उलूक टाइम्स

बुधवार, 22 मार्च 2017

बेशरम होता है इसीलिये बेशर्मी से कह भी रहा होता है

शायद
पता नहीं
होता है
दूर देखने
की आदत
नहीं
डाल रहा
होता है

देख भी
नहीं रहा
होता है


गिद्ध होने
का बहुत
ज्यादा
फायदा
हो रहा
होता है

आस पास
के कूड़े
कचरे को
सूँघता ही
फिर रहा
होता है

खुश्बुओं की
बात कभी
थोड़ी सी भी
नहीं कर
रहा होता है

लाशों के
बारे में
सोचता
फिर रहा
होता है

कहीं भी
कोई भी
मरा भी
नहीं
होता है

हर कोई
जिंदा
होता है
घूम रहा
होता है

सब कह
रहे होते हैं
सब को बता
रहे होते हैं
सब कुछ
ठीक हो
रहा होता है

बेशरम
बस एक
‘उलूक’
ही
हो रहा
होता है

रात को
उठ रहा
होता है
फटी आँखों
से देख
रहा होता है

बेशरम
हो रहा
होता है
बेशर्मी से
कहना
नहीं कहना
सारा
सभी कुछ
कह रहा
होता है ।

चित्र साभार: Tumblr

शनिवार, 18 मार्च 2017

निगल और निकल यही रास्ता सबसे आसान नजर आता है

कभी कभी
सब कुछ
शून्य हो
जाता है
सामने से
खड़ा नजर
आता है


कुछ किया
नहीं जाता है
कुछ समझ
नहीं आता है


कुछ देर
के लिये
समय सो
जाता है


घड़ी की
सूंइयाँ
चल रही
होती है
दीवार पर
सामने की
हमेशा की तरह

जब कभी
डरा जाता है
उस डर से

जो हुआ ही
नहीं होता है
बस आभास
दे जाता है
कुछ देर
के लिये

ऐसे
समय में
बहुत कुछ
समझा
जाता है

समय
समझाता है
समझाता
चला जाता है
समय के साथ
सभी को

कौन याद
रख पाता है
कहाँ याद
रहती हैं
ठोकरें
किसी को
बहुत लम्बे
समय तक

हर किसी
की आदत
नहीं होती है

हर कोई
सड़क पर
पड़े पत्थर को
उठा कर
किनारे
कहाँ
लगाता है

कृष्ण भी
याद ऐसे ही
समय में
आता है

ऐसे ही समय
याद आती है
किताबें

किताबों में
लिखी इबारतें

नहीं समझी
गई कहावतें

जो हो रहा
होता है
सामने सामने
सत्य बस
वही होता है

पचता
नहीं भी है
फिर भी
निगलना
जरूरी
हो जाता है

‘उलूक’
चूहों की दौड़
देखते देखते
कब चूहा हो
लिया जाता है

उसी समय
पता समझ
में आता है

जब टूटती है
नींद अचानक

दौड़
खत्म होने
के शोर से

और कोई
खुद को
अपनी ही
डाल पर

चमगादड़ बना
उल्टा लटका
हुआ पाता है ।

चित्र साभार: www.gitadaily.com

गुरुवार, 16 मार्च 2017

रखा तो है शमशान भी है कब्रगाह भी है और बहुत है दो गज जमीन है सुकून से जाने के लिये

अब
छोड़ भी
दे नापना
इधर
और उधर
अपने
खुद के
पैमाने से
 
कभी पूछ
भी लिया कर
अभी भी
सौ का
ही सैकड़ा है
क्या जमाने से

लगता नहीं है
कल ही तो
कहा था
किसी ने
शराब लाने
के लिये
घर के
अन्दर से

लड़खड़ाता
हुआ कुछ
ही देर पहले
ही शायद
निकल के
आया था वो
मयखाने से

ना पीना
बुरा है
ना पिलाने
में ही कोई
गलत बात है

साकी खुद ही
ढूँढने में लगी
दिख रही है
इस गली और
उस गली में
फिरती हुई

उसे भी
मालूम हो
चुका है
फायदा है
तो बस
बेशर्मी में

नुकसान ही
नुकसान है
हर तरफ
हर जगह
हर बात पर
बस शरमाने से

निकल चल
मोहल्ले से
शहर की ओर
शहर से
जिले की ओर
जिले से छोटी
राजधानी की ओर

 छोटी में होना
और भी बुरा है
निकल ले
देश की
राजधानी
की ओर

किसी
को नहीं
पता है
किसी को
नहीं मालूम है
किसी को
नहीं खबर है

किस की
निविदा
पर लग रही
मुहर है

बात ठेके की है
ठेकेदार बहुत हैं
किस ने कहा है
टिका रह
मतदाता के
आसपास ही

कुछ नहीं
होना है अब
किसी का
दरवाजा बेकार
में खटखटाने से

कोशिश जरुरी हैं
तोड़ने की किसी
भी सीमा को

बत्तियाँ जरूरी हैं
लाल हों
हरी हों नीली हों

देश भक्ति का
प्रमाण बहुत
जरूरी है
झंडे लगाने
का ईनाम
ईनाम नहीं
होता है
खाली बातों
बातों में ही
बताने से

चयन
हो रहा है
दिख रहा है
जातियों से
उसूलों के
दिखावों वालों
के बीच भी

आदमी के
लिये है रखा है
उसने शमशान
और कब्रगाह
बहुत है
दो गज जमीन
सुकून से
जाने के लिये
आभार आदमी
का आदमी को
आदमी के लिये
रहने दे
किस लिये
उलझता है
किसी फसाने से

बहक रहा हो
जमाना जहाँ
किस लिये डरना
बहकने से
कलम के लिखने से
खुद की अच्छा है
‘उलूक’
कहे तो सही
कोई
तुझसे कुछ
यही होता है
छुपाने से
कुछ भी
किसी भी
बनते हुऐ
किसी
अफसाने से ।

चित्र साभार: news.myestatepoint.com

रविवार, 12 मार्च 2017

होली ठैरी होला ठैरा ठैरा तो ठैरा ठैरा ठैरा ठैरी छोड़ ठर्रा ठर्री क्यों कहना ठैरा

अब होली
तो होली ठैरी
सालों साल
से होरी ठैरी

होली पर
ध्यान लगाओ
ठैरा क्या ठैरा
ठैरी क्या ठैरी
से दिमाग हटाओ

हर साल आने
वाली ठैरी
हर बार
चली जाने
वाली ठैरी

रंग उड़ाने
रंग मिलाने
वाली ठैरी

कबूतर कौए
हो जाने
वाले ठैरे
रंग मिलाओ
मिलाकर
इंद्रधनुष बनाओ

ये क्या ठैरा
सब हरा पीला
लाल गुलाबी
काला कर जाओ

ठंड रखो
ठंडाई चढ़ाओ
चढ़ी गरमी
उतार भगाओ

जो हो गया
सो हो गया
आकाश से उतरो
जमीन पर आओ

होली खेलो
गोजे खाओ
रंग लगवाओ
रंग लगाओ

होली ठैरी
शुभ ही होने
वाली ठैरी

शुभकामनाएं
ले जाओ
मंगल होये
शहर होये
जंगल होये
मंगलकामनायें
कुछ दे ही जाओ

जैसी भी ठैरी
होने वाली ठैरी
होने दो रंग
बहने दो
रहने दो
कपड़ों की चिंता

धोबी तो
धोबी ही ठैरा
गधा कभी
इस धोबी का
गधा कभी
उस धोबी का ठैरा

ये सब तो
होने वाला ठैरा
गधा कपड़े
बस ले जाने
वाला ठैरा

गधे का मत
हिसाब लगाओ

धोबी देखो
कपड़े देखो
रंग चढ़ा
उतरवाना ठैरा

गधों से
अब तो
ध्यान हटाओ

होली तो
होली ठैरी
होली होने
वाली ठैरी

रंग चढ़ाओ
भंग चढ़ाओ

ठैरा तो
ठैरा ठैरा
ठैरा ठैरी
पीछे छोड़ो

कहाँ बटा
कहाँ बट रहा
जर्रे में कुछ
पकड़ा ठैरा
जर्रे जर्रे में
बटा ठैरा

उत्सव के
माहौल में
बीती ताही
बिसार दे
कहना  
ठैरा 

बस उस ठर्रे
की कुछ
खबर सुनाओ

बाकि सब
क्या कहना ठैरा
नमन करो
शीश नवाओ

ठैरा ठैरी की
होली ठैरी
आने जाने
वाली ठैरी
मौज मनाओ
ही कहना ठैरा।

चित्र साभार: India Today

बुधवार, 8 मार्च 2017

गीता में कही गयी हैं बातें वही तो हो रही हैं नजर आ रहा है मत कहना ‘उलूक’ पगला रहा है


सीधी बोतल
उल्टी कर
खाली करना
फिर खाली
बोतल में
फूँक मार कर
कुछ भरना


रोज की
आदत हो
गयी है
देखो तो
खाली बोतलें
ही बोतलें
चारों ओर
हो गयी हैं

कुछ बोतलें
सीधी पड़ी
हुई हैं
कुछ उल्टी
सीधी हो
गयी हैं

बहुत कुछ
उल्टा सीधा
हुआ जा
रहा है
बहुत कुछ
सीधा उल्टा
किया जा
रहा है

पूछना
मना है
इस लिये
पूछा ही नहीं
जा रहा है

जो कुछ भी
हो रहा है
स्वत: हो
रहा है
होता चला
जा रहा है

जरूरत ही
नहीं है
किसी को
कुछ
पूछने की

कोई पूछने भी
नहीं आ रहा है

वो उसके लिये
लगा है उधर
गाने बजाने में

इसको इसके
लिये इधर
खुजलाने में
मजा आ रहा है

गधों की दौड़
हो गयी है
सुनाई दे रही है

खबर बहुत
दिनों से
हवा हवा
में है
और
होली भी
आ रही है

गधों में सबसे
अच्छा गधा भी
जल्दी ही
गधों के लिये
भेजा जा रहा है

‘उलूक’
तूने पेड़
पर ही
रहना है
रात गये ही
सुबह की
बात को
कहना है

तुझे
किस बात
का मजा
आ रहा है

खेलता रह
खाली
बोतलों से

गधे
का आना
फिर गधे
का जाना

कृष्ण जी
तक बता
गये हैं
गीता में

गधों के
बीच में
चल रही
उनकी
अपनी
बातें हैं

बोतलों में
फूँकने वाला
क्या फूँक
रहा है
जल्दी ही
होली
से पहले
सबके
सामने से
आ रहा है

किसलिये
छटपटा
रहा है ?

चित्र साभार: Dreamstime.com

सोमवार, 6 मार्च 2017

सुना है फिर से आ गयी है होली

चल
बटोरें रंग
बिखरे हुऐ
इधर उधर
यहाँ वहाँ

छोड़ कर
आ रहा है
आदमी

आज
ना जाने सब
कहाँ कहाँ


सुना है
फिर से
आ गयी है

होली

बदलना
शुरु हो गया
है मौसम


चल
करें कोशिश

बदलने
की व्यवहार
को अपने

ओढ़
कर हंसी
चेहरे पर

दिखाकर
झूठी ही सही
थोड़ी सी खुशी
मिलने की
मिलाने की


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली


चल
दिखायें रास्ते
शब्दों को
भटके हुऐ

बदलें
मतलब
वक्तव्य के
दिये हुए

अपनों के
परायों के

करें काबू
जबानें
लोगों की

सभी
जो आते हैं नजर
इधर और उधर
सटके हुऐ


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली


चल
चढ़ाये भंग
उड़ायें रंग
जगायें ख्वाब

सिमटे हुऐ
सोते हुऐ
यहाँ से
वहाँ तक के
सभी के

जितने
भी दिखें
समय के
साथ लटके हुऐ


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली


चल
करें दंगा
करें पंगा

लेकिन
निकल बाहर
हम्माम से

कुछ ही
दिन सही
सभी नंगों के
साथ हो नंगा


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली


चल
उतारें रंग
चेहरे के
मुखौटों के

दिखायें
रंग
अपने ही
खुद के होठों के

कहें
उसकी नहीं
बस अपनी ही

कहें

अपनों से

कहें

किसलिये
लुढ़कना
हर समय
है जरूरी
साथ लोटों के


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली

सुना है
फिर से
आ गयी
है होली ।


चित्र साभार: Happy Holi 2017

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

बोलते ही उठ खड़े होते हैं मिलाने आवाज से आवाज गजब हैं बेतार के तार याद आते हैं बहुत ही सियार

बड़े दिनों के
बाद आज
अचानक फिर
याद आ पड़े
सियार

कि बहुत
अच्छे
उदाहरण
के रूप में
प्रयोग किये
जा सकते हैं
समझाने
के लिये
बेतार के तार

रात के
किसी भी प्रहर
शहर के शहर
हर जगह मिलते
हैं मिलाते हुऐ
सुर में सुर
एक दूसरे के
जैसे हों बहुत
हिले मिले हुऐ
एक दूसरे में
यारों के हो यार

और
आदमी इस
सब की रख
रहा है खबर

हो रहा है
याँत्रिक
यंत्रों के जखीरे
से दबा हुआ
ढूँढता
फिर रहा है
बिना बताये
सब कुछ छुपाये

तारों में
बिजली के
संकेतों में
दौड़ता हुआ
अपने खुद के
लिये प्रेम प्यार
और मनुहार

सियार दिख
नहीं रहे हैं
कई दिन
हो गये हैं
सुनाई नहीं
दे रही हैं आवाजें

नजर नहीं
आ रहे हैं
कहीं भी
सुर में सुर
मिलाते हुऐ

सियारों के सियार
सारे लंगोटिया यार

जरूरत
नहीं है
जरा सा भी
मायूस होने
की सरकार

बन्द कर
रहे हैं लोग
दिमाग
अपने अपने
दिख रहा है
भेजते हुऐ संदेश
बैठा कोई
बहुत दूर
कहीं उस पार

खड़ी हो रही
हैं गर्दने
पंक्तिबद्ध
होकर
उठाये मुँह
आकाश की ओर
मिलाते हुऐ
आवाज से आवाज

याद आ रहा
है एक शहर
भरे हुऐ हर तरफ
सियार ही सियार
जुड़े हुऐ सियार से

और
बेतार का एक तार
बहुत लम्बा मजबूत
जैसे गा रहे हों
हर तरफ
हूँकते हुऐ सियारों
के साथ
मिल कर सियार।

चित्र साभार: http://www.poptechjam.com

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

कलाबाजी कलाकारी लफ्फाजों की लफ्फाजी जय जय बेवकूफों की उछलकूद और मारामारी

कब किस को
देख कर क्या
और
कैसी पल्टी
खाना शुरु कर दे
दिमाग के अन्दर
भरा हुआ भूसा

भरे दिमाग वालों
से पूछने की हिम्मत
ही नहीं पड़ी कभी
बस
इसलिये पूछना
चाह कर भी
नहीं पूछा

उलझता रहा
उलटते पलटते
आक्टोपस से
यूँ ही खयालों में
बेखयाली से

यहाँ से वहाँ
इधर से उधर
कहीं भी
किधर भी
घुसे हुऐ को
देखकर

फिर कुछ भी
कहने लिखने
के लिये नहीं सूझा

बेवकूफ
आक्टोपस
आठ हाथ पैरों
को लेकर तैरता
रहा जिंदगी
भर अपनी

क्या फायदा
जब बिना
कुछ लपेटे
इधर से उधर
और
उधर से इधर
कूदता रहा

कौन पूछे
कहाँ कूदा
किसलिये
और
क्यों कूदा

गधे से लेकर
स्वान तक
कबूतर से
लेकर
कौए तक

मिलाता चल
आदमी की
कलाबाजियों
को देखकर
‘उलूक’
आठ जगह
एक साथ
घुस लेने की
कारीगरी
छोड़ कर
हर जगह
एक हाथ
या एक पैर
छोड़ कर
आना सीख

और
कुछ मत कर
कहीं भी

कहीं और
बैठ कर
कर बस
मौज कर

आक्टोपस बन
मगर मत चल
आठों लेकर
एक साथ हाथ

बस रख
आया कर
हर जगह कुछ
बताने के लिये
अपने आने
का निशान

किस ने
देखना है
कौन
कह रहा है
आ बता
अपनी
पहचान

आक्टोपस
होते हैं
कोई बात
है क्या
आक्टोपस
हो जाना
सीख ना
आदमी से।

चित्र साभार: cz.depositphotos.com

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

रात का गंजा दिन का अंधा ‘उलूक’ बस रायता फैला रखा है

बहुत कुछ
कहना है
कैसे
कहा जाये
नहीं कहा
जा सकता है

लिखना
सोच के
हिसाब से
किसने
कह दिया
सब कुछ
साफ साफ
सफेद लिखा
जा सकता है

सब दावा
करते हैं
सफेद झूठ
लिखते हैं

सच
लिखने वाले
शहीद हो
चुके हैं
कई जमाने
पहले
ये जरूर
कहा जा
सकता है

लिखने
लिखाने
के कोर्ट
पढ़े लिखे
वकील
परिपक्व
जज
होते होंगे
बस इतना
कहा जा
सकता है

सबको पता
होता है
सब ही
जानते है
सबकुछ
कुछ
कहते हैं
कुछ कुछ
पढ़ते हैं
कुछ
ज्यादा
टिप्पणी
नहीं देते हैं
कुछ
दे देते हैं
यूँ ही
देना है
करके कुछ
कुछ
अपने अपने
का रिश्ता
अपने अपने
का धंधा
लिखने
लिखाने
ने भी
बना रखा है

‘उलूक’
खींच
अपने बाल
किसी ने
रोका
कहाँ है
बस मगर
थोड़ा सा
हौले हौले

जोर से
खींचना
ठीक नहीं
गालियाँ
खायेंगे
गालियाँ
खाने वाले
कह कर
दिन की
अंधी एक
रात की
चिड़िया को
सरे आम
गंजा बना
रखा है।

चित्र साभार: Dreamstime.com

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

बुखार कैसा भी हो निकलता ही है कुछ बाहर बुदबुदाने में

बस चार
दिन की है
बची बैचेनी

फिर बजा
लेना बाँसुरी
लगा कर आग
रोम को पूरे

सब कुछ
बदल
जायेगा जब
बनेगी राख
देख लेना
मिचमिचाती
सी अगर
बन्द भी होगी
तब भी आँख

धुआँ खाँसेगा
खुद बूढ़ा
होकर जले
जंगल का
बहेगी नाक
आपदा के
पानी की
बहुत जोरों से

सारा हरा भूरा
और सारा भूरा
हरा हो लेगा
यूँ ही बातों
बातों के बीच

घुस लेंगे सारे
दीमक छोड़
कर कुतरना
जीते हुऐ और
मरे हुऐ को
जैसे थे जहाँ थे
की स्थिति में

उगना शुरु
होंगे जंगल
के जंगल
लदने लगेंगे
फल फूल
पौंधों में पेड़
बनने से
ही पहले

दौड़ेंगे उल्टे
पाँव बंदर
सुअर
और बाघ
घर वापसी
के लिये
खुशी से

दीवाली
के दीये
खनखनायेंगे
पुराने पीतल
के बने घर के
भरे लबलबा
तेल ही तेल से

उधरते घरों
के आंगन
में रम्भायेंगी
भैसें गायें और
बकरियाँ

सूखे खुरदरे
उधरते पहाड़ों
के हाड़ों से
निकलते
सारे के सारे
नदी धारे
दिखेंगे
छलछलाते

सपने बेचने
निकले हैं अपने
खुद के
लोग कुछ
थोड़े से
खरीददार
सारे सब
लगे हैं
साथ में
अपने

अपने
हिसाब से
अपनी
किताबें
पढ़ कर
समझ कर
गणित
दो में दो
जोड़ कर
करने पाँच
सात या
और
ज्यादा
जितना
हो सके
जहाँ तक

चल तैयार
हो ले तू भी
‘उलूक’
लगाने
स्याही
कहीं
थोड़ी सी
अपने भी
गवाही देगें
सुना हैं
रंग नाखूनों के
आने वाले
दिनो में
उत्सवों में
जीत के
पहाड़ों की।

चित्र साभार: Freepik

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

खुजली ‘उलूक’ की

युद्ध
हो रहा है

बिगुल
बज रहा है

सारे सिपाही
हो रहे हैं

अपने अपने
हथियारों
के साथ

सीमा पर
जा रहे हैं

देश के
अन्दर
की बात
हो रही है

कुछ ही
देश प्रेमी हैं
बता रहे हैं

बाकी सब
देश द्रोही हैं
देश द्रोहियों
से आह्वान
कर रहे है

देश प्रेमियों
को चुनने
को क्यों
नहीं आगे
आ रहे हैं

देश को
किसलिये
थोड़ा सा
भी नहीं
बचा रहे हैं

देश
द्रोहियों से
कह रहे है
थोड़ा सा
कुछ तो
शरमायें

कुछ
देश भक्त
गिड़गिड़ा
रहे हैं

फालतू में
कुछ
देश द्रोहियों
के चरण
पकड़े थे
पिछली बार

आज खुल
कर बता
रहे हैं

प्रायश्चित
कर रहे हैं

इस बार
वो भी
देशभक्तों
के साथ
आ रहे हैं
समझा रहे हैं

समझिये
देश भक्त
देशभक्ति
चुनाव और
लोगों की
सक्रियता

सभी कर
रहे हैं
कुछ
ना कुछ

देश के
लिये
शहीद
होने
जा रहे हैं

‘उलूक’
तेरे दिमाग
में भरे
हुऐ गोबर
के कीड़े

बहुत
ज्यादा
कुलबुला
रहे हैं


मत खोला
कर अपना
मुँह इस
तरह से

तेरे बारे में
बहुत से
लोग लगे हैं
समझाने में
बहुत से
लोगों को
बहुत कुछ

पता नहीं
इतना एक
उल्लू से
किसलिये
लोग
घबरा रहे हैं

कल किसे
पता है
कौन रहेगा
देश भक्तों
के साथ

किसे
मालूम है
कौन रहेगा
देश द्रोहियों
के साथ

कौन से
देश भक्त
अभी जा
रहे हैं
या
कुछ देर
के बाद
आ रहे हैं

जो अभी हैं
वो रहेंगे
जो नहीं हैं
वो क्या करेंगे

किसे पता है
किसे पड़ी है
अपनी अपनी
खुजली लोग
अपने आप
खुजला रहे हैं ?

चित्र साभार: ClipartFest

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

आदमी सोचते रहने से आदमी नहीं हुआ जाता है ‘उलूक’

एकदम
अचानक
अनायास
परिपक्व
हो जाते हैं
कुछ मासूम
चेहरे अपने
आस पास के

फूलों के
पौंधों को
गुलाब के
पेड़ में
बदलता
देखना

कुछ देर
के लिये
अचम्भित
जरूर
करता है

जिंदगी
रोज ही
सिखाती
है कुछ
ना कुछ

इतना कुछ
जितना याद
रह ही नहीं
सकता है

फिर कहीं
किसी एक
मोड़ पर
चुभता है
एक और
काँटा

निकाल कर
दूर करना
ही पड़ता है

खून की
एक लाल
बून्द डराती
नहीं है

पीड़ा काँटा
चुभने की
नहीं होती है

आभास
होता है
लगातार
सीखना
जरूरी
होता है

भेदना
शरीर को
हौले हौले
आदत डाल
लेने के लिये

रूह में
कभी करे
कोई घाव
भीतर से
पता चले
कोई रूह
बन कर
बैठ जाये
अन्दर
दीमक
हो जाये

उथले पानी
के शीशों
की
मरीचिकायें
धोखा देती 

ही हैं

आदमी
आदमी
ही है
अपनी
औकात
समझना
जरूरी है
'उलूक'

कल फिर
ठहरेगा
कुछ देर
के लिये
पानी

तालाब में
मिट्टी
बैठ लेगी
दिखने
लगेगें
चाँद तारे
सूरज
सभी
बारिश
होने तक ।

चित्र साभार: Free Clip art