दिमाग से लिखना मन की बात लिखना
किताब से लिखना बेबात की बात लिखना
सुबह सवेरे बैठ कर एक रात लिखना
अखबार में छपने छपाने के लिये लिखना
अलग अलग होता है भाई क्यों परेशान होता है
डाक्टर ने नहीं कहा होता है
पढ़ने के लिये वो सब कुछ
जो इस दुनिया में
हर जगह किसी भी दीवार पर
ऐरे गैरे नत्थू खैरे ने
लिखा या लिखवा दिया होता है
पैजामे और टोपी देख कर
लिखने वाले की बात पर क्यों चला जाता है
यहाँ हर कोई
बिना कपड़े का ही आता है
जैसा होता है उसी तरह आता है
अपने हिसाब किताब को देख कर
दुनियाँ को पागल बनाता है
कपड़े
के बिना जो होता है
उसे गूगल का
शब्दकोश क्या कहता है
उससे क्या करना होता है
सीधे सीधे
नंगा कह देना
अच्छा नहीं होता है
दुनियाँ
ऐसे लोगों से ही चल रही है
एक
तू है ‘उलूक’
अपनी बेवकूफियों को
हरे पत्तों से ढकने में लगा रहता है
अखबार में छपे
कबूतरों के मनन चिंतन से
परेशान मत हुआ कर
कबूतर अपने घोंसले में
अपनी ही बीट पर सोता है
जनता
उस की तरह की ही
उस की
वाह वाही में लगी रहती है
जिनको
पता सब होता है
वो उनकी तरह का ही होता है
अल्पसंख्यक
बस एक संख्या है
उसी ने बिल्ली की तरह
खंभा ही तो बस एक नोचना होता है ।