रविवार, 10 दिसंबर 2023
बेवकूफ है बस एक ‘उलूक’ होशियार सारा जहां है
शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023
जूते फटे भी रहें तब भी कुछ पालिश तो होनी ही चाहिए
चित्र साभार: https://www.hiclipart.com/
गुरुवार, 30 नवंबर 2023
रास्ते सब अपनी जगह हैं लोग बस कहीं नहीं जाते हैं
रविवार, 8 अक्तूबर 2023
मैं ही बस बिजूरवा रहूँगा कुछ और हो नहीं रहा हूँ
सितम्बर २०२३ तक "उलूक टाइम्स" के साठ लाख पृष्ठ दृश्य के लिए पाठकों का आभार
नकाब चूहे का है मान लिया है उसने
किसी को छूआ नहीं है
अहसास कभी हुआ नहीं है
घेर कर रखना चाह रहे हैं बंधुआ नहीं है
ताश के पत्तों का जोकर हो नहीं रहा हूँ
नहीं भी है तब भी
ना लिखिए कहीं भी एक कुंआ नहीं है
बौछार लिख दीजिये
बस पूछिए वही जो हुआ नहीं है
खो नहीं रहा हूँ
सब इज्जतदार हैं डरिये नहीं
मामा है कहीं बुआ नहीं है कहीं
ताऊ बन गया है यहीं
शायद कोई जाग रहा हो
किताब में
दो और दो चार बताया गया है
जो कहें
आठ होने की बाट जोह नहीं रहा हूँ
सारे सोये हुओं ने दस्तखत किये हैं
अखबार छापता है खबर
जो दुधारू खबरी उसे देता है
खबरी ने सबूत दिए हैं
सारे चोर ईमानदार है मुझे भी होना है कुछ
सभी कौए
पंख फैला कर मोर हो गए हैं
नाचना मुझे भी है आँगन टेढ़े हैं
कुछ और हो नहीं रहा हूँ
हर कोई
लटका कर घूम रहा है
गले में ताबीज किस्मत का अपनी
किसी एक रंग का
अच्छा है खुश हो नहीं रहा हूँ
गेरुआ है सफ़ेद है हरा है तिरंगे में
खून का रंग लाल है सींचना है बागवां है
अभी तो चुप हो नहीं रहा हूँ
शनिवार, 2 सितंबर 2023
समय बताएगा समय ही बताता है आंखे बंद को सब कुछ साफ़ नजर आता है
एक कबूतर
किसी दिन यही कबूतर
उसी के लिए वो एक कौआ हो जाता है
मूड बहुत अच्छा होता है
उसी से पढ़ लिया जाता है
समय ने
तब भी बताया था समय अब भी बता रहा है
समय ही है जो आघे भी बताएगा
सब की समझ में आता है
अपना अपने मतलब का समझ में आ ही जाता है
क्या लिखते हैं
कभी भी समझ नहीं पाते हैं लोग
कहते हैं हमेशा कौन शरमाता है?
कुछ लोगों को अलग बात है
बस बताने में कुछ संकोच सा हो जाता है
फिर भी कोशिश करते हैं लिखते चले जाते हैं
बस यहाँ ही कागजी तलवार चला ले जाना
सब को ही आता है
लिखे पर
लिखा आपका बता जाता है
आप पढ़े लिखे हो समझ में आपके सब कुछ आ जाता है
सब कुछ साफ़ साफ़ बता जाता है
लिखे को पढ़कर
उस पर कुछ लिखने वाले की तस्वीर
सामने से आ जाती है
कौवा एक देख जब जाता है
समय जरूर बताएगा
समय सबको सब कुछ सही सही बता जाता है
गलतफहमी बनी रहनी भी जरूरी है
भाग्य से ही सही
बन्दर हनुमान जैसा नजर आता है
‘उलूक’ अपनी आँखों से देखना बहुत अच्छा है
बन्दर को बन्दर देखने वाले को
समय बतायेगा कहना जुलम हो जाता है |
गुरुवार, 24 अगस्त 2023
बिना पत्थर खुद को उछालता हुआ सामने से पत्थर की तस्वीर हाथ में लिए खुद को ही कोई लहरा रहा था
कि होने ही नहीं देता है एक भी छेद कितना भी लगाले कोई जोर
वो नहीं रहा कभी भी किसी की ओर
जिस पर उस का नहीं चल रहा कोई जोर है
जिसके पास ना कोई पत्थर रहा कभी
ना उसे किसी पत्थर से मतलब रहा
उसके मन में ही चोर है
हर किसी के ख़्वाब में होते हुए छेद महसूस किये जा रहे थे
किसी एक पत्थर पर छपा ले जाए खुद का नाम योजना बना रहा था
आसमान मुस्कुरा रहा था
नजर रहती है क्योंकि उसकी चारों ओर
तालियों से आसमान गडगडा रहा था
एक पत्थर ने नहीं किया छेद करोड़ों छेदों से हुआ है आसमान पटा
दूरदर्शन बताना चाह रहा था
पत्थर की तस्वीर हाथ में लिए खुद को ही कोई लहरा रहा था
अचानक दूरदर्शन में देखने वालों की संख्या में बहुत बडी गिरावट
आने वाले समय को अच्छी तरह समझा रहा था
‘उलूक’ एक पत्थर तबीयत से तो उछालो यारो का मतलब
सारे देश को आज फिर से
बहुत अच्छी तरह से समझ में आ रहा था |
सोमवार, 21 अगस्त 2023
कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर
शुक्रवार, 18 अगस्त 2023
सामने ‘उलूक’ को देख कर खुजली से भर जाता है लेकिन बाद में कही और जा कर खुजलाता है
किसको किससे होती है किसको कब होती है और
किसको कहां होती है में जरूर कुछ बात होती है
सामने से दिखे आता हुआ कोई
खुजली हो और खुजला ना सके कोई
गलत बात होती है
रास्ता संकरा होने से इधर उधर कहीं जा ना सके कोई
चहरे पर नजर आना शुरू हो जाए खुजली
आ रही है देख कर भी मुस्कुरा ना सके कोई
कैसे कहे कोई ये बाते बस इत्तेफाक होती हैं
बहुत ही खतरनाक होती है कुछ खुजली
अचानक शुरू हो लेती है कहीं पर भी कभी भी
गजब की खुजली होती है और बेबात होती है
कोई किसी को नहीं बताता है कि खुजलाता है
कोई किसी को नहीं दिखाता है कि खुजलाता है
खुजली को महसूस भर कर लेता है थोड़ा सा
दिमाग में अपने ही कुछ दही जमाता है
मौके का इंतज़ार करता है खुजलाने वाला
लोहा गरम देख कर हमेशा हथौड़ा चलाता है
खुजली हुई थी बहुत जोर से हुई थी
खुजला लिया गया है साफ़ साफ़ पता चल जाता है
एक नोटिस छोटा झंडा फहराने का
और एक नोटिस झंडे पर ज़रा सा टेड़ा डंडा लगाने का
एक डंडे वाला हाथ में जब थमा जाता है
‘उलूक’ कुछ दवा क्यों नहीं खाता है
कुछ ईलाज अपना क्यों नहीं करवाता है
बहुत से लोगों को किसलिए होने लगती है खुजली
जब भी कभी उन्हें तू
सामने से मुस्कुराता हुआ आता नजर आ जाता है ?
चित्र
साभार: https://www.dreamstime.com/
मंगलवार, 15 अगस्त 2023
आजादी के मायने सबके लिये उनके अपने हिसाब से हैं बस हिसाब बहुत जरूरी है
आज की मजबूरी है
रविवार, 6 अगस्त 2023
फटी सोच से फटी किताब में लिखे गए कुछ फटे शेर 'उलूक' ले कर के आता है
भटक कर अँगुलियों के पोरों तक आ जाता है
सामने पड़े सफ़ेद पर बस फ़ैल जाता है
खून
लाल होता है कहा जाता है
सफ़ेद होकर कब पानी में बदल जाता है
कहीं जिक्र नहीं करता है कोई
इंसान होने में अब किसे फक्र हो पाता है
कूंची
लिए हाथ में कसमसाता है
रंगों से इन्द्रधनुष बनाना चाहता है
एक रंग काफी होता है
पागल बादशाह जब जाल
अपना फैलाता है
सीधे
तू चोर है कभी भी नहीं कहना चाहिए
ना ही किसी से सीधे कहा जाता है
अलीबाबा के समय चालीस रहे होंगे
अब तो पांच सौ चालीस से देश चल पाता है
सीवर जरूरी नहीं सब बहा कर ले जाए
बहुत कुछ सब के हिस्से का बचा रह जाता है
सफाई और गन्दगी के बीच की लाइन खींचना ठीक नहीं
अब माना जाता है
सब कुछ हम्माम हो चला है देख रहे हैं खुद
को नहाते हुए इसी में
कौन हडबड़ाता है
गांधी को सोचना और उसकी बात करने वाला
अब एक निहायती गंवार माना जाता है
खोदना जरूरी है सारी खूबसूरत इमारतों को एक बार
और ये उसे करना है
तू किसलिए लरबराता
है
ईट बहुत है औकात बताने के लिए
क्यों पगलाता है
चर्च मन्दिर मस्जिद
गुरूद्वारा अगर भरभराता है
बहुत सारी गन्दगी है बहुत बदबूदार है
फेंकना भी होता है हर कोई फेंकना भी चाहता है
‘उलूक’ आसान नहीं होता है शब्द नहीं होते हैं पास में
एक वाक्य तक नहीं बनाया जाता
है |
सोमवार, 31 जुलाई 2023
टाईटैनिक के डूब लेने का मुहूरत कहीं ना कहीं तो लिखा होता है
कितना भी सांप हो लेता है
एक लम्बे समय तक कुण्डली मार लेने के बाद
सीधे हो कर लौटना आसान नहीं होता है
सांप होना काटने की आदत होना
अलग अलग बातें होती हैं
और हर सांप जहरीला हो
ये भी जरूरी नहीं होता है
सावन का महीना शिव के लिए होता है
भस्म मलने के लिए होती है
भस्मासुर हर पहर का
उसी पहर में भस्म नहीं होता है
अजीब सी बातें हैं अजीब सी आदतें हैं
अजीब सा समा है अजीब से मेहमा है
क्या होता है अगर तजुर्बा नहीं होता है
शब्द हुंकार के डमरू में सुनाई देते हैं
उसके लिए कान खड़े हों
ये भी कहीं लिखा नहीं होता है
एक लंबा समय लगता है पूँछ को टेडे होने में
सीधे कर लेने के सपने देख लेने का
कोई समय नहीं होता है
रेत पर बने महल कई सालों तक यूं ही खड़े रह सकते हैं
किसने कह दिया
इस बार की आंधी ने पहले से अगर आगाह कर भी दिया होता है
हजारों कश्तियां होती हैं समुन्दर में कही ना कहीं
जहां और जब डूबना होता है
वो समाचार अखबार में कभी भी
बहुत पहले से नहीं होता है
‘उलूक’ इंतज़ार कर
खुश हो कर सोच ले
इस बार नहीं तो अगले किसी बार
टाईटैनिक के डूब लेने का मुहूरत
कहीं ना कहीं तो लिखा होता है|
चित्र साभार: https://www.deviantart.com/
रविवार, 18 जून 2023
समझ में आना बंद हो गया
मंगलवार, 2 मई 2023
बस यूँ ही
लिखना नहीं आना नहीं होता है
अहसास लिख जाते है
कुछ को लिख दिये का अहसास होता है
बादल कहीं नहीं होता है
पानी पानी हो शर्मसार होता है
इसको उसका सब पता होता है
बस अपना कुछ पता नहीं होता है
सबको पता होता है
कोई कहता नहीं है मगर गुलाम होता है
बस लिखना जरुरी होता है
आंधी में लिखा सब कुछ सामने से ही उड़ा होता है
शराफत का यही कायदा होता है
जर्रे जर्रे में जिसने सब हलाल किया होता है
कुछ नहीं कहीं होता है
बस कुछ देखना ही होता है |
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/
शनिवार, 29 अप्रैल 2023
भीड़ से निकल बस्ती नहीं शहर लिख दे
मत निकल बाहर
थोड़ा सा कोशिश कर
जा बड़ी सी एक नहर लिख दे
रोज नहीं कभी
एक पहर लिख दे
‘उलूक’ गर गहर लिख दे |
शनिवार, 4 फ़रवरी 2023
कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं
शनिवार, 31 दिसंबर 2022
लम्हे
alexa Rank 238300
शनिवार, 19 नवंबर 2022
स्वागत है: शहर आपके कदमों की बस आहट से आबाद है
सोमवार, 31 अक्तूबर 2022
कुछ रखना कुछ बकना ना कहे कोई घड़ा चिकना हो गया
शुक्रवार, 30 सितंबर 2022
इतना लिख कि लिख लिख कर कारवान लिख दे
कभी तो कोशिश कर थोड़ा सा आसमान लिख दे
छोड़ एक दिन बिना सोचे पूरा एक बागवान लिख दे
जैसे एक दिन में कोई पूरा कूड़ेदान लिख दे
बुधवार, 31 अगस्त 2022
साथ में लेकर चलें एक कपड़े उतारा हुआ बिजूका
एक कपड़े उतारा हुआ बिजूका
जो चिल्ला सके सामने खड़े उस आदमी पर
जिसको नंगा घोषित
कर ले जाने के सारे पैंतरे उलझ चुके हों
ताश के बावन पत्तों के बीच कहीं किसी जोकर से
बस शराफत चेहरे की पॉलिश कर लेना बहुत जरूरी है ध्यान में रखना
सारे शराफत चमकाए हुऐ
एक साथ एक जमीन पर एक ही समय में
साथ में नजर नहीं आने चाहिये लेकिन
बिजूका के अगल बगल आगे और पीछे
हो सके तो ऊपर और नीचे भी
सारी मछलियों की आखें
तीर पर चिपकी हुई होनी चाहिये
और अर्जुन झुकाए खड़ा हुआ होना जरूरी है अपना सिर
सड़क पर पीटता हुआ अपनी ही छाती
गीता और गीता में चिपके हुऐ
कृष्ण के उपदेशों को
फूल पत्ते और अगरबत्ती के धुऐं की निछावर कर
दिन की शुरुआत करने वाले
सभी बिजूकों का
जिंदा रहना भी उतना ही जरूरी है
जितना
रोज का रोज सुबह शुरु होकर शाम तक
मरते चले जाने वाले शरीफों की दुकान के
शटर और तालों की धूप बत्ती कर
खबर को अखबार के पहले पन्ने में दफनाने वाले खबरची की
मसालेदार हरा धनिया छिड़की हुई खबर का
सठियाये झल्लाये खुद से खार खाये ‘उलूक’ की बकवास
बहुत दिनों तक कब्र में सो नहीं पाती है
निकल ही आती है महीने एक में कभी किसी दिन
केवल इतना बताने को कि जिंदा रहना जरूरी है
सारी सड़ांधों का भी
खुश्बुओं के सपने बेचने वालों के लिये।