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मंगलवार, 17 सितंबर 2013

उनकी मजबूरी के खेत मेरे सपनों के पेड़

किसी की
मजबूरी भी

किसी का
सपना हो
जाती है

ये बात
बहुत आसानी
से कहां समझ
में आ पाती है

आश्चर्य तो
तब होता है

जब एक ऐसे ही
सपने के आते ही
किसी की बांछें
खिल जाती हैं

यही सोच एक
दुधारू गाय
बन कर
सामने आ
जाती है

जितने ज्यादा
मजबूर लोग
होते हैं
उतना
ज्यादा दूध
बहाती है

किसी की
मजबूरी को
एक सपना
बनाना

उस सपने
को पूरा
करने के लिये
तन मन
धन लगाना

सपने की
बात को
किसी को
भी ना बताना

इसके बावजूद
उस सपने को
पूरा करने
के लिये
मिनटों में
मददगारों
के एक
जमघट का
जुट जाना

सपने का
फलना फूलना
शुरु हो जाना

दूध का
निकलने से
पहले ही
बंट जाना

कुछ लोगों
की मजबूरी पर
एक पूरा उद्योग
खड़ा हो जाना ही
एक आदमी की
प्रबंधन क्षमता
को दिखाती है

देश को चलाने
के लिये ऐसे ही
सक्षम लोगों की
जरूरत महसूस
की जाती है

इसीलिये
हर सरकार
हर जगह पर
छांट छांट कर
ऐसे महागुरुओं को
ला कर बिठाती है

इन
महागुरुओं की
मदद लेकर ही
मजबूर देश के
मजबूरों को वो
हांक ले जाती है ।

शनिवार, 3 अगस्त 2013

न्यायालय सरकार को सबका मालिक बताई है

ऎ मालिक
तेरे बंदे हम
अगर आज
गा रही होती
नौकरी तेरी
इस तरह हाथ
से नहीं कहीं
जा रही होती
यही बात तो
आज उच्च
न्यायालय
ने समझाई है
वो कभी भी
मालिक और
नौकर के बीच
में नहीं आई है
मालिक बनने के
लिये किस्मत उसने
जब पाई है
जनता जनार्दन ने
ये टोपी उसको
पहनाई है
तेरे को ऎसा
क्या हुआ जो
तू ऎसे से लड़ने
पर उतारू
हो आई है
मेहनत की है
और की है तूने
बहुत पढा़ई है
मालिक को ये
बात कभी भी
नहीं पच पाई है
आज ये मालिक है
जिसने तेरी नौकरी
दाँव पर लगाई है
जो नहीं है मालिक
की जगह पर आज
उस की मूँछ भी
इस बात को लेकर
बहुत फड़फडा़ई है
तेरे साथ खड़ा
होगा आज क्योंकि
उसने भी खानी
कल मलाई है
तेरे जैसे ने ही
तो मालिकों के
लिये हमेशा से
समस्या बनाई है
इतिहास गवाह है
नौकरी छोड़ कर
मालिक बनने की
होड़ भी उसी
ने जगाई है
केजरीवाल ने
इसी लिये तुझे
आवाज एक लगाई है
वो लगा चुका है
मालिक बनने की
दौड़ में अपना हिस्सा
तेरे पास भी है
एक अच्छा मौका
क्यों नहीं तू भी
करती नौकरी
की भरपाई है
दुर्गा हो या शक्ति हो
मालिक के लिये
अगर नहीं
उसमें भक्ति हो
इज्जत भी कहाँ
नौकर की
बच पाई है
ये बात नौकर के
समझ में अभी तक
नहीं आई है
एक तरह से
देख ले उसने
मुलायम आदमी
की मुलायम
तबीयत पर
टिप्पणी करने से
जान बचाई है
इसी बात पर
न्यायालय ने मुहर
एक लगाई है
वो कभी भी
मालिक
और नौकर
के बीच में
नहीं आई है ।

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

देश बड़ा है घर की बनाते हैं

देश की सरकार
तक फिर कभी
पहुँच ही लेगें
चल आज अपने
घर की सरकार
बना ले जाते हैं
अंदर की बात
अंदर ही रहने
देते हैं किसी को
भी क्यों बताते हैं
ना अन्ना की टोपी
की जरूरत होती है
ना ही मोदी का कोई
पोस्टर कहीं लगाते हैं
मनमोहन को चाहने
वाले को भी अपने
साथ में मिलाते हैं
चल घर में घर की ही
एक सरकार बनाते हैं
मिड डे मील से हो
रही मौतों से कुछ तो
सबक सीख ले जाते हैं
जहर को जहर ही
काटता है चल
मीठा जहर ही
कुछ कहीं फैलाते हैं
घर के अंदर लाल
हरे भगवे में तिरंगे
रंगो को मिलाते हैं
कुछ पाने के लिये
कुछ खोने का
एहसास घर के
सदस्यों को दिलाते हैं
चाचा को समझा
कुछ देते हैं और
भतीजे को इस
बार कुछ बनाते हैं
घर की ही तो है
अपनी ही है
सरकार हर बार
की तरह इस
बार भी बनाते हैं
किसी को भी इस
से फरक नहीं
पड़ने वाला है कहीं
कल को घर से
बाहर शहर की
गलियों में अगर
हम अपने अपने
झंडों को लेकर
अलग अलग
रास्तों से निकल
देश के लिये एक
सरकार बनाने
के लिये जाते हैं ।

शनिवार, 1 जून 2013

स्वायत्तता

हमेशा की तरह
आज भी आया हूँ
फिर से एक
बेवकूफी भरा
सवाल लाया हूँ
स्वायत्तता और
स्वायत्तशाशी
संस्थान में मौज
मारता रहा हूँ
पर होती क्या है
अभी तक खुद भी
नहीं समझ पाया हूँ
सरकार
सी बी आई को
स्वायत्तता
देने जा रही है
सुनकर अपनी
आँख थोड़ा सा
खोल पाया हूँ
विकीपीडिया
स्वायत्तता
का मतलब
समझाती है
अपने नियम
खुद बनाना
और उससे
किसी सिस्टम
को चलाना
होता है
ऎसा कुछ
समझाती है
इसलिये
स्वायत्तशाशी
संस्थानों में
कोई बाहर
का नियम नहीं
चल पाता है
क्योंकि हर कोई
अपनी सुविधा से
अपना एक नियम
अपने लिये बनाता है
आजादी अगर
देखनी हो
तो किसी भी
स्वायत्तशाशी
संस्थान में
चले जाईये
वहाँ हाजिरी
लगना लगाना
बेवकूफी
समझा जाता है
जब मन
आये आइये
जब मन ना हो
कहीं भी घूमने
चले जाइये
छुट्टी की अर्जी
भेजने की
जहमत भी
मत उठाइये
नौकरी पा
जाने के बाद
काम करने
को किसी से
भूल में भी ना
कह ले जाइये
स्वायत्तता
में रहकर जो
काम कर
रहा होता है
वो एक
गधा होता है
उस गधे
को छोड़ कर
बाकी हर कोई
स्वायत्त होता है
देश की सरकार
और सरकारी
दफ्तरों में सरकार
स्वायत्तता क्यों
नहीं बाट
ले जा रही है
सब जगह
अपने नियम
खुद बनाने
वाले पेड़
क्यों नहीं
उगा रही है
सारे झगडे़
स्वायत्तता
मिलते ही
निपटते
चले जायेंगे
सब लोग जब
अपने अपने
नियम खुद
बनाते चले जायेंगे
कोई किसी
से कुछ भी
नहीं कहीं
कह पायेगा
जो कहेगा
वो अपनी मौत
खुद ही अपने
लिये बुलायेगा
स्वायत्तता वैसे
तो समझ में
नहीं भी कभी
आ पाती है
देश को तो
एक सरकार
ही मगर
चलाये जाती है
उसे स्वायत्त
नहीं सरकारी
ही हमेशा से
कहा जाता है
ज्यादातर
सरकार सबको
सरकारी ही रहने
देना चाहती है
बस जिसे बर्बाद
करना होता है
उसे ही स्वायत्तता
देना चाहती है ।

मंगलवार, 28 मई 2013

सरकार होती है किसकी होती है से क्या ?


अब भाई होती है 
हर जगह एक सरकार बहुत जरूरी होती है 

चाहे बनाई गयी हो 
किसी भी प्रकार 
घर की सरकार दफ्तर की सरकार
शहर की सरकार जिला प्रदेश होते हुऎ
पूरे देश की सरकार 

कुछ ही लोग बने होते हैं 
सरकार बनाने के लिये 
उनको ही बुलाया जाता है हमेशा हर जगह 
सरकार को चलाने के लिये 

कुछ नाकारा भी होते हैं 
बस सरकार के काम करने के तरीके पर 
बात की बात बनाने वाले 

काम करने वाले
काम 
करते ही चले जाते हैं 
बातें ना खुद बनाते हैं 
ना बाते बनाने वालों की बातों से
परेशान 
हो गये हैं कहीं दिखाते हैं 

छोटी छोटी सरकारें 
बहुत काम की सरकारें होती हैं 

सभी दल के लोग
उसमें 
शामिल हुऎ देखे जाते हैं 
दलगत भावनाऎं
कुछ 
समय के लिये अपने अंदर दबा ले जाते हैं 

बडे़ बडे़ काम 
हो भी जाते हैं पता ही नहीं चलता है 
काम करने वाले काम के बीच में
बातों को 
कहीं भी नहीं लाते हैं 

छोटी सरकारों से 
गलतियाँ भी नहीं कहीं हो पाती है 
सफाई से हुऎ होते हैं 
सारे कामों के साथ साथ 
गलतियाँ भी आसानी से सुधार ली जाती हैं 

तैयारी होती है तो 
मदद भी हमेशा 
मिल ही जाती है 
गलती खिसकती भी है तो
अखबार तक पहुँचने 
से पहले ही पोंछ दी जाती है 

ज्यादा परेशानी होने पर 
छोटी सरकार के हिस्से 
आत्मसम्मान अपना जगाते हैं 
अपनी अपनी पार्टी के झंडे निकाल कर ले आते हैं 

मिलकर काम करने को 
कुछ दिन के लिये टाल कर
देश बचाने के 
काम में लग जाते हैं 
बड़ी सरकार की बड़ी गलतियों से
छोटी सरकारों की छत्रियां बनाते हैं 

बडी सरकार में भी 
तो
इनके पिताजी 
लोग ही तो होते हैं 
वो भी तुरंत कौल का गेट बंद कर कुछ दिन 
आई पी एल की फिक्सिंग का ड्रामा 
करना शुरु हो जाते हैं । 

चित्र साभार: https://www.gograph.com/

शनिवार, 25 मई 2013

कमल बनना है तो कीचड़ पहले बना !

पढे़ लिखे लोग
यूं ही बुद्धिजीवी
नहीं कहलाते हैं
कभी देखा
कुछ हो भी जाये
उनके आस पास
बहुत सारे होते हैं
उसपर भी
कहने को कोई
कुछ नहीं आते हैं
कहते भी हैं तो
कान में कहते हैं
अखबार में नहीं
वो जो भी
छपवाते हैं
आई एस बी एन
होने पर ही
छपवाते हैं
माना कि तू भी
गलती से कुछ
पढ़ लिख ले गया
पर किस ने
कह दिया तुझसे
कि तू भी उसी
कैटेगरी का हो गया
हर बात पर
कुछ ना कुछ
कहने को चला
यहां आता है
गन्दी बातें बस
दिमाग में रखता है
गन्दगी यहाँ फैलाता है
देखा कभी कोई
पौसिटिव सोच वाला
तेरे से बात भी करना
कुछ चाहता है
निगेटिव देखता है
निगेटिव सोचता है
निगेटिव ही
बस फैलाता है
अब किसी कीचड़
फैलाने वाले को
यूँ ही फालतू में नहीं
गलियाना चाहिये
ये भी देखना चाहिये
अखबार में वो
कमल की तरह
दिख रहा है
इतना तो समझ
ही जाना चाहिये
कीचड़ अगर
नहीं फैलाया जायेगा
तो कमल कैसे
एक उगाया जायेगा
समझा कर
ये बात शायद
तेरे पिताजी ने तुझे
नहीं बतायी होगी
कमल बनाने के लिये
कीचड़ बनाने की विधि
तुझे नहीं समझाई होगी
देखता नहीं
तेरे आसपास के
सारे सफेदपोश
पैजामा उठा
कर चलते हैं
कीचड़ के छीटे
उछलते हैं तो
बस उछलते हैं
किसी को
उस कीचड़ से
कोई परेशानी
नहीं होती है
सरकार को
पता होता है
वो तो कमल की
दीवानी होती है
इसलिये
अब भी समय है
कुछ तो सुधर जा
पब्लिक को बेवकूफ
मत समझा कर
अपना भी समय
ऎसे वैसे में ना गंवा
कुछ काम धाम
करने की सोच बना
समान सोच के लोग
जो फैला रहे हैं कीचड़
उनकी शरण में जा
कमल ना भी बन पाया
तो कोई बात नहीं
कमल बनाने की
तकनीक सीख कर
वैज्ञानिक सोच ही
पैदा कर ले जा
कुछ प्रोजेक्ट ही ले आ
कुछ कर रहा है
वो ही चल दे दिखा ।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

अस्थायी व्यवस्था

हर तीसरे साल
के बाद बदल दिया
जाता रहा है
मेरी सस्ते गल्ले की
दुकान का मालिक
बात है ना मजेदार

उसके बाद चाहे तो भी
रुक नहीं पाता है
कोई भी हो ठेकेदार

बहुत समय से जबकी
लग जाते हैं इस काम में
लोग सपरिवार

दुकान का ठेका
उठाना चाह कर भी
नहीं हो पाते हैं
सफल हर बार

कोशिश करते ही
रह जाते हैं बेचारे
छोटे किटकिनदार

सरकार के काम
करने के सरकारी
तरीके को खुद कहाँ
जानती है सरकार

कुछ ऎसा ही एक
नजारा देखने में
आया है इस बार

एक बादल बेकार
नाराज हो कर
फट गया जा कर
एक कोने में
कहीं सपरिवार

ठेका देने वाले को
खुद उठाना पड़ा
एक कटोरा और
जाना पड़ गया
दिल्ली दरबार

प्रश्न गंभीर हो गया
अचानक
कौन चलायेगा
इस दुकान
को इस बार
आपदा की
इस घड़ी में
कौन ढूँढने जाता
एक सस्ते गल्ले की
दुकान के लिये
एक अदद ठेकेदार

मजबूरी में तंत्र
हुआ बेचारा लाचार
पकड़ लाया एक
पकौड़ी वाला जो
बेच रहा था
आजकल
कहीं पर
अपने ही अचार

कहा है उससे
जब तक हम
देते नहीं
दुकान को
एक अपना
ठेकेदार

तुझे ही
उठाना है
गिराना है
शटर इसका
पर पकाना
नहीं पकौड़े यहाँ

नहीं आना
चाहिये ऎसा
कोई अखबार
में समाचार ।

सोमवार, 30 जुलाई 2012

बेकार तो बेकार होता है

किसी के पास
होती है कार
कोई बिना
कार के होता है
किसी का
आकार होता है
कोई कोई
निराकार होता है
और एक
ऎसा होता है जो
होता तो है
पर बेकार होता है
ये बेकार
होना भी कई
कई प्रकार
का होता है
नौकरी नहीं
मिल पाती
तो बेकार
हो जाता है
छोकरी पाकर
भी कोई कोई
बेकार हो जाता है
कुछ नहीं
आता है और
बेकार कहलाता है
कभी कभी
बहुत कुछ
जानते हुऎ
भी कोई
बेकार हो जाता है
ज्यादातर
एक बेकार
बहुत दिनों
तक बेकार
नहीं रह पाता है
मौका मिलते ही
सरकार
बना ले जाता है
एक बेकार आपको
साकार
पर लिखता
हुआ मिल जाता है
दूसरा
निराकार को
आकार अपनी
कलम से ही
दे जाता है
बहुत सारा
बेकार बेकार
के द्वारा
बेकार पर ही
लिखा हुआ
मिल जाता है
खुद ही देख
लीजिये जा कर 
आप ही अपने आप
ज्यादा कारों
को एक बेकार
बेकार पर ही
खड़ा पाता है
पर जो है
सो है
वो तो है
एक बात सौ
आने पक्की है
कि बेकार
है क्या और
क्या नहीं है
बेकार
एक बेकार
से अच्छा
कोई नहीं
किसी को
कभी बता
पाता है ।

बुधवार, 27 जून 2012

विदाई

आज मैडम जी को
विदा कर के आया
उनके अवकाश ग्रहंण
के उपलक्ष्य में था
विभाग ने एक
समारोह करवाया
विदाई समारोह में
ऎसा महसूस होने
लग जाता है
मजबूत से मजबूत
आदमी भी थोड़ा
भावुक अपने को
जरूर दिखाता है
कौऎ मुर्गी कबूतर
भी होते हैं कहीं
आस पास में मौजूद
माहौल उन सबको भी
बगुला भगत बनाता है
एक के बाद एक
मँच पर बोलने
को बुलाया जाता है
कभी कुछ नहीं
कहने वाला भी
लम्बा एक भाषण
फोड़ ले जाता है
कोई शेर लाता है
शायर हो जाता है
कोई गाना सुनाता है
किशोर कुमार की
टाँग तोड़ने में जरा
भी नहीं घबराता है
कविता ले के आने वाला
अपने को सुमित्रा नन्दन पँत
हूँ कहने में नहीं शरमाता है
सेवा काल में सबसे ज्यादा
गाली खाने वाला जो होता है
सबसे बड़ी माला
वो ही तो पहनाता है
सारे गिले शिकवे भूल कर
नम आँखों से मुस्कुराता है
आँसू बनाने के लिये
कोई भी ग्लीसरीन
तक नहीं लगाता है
शब्दों का चयन देखने
लग जाये अगर कोई
अपने को अर्थ ढूढने में
असमर्थ पाता है
भावार्थ ढूँढने के लिये
घर वापस लौट कर
शब्दकोष ढूँढने
लग जाता है
इससे सिद्ध ये जरूर
लेकिन हो जाता है
कि अवकाश ग्रहण
करना माहौल को
ऊर्जावान जरूर ही
बना ले जाता है
फिर ये समझ में
नहीँ आ पाता है
कि विभागों में
शाँति व्यवस्था
कायम करने के लिये
अवकाश लेने देने को
हथियार क्यों नहीं
सरकार द्वारा एक
बना लिया जाता है ।

शुक्रवार, 25 मई 2012

नंदू और पैट्रोल

पैट्रोल
के दाम
जब से
हैं बढे़

मुझे
अभी तक
नहीं दिखाई
दिये किसी के
कान खड़े

कल शाम
मैंने सोचा
आज
जब मैं
सड़क के
रास्ते से जाउंगा
गाड़ियांं स्कूटर
मोटरसाईकिल
सब को
गायब पाउंगा

पर सारे
छोरा छोरी
लोग
और जोर के
फर्राटे की
आवाज आज
बना रहे थे
कल तक
एक दो
चक्कर
टकराते थे
आज
सात आठ
चक्कर
लगा रहे थे

स्कूल
पहुंचने पर
किसी ने भी
पैट्रोल की
बात भी नहीं की
कारें सभी
लोगों ने
लाकर
मैदान में
आज जरूर
खड़ी की

ट्रक ट्राँस्पोर्ट
गाड़ियोंं
वाले नेता
जगह जगह
भीड़ लगवा रहे थे

पुतले सरकार
के बना बना कर
आग भी लगाते
जा रहे थे

पैट्रोल की
बात पर
किसी ने
जब मुझे
मुँह नहीं
कहींं लगाया

कामगार
नंदू की याद
ने मुझे घर को
वापस लौटाया

घर जल्दी
आकर
मैंने नंदू से
सहानुभूति
जब जताई

नंदू को
मेरी बात
आज
बिल्कुल भी
समझ में
नहीं आई

बोला
बाबू साहब
पैट्रोल बढे़
गैस बढे़
मेरा कुछ
भी कहीं
नहीं जाने
वाला है

मेरे परिवार
में तो कोई
घासलेट भी
नहीं खाने
वाला है

आप लोग
तो कार
गाड़ी पर
हमेशा जायेंगे

मेरे पैर
के छाले
तुम्हारी
सरकार
को
कहाँ
नजर
आयेंगे।

बुधवार, 16 मई 2012

सफेद बाल

मेरे सफेद बाल
हो गये हैं अब
खुद मेरे लिये
आज एक बवाल

हर कोई इनसे
दिखता है परेशान

जैसे
उड़ रहे हों
मेरे सर के
चारों ओर
कुछ अजीब
से विमान

एक मित्र जो रोज
बाल काले करता है

उसकी बीबी
का डायलाग
हमेशा ऎसा
ही रहता है

अरे आपके
कुछ बाल
अभी काले
नजर आते हैं
आप
अपने बाल
डाई क्यों
नहीं कराते हैं

हर दूसरा भी राय
देने की कोशिश
करता है एक नेक
भाईसाहब आपके
बाल इतनी जल्दी
कैसे हो गये सफेद

एक सटीक दवाई
हम आपको बताते हैं

एक ही रात में
उसको खा के सारे
बाल काले हो जाते हैं

कल जब मैं सड़क पर
बेखबर जा रहा था
देखा एक आदमी
सड़क किनारे रेहड़ी
अपनी सजा रहा था

कुछ जड़ी बूटियां
बेचने वाला जैसा
नजर आ रहा था

मुझे देखते ही दौड़
कर मेरी ओर आया
हाथ पकड़ मेरा
मुझे अपनी रेहड़ी
की तरफ उसने बुलाया

अंकल अंकल ये वाली
बूटी आप मुझ से ले जाओ
एक हफ्ते में अपने
सारे बाल काले करवाओ

सौ रुपये में इतना
आप और कहाँ पाओ
असर ना करे तो
दो सौ मुझसे ले जाओ

उसको इतना उतावला देख
कर मैं धीरे से मुस्कुराया
उसकी तरफ जाकर
उसके कान में फुसफुसाया

पचास साल लगे हैं
इन बालों को
सफेद करवाने में
तुझे क्या मजा
आ रहा है
इनको एक हफ्ते में
काले करवाने में
मेरी की गई मेहनत
पर पानी फिरवाने में

कोई दिल काला
करने की दवा है
तो अभी दे जा
सौ की जगह
पाँच सौ तू ले जा

काले दिल वालों का
जमाना आ रहा है
उन सब को जेल से
बाहर निकाला जा रहा है

उनके खुद किये गये
घोटालों पर ब्याज भी
सरकार की तरफ से
दिया जा रहा है।

बुधवार, 2 मई 2012

सरकार का आईना

उन्होंने
जैसे ही
एक बात
उछाली

मैंने तुरन्त
अपने मन
की जेब
में सम्भाली

घर आकर
चार लाईन
लिख
ही डाली

कह रहे थे
जोर लगाकर

किसी
राज्य की
सरकार का
चेहरा देखना
हो अगर 

उस राज्य के
विश्वविद्यालय 
पर सरसरी
नजर डालो

कैसी चल
रही है सरकार
तुरत फुरत में
पता लगालो

वाह जी
क्या इंडीकेटर
ढूंढ के चाचा
जी लाये हैं

अपनी पोल
पट्टी खुद ही
खोलने का
जुगाड़
बनाये हैं

मेरी समझ
में भी बहुत
दिनों से
ये नहीं
आ रहा था

हर रिटायर
होने वाला
शख्स
कोर्ट जा जा
कर स्टे
क्यों ले
आ रहा था

अरे
जब बूढ़े
से बूढ़ा
सरकार में
मंत्री हो
जा रहा था

इतने
बड़े राज्य
का बेड़ा गर्क
करने में
बिल्कुल भी
नहीं शरमा
रहा था

तो
मास्टर जी
ने 
किसी
का 
क्या 
बिगाड़ा था

क्यों
उनको साठ
साल होते ही
घर चले जाओ
का आदेश दिया
जा रहा था

काम धाम के
सपने
खाली पीली
जब राजधानी
में जा कर
सरकार जनता
को दिखाती है

उसी तरह
विश्विद्यालय
की गाड़ी
भी तो
खरामे खरामे
बुद्धि का
गोबर बनाती है

जो कहीं
नहीं हो
सकता है
उसे करने की
स्वतंत्रता भी
यहाँ आसानी से
मिल जाती है

बहुत सी
बाते तो
यहाँ कहने
की मेरी भी
हिम्मत नहीं
हो पाती है

सुप्रीम कोर्ट
भी केवल
बुद्धिजीवियों
के झांसे
में ही आ
पाती है

वाकई में
सरकार का
असली चेहरा
तो हमें
ये ही
दिखाती है।

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

पप्पू और दुकान


पप्पू
की
दुकान में
अब
कोई नहीं आता

पिछली
सरकार से 
पप्पू
का था
कुछ नाता

पप्पू
पाँच साल
तक रहा 
पुराना राशन
बिकवाता

सभी
संभ्रांत लोगों
को
पप्पू
था बहुत ही भाता

ज्यादातर
लोगों
का 
पप्पू
की दुकान तक

इसीलिये
दिनभर में
एक
चक्कर तो था
लग ही जाता 

पप्पू
का
दीदार एकबार
होना ही
खाना पचा पाता

जब से
सरकार बदली है
अपने
कर्मों से
अभी तक
भी
नहीं वो संभली है

पता नहीं
चल पा रहा 
ऊँट
किस करवट 
बैठने को है
जाता

कौन सा
दुकानदार
अबकी बार
सरकार में
है
कुछ पैठ बनाता

बुद्धिजीवी
शाँत हो गया
कुछ नहीं है
वो बताता

पप्पू
भी
अब दुकान में
बहुत कम ही है
जाता

पप्पू की
दुकान में
अब
कोई नहीं आता।

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

जयजयकार बिल्लियों की

सौ चूहे भी खा गयी
बिल्ली कबका हज
कर के भी आ गयी
बिल्ली अब
हाजी कहलाती है
बिल्ली अब
चूहे नहीं खाती है
बिल्ली
चूहों को हिंसक होने
के नुकसान बताती है
बिल्ली अब
देशप्रेमी कहलाती है
केन्द्रीय सरकार से
सीधे पैसे ले के आती है
सरकारी कार्यक्रम
हो नहीं पाते हैं
अगर बिल्ली वहाँ
नहीं आती है
बिल्ला भी दांतो का नया
सेट बनवा के लाया है
उसने भी घर पर
मुर्गियों के लिये
एक आश्रम बनवाया है
बीमार मुर्गे मुर्गियों
को रोज दाना खिलाता है
उसके लिये सरकारी
ग्राँट भी लेके आता है
अपने बुड्ढे बुढ़ियों से
बरसों से इसी कारण
नहीं मिल पाता है
बिल्ली और बिल्ले
के बलिदान को देख
मेरी आँखे भर आती हैं
वो दोनो जब गाड़ी
से जा रहे होते हैं
लेट कर प्रणाम करने
की तीव्र इच्छा जाग
ही जाती है ।

बुधवार, 28 मार्च 2012

सरकारी

सरकार
की नौकरी
करने वाले
सरकारी नौकर
कहलाते हैं

गवर्न्मेंट सर्वेंट
कहलाते हैं

सरकार
बदलने से
कभी नहीं
घबराते हैं

कुछ लोग
जो सरकारी
नौकरी में
नहीं होते हैं
वो भी यहाँ
सरकारी
होना शुरु
हो जाते हैं

देख रहा हूँ
पिछली भाजपा
सरकार में
जो सरकारी
हो गया था
वो काँग्रेस की
सरकार को
आता हुवा
देख कर
कुछ दिन
के लिये
बैक फुट पर
चला गया था

इधर नयी
सरकार को
बनने सवरने
संभलने में
समय बीता
जा रहा था
उधर
वो अपनी
कैंचुली का
ड्राईक्लीन
करवा रहा था

पिछले साल
नवसंवत्सर
पर वो घर पर
गेरूवा झंडा
फहरा रहा था

इस बार
पूछने पर
हैप्पी न्यू इयर
1 जनवरी को
कर चुका है
ये बता रहा था

कुछ
कुछ अंदाज
मुझको भी
आ रहा था

प्रधानाचार्य का
कार्यकाल पूरा
होने जा रहा था

वो शुरू
हो चुका था

दूर की कोड़ी
पकड़ने को
अभी से
जा रहा था ।

शनिवार, 10 मार्च 2012

जय हो

सोनिया जी
राहुल जी
प्रियंका जी
को होली
की बधाई

सुना मैने
उत्तराखंड में
सरकार है
कांंग्रेस की
है आई

इसलिये
सारी बधाई
मैने आपके
लिये ही बचाई

कुर्सियाँ सब
बाँट ही
लेंगी आप
लाईन है
लम्बी लगाई

और
पार्टियों की
लाल बत्तियाँ
आपने गधेरे
में पहुंचाई

कांंग्रेस की
लाल बत्ती की
ऎप्लीकेशन
मैने अभी
नहीं लगाई

होली की
मजाक में
मैने ये बात है
आपको बताई

वरना कहाँ
आने वाली
ठैरी
आम जनता
तक मलाई।

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

गधा

गधा धोबी को छोड़
कौन पालना है चाहता
पर कभी अनायास मुझे
जरूर है याद दिलाता
बच्चा गधा गधे का बच्चा
भोला होता है और सच्चा
जवान तगड़ा
कुवाँरा गधा
बेरोजगार गधा
रोजगार में गधा
मुहब्बत की खोज में
खो जाता है गधा
मुहब्बत मिल गयी अगर
पागल हो जाता है गधा
गधे को देख देख
खुश हो जाता गधा
गधे से ही फिर कभी
दुखी हो जाता गधा
शादी शुदा परिवार
का मारा गधा
बीबी बच्चों के दुलार
का मारा गधा
हर तरफ गधों की
भरमार से
घबराता गधा
ढेंचू ढेंचू
आवाज करना
चाह कर भी ना
कर पाता गधा
घर के दरवाजे पर
गधों का नाम
खुदवाता गधा
हरेक बात पर
सर हिलाता गधा
समझ लेता
है सबकुछ
गधों को
समझाता गधा
पागलों का
सरदार भी
कहलाता गधा
गधों का सरदार
भी हो जाता
वो ही गधा
गधों के प्रकार
बताता गधा
अपने को गधों से
बाहर पाता गधा
गधों के प्रतिशत का
हिसाब लगाता गधा
वोट देने हर बार
हो आता गधा
अपने गधे को
जिता नहीं पाता गधा
गधों की सरकार
कभी नहीं बना
पाता गधा
गधे का गधा
ही रह जाता गधा ।

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

चुनाव और आदमी का प्रतिशत

हर बार
की तरह
इस बार
भी
दिखा रहा है
आज का
अखबार भी

चुनाव की
बेला पर
जाति
समीकरण
का
समाचार भी

बिना
इसके
चुनाव
हमेशा
अधूरा रह
जाता है

आदमी का
समीकरण
इन सब
में विलीन
हो कर
खो जाता है

हर जाति
का प्रतिशत
दिखाया
गया है
आज के
अखबार में
मीडिया
भी खूब
भटकाती
रही है
इस
तरह के
समाचार में

आदमी
का प्रतिशत
आज तक
क्यों नहीं
छप पाया
किसी भी
समाचार में

कैसे
बताये कोई
जब
भेजते हैं ये
वोट देने
जातियों को
जातियों के लिये
हर सरकार में

आदमी
जिस दिन
वोट देने पर
उतर आयेगा

जाति
समीकरण
इंसानियत
की किताब
में कहीं
खो जायेगा

जीतने
हारने वाला
सिर्फ आदमी
हो जायेगा

पढे़ लिखे
लोगों का
मुंह तब बंद
हो जायेगा

आदमी का
प्रतिशत
वाकई में
उस दिन
पूरा सौ
हो जायेगा।

सोमवार, 9 जनवरी 2012

इतवारी मुद्दा

दैनिक हिन्दुस्तान रविवार का पन्ना छ:
पढ़ कर हुवा मैं भावुक और गया बह ।

शिक्षक संघर्ष समिति खफा सुन राज्य सरकार
वादाखिलाफी का लगाया आरोप किया खबरदार।

खबर है "बेरोजगार और शिक्षक सरकार से खफा"
"बेरोजगार शिक्षक" होती तो ज्यादा आता मजा।

विपक्ष के हो गये मजे सरकार को नहीं देगें ये अब वोट
साठ से पैंसठ नहीं किये हैं ये अब खायेंगे देखो चोट।

इतना जरूर अच्छा हुवा है कोई नहीं बदला अपना दल
सरकार के दल वाला नहीं गया और कहीं पाला बदल।

इस बार सरकार के दल वाले शिक्षक हो गये थोड़ा विफल
सांठ गांठ है ही विपक्ष के शिक्षक शायद अब दें तकदीर बदल।

चिंता की कोई बात नहीं है सरकार जिसकी भी आयेगी
बहुत जोर है बूढे़ बाजुओं में पैंसठ जरुर करवायेगी।

बाकी खबर खबर है ये बेरोजगार कैसे फंसे खबर में
शायद सोचे होंगे रास्ता साफ हो जायेगा ये तो जायेंगे कबर में।