दूर करें
अकेलापन
बहुत
आसानी से
किसी भी
भीड़ में एक
कहीं घुसकर
खो जायें
आओ
एक चोर हो जायें
मुश्किल है
बचाना
सोच को अपनी
बहुत दिनों तक
क्या परेशानी है
आओ
जंगल में
नाचता हुआ
एक मोर हो जायें
कारवाँ
भटकने
लगे हैं रास्ते
पहुचने की
किसने ठानी है
खोने का डर
निकालें दिल से
आओ
निडर होकर
किसी गिरोह
को जोड़ने की
एक डोर हो जायें
सच रखे हैं
सबने अपने
अपनी जेब में
कौन सा
बेईमानी है
बहुमत
की मानें
इतने सारे
एक से हैं
आओ
एक और हो जायें
पाठ्यक्रम
सारे बदल गये हैं
किताबें सब पुरानी हैं
‘उलूक’ की
बकबक में
दिमाग ना लगायें
आओ
किसी की
पाली हुयी
एक ढोर हो जायें।
चित्र साभार: www.shutterstock.com
उसकी बात
करना
सीख क्यों
नहीं लेता है
भीड़ से
थोड़ी सी
नसीहत क्यों
नहीं लेता है
सोचना
बन्द कर के
देख लिया
कर कभी
दिमाग को
थोड़ा आराम
क्यों नही देता है
तेरा मकसद
पूछता है
अगर
उसका झण्डा
झण्डा
नहीं हूँ
कहकर
जवाब क्यों
नहीं देता है
आइना
नहीं होता है
कई लोगों
के घर में
अपने
घर में है
कपड़े उतार
क्यों
नहीं लेता है
साथ में
रहता है
अंधा बन
पूरी आँखे
खोलकर
पूछता है
क्या
लिखता है
बता क्यों
नहीं देता है
शराफत से
नंगा हो
जाता है
भीड़ में भी
एक शरीफ
नंगों की
भीड़ को
अपना पता
पता नहीं
क्यों नहीं
देता है
बहुत कुछ
लिखना है
पता होता है
‘उलूक’
को भी
हर समय
उस के
ही लोग हैं
उसके ही
जैसे हैं
रहने भी
क्यों नहीं
देता है ।
चित्र साभार: www.fineartpixel.com
गुरुआइन को
सुबह से
क्रोध आ रहा है
कह कुछ
नहीं रही है
बस
छोटी छोटी
बातों के बीच
मुँह कुछ लाल
और
कान थोड़ा सा
गुलाल हो
जा रहा है
गुरु के चेले
पौ फटते ही
शुरु हो लिये हैं
कहीं चित्र में
चेला गुरु के
चरणों में झुका
कहीं गुरु चेले की
बलाइयाँ लेता
नजर आ रहा है
चेले गुरु को
भेज रहे हैं
शुभकामनाएं
गुरु मन्द मन्द
मुस्कुरा रहा है
ब्रह्मा विष्णु
महेश ही नहीं
साक्षात परम ब्रह्म
के दर्शन पा लिया
दिखा कर चेला
धन्य हुआ जा रहा है
‘उलूक’ आदतन
अपने पंख लपेटे
सूखे पेड़ के
खोखले ठिये पर
बार बार पंजे
निकाल कर
अपने कान
खुजला रहा है
गुरु चेलों की
संगत में
अभी अभी
सामने सामने
दिखा नाटक
और
तबलेबाजी
का नजारा
उससे
ना उगला
जा रहा है
ना निगला
जा रहा है
कैसे समझाये
गुरुआइन को गुरु
उसे पता है
आज शाम
पूर्णिमा को
ग्रहण लगने
जा रहा है
इतिहास का
पहला वाकया है
चाँद भी
पीले से
लाल होकर
अपना क्रोध
कलियुगी
गुरु के
साथ पूर्णिमा
को जोड़ने
की बात पर
दिखा रहा है
थूक
देना चाहिये
गुरुआइन ने भी
आज अपना क्रोध
सुनकर
गुरु की
पूर्णिमा को
आज ग्रहण
लगने जा रहा है।
चित्र साभार: www.istockphoto.com
बहुत
लिख लिया
एक ही
मुद्दे पर
पूरे महीने भर
इस
सब से
ध्यान हटाते हैं
शेरो शायरी
कविता कहानी
लिखना लिखाना
सीखने सिखाने
की किसी दुकान
तक हो कर
के आते हैं
कई साल
हो गये
बकवास
करते करते
एक ही
तरीके की
कुछ नया
आभासी
सकारात्मक
बनाने
दिखाने
के बाद
फैलाने का भी
जुगाड़ अब
लगाते हैं
घर में
लगने देते हैं आग
घुआँ सिगरेट का
समझ कर पी जाते हैं
बची मिलती है
राख कुछ अगर
इस सब के बाद भी
शरीर
में पोत कर खुद ही
शिव हो जाते हैं
उसके
घर की तरफ
इशारे करते हैं
जाम
इल्जाम के बनाते हैं
नशा हो झूमे शहर
बने एक भीड़ पागल
इस सब के पहले
अपने घर के पैमाने
बोतलों के साथ
किसी मन्दिर की
मूरत के पीछे
ले जाकर छिपाते हैं
बरसात
का मौसम है
बादलों में चल रहे
इश्क मोहब्बत की
खबर एक जलाते हैं
कहीं से भी
निकल कर आये
कोई नोचने बादलों को
पतली गली
से निकल कर कहीं
किनारे
पर बैठ नदी के
चाय पीते हैं
और पकौड़े खाते हैं
ये कारवाँ
वो नहीं रहा ‘उलूक’
जिसे रास्ते खुद
सजदे के लिये ले जाते हैं
मन्दिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च की
बातें पुरानी हो गयी हैं
चल किसी
आदमी के पैरों में
सबके सर झुकवाते हैं ।
चित्र साभार: www.thecareermuse.co.in
(21/07/2018 की पोस्ट:‘शरीफों की बस्ती है कुछ नहीं होना है एक नंगे चने की बगावत से’ की अगली कड़ी है ये पोस्ट। इसका देश और देशप्रेम से कुछ लेना देना नहीं है। उलूक की अपनी दुकान की खबर है जहाँ वो भी कुछ सरकारी बेचता है )
पहले से
पता था
कुछ नया
नहीं होना था
खाली टूटी
मेज कुर्सियाँ
सरकार की
दुकान में
सरकारी
हिसाब किताब
जैसा ही
कुछ होना था
सरकारी
दुकान थी
सरकार के
दुकानदार थे
सरकारी
सामान था
किसी के
अपने घर का
कौन सा
नुकसान
होना था
दुकानदार
को भी
आदेशानुसार
कुछ देर
घड़ियाली
ही तो रोना था
दुकान
फिर से
खुलने की
खुशखबरी
आनी थी
दो दिन बस
बंद कर रहे हैं
की खबर
फैलानी थी
दुकान
बंद हो रही है
दुकानदारों की
फैलायी खबर थी
अखबार वाले
भी आये थे
अच्छी पकी
पकायी खबर थी
दस्तखत की
जरूरत नहीं थी
दुकान वालों
की लगायी
दुकान की
ही मोहर थी
सरकारी
दुकान के अन्दर
खोली गयी
व्यक्तिगत
अपनी अपनी
दुकान थी
बन्द होने की
खबर छपने से
दुकानदारों की
निकल रही जान थी
तनखा
सरकारी थी
काम सरकारी था
समय सरकारी
के बीच कुछ
अपना निकाल
ले जाने की
मारामारी थी
‘उलूक’
देख रहा था
उल्लू का पट्ठा
उसे भी देखने
और देखने
के बाद लिखने
की बीमारी थी
बधाई थी
मिठाई थी
शरीफों की
बाँछे फिर से
खिल आयी थी
दुकान की
ऐसी की तैसी
पीछे के
दरवाजों में
बहुत जान थी ।
चित्र साभार: www.gograph.com
शरीफों
ने तोड़ी
कुर्सियाँ
शरीफों की
लात
मार कर
शराफत
के साथ
मेज फेंकी
शराफत से
दी
भेंट में
कुछ
गालियाँ
शरीफों
की ही दी
इजाजत से
काँच
की बोतलें
रंगीन पानी
खुश्बू
शराफत की
और मुँह
शरीफों के
साकी
छिड़क
रही थी
अल सुबह से
वीरों पर
थोड़ी सी बस
कुछ नफासत से
शरीफों ने
इजहार किया
शराफत का
शरीफों
के सामने
शरीफ बैठे
शराफत के साथ
मिले बातें किये
और चल दिये
शराफत से
जश्ने शराफत
घर में हो रहा था
कुछ शरीफों के ही
ऐसा कहना
शराफत नहीं
सम्मानित
देश भर के
भी दिखा
रहे थे
शराफत
शरीफ
बने थे
महारथी
शराफत की
महारत से
किताबें
शराफत की
शराफत के
स्कूलों की
बातें
शरीफों की
पढ़ने पढ़ाने की
इजाजत
नहीं है
बकने की
बकाने की
'उलूक’
शरीफों
की बस्ती है
कुछ
नहीं होना है
एक नंगे
चने की
बगावत से।
चित्र साभार: forum.wordreference.com
दो और दो
जोड़ कर
चार ही तो
पढ़ा रहा है
किसलिये रोता है
दो में एक
इस बरस
जोड़ा है उसने
एक अगले बरस
कभी जोड़ देगा
दो और दो
चार ही सुना है
ऐसे भी होता है
एक समझाता है
और चार जब
समझ लेते हैं
किसलिये
इस समझने के
खेल में खोता है
अखबार की
खबर पढ़ लिया कर
सुबह के अखबार में
अखबार वाले
का भी जोड़ा हुआ
हिसाब में जोड़ होता है
पेड़
गिनने की कहानी
सुना रहा है कोई
ध्यान से सुना कर
बीज बोने के लिये
नहीं कहता है
पेड़ भी
उसके होते हैं
खेत भी
उसके ही होते हैं
हर साल
इस महीने
यहाँ पर यही
गिनने का
तमाशा होता है
एक भीड़ रंग कर
खड़ी हो रही है
एक रंग से
इस सब के बीच
किसलिये
उछलता है
खुश होता है
इंद्रधनुष
बनाने के लिये
नहीं होते हैं
कुछ रंगों के
उगने का
साल भर में
यही मौका होता है
एक नहीं है
कई हैं
खीचने वाले
दीवारों पर
अपनी अपनी
लकीरें
लकीरें खीचने
वाला ही एक
फकीर नहीं होता है
उसने
फिर से दिखानी है
अपनी वही औकात
जानता है
कुछ भी कर देने से
कभी भी यहाँ कुछ
नहीं होना होता है
मत उलझा
कर ‘उलूक’
भीड़ को
चलाने वाले
ऐसे बाजीगर से
जो मौका मिलते ही
कील ठोक देता है
अब तो समझ ले
बाजीगरी बेवकूफ
किसी किसी
आदमी की
सोच में
हमेशा ही एक
हथौढ़ा होता है ।
चित्र साभार: cliparts.co
जो भी
आप समझायेंगे
हजूर
हम समझा देंगे
किस
किस को
समझाना है
क्या क्या
और
कैसे कैसे
बताना है
हमें
लिख कर
बता देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
मत
समझियेगा
हम भी
समझ
ले रहे हैंं
वो सब
जो
आप
लोगों को
समझाने
के लिये
हमें समझा रहे हैं
हम
आप के
कहे को
जैसे का तैसा
इधर से उधर
पहुँचा देंगे हजूर
हम समझा देंगे
खाली
किस लिये
अपना दिमाग
लगाना है
आप के
दिमाग में जब
सब कुछ सारा
बहुत सारा
तेज धार
का पैमाना है
इशारा
करिये तो सही
पानी में ही
आग लगा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
अखबार में
आने वाली है
खबर पक कर
रात भर में
नमक
मसालों को
ही बदलवा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
नहीं होगा
नहीं होगा
छपवा कर
रखवा भी
दिया होगा
कहाँ तक
रखवायेगा कोई
और
ऊपर से
जोर की डाँठ
पड़वा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
चिंता
जरा सा
भी मत
कीजियेगा
ज्यादा
से ज्यादा
कुछ नहीं होगा
टेंट
लगवा कर
दो चार दिन
एक भीड़
को बैठा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
‘उलूक’
तू भी
आँख बन्द कर
कान में उँगली
डाल कर बैठा रह
किसी
दिन आकर
तुझे भी
दो चार दिन
देश
चलाने की
किताब के
दो पन्ने
तेरे शहर के
पढ़ा देंगे
हजूर
हम समझा देंगें।
चित्र साभार: http://www.newindianexpress.com
पता नहीं
क्या क्या
उल्टा सीधा
देख सुन कर
आ जा रहा है
चुपचाप
बैठ ले रहा था
कुछ दिन के लिये
बीच बीच में इधर
फिर से
जरा सा में
सनक जा रहा है
कोई
क्यों नहीं
समझा रहा है
बेटी बेटी
नहीं कही
जा सकती है
जब उम्र
पचास पचपन
के पार
हो जाती है
बेटी की
बेटियाँ पैदा
हो जाती हैं
उम्र के
किसी मोड़
पर जा कर
माँग भी
उजड़ जाती है
सुगम के
सपने
देखते देखते
दुर्गम की
कठिन हवा धूप
में सूख जाती है
ऐसी महिला को
कैसे सोच रहा है
लक्ष्मीबाई
खुद को मान
लेने का हक
बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ
के नारों के
जमाने में
फालतू में
यूँ ही मिल
जा रहा है
अखबार
रेडियो दूरदर्शन
सब देख रहे हैं
सब सही हो रहा है
इनमें से कोई भी
उसके लिये
रोने नहीं जा रहा है
बेटी
कहलवाने
का भाव उसके
सनकी हो गये
दिमाग में से
नहीं निकल
पा रहा है
उसकी समस्या है
तू किसलिये
फनफना रहा है
अगर कोई
बेटी
धमका रहा है
ठन्ड रख
उसके सनकने
का दण्ड भी उसे
निलम्बित कर के
दिया जा रहा है
बहुत सही
हो रहा है
‘उलूक’
तेरे सनकने
के लिये रोज
एक ना एक
बखेड़ा
जरूरी किताब
के जरूरी पाठ
का एक जरूरी
दोहा हो जा रहा है।
चित्र साभार: https://drawingismagic.com
आज
अचानक
गली के
मोड़ पर
तेजी से
भागता हुआ
कबीर मिला था
एक नयी
बहुत मंहगी
चमकीली
साफ सुथरी
चादर से
ढका हुआ
उड़ता हुआ
जैसे एक
बुलबुला
बन रहा था
पूछ बैठा
था कोई
भाई तू
लगभग
पाँच सौ
साल से
यूँ ही
पड़ा रहा था
अब
किस लिये
मजार
छोड़ कर
भाग आया
एक नयी
चादर में
उलझा हुआ
अपना
एक पाँव
बाहर
निकाल
कर उसने
चादर को
किनारे लगाया
जोर से
चिल्लाया
समझा करो
कबीर था
तब तक
जब तक
किसी को
मेरे जुलाहे
होने का
पता नहीं था
पाँच सौ
साल में
बदल जाती
है कायनात तक
मैं तो
उस जमाने
के सीधे साधे
आदमियों के
बीच का था
बस एक
फकीर था
हिंन्दू रहा था
ना मुसलमान रहा था
जुलाहे होने का
थोड़ा सा बस
अभिमान रहा था
दोहे
कह बैठा था
उस समय
के हिसाब से
पर आज
उन सब में जैसे
सारी जिन्दगी का
फलसफाऐ शैतान था
किसे पता था
पाँच सौ साल बाद
रजिया गुँडों के
बीच फंस जायेगी
कबीर के दोहे
किताबों से
दब जायेंगे
ईवीएम
की मशीन
कबीर के
भजन गायेगी
संगीत सुनायेगी
‘उलूक’
कब सुधरेगा
पता नहीं
उसकी बकवास
करने की आदत
भी नहीं जायेगी
कबीर ने
कुछ कहा था
समझना जरूरी
भी नहीं था
कल शायद
सूर की भी बारी
कहीं ना कहीं
आ जायेगी
तुलसी
फंसा हुआ है
मन्दिर की
सोच रहा है
पता नहीं
कौन सी कब्र
किस समय
और किसलिये
खोली जायेगी
बकवास है
शहर की
नहीं है
विनती है आपसे
मत कह देना
कबीर की आत्मा
मेरे घर में रुकी थी
कल चली जायेगी।
चित्र साभार: http://www.pngnames.com
छोड़ें
शराफतें
करें
शरारतें
कुछ
खुराफातें
अपनी
नहीं भी हों
कोई बात नहीं
पर गिनें
सामने वाले की
बड़ी या छोटी
जो भी दिख जाये
सामने से
वो वाली आतें
रोकें
लटक कर
आगे बढ़ रही
घड़ी की सूईयों पर
समय
को खींचें
पीछे ले जायें
बायीं नाक से
खींच कर हवा
आहिस्ता
दायीं नाक से
बाहर का रास्ता
बना कर दिखायें
उल्टा पीछे को
चलने का
रास्ता सिखायेंं
बहुत
जरूरी है
समय को भी
सीख लेना
इस जमाने में
करना प्राणायाम
उसके भी
निकाले
जा सकते हैं
कभी भी
कैसे भी
कहीं भी
प्राण
लिखाकर
थाने में
चोर रहा था
बेशरम
आने वाले
समय के
पेड़ों से
समय से
पहले ही
पके हुऐ
लाल पीले
हरे आम
पीछे चलें
उल्टे पैरों से
मुँह आगे कर
कहीं भी
जाकर गिनें
गिरे हुऐ मरे हुऐ
बटेर और तीतर
शिकारी को
बिल्कुल भी
नहीं पकड़ना
है ठानकर
गिनती बढ़ायें
सौ के दस
हजार दिखायें
उस
समय के चित्र
इस समय
के अखबार
में छपवायें
ढोल नगाड़े
बजवायें
तीतर बटेरों
की आत्मायें
आकर
बता गयी हैं
शिकारी
के नाम पते
हरे पेड़ों के
झड़ गये
पत्तों पत्तों
पर लिखवा
लिखवा
कर बटवायें
मुनादी करवायें
पिछ्ली पीढ़ी
के भूत पिशाचों
को फाँसी की
सजा दिलवायें
आओ
‘उलूक’
संकल्प करें
प्राणवान
कुछ भी
समझ
में आये
उसका श्राद्ध
गया जाकर
प्राण
निकलवाने
से पहले
करवाने
का आदेश
करवायें
आओ
भूत खोद
कर लायें
भविष्य की
बात आये
उससे पहले
उसकी कब्र
वर्तमान में
ही बनाकर
मंगलगीत
मिलकर गायें।
चित्र साभार: https://www.fotosearch.com/
तपती रेत है
बहुत तेज धूप है
हैरान नहीं होना है
रोज की परेशानी है
यहाँ की रेत की
बात यहीं तक रखनी है
किसी को नहीं बतानी है
बस हरी दूब लानी है
बहुत जगह उगी है
बहुत सारी उगी है
हरी हरी दूब है
पानी नहीं होने की
बात ही बेमानी है
बहुत तेज जोरों से
प्यास ही तो लगी है
धैर्य रख
ज्ञानी हैं विज्ञानी हैं
बस यहीं कहीं हैं
सच बात है
नहीं कोई कहानी है
करना कुछ नहीं है
सपने उगाने तो हैं
पर बोना कुछ नहीं हैं
बीज ही नहीं हैं
देखनी रेत है
दूब बस सोचनी है
कौन सा उगानी है
पानी नहीं है
पीना कुछ नहीं है
प्यास
बस एक सोच है
बातें की बहती हुई
नदी एक दिखानी है
एक साफ
चादर ही तो लानी है
गरम रेत
के ऊपर से बिछानी है
दूब हरी हरी
दूर से कहीं से भी
लाकर फैलानी है
बोनी नहीं है
उगानी नहीं है
बस एक दिन
की बात ही है
कुछ नहीं होना है
सूखनी है सुखानी है
गाय भैंस बकरी हैं
कम ज्यादा
कुछ भी मिले
बिकनी बिकानी है
कुछ खड़े होना है
कुछ देर सोना है
इसको उसको सबको
एक साथ एक बार
एक ही बात बतानी है
चोंच नीचे लानी है
पूँछ ऊपर उठानी है
‘उलूक’
कुछ भी कह देने की
तेरी आदत पुरानी है
भीड़ नहीं कहते हैं
बहुत सारे लोगों को
दूर तलक दूर दूर
कतारें खूबसूरत
सारी की सारी
बहुत सारी
बस आज
और आज
ऐसे ही
बनानी हैं।
चित्र साभार: www.123rf.com
झंडों को
हो रही
इधर की
बैचेनी
कुछ कुछ
समझ में
आ रही है
शहर में
आज एक
नयी भीड़
एक नये
रंग के
एक नये
झंडे के नीचे
एक नया
झंडा गीत
गा रही है
पुराने
झंडों के
आशीर्वादों
से भर चुके
झंडा
बरदारों
को नींद से
लग रहा है
जैसे
नयी हवा
जगा रही है
कुछ उस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर
कुछ इस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर
कुछ बेरंगे
हो चुके रंगों
में नया रंग
भरने
जा रही है
एक नये रंग
के झंडे का
पुराने झंडों
में से ही
मिल जुल कर
पैदा हो जाने
की खबर
कल के
अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
सुबह सुबह
आने जा रही है
अवसरवादियों
की बाँछें
फिर से एक बार
और जोर लगा कर
मुस्कुरा रही हैं
इस झंडे को
उठाने वालों को
उस झंडे को
उठाने वालों से
मिलजुल कर
रहने का अभ्यास
नये झंडे तले
करा रही हैं
लाल गेरुआ
नीला पीला
हरा बैगनी
की बात
करने की
रुत जा रही है
मेला नजदीक है
सुनाई दे रहा है
झंडों की
नई दुकाने
सजाने के लिये
फड़ों
की लाईन
लगायी
जा रही है
झंडों के
ठेकेदारों की
नयी योजना से
बेपेंदे के लौटों
के लुढ़कने की
आदत सुना है
बदलने जा रही है
झंडे खुश हैं
झंडा बरदार
भी खुश हैं
धीरे धीरे
हौले हौले
टोपियाँ
इस सर से
उस सर
की ओर
खिसकायी
जा रही हैं
‘उलूक’
तू दो हजार
में उन्नीस
जोड़ या
इक्कीस घटा
तेरी
बकवास
करने की
आदत का
सरकार
पेटेंट कराने
फिर भी
नहीं जा
रही है।
चित्र साभार: www.dreamstime.com
खोल
जरूरी है
साफ
सफेद झक्क
फटी हुई
रजाई को
ढकने के लिये
सारे
सफेद खोल
लटके हुऐ
करीने से
चमचमाती
धूप में
सूखते हुऐ
खुशनसीब
खुशफहमी
की रूईयाँ
उधड़ी
दरारों से
झाँकती हुई
घर के अन्दर
अंधेरे की
खिड़कियों को
समझाती हुई
परहेज करना
रोशनी से
फटी
रजाई ओढ़ते
आदमी का
बाहर
झाँकता चेहरा
साँस लेने के लिये
साफ हवा
भी जरूरी है
लेकिन खोल
ज्यादा जरूरी है
और
जरूरी है
उसका
धुला होना
साफ होना
झक्कास रहना
चमकना
धूप में
फिर स्त्री
किया जाना
फटी हुयी
रजाइयाँ
और
आदत
में शामिल
बाहर
को लटकते
रूई के फाहे
खोल
मजबूरी
नहीं होते हैं
किसी के लिये
एक
पाठ्यक्रम
हो जाते हैं
बिना
खोल के
उधड़ा
हुआ आदमी
बेकार है
बेमानी है
आइये
सजायें
ला ला कर
सफेद
झक्कास
खोलों को
अलग अलग
जगह के
अलग अलग
आदमी के
आदमी के
लिये ही
बनाने
और
दिखाने के
लिये इंद्रधनुष
सात रंगों
के नशे में
चूर के लिये
नशे की सोच
भी पाप है
और
प्रायश्चित
बस
एक ही है
साफ
सफेद
धुले हुऐ
धूप में
लाईन
लगा कर
सुखाये
गये खोल
फटी हुई
रजाई
कहीं भी
नजर नहीं
आनी चाहिये
'उलूक'
किसे
जरूरत है
आँखें
अच्छा देखें
कान
अच्छा सुनें
अच्छे
की आशायें
खोल में
समाहित
होती हैं
यही
फलसफा है
बकवास
करते चले
जाने का।
चित्र साभार: www.amazon.com
बहुत
दिन हो गये
चुपचाप बैठे
चलिये
बैठे ठाले
के
जमा किये
का
कुछ बाहर
निकालें
कथा
करा लें
ठीक नहीं
होता है
देखा भाला
सुना समझा
सम्भाल लेना
पोटली में
कहीं अंदर
अपनी
भाषा में
फिर से
कुछ
जुगाली
कर डालें
आईये
बिना तीरों
की
कमान से
कुछ तीखे
तीर निकालें
मरना
मारना
किस को
करना है
कुछ
हल्ला गुल्ला
हल्ले गुल्ले
के लिये
कर डालें
दर्ज करें
उपस्थिति
समाज में
सामाजिक
होने का दावा
मुट्ठी बन्द कर
हवा में उछालें
बैठे बैठे
इधर उधर
बिखरे
कंकड़ पत्थर
जमा करें
कुछ फैलायें
कुछ उछालें
कुछ लाईन
में लगा कर
रास्ते दिखाने
भर के लिये
दीवारों में
चिपका कर
पोस्टर बाजी
ही कर डालें
आईये
चीटियों के
काटने के
निशानों की
कुछ फोटो
खिंचवालें
कुछ
फाईल में
दबा लें
कुछ
धो पोछ कर
अखबार
नवीसों
के घर जा
कर दे डालें
कुछ तो करें
कभी ही सही
थोड़ी देर
के लिये
ही सही
कहीं भी
एक लाईन
लगवालें
आईये
कुछ
कबूतरों को
कुछ
कौओं को
कुछ
चूहों को
कुछ
शेरों को
जंगल गीत
गाने
का न्योता
शहर के
पाँँच सितारा
में दे डालें
आईये
अन्धे बन कर
कुछ आइने
ही सही
आँख वालों
को बेच डालें
कुछ बदलें
कुछ बदलने
का आह्वाहन
बस कर डालें
कुछ
श्रँगार रस
विधवाओं के
श्रँगार करने
के लिये
रच डालें
आईये रूप बदलें
बहुरूपियों
को ललकारें
शब्दों की
निकाल कर
कुछ कटारें
सफेद
पृष्ठभूमि पर
काले खून से
होली
काली सफेद
ही सही मनालें
आईये
नासमझ
‘उलूक’ को
कुछ
पढ़ालें
कुछ
समझालें
ढोंगियों
के बीच
रहकर
लिलार
पढ़ने
की आदत
बहुत हो गया
अब तो
डाल ही डाले
‘आम’
को ‘राम’
और
‘राम’ को
‘आम’
समझाना
सीखे
जगह जगह
हर जगह
‘उल्लू’ के
मन्दिर
ढलवा ले
‘आमकथा’
लिखवाले
कथावाचकों
को तैयार करे
अपनी पूजा
खुद करने
की आदत
खुद भी डाले
और भी
जिस जिस
से करवा
सके
करवाले ।
चित्र साभार: picclick.com
सारे
होशियार
होशियारों
में शामिल
होते जा रहे हैं
सारे
होशियार
होशियारों
के लिये
होशियारी
के साथ
होशियारी
के गीत
गा रहे हैं
बचे हुओं
को महसूस
करा रहे हैं
उनका हो
खो जाना
और सियार
हो जाना
सियार सारे
मिलकर भी
मातम नहीं
मना पा रहे हैं
बहुत
नाइन्साफी है
सोचना
ठीक नहीं है
इन्साफ
करने वाले
लगे हुऐ तो हैं
अपने तराजू के
पलड़े धुलवा कर
जमी हुयी धूल
मिट्टी उड़ा रहे हैं
बेवकूफों को
साफ समझ
में आने लगा है
अपना मन भर
बेवकूफ हो जाना
पता नहीं
फिर भी क्यों
चारों तरफ से
हो रहे होशियारों
के हल्ले गुल्ले में से
होशियारी निकाल
कर होशियार
हो लेने के
मंसूबे बना रहे हैं
होशियारों को भी
समझ में आ रही है
अपनी होशियारी
होशियारी
के महलों में
पहुँच लेने के
होशियार पुल
बना रहे हैं
घर की कहानी
घर में समझ
रहे हैं अपने अपने
सारे
बेवकूफ
दूरदर्शन में
चल रही
होशियारी की
बहसों को
सुन सुन कर
होशियारी
पका पका
कर खा रहे हैं
होशियारी
गली मुहल्ले
गाँव शहर में
फैलती जा रही है
बेवकूफों के
जीने मरने के
लाले पड़ने के
दिन आ रहे हैं
‘उलूक’ बैचेन है
गणित देख कर
होशियार की
होशियारी का
उसे
बेवकूफों के
होशियारों में
शामिल होकर
उजड़ने के दिन
बहुत नजदीक
नजर आ रहे हैं ।
चित्र साभार: zenzmurfy.deviantart.com
होता है
एक नहीं
कई बार
होता है
कुछ पर
लिखने
के लिये
कुछ भी
नहीं होता है
तो मत लिख
लिखने की
बीमारी का
इलाज सुना है
हकीम
लुक मान
के पास भी
नहीं होता है
किस ने
कहाँ लिखा है
लिखना
इतना भी
जरूरी होता है
पीछे
का लिखा
पीछे
चला गया
होता है
आगे देख
लिया कर
उधर
बहुत कुछ
होने वाला
होता है
सावन
पर ही
लिख दे कुछ
हर साल
आता है
इस बार
नहीं आयेगा
सोचना ही
नहीं होता है
सावन से
पहले अंधा
हो लेने से
सब कुछ
पहले ही
हरा हो जाये
ऐसा भी
नहीं होता है
अपनी गाय
अपनी होती है
गोबर
कोई उठा ले जाये
जरूरत के अनुसार
ही उठाना होता है
मत का दान
दान करने तक
ही छुपाना होता है
उसके बाद
पागलों के
उन्माद का मेला
हर जगह होता है
पढ़ा होता है
या नहीं
पढ़ा होता है
अनपढ़ के
फैसलों पर
यू पी एस सी
तक टिका होता है
यू जी सी
के फैसले
इण्टर पास
को ले ले ने का
बहुत बड़ा
हौसला होता है
शेर लिखने
लिखाने की
कक्षा के
मास्टर के
पास हड़काने
का लाइसेंस
होता है
‘उलूक’
की बकवास
विद्वानों
के बीच
फंस जाती
है हमेशा
बहुत
दर्द होता है
डूब मरने का
बस हौसला
नहीं होता है ।
चित्र साभार: mariafresa.ne
रोज
अपना ही
मत गोड़
कभी
उसके
लिये भी
लगा लिया
कर दौड़
इंतजार
सबको है
किसका है
किसे
बताना है
रहने भी दे
छोड़
किस लिये
करता है
इजहार
कुछ
बदलने के
नहीं हैं
यहाँ आसार
लिख
और
लिख कर
हवा में उड़ा
धुआँ देख
खुश हो
मन
मत मार
गुलाब ही
गुलाब हैं
सारे फूल हैं
सब
लिख रहें हैं
सब ही
सुरखाब हैं
कलम घिस्सी
काली सफेद
रहने दे
मत कर
रंगों के
जमाने हैं
रंग ही बस
अब आबाद हैं
ख्वाब देख
सुबह देख
दोपहर में देख
रात में देख
संगीत मान ले
मक्खियों
की भिन भिन
कौन से
पूरे होने हैं
कौन से
अधूरे
रहने हैं
दिखाने
वाले पर
छोड़ दे
चुनाव के
दिन गिन
बेवफाई कर
जिंदा रहेगा
घर में रहेगा
खबर में रहेगा
वफा करेगा
वफादार रहेगा
कोई
कुत्ता कहेगा
बेमौत मरेगा
नशे में लिख
नशा लिख
बस लिखे में
मत लड़खड़ा
'उलूक'
लिखे
लिखाये से
कौन
सा पता
चलना है
किसी के
बारे में
कौन है
क्या है
कितना है
खड़खड़ा।
चित्र साभार www.canstockphoto.com
सब कुछ
एक साथ
नहीं दौड़ता है
टाँगें
कलम हो जायें
बहुत कम होता है
वजूका
खेत के बीच में
भी हो सकता है
कहीं किनारे पर
बस यूँ ही खड़ा
भी किया होता है
कहने लिखने को
रोज हर समय
कुछ ना कुछ
कहीं किसी
कोने में
जरूर होता है
लिखे हुऐ
सारे में से
जान बूझ कर
नहीं लिखा गया
कहीं ना कहीं
किसी पंक्ति
के बीच से
झाँक रहा होता है
समुन्दर
लिख लेने
के बाद
नदी लिखने
का मन
किसी का
होता होगा
पता कहाँ
चलता है
कलम की
पुरानी
स्याही को
नाले के पास
लोटे में धोना
और फिर
चटक धूप में
सुखा कर
नयी स्याही
भर लेना
एक पुराना
मुहावरा
हो चुका
होता है
नये मुल्ले
और
प्याज पर
लिखने से
दंगा भड़कने
का अंदेशा
हो रहा
होता है
रोज के
रोजनामचे
को लिखने
वाले ‘उलूक’
का दिल
साप्ताहिक
हो लेने
पर भी
बाग बाग
हो रहा
होता है
लिखना
लिखाना
और
उस पर
टिप्पणी
पाने की
लालसा पर
हमेशा
की तरह
नये सिपाही
का बंदूक
तानने पर
अपनी
पुरानी
जंक लगी
बन्दूक से
खुद का
फिर से
सामना
हो रहा
होता है
अपना लिखना
अपने लिखे को
अपना पढ़ लेना
समझ में आ जाना
सालों साल में
पुराने प्रश्न से
जैसे नया
सामना हो
रहा होता है ।
बिल्लियों के
अखबार में
बिल्लियों ने
फिर छ्पवाया
सुबह का
अखबार
रोज की तरह
आज भी
सुबह सुबह
उसी तरह से
शर्माता हुआ
जबर्दस्ती
घर के दरवाजे से
कूदता फाँदता
हुआ ही आया
खबर
शहर के कुछ
हिसाब की थी
कुछ किताब की थी
शरम लिहाज की थी
शहर के पन्ने में ही
बस दिखायी गयी थी
चूहों की पढ़ाई
को लेकर आ रही
परेशानियों की बात
बिल्लियों के
अखबार नबीस के द्वारा
बहुत शराफत के साथ
रात भर पका कर
मसाले मिर्च डाले बिना
कम नमक के साथ
बिना काँटे छुरी के
सजाई गयी थी
मुद्दा
दूध के बंटवारे
को लेकर हो रहे
फसाद का नहीं है
खबर में
समझाया गया था
बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था
सफेद
चूहों को अलग
और
काले चूहों को
कुछ और अलग
बताया गया था
खबर जब
कई दिनों से
सकारात्मक सोच
बेचने वालों की
छपायी जा रही थी
पता नहीं बीच में
नकारात्मक उर्जा
को किसलिये
ला कर
फैलाया जा रहा था
बात
चूहों के
शिकार की
जब थी ही नहीं
बेकार में
दूध के बटवारे
को लेकर पता नहीं
किस बात का
हल्ला
मचवाया जा रहा था
चूहे चूहों को गिन कर
पूरी गिनती के साथ
बिल से निकल कर
रोज की तरह वापस
अपने ही बिल में
घुस जा रहे थे
दूध और
मलाई के निशान
बिल्लियों की मूँछों
में जब आने ही
नहीं दिये जा रहे थे
बिल्लियों के
साफ सुथरे धंधों को
किसलिये
इतना बदनाम
करवाया जा रहा था
ईमानदारी की
गलतफहमियाँ
पाला ‘उलूक’
बेईमानी के
लफड़े में
अपने हिस्से का
गणित लगाता हुआ
रोज की तरह
चूहे बिल्ली के
खेल की खबर
खबरची
अखबार की गंगा
और डुबकी
सोच कर
हर हर गंगे
मंत्र के जाप के
एक हजार आठ
पूरे करने का
हिसाब लगा रहा था।
चित्र साभार: www.dreamstime.com
लिखना
पड़ जाता है
कभी मजबूरी में
इस डर से
कि कल शायद
देर हो जाये
भूला जाये
बात निकल कर
किसी किनारे
से सोच के
फिसल जाये
जरूरी
हो जाता है
लिखना नौटंकी को
इससे पहले
कि परदा गिर जाये
ताली पीटती हुई
जमा की गयी भीड़
जेब में हाथ डाले
अपने अपने घर
को निकल जाये
कितना
शातिर होता है
एक शातिर
शातिराना
अन्दाज ही
जिसका सारे
जमाने के लिये
शराफत का
एक पैमाना हो जाये
चल ‘उलूक’
छोड़ दे लिखना
देख कर अपने
आस पास की
नौटंकियों को
अपने घर की
सबसे
अच्छा होता है
सब कुछ पर
आँख कान
नाक बंद कर
ऊपर कहीं दूर
अंतरिक्ष में बैठ कर
वहीं से धरती के
गोल और नीले
होने के सपने को
धरती वालों को
जोर जोर से
आवाज लगा लगा
कर बेचा जाये।
चित्र साभार: www.kisspng.com