उलूक टाइम्स

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

चुनाव

चूहा कूदा फिर कूदा
कूद गया फिसल पड़ा
एक कांच के गिलास
में जाकर डूब गया
छटपटाया फड़फड़ाया
तुरंत कूद के बाहर
निकल आया
सामने देखा तो
दिखाई दे गयी
अचानक उसे
एक बिल्ली
पर ये क्या
बिल्ली तो
नांक मुंह
सिकोड़ने
लगी
चूहे से मुंह
मोड़ने लगी
चूहा कुछ फूलने
सा लगा
थोड़ा थोडा़ सा
झूमने भी लगा
बिल्ली को देख कर
पूंछ उठाने लगा
फिर बिल्ली को
धमकाने लगा
बिल्ली बोली
बदबू आ रही है
जा पहले नहा के आ
वर्ना अपनी शकल
मुझे मत दिखा
चूहा मुस्कुराया
फिर फुसफुसाया
हो गया ना कनफ्यूजन
गिलास में क्या गिरा
बदबू तुम्हें है आने लगी
पर गिलास में शराब
नहीं है दीदी
वहां तो सरकार है
चुनाव नजदीक आ रहा है
टिकट बांटे जा रहे हैं
मैंने फिसल के
अपना भाग्य है चमकाया
जीतने वाली पार्टी
का टिकट उड़ाया
और कूद के बाहर
हूँ आया।

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

आदमी / पागल

आदमी आदमी से
टकराने लगा है
पागल पागल को
समझाने लगा है
एक पागल आया
कल मेरे पास
उसने समझाया
उसकी भी समझ
में अब सब
आने लगा है
बोला पागल हूँ
तो क्या बेवकूफ
भी बना लोगे
मेरे हिस्से की
चांदनी भी
चुरा लोगे
धूप तो आप
रोज दिन में
चोरते आये हो
अब रात में
भी चोरी
करा लोगे
आदमी का
आदमी को
पागल बनाना
तो समझ
में आता है
आप तो
हदें पार
कर आये हो
चैन से रहने
देते ना भैया
मत छीनो
सुकून हमारा
आंखिर क्यों
आदमी बनाने
पर ही आप
उतर आये हो?

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

गोष्ठी

संगोष्ठी में
निमंत्रित
किये गये
ईश्वर गौड
और अल्ला
क्रिसमस की
पूर्व संध्या थी
होना ही
था हल्ला
केक काटे गये
संगीत हुवा
ड्रिंक्स कैसे
नहीं बंटते
भला
बातों बातों में
प्रश्न हुवा
बातों का हमारी
आदमी को
कैसे पता
चला
स्टिग आप्रेशन
आदमी
की थी
कारस्तानी
मामला
जब खुला
सभी प्रतिभागी
एकमत थे
बहुमत से
आदमी को
नहीं माना
गया बला
बनाया हमने
पढ़ाया हमने
लड़ाया हमने
भुगतेगा
जैसा चाहो
आप सभी
कल मिल
कर ले आते हैं
चलो एक
जलजला।

रविवार, 25 दिसंबर 2011

पहचानो ना

अंकपत्र हाईस्कूल प्रमाणपत्र 
राशनकार्ड मतदान पहचान पत्र
टेलीफोन का बिल
बैंक की पासबुक
अंगूठे का निशान
आदमी की पहचान

सब के सब अचल
जो चलता है 
मतलब दिमाग से है
बेकार की एक चीज

दिमाग किसी आदमी की 
आईडेंटिटी नहीं हो सकता कभी
पता ही नहीं है
दिमाग आदमी को चलाये
या
आदमी दिमाग को चलाये

चलता दिमाग
किसी को भी अच्छा नहीं लगता
एक कूड़ा दिमाग बौस 
मातहत के दिमाग को 
हलुवा मानता है
जिसे कोई भी पकाये कोई भी खाये

दिमाग को 
आडेंटिटी नहीं बना सकते
पल में जनवरी पल में दिसम्बर 
हो जाता है दिमाग

अन्ना को कोई राय नहीं दे सकता
फिंगर प्रिंट की जगह मेंटल प्रिंट करवायें 
दिमाग हर क्षण बदलता है दिमाग 

और वाकई में हो जाये ऎसा
तो दिमाग पागल का
होगा एक पहचान
और बाकी 
छानते फिरेंगे कूड़ा 
अपनी पहचान के लिए।

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

शब्द

शब्द मीठे होते हैं
कानों से होते हुवे
दिल में उतरते है
शहद घोल घोल के

शब्द ही खंजर से
तीखे भी हो जाते हैं
ले आते हैं
ज्वार और भाटे

सभी के पास ही
तो रखे होते हैं
अपने अपने शब्द

हर कोई ढाल
नहीं पाता है
सांचों में अपने
शब्दों को हमेशा

कोई उस्ताद होता है
दूसरों के शब्दों से
अपने को बचाने में
बना लेता है एक
ढाल शब्दों की

एक ही शब्द
देता हैं जिंदगी
किसी को
वही सिखाता है
बंदगी किसी को

किसी के लिये
हो सकता है
कमाल एक शब्द
कोई बना ले जाता
है जाल एक शब्द

तूफान भी अगर
लाता है एक शब्द
तो मलहम भी तो
लगाता है कभी
एक शब्द ।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

हिम्मत कर छाप

कुछ
सोचते हैं
कुछ
छांटते हैं
फिर
छलनी से
उठा कुछ
छापते हैं
क्योंकि
सच
छन जाते हैं
छोटे होते हैं
छनित्र में
चले जाते हैं

चलिये
करते हैं कुछ
उलटफेर
थोड़ा अंधेर

सभी
करना करें
शुरू
स्टेटस अपडेट
छलनी से नहीं
छनित्र से
उठा
दें कुछ
छाप यहां
बिना किसी
लाग लपेट

बबाल शुरू
हो जायेंगे
बगलें
झांकते हुवे
एक एक कर
ज्यादातर
फरमायेंगे
गलत चीजें
यहां छापी
जा रही हैं
संविधान की
फलाँ फलाँ
धारा बेशरमी
से लाँघी
जा रही है

एक सच
को
बता कर
स्पैम
रिपोर्ट
फटाफट
कर दी
जायेगी
पोस्ट
तुरन्त
डीलिट कर
सूचना
प्रसारित
की जायेगी

हो गयें है
प्रोफाईल
चोरी
चोर हैं जो
छाप
रहे हैं
अपने ही
अंदर की
कमजोरी ।

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

आईना

आज एक लम्बे
अर्से के बाद
पता नहीं कैसे मैं
जा बैठा घर के
आईने के सामने
मेरे दिमाग की तरह
आईने ने कोई अक्स
नहीं दिखलाया
मैं थोड़ा घबराया
नजर को फिराया
सामने कैलेण्डर में
तो सब नजर
आ रहा था
तो ये आईना
मुझसे मुझको
क्यों छिपा रहा था
सोचा किसी को बुलाउं
आईना टेस्ट करवाउं
बस कुता भौंकता
हुवा आया थोडा़ ठहरा
फिर गुर्राया जब
उसने अपने को आईने
के अंदर भी पाया
मुझे लगा आईना
भी शायद समय
के सांथ बदल रहा होगा
इसी लिये कबाड़ का
प्रतिबिम्ब दिखाने से
बच रहा होगा
विज्ञान का हो भी
सकता है ऎसा
चमत्कार
जिन्दा चीजों का ही
बनाता हो आईना
इन दिनो प्रतिबिम्ब
और मरी हुवी चीजों
को देता हो चेतावनी
कि तुम अब नहीं हो
कुछ कर सकते हो
तो कर लो अविलम्ब।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

कुछ कहो

बस दो चार ही
लोग गांव के
अब कुछ
अपने जैसे
नजर आते हैं
सड़क और गली
की बात मगर
कुछ और ही
दिखाई देती है
सारे ही कुत्ते
सामने पा कर
जोर जोर से
अपनी पूंछे
हिलाते हैं
फिर भी समझ
नहीं पाते हैं
पागलखाने के
डाक्टर साहब
को अब भी
नार्मल ही
नजर आते हैं
हां लोग देख
कर थोड़ा सा
अब कतराते हैं
बहुमत साथ ना
होने का फायदा
हमेशा पार्टी के
लोग उठाते हैं
फुसफुसा कर ही
करते हैं बात भी
मोहल्ले वाले
फिर गया दिमाग
कहते तो नहीं हैं
बस सोच कर
सामने सामने से
ही मुस्कुराते हैं
कुछ तो समझाओ
'उलूक' जमाने को
पागल खाने के डाक्टर
ऐसे लोगों को ऐसे में भी
मुहँ 
क्यों नहीं लगाते हैं?

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

होश

एक खामोश
कब जिंदगी
के आगोश
में मदहोश
हो जायेगा
ये होश में
रहने वाला
ही बता
पायेगा

बेहोश
लोगों 
के
शब्दकोश

में आक्रोश
नहीं होता
एक सरफरोश
कभी अहसान
फरामोश

नहीं होता
परहोश
भले ही

हो जायेगा
लेकिन
कभी भी

लच्छेदार
बातों 
में
नहीं आयेगा

बेहोश
करने 
वाले
होश में

योजनाऎं
बना

मदहोश
लोगों 
के
साथ फिर

एक बार
आ रहे हैं
परहोश
करने

लेकिन
इस 
बार
पाला

उल्टा पड़
जायेगा
बेहोश
जल्दी 
ही
इस बार

फिर से
होश 
में
आ जायेगा

ऎसा हसीन
सपना जब
किसी दिन
किसी 
को
आयेगा

उस दिन
वाकई

सवेरा हो
जायेगा

अंधेरे का
व्यापारी

कुछ भी नहीं
समझ पायेगा
और बेहोश
हो जायेगा।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

शर्म

शर्म होती है
या
कहते हैं शरम
फर्क पड़ता है
क्या
कर लेते हैं
शरम का ही
चलो भरम
शरम नहीं
आती है तो
बन जाते हैं
सभी होने ना
होने वाले काम
शरमाने वाले को
तो लगता है
हो गया हो
जैसे
खतरनाक जुखाम
वो जुखाम को देखे
या करवाले
अपने कोई काम
आपको आती है क्या
आती है तो अभी
भी सम्भल जाइये
कुछ तो सीख लीजिये
शरमाना तो
कम से कम
भूल ही जाइये
जिसने की शरम
उसके फूटे करम
आपसे कोई कभी
नहीं कह पायेगा
आपकी हो
जायेगी चाँदी
पांचों अंगुलियां
होंगी घी में                
और
सर कढ़ाई
में डूब जायेगा
जनज्वार वाले
लगे हैं एक
खबर पढ़वाने में
जोर लगा रहे हैं
डाक्टरों के शर्माने में
अरे छोड़ भी
दीजिये जनाब
किस किस
को शरमाना
इस जमाने
में सिखायेंगे
ज्याद किया
तो खुद ही
शरमाना
भूल जायेंगे
मास्टरों ने
छोड़ दिया
कब से
शरमाना
डाक्टर भी
अब नहीं
शरमा रहा
मिल गया ना
आप को
एक बहाना
चलिये बताइये
या
कुछ गिनवाइये
कितनो को
आ रही है
इस देश में
इस समय शरम
नहीं गिनवा
पा रहे तो
करवा ही लिजिये
चलिये चुनाव
शरम आती है
या नहीं आती है
अब तो पता ही
नहीं लग पाता
लोकतंत्र है
शरमाता या
अन्ना को ही
आनी चाहिये
कुछ तो शरम
ये शरम भी ना
अब बड़ी
अजीब ही
होने लगी है
जिसको आती है
उसको हर जगह
मार खिलवाती है
जिसको नहीं आती
उसके पीछे पता नहीं
क्यूं खामखां पब्लिक
झाडू़ ले के पड़ जाती है ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

हे राम !

राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत है पुरानी

दादी से माँ तक
आते आते लगता है
अब चैन की
नींद सो रही है

बच्चों के
भारी भारी बस्तों में
स्कूल की रेलमपेल में
सीता भी उनींदी सी
किसी किताब
किसी कापी
के किसी मुढ़े तुढ़े पन्ने में
कहीं खो रही है

घर में भी फुरसत में
बातों बातों में कभी
राम भी भूले से भी
नहीं आना चाह रहे हैं

कर्म और
फल वाली
कहावत में भी
मजे अब उतने
नहीं आ रहे हैं

फलों के पेड़ भी
अब लोग गमलों में
तक कौन सा
लगाना चाह रहे हैं

बोते हुवे वैसे
बहुत से लोग
बहुत सी चीजें बस
दिखाने के लिये
दिखा रहे हैं

आम का बीज
दिख रहा है
उसी बीज से बबूल
का पेड़ उगा ले
जा रहे हैं

दादी और माँ ने भी
ऎसा कुछ कभी
क्यों नहीं बताया
जो दिखाया भी
इस जमाने के
हिसाब से बड़ा
अजीब सा ही दिखाया

अब वो सब पता नहीं
कहां खोता जा रहा है
जमाना जो कुछ
दिखा रहा है
पता नहीं चल रहा है
वो किस खेत में
बोया जा रहा है

बड़ी बैचेनी है
कोई इस बात
को क्यों नहीं
समझा रहा है

जब राम का
हो रहा है ये हाल है
तो बतायें
क्या फिर बच्चों को
कृ्ष्ण कबीर तुलसी
रहीम के बारे में

जब राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत ही पुरानी
जैसी हो रही है

दादी से
माँ तक होकर
मुझ तक आते आते
जैसे कहानी
के अन्दर ही
किसी कहानी में
ही कहीं खो रही है।

बात

सुबह से
शुरू होती
है बात

रात सोने
तक चलती
है बात

घर से
निकलते
बाजार
में चलते
आफिस
पहुंचने
तक होती
है बात

और
यहां हैं
भी तो
बात
ही बात

सबकी
अपनी बात
एक
अनोखी बात

मेरी तू
सुन बात
तेरी मैं
सुनुंगा बात

मेरे पड़ौस
में भी
आज हुवी
एक बात

बाजार में
भी सुनी
मैंने एक
रसीली बात

कालेज में
भी थी
कुछ
चटपटी बात

हाय ये
कैसी
अनोखी
अजीब सी
है बात

इन सब
बात में
एक भी
ऎसी
नहीं बात

मैं कैसे
किस
मुंह से
बताउं वो
सब बात

यहां कोई
ऎसी वैसी
नहीं करता
कभी बात

सब बनाते
हैं अपनी
अपनी
एक बात

लिखते चले
जाते हैं
आसानी से
वो बात

कोई नहीं
बताना
चाहता
सही
सही बात

ये भी क्या
हुवी बात

कह डाली
एक बात
उस बात
पर भी
सिब्बल की
करो बात
मना कर
रहा है वो

क्यों कर
रहे हो बात।

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

हैप्पी बर्थ डे अविनाश जी

ब्लागों के बाघ
शहनशाहे ब्लाग
जन्मदिन मना
रहे होंगे आज
पांच हजारवी
शुभकामना मेरी
भी कुबूल कर
लीजिये ना जनाब
केक बन कर
अब तक आ
जाना चाहिये
मोमबत्तियां ज्यादा
हो जायेंगी अब
आपको बस
एक लैम्प
जलाना चाहिये
ईश्वर करे आप
खूब लिखें
इतना लिखें
की पढ़ते पढ़ते
लोग बहक
जायें और
जब चटके
लगायें तो सब
मुस्कुरायें फिर
खिलखिलायें और
बाद उसके
लोट पोट
हो जायें ।

लोकतंत्र के घरों से

एक बड़े से
देश के
छोटे छोटे
लोकतंत्रों
में आंख बंद
और
मुह बंद
करना सीख
वरना भुगत
अरे हम अगर
कुछ खा रहे हैं
तो देश का
लोकतंत्र भी
तो बचा रहे हैं
देख नहीं रहा है
कितनी बड़ी
बीमारी है
एक बड़े
लोकतंत्र
के सफाई
अभियान
की बड़ी सी
तैयारी है
सारी आँखे
लगी हुवी है
भोर ही से
बाबाओं की ओर
बता अगर हम
ही नहीं जाते
जलूस में टोपियां
नहीं दिखाते
तो तुम्हारे
बाबा जी क्या
कुछ कर पाते
सीख कुछ
तो सीख
घर की बात
घर में रख
बाहर जा
अपने को परख
अरे बेवकूफ
खा भी ले
थोड़ी सी घूस
कुछ नहीं जायेगा
थोड़ा जमा करना
थोडा़ बाबा को देना
छोटा पाप कटा लेना
बड़े पुण्य से
एक बड़े लोकतंत्र
को बचा
छोटा लोकतंत्र
अगर डूब भी
जायेगा तेरा
क्या जायेगा
सोच बड़ा अगर
भूल से गया डूब
छोटा क्या कहीं
रह पायेगा
और
तू कल किसको
फिर मुंह दिखायेगा ?

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

इच्छा

कोई हमको
कभी क्यूं
नहीं बनाता
अपना दलाल
कब से कोशिश
कर रहे हैं
लग गये हैं
कई साल
क्या क्या
होना चाहिये
शक्ल में
कोई नहीं बताता
जिसको देखो
लाईन तोड़
हमसे आघे
निकल जाता
अटल जी के
लोगों ने
कभी नहीं दिया
हमें भाव
आदर्श दिखना
बोलना
शायद है
वहां का दांव
सोनिया के लोग
भी कन्नी
काट निकल
जाते हैं
अन्ना के जलूस
में नहीं
गये फिर भी
नहीं बुलाते हैं
हाथी मैडम के
पास जाने
के लिये
पैसे चाहिये
कालेज में
छोटे घोटाले
से इतना
कैसे बनाइये
हमारे दर्द
को जरा
अपना दर्द
कभी बनाइये
दलाली के
गुर हमें
भी कभी
सिखलाईये
बहुत इच्छा
है एक
नामी दलाल
बनने की
सफेद कुर्ता
पायजामा
सफेद टोपी
पहनने की ।

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

अखबार

आज का
अखबार

कल की
थीं खबर 

मुख्य पृष्ठ
पर दहाडे़

अन्ना लगा
निशाना

बेचारे राहुल
पर
सोनिया
को छोड़ कर 

छोड़ विदेशी
डालर
और मिशन
कुछ लोगों

ने लिया
सेना में कमीशन

बेटा कर्नल
बाप को

मार रहा
था सैल्यूट

यही परिवार
पीड़ी दर पीड़ी

सेना में
ठोक रहा
है बूट

पेज पलट
कर देखा

शिक्षण
संस्थाओं में

छात्र छात्राऎं
दिखा
रहे थे
बैनर झंडे

मास्टरों को
भगा रहे थे

दिखा दिखा
कर डंडे

विद्वतगणों की
मारा मारी

दिखा रहा
था पेज तीन

भारी भारी
लोग दिख

रहे थे
फोटो में तल्लीन

अपनी ही
प्रतिभा नहीं

आ रही
प्रदेश के काम

हैडिंग थी
खबर थी

अंत में थे
शहर

के भारी नाम
शिक्षा तंत्र
को
विकसित
करने
पर
लगायें जोर

आह ! 
कहाँ शरण
लेंगे
अब
शिक्षा माफिया

के नामी
गिरामी चोर

पेज चार
पर थी वही

वेतन की
मारा मारी

पेज पांच
पर बनायी

गयी थी
योजना
एक
बड़ी भारी

हिमालय बचाने
को
लाया
जाने वाला

है बहुत पैसा
सेमिनार
कार्यशाला

पर दिख
रहा था

विज्ञान का
भरोसा

पेज पांच से
अंत तक

विज्ञापन और
थे समाचार

जिन्हें पढ़ कर
आ रही
थी नींद

क्योंकी बिना
धंधे के

वे सब
थे बेकार ।