आइये साथ मिलकर अपनी अपनी समझ कुछ और बढ़ाते हैं दूर बज रहे ढोल नगाड़ों में अपने अपने राग ढूँढ कर अपनी सोच के टेढ़े मेढ़े पेंच अपनी अपनी पसंद के झोल में कहीं फँसाते हैं अपने घर में सड़ रहे फलों पर इत्र डाल कर चाँदी का वर्क लगा कर अगली पीढ़ी के लिये आइये साथ साथ सजाते हैं शोर नहीं है नहीं है शोर कविताएं हैं गीत हैं झूमते हैं नाचते हैं गाते हैं आइये सब मिल जुल कर अपने अपने घर की खिड़कियाँ दरवाजे के साथ में अपनी आँख बंद कर दूर कहीं चल रहे नाटक के लिये जोर शोर से तालियाँ बजाते हैं कलाकारी कलाकार की काबिले तारीफ है आखिरकार उम्दा कलाकारों में से छाँटे गये कलाकार के द्वारा सहेज कर मुंडेर पर सजाया गया एक खूबसूरत कलाकार है आइये लच्छेदार बातों के गुच्छों के फूलों को मरी हुई सोचों के ऊपर से जीवित कर सजाते हैं बहुत कुछ है दफनाने के लिये लाशों को कब्र से निकाल निकाल कर जलाते हैं कहीं कोई रोक कहाँ है अपने अपने घर को अपनी अपनी दियासलाई दिखा कर आग लगाते हैं रोशनी होनी है चकाचौंध खुद कर के चारों तरफ झूठ के पुलिंदों पर सच के चश्में लगा लगा कर होशियार लोगों को बेवकूफ बनाते हैं नाराज नहीं होना है ‘उलूक’ आधे पके हुऐ को मसाले डाल डाल कर अपने अपने हिसाब से अपनी सोच में पकाते हैं स्वागत है आइये चिराग ले कर अपने अपने रोशनी ही क्यों करें पूरी ही आग लगाते हैं ।
गाँधारी ने सब कुछ बताया कुछ भी किसी से नहीं छिपाया वैसा ही समझाया जैसा धृतराष्ट्र ने खुद देखा और देख कर उसे दिखाया
धृतराष्ट्र ने भी सब कुछ वही कहा जो घर घर में रखी हुई संजयों की आँखोँ ने संजयों को दिखाया
संजयों को जो समझाया गया अपनी समझ को बिना तकलीफ दिये उन्होने भी ईमानदारी के साथ अपने धृतराष्ट्र की आन की खातिर आगे को बढ़ाया
परेशान होने की जरूरत नहीं है अगर आँख वाले को वो सब आँख फाड़ कर देखने से भी नजर नहीं आया
एक नहीं हजार उदाहरण हैं कुछ कच्चे हैं कुछ पके पकाये हैं
असम्भव नहीं है एक देखने वाले को अपनी आँख पर भरोसा नहीं होना सम्भव है देखने वाले की आँख का खराब होना
आँख खराब होने की उसे खुद ही जानकारी ना होना
दूरदृष्टि दोष होना निकट दृष्टि दोष होना काला या सफेद मोतियाबिंद होना एक का दो और दो का एक दिख रहा होना
फिर ऐसे में वैसे भी किसी से क्या कहना अच्छा है जिसे जो दिख रहा हो देखते रहने देना
किसी से कहें या ना कहें पर बहुत जरूरी है गाँधारी को क्या दिखा जरूर देखने के लिये अपनी आँख पर पट्टी बाँध कर देखने का प्रयास करना
आज सारे के सारे गाँधारी अपने अपने धृतराष्ट्रों के ही देखे हुऐ को देख रहे हैं एक बार फिर सिद्ध हो गया है कहीं के भी हों सारे गाँधारी एक जैसा एक सुर में कह रहे हैं
ऐसे में तू भी खुशी जाहिर कर मिठाई बाँट दिमाग मत चाट
किसने क्या देखा क्या बताया इस सब को उधाड़ना बंद कर उधड़े फटे को रफू करना सीख कब तक अपनी आँख से खुद ही देखता रहेगा ‘उलूक’
गोद में चले जा किसी गाँधारी के सीख कर आ किसी धृतराष्ट्र के लिये आँख बंद कर उसकी आँखों से देखने की कला
तभी होगा तेरा और तेरी सात पुश्तों का तेरी घर गली शहर प्रदेश देश तक के देश प्रेमी संतों का भला ।
चिट्ठेकार का कोई बिल्ला ना आते समय चिपकाया जाता है
ना जाते समय कुछ चिट्ठेकार जैसा बताने वाला चिपकाया हुआ उतारा ही जाता है
तुम भी चल दिये चिट्ठे कितना रोये पता नहीं
चिट्ठों में दिखता भी नहीं है चिट्ठों की खुशी गम हंसना या रोना
कुछ चिट्ठे कम हो जाते हैं कुछ चिट्ठे गुम हो जाते हैं कुछ गुमसुम हो जाते हैं
विश्वास होता है किसी को कि ऐसा ही कुछ होता है
इसी विश्वास के कारण निश्वास भी होता है
आना जाना खोना पाना तो लगा रहता है
तेरे आने के दिन क्या हुआ पता नहीं
चिट्ठों का इतिहास जैसा अभी किसी चिट्ठेकार ने कहीं लिख दिया हो ऐसा भी दिखा नहीं
जाने के दिन टिप्पणी नहीं भी मिलेगी तो भी
श्रद्धांजलि जगह जगह इफरात से एक नहीं कई बार चिट्ठे में ही नहीं कई जगह दीवार दर दीवार मिलेगी
बहुत सारे चिट्ठेकारों में से एक अब बहुत बड़ा कह लूँ कम से कम जाने के बाद तो बड़ा और बड़े के आगे बहुत लगा लेना जायज हो ही जाता है
दुनियाँ की यादाश्त वैसे भी बड़ी बड़ी बातों को थोड़ी देर तक जमा करने की होती है
चिट्ठे चिट्ठाकारी चिट्ठाकार जैसा बहुत सारा बहुत कुछ गूगल में ही गडमगड होकर गजबजा जाता है
‘उलूक’ तू भी आदत से बाज नहीं आ पाता है तुझे और तेरी उलूकबाजी को उड़ने का हौसला देने वाले के जाने के दिन भी तुझसे कुछ उलटा सीधा कहे बिना नहीं रहा जाता है
‘अविनाश जी वाचस्पति’ अब नहीं रहे इस दुनियाँ में
थोड़ी देर के लिये मौन रहकर श्रद्धा से सर झुका कर श्रद्धांजलि देने के लिये दोनो हाथ आकाश की ओर क्यों नहीं उठाता है ।
प्रश्न उठना और उठते प्रश्न को तुरंत पूछ लेना बहुत अच्छी बात है लेकिन किसी के लिये समझना जरूरी है किसी के लिये बस एक मजबूरी है प्रश्न कब पूछा जाये किस से पूछा जाये क्यों पूछा जाये सबसे बड़ी बात यह देखना पूछने के लिये उठे प्रश्न की क्या औकात है वैसे जैसा साफ नजर आता है पूछे गये प्रश्न से पता चल जाता है प्रश्न नियत होते हैं उत्तर नियत होते हैं प्रश्न पूछने वाले नियत होते हैं उत्तर देने वाले नियत होते है बस थोड़े से कुछ दो चार बेवकूफ सब कुछ समझते बूझते हुऐ एक दूसरे के साथ प्रश्नों की अंताक्षरी फिर भी खेल रहे होते हैं रोज ही दूरदर्शन में दूर से दर्शन होते है बहस के लिये हर तरफ की तरफ से अपने अपने मुर्गे खड़े किये होते हैं किसी की कलगी रंगीन होती है किसी किसी ने रामनामी दुपट्टे ओढ़े हुऐ होते हैं मुरगे लढ़ाने वाला परदे के पीछे से कहीं किसी अदृष्य धागे से बंधा होता है सामने से मगर कठपुतलियों को घो रहा है का जैसा आभास दे रहा होता है उसे पता होता है वो खुद भी एक कठपुतले के हाथों खेल रहा कठपुतला होता है प्रश्न उठाये कोई अपने आस पास से एक नहीं अनेक पड़े होते है लेकिन प्रश्न पूछने वाले हजार मील दूर के पत्थर को देख रहे होते हैं अपना कुछ अपनी सोच से बने वो जमाने लद रहे होते हैं समय की बलिहारी है ऐसे समय में गधे सारे अपने अपने गधों की लीद कुरेद रहे होते हैं अपने गधे की लीद की खुश्बू के नशे में इतना झूम रहे होते हैं सावन के सारे अंधे जैसे हरी घास के ढेर पर कूद रहे होते हैं ‘उलूक’ नोच सकता है तू भी जितना नोच ले प्रश्नों को प्रश्नों के कपड़े वैसे भी नहीं होते हैं अपने आस पास से उठे प्रश्नों पर आँख मूँद और पूछ कहीं आसमान के नीले रंग पर या सुबह की सुर्ख धूप पर या कुछ और वो सब जो भी तुझे प्रश्न पूछना सीखे हुऐ लोगो द्वारा तुझसे पूछने के लिये सुझाया जाता है आसपास के ज्वलंत प्रश्नों से जल जाने से अच्छा किसी का सुझाया किसी का बताया प्रश्न पूछने से साँप को मारना और लाठी को टूटने से बचाना भी सीखा सिखाया जाता है सबक भी मिलता है बहुत दूर का पूछा गया एक छोटा सा प्रश्न हमेशा अपने घर के बड़े बड़े निरुत्तर कर देने वाले प्रश्नो से बचाना भी सिखाता है ।
भाई कोई नई चीज नहीं है सबको ही देश की पड़ी ही होती है सभी देश के भक्त होते हैं देश के बारे में ही सोचते हैं देश के लिये ही उनके पास वक्त ही वक्त होता है झंडा देश का बस उनके लिये प्राण होता है फहराना उसे ऐसे लोगों के लिये रोज का ही काम होता है बहुत बड़ी बात होती है देश के बारे में सोचते सोचते बीच में समय अगर कुछ निकाल ले जाते हैं क्या बुराई है इसमें अगर कुछ अपने और अपने परिवार के लिये भी थोड़ा सा चुन्नी भर इस सब के बीच कर के ले जाते हैं परिवार छोटा सा या बहुत बड़ा भी हो सकता है कैसे बनाना है काम करने कराने पर निर्भर करता है कहीं जाति से काम चल जाता है कहीं इलाका काम में आता है कहीं इलाके की जाति काम में आ जाती है कहीं जाति का इलाका काम में आता है किसी को गिराना हो परिवार की खातिर तो उसे बताना भी नहीं कुछ पड़ता है मजबूरी में उसे उसके किसी इलाके खास का होने का खामियाजा उठाना जरूर पड़ता है चोर सारे एक से एक मुहर वाले पता नहीं कैसे एक हो जाते हैं समाज के अन्दर के किसी ईमानदार का पाजामा बहुत आसानी से खींच ले जाते हैं चोर के फोटो अखबार के मुख्य पृष्ठ पर रोज ही होते हैं पाजामा उतरे हुऐ लोग शरम से खुद ही मर जाते हैं जमाना पाजामा पाजामा खेल रहा होता है बेशरम हाथी के ऊपर बैठा मुकुट पहन आईसक्रीम पेल रहा होता है ‘उलूक’ तू फिक्र क्यों करता है हाल अपने पैजामे का देख कर तेरे सभी चाहने वालों में से सबसे पहला तेरा ही पैजामा खींचने की फिराक में कब से तेरे नखरे फाल्तू में झेल रहा होता है ।
मुद्दई जैसे जैसे सुस्त हो रहे होते हैं मुद्दे भी उतनी ही तेजी से चोरी हो रहे होते हैं मुद्दे बिल्ली के शिकार मोटे तगड़े किसी चूहे जैसे हो रहे होते हैं बहुत उछल कूद कर भी लेते हैं मगर शिकार शिकारी बिल्ले के जबड़े में फंस कर ही हो रहे होते हैं किताबें मोटी कुछ बगल में दबाकर किताब पढ़ने वाले ज्ञान समेट बटोर कर जबर्दस्ती फैला दे रहे होते हैं काम कराने वाले मगर अखबार की पुरानी रद्दी से ही अपने किये गये कर्मों की धूल रगड़ रगड़ बिना पानी के धो रहे होते हैं बेवकूफ आदमी आदमी के सहारे आदमी को फँसाने की तिकड़मों को ढो रहे होते हैं समझदार के देश में गाँधी पटेल नेता जी की आत्माओं को लड़ा कर जिंदा आदमी की किस्मत के फैसले हो रहे होते हैं जमीन बेच रहा हो कौड़ियों के मोल कोई इसका यहाँ इसको और उसका वहाँ उसको इज्जत नहीं लुट रही है जब इसमें किसी की और मोमबत्तियों को लेकर लोगों की सड़कों में रेलमपेल के खेल नहीं हो रहे होते है फिर तेरी ही अंतड़ियों में मरोड़ किसलिये और क्यों हो रहे होते हैं मुद्दे शुरु होते समय कीमत कहाँ बताते हैं अपनी गरम होने में समय लेते हैं समाचार में आते आते बिकना शुरु हुऐ नहीं खबर देते हैं अरबों करोड़ों के हो रहे होते हैं ‘उलूक’ अपनी अक्ल मत घुसेढ़ा कर हर जगह हर बात पर उस जगह जहाँ घोड़ों की जगह गधो के दाम बहुत ऊँचे हो रहे होते हैं ।