743
Pageviews all time history
4,006,520
Followers
हो सकता है 
यूँ ही घूमने आते होगेंं 
आप 
पर मेरे लिये 
आपका एक कदम इनाम है 
चालीस लाख कदम के लिये 
आभार ।  

ulooktimes.blogspot.com २६/०१/२० के दिन

Alexa Traffic Rank
Traffic Rank in IN
Sites Linking In
Top queries driving
traffic to ulooktimes.blogspot.com
See how ulooktimes.blogspot.com
looked in the past
Very Slow

(21.694 Seconds)
100% of sites are faster
Average Load Time
   
ऐलेक्सा रैंक 226000 
भारत मेें 23000 से नीचे । 
आभार।

मंगलवार, 21 जनवरी 2020

शब्दों की रेजगारी और ‘उलूक’ का फटा हुआ बटुवा


खड़े खड़े

किनारे
 में
कहीं

पहले
से
सूखे हुए

किसी पेड़
के

हरियाली
सोचते
हुए

थोड़े से
समझ
में

थोड़ा थोड़ा
करके

समय
के
साथ

समझ
आ बैठे

शब्दों
की
रेजगारी
के
साथ

मगजमारी
करते

सामने वाले
के

मगज
की
लुगदी बनाने
की

फिराक
में
तल्लीन

समकालीन
 दौड़ों से
दूरी
बनाकर

लपेटते
हुऐ

वाक्यों के साथ
कलाबाजियाँ
करते

कब
दौड़
के
मैदान में
पहुँचा जाता है

अपनी
बकवास
लेकर

वो भी
दौड़ते
साहित्य
के
बिल्कुल
मध्य में

अपने अपने
मेडल
पकड़ कर

लटकते
उलझते
शब्द

अपने
वाक्यों से
झूझते

कलाबाजियाँ
खाते हुऐ

रोज
नये कपड़े
पहन कर

जैसे
शामिल
हो रहे हों
कैट वॉक में

रस्सियों
के
सहारे
खेल दिखाते

बिना टाँग
के
वाक्य

शब्दों
के
मोहताज
कभी भी
नहीं
होते हैं

खुले आम
सड़क के बीच
दौड़ते धावक

किसलिये
जंगल में
दौड़ना
शुरु कर देते हैं

समझते
भी नहीं

दौड़ में

शामिल
नहीं
होने वाले
खरपतवार
झाड़

सब्जी होना
शुरु
हो लेते हैं

बन्द
हो
जाता है
उनका
उगना
तेजी से
ना
चाह कर भी

लिखना
जरूरी है
‘उलूक’

उतना
ही

जितने
शब्द से
पहचान हो

वाक्य
टूटे हों
कोई
फर्क
नहीं पड़ता है

दौड़ भी
अच्छी है

मेडल
के
साथ हो

सोने में
सुहागा है

मैदान
में
दौड़ना
समझ में
आता है

चूने
की
रेखाओं
से

बाहर
निकल कर

खड़े
बेवकूफों
को
शामिल
कर लेना
ठीक नहीं

दौड़ते
रहें

साहित्य
जिंदा रहेगा

बकवास
कभी
साहित्य
नहीं बनेगा

‘उलूक’
डर मत
साहित्य
से
लिखता रह

दौड़ते
शब्द
टूटते वाक्य
उलझते पन्ने

सब
समय है

और
समय

घड़ी
की
सूईयों से

नहीं
नापा जाता है।

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

फिजाँ कैसी मीठी मीठी हो रही है मक्खियाँ ही मक्खियाँ हर तरफ हो रही हैं मधुमक्खियाँ नजर अब आती नहीं हैं ना जाने कहाँ सब लापता हो रही हैं


मक्खियाँ 
ही 
मक्खियाँ 

हो 
रही हैं 

हर तरफ 
से 

भिन भिन 
हो 
रही है 

बस 
कहाँ हैं 

पता नहीं 
चलने 
दे 
रही हैं 

ठण्ड 

बहुत 
हो 
रही है 

इस साल 

शायद 

सिकुड़
कर 
छोटी 
हो रही हैं 

महसूस 
भर 
हो रही हैं 

हर 
तरफ 
उड़ रही हैं 
मक्ख़ियाँ

बस 
दिखाई
नहीं दे रही हैं 

कलम 
हैंं 

मगर
उठ 
नहीं रही हैं 

बस 
थोड़ी बहुत 
घिसट 
सी 
रही हैं 

कागज कागज 
बैठी हुयी हैं 
मक्खियाँ 

कुछ 
लिखने
भी 

नहीं 
दे रही हैं 

इस
पर 
लिख कहीं 

उधर
से 
माँग 
हो रही है 

उस पर 
लिखने
की 
चाहत 

इधर 
भी 
हो रही है 

मक्खियाँ 
हैं 
कि 
सोच में 

बैठी 
ही 
नहीं हैं 

चारों 
तरफ 
लिखे लिखाये 
के 

उड़ती 
फिर रही हैं 

कितनी 
मीठी मीठी 
बारिशें 
हो 
रही हैं 

शायद 
मक्खियाँ 
भी 
ज्यादा 

इसलिये 
पैदा 
हो रही हैं 

इतना 
मीठा 
हो चुका है 

सारा 
सभी कुछ 

बस 
मधुमक्खियाँ
हैं 

कहीं
भी 
दिखाई 
नहीं 
दे रही हैं 

ना
जानें 
इधर 
कुछ 
सालों से 

क्यों 

लापता 
सी 
हो रही हैं 

लिखने लिखाने 
की 
जगह सारी 

भरी भरी 
सी 
हो रही हैंं 

कैसे लिखे 
कोई 
कुछ 

पता ही 
नहीं 
चल रहा है 

‘उलूक’ 

मक्खियों 
की 
नसबन्दियाँ 

कब से 
शुरु हो रही हैंं ? 

चित्र साभार: 

बुधवार, 8 जनवरी 2020

किसी ने कहा लिखा समझ में आता है अच्छा लिखते हो बताया नहीं क्या समझ मे आता है



Your few poems touched me.
इस बक बक ️को कुछ लोग समझ जाते हैं । वो *पागल* में कुछ *पा* के *गला* ️हुआ इंसान देख लेते हैं । ऐसे लोगो की कविताओं में गूढ़ इशारे होतें हैं । जो जागे हुए लोगों को दिख जातें हैं । मुझे आपकी कविताओं में कुछ अलग दिखा, जिसके कारण में आने उद्गारों को रोक नही पाया ।
 मैँ आपकी बक बक का मुरीद हुं आगे और भी सुन्ना चाहूंगा यूट्यूब पर । 
वी पी सिंह

--------------------------------------------------------------------------------------------

नहीं लिखने 
और लिखने के बीच में 
कुछ नहीं होता है 

दिन भी संख्याओं में गिने जाते हैं 
लिखने लिखाने के दिन 
या 
नहीं लिख पाने के दिन 
सब एक से होते हैं 

दर्द अच्छे होते हैं जब तक गिने जाते हैं 
संख्याओं के खेल निराले होते हैं 
कहीं जीत के लिये संख्या जरूरी होती है 
कहीं हार जरूरी होती है संख्या के जीतने से अच्छा 

सब से बुरा होता है गाँधी का याद आना 
मतलब साफ साफ 
एक धोती एक लाठी एक चश्मे की तस्वीर का 
देखते देखते सामने सामने द्रोपदी हो जाना 

चीर 
अब होते ही नहीं हैं 
हरण जो होता है उसका पता चल जाये 
इससे बड़ी बात कोई नहीं होती है 

अजीब है जो सजीव है बेजान में जीवन देखिये
जान है नजर भी आ जाये 
मुँह में बस एक कपड़ा डाल लीजिये 
निकाल लीजिये 

नहीं समझा सकते हैं किसी को 
समझाना शुरु हो जाते हैं 
समझदार लोग पुराने साल 

कत्ल हो भी गया 
कोई सवाल नहीं करना चाहिये 
क्योंकि कत्ल पहली बार जो क्या हुआ है 

सनीमा भीड़ का घर से देखकर 
घर से ही कमेंट्री कर 
उसे परिभाषित कर देने का 
मजा कुछ और है 

क्योंकि लगी आग में झुलसा 
अपने घर का कोई नहीं होता है 

लगे रहिये गुंडों के देवत्व को 
महिमामण्डित करने में 

भगवान करे तुम या तुम्हारे घर का 
तुम्हारा अपना कोई 
आदमखोर का शिकार ना होवे 

और उस समय तुम्हें अपनी छाती पीटने का 
मौका ही ना मिले 

‘उलूक’ की बकवास किसी की समझ में आयी 
और उसने ईमेल किया कि बहुत कुछ समझ में आया 

बस रुक गया कहने से कि बहुत मजा 
जो अभी आना है क्यों नहींं आया।

चित्र साभार: https://www.pngfly.com/

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

शतक पूरा हुआ खींच तान कर आज किसी तरह इस साल की बकवासों का


पूरा हुआ
खाता
बही

आज और अभी

इस
साल की

कुछ
चुनी हुयी
बकवासों
का

सभी
नहीं भी
कही
गयी

कुछ
अनछुयी
रह ही
गयी

 फिर भी
बन गया
खींच तान
कर

किसी तरह

शतक
थके थकाये
अहसासों
का

समझे
गये
कुछ लोग

समझाये
गये
कुछ लोग

लिखे
लिखाये
में
दिखा

सैलाब
उमड़ते
जज्बातों
का

चित
हुआ करते थे
सिक्के
का

जिसकी
नजरों में

कभी
पुराने
सालों में

पट हो गये
इस साल

जवाब
भी
उनके
ही रहे

बिना
सिक्का
उछाले गये

चित पट
पर
पूछे गये
सवालातों
का

आभार
दिया

‘उलूक’ भी

कुछ भी
में से

कुछ कुछ
समझ लिये

जैसे

नजर
आने वाले
पाठकों की

भलमनसाहतों
का

इन्तजार
करता हुआ

फिर से
रात के
अंधेरे में

खुलने का

सभी
रोशनी
बन्द
किये हुऐ

कुछ
खुदाओं
के
हवालातों
का ।

चित्र साभार: https://www.clipartkey.com/

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

एक साल बेमिसाल और फिर बिना जले बिना सुलगे धुआँ हो गया



मुँह 
में दबी 
सिगरेट से 

जैसे 

झड़ती 
रही राख 

पूरे 
पूरे दिन 
पूरी रात 

फिर एक बार 

और 

सारा 
सब कुछ 
हवा हो गया 

एक 
साल और 

सामने सामने से 

मुँह 
छिपाकर 
गुजरता हुआ 

जैसे 
धुआँ हो गया 

थोड़ी कुछ 
चिन्गारियाँ
उठी 

कुछ
लगी आग 

दीवाली हुयी 

आँखों
की 
पुतलियों में 

तैरती 
बिजलियाँ 
सी
दिखी 

खेला गया 
चटक गाढ़ा 
लाल रंग 

बहता दिखा 
गली सड़कों में 

गोलियों 
पत्थरों से भरे 
गुलाल से 

उमड़ता
जैसे फाग 

आदमी को 

आदमी से 

तोड़ता हुआ 
आदमी 

आदमी 
के 
बीच का 

एक 

आदमी 
उस्ताद 

पता
भी 
नहीं चला 

आदमी 
आदमी 
के
सर 
पर चढ़ता 

दबाता 
आदमी 
को
जमीन में 

एक 
आदमी 

आदमी
का 
खुदा हो गया 

देखते 
देखते 

सामने 
सामने 
से
ही 

ये गया 
और 
वो गया 

सोचते सोचते 

धीमे धीमे 

दिखाता 
अपनी
चालें 

कितनी 
तेजी के साथ 

देखो 
कैसे 

धुआँ
हो गया 

‘उलूक’ 
मौके ताड़ता 
बहकने के 

कुछ 
रंगीन सपने 
देखते देखते 

रात के 
अंधेरे अंधेरे 
ना
जाने कब 

खुद ही 
काला 
सफेद हो गया 

पता 
भी नहीं चला 

कैसे
फिर से एक 

पुराना 
साल 

नये 
साल के 
आते ना आते 

बिना 
लगे आग 

बिना सुलगे ही 

बस 
धुआँ
और 

धुआँ हो गया । 

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

रखना एक खास किताब का जिल्द और देना अपने होने ना होने का सबूत

उसके
पास है

एक किताब

वो

उस किताब
को
पढ़ता जैसा

नजर आता है

पढ़ा लिखा है
 बताना चाहता है

उसे
पसन्द नहीं हैं

पढ़े लिखे लोग

जो
उसकी

उस
किताब
की

बात 
करने की

कोशिश
भी
करते हैं

किताब
में

सुना है
सब कुछ
लिखा है

उसी
लिखे हुऐ से

कहा जाता है

बहुत कुछ

चलेगा या नहीं
का 

पता चलता है

ऐसा
कुछ कुछ
और 

किताबों में

उस
किताब 

के बारे में

लिखा हुआ
मिलता है

देखना
और
समझना
जरूरी है

अपने आसपास

जो कुछ
छोटा या बड़ा
होता है

मानकर

किताब में
लिखा होगा

उसके होने
या 

ना होने
के 

बारे में

संशय
उचित
नहीं होता है

कम से कम

उसकी
पढ़ी हुयी

किताब
को लेकर

जिसके
उसके पास
होने की खबर से

सारा जमाना

उसपर
नतमस्तक
होता है

उसी की सुनता है

उसी के
कहे को लेकर

बिना
फन्दे 

के
सपने 

तक
बुनता है

सुना है

जल्दी ही
उस किताब 

के
जिल्द की 


कापियाँ
बनायी जायेंगी

सारे
पढ़े लिखों
को
छोड़कर

निरक्षरों
में
बंटवा दी
जायेंगी

‘उलूक’
पढ़ना लिखना
छोड़ देना

और 

रखना

एक जिल्द
उस किताब 

का

खुद 
अपने पास भी

जरूरी
हो जायेगा

बहुत जल्दी

तेरे
होने ना होने
का

वही बस
एक
सफेद झूठ

यानि
सबसे बड़ा
सबूत।
चित्र साभार: https://www.gettyimages.in/

शनिवार, 21 दिसंबर 2019

जरूरी है जिंदा ना रहे बौद्धिकता


क्या
परेशानी है
किसी को

अगर
कोई

अपने
हिसाब
का
सवेरा

अपने
समय
के
हिसाब से

करवाने
का

दुस्साहस
करता है

उनींदे
सूरज को

गिरेबान खींच

ला
कर
रख देना

अपनी
सोच की
दिशा के
छोर पर

और
थमा देना

उसके
हाथ में

अपने
बहुमत से
निर्धारित
किया गया

उसके
समय का
सरकारी आदेश

उसके
चमकने का कोण

और
ताकत

उसे बता कर

समय से पहले
पौंधे
पर

पैदा हो गयी
कली की
पंखुड़ियों
को

आदेशित
कर
खुल लेने
का

और

तुरंत
बन जाने
के लिये

एक फूल

किसी के
हिसाब
का

समय से पहले
पैदा
हुऐ बच्चे
को

मैराथन
में दौड़ लेने

या
उनके

उड़ने
की
कल्पना
 बेचने की

बिना पंखों के

सब संभव है

बस
बैठा दीजिये

हर
सुखा दिये गये
जवान पेड़
की
फुनगी पर

एक कबूतर

एक निशान
लगा हुआ
एक रंग
की
एक या दो लाईन का

जरूरी है
कबूतर ने
उजाड़ी हो
कोई एक
फलती फूलती डाल

जिसके हों
 कहीं ना कहीं
उसके चेहरे पे
निशान
बौद्धिकता 
जिंदा
ना रहे

ठानकर

मरे
ना भी

तो 
भी
घिसटती रहे

ताउम्र

जिसे
देखते रहें

लाईन पड़े
कबूतर

अट्टहास
करते हुऐ

‘उलूक’
जरूरी है

अंधों
का
रजिस्टर
बनना भी

जो
रात में
देख लेते हैं
ऊल जलूल

तेरी तरह।

चित्र साभार: 

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

कि दाग अच्छे होते हैं



हमेशा
ढलती शाम
के
चाँद की
बात करना

और
खो जाना
चाँदनी में

गुनगुनाते हुऐ
लोरियाँ

सुनी हुयी
पुरानी कभी

दादी नानी
के
पोपले मुँह से

ऐसा
नहीं होता है

कि
सूरज
नहीं होता है

सवेरे का
कहीं

फिर भी
रात के
घुप्प अंधेरे में

रोशनी से
सरोबार हो कर

सब कुछ
साफ सफेद
का
कारोबार

करने वाले
ही
पूछे जाते हैं
हर जगह

जरूरी
भी हो जाता है

अनगिनत
टिमटिमाते
तारों की
चपड़ चूँ से
परेशान

चाँदनी
बेचने के
काम में
मंदी से हैरान

थके हुऐ से
भारी
बहीखातों
के
बोझ से
दबे

झुँझलाये
कुमह्लाये 

देव के
कोने कोने
स्थापित
देवदूतों में

काल
और
महाकाल

के
दर्शन
पा कर

तृप्त
हो लेने में
भलाई है

और
सही केवल

दिन के
चाँद को

और
रात के सूरज को
सोच लेना ही है

तारों की चिंता
चिता के समान
हो सकती है

करोड़ों
और
अरबों का
क्या है

कहीं भी
लटक लें
खुद ही

अपने
आसमान
ढूँढ कर

किसलिये
बाँधना है
अराजकता
को
नियमों से

अच्छा है
आत्मसात
कर लिया जाये

कल्पनाएं
समय के हिसाब से
जन्म ना ले पायें

उन्हें
कन्या मान कर

भ्रूण को
पैदा होने से
पहले ही
शहीद
कर दिया जाये

महिमा मण्डित
करने के लिये

परखनली
में
पैदा की गयी

कल्पनाएं

सोच में
रोपित की जायें

प्रकृति
के लिये भी
कुछ बंधन
बनाने की
ताकत है किसी में

वही
पूज्यनीय
हो जाये

अच्छा होगा
‘उलूक’
उसी तरह

जैसे
माना जाता है

कि
दाग
अच्छे होते हैं ।

चित्र साभार: https://www.jing.fm/

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

आओ बोयें कल के लिये आज कुछ इतिहास


आओ बोयें 

कल 
के लिये 

आज 
कुछ 
इतिहास 

जो 
सच है 
बस 
उसे 
छोड़कर 

कुछ भी 
चलेगा 

होनी चाहिये 
मगर 

कुछ ना कुछ 
शुद्ध 
बिना मिलावट 
की 

कोई भी 
आसपास की 

रद्दी 
की 
टोकरी 
में 
फेंकी गयी 

ज्यादा
चलेगी 
ही नहीं 
बकायदा 
दौड़ेगी 

होनी चाहिये 

एक 
खूबसूरत 
समय की 
बदसूरत 
बकवास 

सारे 
आबंटित 
कामों को त्याग 

विशेष 
काम पर लगे 

सारे 
आसपास के 
तगड़े घोड़ों 
की 
प्रतिस्पर्धाएं 

अर्जुन बने 
चार सौ बीसी 
के 
धनुष 

मक्कारी 
के तीर 

हवा में 
ध्यान लगाये 

समाधिस्थ 
नजर आते 

मछलियों 
की आँखें 
ढूँढते 

कलयुगी 
तीरंदाज 

सोये हुऐ 
दिन दोपहरी 

बिना पिये 
नशे में 

शुद्ध हवा 
पानी वाले पहाड़ 

बर्फ से लबालब 
खासमखास 

सिकुड़ति 
हुई 
पंक्तियों से 
भागते 

लम्बी 
होती हुई 
पंक्तियों
पर 

जमा
होते हुऐ 
शूरवीर 

देखिये 
पने 
आस पास 

‘उलूक’ 
रात के प्रहरी 

बुरी बात है 

करना 
दिन 
की 
बात ।

बुधवार, 11 दिसंबर 2019

बधाई बधाई तेरा घर टूटने की

बधाई बधाई हो रही है तेरा घर टूटने की और तेरे लिये वो ही कोई मरा जैसा है
तू जानता है ‘उलूक’ चीख चिल्ला गला फाड़ कर
इस नक्कारकाने में अपनी तूती बजाने के लिये मजबूत गिरोह का बाजा खरीदना होता है



तेरे सामने तेरे घर को तोड़ कर
एक टुकड़ा देखता क्यों नहीं है फैंका नहीं है
किस लिये रोता है 

गुलाब की कलम है
माली नहीं भी है तो क्या हुआ रोपने के लिये
सोच ले कोई जरूर होगा मवाली सही कहीं ना कहीं
उसके सामने जा कर दीदे फाड़ लेना पूछ लेना
क्यों नहीं बोता है

घर तेरा टूट गया क्या हुआ
देखता क्यों नहीं मोहल्ले के दो चार और घर मिला कर
नया घर बनाने का
सरकारी मजमा ढोल नगाड़े बजाता हुआ
अखबार की खबर में सुबह सुबह रूबरू
आजकल रोज का रोज तो होता है

तुझसे नहीं पूछा
नयी बोतल में पुरानी शराब ही नहीं
कुछ और भी मिलाया है
कॉकटेल कहते हैं
इतना तो नहीं पीने वाले को भी
पता होता है
गम मत कर यहाँ का दस्तूर है यहाँ यही होता है

मरीज हस्पताल की बात चिकित्सक से काहे पूछनी
दुकाने बहुत हैं उनके सरदार को
ज्यादा मालूम होता है

स्कूल की बात मास्टर से काहे पूछनी
झाडू देने वाला रोज सुबह का कूड़ा
रोज निकालता है
पढ़ने लिखने वाले के बारे में उसको ज्यादा पता होता है

तेरे शहर के लोग शरीफ हैंं
इधर उधर से देखे हुऐ बहुत कुछ को बताने का
उनको ज्यादा अनुभव होता है

कबूतरों के बारे में काहे कौओं से पूछना
कालों को सफेदों के बारे में
कौन सा सबसे ज्यादा पता होता है

बधाई बधाई हो रही है तेरा घर टूटने की
 तेरे लिये वो ही कोई मरा जैसा है तू जानता है

‘उलूक’
चीख चिल्ला गला फाड़ कर
इस नक्कारकाने में अपनी तूती बजाने के लिये
सबसे मजबूत गिरोह का बाजा खरीदना होता है।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/




अगर आप बुद्धिजीवी कैटेगेरी में आते है अगर आप अल्मोड़ा से हैं और अगर आप बेवकूफ नहीं हैं तो कृपया लिखे को ना पढ़े ना समझने की कोशिश करें ना लाईक करें ना टिप्पणी देने का प्रयत्न करें। ये बस एक वैधानिक चेतावनी है। ये कुमाउँ विश्वविद्यालय से अल्मोड़ा को अलग करने के विरोध की बकवास है।