उलूक टाइम्स

रविवार, 11 दिसंबर 2011

बूढ़े के भाग से छींका टूटा

कल की कहानी 
आज
चौबीस घंटे 
पुरानी हो गयी

पड़ोसन
जो 
कल 
सिर्फ मम्मी थी
आज
नानी हो गयी

अखबार में थे 
कई समाचार
कुछ गंभीर कुछ चटपटे
और
कुछ रसीले मसालेदार 

बावरे मियां
बिना चश्मे के हो रहे थे रंगीले

जो
साठ में
चले जाने 
वाले थे
और
इसीलिये हो 
रहे थे ढीले

कल अचानक
हुवा उन सब में 
उर्जा का संचार

हो ही गयी पैंसठ 
सुन कर
बिस्तरे से उड़
 पड़े सारे बीमार 

नींद में 
जैसे ही पत्नी ने सुनाया
फ्रंट पेज 
का समाचार

आज ऐसे सारे  सैनिक 
लौट के आने लगे लगातार 

छुट्टियां
करवा दी 
सब ने सारी कैंसिल
और
सारे के सारे
बिना घंटी सुने 
कक्षाओं मे जाने लगे
वादन पूरा होने के बाद भी
अब तक 
बाहर निकलने को
नहीं हैं तैयार।

चित्र साभार: 
https://www.gograph.com

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

अन्नाभाई अविनाश जी

अविनाश वाचस्पति

कभी थे मुन्नाभाई

अन्ना
का हुवा जब
अवतरण देव रुप सा

चिपका
लिया इन्होने
भी
अन्नाभाई

और
दिया मुन्नाभाई
को
विश्राम का आदेश

अभी तक
मुलाकात
तो हुवी नहीं
पर होंगे
एक अदद आदमी ही

ऎसा महसूस
होता
सा रहता है
हमेशा

बड़े अजब गजब
से
करतब दिखाते हैं

शब्दों के
कबूतर
बना
यहां से वहां
हमेशा उड़ाते हैं

और
हम पकड़ने
के 
लिये
जाल भी बिछा दें
तो भी नहीं
पकड़
पाते हैं

जब भी करी
कोशिश
अपने को ही
शब्दों के मायाजाल
से घिरा पाते हैं

ब्लागिंग
का रोग
बहुत फैलाया है

थोड़ा सा वायरस
इधर भी आया है

इनको
तो नींद भी
कहाँ आती है

ये तो सोते हैं नहीं
हमें सपने में डराते हैं

इनके ब्लागों में
कितना माल समाया है
हम तो चटके लगाने में
ही
भटक जाते हैं

इनके उपर लिखने
के लिये
बहुत सामान
हो गया है जमा

अब जरूरत है
एक
बड़ी आस की
और
एक अदद राम के
तुलसीदास
की

देखिये
कब तक
ढूँढ कर ला पाते हैं।

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

भूखे के लिये सेमिनार

मैं जानता हूँ
बहुत दिनो से
उसकी जरूरत
भूख से बिलबिलाती
आंतो का हाल
जो उसके मुंह
पर साफ नजर
आता है और
मुझे ये भी
मालूम है
कि केवल एक
रोटी की जरूरत
भर से उसके
चेहरे पर
लाली भरपूर
आने वाली है
मैं खुश हूँ
तब से
जब से
सुना है
मैंने
बहुत जल्दी
ही होने
वाला है
इसका समाधान
शिक्षाविदों
कृषि विशेषज्ञों
पर्यावरण विशेषज्ञों
के एक
विशालकाय
सम्मेलन में।

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

सौदागर

दूसरों के हिस्से की
धूप और चांदनी का
सौदा करने वालों को
इस बात से क्या
फरक पड़ता है कि
उनके उजाले में कोई
बरकत नहीं होने
वाली इस बात से
इतना भरोसा है
उनको अपने आप पर
कि वो रोक लेंगे
सावन की बूदों को
उसको भिगाने से
पहले कभी भी
हवा को रोकने का
दम भी रखते हैं
हमेशा से अपने पास
सांसे गिनने के
कारोबार से
सुना है बहुत
नफे में रहते हैं
पर जिसके हिस्से
की धूप चांदनी
सावन और सांसों
पर नजर रखते है वो
उसने कब परवाह
की ऎसे नादानों की
और फटेहाली
पर भी जो
मुस्कुराहट उसके
चेहरे पै आती है
उनको कहां
बता पाती है
कि ये सब
उन्ही ने दे
दिया उसको
भूल से।

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

गौरैया

गौरैया
रोज की तरह
आज 
सुबह

चावल
के
चार दाने
खा के
उड़ गयी

गौरैया
रोज आती है

एक मुट्टी
चावल
से
बस चार दाने
ही
उठाती है

पता नहीं क्यों

गौरेया
सपने नहीं देखती
होगी शायद

आदमी
चावल के बोरों
की
गिनती करते
हुवे
कभी नहीं थकता

चार मुट्ठी चावल
उसकी किस्मत
में होना
जरूरी 
तो नहीं

फिर भी
अधिकतर
होते ही हैं
उसे मालूम है
अच्छी तरह

जाते जाते
सारी बंद मुट्ठियां
खुली रह जाती हैंं 

और
उनमें
चावल 
का
एक दाना
भी नहीं होता

गौरैया
शायद ये
जानती होगी ।

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

पिताजी की सोच

मैंने पिताजी को
मेरे बारे में
माँ से कई बार
पूछते हुवे सुना था
"इसके घोड़े हमेशा
इसकी गाड़ी के पीछे
क्यों लगे होते हैं?"
माँ मुस्कुराती
लाड़ झलकाती
और साड़ी का पल्लू
ठीक कर पिताजी
को तुरंत बताती
चिंता करने की
कोई बात नहीं है
अभी छोटा है
कुछ दिन देखिये
अपने आप सब
जगह पर आ जायेगा
गाड़ी भी और घोड़ा भी
ये बातें मैं कभी
भी नहीं समझ पाया
जब भी कोशिश की
लगता था खाली
दिमाग खपाया
माँ और पिताजी
आज दोनो नहीं रहे
बीस एक साल
और गुजर गये
मैं शायद अब
वाकई मैं बड़ा
हो पडा़ अचानक
आँख खुली और
दिखने लगे आसपास
के घोड़े और गाड़ियां
सब लगे हुवे हैं
उसी तरह जिस
तरह शायद मेरे
हुवा करते थे
और आज मैं
फिर से उसी
असमंजस मैं हूँ
कि आँखिर पिताजी
ऎसा क्यों कहा
करते थे?

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

श्रद्धांजलि

ना शोहरत ले गया
ना दाम ले गया
काम ही किया बस
ताजिंदगी छक कर
उसे भी कहां वो
बेलगाम ले गया
जीवट में सानी
कहां था कोई उसका
सब कुछ तो दे कर
कहां कुछ ले गया
जिंदादिली से भरकर
छलकाता रहा
वो कल तक
गीतों में भरकर
वोही सारी दौलत
नहीं ले गया वो
सरे आम दे गया
आनन्द देकर
देवों के धर को
वो बिल्कुल अकेला
चलते चला वो
चला ही गया
वो चला ही गया।

रविवार, 4 दिसंबर 2011

पहचान

शब्दों
के समुंदर
में गोते लगाना

और

ढूँढ
के लाना
कुछ मोती

इतना
आसान
कहां होता है

कविता
बता देती है
तुम्हारे अंदर के
कव्वे का पता

जो
सफेद शब्द
खोज के
लाता तो है हमेशा

पर
कव्वे की
काली छाया

उन्हे भी
बना देती
है काला

और

कोयल
की कूँक
होते हुवे भी

वो
न जाने क्यूं
कांव कांव ही
सुनायी देते हैं

और

लोग जान
जाते हैं मुझे ।

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

समापन

अंधेरे
के घेरे हैं
चारों तरफ

उजालों
से नफरत
हो जायेगी

दिया
लेकर
चले आओगे

रोशनी
ही भटक
जायेगी

कितनी
बेशर्मी
से कह
गये वो

रोशन है
आशियां

रोशनी
भी आयेगी

बेवफाओं
को तमगे
बटे हैं

वफा
ही क्यों
ना शर्मायेगी

यकीं
होने लगा
है पूरा
मुझको

दुनियां
यूं ही
बहल
जायेगी ।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

विश्वविद्यालय स्थापना दिवस

टूटती हुवी
चीज कोई
दिखाई दे
तो स्थापना
उसकी करवाईये

स्थापना
करने से
सुना है
दोष निवारण
हो जाता है

की हुवी
गलतियों पर
पर्दा सा एक
गिर जाता है

पाप बोध होने से
वो बच जाता है
जिसने टूटते हुवे
उस चीज पर
दांव कभी
लगाया था

मेरा घर
अगर कभी
मेरे से
गलती से
टूट जायेगा

मैं स्थापना
अपने घर की
करवाउंगा

परेशान
ना होईये
साथ में दावत
भी खिलवाउंगा

मेरी संताने
मेरे को नहीं
कोस पायेंगी

टूटे घर के
अवशेष
के साथ

जब वे
स्थापना के
शिलान्यास के
पत्थर को भी
गड़ा पायेंगी।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

पक्का हो गया चोर भी

लिखता गया

लिखते
लिखते
शायद
लिखना
आ जाये
सोच कर

पढ़ता गया

पढ़ते
पढ़ते
शायद
पढ़ना
आ जाये
मान कर

लिखने
पढ़ने
का कुछ
हुवा
या नहीं
खुदा जाने

मक्कारी
में जरूर
उस्ताद
हो गया हूँ

निरक्षरों को
अब साक्षर
बना रहा हूँ

खाली बिलों
में दस्तखत
करना
सिखा रहा हूँ

बुद्धिजीवी
का
प्रमाण पत्र
जब से
मिला है

लाल बत्ती
गाड़ी पर
लगा रहा हूँ

पढ़ाई
लिखाई
के और
भी हैं
फायदे
उठा रहा हूँ

अनपढ़
दो चार
विधान सभा
में पहुंचाने
की जुगत
लगा रहा हूँ

आप भी कुछ
नसीहत लेते
हुवे जाईये

खुद पढ़िये
और
औरों को भी
पढ़ाईये

कम से कम
इतना काबिल
तो बनाईये

पूरा ना भी
समेंट सकें
बीस तीस
हिस्सा ही
गोल
करवाईये

बहुत मौके
होते हैं
अनपढ़ की
समझ में
नहीं आ
पाते हैंं

पढ़े लिखे
होते हैं
आसानी
से चूना
लगाते हैं

साथ में
राज्य रत्न
का मेडल
बोनस की
तरह मुफ्त
में पाते हैं।

बुधवार, 30 नवंबर 2011

याद आया किसी को पहाड़

चढ़ने के लिये
जरूरी हैं
देश विदेश के
पर्वतारोहियों
के लिये एक
मजबूरी
कभी नहीं
हुवे पहाड़ ।

उतरना कभी
जरूरी नहीं
हुवा करता
पर अब मजबूरी
बन गया उतरना
वो ही पहाड़ ।

जरूरी है अब
खाली हो जाना
तमाशा खत्म
हो गया हो जब
बनते ही नया
पहाड़ी राज्य
अब तेरा
क्या काम
रे पहाड़ ।

गड़े झंडे
आ जाते नजर
बहुत दूर से
आंदोलनरत था
जब पहाड़ी
और पहाड़ ।

पुराने दिन
किसे हैं
याद जब
कहलाता था
पूरा राज्य दुर्गम
तब भी कहां कोई
आना जाना
चाहता था पहाड़।

चिंता में है
सुना केंद्र
पलायन से
बेरोजगार के
अचंभा हो रहा है
क्यों किसी को
याद अचानक
आ गया
फिर से पहाड़।

मुद्दा आया
हाथ में एक
गरम हमारी
सरकार के
चुनाव पर
एक बार फिर
छला जाने
वाला है पहाड़।

खाली क्यों
हो रहे हैं
देश में पहाड़
हर प्रकार के
दिल्ली देहरादून
में बैठौं को
सपने में
दिखे हैं
कल पहाड़।

सर्वेक्षण में
जुटेंगे कुछ
खिलाड़ी भीषण
सूबेदार के
चढ़ने वाले
नहीं हैं फिर भी
वो भूल कर
हल्द्वानी
से पहाड़।

आंकड़े खोजेंगे
अधिकारी
पहली बार
इस प्रकार के
अमरउजाला में
एक बार फिर
छपता दिख गया
पहाड़ो में पहाड़।

सोमवार, 28 नवंबर 2011

ब्लाग का भिखारी

किस्म किस्म
के पकवान
लेकर रोज
पहुंचे
पहलवान

सुबह के
नाश्ते से
लेकर
शाम का
भोजन
तैयार है

किसी में
नमक
ज्यादा
तो कोई
पकने से
ही कर
चुका
इन्कार है

फिर भी
हर कोई
खिलाना
चाहता है
ना खाओ
तो भी
चिपकाना
चाहता है

कोई
पेट खराब
के बहाने
से खुद
को बचा 

ही ले
जाता है

किसी को
व्रत त्योहार
का बहाना
बनाना
बहुत अच्छी
तरह से
आता है

कुछ
मजबूरी
में
पसंद पे
चटका
लगा कर
हाथ
झाड़ लिया
करते हैं

बहुत से
कुछ नहीं
पकाते हैं

इधर
का खाना
उधर से
उधार लिया
करते हैं

बाजार में
हलचल है
लोग तेजी
से इधर
उधर जा
रहे हैं

पूछने पर
पता चला
वो भी
शाम को
अब यहीं
कहीं आ
जा रहे हैं

लोग मेरे
शहर के
बहुत खुश हैं

वो अब
चाटने के                
लिये नहीं
आता है
सन्नाटा
हो गया
हो कहीं पर
धमाका
रोज यहां
वो कर
जाता है

किसी को
कैसे चले
पता अब वो
यहां का चटोरा
बन गया है

लोग भी
कैसे मुंह
बचायें अपना
भिखारी
का एक
कटोरा
बन गया है

दे दे
अल्ला के
नाम पर
एक पसंद
का चटका
दे भी दे
तेरा क्या
जायेगा

जो दे
उसका भी
भला होगा
जो ना दे
वो भी
कभी अपने
लिये कुछ
मांंगने
के लिये
आयेगा ।

रविवार, 27 नवंबर 2011

सब की पसंद

मछलियों को
बहलाता फुसलाता
और बुलाता है
वो अपने आप
को एक बड़ा
समुंदर बताता है
पानी की एक बूंद
भी नहीं दिखती
कहीं आसपास
फिर भी ना जाने
क्यों हर कोई उसके
पास जाता है
मर चुकी
उसकी आत्मा
कभी सुना
था बुजुर्गों से
कत्ल करता है
कलाकारी से
और जीना
सिखाता है
अधर्मी हिंसंक
झूठा है वो
पंडालों में
पूजा जाता है
जमाना आज का
सोच कर
उसको ही तो
गांधी बताता है
देख कर उसे
ना जाने मुझे
भी क्या
हो जाता है
कल ही कह रहा
था कोई यूं ही
कि अन्ना तो
वो ही बनाता है ।

शनिवार, 26 नवंबर 2011

थप्पड़

थप्पड़ घूंसे
और लात
बहुत पुरानी
तो नहीं
कुछ समय
पहले पैदा
हुवी संस्कृति
पूर्ण रूपेण
भारतीय
दूसरी तरफ
अन्ना
सफेद टोपी
और
उनकी आरती
वो भी पूर्ण
भारतीय
दोनों में
पब्लिक का
जबर्दस्त
देख लो ना
योगदान
ओ कदरदान
भाषण वक्तव्य
समाचार
और टी वी
के प्रोग्राम
टी आर पी
बढ़ाने के
नित नवीन
प्रयोग
इसे क्या
नहीं कहेंगे
केवल एक
संयोग
कि नहीं
समझ पाया
आज तक
कोई
भारत का
भीड़ योग
अन्ना आता है
भीड़ लाता है
सब शान्ति से
निपट जाता है
अन्ना जाता है
भीड़ ले जाता है
और परदा
गिरते ही
बेचारा
एक नेता
मुफ्त में
थप्पड़ खा
जाता है ।

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

अभिनेता आज के समाज में

अंदर की
कालिख को
सफाई से
छिपाता हूँ

चेहरा
मैं हमेशा 
अपना
चमकाता हूँ

शातिर
हूँ मैं
कोई नहीं
जानता 
है

हर कोई मुझे
देवता जैसे
के नाम से
पहचानता 
है

मेरा
आज तक
किसी से कोई
रगड़ा
नहीं हुवा 
है

और तो और
बीबी से भी
कभी झगड़ा
नहीं हुवा 
है

धीरे धीरे
मैने अपनी
पैठ बनाई 
है

बड़ी मेहनत से
दुकानदारी 
चमकाई 
है

कितनो को
इस चक्कर में
मैने लुटवा दिया 
है

वो आज भी
करते हैं प्रणाम
सिर तक
अपने पांव में
झुकवा दिया 
है

पर अंदाज
किसी को 
कभी नहीं
आता  है

खेल खेल
में ही ये सब
बड़े आराम
से किया
जाता है

और  मैं
बडे़ आराम से हूँ
चैन की बंसी
बजाता हूं

जो भी
साहब
आता है
पहले उसको
फंसाता हूँ

सिस्टम को
खोखला
करने में
हो गई है
मुझे महारत

तैयारी में हूँ
अब करवा
सकता हूँ
कभी भी
महाभारत

तुम से ही
ये सारे
काम करवाउंगा

अखबार में
लेकिन फोटो
अपनी ही
छपवाउंगा

इस पहेली को
अब आपको ही
सुलझाना है

आसपास आज
आप के
कितने मैं
आबाद हो गये हैं
पता लगाना है

ज्यादा कुछ
नहीं करना है
उसके बाद
हल्का सा
मुस्कुराना है ।