उलूक टाइम्स: बकवास
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मंगलवार, 24 मार्च 2020

गले गले तक भर गये नहीं कहे जा रहे को रोक कर रखने से कौन सा उसका अचार हो लेना है


मन 
पक्का करना है बस
सोच को
संक्रमित नहीं होने देना है

भीड़ घेरती ही है
उसे कौन सा 
अपनी सोच से कुछ लेना देना है

शरीर नश्वर है
आज नहीं तो कल मिट्टी होना है

तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा
की 
याद आ रही हो सभी को
जब नौ दिशाओं से

ऐसे माहौल में
कुछ कहना जैसे ना कहना है

सिक्का उछालने वाला बदलने वाला नहीं है

चित भी उसकी पट भी उसकी
सिक्का भी उसी की तरह का

जिसे हर हाल में
रेत नहीं होने के बावजूद
सन्तुलन दिखाते मुँह चिढ़ाते
सीधा बिना इधर उधर गिरे खड़ा होना है

सकारात्मकता का ज्ञान दे रही
खचाखच हो गयी भीड़ की
चिल्ल पौं के सामने
कुछ कह देना

अपनी इसकी और उसकी 
की
ऐसी की तैसी करवा लेने का लाईसेंस
खुद अपने हस्ताक्षर कर के दे देना है

छोड़ क्यों नहीं देता है 
पता नहीं
‘उलूक’
बकवास करने के नशे को किसी तरह

गले गले तक भरे कबाड़ शब्दों को 

कौन सा
किसी सभ्य समाज के 
सभ्य ठेकेदार की 
खड़ी मूँछों को तीखी करने वाले 
तेल की धार हो लेना है ?

चित्र साभार:

बुधवार, 8 जनवरी 2020

किसी ने कहा लिखा समझ में आता है अच्छा लिखते हो बताया नहीं क्या समझ मे आता है



Your few poems touched me.
इस बक बक ️को कुछ लोग समझ जाते हैं । वो *पागल* में कुछ *पा* के *गला* ️हुआ इंसान देख लेते हैं । ऐसे लोगो की कविताओं में गूढ़ इशारे होतें हैं । जो जागे हुए लोगों को दिख जातें हैं । मुझे आपकी कविताओं में कुछ अलग दिखा, जिसके कारण में आने उद्गारों को रोक नही पाया ।
 मैँ आपकी बक बक का मुरीद हुं आगे और भी सुन्ना चाहूंगा यूट्यूब पर । 
वी पी सिंह

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नहीं लिखने 
और लिखने के बीच में 
कुछ नहीं होता है 

दिन भी संख्याओं में गिने जाते हैं 
लिखने लिखाने के दिन 
या 
नहीं लिख पाने के दिन 
सब एक से होते हैं 

दर्द अच्छे होते हैं जब तक गिने जाते हैं 
संख्याओं के खेल निराले होते हैं 
कहीं जीत के लिये संख्या जरूरी होती है 
कहीं हार जरूरी होती है संख्या के जीतने से अच्छा 

सब से बुरा होता है गाँधी का याद आना 
मतलब साफ साफ 
एक धोती एक लाठी एक चश्मे की तस्वीर का 
देखते देखते सामने सामने द्रोपदी हो जाना 

चीर 
अब होते ही नहीं हैं 
हरण जो होता है उसका पता चल जाये 
इससे बड़ी बात कोई नहीं होती है 

अजीब है जो सजीव है बेजान में जीवन देखिये
जान है नजर भी आ जाये 
मुँह में बस एक कपड़ा डाल लीजिये 
निकाल लीजिये 

नहीं समझा सकते हैं किसी को 
समझाना शुरु हो जाते हैं 
समझदार लोग पुराने साल 

कत्ल हो भी गया 
कोई सवाल नहीं करना चाहिये 
क्योंकि कत्ल पहली बार जो क्या हुआ है 

सनीमा भीड़ का घर से देखकर 
घर से ही कमेंट्री कर 
उसे परिभाषित कर देने का 
मजा कुछ और है 

क्योंकि लगी आग में झुलसा 
अपने घर का कोई नहीं होता है 

लगे रहिये गुंडों के देवत्व को 
महिमामण्डित करने में 

भगवान करे तुम या तुम्हारे घर का 
तुम्हारा अपना कोई 
आदमखोर का शिकार ना होवे 

और उस समय तुम्हें अपनी छाती पीटने का 
मौका ही ना मिले 

‘उलूक’ की बकवास किसी की समझ में आयी 
और उसने ईमेल किया कि बहुत कुछ समझ में आया 

बस रुक गया कहने से कि बहुत मजा 
जो अभी आना है क्यों नहींं आया।

चित्र साभार: https://www.pngfly.com/

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

शतक पूरा हुआ खींच तान कर आज किसी तरह इस साल की बकवासों का


पूरा हुआ
खाता
बही

आज और अभी

इस
साल की

कुछ
चुनी हुयी
बकवासों
का

सभी
नहीं भी
कही
गयी

कुछ
अनछुयी
रह ही
गयी

 फिर भी
बन गया
खींच तान
कर

किसी तरह

शतक
थके थकाये
अहसासों
का

समझे
गये
कुछ लोग

समझाये
गये
कुछ लोग

लिखे
लिखाये
में
दिखा

सैलाब
उमड़ते
जज्बातों
का

चित
हुआ करते थे
सिक्के
का

जिसकी
नजरों में

कभी
पुराने
सालों में

पट हो गये
इस साल

जवाब
भी
उनके
ही रहे

बिना
सिक्का
उछाले गये

चित पट
पर
पूछे गये
सवालातों
का

आभार
दिया

‘उलूक’ भी

कुछ भी
में से

कुछ कुछ
समझ लिये

जैसे

नजर
आने वाले
पाठकों की

भलमनसाहतों
का

इन्तजार
करता हुआ

फिर से
रात के
अंधेरे में

खुलने का

सभी
रोशनी
बन्द
किये हुऐ

कुछ
खुदाओं
के
हवालातों
का ।

चित्र साभार: https://www.clipartkey.com/

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

खुदने दो कब्र चारों तरफ अपने दूर देश की खबर में मरे को जिंदा कर देने का बहुत कुछ छुपा होता है



हो सकता है 

आवारा 
नजर 
आ रहे हों 

पर 
सच मानिये 

हैं नहीं 

बंधे हुऐ हैं 
पट्टे गले में 

और 
जंजीर भी है 

खूंटे 
से बंधी 
हुई भी 
नहीं है 

हाथ में है 
किसी के 

यानि 
आजादी है 

आने जाने 
की 
साथ में 

जहाँ 
ले जाने 
वाला 
जायेगा 

वहाँ 
तक तो 
कम से कम 

पट्टे 
और 
जंजीर से 

मतलब 
ना 
निकाल 
लिया जाये 

कि 
जानवर 
की ही बात है 

और 
हाथ में है 
किसी के से 
अर्थ 
नहीं निकलता है 

कि 
उसके 
गले में 
नहीं है पट्टा 

पट्टे दर पट्टे 
जंजीर दर जंजीर 

पूरी 
होती है 
एक 
बहुत बड़ी लकीर 

यहाँ से वहाँ 
कहीं
बहुत दूर तक 

जहाँ 
मिलता है 
आसमान 
पहाड़ से 

और 
उससे भी आगे 

समझ में 
जो
नहीं आती है 

फिर भी 
ये 
नासमझी में 

उसी तरह 
लिख दी जाती है 

समझ में 
आ जाती 
तो 
काहे लिखी जाती 

इसीलिये 
बकवास में 
गिनी जाती है 
कही जाती है 

जमाना 
उस 
समझदार का है 

जिसका 
पता ना चले 

उसका 
किस के हाथ में 
सिरा टिका है 

जिसे 
चाहिये होता है 
एक झुंड 

जिसके 
सोचने देखने पूछने कहने 
का हर रास्ता 

उसने 
खुद ही 
बन्द किया होता है 

जंजीर 
के 
इशारे होते हैंं

बँधा हुआ 
इशारे इशारे 
चल देता है 

किसी को 
किसी से 
कुछ नहीं 
पूछना होता है 

हर किसी 
को 

बस अपने 
पट्टे 

और 
अपनी जंजीर 

का 
पता होता है 

चैन 
से 
जीने के लिये 

उसी को 
केवल 
भूलना होता है 

‘उलूक’
पूरी जिंदगी 
कट जाती है 

खबर 
दूर देश की 
चलती चली जाती है 

अपने 
बगल में ही 
खुद रही कब्र 
से 
मतलब रखना 

उसपर 
बहस करना 

उसकी 
खबर को 

अखबार 
तक 

पहुँचने 
देने 
वाले से 

बड़ा बेवकूफ 

कोई 
नहीं होता है । 

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

सागर किनारे लहरें देखते प्लास्टिक बैग लेकर बोतलें इक्ट्ठा करते कूड़ा बीनते लोग भी कवि हो जाते हैं


ना
कहना
आसान होता है

ना
निगलना
आसान होता है

सच
कहने वाले
के
मुँह
पर राम

और

सीने पर
गोलियों का
निशान होता है

सच
कहने वाला
गालियाँ खाता है

निशान
बनाने वाले का

बड़ा
नाम होता है

‘उलूक’
यूँ ही नहीं
कहता है

अपने
कहे हुऐ
को
एक बकवास

उसे
पता है

कविता
कहने
और
करने वाला
कोई एक
 खास होता है

अभी
दिखी है
कविता

अभी
दिखा है
एक कवि

 कूड़ा
समुन्दर
के पास
बीन लेने
वाले को

सब कुछ
सारा
माफ होता है

बड़े
आदमी के
शब्द

नदी
हो जाते हैं

उसके
कहने
से ही
सागर में
मिल जाते हैं

बेचारा
प्लास्टिक
हाथ में
इक्ट्ठा
किया हुआ
रोता
रह जाता है

बनाने
वालों के
अरमान

फेक्ट्रियों
के दरवाजों
में
खो जाते हैं

बकवास
बकवास
होती है

कविता
कविता होती है

कवि
बकवास
नहीं करता है

एक
बकवास
करने वाला

कवि
हो जाता है ।


चित्र साभार:
https://www.dreamstime.com/

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

काहे पढ़ लेते हैं कुछ भी सब कुछ लिखना सब को नहीं आता है


यूँ ही
नहीं लिखता
कोई
कुछ भी

अँधेरे में
उजाला लिखना
लिखना अँधेरा
उजाले में

 उजाले में
उजाला लिखना
लिखना
अँधेरे में अँधेरा

एक बार लिखा
बार बार लिखना

 लिखना
बेमौसम
सदाबहार लिखना

यूँ ही
नहीं लिखता
कोई कुछ भी

सब
लिखते हैं कुछ

 कुछ
लिखना
सबको नहीं आता है

सब
सब नहीं लिखते हैं

 सब
लिखने की
हिम्मत
हर कोई
नहीं पा जाता है

सब लिखते हैं

 सब
लिखने पर
बात करते हैं

 सब
कोशिश करते हैं
अपने लिखे को
सब कुछ बताने की

सब
का लिखा
सब को
समझ में
नहीं आता है

 सब से
अच्छी टिप्पणी
सुन्दर होती है

 दो चार शब्द
कहीं दे आने से
ज्यादा कुछ
घट नहीं जाता है

लिखते लिखते

कहाँ
भटक गया होता है
लिखने वाले को भी
पता कहाँ चल पाता है

 कुछ भी है
लेकिन
सच
चाहे अपना हो
पड़ोस का हो
समाज का हो

किसी में
इतनी
हिम्मत
नहीं होती है

कि
लिख ले
कोई

नहीं
लिख पाता है

‘उलूक’
कोशिश करता है
फटे में झाँकने की
और बताने की

लेकिन
उसका जैसा
उल्लू का पट्ठा

शायद
कभी कोई
नजर आये

जो अपने
पैजामे के
नाड़े को
बाँधने के
चक्कर में

पैजामा
कौन सा है
बता पाये
नजर नहीं
आता है

बकवासों
का भी
समय
आयेगा कभी

खण्डहर
बतायेंगे
हर नाड़े को

पैजामा
छोड़ कर
जाने का
मलाल रह
ही जाता है।

 चित्र साभार: https://www.talentedindia.co.in

सोमवार, 16 सितंबर 2019

अपनी गाय अपना गोबर अपने कंडे खुद ही ढोकर जला कुछ आग बना कुछ राख




कुछ
हंसते हंसते 

कुछ
रो धो कर 

अपना घर 
अपनी दीवार 

रहने दे
सर मत मार 

अपनी गाय 

अपनी गाय
का 
अपना गोबर

गोबर के कंडे 
खुद ही बनाये गये 
अपने ही हाथों से 
हाथ साफ धोकर

अपना 

ही घर 
अपने ही 
घर की दीवार

कंडे ही कंडे

अपना सूरज 
अपनी ही धूप 
अपने कंडे
कुरकुरे
खुद रहे सूख 

अपने कंडे

अपनी आग 
अपना जलना
अपनी फाग 
अपने राग
अपने साग 

आग पर लिख ना
साग पर लिख ना 
राग बे राग पर लिख ना 

जल से दूर
कहीं 
पर जाकर
कुछ कुछ जल जाने 
पर लिख ना 

अपना अपना 
होना खाक 
थोड़ा पानी
थोड़ी राख 

अपनी किताब
अपने पन्ने
अपनी अपनी
कुछ बकवास 

अपना उल्लू
अपनी सीध

बेवकूफ 
‘उलूक’

थोड़ा सा 
कुछ 
अब 
तो सीख 

अपनी गाय 
अपना गोबर 
अपने कंडे
अपनी दीवार
अपनी आग 
अपनी राख 
अपने अपने
राग बे राग 
अपने कंडे
खुद ही थाप 
रोज सुखा
जला कुछ आग। 

वैधानिक चेतावनी: 
कृपया इस बकवास को ब्लॉगिंग यानि चिट्ठाकारी से ना जोड़ें

चित्र साभार: https://timesofindia.indiatimes.com

सोमवार, 26 अगस्त 2019

बकवास भटक जाती हैं जब आस पास की लाजवाब कविताएं लेख कहानियाँ बहुत सारी आ कर इठलाती हैं



जन्म
लेने के
साढ़े पाँच
दशक से
थोड़ा
ऊपर जा कर

थोड़ा थोड़ा
अब समझ में
आने लगे हैं
मायने
कुछ
महत्वपूर्ण
शब्दों के

ना
माता पिता
सिखा पाये
ना शिक्षक
ना ही
आसपास
का परिवेश
और
ना ही समाज

ये भी
पता
नहीं लग पाया
कि
ये कुछ शब्द
निर्णय करेंगे
अस्तित्व का

होने
या
ना होने
के बीच
की
रेखा के
इस तरफ
या
उस तरफ

प्रेम
द्रोह
और
देश

आत्मग्लानि
और
आत्मविश्वास
कतार से
आता है

कतार
देख कर
आता है

कोई
कैसे

सीख
सकता है

स्वत: ही
काटते हुऐ
अपने अंगूठे

विसर्जन
करते हुऐ
गुरु के लिये

चीटियाँ
और
उनके
सामाजिक
व्यवहार
की परिभाषाओं
से
सम्मोहित होकर
मान लेना
नियम
प्रकृति के
पीड़ा दे जाये
असंभव है

संभव
दिखाया
जाता है

महसूस
कराया जाता है

और
वही शाश्वत है

जो
दिख रहा है
उसपर
विश्वास मत कर

जो
सुनाई दे रहा है
वो झूठ है

सबसे
बुरी बात
अपनी इंद्रियों पर
भरोसा करना है

इधर उधर
देख
और
समझ
विद्वान की विद्वता

जब तक
किसी के द्वारा
परखी ना गयी हो

उसका
कोई प्रमाण पत्र
कम से कम
तीन हस्ताक्षरों
के साथ ना हो
बेकार है

कतार
बेतार का तार है

बेकतार
सब बेकार है

कुछ
बच्चों से सीख

कुछ
उनके
नारों से सीख

कुछ
कतार
लगाने वालों
से सीख

दिमाग खोल
और
प्रेमी बन

द्रोही
किसलिये

तुझे
समझाने वाले
सब

कहीं ना कहीं
किसी ना किसी
कतार से जुड़े हैं
‘उलूक’

ये सोच लेना
कि
अकेला चना
भाड़ नहीं
फोड़ सकता है

चनों की
बेइज्जती है

उस
चने की
सोच

जिसने
प्रेम द्रोह
और देश
को
परिभाषित
कर दिया है

और
सब कुछ
कतार में है
आज चने की ।

चित्र साभार: https://longfordpc.com

रविवार, 25 अगस्त 2019

कुछ भी लिख ‘उलूक’ मगर लिख रोज लिख हर समय लिख किस लिये कोई दिन बिना कुछ लिखे ही बितारा



कल का 
लिखा

क्या
बिक गया
सारा

आज
फिर से
उसी पर

किसलिये

वही कुछ
लिख लारा
दुबारा

देख

वो
लिख लारा
घड़ियाँ सारी

समय
सबको

जो 
आज
सबका
दिखारा

समझ

पीठ में
लगी चाबियाँ
अपनी
टिक टिक की

दूर कहीं

कहाँ
जा कर
छुपारा

क्यों नहीं

पूछ
कर ही
लिख लेता
किसी से 

कुछ

उसी 

के
हिसाब का

ऐसा
सोच
क्यों नहीं
पारा

सोच

नहीं
सोचा जारा
जिससे

वो
लिखना छोड़

कुछ
पढ़ने को
चला आरा

बता

समझ
में आना

किस ने
कह दिया
जरूरी है

नहीं
आरा
समझ में

तो
नहीं आरा
बतारा

और

जो
समझ भी
जारा
कुछ

कुछ
कहने में
फिर भी
अगर
हिचकिचारा

कौन सा
कुछ

अजब गजब
जो
क्या हो जारा

एक
कविता कहानी साहित्य
के
पन्नों के
थैले बनारा

दूसरा

बकवास
की
मूँगफली के
छिलके
ला ला
कर
फैलारा

तीसरा

इसकी
टोपी
उसके सिर
में
रख कर
के
आरा

सबसे बड़ा

दीवार
चढ़कर
उतरकर
बड़ी खबर
पकारा

उसके
साथ खड़ा

असली
खबर को

देश दुनियाँ
की
फैली
घास बतारा

‘उलूक’

कविता
कहानियों
के बीच

बकवास
अपनी

कई
सालों से
पकारा

सिरफिरा
समझ रा
दिमागदारों
को
पढ़ारा

निचोड़
इन
सब का
अंत में

लिख कर
ये
रख जारा

कुछ
भी लिख

रोज
कुछ
लिखना
जरूरी है

मत कहना
नहीं
बताया

कम कम
लिखने
वालों
का
चिट्ठा दर्जा

आगे
आते आते

पीछे
कहीं
रह जारा।

चित्र साभार: https://www.amazon.in/dp/159020042X?tag=5books-21

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

लिखना जरूरी है तरन्नुम में मगर ठगे जाने का सारा बही खाता हिसाब



लिखना
जरूरी है

तरन्नुम
में मगर

ठगे
जाने का
सारा

बही
खाता हिसाब

कौन
जानता है

सुर मिले
और
बन पड़े

गीत
एक
धुप्पल में
कभी

यही बकवास

आज ही
के दिन
हर साल

ठुमुकता
चला आता है

पुराने
कुछ
सूखे हुऐ
घाव कुरेदने

फिर
एक बार
ये अहसास


भूला
जाता है
ताजिंदगी

ठगना
खुदा तक को 
खुद का

बुलंद कर खुदी

कहाँ
छुपता है
 जब
निकल पड़ती है

किसी
बेशरम की कलम

खोदकर
किसी
पुरानी कब्र से
 खुद
अपनी भड़ास

निकलते हैं
कपड़े
झक सफेद
कलफ इस्त्री किये

किसी
खास एक दिन
पूरे साल में

धराशायी
करते हुऐ
पिछले
कई सालों के

कीर्तिमान
ठगी के पुराने
खुद के खुद ही
बेहिसाब

फिर भी
जरूरी है
‘उलूक’

बिता लेना
शुभ दिन
के
तीन पहर
किसी तरह
यूँ ही

बधाईयाँ

मंगलकामनाओं
के
बण्डल बाँधकर

चौथे पहर
लिख लेना
फिर
सारा
सब कुछ
ठगी
उठाईगिरी

या
और भी
कुछ
अनाप शनाप।

चित्र साभार: https://biteable.com

शनिवार, 13 जुलाई 2019

एक भीड़ को देखते देखते भीड़ में शामिल हो लेने का खामियाजा भुगतना ही पड़ता है मुस्कुराना ठीक है रोने ले से भी वैसे कुछ नया होना भी नहीं है


लिखना लिखाना
ठीक है

सब लिखते हैं

लिखना भी
जरूरी है

सही है

गलत
कुछ कहीं

वैसे भी

होता ही नहीं है

वहम है

है कह लेने में

कोई बेशर्मी
भी नहीं है

कुछ
लेखक होते हैं
पैदायशी होते हैं

बुरा भी नहीं है

कुछ
लेखक पैदा
नहीं होते है

माहौल
बना देता है

क्या किया
जा सकता है

कहना
नहीं चाहिये

कहना भी नहीं है

परेशानी

बकवास
करने वाले
के लिये है

बकबक
लिख लिखा कर

लेखकों की
भीड़ के बीच में

खो जाना

बहुत
बुरी बात है

समझ में
आने के दिन
आ जाने चाहिये

कई
सालों तक

इस तरह
भटकना

ठीक
भी नहीं है

गालियाँ
पड़ती हैं

अच्छा है

पड़नी भी
जरूरी हैं

किसने
कहा होता है

औकात
के बाहर
निकल कर
समझाना

बेबात में बात को

हर किसी की
समझ की

सीमा है

समझाने वाला
बेसमझ
नहीं है

किससे
पूछा जाये

समझने
समझाने की

किताबें
भी नहीं हैं

‘उलूक’

बकवास
करने में

बुराई
कुछ नहीं है

बकवास कर
लिख लिखा
देने से अच्छा

कुछ नहीं है

लिखा लिखाया
देख कर

किताब
हो जाने का
वहम हो जाये

बुरी बात है

इससे
निकल जाना

सबसे
अच्छी बात है

सालों
लग भी गये

कोई
नयी बात
भी नहीं है

देर आयद दुरुस्त आयद

सटीक मुहावरा है

वहम
टूटने
के लिये
 ही होते हैं

टूट जाये
अच्छा है

बने रहना
बस
इसी एक का

अच्छा नहीं है

और

बिल्कुल
भी नहीं है ।

चित्र साभार:
https://in.one.un.org

शनिवार, 1 जून 2019

बकवास अपनी कह कह कर किसी और को कुछ कहने नहीं देते हैं

बहुत कुछ है 
लिखने के लिये बिखरा हुआ 
समेटना ठीक नहीं इस समय
रहने देते हैं

होना कुछ नहीं है हिसाब का 
बेतरतीब ला कर 
और बिखेर देते हैं 
बहे तो बहने देते हैं

दीमकें जमा होने लगी हैं फिर से
नये जोश नयी ताकतों के साथ 
कतारें कुछ सीधी कुछ टेढ़ी 
कुछ थमने देते हैं 

आती नहीं है नजर 
मगर होती है खूबसूरत 
आदेश कतारबद्ध होने के 
रानी को 
घूँघट के पीछे से देने देते हैं

तरीके लूटने के नये 
अंगुलियाँ अंगुलीमाल के लिये 
साफ सफाई हाथों की जरूरी है 
डेटोल डाल कर धोने देते हैं 

बज रही हैं दुंदुभी रण की 
कोई नहीं है कहीं दूर तक 
शोर को गोलियों के 
संगीत मान चुके सैनिकों को 
सोने देते हैं 

दहाड़ सुनते हैं 
कुछ कागज के शेरों की 
उन्हें भी शहर के जंगलों की 
कुछ कागजी कहने देते हैं 

लिखना क्या सफेद कागज पर 
काली लकीरों को 
नावें बना कर रेत की नदी में 
तेजी से बहने देते हैं 

गाँधी झूठ के पर्याय 
खुल के झूठ बोलते रहे हैं सुना है 
सच तोलने वालों को चलो अब 
खुल के उनके अपने नये बीज 
बोने देते हैं

सच है दिखता है 
उनके अपने आईने से जो भी 
उन्हें सम्मानित कर ही देते हैं 

अखबार के पन्ने सुबह के 
बता देते हैं 
पढ़ने वालों में से कुछ रो ही लेते हैं 
तो रोने देते हैं 

बकवास करने में लगे कर 
जारी हों लाईसेंस 
सेंस में रहना अच्छा नहीं 
नाँनसेंस ‘उलूक’ जैसे 
अपनी कह कह कर 
किसी और को कुछ कहने नहीं देते हैं । 

चित्र साभार: clipartimage.com/

रविवार, 31 मार्च 2019

‘उलूक’ हर दिन अपने आईने में देखता है चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है

 
बकवास करने का अपना मजा
अपना एक नशा होता है
किसी की दो चार लोग सुन देते हैं
किसी के लिये मजमा लगा होता है

नशा करके बकवास करने वाले को
उसके हर फायदे का पता होता है
नशा करता है एक शराबी
पीना पिलाना उसके लिये जरूरी होता है

कहीं कुछ नहीं से निकाल कर
बातों बातों में सारा कुछ यूँ ही चुटकी में दे देता है
बातों के नशे में रहता है एक नशेड़ी ऐसा होता है
ये माजरा करोड़ों में एक होता है

बातें होनी हैं होती हैं अप्रैल की
मार्च के बाद का एक महीना हर साल में एक होता है
विदेशी  कैलेण्डर विदेशी सोच विदेशी बातों को
विदेशों में सोचना होता है

देशी बातों में बातें देश की होती हैं
एक दिन में बात का नशा नहीं होता है
सबकी बात सबके लिये बात होने के लिये
उसके पास बातों का जखीरा होता है

सालों साल से जिसके लिये
हर दिन हर महीना साल का एक अप्रैल होता है
फूल लेकर हाथ में बातों में उसको बाँध कर
वो फिर से हाजिर होता है

जोकर कहें जमूरा कहें मदारी कहें सपेरा कहें
‘उलूक’ हर दिन अपने आईने में देखता है
चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है ।

चित्र साभार: https://furniture.digitalassetmanagement.site

रविवार, 17 मार्च 2019

हजार के ऊपर चार सौ और हो गयी बकवासें ‘उलूक’ के पागलखाने की

तमन्ना है

कई
जमाने से

आग
लगाने की

आदत
पड़ गयी

 मगर
अब तो
झक मारते

रद्दी
कागज फूँक

राख
हवा में
उड़ाने की

लकीरें
हैं खींचनी

आसमान
तक
पहुँचाने की

कलमें
छूट गयी
नीचे

मगर
हड़बड़ी में
ऊपर
जाने की

आदत
पड़ गयी
भूलने की

कहते कहते
झोला
उठाने की

लिखनी
हैं
कविताएं

आदमी
के अन्दर
के आदमी
को बचाने की

फितूर
बकवास का

नशा
बन गया

आदत
हो गयी

बस सफेद
पन्नों को

यूँ ही
धूप में
सुखाने की

क्या
जरूरत है

बेशरम

‘उलूक’
शरमाने की

तू
कुछ
अलग है

या
जमाना
कुछ और

अब
सीख
भी ले

लूट कर
जमाने को

लुटने
की कहानी
सुनाने की।

चित्र साभार: http://convictedrock.com

गुरुवार, 7 मार्च 2019

करना कुछ नहीं है होता रहता है होता रहेगा सूरज की ओर देख कर बस छींक देना है



एक 
जूता
मार रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

एक 
जूता
खा रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

दूर दर्शन 
दिखा रहा है 

दिखा
रहा होगा 

बस
 देख लेना है 

अखबार में 
छप गया है 

छपा
दिया गया होगा 

बस
सोच लेना है 

उसके साथ
खड़े रहना है 

मजबूती से 

मजबूरी है 

जमीर 
होता ही है 

परेशान
करे 
तो बेच देना है 

घर की 
बातें हैं 

जनता
के बीच 
जा जा कर 
क्यों कहना है 

दिल्ली 
दूर
नहीं होती है 

दूरबीन लगाये 
बस उधर देखना है 

अकेले 
रहना भी 
कोई रहना है 

गिरोह में 
शामिल
नहीं होना
हिम्मत 
का काम 
हो सकता है 

पर
आत्मघाती 
हो जाता है 

सोच लेना है 

कविता करना 
कहानी कहना 
शाबाशी लेना 
शाबाशी देना 

गजब बात है 

सच की
थोड़ी सी
वकालत करना

बकवास 
करना 
हो जाता है 

ये भी
देख लेना है 

‘उलूक’ 

अपने 
आस पास के 
जूते जुराबों को 
छुपा देना है 

बस 
चाँद के
पाँव धो लेने है 

और
 सोच सोच कर 
बेखुदी में
कुछ पी लेना है 


कुछ भी 
हो जाये 

लेकिन 

बस 
धरती पर 
उतारा गया 

गफलत का 

वही चाँद 
देख लेना है 

वही चाँद 
खोद लेना है ।

चित्र साभार: https://openclipart.org