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शनिवार, 19 जनवरी 2013

साँप जी साँप

नमस्कार !
साँप जी
आप कुछ भी
नहीं करते
फिर भी
आप बदनाम
क्यों हो जाते हो
पूछते क्यों नहीं
अपने सांपो से कि
साँप  साँप से
मिलकर साँपों की
दुनियाँ  आप क्यों
कर नहीं बसाते हो
डरता हुआ
कोई भी कहीं
नहीं दिखता
सबके अपने
अपने  काम
समय पर
हो जाते हैं
मेरे घर का साँप
मेरे मौहल्ले का साँप
मेरे जिले और
मेरे प्रदेश का साँप
हर साँप का
कोई ना
कोई साँप
जिंदा साँप
मरा हुआ साँप
सभी सांप
ढूँड  ढूँड कर
कोई ना कोई साँप
ले ही आते हैं
साँप अगर घूमने
को जाता है
कम से  कम एक
साँप को निगरानी
करने को जरूर
छोड़ जाता है
साँपो की जाति
साँपों की श्रैणी
की  साँप लोग कहाँ
परवाह  करते हैं
हर साँप दूसरे साँप
के जहर की दूध
से पूजा करते हैं
कभी भी अखबार में
साँप का साँप के द्वारा
सफाया किया गया
खबर नहीं आती
शहर के साँप की
अखबार के सांप
के द्वारा फोटो
जरूर ही है
दी जाती
अखबार के साँप
की जय जयकार है
जो साँप की सोच के
साथ दोस्ती
जरूर है निभाती
साँप को पत्थर में भी
लेकिन नेवला
हमेशा नजर आता है
साँप गुलाब के फूल को
देख कर भी घबराता है
साँप नहीं बन रहा है
प्रधानमंत्री सोच
सोच कर साँप
बहुत रोता जाता है
नेवला भी उसको
ढाँढस जरूर
बंधाता है
किसी को इस बात में
कोई अचरज नजर
नहीं आता है
ना तेरे ना मेरे
बाप का कहीं कुछ
जाता है
लाईक तभी
करना जब
लगे तेरे को
भेजे में तेरे
मेरे भेजे की
तरह गोबर
कहीँ भी थोड़ा
नजर आता है।

बुधवार, 7 नवंबर 2012

ले खा एक स्टेटमेंट अखबार में और दे के आ

पागल उल्लू

आज फिर

अपनी
औकात
भुला बैठा

आदत
से बाज
नहीं आया

फिर
एक बार
लात खा बैठा

बंदरों के
उत्पात पर
वक्तव्य
एक छाप

बंदरों के
रिश्तेदारों के

अखबार
के दफ्तर
दे कर
आ बैठा

सुबह सुबह
अखबार में

बाक्स में
खबर
बड़ी सी
दिखाई
जब पड़ी

उल्लू के
दोस्तों के
फोनो से

बहुत सी
गालियाँ
उल्लू को
सुनाई पड़ी

खबर छप
गई थी

बंदरों के
सारे
कार्यक्रमों
की फोटो
के साथ

उल्लू
बैठा था
मंच पर

अध्यक्ष
भी बनाया
गया था

बंदरों के
झुंड से
घिरा हुआ

बाँधे
अपने
हाथों
में हाथ ।

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

मंदिर और ऎसिडिटी

यहाँ पर
सुबह सुबह
पहले तो
एक मकान
के आगे
नतमस्तक
खड़ा हुआ
नजर आ
रहा था
आज से मंदिर
हो गया है
अखबार में
पढ़कर आ
रहा था
वहाँ पर
बेशरमों के बीच
शरम का एक
मंदिर बनाने
का प्रस्ताव
लाया जा
रहा था
बेशरम को जब
आती थी
शरम तो
ऎसी जगह
में फिर क्यों
जा रहा था
रोनी सी
सूरत ले
हमें बता
रहा था
किताबों में
लिखा हुआ
होता था
जो कभी
वो सब
अब कोई
नहीं सुना
रहा था
जो कहीं
नहीं लिखा
गया है कभी
उसपर दक्ष
हर कोई
नजर आ
रहा था
ताज्जुब की
बात हर
कोई कुछ
भी पचा
ले जा
रहा था
जिसे पच
नहीं पा
रहा था
डाक्टर के
पास जा
ऎसिडिटी का
इलाज करवा
रहा था ।

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

सपना कर अपना पूरा कम्पनी बना

अपने
सपनों को
हकीकत
में नहीं
अगर
बदल पाओ

दिमाग
है ना
उसे 
काम
में लाओ

अपने
सपनों के
शेयर बनाओ

कुछ
अपने जैसे
सपने देखने
वालों के
सपनों के
साथ मिलाओ

कम्पनी
एक खड़ी
कर बाजार
में ले आओ

कम्पनी
के सपनों
की ये बात
किसी को
भूल कर भी
मत बताओ

ऎसा
मुद्दा एक
इसके
बाद उठाओ

जिसको
लेकर लोगों
के सपनों को
उकसा पाओ

पार्टी शार्टी
जात पात
भेद भाव
ऊँच नीच
की सोच पर
कुछ दिन
के लिये
विराम लगाओ

मनमोहन
के हो तो
आडवानी जी
वाले के साथ
कुछ दिन बिताओ

माया दीदी
से प्रेम
रखने वाले
मुलायम वाले
की साईकिल
पर बैठे
दिख जाओ

धार्मिक
आस्था भी
कुछ दिन
के लिये
भूल जाओ

एक
दूसरे में
हिल मिल
जाओ

देखने
वाले लोग
पागल हो जायें

कुछ कुछ
ऎसा माहौल
दो चार ही महीनो
के लिये बनाओ

कुछ दिन
मीटिंग सीटिंग
करते हुऎ
नजर आओ

पोस्टर
वोस्टर थोडे़
शहर में
वाओ

अखबार
में कुछ
समाचार
छपवाओ

इन सब
के बीच
काम हो गया
पता चलते ही
गोल हो जाओ

नजर
मत आओ
कम्पनी की टोपी
किसी दूसरे के
सर पर रख जाओ

सन्यासी
हो गये हैं
वो तो कब के
जैसी 
खबर
तुरंत फैलाओ 


जाओ
अब यहाँ
क्या बचा है
किसी और के
सपनो में अपना
सिर मत खपाओ ।

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

ज्योतिष हो गया अखबार

जन्म पत्री बाँचते हैं
बहुत ही ज्ञानी हैं
पंडित जी का
नहीं कोई सानी है
हर साल आते हैं
मेरे घर पर दो बार
माँगते हैं जन्म पत्री
सबकी हर बार
बताते हैं कुछ भूत
और कुछ भविष्य
वैसे का वैसा ही
जैसा बता गये थे
पिछली बार
आये कल भी
उसी तरह इस बार
पोथी निकाल कर
बैठे महानुभाव
शुरू किया बाँचना
हमेशा की तरह
नक्षत्रों को
सुनाने लगे
वही पुरानी रामायण
सुनते ही पुरानी कथा
जब नहीं रहा गया
पंडित जी से मैने
तब कह ही दिया
गुरू कुछ नई बात भी
कभी कभी बताया करो
जन्मपत्री से भी अगर
कुछ खोद नहीं
पा रहे हो तो
कम से से कम
अखबार तो पढ़ कर
के आया करो
आजकल तो जो
होना है आगे वो
पहले अखबार में
ही आता है
उसके बाद ही
होना है जो तभी
तो हो पाता है
मजे की बात
इसमें ये है
कि  ग्रह नक्षत्र
को भी पता नहीं
चल पाता है
कि अखबार
वालों को
ये सब कौन जा
के बताता है
इसीलिये तो
जो वाकई में
हो रहा है वो
अखबार में
कम ही
जगह पाता है
अखबार से
बढ़िया जन्मपत्री
पंडित अब तू भी
नहीं बाँच पाता है ।

रविवार, 19 अगस्त 2012

खबर

बहुत से समाचार
लाता है रोज
सुबह का अखबार
कहाँ हुई कोई घटना
किस का टूटा टखना
मरने मारने की बात
लैला मजनूँ की बारात
कौन किसके साथ भागा
कहाँ पड़ गया है डाका
ज्यादातर खबर होती हैं
देखी हुई होती हैं
और पक्की होती हैं
सौ में पिचानवे
सच ही होती हैं
इन सब में से
मजेदार होती है
वो खबर जो कहीं
तैयार होती है
रात ही रात में बिना
कोई बीज को बोये
सुबह को एक ताड़
का पेड़ होती हैं
इस के लिये पड़ता है
किसी को कुछ
कुछ खुद बताना
चार तरह के लोगों से
चार कोनों में शहर के
एक जोर का ऎसा
भोंपू बजवाना
जिसकी आवाज का हो
किसी को भी सुनाई
में ना आना
जोर का हुआ था शोर
ये बात बस अखबार से ही
पता किसी को चल पाना
या कुछ बंदरों को जैसे
केलों के पेडो़ के
सपने आ जाना
बंदरों के सपनो की बातें
सियारों के सोर्स से
पता चल जाना
इसी बात को
गायों का भी
रम्भा रम्भा
कर सुनाना
पर अलग अलग
अखबार में
केलों के साईज का
अलग अलग हो जाना
बता देती है खबर किस
खेत में उगाई गयी है
मूली के बीच को बोकर
गन्ना बनाई गयी है
पर मूली गन्ने
और बंदर के केले को
किसी को भी
कहाँ खाना होता है
पता ये चल जाता है
कि किस पैंतरेबाज को
खबर पढ़ने वालों को
उल्लू बनाना होता है
बेखबर होते हैं ज्यादातर
खबर पढ़ने वाले भी
उनको कुछ समझ में
कहाँ आना होता है
पेंतरेबाजों को तो अपना
उल्लू कैसे भी सीधा
करवाना ही होता है ।

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

स्पोक्समैन

पढ़ा लिखा
होने से

कुछ हो ना हो

आदमी
समझदार
बड़ा हो जाता है

कुछ नहीं कहता है

उसे
अपने मुँह पर
हैरीसन का
ताला लगाना
आ जाता है

सबसे
ज्यादा
होशियार
पढ़ा लिखा

पढे़ लिखों
की एक
जमात का

कहने सुनने
की जिम्मेदारी
अपने आप
ही उठाता है

बिना
किसी से पूछे हुऎ

अपने
मन की
कहानियाँ
खुद ही
बनाता पकाता है

अखबार में
अपने वक्तव्य

पढे़ लिखों
की तरफ से
भिजवाता है
छपाता है

अखबार
वाला भी
पढे़ लिखों से
कुछ पूछने
नहीं आता है

पढे़ लिखों
की बाते हैं
सोच कर

कुछ भी
छाप ले जाता है

पढे़ लिखे
ने क्या कहा
उनको अखबार में
छपी खबर से ही
पता चल पाता है

पढ़ा 
लिखा
उसको
चश्मा लगा
कर पढ़ता है

इधर उधर
देखता 
है 
कि उसे
पढ़ते हुऎ तो
कोई नहीं
देखता है

और सो जाता है

पढ़ा
 लिखा
सब्जी की
तरह होता है

बड़ी

मुश्किल से

पैदा हो पाता है

उसकी
तरफ से
बात
को
कहने वाला

झाड़ की
माफिक होता है


कहीं भी
किसी मौसम में

बिना खाद के
उग जाता है


ऎसे
पढे़ लिखे को

आजकल

स्पोक्समैन
कहा जाता है ।

बुधवार, 8 अगस्त 2012

दूध मत दिखा दही जमा

सब 
सब देखते हैं
तू भी देख कर आ
किसी ने नहीं है तुझको कहीं रोका

थोड़ा बतायेगा
चलेगा
सब कुछ मत बता
हमको भी तो रहता ही होगा
कुछ पता

कोई नई छमिंंया
देख कर आया है अगर तो 
किस्सा सुना जा

काले बादल की तरह रोज 
कड़कड़ाता है यहाँ
कभी रिमझिम सी बारिश की फुहार भी
दिखा जा

कभी कभी 
कहीं पर थोड़ी मेहनत भी कर लिया कर 
कहाँ जा रही है दुनियाँ नये जमाने में 
देख भी कुछ लिया कर

देखते सुनते सभी आते हैं
कुछ ना कुछ इधर उधर बनाते हैं 
अपने सपने अपने ख्वाब भी मगर

एक तू है 
लकीर को पीटने वाला फकीर बन जाता है
जो जो देख कर आता है
यहाँ ला कर उलट पलट जाता है

अरे
कुछ अच्छा होता 
तो अखबार में नहीं आ रहा होता
साथ में माला पहने हुऎ तेरी 
फोटो भी दिखा रहा होता 

कब
सुधरेगा 
अब तो सुधर जा
लोगों से कुछ तो सीख 
कब ये सब सीखेगा

दूध देख कर आता है तो 
थोड़ा जामुन भी मिला लिया कर
दही बना कर चीनी के संग भी
कभी किसी को खिला दिया कर

'उलूक'
खाली खाली
दूध यहाँ मत लाया कर

लाता ही है
किसी मजबूरी में अगर
रख दिया कर

कम से कम
रोज तो
ना फैलाया कर । 

चित्र सभार: https://economictimes.indiatimes.com/

रविवार, 15 जुलाई 2012

कविता कमाल या बबाल

अखबार
में छपी
मेरी
एक कविता

कुछ
ने देख कर
कर दी
अनदेखी

कुछ
ने डाली
सरसरी नजर

कुछ
ने की
कोशिश 
समझने की

और
दी 
प्रतिक्रिया

जैसे
कहीं पर
कुछ हो गया हो

किसी
का जवान लड़का 
कहीं खो 
गया हो

हर
किसी 
के भाव

चेहरे पर 
नजर
आ जा रहे थे

कुछ 
बता रहे थे

कुछ 
बस खाली

मूँछों
के पीछे
मुस्कुरा रहे थे

कुछ 
आ आ कर
फुसफुसा रहे थे

फंला फंला 
क्या
कह रहा था

बता के
भी
जा रहे थे

ऎसा 
जता रहे थे

जैसे
मुझे 

मेरा कोई
चुपचाप 
किया हुआ
गुनाह 
दिखा रहे थे

श्रीमती जी 
को मिले
मोहल्ले के 
एक बुजुर्ग

अरे 
रुको 
सुनो तो 
जरा

क्या 
तुम्हारा वो
नौकरी वौकरी
छोड़ आया है

अच्छा खासा 
मास्टर
लगा तो था
किसी स्कूल में

अब क्या 
किसी
छापेखाने 
में
काम पर 
लगवाया है

ऎसे ही 
आज

जब अखबार में
उसका नाम 
छपा हुआ 
मैंने देखा

तुम 
मिल गयी
रास्ते में 
तो पूछा

ना 
खबर थी वो

ना कोई 
विज्ञापन था

कुछ 
उल्टा सुल्टा
सा
लिखा था

पता नहीं 
वो क्या था

अंत में 
उसका
नाम भी 
छपा था

मित्र मिल गये
बहुत पुराने

घूमते हुवे 
उसी दिन
शाम को 
बाजार में

लपक 
कर आये
हाथ मिलाये 
और बोले

पता है 
अवकाश पर
आ गये हो

आते ही 
अखबार
में छा गये हो

अच्छा किया
कुछ छ्प छपा
भी जाया करेगा

जेब खर्चे के लिये
कुछ पैसा भी
हाथ
में आया करेगा

घर 
वापस पहुंचा
तो

पड़ोसी की
गुड़िया आवाज
लगा रही थी

जोर जोर से
चिल्ला रही थी

अंकल 
आप की
कविता आज के
अखबार में आई है

मेरी मम्मी 
मुझे आज 
सुबह दिखाई है

बिल्कुल 
वैसी ही थी
जैसी मेरी 
हिन्दी की
किताब में 
होती है

टीचर 
कितनी भी
बार समझाये 

लेकिन
समझ से 
बाहर होती है

मैं उसे 
देखते ही
समझ गयी थी 

कि ये जरूर 
कोई कविता है

बहुत ही 
ज्यादा लिखा है

और
उसका 
मतलब भी
कुछ नहीं 
निकलता है।

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

निविदा खुलने का समय है आया

दस सालों तक
कुछ ना किया हो
बस घर में बैठ के
वेतन लिया हो
ऎसा अनुभव
नहीं बटोर पाया
निविदा निकली थी
अखबारों में
सर्वोच्च पद के लिये
मुझ पति ने
उस पति के आसन
तक पहुँचने का
हाय बहुत सुंदर मौका
यूँ ही है गँवाया
निविदा के कितने
सील बंद लिफाफे
हो चुके हैं जमा
राज्यपिता के संदूक में
अभी तक राज ये
नहीं है खुल पाया
मुख्यमंत्री अब जब
भारी मतों से है
जीत कर आया
आशा जगी है
'ए' क्लास आवेदकों में
जिसने अपना भाग्य
लिफाफे में है
बंद करवाया
चुनाव जीत कर
मुख्यमंत्री घोषणा
है कर आया
ना जाति का है
ना क्षेत्र का है
बस है इसी राज्य का
जिसने है उन्हें जिताया
नवनिर्माण की निविदा
तो है नहीं यह
पुराने निर्माण को
खोदने की ताकत
लेकर देखना है
अब कौन है आया
पता भी तब चलेगी
यह बात हमको
कि सबसे बडी़
बोली कौन है
दे कर के आया ।

शुक्रवार, 29 जून 2012

सरकारी राय

शहर का
एक इलाका
सड़क में पड़ी
पचास मीटर
लम्बी दरार
लपेट में आये
कुछ लोगों
के घर चार

जिलाधिकारी आया
साथ में
सत्ता पक्ष के
विधायक को लाया

मौका मुआयना हुआ
नीचे खुदा हुआ बहुत
बड़ा एक पहाड़
सबको सामने दिखा

कुछ दिन पहले सुना
बड़ी बड़ी मशीने
रात को आई
रात भर आवाजेंं कर
सुबह को पता नहीं
किसने कहाँ पहुँचाई

किसने खोदा
सबके मुँह
तक नाम
आ रहा था
गले तक आकर
पीछे को
चला जा रहा था

इसी लिये कोई
कुछ भी बताने
में इच्छुक नजर
बिल्कुल भी
नहीं आ रहा था

जिलाधिकारी
अपने
मातहतों के उपर
गुस्सा बरसा रहा था

अखबार में
अखबार वाला भी
खबर छपवा रहा था

नाम
पर किसी का
नहीं कहीं भी कोई
आ रहा था

हर कोई
कोई है
करके सबको
बता रहा था

सरकारी अमला
घरवालों के घरों
को तुरंत खाली
करवा रहा था

साथ में मुफ्त में
समझाये भी
जा रहा था

जब देख रहे थे
पहाड़ नीचे को
जा रहा था

तो किस बेवकूफ
के कहने पर तू यहाँ
घर बना रहा था

खोदने वाले को
कुछ नहीं
कोई कर पायेगा

भलाई तेरी
इसी में
दिख रही है
अगर
तू बिना
कुछ कहे
कहीं को
भाग जायेगा

इसके बाद
भूल कर भी
जिंदगी में
कहींं पर
घर बनाने
की गलती
दुबारा नहीं
दोहरायेगा।

गुरुवार, 21 जून 2012

तुमको तो कुछ आता है

सुना है तुमको
भी कुछ आता है
मेरे को मेरे पड़ोस
में रहने वाला यहीं का
एक मास्टर बताता है
लिखते विखते हो
फिर हिन्दी में टाईप
भी कर ले जाते हो
मेरी समझ में ये
लेकिन नहीं आता
इतनी मेहनत फालतू
काहे कर जाते हो
सीधे सीधे घर के
अखबार में ही
कुछ क्यों नहीं
छपा ले जाते हो
अखबार तो बहुत से
लोगों के द्वारा देखा
और पढा़ जाता है
जिसे कुछ भी नहीं
आता है वो भी अखबार
एक जरूर खरीद
के ले जाता है
अड़ोस पड़ोस मोहल्ले वाले
नाई धोबी सब्जी वाले
को भी पता इस तरह
चल जाता है 
कोई लिख रहा है कुछ
समझ मे नहीं भी आये
तब भी वो कुछ तो
समझ जाता है
कि लिखने वाले को
कुछ आता है
कंप्यूटर में लिखने से
तुमको क्या मिल जाता है
कितने आदमी को
ये बता पाता है
कि तुमको भी
कुछ आता है
कुछ रोज के मजबूरी में
इधर से गुजरने वालोंं को
तो पता चल जरूर जाता है
उसमें से एक कुछ
पढ़ पाता है और
कुछ कह भी जाता है
एक बिना पढे़ लाईक
कर के चला जाता है
किसी को समझ में
नहीं भी आये तो भी
उसको शेयर करने में
ही मजा आ जाता है।

बुधवार, 13 जून 2012

कुछ तो सीख

रसोईया मेरा
बहुत अच्छे
गाने सुनाता है

तबला थाली से ही
बजा ले जाता है
बस कभी कभी
रोटियां जली जली
सी खिलाता है

अखबार देने
एक ऎसा
आदमी आता है
ना कान सुनता है
ना ही बोल पाता है

हिन्दुस्तान
डालने को
अगर बोल दिया
उस दिन पक्का
टाईम्स आफ इंडिया
ले कर आ जाता है

लेकिन दांत बहुत ही
अच्छी तरह दिखाता है

बरतन धोने को जो
महिला आती हैं
छ : सिम और एक
मोबाईल दिखाती है

आते ही चार्जर को
लाईन में घुसाती है
उसके आते ही
घंटियाँ बजनी शुरु
घर में हो जाती हैं

बरतनो में खाना
लगा ही रह जाता है
पानी मेरी टंकी का
सारा नाली में बह
के निकल जाता है

मेहमान मेरे घर
में जब आते हैं
अभी तक
मास्टर ही हो क्या
पूछते हैं
फिर मुस्कुराते हैं

कुछ अब कर
भी लीजिये जनाब
की राय मुझे
जाते जाते जरूर
दे के जाते हैं

अब कुछ
उदाहरण
ही यहाँ पर
बताता हूँ
चर्चा को
ज्यादा लम्बा
नहीं बनाता हूँ

बाकी लोगों के
कामों की लिस्ट
अगले दिन के
लिये बचाता हूँ

पर इन सब से
पता नहीं मैं
अभी तक भी
कुछ भी क्यों नहीं
सीख पाता हूँ।

मंगलवार, 5 जून 2012

पर्यावरण दिवस

कटे पेड़ों
के ठूँठ/
भूल जा
मत ढूँढ

अपने आप
जलती घास/
जंगल में आग

धुंआ धुआ
आसमान/
नदी टी बी
जैसी जान

शहर शहर
कूडे़ के ढेर/
गाँधी के
बंदर हो
गये सब
मिट्टी के शेर

आज मौका
है आजा/
भाषण कुछ
भी पका जा

स्मृति चिन्ह
से शुरु/
मानदेय है
तगड़ा गुरू

विज्ञान
ही नहीं
जरूरी
आवरण/
इतिहास
समाजशास्त्र
राजनीति विज्ञान
कला पहले
करेंगे वरण

टेंट हाउस
कुर्सी
मेज दरी/
साउंड सर्विस
कांच के
गिलास
टी कोस्टर
का कवर
बिसलेरी


पेड़
जंगल पहाड़
गूगल कट पेस्ट
पावर पोइंट
प्रेजेन्टेशन /
सूट बूट टाई
नामी
गिरामी हस्ती
बुके चेस्ट बैज
नो टेंशन

खाना वाना
लजीज /
स्वीट डिश
दिल अजीज

आना जाना फ्री /
ऎ सी रेल टिकट
फोटो कापी भी

काकटेल
पार्टी हसीन /
शाम रंगीन
बेहतरीन

फोटो सेशन
पत्रकार/
अखबार
ही अखबार

बिल विल
दस्तखत
कागज /
हिसाब
किताब
घाटे का
बजट
पर्यावरण
दिवस /
बधाई जी
बधाई
मना ही
लिया जी
अब बस।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

बदल जमाने के साथ चल

जमाने के 
साथ आ
जमाना अपना मत बना
ईमानदारी कर मत बस खाली दिखा

अन्ना की तरफदारी भी कर ले
कोई तेरे को कहीं भी नहीं रोक रहा
सफेद टोपी भी लगा 

शाम को मशाल जलूस अगर कोई निकाले
अपने सारे गिरोह कोउसमें शामिल करा लेजा

"सत्य अहिंसा भाईचारा कुछ नये प्रयोग" पर
सेमिनार करा 
संगोष्ठी करा वर्कशोप करा

इन सब कामों में हम से कुछ भी काम तू करवा

हमें चाहे एक धेला भी ना दे जा
पर हमारे लिये परेशानी मत बनजा 

कल उसने कुत्ते को देख कर बकरी कहा
कोई कुछ कर पाया
हमने कुत्ते को कागज पर 
"एक बकरी दिखी थी"
का स्टेटमेंट जब लिखवाया 

अब भी संभल जा उन नब्बे लोगों में आ
जिन्होने कुत्ते को बकरी कहने पर 
कुछ भी नहीं कहा
बस आसमान की तरफ देख कर 
बारिश हो सकती है कहा
बचे दस पागलों का गिरोह मत बना 
जिनको कुत्ता कुत्ता ही दिखा

गाड़ी मिट्टी के तेल से घिसट ही रही हो
पहुंच तो रही है कहीं
पैट्रोल से चलाने का सुझाव मत दे जा

'उलूक' जाके कहीं भी आग लगा
और हमारी तरह 
सुबह के अखबार मे अपनी फोटो पा
बधाई ले लडडू बंटवा। 

चित्र सभार: https://www.deviantart.com/kimjam/art/you-look-like-a-dog-798957425

बुधवार, 21 मार्च 2012

गौरेया का दिन

बहुत
कम जगह
सुना है
अब वो 

पायी
जाती हैं
लेकिन
गौरेया 

बिना नागा
सुबह यहाँ 

जरूर
आती हैंं

खेत की
झाड़ियों 
में
हो कर इकट्ठा 

हल्ला मचाती
चहचहाती हैं

दाना पाने
की उम्मीद में
फिर आंगन
में आकर
सब बैठ
जाती हैं

एक लड़की
जो करती है
उनकी
रखवाली
सुबह
सवेरे ही
उठ के
आती है
झाडू़
लगाती है
आंगन में
उनके लिये

खुश हो कर
वो चावल
के दाने
भी फैलाती है

कोने कोने
के घौंसलों
में 
आजकल

उनके
बच्चों की
चीं चीं की
आवाज
कानों
में घंटी
बजाये
जाती है

दाना ले
जा कर
गौरेया
उनको
खिलाये
जाती हैं

बिल्लियाँ
मेरे पड़ौस
की रहती हैं
उनकी ताक में
बिल्लियों
को लड़की
झाडू़ फेंक
कर भगाये
जाती है

बाज
होता है
बिल्ली से
फुर्तीला
कभी एक
दो को
ले कर
ऊड़ ही
जाता है

लड़की
उदास
हो जाती है
उस दिन
लेकिन
फिर से
अपने
काम पर
हमेशा
की तरह
तैनात
हो जाती है

गौरेया
से है
उसका
बहुत याराना
चावल
ना मिले तो
लड़की के
कंधों पर
आकर
चढ़ जाती हैं

छोटी सी
गौरेया
का दिन
है आज
देखा था
अखबार में
छपा था
दिन पर दिन
कम होते
जाती हैं

घर पर
हमारे बहुत
हो गयी हैं
जो
चहचहाती हैं
रोज
आती है
दाना
ले जाती हैं
फुर्र से
उड़ जाती हैं ।

बुधवार, 14 मार्च 2012

लगा दी लंगड़ी



आओ आओ
कोई आओ

सिसूँण
काट कर
जल्दी लाओ

चौराहे पर
खड़े करो सब

पैंट खोल कर
फिर झपकाओ

बेशर्मी की
हद होती है
जनता जिनको
सपने देती है

हरकत उनकी
देखते जाओ

करोड़पति हैं
पढ़े लिखे हैं
अखबारों में
मत छपवाओ

चुल्लू भर
पानी दे आओ

सफेद
कपड़ोंं पर
मत जाओ
दल से इनके
मत भरमाओ

भाईचारा
समझ भी जाओ

किस
सीमा तक
जा सकते हैं
जमीर बेच कर
खा सकते हैं

चरित्र
देश का
मत गिरवाओ

समय अभी भी
बचा हुवा है
लुटने से
अब भी
बच जाओ

आओ आओ 
कोई आओ
जल्दी जाओ
सिसूँण लाओ
मिलकर जाओ
और झपकाओ।

़़़़़़़
सिसूँण = बिच्छू घास चित्र साभार:   https://weedid.missouri.edu
़़़़़़

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

बिल्ली युद्ध

आइये शुरू
किया जाये
एक खेल

वही पुराना

बिल्लियों को
एक दूसरे से
आपस मे
लड़वाना

जरूरी नहीं

की बिल्ली
मजबूत हो

बस एक अदद

बिल्ली का होना
है बेहद जरूरी

चूहे कुत्ते सियार

भी रहें तैयार

कूद पड़ें

मैदान में
अगर होने
लगे कहीं
मारा मार

शर्त है

बिल्ली बिल्ली
को छू नहीं
पायेगी

गुस्सा दिखा

सकती है
केवल मूंछ
हिलायेगी

मूंछ का

हिलना बता
पायेगा बिल्ली
की सेना को
रास्ता

सारी लड़ाई

बस दिखाई
जायेगी

अखबार टी वी

में भी आयेगी

कोई बिल्ली

कहीं भी नहीं
मारी जायेगी

सियार कुत्ते

चूहे सिर्फ
हल्ला मचायेंगे

बिल्ली के लिये

झंडा हिलायेंगे

जो बिल्ली

अंत में
जीत पायेगी

वो कुछ

सालों के लिये
फ्रीज कर दी
जायेगी

उसमें फिर

अगर कुछ
ताकत बची
पायी जायेगी

तो फिर से

मरने मरने
तक कुछ
कुछ साल में
आजमाई जायेगी

जो हार जायेगी

उसे भी चिंता
करने की
जरूरत नहीं

उसके लिये

दूध में अलग
से मलाई
लगाई जायेगी।

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

अखबार

आज का
अखबार

कल की
थीं खबर 

मुख्य पृष्ठ
पर दहाडे़

अन्ना लगा
निशाना

बेचारे राहुल
पर
सोनिया
को छोड़ कर 

छोड़ विदेशी
डालर
और मिशन
कुछ लोगों

ने लिया
सेना में कमीशन

बेटा कर्नल
बाप को

मार रहा
था सैल्यूट

यही परिवार
पीड़ी दर पीड़ी

सेना में
ठोक रहा
है बूट

पेज पलट
कर देखा

शिक्षण
संस्थाओं में

छात्र छात्राऎं
दिखा
रहे थे
बैनर झंडे

मास्टरों को
भगा रहे थे

दिखा दिखा
कर डंडे

विद्वतगणों की
मारा मारी

दिखा रहा
था पेज तीन

भारी भारी
लोग दिख

रहे थे
फोटो में तल्लीन

अपनी ही
प्रतिभा नहीं

आ रही
प्रदेश के काम

हैडिंग थी
खबर थी

अंत में थे
शहर

के भारी नाम
शिक्षा तंत्र
को
विकसित
करने
पर
लगायें जोर

आह ! 
कहाँ शरण
लेंगे
अब
शिक्षा माफिया

के नामी
गिरामी चोर

पेज चार
पर थी वही

वेतन की
मारा मारी

पेज पांच
पर बनायी

गयी थी
योजना
एक
बड़ी भारी

हिमालय बचाने
को
लाया
जाने वाला

है बहुत पैसा
सेमिनार
कार्यशाला

पर दिख
रहा था

विज्ञान का
भरोसा

पेज पांच से
अंत तक

विज्ञापन और
थे समाचार

जिन्हें पढ़ कर
आ रही
थी नींद

क्योंकी बिना
धंधे के

वे सब
थे बेकार ।