उलूक टाइम्स: 2025

बुधवार, 9 जुलाई 2025

छील कुछ दिखा कुछ हाथी के ही सही


कुछ
बक बका दिया कर
हर समय नहीं भी 
कभी
किसी रोज

चाँद
निकलने से पहले
या सूरज डूबने के बाद

किसने
देखना है समय
किसने सुननी है बकबास
जमीन में बैठे ठाले
मिट्टी फथोड़ने वाले से

उबलते दूध के उफना के
चूल्हे से बाहर कूदने के
समीकरण बना
फिर देख

अधकच्चे
फटे छिलकों से झाँकते
मूंगफलियों के दानों की
बिकवाली में उछाल

सब समझ में
आना भी नहीं चाहिए

पालतू कौए का
सफेद कबूतर से
चोंच लड़ाना भी 
गणित ही है

वो बात अलग है
किताब में
सफेद और काले पन्नों की गिनतियाँ
अलग अलग रंगों से नहीं गिनी जाती हैं

इसलिए
उजाले में ही सही निकल कोटर से

दांत
ना भी हों फिर भी
छील कुछ
कुछ दिखा 
हाथी के ही सही

 ‘उलूक’
मर गया और मरा हुआ
दो अलग अलग बातें हैं |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

गुरुवार, 26 जून 2025

शुभकामनाएं जन्मदिन की पाँच लिंक्स

 

चिट्ठियाँ ना जाने कब का सो गयीं
या शायद रास्ते में कहीं खो गयीं
लेकर के झोले डाकिए दिखते तो हैं 
कुछ सामान शायद अभी भी बिकते तो हैं
चिट्ठे होश खो रहे हों जैसे
चिट्ठाकार कुछ बेहोश हो रहे हों जैसे
कलम हाथ में रहती है जैसे
जुबां तक फिसल कर बात बस बहती है जैसे
कहीं कुछ नशा है कहीं कुछ जहर है
पर है कुछ कहीं मीठी सुबह मीठा दोपहर है
अपने में मगन है अपने ही शगुन हैं
सिमटते गाँव घर सड़क नदी सिमटते हुए शहर हैं
बैचेन जानवर हैं पंछी नदारत हैं
हवा बहक रही हो जैसे उदास सी कुछ इमारत है
फिर भी उठाता है कोई कभी किसी को
जगाता है नींद से यूं ही कोई कहीं किसी को
लिखने लिखाने की बातें इधर से उधर से
उठा कर जमा कर एक चौपाल पर कब से
लाता बताता जागते रहो कि आवाज सुनाता किसी को
शुभकामनाएं 'उलूक' की इसको उसको सभी को
जन्मदिन मनाता "पाँच लिंकों का आनंद"
साथ में रथयात्रा का निमंत्रण दे जाता है सबको

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

    शनिवार, 11 जनवरी 2025

    जद्दोजहद होने ना होने के बीच

     



    अभी उसने बताया तुम हो 
    समझाया भी खरा खरा  होने का मतलब 
    अच्छा महसूस हुआ 
    नहीं होने से होने तक पहुंचना 
    बहुत बड़ी बात लगी 
    समझ में भरा था  सभी होते हैं होते ही होंगे 
    उन सभी में हम भी होते हैं 
    ये किसी ने कभी नहीं बताया 
    बहुत बहुत धन्य महसूस किया
    धन्यवाद दिया उसे 
    कितना ख्याल रखते हैं लोग 
     बता देते हैं बिना लाग लपेट होने का मतलब 
    महसूस भी करा देते हैं बहुत अच्छी तरह होना 
    अब उसने बताया का मतलब
    सभी पर लागू हो ये जरूरी है या नहीं 
    ये किस से पूछा जाए
    किसी के लिए होना
    किसी और के लिए भी होना ही हो
    या एंवें ही  कुछ भी 
    खयाली पुलाव 
    कभी भी कहीं भी कैसे भी पक लेते हैं 
     ना शरम ना लिहाज 
    अब पुलाव को कैसी शरम 
    तुम्हारे भरम से उसे क्या लेना देना
    जिंदगी किस मोड़ पर
    कहां ले जा कर पटक देगी
    पहले से पता होता  
    तो अब तक कई किस्म के
    हेलमेट बाजार में आ चुके होते 
    अमेजन फ्लिपकार्ट और भी
    धड़ाधड़ बिकवाली 
    अपने से ज्यादा घरवाली सहेज कर रखती
    और पड़ोसन जल रही होती 
    पहाड़ चढ़ना शुरू करते ही
    सभी चोटी दिखाते हैं 
     सारे गुरु घण्टाल समझाते हैं 
    यूं जाओगे और यूं उतर आओगे 
    समझ में तो तब आता है 
    जब बीच में
    पहुंचते पहुंचते समय पूरा हो गया की घंटी
    सुनाई देना शुरू हो जाती है 
    ना उतरा जाता है ना चढ़ा जाता है 
    ऊपर से रास्ते की ठोकरें 
    हजार बार कराती चलती हैं औकात बोध 
    फिर भी घिसा पिटा कॉलर खड़ा करने से
    कहां बाज आया जाता है
    कांटा लगा मिर्ची लगी मुस्कुराते हुए गाने वाले
    एक नहीं हजार मिलते हैं 
    लेकिन फिर भी 
    नहीं होने देंगे इसे तो कभी नहीं के बीच 
    एक लंबी पारी खेलने वाले के लिए 
    आउट होते समय भी
    अंततः हो जाना बहुत बड़ी बात है 
    है कि नहीं आप ही बताइए 
    और मुस्कुराइए आप भी हैं 
    हमे समझाने के लिए
    हमारे होने ना होने के
    बीच का अगर कुछ है  
    आप के पास 

    चित्र साभार:
    https://www.shutterstock.com/