उलूक टाइम्स

बुधवार, 7 जनवरी 2015

इंद्रियों को ठोक पीट कर ठीक क्यों नहीं करवाता है

 

कान आँख नाक जिह्वा त्वचा 
को इंद्रियां कहा जाता है

इन पाँचों के अलावा ज्ञानी एक और की बात बताता है
छटी इंद्री जिसे कह दिया जाता है

गाँधी जी ने तीन बंदर चुने
कान आँख और जिह्वा बंद किये हुऐ

जिनको बरसों से
यहाँ वहाँ ना जाने कहाँ कहाँ दिखाया जाता है

सालों गुजर गये
थका नहीं एक भी बंदर उन तीनों में से

भोजन पानी का समय तक आता है
और चला जाता है

नाक बंद किया हुआ बंदर
क्यों नहीं था साथ में इन तीनो के
इस बात को पचाना मुश्किल हो जाता है

गाँधी जी बहुत समझदार थे
ऐसा कुछ किताबों में लिखा पाया जाता है

झाड़ू भी नहीं दे गये
किसी एक बंदर के हाथ में
ये भी अपने आप में एक पहेली जैसा हो जाता है

जो भी है
अपने लिये तो आँखो से देखना ही बबाल हो जाता है
आँखे बंद भी कर ली जायें तो कानो में कोई फुसफुसा जाता है

कान बंद करने की कोशिश भी की कई बार
पर अंदर का बंदर चिल्लाना शुरु हो जाता है

एक नहीं अनेकों बार महसूस किया जाता है
‘उलूक’ तुझ ही में
या तेरी इंद्रियों में ही है कोई खराबी कहीं
आशाराम और रामपाल की शरण में
क्यों नहीं चला जाता है

ज्यादा लोग
देखते सूँघते सुनते महसूस करते हैं जिन जिन बातों को

तेरे किसी भी कार्यकलाप में
उसका जरा सा भी अंश नहीं आता है

सब की इंद्रियाँ सक्रिय होती हैं
हर कोई कुछ ना कुछ कर ही ले जाता है

तुझे गलतफहमी हो गई है लगता है
छटी इंद्री कहीं होने की तेरे पास

इसीलिये जो कहीं नहीं होता है
उसके होने ना होने का वहम तुझे जाता है ।

चित्र साभार: bibliblogue.wordpress.com

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

नदी में लगी आग और मछलियों की मटरगश्ती

नदी में आग
लगी हुई है
और मछलियाँ
पेड़ पर चढ़ कर
सोई हुई हैं

अब आप कहेंगे
नदी में किसने
आग लगाई
मछलियाँ पेड़ पर 

किसने चढ़ाई

अरे इतना भी नहीं
अगर जानते हो
तो इधर उधर
लिखे लिखाये को
छलनी हाथ में
लेकर क्यों छानते हो

होना वही होता है
जो राम ने रचा
हुआ होता है

राम कौन है
पूछने से पहले
सोच लेना होता है
रहना होता है या
नहीं रहना होता है

राम को तो
माननीय
कुरैशी जी
तक जानते हैं
और जो राम को
नहीं जानते हैं
उनको वो बहुत ही
बदनसीब मानते हैं

अब ये नहीं कहना
मुझको नहीं पता है
अखबार में मुख्य पृष्ठ
पर उनका ऐसा ही
कुछ वक्तव्य छपा है

उनका हर हितैशी
उस अखबार के
पन्ने को फ्रेम करवा
कर मंदिर की दीवार
में मढ़ रहा है
जिनको पता है
देवों की धरती पर
राम का जहाज
उतरवाने का कोई
जुगाड़ कर रहा है

राम तो ऊपर से
नीचे को आना
भी शुरु हो गये है
पर तबादले की
खबर सुनकर
भद्रजन ठीक समय
पर सड़कों को छोड़
पैदल सड़कों पर
चलना शुरु कर गये हैं

ऐन मौके पर राम के
जहाज के पैट्रोल का
पैसा देने वाले
मुकर गये हैं
राम भी सुना है
देवभूमी की ओर
आने के बजाये
पूरब की ओर
जाना शुरु हो गये हैं

कुछ भी हो
जब से आये हैं
पालने राज्य को
राम राम करते करते
राममय हो गये हैं

आते आते तो
किये ही कई काम
कई काम जाते जाते
भी जाने से पहले
की तारीखें लिख
कर कर गये हैं

कुछ छप्पर वालों
को छप्पर फाड़
कर दे गये हैं
कुछ पक्की
छत के मकान
छ्प्पर लगवाने
लायक भी नहीं
रह गये हैं

उन्ही की कृपा है
दो चार गधे घोड़े
की बिरादरी में
शामिल हो गये हैं
और दो चार घोड़े
गधों में मिलाने
के काबिल हो गये हैं

उनके आने पर
कौन कितना
खुश हुआ है और
उनके जाने पर
किस को कितना
दुख: हुआ है
जो है सो है
होनी को तो होना है
आप को लेकिन
परेशान नहीं होना है
पानी में लगी आग से
पानी का कुछ
नहीं होना है

और मछलियाँ
तो मछलियाँ है
कहीं भी चली जायेंगी

आज पेड़ पर
चढ़ी दिख रही है
कल को आसमान
में उड़ जायेंगी
तेरे को तेरे घर में
और मेरे को
मेरे घर में ही
बस रोना है ।

चित्र साभार: www.bigstockphoto.co

सोमवार, 5 जनवरी 2015

चूहे मारने वाली बिल्लियों को कुत्तों की देखभाल करने के काम दिये जाते हैं

एक नहीं कई जगहों पर
कोयले मोहर लगाते हैं
सब कुछ काला काला
हो जाता है फिर भी
कव्वे शोर नहीं मचाते हैं
हीरे बहुत से होते हैं
कोयलों के बीच से ही
कोयलों में से ही कुछ
दब दबा कर
बन बना जाते हैं
यहाँ कोयले कहने से
मतलब उड़ती काली
चीज से मत
निकाल बैठियेगा
वो बात अलग है
कोयला जला के
काला हुआ पदार्थ
कोयल से भी
बनाया जा सकता है
जब कोयल को हम
आग में जलाते हैं
बात कोयले के मोहर
लगाने से शुरु हुई थी
भटक गई उड़ती
चिड़िया के पंखों की
फड़फड़ाहट में
घबराने की बात नहीं है
घबराने वाले ही
असली जगह पर
हीरों को कोयलों से
कम आँके जाने का
हिसाब किताब बना
कर सिखाते हैं
कोई भी दो आँखों वाला
आँखों को कष्ट नहीं देता है
हर सजावट की जगह पर
हीरे नहीं आने दिये जाते हैं
राज काज राजा को
ही चलाना होता है
समझदार लोग भी
राजकाज में मदद
करने के लिये आते हैं
काम दिया जाने से पहले
जरूरी होता है बताना
अपने काम करने
की अच्छाईयों को
दूध देने वाली गायों को
बकरी कटने वाले
कारखाने के रास्ते
पर दौड़ाते हैं
सीख लेते हैं
इस कलाकारी
को जो भी कलाकार
दीवार पर लगी सीढ़ी में
बहुत ऊपर तक
चढ़े नजर आते हैं
जिसको आता है
दीवार पर चूना लगाना
सीढ़ी पकड़े उसे गिरने से
रोकते हुऐ नजर आते हैं ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

रविवार, 4 जनवरी 2015

है तो अच्छा है नहीं है तो बहुत अच्छा है


नया कहने के लिये उठ लिया जाये 
अच्छा है 
रहने दें नींद ही में रह लिया जाये 
तो भी अच्छा है 

खयाल के
खाली चावलों को बीनते बीनते नींद आ जाती है 
थोड़ा खयाली पुलाव पका लिया जाये 
अच्छा है 

उनको आता है खयाल के घोड़े दौड़ाना 
अपना गधा भी कम नहीं है 
गधा है फिर भी अच्छा है 

पाँच के दस के और बीस के नोट 
बहुत पुराने हैं मगर अच्छे हैं 
पंद्रह पच्चीस के भी आ जायें छप कर
और अच्छा है 

उसकी बारूद की टोकरी की खबर उसने दी 
अच्छा है 
इसने फोड़ कर उसके सिर में 
पीठ थपथपा ली अपनी 
बहुत अच्छा है 

इसका दिल है धड़कता है 
ये भी अच्छा है 
उसका दिल है धड़कता है 
वो भी अच्छा है 

अच्छी बात करना सबसे अच्छा है 
अच्छा दिन है अच्छी रात है 
बहुत अच्छा है 

अच्छी खबरें है अच्छी बात हैं 
जो है सो है बहुत अच्छा है 

और फिर से नया कहने के लिये 
उठ लिया जाये अच्छा है 
रहने दें नींद ही में रह लिया जाये 
और अच्छा है । 

चित्र साभार: www.christart.com

शनिवार, 3 जनवरी 2015

नया साल नई दुल्हन चाँद और सूरज अपनी जगह पर वही पुराने

जुम्मा जुम्मा
ले दे के
खीँच खाँच के
हो गये
तीन दिन
नई दुल्हन के
नये नये
नखरे
जैसे मेंहदी
लगे पाँव
दूध से
धुले हुऐ
अब तेज भी
कैसे चलें
पीछे से
पुराने दिन
खींचते हुऐ
अपनी तरफ
जैसे कर रहे हों
चाल को
और भी धीमा
कोई क्या करे
जहाँ रास्ते को
चलना होता है
चलने वाले को
तो बस खड़े
होना होता है
वहम खुद के
चलने का
पालते हुऐ
तीन के तीस
होते होते
मेंहदी उतर
जाती है
कोई पीछे
खींचने वाला
नहीं होता है
चाल
अपने आप
ढीली
हो जाती है
तीन सौ पैंसठ
होते होते
आ गया
नया साल
जैसे नई दुल्हन
एक आने
को तैयार
हो जाती है
चलने वाले को
लगने लगता है
पहुँच गया
मंजिल पर
और
आँखे कुछ
खोजते हुऐ
आगे कहीं
दूर जा कर
ठहर जाती हैं
कम नहीं
लगता अपना
ही देखना
किसी चील
या
गिद्ध के
देखने से
वो बात
अलग है
धागा सूईं
में डालने
के लिये
पहनना
पड़ता हो
माँग कर
पड़ोसी से
आँख का चश्मा
कुछ भी हो
दुनियाँ चलती
रहनी है
पूर्वाग्रहों
से ग्रसित
‘उलूक’
तेरा कुछ
नहीं हो सकता
तेरे को शायद
सपने में भी
नहीं दिखे
कभी
कुछ अच्छा
दिनों की
बात रहने दे
सोचना छोड़
क्यों नहीं देता
अच्छा होता है
कभी चलते
रास्तों से
अलग होकर
ठहर
कर देखना
चलता हुआ
सब कुछ
साल गुजरते
चले जाते हैं
नये सालों
के बाद
एक नये
साल से
गुजरते
गुजरते ।

चित्र साभार: galleryhip.com

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

मजबूत बंधन के लिये गठबंधन की दरकार होती है


कठिन नहीं बहुत आसान होता है
बंधन बहुत छोटा 
और गठबंधन आसमान होता है 

गठबंधन नहीं होता है जहाँ 
अंदर अंदर ही घमासान होता है

बंधन होने से कहीं भी 
बंधने वाला बहुत परेशान होता है 
मोटी रस्सी में बंधी छटपटाती 
एक छोटी सी जान होता है

गठबंधन होने से 
सभी का जीना आसान होता है
कई जिस्म होते हैं कई जाने होती हैं 
पता कहाँ चलता है कहाँ दीन कहाँ ईमान होता है 

भूल जाता है हमेशा 
घर में भी तो होता है और यही होता है 
आज से नहीं कई जन्मों से होता है

माँ का बाप से बच्चों का माँ बाप से 
पति का पत्नी से होता है 

बंधन से शुरु होता है 
चलता है बहुत धीमे धीमे 
गठबंधन होते ही वही सब कुछ 
दौड़ने के लिये तैयार होता है 

क्या होता है अगर धर्म का धर्म से नहीं होता है 
दिखाये भी कोई दिखावे के लिये 
तब भी बहुत कमजोर होता है 

क्या होता है अगर अधर्म का अधर्म से होता है 
और बहुत मजबूत होता है 

कैसा होगा 
पहले से कहाँ महसूस होता है 

शादी होने के बाद देखा जाये अगर 
ज्यादातर शुरु होता है 

बंधन होने से ही कुछ नहीं होता है 
जब तक गठबंधन नहीं होता है 

फिर गठबंधन से एक सरकार बनती 
देख कर ‘उलूक’ क्यों तुझे कंफ्यूजन होता है 

गठबंधन के लिये दिया गया जनादेश 
नीचे से नहीं कहीं उपर से 
दिये आदेश का प्रकार होता है 

ईश्वर और अल्लाह की 
एक नहीं कई बैठकों के बाद निकला 
सरकार बनाने का आदेश 
सबसे जानदार होता है

ऊपर की बड़ी बातों को 
छोटी नजर से देखने वाले का 
मुहँ काला और नजरिया बेकार होता है 

बंधन हमेशा कमजोर और गठबंधन
हमेशा 
जोरदार होता है ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

नया साल कुछ नये सवाल पुराने साल रखे अपने पास पुराने सवाल

शायद कोई
चमत्कार होगा
और जरूर होगा
पहले कभी
नहीं हुआ तो
क्या होता है
इस बार होगा
पक्का होगा
असरदार होगा
हो सकता है
दो या तीन
बार होगा
हमेशा होते
रहने की आशा
या सोच नहीं
पक रही है कहीं
खाली दिमाग
के किसी
बिना ईधन
के चूल्हे में
दो या तीन
नहीं भी सही
एक ही बार सही
क्या पता
वो इस बार होगा
हर साल आता है
नया साल
पुराने साल
के जाते ही
इस बार भी
आ गया है
आज ही आया है
पुराना हिसाब
वहीं पीछे
छोड़ के आया है
या बैंक के खाते
के हिसाब की तरह
कुछ कुछ काम
का आगे को भी
सरकाया है
पहला पहला
दिन है साल का
अभी हाथ में
ही दिख रही है धूनी
जमाने का मौका
ही नहीं मिल पाया है
पिछले साल भी
आया था एक साल
इसी जोशो और
खरोश के साथ
जानते थे जानने वाले
चलेगा तो चलेगा
आँखिर कितना
बस एक ही तो साल
जमे जमाये
इस से पहले
क्यों नहीं कर
दिये जायें खड़े कुछ
अनसुलझे सवाल
उलझा इतना
कि साफ साफ
महसूस हुआ साल भर
कि सँभलते संभलते
भी नहीं संभल पाया है
नये साल की हो चुकी है
आज से शुरुआत
बस यही पता नहीं
कुछ चल पाया है
कि समझदार है बहुत
और सवाल अनसुलझे
पिछले साल के
अपने साथ में
ले कर आया है
या बेवकूफ है
‘उलूक’ तेरी
तरह का ही एक
खुद उलझने के
लिये सवालों से
नये सवालों
का न्योता
सवाल खड़े
करने वालों को
पिछले साल से ही
दे कर आया है ।

चित्र साभार: www.happynewyear2015clipart.in
   







बुधवार, 31 दिसंबर 2014

जाते जाते आने वाले को कुछ सिखाने के लिये कान में बहुत कुछ फुसफुसा गया एक साल


बहुत
कुछ बता गया 
बहुत
कुछ सिखा गया 
याद
नहीं है सब कुछ 
पर
बहुत कुछ
लिखा गया एक साल 

और
आते आते 
सामने से साफ साफ 
दिख रहा है अब

सीटी बजाता जाता हुआ एक साल 

पिछले
सालों की तरह 
हौले हौले से
जैसे मुस्कुरा कर

अपने ही 
होंठों के अन्दर अन्दर कहीं
अपने ही
हाथ का अँगूठा 
दिखा गया एक साल 

अच्छे दिन 
आने के सपने 
सपनों के सपनों में भी 

बहुत
अन्दर अन्दर तक कहीं 
घुसा गया एक साल 

असलियत 
भी बहुत ज्यादा खराब 
नहीं दिख रही है 
अच्छे अच्छे हाथों में 
एक नया साफ सुथरा 
सरकारी कोटे से थोक में खरीदे गये 
झाड़ुओं में से एक झाडू‌ 
थमा गया एक साल 

लिखने को 
इफरात से था 
बहुत कुछ खाली दिमाग में था 
शब्द चुक गये लिखते लिखते 
पढ़ने वालों की 
पढ़ने की आदत छुड़ा गया एक साल 

ब्लाग बने कई नये 
पुराने ब्लागों के पुराने पन्नों को 
थूक लगा लगा कर 
चिपका गया एक साल 

अपनी अपनी अपने घर में 
सबके घर की सब ने कह दी 

सुनने वालों को ही बहरा 
बना गया एक साल 

खुद का खाना खुद का पीना 
खुद के चुटकुल्लों पर 
खुद ही हंस कर 

बहुत कुछ 
समझने समझाने की किताबें 
खुद ही लिखकर 

अनपढ़ों को बस्ते भर भर कर 
थमा गया एक साल 

खुश रहें आबाद रहें 
हिंदू रहें मुसलमान रहें 
रहा सहा आने वाले साल में कहें 

गिले शिकवे बचे कुचे 
आने वाले साल में 
और भी अच्छी तरह से लपेटने के नये तरीके 
सिखा गया एक साल । 

चित्र साभार: shirahvollmermd.wordpress.com

भगवान जी भगवान जी होते हैं और नंगे नंगे होते हैं भगवान जी का नंगों से कोई रिश्ता नहीं होता है नंगा भगवान से बड़ा होता है


किसी को कैसे बताऊं अपना धर्म
नहीं बता सकता 

कुछ लोग मेरे धर्म के
शुरु कर चुके हैं रक्त पीना 
वो मुर्गा नहीं खाते हैं ना ही वो बकरी खाते हैं 

समझ में
बस एक बात नहीं आती है 
कि वो कुत्ता क्यों नहींं खाते हैं 
वो कुत्तों से प्यार भी नहीं करते हैं 
ना ही कुत्ते उनको देख अपनी पूँछ हिलाते हैं 

मुझे अपने सर के बाल नोचने हैं 

वो व्हिस्की के नशे में कुछ लोगों को आदेश दे रहे हैं 
भाई तेरी पूँछ और मेरी पूँछ का बाल हरा है 

शुरु हो जा नोचना
गंजो के सिर के बालों को 
सबसे अच्छा होता है 

पैसा उसका धर्म है किसी को नहीं पता होता है 

नंगा होना अपराध नहीं है 
पैसा है तो नंगा हो जा मुनि कहलायेगा 
पैसा नहीं है भिखारी कहलायेगा 

नियम कानून कोर्ट नंगो के लिये नहीं होती है 
नंगों की जय जयकार होती है 

काश कोई नंगा मेरा भी बाप होता 
मैं भी शायद कहीं आबाद होता। 

चित्र साभार: www.fotosearch.com

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

पी के जा रहा है और पी के देख के आ रहा है

अरे ओ मेरे
भगवान जी
तुम्हारा मजाक
उड़ाया जा रहा है
आदमी पी के जैसी
फिलम बना रहा है
जनता देख रही है
मारा मारी के साथ
बाक्स आफिस का
झंडा उठाया
जा रहा है
ये बात हो रही थी
भगवान अल्ला
ईसा और भी
कई कई
कईयों के देवताओं
के सेमिनार में
कहीं स्वरग
या नरक या
कोई ऐसी ही जगह
जिसका टी वी
कहीं भी नहीं
दिखाया जा रहा है
एक देवता भाई
दूसरे देवता को
देख कर
मुस्कुरा रहा है
समझा रहा है
देख लो जैसे
आदमी के कुत्ते
लड़ा करते हैं
आपस में पूँछ
उठा उठा कर
बाल खड़े
कर कर के
कोई नहीं
कह पाता है
आदमी उनको
लड़ा रहा है
तुमने आदमी को
आदमी से
लड़वा दिया
कुत्तों की तरह
पूरे देश का
टी वी दिखा रहा है
भगवान जी
क्या मजा है
आप के इस खेल में
आपकी फोटो को
बचाने के लिये
आदमी आदमी
को खा रहा है
आप के खेल
आप जाने भगवान जी
हम अल्ला जी के साथ
ईसा जी को लेकर
कहीं और किसी देश में
कोई इसी तरह की
फिलम बनाने जा रहे हैं
बता कर जा रहे हैं
फिर ना कहना
भगवान जी का
कापी राईट है
और किसी और का
कोई और भगवान
उसकी नकल बना कर
मजा लेने जा रहा है ।

चित्र साभार: galleryhip.com

रविवार, 28 दिसंबर 2014

फिसलते हुऐ पुराने साल का हाथ छोड़ा जाता नहीं है

शुरु के सालों में
होश ही नहीं था

बीच के सालों में
कभी पुराने साल
को जाते देख
अफसोस करते
और
नये साल को
आते देख
मदहोश होकर
होश खोते खोते
पता ही नहीं चला
कि
बहुत कुछ खो गया

रुपिये पैसे की
बात नहीं है
पर बहुत कुछ
से कुछ भी
नहीं होते होते
आदमी
दीवालिया हो गया

पता नहीं
समझ नहीं पाया
उस समय समझ थी
या
अब समझ खुद
नासमझ हो गई

साल के
बारहवें महीने
की अंतिम तारीख
आते समय
कुछ अजीब अजीब
सी सोच
सबकी होने लगी है
या
मेरे ही दिमाग
की हालत
कुछ ऐसी
या वैसी
हो गई है

पुराने साल
को हाथ से
फिसलते देख
अब रोना
नहीं आता है

नये साल के
आने की
कोई खुशी
नहीं होती है

हाथ में
आता हुआ
एक नया हाथ
जैसे पकड़ा
जाता नहीं है

पता होता है
तीन सौ
पैंसठ दिन
पीछे के
जाने ही थे
चले गये हैं

तीन सौ पैंसठ
आगे के आने है
आयेंगे ही शायद
आना शुरु हो गये हैं

खड़ा भी
रहना चाहो
बीच में
सालों के
बिना
इधर हुऐ
या बिना
उधर हुऐ ही
ऐसा किसी
से किया
जाता नहीं है

इक्तीस की रात
कही जा रही है
कई जमानों से
कत्ल की रात
यही राज तो
किसी के
समझ में
आता नहीं है
जिसके आ
जाता है
वो भी
समझाता नहीं है ।

चित्र साभार: community.prometheanplanet.com

शनिवार, 27 दिसंबर 2014

इक्तीस दिसम्बर इस साल नहीं आ पाये सरकार के इस फरमान का मान रखें


ख्याल रखें
नया साल इस साल  मनाने की सोच कर
अपने लिये पैदा नहीं करें कोई बबाल
तुगलक और उसके फरमानों की फेहरिस्त
लिख लिखा कर
कहीं पैंट की जेब में सँभाल रखें

इक्तीस दिसम्बर को पूजा करें
हनुमान जी का ध्यान धरें
राम नामी माला ओढ़ कर
तुलसी माला के 108 दाने
दूध में धो कर धूप में सुखाकर
जनता को कुछ नया कर दिखाने का
मन ही मन ठान रखें

बीमार नहीं होना है छुट्टी नहीं लेनी है
पीने पिलाने का कार्यक्रम करें कोई रोक नहीं है
परदा लगा कर एक मोटा
इक्तीस को छोड़ कर किसी और दिन 
अपने घर से कहीं दूर किसी और की गली में करते समय 
ध्यान से अपने चेहरे पर एक रुमाल रखें

जनता के लिये जनता के द्वारा 
जनता के बीच जनता के साथ
तुगलक के नये वर्ष की तुगलकी एक जनवरी 
साल के किसी तीसरे या चौथे महीने से शुरु करते हुऐ
उम्मीदों को खरीदने बेचने की एक
नई दुकान की नई पहल के नये फरमान का
कुछ तो मान रखें ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

इसके जाने और उसके आने के चरचे जरूर होंगे

समाधिस्त होने
की प्रक्रिया में
एक और वर्ष
संत
दो शून्य एक चार
चार की जगह पाँच
पैदा होने को तैयार
संतों की परम्पराओं
में खरा उतरने
कुछ नया करने
कुछ पुराने को कुतरने
सीमा पाँच दिन दूर
होना है कुछ तो
आर या पार
कंघा निकाल ले
तू भी गंजे
बाल ले अपने संवार
कपड़े अपने नहीं तो
पड़ोसी के ही सही
धुलवा कर स्त्री
करा ले नंगे
किसे पता है
किस गली में
कौन मिल जाये
भगवान भी खेलते हैं
जिस जमीन पर
चोर सिपाही और
तालियाँ पीटते हैं
साथ में भिखमंगे
किस के हाथ
क्या लगे
पानी में तक
नजर है
बहुतों की
गंदगी दिखना
बंद हो रही
बंद गले से
गूँगे भी चिल्लाने
की फिराक में हैं
हर हर गंगे
कूड़े की किस्मत
क्या कहें
झेंप रहा हो
शायद फिराक भी
मुँह छिपा कर
कहीं जन्नत के
किसी कवि
सम्मेलन में
रत्नों में रत्न
अगले किसी दशक
के होने वाले
देश रत्न
सड़क पर फिंकवा
रहे हैं ठेका ले कर
सस्ते में फिर भी
नहीं होते दिख रहे हैं
इस सब पर
कहीं भी पंगे
इंतजार है
बेसब्री से
इसके जाने का
और उसके आने का
पिछले में नहीं आये
अगले में मिल जायें
मरे हुऐ सपने
रात की नींद से
निकल कर कभी तो
जिंदा होकर सामने के
किसी मैदान पर
भगवान राम के साथ
पुष्पक विमान से
हैप्पी न्यू ईयर
कहते कहते शायद
कभी जमीन पर उतरेंगे ।

चित्र साभार: november2013calendar.org

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

मैरी क्रिसमस टू यू

पितामह
और
संध्याकाल

गणेश
स्तुति
रामरक्षा
हनुमान
चालीसा
और
ध्यान

कहीं
अंधेरे में
कुछ कुछ
दिखता हुआ

शायद
भगवान

सुबह
की दौड़
बस्ता

प्रार्थना सभा
ईशू के गीत

चमकता
चेहरा
दाड़ी
कुछ कथाऐं

बलिदान
करता हुआ
एक भगवान

पच्चीस दिसम्बर
सजी हुई
एक इमारत

मोमबत्तियाँ
केक चर्च
कहानियाँ
और
कहानियों
में ही कहीं
कोई
एक शैतान

चर्च की
बजती घंटियाँ
मंदिर की
आरतियाँ

सलीब
पर लटका
कोई
एक ईश्वर
गुदा हुआ
कीलों से

रिसता
हुआ खून

बलिदान
करता
एक भगवान

राम में ईशू
ईशू में राम
भगवान ईश्वर
धनुष तलवार
शंखनाद घंटियाँ
मधुर आवाज

बचपन
से पचपन
की ओर
धर्म और
अधर्म

आदमी
और शैतान
आदमी से
आदमी
की कम
होती पहचान

ना दिखे राम
ना मिले ईशू
होते चले
इसके उसके
और
मेरे भगवान

बाकी
कुछ नहीं
रह गया
कहने को

क्या कहूँ
बस
कुछ भूलूँ
कुछ
याद करूँ

हैप्पी
क्रिसमस टू यू
मैरी
क्रिसमस टू यू ।

चित्र साभार: luvly.co

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

पानी रे पानी लिख तो सही तू भी कभी तो कुछ पानी


बहते पानी की एक लहर लिख
और छोड़ दे
पानी में पानी

गंदा है या साफ है
कोई फर्क नहीं पड़ता है
बस पानी होना चाहिये

और उस पानी को
बहने की तमीज होनी चाहिये

मतलब
एक परिभाषा अनुरूप ही होना चाहिये
पानी

जैसे
पानी में रसायन रासायनिक पानी
पानी का मंत्री मंत्री पानी 
पानी का प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री पानी
गंगा का पानी बिना कपड़े का नंगा पानी

पानी
टाई पहने हुऐ एक शरीफ पानी
शोध परियोजना का सबसे महंगा पानी

कुछ भी कह दो कुछ भी लिख दो
किसे पता चलना है कुछ
जब बह गया हो
पानी में पानी

बहुत आसान है
बहुत बेकार का है हर जगह दिखता है
हर जगह मिलता है वही
जो है पानी

लूटता भी नहीं है जिसको हर लुटेरा
सोचता भी कहाँ है
पानी

बहुत अच्छा है
लिख लेना कभी थोड़ा सा
कुछ पानी

किस को पड़ी है
पानी की
कहीं बहता रहे लिखा लिखाया
उसमें कहीं तेरा भी कुछ कहीं
पानी

कितना अच्छा है सोचने में 
कि
तू भी पानी और मैं भी पानी

कहाँ होता है अलग
पानी से कभी कहीं का भी
पानी

लूट खसोट चूस और मुस्कुरा
और फिर कह दे सामने वाले से
कि मैं हूँ
पानी

‘उलूक’
तेरे पानी पानी हो जाने से भी
कुछ नहीं होना है
पानी को रहना है हमेशा ही
पानी ।

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

सुधर क्यों नहीं जाता है छोटी सी बात करना सीखने के लिये क्यों नहीं कहीं दूर चला जाता है


छोटी छोटी बातों के ऊपर बातें बनाने से 
बात बहुत लम्बी हो जाती है 

अपने आस पास की धुंध गहरी होते होते 
धूल भरी एक आँधी हो जाती है 

बड़ी बात करने वाले को देखने सुनने से 
समझ में आ जाता है 

अच्छी 
मगर एक छोटी पक्की बात 
एक छोटे आदमी को 
कहाँ से कहाँ उठा ले जाती है 

एक छोटी बात से चिपका हुआ आदमी 
अपनी ही बनाई आँधी में आँखें मलता रह जाता है 

एक दिमागदार 
छोटी सी बात का मसीहा 
साल के हर दिन क्रिसमस मनाता है 

सोचने में अच्छा लगता है 
और बात भी समझ में आती है 

मगर 
छोटी छोटी बातों को खोजने परखने में 
सारी जिंदगी गुजर जाती है 

अपने आस पास के देश को देख देख कर 
देश प्रेम उमड़ने से पहले गायब हो जाता है 

देशभक्ति करने की सोच बनाने से पहले 
पुजारी को धंधा और धंधे का फंडा 
कदम कदम पर उलझाता है 

समझदार अपनी आँखों पर दूरबीन 
नाक पर कपड़ा और कान में रुई अंदर तक घुसाता है 

उसका दिखाना दूर आसमान में 
एक चमकता तारा 
गजब का माहौल बनाता है 
तालियों की गड़गड़ाहट में 
सारा आसमान गुंजायमान हो जाता है 

‘उलूक’ आदतन अपनी 
अपने अगल बगल के 
दियों से चोरे गये तेल के 
निशानों के पीछे पीछे 
इस गली से उस गली में चक्कर लगाता है 

कुछ भी हाथ में नहीं लगने के बाद 
खीजता हुआ 
एक लम्बे रास्ते का नक्शा बना कर 
यहाँ छाप जाता है 
छोटे दिमाग की छोटी सोच का 
एक लम्बा उदाहरण और तैयार हो जाता है । 


चित्र साभार: www.gograph.com

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

चाय की तलब और गलत समय का गलत खयाल

अपने सामने 
मेज पर पड़े
खाली चाय के एक कप को
देख 
कर लगा

शायद
चाय 
पी ली है
फिर लगा नहीं पी है

अब चाय 
पी या नहीं 
कैसे पता चले
थोड़ी देर सोचा याद नहीं आया
फिर झक मार कर
रसोई की ओर 
चल देने का 
विचार एक बनाया

पत्नी दिखी 
तैयारी में लगी हुई शाम के भोजन की
काटती हुई कुछ हरे पत्ते
सब्जी 
के लिये चाकू हाथ में ली हुई

गैस के चूल्हे के 
सारे चूल्हे दिखे
कुछ तेज और कुछ धीमे जले हुऐ

हर चूल्हे के ऊपर  
चढ़ा हुआ दिखा एक बरतन
किसी से निकलती हुई भाप दिखाई दी
और किसी से आती हुई कुछ कुछ
पकने उबलने की आवाज सुनाई दी

बात अब एक कप 
चाय की नहीं रह गई
लगा जैसे
जनता के बीच 
बिना कुछ किये कराये
एक मजबूत सरकार की हाय हाय की हो गई

थोड़ी सी हिम्मत जुटा 
पूछ बैठा

कुछ याद है 
कि मैंने चाय पी या नहीं पी
पिये की याद नहीं आ रही है
और दो आँखें 
सामने से एक
खाली कप चाय का दिखा रही हैं

श्रीमती जी ने 
सिर घुमाया
ऊपर से नीचे हमे पूरा देखकर
पहले टटोला 
फिर अपनी नजरों को
हमारे चेहरे 
पर टिकाया 

और कहा

बस यही
होना 
सुनना देखना बच गया है
इतने सालों में 
समझ में कुछ कुछ आ भी रहा है

पढ़ पढ़ कर
तुम्हारा 
लिखा लिखाया
इधर उधर कापियों में किताबों में दीवालों में
सब नजर के सामने घूम घूम कर आ रहा है

पर बस
ये ही समझ में 
नहीं आ पा रहा है
किसको कोसना पड़ेगा
हो रहे
इन सब 
बबालों के लिये

उनको
जिनको 
देख देख कर
तुम लिखने लिखाने का रोग पाल बैठे हो
या
उन दीवालों किताबों 
और कापियों को
जिन पर
लिखे हुऐ 
अपने कबाड़ को
बहुत कीमती कपड़े जैसा समझ कर
हैंगर में टाँक बैठे हो

कौन समझाये 
किसे कुछ बताये

एक तरफ एक आदमी
डेढ़ सौ करोड़ को पागल बना कर
चूना लगा रहा है

और
एक तुम हो
जिसे आधा घंटा पहले पी गई चाय को भी
पिये का 
सपना जैसा आ रहा है

जाओ
जा कर 
लिखना शुरु करो
फिर किसी की कहानी का 
कबाड़खाना

चाय
अब दूसरी 
नहीं मिलने वाली है
आधे घंटे बाद 
खाना बन जायेगा
खाने की मेज पर आ जाना ।

चित्र साभार: pngimg.com

रविवार, 21 दिसंबर 2014

खुद को ढूँढने के लिये खोना जरूरी है

एक नहीं
कई बार
होता है
आभास
भटकने का

समझ में
भी आता
है बहुत


साफ साफ
दिखता
भी है


जैसे

साफ
निर्मल
पानी में
अपना
अक्स ही
इनकार
करता हुआ
खुद ही का
प्रतिबिम्ब
होने से

बस
थोड़े से
लालच
के कारण
जिसे
स्वीकार
करना
मुश्किल
होता है
और
हमेशा
की तरह
कोशिश
व्यर्थ
चली
जाती है

बेचने की
एक
सत्य को
पता होने
के
बावजूद भी
कि
सत्य कभी
भी नहीं
बिका है

बिकता
हमेशा
झूठ ही
रहा है
और
वो भी
कम कम
नहीं
हमेशा ही
बहुत ऊँचे
दामों में
बिना किसी
बाजार
और
दुकान में
सजे हुऐ

जिसे खरीदते
समय किसी
को भी कभी
थोड़ी सी भी
झिझक
नहीं होती है

सोच और
कलम के
लिये कभी
कहीं कोई
बाजार
ना हुआ है
ना कभी होगा

फिर भी
गुजरते हुऐ
बाजारों के बीच
लटके हुऐ
झूठे इनामों
सम्मानों
दुकानों की
चकाचौंध

और

ठेकेदारों की
निविदाओं के
लिये लगाई
जा रही
बोलियों से
जब भी
कलम लेखन
और
लेखक का ध्यान
भटकता है

थोड़ी देर के
लिये ही सही
सत्य नंगा
हो जाता है

खुद का खुद
के लिये
खुद के ही
सामने

और

रास्ता
दिखना
शुरु हो
जाता है
तेज रोशनी
से चौधिया
के अंधी
हो गई
आँखो
को भी ।


चित्र साभार: www.gograph.com

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

पढ़ना जरूरी नहीं हर खत पढ़ दिया तो पढ़ कर मुँह नहीं बनाने का

ठहर जाना
कलम का
विश्राम
लेखन का
विचार शून्य
हो जाना
लेखक की खुद
की सोच का
संकेत नींद के
खुद ही
सो जाने का
ख्वाब देखने में
ऐसा भी कभी
किसी दिन
मौज में ही सही
कोई सौदा नहीं
नफा नुकासन
उठाने का
जैसे होते होते
किसी बात के
हो जाने का
खबर का
फैलने से पहले
सिकुड़ जाने का
वाकये का
अपनी नजर से
गुजरते गुजरते
आकाश
हो जाने का
कुछ भी किया
जा सकने की
ताकत पैदा
करने की
अपने अंदर
कोशिश करने
की एक पहल
कर लेने की
सोच बना
ले जाने का
मुद्दे खोजने
से अच्छा
मुद्दे पकड़ कर
जमीन पर
बैठ जाने का
पूरा अंगद
हो जाने से
पहले उसके
पैर का चित्र
बना बना कर
हर किसी के
दिमाग में
बैठाने का
हर किसी को
नहीं होता है
तजुर्बा
हर तरह का
‘उलूक’
समझने की
कोशिश में
अपने ही
आसपास की
हवा धूल
मिट्टी पानी
बहुत ही उम्दा
रास्ता है
बिना खबर
किये किसी को
दीवाना हो कर
किसी भी बात पर
बेखबर हो कर
खुद की दीवानगी का
झंडा खुद ही
लहराने का
और ढिंढोरा पीटते
चले जाने का
खाली पड़ी
सालों से
किसी गली में
जा कर
बिना आवाज
के सही
कुछ देर
अपने ही गाल
अपने ही हाथों
से बजाने का ।

चित्र साभार: www.clipartof.com

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

मजाक है

उसके आते ही
सबको इतनी 
शरम आई 
कि सबने 
छोड़ दी 
सिगरेट दारू
गुटखा सुरती
मुझे विश्वास 
नहीं रह 
गया अब 
खुद पर 
मेरे झूठ 
मुझे कब से
लात मार
रहे हैं 
और हंस
रहे हैं 
चिल्ला रहे हैं 
बेवकूफ बेवकूफ
मुझे पता है
जो बात
उस पर
ध्यान देना 
अच्छी बात
नहीं है 
और आपको भी
इस बात  पर 
ज्यादा ध्यान 
नहीं देना चाहिये 
टिप्प्णी करने से 
भी परहेज करें ।

रविवार, 14 दिसंबर 2014

क्या किया जाता है जब सत्य कथाओं की राम नाम हो रही होती है

ज्यादातर कही
जाने वाली
कथायें
सत्य कथायें
ही होती हैं
जिंदगी
पता नहीं
चल पाता है
कब एक बच्चे
से होते होते
जवाँ होती है
समझ में आने
के लिये
बहुत सी बातें
चलते चलते
सीखनी होती है
कुछ कथनी करनी
एक मजबूरी
होती है और
कुछ करनी कथनी
जरूरी होती है
रात किसी दिन
सोते समय
अचानक बाहर
आवाज होती है
जब कुछ
आसामाजिक
तत्वों की
अंधेरे में
खुद ही के
किसी साथी से
मुटभेड़ होती है
समझ में आती
है बात जब तक
शाँति हो
चुकी होती है
बाहर निकल कर
देखने पर
दिखता है
मार खाई हुई
खून से लथपथ
एक जान
आँगन में अपने
पड़ी होती है
कुछ समझ में
नहीं आता है
और फिर पास
के थाने के
थानेदार से
दूरभाष पर
बात होती है
थानेदार को
घटना से ज्यादा
अपने बारे में
बताने की
पड़ी होती है
साथ में
फँला फँला से
उसके बारे में
पूछ लेने की
राय भी होती है
मुँह पर हँसी और
समझ अपनी
रो रही होती है
अपनी पहचान
भी उसको
बताने की
बहुत ज्यादा
खुद को भी
पड़ी होती है
कैसे बताया
जाये उसको
बस उसकी
उधेड़बुन सोच
बुन रही होती है
देश के प्रधानमंत्री
की डेढ़ सौ करोड़
की सूची की तरफ
उसका ध्यान
खींचने के लिये
किसी एक
तरकीब की
जरूरत हो
रही होती है
एक बड़े बन
चुके आदमी
के सामने
एक छोटे आदमी
की छोटी सोच
बस अपने
ही घर में
डरी डरी सी
रो रही होती है ।

चित्र साभार: weeklyvillager.com

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

जमाने को सिखाने की हिम्मत गलती से भी मत कर जाना

ये अपना अपना
खुद का खुद क्या
लिखना लिखाना
कभी कुछ
ऐसा भी लिख
जिसका कहे
कोई जरा
इंपेक्ट फेक्टर
तो बताना
इधर से टीप
उधर से टीप
कभी छोटा सा
कभी लम्बा
सा बना ना
बिना डरे घबराये
दो चार संदर्भ
लिखे के नीचे
से छोटे छोटे
अक्षरों में कुछ
छपवा ले जाना
इधर उस पर
कुछ पैसा बनाना
उधर इस पर
इनाम कुछ
कह कहलवा
कर उठवाना
अपने आप खुद
अपनी सोच से
कुछ लिख लिखा
लेने वालों का
जनता के बीच
मजाक बनवाना
ऐसा भी क्या
एक झंडा उठाना
जिसे फहराने
के लिये
कहना पड़ जाये
हवा से भी
आ जा ना
आ जा ना
समझ नहीं सका
बेवकूफ तू
ना समझ
पायेगा कभी भी
ये जमाना भी है
उसी का जमाना
अपनी कहते
रहते हैं मूरख
‘उलूक’ जैसे
कुछ हमेशा ही
तू उसके नीम
कहे पर चाशनी
लगा कर
हमेशा मीठा
बना बना कर
वाह वाही पाना
हींग लगेगी
ना फिटकरी
ना तेरी जेब से
कभी भी इस में
कुछ है जाना
लगा रह इसका
उस से कहते हुऐ
उसका इस से
कहते चले जा ना ।

चित्र साभार: www.clker.com

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

कभी कर भी लेना चाहिये वो सब कुछ जो नहीं करना होता है अपने खुद के कानूनो में

कुछ देर के
लिये ही सही
अच्छा है
बहुत दूर को नहीं
अपने आस पास
को छोड़
अपने से थोड़ा
कुछ दूर को ही
देखने सुनने
की कोशिश करना
रोज देखते देखते
वही अपने या
कहीं से थोड़ा सा
भी अपने नहीं भी
कुछ गोल कुछ लम्बे
कुछ हसीन और
कुछ रोते चेहरे
यहाँ तक खुद को
भी टाल देना
हो सके तो खुद से
सुबह सवेरे देख लेना
दूर एक पहाड़ को
उस पर कहीं से
उठ रहे धुऐं को
या फिर पहाड़ की
घुमावदार सड़को
पर उतरती चढ़ती
चीटियों के आकार
की गाड़ियों
को ही सही
और दिन भर
खुश हो लेना
बंदरों के उछलने
कूदने में अपने
ही आस पास
नहीं टोकना
झुँझला कर उनको
उखाड़ने देना
खेत पर मेहनत से
अपनी लगाई हुई
फसल को
और शाम होते होते
ध्यान से सुनने
की कोशिश करना
झिंगुरों की तीखी
आवाज के साथ
जुड़े संगीत को
खोजना सियारों की
चिल्लाने में भी
कोई राग
मस्जिद से आ रही
अजान में खोजना
कोई मंत्र ध्वनी
नहीं खोलना रेडियो टी वी
समाचारों के लिये
मना कर देना फेकने को
हाँकर को कुछ दिन
शहर की खबरों से
पटे अखबारों को
अपने आस पास
बहुत अच्छा होता हुआ
या बहुत अच्छा करने वाले
बहुत दिनों तक
अच्छा अच्छा महसूस
कराते रहें और
वही सब अच्छा
अपने दिमाग में
भर भरा कर
धो धुला कर
सोच के नीरमा से
रोज लाकर रख देना
यहाँ सूखने के लिये
धूप में जैसे
भीगे हुऐ कपड़े
किसी दिन वो सब
भी करना या
कर लेने की
कोशिश कर लेना
जो नहीं करना चाहिये
जो नहीं होना चाहिये
और जो नहीं आता हो
कहीं से भी सोच में
किसी भी तरह से
अपने कानूनों को
तोड़ कर देखना
और भुगतना
सजा भी खुद से
खुद को दी गई
देख तो सही कर के
अच्छा होता है
बहुत कभी कभी ।

चित्र साभार: socialtimes.com