उलूक टाइम्स

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

कि दाग अच्छे होते हैं



हमेशा
ढलती शाम
के
चाँद की
बात करना

और
खो जाना
चाँदनी में

गुनगुनाते हुऐ
लोरियाँ

सुनी हुयी
पुरानी कभी

दादी नानी
के
पोपले मुँह से

ऐसा
नहीं होता है

कि
सूरज
नहीं होता है

सवेरे का
कहीं

फिर भी
रात के
घुप्प अंधेरे में

रोशनी से
सरोबार हो कर

सब कुछ
साफ सफेद
का
कारोबार

करने वाले
ही
पूछे जाते हैं
हर जगह

जरूरी
भी हो जाता है

अनगिनत
टिमटिमाते
तारों की
चपड़ चूँ से
परेशान

चाँदनी
बेचने के
काम में
मंदी से हैरान

थके हुऐ से
भारी
बहीखातों
के
बोझ से
दबे

झुँझलाये
कुमह्लाये 

देव के
कोने कोने
स्थापित
देवदूतों में

काल
और
महाकाल

के
दर्शन
पा कर

तृप्त
हो लेने में
भलाई है

और
सही केवल

दिन के
चाँद को

और
रात के सूरज को
सोच लेना ही है

तारों की चिंता
चिता के समान
हो सकती है

करोड़ों
और
अरबों का
क्या है

कहीं भी
लटक लें
खुद ही

अपने
आसमान
ढूँढ कर

किसलिये
बाँधना है
अराजकता
को
नियमों से

अच्छा है
आत्मसात
कर लिया जाये

कल्पनाएं
समय के हिसाब से
जन्म ना ले पायें

उन्हें
कन्या मान कर

भ्रूण को
पैदा होने से
पहले ही
शहीद
कर दिया जाये

महिमा मण्डित
करने के लिये

परखनली
में
पैदा की गयी

कल्पनाएं

सोच में
रोपित की जायें

प्रकृति
के लिये भी
कुछ बंधन
बनाने की
ताकत है किसी में

वही
पूज्यनीय
हो जाये

अच्छा होगा
‘उलूक’
उसी तरह

जैसे
माना जाता है

कि
दाग
अच्छे होते हैं ।

चित्र साभार: https://www.jing.fm/

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

आओ बोयें कल के लिये आज कुछ इतिहास


आओ बोयें 

कल 
के लिये 

आज 
कुछ 
इतिहास 

जो 
सच है 
बस 
उसे 
छोड़कर 

कुछ भी 
चलेगा 

होनी चाहिये 
मगर 

कुछ ना कुछ 
शुद्ध 
बिना मिलावट 
की 

कोई भी 
आसपास की 

रद्दी 
की 
टोकरी 
में 
फेंकी गयी 

ज्यादा
चलेगी 
ही नहीं 
बकायदा 
दौड़ेगी 

होनी चाहिये 

एक 
खूबसूरत 
समय की 
बदसूरत 
बकवास 

सारे 
आबंटित 
कामों को त्याग 

विशेष 
काम पर लगे 

सारे 
आसपास के 
तगड़े घोड़ों 
की 
प्रतिस्पर्धाएं 

अर्जुन बने 
चार सौ बीसी 
के 
धनुष 

मक्कारी 
के तीर 

हवा में 
ध्यान लगाये 

समाधिस्थ 
नजर आते 

मछलियों 
की आँखें 
ढूँढते 

कलयुगी 
तीरंदाज 

सोये हुऐ 
दिन दोपहरी 

बिना पिये 
नशे में 

शुद्ध हवा 
पानी वाले पहाड़ 

बर्फ से लबालब 
खासमखास 

सिकुड़ति 
हुई 
पंक्तियों से 
भागते 

लम्बी 
होती हुई 
पंक्तियों
पर 

जमा
होते हुऐ 
शूरवीर 

देखिये 
पने 
आस पास 

‘उलूक’ 
रात के प्रहरी 

बुरी बात है 

करना 
दिन 
की 
बात ।

बुधवार, 11 दिसंबर 2019

बधाई बधाई तेरा घर टूटने की

बधाई बधाई हो रही है तेरा घर टूटने की और तेरे लिये वो ही कोई मरा जैसा है
तू जानता है ‘उलूक’ चीख चिल्ला गला फाड़ कर
इस नक्कारकाने में अपनी तूती बजाने के लिये मजबूत गिरोह का बाजा खरीदना होता है



तेरे सामने तेरे घर को तोड़ कर
एक टुकड़ा देखता क्यों नहीं है फैंका नहीं है
किस लिये रोता है 

गुलाब की कलम है
माली नहीं भी है तो क्या हुआ रोपने के लिये
सोच ले कोई जरूर होगा मवाली सही कहीं ना कहीं
उसके सामने जा कर दीदे फाड़ लेना पूछ लेना
क्यों नहीं बोता है

घर तेरा टूट गया क्या हुआ
देखता क्यों नहीं मोहल्ले के दो चार और घर मिला कर
नया घर बनाने का
सरकारी मजमा ढोल नगाड़े बजाता हुआ
अखबार की खबर में सुबह सुबह रूबरू
आजकल रोज का रोज तो होता है

तुझसे नहीं पूछा
नयी बोतल में पुरानी शराब ही नहीं
कुछ और भी मिलाया है
कॉकटेल कहते हैं
इतना तो नहीं पीने वाले को भी
पता होता है
गम मत कर यहाँ का दस्तूर है यहाँ यही होता है

मरीज हस्पताल की बात चिकित्सक से काहे पूछनी
दुकाने बहुत हैं उनके सरदार को
ज्यादा मालूम होता है

स्कूल की बात मास्टर से काहे पूछनी
झाडू देने वाला रोज सुबह का कूड़ा
रोज निकालता है
पढ़ने लिखने वाले के बारे में उसको ज्यादा पता होता है

तेरे शहर के लोग शरीफ हैंं
इधर उधर से देखे हुऐ बहुत कुछ को बताने का
उनको ज्यादा अनुभव होता है

कबूतरों के बारे में काहे कौओं से पूछना
कालों को सफेदों के बारे में
कौन सा सबसे ज्यादा पता होता है

बधाई बधाई हो रही है तेरा घर टूटने की
 तेरे लिये वो ही कोई मरा जैसा है तू जानता है

‘उलूक’
चीख चिल्ला गला फाड़ कर
इस नक्कारकाने में अपनी तूती बजाने के लिये
सबसे मजबूत गिरोह का बाजा खरीदना होता है।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/




अगर आप बुद्धिजीवी कैटेगेरी में आते है अगर आप अल्मोड़ा से हैं और अगर आप बेवकूफ नहीं हैं तो कृपया लिखे को ना पढ़े ना समझने की कोशिश करें ना लाईक करें ना टिप्पणी देने का प्रयत्न करें। ये बस एक वैधानिक चेतावनी है। ये कुमाउँ विश्वविद्यालय से अल्मोड़ा को अलग करने के विरोध की बकवास है।

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

खुदने दो कब्र चारों तरफ अपने दूर देश की खबर में मरे को जिंदा कर देने का बहुत कुछ छुपा होता है



हो सकता है 

आवारा 
नजर 
आ रहे हों 

पर 
सच मानिये 

हैं नहीं 

बंधे हुऐ हैं 
पट्टे गले में 

और 
जंजीर भी है 

खूंटे 
से बंधी 
हुई भी 
नहीं है 

हाथ में है 
किसी के 

यानि 
आजादी है 

आने जाने 
की 
साथ में 

जहाँ 
ले जाने 
वाला 
जायेगा 

वहाँ 
तक तो 
कम से कम 

पट्टे 
और 
जंजीर से 

मतलब 
ना 
निकाल 
लिया जाये 

कि 
जानवर 
की ही बात है 

और 
हाथ में है 
किसी के से 
अर्थ 
नहीं निकलता है 

कि 
उसके 
गले में 
नहीं है पट्टा 

पट्टे दर पट्टे 
जंजीर दर जंजीर 

पूरी 
होती है 
एक 
बहुत बड़ी लकीर 

यहाँ से वहाँ 
कहीं
बहुत दूर तक 

जहाँ 
मिलता है 
आसमान 
पहाड़ से 

और 
उससे भी आगे 

समझ में 
जो
नहीं आती है 

फिर भी 
ये 
नासमझी में 

उसी तरह 
लिख दी जाती है 

समझ में 
आ जाती 
तो 
काहे लिखी जाती 

इसीलिये 
बकवास में 
गिनी जाती है 
कही जाती है 

जमाना 
उस 
समझदार का है 

जिसका 
पता ना चले 

उसका 
किस के हाथ में 
सिरा टिका है 

जिसे 
चाहिये होता है 
एक झुंड 

जिसके 
सोचने देखने पूछने कहने 
का हर रास्ता 

उसने 
खुद ही 
बन्द किया होता है 

जंजीर 
के 
इशारे होते हैंं

बँधा हुआ 
इशारे इशारे 
चल देता है 

किसी को 
किसी से 
कुछ नहीं 
पूछना होता है 

हर किसी 
को 

बस अपने 
पट्टे 

और 
अपनी जंजीर 

का 
पता होता है 

चैन 
से 
जीने के लिये 

उसी को 
केवल 
भूलना होता है 

‘उलूक’
पूरी जिंदगी 
कट जाती है 

खबर 
दूर देश की 
चलती चली जाती है 

अपने 
बगल में ही 
खुद रही कब्र 
से 
मतलब रखना 

उसपर 
बहस करना 

उसकी 
खबर को 

अखबार 
तक 

पहुँचने 
देने 
वाले से 

बड़ा बेवकूफ 

कोई 
नहीं होता है । 

गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

मत खोज लिखे से लिखने वाले का पता


कोई
नहीं लिखता है

अपना पता
अपने लिखे पर

शब्द
बहुत होते हैं
सबके पास

अलग बात है

शब्दों
की गिनती
नदी नालों में
नहीं होती है

लिखना
कोई
युद्ध नहीं होता है

ना ही
कोई
योजना परियोजना

लिखना
लिखाना
पढ़ना पढा‌ना

लिखा
लाकर
समेटा
एक बड़े से
परदे पर
ला ला कर
सजाना

लिखना
प्रतियोगिता
भी नहीं होता है

लिखे पर
मान सम्मान
ईनाम
की
बात करने से
लिखने
का
आत्म सम्मान
ऊँचा
नहीं होता है

लिखा
लिखने वाले के
आस पास
हो रहे कुछ का
आईना
कतई
नहीं होता है

जो
लिखा होता है

उससे
होने ना होने
का
कोई सम्बंध
दूर दूर तक
नहीं होता है

सब
लिखते हैं
लिखना
सबको आता है

सबका
लिखा
सब कुछ
साफ साफ
लिखे लिखाये
की खुश्बू
दूर दूर तक
बता कर
फैलाता है

बात अलग है
अचानक
बीच में
मोमबत्तियाँ
लिखे लिखाये पर
हावी होना
शुरु हो जाती हैं

आग लिखना
कोई नयी बात
नहीं होती है

हर कोई
कुछ ना कुछ

किसी ना किसी
तरह से
जला कर

उसकी
रोशनी में
अपना चेहरा
दिखाना चाहता है

‘उलूक’
बेशरम है
उसको पता है
 आईने में
सही चेहरा
कभी
 नजर
नहीं आता है

इसलिये
वो खुद
 अपनी
बकवास लेकर

अपनी
पहचान
के साथ
मैदान पर
उतर आता है | 

चित्र साभार: http://clipart-library.com/



सोमवार, 2 दिसंबर 2019

यूँ ही अचानक/ कैसे हुआ इतना बड़ा कुछ/ तब तक समझ में नहीं आयेगा/ उसके धीरे धीरे थोड़ा थोड़ा होने के निशान रोज के /अपने आसपास अगर देख नहीं पायेगा



इतने दिन भी
नहीं हुऐ हैं

कि
याद ना आयें
खरोंचें
लगी हुई
सोच पर

और
भूला जाये
रिसता हुआ
कुछ

जो
ना लाल था
ना ही
उसे
रक्त कहना
सही होगा

अपने
आस पास
के

नंगे नाँचों
के
बगल से

आँख
नीची कर
के
निकल जाने को

वैसे
याद
नहीं आना चाहिये

भूल जाना
सीखा जाता है

यद्यपि
वो ना तो
बुढ़ापे की
निशानी होता है

ना ही
उसे
डीमेंशिया कहना
ठीक होगा

ऐसे सारे
महत्वाकाँक्षाओं
के बबूल
बोने के लिये

सौंधी मिट्टी
को
रेत में
बदलते समय

ना तो
शर्म आती है

ना ही
अंधेरा
किया जाता है

छोटे छोटे
चुभते हुवे
काँटो को

निकाल फेंकने
के
लिये भी
समय
कहाँ होता है

बूँद दर बूँद
जमा होते
चले जाते हैं

सोच की
नर्म खाल
को
ढकते हुऐ से

मोमबत्तियाँ
तो
सम्भाल कर
ही
रखी जाती हैं

जरा सा में
टूट जाती हैं

मोम
बिना जलाये भी
बरबाद हो जाता है
समय के साथ

और
हर बार
एक
दुर्घटना
फिर
झिंझोड़ जाती है

पूछते हुऐ

कितनी बार
और

किस किस

छोटी
घटना से

बचते हुऐ
अपने
आसपास की
आँखे फेरेगा ‘उलूक’

जो
दिखाई
और
सुनाई दे रहा है

वो
अचानक
नहीं हुआ है

महत्वाकाँक्षाओं
के
मुर्दों के
कफनों
के

जुड़ते चले
जाने से
बना

विशाल
एक
झंडा हो गया है

जो
लहरायेगा
बिना
हवा के

ढक लेगा
सोच
को

कहीं
कुछ भी

नजर
आने लायक
नहीं
रह जायेगा

सौंधी
मिट्टियों
से
बनी रेत
की
आँधियों में
सब उड़ जायेगा

कुछ
नहीं बचेगा

महत्वाकाँक्षाओं 
के
भूतों से
लबालब

एक
शमशान
हो जायेगा।
चित्र साभार: https://www.123rf.com/

गुरुवार, 28 नवंबर 2019

ध्यान ना दें मेरी अपनी समस्यायें मेरा अपना बकना मेरा कूड़ा मेरा आचार विचार



हैं
दो चार

वो भी

कोई इधर

कोई उधर

कोई
कहीं दूर

कोई

कहीं
उस पार


सोचते हुऐ

होने की

आर पार

लिये
हाथ में

लिखने
का
कुछ

सोच कर
एक
हथियार


जैसे

हवा
को
काटती हुई
जंक लगी
सदियों पुरानी

शिवाजी

या
उसी तरह के
किसी
जाँबाज की

एक

तलवार

सभी
की
सोच में

तस्वीर

सूरज

और

रोशनी
 उसकी

शरमाती

हुई सी
नयी नवेली सी
नहीं

बल्कि
झाँसी की रानी
की सी

तीखी


करने

 वाली
हर मार पर
पलट वार

देखते
जानते हुऐ

अपने आस पास

अन्धेरे में

अन्धेरा
बेचने वाले

सौदागरों
की सेना


और

उसके
सरदार

खींचते हुऐ

लटकते हुऐ
सूरज पर

ठान कर


ना होने देंगे
उजाला

बरबाद
कर देंगे


लालटेन
की भी
सोच रखने वाले

कीड़े

दो चार
कुछ उदार

किसे
समझायें

किसे बतायें

किसने सुननी है

नंगे
घोषित कर दिये गये हों
शरीफों के द्वारा

जब हर गली

शहर पर
एक नहीं कई हजार

डिग्रियाँ
लेने के लिये
लगे हुऐ बच्चे

कोमल
पढ़े लिखे

कहलायेंगे
होनहार


उस से
पहले


खतना

कर दिये
जाने की


उनकी
सोच से

बेखबर

तितलियाँ

बना कर
उड़ाने का है

कई
शरीफों का

कारोबार

पहचान
किस की
क्या है


सब को पता है


बहुत कुछ


हिम्मत
नहीं है

कहने की

सच


मगर
बेच रहा है
दुकानदार भी

सुबह का अखबार


‘उलूक’

हैं
कई बेवकूफ
मेंढक

कूदते
रहते हैं

तेरी तरह के

अपने अपने

कूओं में

तुझे
क्या करना है
उनसे

तू कूद
अपनी लम्बाई
चार फिट की

अपनी

सोच के
हिसाब से


किसे पड़ी है
आज

अगर
बन जाता है

एक
कुआँ

मेढकों का स्वर्ग


और
स्वर्गवासी
हो लेने के अवसर
तलाशते दिखें

हर तरफ

मेंढक हजार।


चित्र साभार: https://www.gettyimages.in/

शनिवार, 23 नवंबर 2019

जब कुछ हो ही नहीं रहा है तो काहे कुछ लिखना कुछ नहीं लिखो खुश रहो



छोड़ो
रहने दो
कुछ नहीं
लिखो

कुछ नहीं
ही
सब कुछ है

कुछ कुछ 
लिखते लिखते

अब तो
समझ लो
कुछ नहीं
लिखोगे

पहरे
से
दूर रहोगे

लिखे
का
हिसाब भी
नहीं
देना पड़ेगा

कहीं
कोई
बही खाता
ही नहीं बनेगा

आई टी सेल
नजर
ही
नहीं रखेगा

सब कुछ
सामान्य
सा दिखेगा

कुछ नहीं
लिखना

एक
नेमत होती है

समझा करो

सबका
मालिक
एक है

सब जगह
अलग अलग है
माना
फिर भी
नेक है

मालिक
की जय
होनी ही चाहिये
करते चलो

कुछ नहीं
लिखना है
का
सिद्धांत
बना कर
लिखने के
क्षेत्र में
जहाँ तक
पहुँचने की चाहत है
आगे बढ़ो

किसने
रोका है
बेधड़क लिखो

बस
कुछ नहीं
लिखने पर
अड़े रहो खड़े रहो

आँखें
कान नाक
बंद रख सको
तो
सोने में सुहागा होगा

सब कुछ
बंद रखने वालो
के लिये
हर रास्ते पर
माला लिये खड़ा
मालिक का भेजा
कोई ना कोई
अभागा होगा
समझा करो

ध्यान मत दो
जो हो रहा है
किसी के
भले के लिये ही
हो रहा होगा

गीता
सिरहाने पर रख कर
सोया करो

हर ऐरे गैरे
की
रामायण पर
ध्यान मत दिया करो

कुछ नहीं
कहने पर
टिके रहो

कहे कहाये पर
सुने सुनाये पर

कान
मत दिया करो
कुछ नहीं करने वाले
हर जगह होते हैं
सारे ब्रह्माण्ड का भार
वो सब ही ढोते हैं 

कुछ नहीं करने वालों के
चरण स्पर्श करो

विनती करो

कहो

कुछ नहीं कहता हूँ
कुछ नहीं करता हूँ 
कुछ नहीं लिखता हूँ

कुछ नहीं कमेटी में 
कहीं तो कोई स्थान
अब तो दो

सारे शरीफ
कुछ
करने कहने लिखने
वाले  जानते हैं

उलूकबेशर्म है
कुछ नहीं कहता है
उसे जरा सा भी शर्म नहीं है

जरूरत
किस बात की
कहाँ पर है

भगवन
ध्यान मत दो
कुछ नहीं करो
कुछ नहीं लिखो

कुछ नहीं को
मिलता है सम्मान
कुछ तो महसूस करो

कुछ नहीं शहर के
सम्मानित
रोज सुबह के अखबार में
कुछ नहीं
समाचारों के साथ
देखा करो

कुछ नहीं को
आत्मसात करो

देश के साथ
कुछ नहीं गाते
आगे बढ़ो

कुछ नहीं
लिखो

कुछ नहीं पर
टिप्पणी करो

कुछ नहीं
की
गिनती करो

ठान लो
इसके लिखे को
कहीं नहीं
दिखना चाहिये
डटे रहो अड़े रहो

कुछ मत करो
लिखने वाले
को
अहसास कराओ

कुछ नहीं
हो
लिखते रहो

कुछ नहीं
लिखना
अच्छा है
कुछ लिखने से

कुछ 
नहीं
लिखो।

 
https://www.dreamstime.com/

रविवार, 17 नवंबर 2019

वाकया है घर का है आज का है और अभी का है होना बस उसी के हिसाब का है पूछ्ना नहीं है कि होना क्या है


खुले
दरवाजे पर

लात
मारते
ललकारते

गुस्से
से भरे
बच्चों को
पता है

उनको
जाना कहाँ हैं

फुँफकारते
हुऐ

गाली
देने के बाद

पुलिस
वाले से
मुस्कुराते हुऐ

कुछ
साँस लेने
का सा
इशारा

उनका
अपना सा है

समय
 के साथ
दिशायें
पकड़ते हुऐ

भविष्य
के सिपाही
जानते हैं

अपना भविष्य

ये
नहीं करेंगे

तो
उनके लिये

फिर
बचा क्या है

पढ़ना पढ़ाना
परीक्षा दे लेना

एक
अंकपत्र

गलतियों
से भरा

हाथ में
होने से
होना क्या है

ना खायेंगे
ना खाने देंगे

से ही

ना पढ़ेगे
ना पढ़ने देंगे

प्रस्फुटित
हुआ है

समझा क्या है

पढ़ाने लिखाने
वाले
का
रास्ता भी

किताबों
कापियों से
हटकर

देश
की
बागडोर में

चिपट
लेने के
सपने में
नशा

किसी
नशे से
कम कहाँ है

कश्मीर
जरूरी है

पाकिस्तान
भी
चाहिये

जे एन यू
बनायेंगे

अब
कहना
छोड़ दियों
का
रास्ता भी

अब
बदला बदला
सा है

गफलत
में
जी रहें
कुछ शरीफ

नंगों से
घिरे हुऐ

नंगे
हो जाने के
मनसूबे लिये हुऐ

सोच रहे है

जब
कुछ
पहना ही
नहीं है
तो

गिरोह में
शामिल
हो
लेने के लिये

फिर
खोलना
क्या है

 ‘उलूक’

‘पाश’
के
सपनो
का
मर जाने
को
मर जाना
कहने से
भी

सपने

जरा भी
नहीं
देखने वालों
का
होना क्या है ?


गुरुवार, 14 नवंबर 2019

नये चाचा याद करो अंकल कह कर ही सही चिल्लाओ


गुलाब
लाल हो
शेरवानी हो
जरूरी नहीं बच्चो

समय देखो
चाचा
पुरानी सोच
का रिश्ता है

नये
रिश्ते खोजो

नये चाचा में
नया जोश होगा

पुराने
की कब्र में
बरबाद
ना करो फूल

फूल
मालायें बनाओ
नये रिश्तों पर
ले जाकर चढ़ाओ

चौदह
नवम्बर

एक
अंक है

वोट के
हिसाब से
रंक है

मत फैलाओ

देखो
सामने
कोई है

चाचा
ही नही
सब है

मतलब
रब है

रब के
गुणगान
गाओ

पूजो
कुछ चढ़ाओ

बच्चो
संगठित होकर
कोई संगठन बनाओ

चाचा के
कुछ तो
काम आओ

हर
जगह हैं
फैले हुऐ हैंं 
चाचा

पहचानो
अपने अपने
आस पास के
चाचाओं को

चरण
वंदन करो
चाचाओं के

मोक्ष
पा लेने
के लिये
कुछ बलिदान
कर ले जाओ

‘उलूक’
की आँख

रात की
रोशनी में

जगमगाते
दिये के
तेल में
डूबती
बाती की
तरह है

कभी
एक
दियासलाई
जलाओ

आग
लगाओ
कहीं भी

कुछ पके
कुछ नया बने

नया
चाचा तैयार है
पुकार कर बुलाओ

बच्चो
समय के
साथ बदलो

लाल
गुलाब
शेरवानी
भूल जाओ

नये चाचा
याद करो

अंकल
कह कर
ही सही
जोर से
चिल्लाओ

बाल
दिवस मनाओ।

चित्र साभार: https://khabar.ndtv.com/

मंगलवार, 12 नवंबर 2019

स्याही से भरी दिख रही है हर कलम पर कुछ नहीं लिख रही है


स्याही से
भरी
दिख रही है

पर

कुछ नहीं
लिख रही है

उँगलियों
से
खेल रही है

मगर

कुछ
भारी होकर
कलम

आज

बस
रिस रही है

चलती
रही है
हमेशा

किसी के
इशारों से

आज भी
दिख रही है

ना जाने
क्यों
लग रहा है

कुछ
झिझक
रही है

कुछ
रुक रही है

कागज कागज
न्योछावर
होती रही है

अपनी
आज भी

कुछ नहीं
कह रही है

लाल
गलीचा
लिये
खुद बिछी है
हमेशा

अभी भी
उसी तरह

जमीन जमीन
बिछ रही है

मुद्दत
के बाद
जैसे

नींद से
उठ रही है

शिद्दत से
बेखौफ

अँधेरों
को
लिखने वाली

पता नहीं
किसलिये ‘उलूक’

उजाले उजाले

हर तरफ
बिक रही है

उदास नहीं है

मगर

खुश भी
नहीं
दिख रही है

स्याही
से
भरी
दिख रही है

पर

कुछ भी
नहीं
लिख रही है ।

चित्र साभार:
https://flowvella.com/

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

व्यंग और बरतन पीटने की आवाजों के बीच का हिसाब महीने के अन्तिम दिन



एक सी
नहीं 
मानी जाती हैं 

आधुनिक
चित्रकारी 

कुछ खड़ी 
कुछ पड़ी रेखायें 
खुद कूदी हुयी मैदान पर 
या
जबरदस्ती की मारी

और
कुछ भी
लिख 
देने की बीमारी 

होली पर
जैसे 
आसमान की तरफ 
रंगीन पानी मारती 

खिलखिलाते
बच्चे के 
हाथ की पिचकारी 

उड़ते
फिर फैल जाते हुऐ रंग 

बनाते
अपने अपने
आसमान

जमीन पर
अपने हिसाब से 
घेर कर
अपने हिस्से की जमीन

और
मिट्टी पर
बिछ गये चित्रों को
बेधती आँखें गमगीन

खोलते हुऐ
अपने सपनों
की 
बाँधी हुई
गठरियों पर 
पड़ चुकी
बेतरतीब गाँठों को 

कहीं
जमीन पर
उतरती तितलियाँ 

कहीं
उड़ती परियाँ
रंगीन परिधानों में 

फूलों
की सुगंध
कहीं चैन

तो 
कहीं
उसी पर
भंवरे बैचेन

किसी के लिये
यही सब 

महीना
पूरे होते होते

रसोई में
खाली हो चुके 

राशन के
डब्बों के ऊपर 
उधम मचाते
नींद उड़ाते 
रद्दी बासी
अखबार कुतरते
चूहे

किसी की
माथे पर पड़ी
चिंता की रेखायें

कहीं
कंकड़ पत्थर
से भरी 

कहीं
फटी उधड़ी
खाली हो चुकी
जेब 

किसी
कोने पर
खड़ी

एक
सच को

सच सच
लिख देने के
द्वंद से

आँख बचाती
सोच

ऊल जलूल
होती हुयी
दिशाहीन 

अच्छा होता है
कुछ

देखे अन्देखे
सुने सुनाये

उधड़े
नंगे हो चुके

झूठ 
के

पन्ने में
उतर कर
व्यंग के मुखौटे में
बेधड़क
निकल लेने
से

कभी कभी
यूँ ही
कुछ नहीं के

खाली बरतनों
को
पीट लेना 
‘उलूक’

महीने
के
अन्तिम दिन

कैलेण्डर
मत
देखा कर

राशन
नहीं होता है

लिखना

महीने का ।
चित्र साभार: https://www.timeanddate.com/

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

इतनी जल्दी भी क्या है सब्र कर खुदा बने हुऐ ही उसे हुऐ कुछ महीने चंद हैं


शब्दों
के
जोड़
जन्तर
जुगाड़ हैं

कुछ के
कुछ भी
कह लेने के

तरीके
बुलन्द हैं 

सच के
झूठ के
फटे में

किसने
देखना होता है

लगे हुऐ
कई
रंगीन पैबन्द हैं 

लिखना लिखाना
पढ़ना पढ़ाना

पढ़े लिखों
का
कहते हैं

परम
आनन्द है

अनपढ़
हाँकता
चल रहा है

पढ़े लिखों
की
एक भीड़
का

आदि है
ना
अन्त है 

लिखा
जा रहा है

एक नया
इतिहास है

गुणी
इतिहासकारों
के
किले

चाक चौबन्द हैं 

अवगुणों
से
लबालब हैं
सोचने
फिर
बोलने
वाले
कुछ

सभी
होशियार हैं
जिनके मुँह
शुरु से ही
बन्द हैं 

लिख रहा है
‘उलूक’
कुछ ऐसा
मुद्दों को
छोड़कर

जो

ना
गजल है
ना शेर है
ना छन्द है

रट रहा है
जमाना
उस
शायर का
कलाम
आज

जिसका
एक शब्द
एक पूरा
निबन्ध है 

समझ
लेता है
इशारा
समझने वाला

कौन
शायर है
कैसा
कलाम है

बचा
जमाना है
नासमझ है

जब
हो चुका
खुद ही
शौक से
नजरबन्द है ।
चित्र साभार: https://making-the-web.com

रविवार, 27 अक्तूबर 2019

शुभकामनाएं पर्व दीपावली पटाखे फुलझड़ी भी नहीं




कुछ
रोशनी
की
करनी हैं
बातें

और
कुछ भी
नहीं

दीवाली
अलग है
इस बार की

पहले
जैसे
अब नहीं

अंधेरा
अब
कहीं
होता
ही नहीं

जिक्र
करना
भी नहीं

उजाले
लिख दिये
जायें
बस

दीयों
की
जरूरत
ही नहीं

बोल
रोशनी हुऐ
लब दिये

तेल की
कुछ
कमी नहीं

सूरज
उतर आया
जमीं पर

मत
कह देना
नहीं नहीं

चाँद तारे
सभी पीछे
उसके

एक तेरा
कुछ
पता नहीं

आँख
बंद कर
अंधेरा
सोचने से

अब
कुछ होना नहीं

शुभकामनाएं
पर्व दीपावली

पटाखे
फुलझड़ी
भी नहीं

खाली जेब
सब
रोशनी से
लबालब भरी

‘उलूक’ 
हाँ हाँ
ही सही

नहीं नहीं

जरा
सा भी
ठीक नहीं।
चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019

पुरानी कुछ इमारतें कई बार पैदा की जाती है हर बार एक नया नाम देकर उन्हें फिर लावारिस छोड़ दिया जाता है


कुछ की
किस्मत में
नहीं होता है
खुद जन्म लेना

उन्हें पैदा
किया जाता है

नश्वर
नहीं होते हैं
पर
मरने का उनके
मौका भी
नहीं आता है

जरूरी नहीं है
जीवन होना
सब कुछ में

कुछ निर्जीव
चीजों को भी
आदत हो जाती है

झेलना
जीवन को

जिसका असर
समय समय पर
देखा भी जाता है

कुछ
इमारतों के
पत्थर

आईना
हो जाते हैं

समय
का चेहरा
उनमें
बहुत साफ
नजर आता है

इतिहास
लिख देना
किसी चीज का
अलग बात हो जाती है

लिखने वाला
सामान्य मनुष्य ही हो
जरूरी नहीं हो जाता है

पूर्वाहग्रह ग्रसित होना
किसी
मानसिक रोग
की
श्रेणी में

कहीं
 लिखा हुआ
नजर नहीं आता है

ना नया
गृह बनता है
ना गृह प्रवेश होता है

कुछ घरों का नाम
समय के साथ
बदल दिया जाता है

जन्मदिन
मनाया जाता है
नगाढ़े भी बजते हैं
ढोल भी पीटे जाते हैं
अखबार के पन्ने को भी
रंग दिया जाता है

‘उलूक’
कुछ लावारिस

ऐसी ही
किस्मत लेकर
पैदा होते हैं

हर बार
जन्म देने के बाद
एक लम्बे समय के लिये

फटे हाल
होने के लिये
उन्हें छोड़ दिया जाता है।

चित्र साभार: https://making-the-web.com/university-cliparts

रविवार, 20 अक्तूबर 2019

कबूतर को समझ आये हिसाब से अपने दिमाग से खुद को समझाये कबूतर



कुछ जंगल से शहर आये कबूतर
थोड़े शहर से शहर भगाये कबूतर

कुछ काले कुछ सफेद हो पाये कबूतर
थोड़े कुछ धोबी से रंग लगवाये कबूतर

कुछ पुराने घिसे घिसाये कबूतर 
कुछ नये पॉलिश लगवाये कबूतर

कबूतर कबूतर खेलने कबूतरों से 
ऊपर से कबूतर भिजवाये कबूतर

नीचे आ कबूतरों पर छा जाये कबूतर
कबूतर से कबूतर लड़वाये कबूतर

कुछ उड़ते जमीन में ले आये कबूतर
कुछ पैदल चलते उड़वाये कबूतर

कबूतरों के लिये कुछ कह जाये कबूतर
सुबह सबेरे समाचार हो जाये कबूतर

गुटुर गूँ गुटुर गूँ की 
चीर फाड़ करवाये कबूतर

हाय कबूतर हाय कबूतर 
कबूतर के पुतले जलवाये कबूतर

हाल-ए-कबूतरखाना 
सुनाता ‘उलूक’
कबूतर जोड़े घटाये कबूतर 
हासिल लगा जीरो पाये कबूतर ।

वैधानिक चेतावनी: किसी शिक्षण संस्थान से कबूतर का कोई समबन्ध नहीं है ।

चित्र साभार: https://www.theguardian.com