उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

कितनी छलक गयी कितनी जमा हुई बूँदें बारिश की कुछ गिनी गयी कुछ गिनते गिनते भी यूँ ही कहीं और ही रह गयी

कितनी

शरमा
शरमी से
यहाँ तक
पहुँच ही गयी

कितनी

बेशरमी से
कहीं बीच में
ही छूट गयी

कुछ

कबाड़ सी
महसूस हुयी

फाड़ कर
बेखुदी में
फेंक भी
दी गयी

कुछ

पहाड़ सी
कही
जानी ही थी

बहुत

भारी हो गयी
कही ही नहीं गयी

कुछ

आधी अधूरी सी
रोज की आवारा
जिन्दगी सी

पिये
खायी हुयी सी
किसी कोने में
उनींदी हो
लुढ़क ही गयी

खुले
पन्ने में
सामने से
फिलम की
खाली एक रील

एक नहीं

कई बार
खाली खाली ही
खाली चलती
ही चली गयी

कहाँ

जरूरी है
सब कुछ
वही कहना

जो दिखे

बाहर बाजार
में बिकता हुआ
रोज का रोज
‘उलूक’

किसी दिन

आँखें बन्द
कर के
झाँक भी
लिया कर

अपनी ही

बन्द
खिड़कियों
की दरारों के पार

कभी

छिर के गयी
थोड़ी सी रोशनी

अभी तक
बची भी है

या

यूँ ही

देखी
अनदेखी में
बुझ भी गयी।

चित्र साभार: https://wewanttolearn.wordpress.com

बुधवार, 12 सितंबर 2018

'उलूक’ तख़ल्लुस है



साहित्यकार कथाकार कवि मित्र 
फरमाते हैं 

भाई 
क्या लिखते हो 
क्या कहना चाहते हो 
समझ में ही नहीं आता है 

कई बार तो 
पूरा का पूरा 
सर के ऊपर से 
हवा सा निकल जाता है 

और 
दूसरी बला 
ये ‘उलूक’ लगती है 
बहुत बार नजर आता है 

है क्या 
ये ही पता नहीं चल पाता है 

हजूर 

साहित्यकार अगर 
बकवास समझना शुरु हो जायेगा 
तो उसके पास फिर क्या कुछ रह जायेगा 

‘उलूक’ तखल्लुस है 
कई बार बताया गया है 
नजरे इनायत होंगी आपकी 
तो समझ में आपके जरूर आ जायेगा 

इस ‘उलूक’ के भी 
बहुत कुछ समझ में नहीं आता है 

किताब में 
कुछ लिखता है लिखने वाला 
पढ़ाने वही कुछ और 
और समझाने 
कुछ और ही चला आता है 

इस 
उल्लू के पट्ठे के दिमाग में 
गोबर भी नहीं है लगता है 

हवा में 
लिखा लिखाया 
कहाँ कभी टिक पाता है 

देखता है 
सामने सामने से होता हुआ 
कुछ ऊटपटाँग सा 

अखबार में 
उस कुछ को ही 
कोई
आसपास 
का सम्मानित
ही 
भुनाता हुआ नजर आता है 

ऐसा बहुत कुछ 
जो समझ में नहीं आता है 

उसे ही 
इस सफेद श्यामपट पर 
कुछ अपनी 
उलझी हुई लकीर जैसा बना कर 
रख कर चला जाता है 

हजूर

आपका 
कोई दोष नहीं है 

सामने से 
फैला गया हो 
कोई दूध या दही 

किसी को 
शुभ संदेश 
और किसी को 
अपशकुन नजर आता है 

आँखें 
सबकी एक सी 
देखना सबका एक सा 

बस
यही 
अन्तर होता है 

कौन
क्या चीज 
क्यों और किस तरह से देखना चाहता है 

‘उलूक’ ने 
लिखना है लिखता रहेगा 
जिसे करना है करता रहेगा 

इस देश में 
किसी के बाप का कुछ नहीं जाता है 

होनी है जो होती है 
उसे अपने अपने पैमाने से नाप लिया जाता है 

जो जिसे 
समझना होता है 
वो कहीं नहीं भी लिखा हो 
तब भी समझ में आ जाता है

'उलूक’
तख़ल्लुस  है 

कवि नहीं है 
कविता लिखने नहीं आता है 

जो उसे 
समझ में नहीं आता है 
बस उसे
बेसुरा गाना शुरु हो जाता है 
। 

चित्र साभार: www.deviantart.com

रविवार, 9 सितंबर 2018

कबूतर का जोड़ा कबूतर पकड़ना कबूतर उड़ाना सिखाने को फिर से सुना है नजर आना शुरु हो जायेगा

चल
फिर से ढूँढें
नयी
कुछ किताबें

पढ़ना पढ़ाना
लिखना लिखाना
पुराना हो चुका

सुना है
आगे से अब
नहीं काम आयेगा

किसका लिखा है
कब का लिखा है
किसका पढ़ाया है
किसने पढ़ा है

लिखकर बताना
बस कुछ ही दिनों में
जरूरी हो जायेगा

लिखने
लिखाने की
पढ़ने पढ़ाने की

सीखने
सिखाने की
दुकानों के
इश्तिहारों में

फिर से
जोड़ा एक
कबूतर का
साथ नजर आयेगा

लड़ने लड़ाने को
भिड़ने भिड़ाने को
जीतने हराने को

सारे के सारे
सोये कबूतरों को

कबूतर
पकड़ने वाले
जाबाँज बाज बनायेगा

लिखते लिखाते
पढ़ते पढ़ाते
किसी एक दिन

‘उलूक’
भी
संगत में
कबूतरों की

कबूतरबाजी
थोड़ा बहुत तो
सीख ही ले जायेगा


स्याही एक रंगीन
एक झंडे के रंग की
रंगीन एक कलम में

सालों से भरना
कभी ना कभी
किसी का किसी के
तो जरूर काम आयेगा।

चित्र साभार: http://joyreactor.cc

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

चिट्ठागिरी करने का भी उसूल होता है लिखना लिखाना कहाँ बेफजूल होता है

अपनी
आँखों
से देखता है

कुछ भी
समझ
लेता है

और भी
होती हैं
आंखें

देखती हुई
आसपास में

उन
आँखों में
पहले क्यों नहीं
देख लेता है

किसी को
कुछ भी
समझ में
नहीं आया
हर कोई
कह देता है

तेरे देखे हुऐ में
उनका देखा हुआ
कभी भी
कुछ कहाँ होता है

सब की समझ में
सब की कहीं बातें
आती भी नहीं हैं

बेवकूफ
बक देता है
कुछ भी कहीं भी

फिर
सोचता भी है
उसके बाद
क्यों पास
नहीं होता है

ये
लिखना भी
अजब होता है

लिखने
के बाद भी
बहुत कुछ होता है

टाँग देता है
कोई और
कहीं ले जा कर
लिखा हुआ

बस
उसे पढ़ने वाला
कहीं और को
गया होता है

टिप्पणी
देने और
टिप्पणी लेने
का भी कुछ
उसूल होता है

इतना
आसान नहीं है
समझ लेना
इस बात को

इस खेल को
समझने के लिये
लगातार कई साल
खेलना होता है

पता नहीं
कितनी विधायें हैं
समाहित
लिखने लिखाने में

बकवास
को विधा
बता देने वाला
खुद एक
बहुत बड़ा
बेवकूफ होता है

लिखना
सब को आता है
सब लिखते हैं
जो कुछ भी होता है

तेरा
लिखा हुआ जैसा
और किसी के
लिखे में
कहीं भी
क्यों नहीं होता है

‘उलूक’
करता चला है
बकवास
कई सालों से

एकसी
दो बकवास
कभी
कर भी दी गयी हों
हजारों बकवासों में

कौन सा
किसने
कहीं जा कर
इसे संगीत
देना होता है

कौन सा
किसी ने
इसे गा भी
देना होता है।


चित्र साभार: http://clipartstockphotos.com

बुधवार, 5 सितंबर 2018

लिखना जरूरी हो जा रहा होता है जब किसी के गुड़ रह जाने और किसी के शक्कर हो जाने का जमाना याद आ रहा होता है

नमन
उन सीढ़ियों को
जिस पर चढ़ कर
बहुत ऊपर तक
कहीं पहुँच लिया
जा रहा होता है

नमन
उन कन्धों को
जिन को
सीढ़ियों को
टिकाने के लिये
प्रयोग किया
जा रहा होता है

नमन
उन बन्दरों को
जिन्हेंं हनुमान
बना कर
एक राम
सिपाही की तरह
मोर्चे पर
लगा रहा होता है

नमन
उस सोच को
जो गाँधी के
तीन बन्दरों
के जैसा

एक में ही
बना ले जा
रहा होता है

नमन
और भी हैं
बहुत सारे हैं
करने हैं

आज ही
के शुभ दिन
हर साल की तरह

जब
अपना अपना सा
लगता दिन
बुला रहा होता है

कैसे करेगा
कितने करेगा
नमन ‘उलूक’

ऊपर
चढ़ गया
चढ़ जाने के बाद
कभी नीचे को
उतरता हुआ
नजर ही नहीं
आ रहा होता है

गुरु
मिस्टर इण्डिया
बन कर ऊपर
कहीं गुड़
खा रहा होता है

चेलों
का रेला

वहीं
सीढ़ियाँ पकड़े
नीचे से

शक्कर
हो जाने के
ख्वाबों के बीच

कहीं
सीटियाँ बजा
रहा होता है।

चित्र साभार: www.123rf.com

सोमवार, 3 सितंबर 2018

कुछ बरसें कुछ बरसात करें बात सुनें और बात सुनायें बातों की बस बात करें



किसी को लग पड़ कर कहीं पहुचाने की बात करें
रास्ते काम चलाऊ उबड़ खाबड़ बनाने की बात करें

कौन सा किसी को कभी कहीं पहुँचना होता है
पुराने रास्तों के बने निशान मिटाने की बात करें

बात करने में संकोच भी नहीं करना होता है
पुरानी किसी बात को नयी बात पहनाने की बात करें

बात है कि छुपती ही नहीं है दूर तक चली जाती है
बेशरम बात को कुछ शरम सिखाने की बात करें

खुद के धंधों में कुछ बेवकूफ होते हैं लगे ही रहते हैं
किसी और के धंधे को अपनी दुकान से पनपाने की बात करें

अपने घर के अपने बच्चे खुद ही बहुत समझदार होते हैं
दूसरों के बच्चों को अपनी बात से चलाने की बात करें

बातों का सिलसिला है सदियों से इसी तरह चलता है
कुछ बात की बरसात करें कुछ बरसात की बात करें

‘उलूक’देर रात गये बैठ कर उजाले की बात लिखता है
रहने भी दें किसलिये एक बेवकूफ की गफलतों की बात करें।

चित्र साभार: http://cliparting.com

शनिवार, 1 सितंबर 2018

देश बहुत बड़ी चीज है खुद के आस पास देख ‘कबूतर’ ‘साँप’ ही खुद एक ‘नेवला’ जहाँ पाल रहा होता है

लिखे लिखाये में
ना तेरे होता है
ना मेरे होता है

सब कुछ उतार
के खड़ा होने
वाले के सामने
कोई नहीं होता है

जिक्र जरूर होता है
डरे हुऐ इंसानो के बीच

 शैतान की बात ही
अलग होती है
वो सबसे अलग होता है

आदमी तो बस
किसी का
एक कुत्ता होता है
आप परेशान ना होवें
कुत्ता होने से पहले
आदमी होना होता है

कोई नहीं लिख रहा है
कोई भी सच कहीं पर भी
झूठ लिखने वाला भी
हमेशा ही सच से डरा होता है

बड़ी तमन्ना है
देखने की
शक्ल बन्दूक की
और गोली की भी
वहाँ जहाँ
हर कोई बन्दूक है
और गोली ठोक रहा होता है

बहुत इच्छा है
‘उलूक’ की
किसी दिन
नंगा होकर नाचने की
देखकर
साथ के एक नंगे को
जो नंगई कर के भी
नाच रहा होता है |

चित्र साभार: https://www.123rf.com

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

गिरफ्तारी सजा जेल बीमे की भी जरूरत महसूस होने लगी है आज फितूरी ‘उलूक’ की एक और सुनिये बकवास




जरूरत 
नहीं है
अब 

किसी 
कोर्ट
कचहरी 
वकील की
जनाब 


जजों
को भी 
कह दिया जाये 

कुछ
नया काम 
ढूँढ लिजिये
अब 
अपने लिये भी 

किसी
झण्डे 
के नीचे
आप 

तुरत फुरत में 
होने लगा है 
फटाफट
जब 
अपने आप 

सारा
सब कुछ 
बहुत
साफ साफ 

खबर
के
चलते ही 

छपने छपाने
तक 

पहुँचने
से
पहले ही 

जिरह 
बहस होकर 

फैसला
सुनाना 
शुरु
हो गया है 

किसी 
तरफ से 
कोई एक 

निकाल
कर 
मुँह अपना 

सुबह 
बिना धोये 
उठते उठते 
लिये हाथ में 

गरम धुआँ 
उठाता
हुआ 

चाय
का
गिलास 

दे दे रहा हो 
जैसे
खुद 
खुदा को 

यूँ ही
मुफ्त में 

उसके किये 
करवाये
का 
न्याय और इन्साफ 

गुनहगार 
और
गुनाह 
ही
बस 

जरूरी नहीं 
रह गया है
अब 

अन्दर 
हो
जाने के लिये 

बुद्धिजीवी 
कहलाये जाने 
के लिये 

जरूरी
हो गया 
है होना
लेकिन 

पढ़ाई लिखाई 
में
फीस माफ 

ताकीद है 

जाँच लें
वक्त रहते 

अपनी
सोच की 
लम्बाई और चौड़ाई 

पैमाना लेकर 
खुली धूप में 
बैठ कर 
अपने
आप

मत कह देना 
बाद में

कभी 
बताया नहीं 

छोटी
सोच के 
शेयरों में
ले आये 
अचानक उछाल 

कोई
बिना धनुष 
का
तीरंदाज 

इतनी
वफादारी 
जिम्मेदारी पहरेदारी 
नहीं
देखी होगी 

पूरी हो चुकी 
तीन चौथाई
से 
ज्यादा की
जिन्दगी में 
‘उलूक’
तूने भी 

कुछ सोच
कुछ खुजा 

अपना
खाली दिमाग 

लगा
कुछ अन्दाज 

कर शुरु 

गिरफ्तारी 
जेल सजा बीमा 

कब कौन 
अन्दर हो जाये 

रात
के सपने 
के टूटने
से पहले ही 

बाहर 
निकल कर 
आने का 

कहीं
तो हो 
किसी के पास 

अपना भी 

कुछ 
लेन देन
कर 

लेने देने
का 
हिसाब किताब 

कुछ
बिन्दास। 

चित्र साभार: https://www.dallasnews.com

सोमवार, 27 अगस्त 2018

पोस्टमैन को फिर से कभी घर पर बुलवायें चिट्ठे छोड़ें चिट्ठियाँ पढ़े और पढ़वायें

आओ
खत लिखें

जमाना हो गया
पोस्टमैन को देखे

आओ

कुछ 

कोशिश करें
देखने की भी

आओ
कुछ देखें

तू
मुझ को लिख

मैं
तुझे लिखूँ

शब्द
वाक्य
सब रहने दें

कुछ
रेखायें
ही खींचें

कौन लिखेगा
किसको लिखेगा

कौन किसका
लिखा खत

किसके लिये
पढ़ देगा

ये सब छोड़े

बस
ज्यादा नहीं
कुछ थोड़ा सा
घड़ी की
सूईं को मोढ़ें

बस बातें
करने की
आदत को
कुछ झिंझोड़े

कलम उठायें
स्याही लायें

सफेद
पन्ने पर कुछ
आढ़ी तिरछी
रेखायें खुदवायें

आओ
अपने आप

खुद से
बातें करना

कुछ देर
के लिये छोड़ें

आओ
खत पढ़ने को जायें

बिना
निशान लगाये
दरवाजों को भी

कभी कभी
खटखटायें

इन्तजार
सब करते हैं

आओ
पोस्टमैन
ही सही

किसी के
लिये हो जायें

बधें नहीं
गिरोहों के संग

स्वछंद झण्डा
खुद का लहरायें

खत लिखें
पोस्टमैंन को
ही सही

किसी दिन
उसके लिये भी

घर की डाक
घर पर
ही भिजवायें

आओ कभी
‘उलूक’ को
आईना दिखलायें

किसी क्षण
कुछ अलग
करके दिखायें

जो
रोज करते हैं
जीवन में

उसके निशान

लिखे लिखाये
के पीछे कहीं
ना छोड़ कर
चले जायें

आओ
कुछ खत लिखें

कुछ अलग से
तेरे मेरे अपने
सबके छोड़

किसी और
के लिये कुछ

नये रास्ते
खोल कर आयें ।

चित्र साभार: activerain.com

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

फीड बैक का मतलब प्रतिक्रिया दिया जाता है जिसमें लेकिन मजा नहीं आता है फीड बैक से जैसे सब कुछ पता चल जाता है

ये
फीड बैक भी
एक
गजब का
काँसेप्ट होता है

अपने
बारे में
वैसे भी
कौन
किसी से
कुछ पूछता है

फीड बैक
का मतलब
प्रतिक्रिया
होता है

गूगल बाबा
आसानी से
समझा जाता है

पर
हिन्दी
रूपाँतरण में
मजा नहीं आता है

कहाँ
पता होता है
कौन क्या होता है

देखने से
कुछ
पता नहीं
चल पाता है

साथ
रहने पर
भी धोखा
खाया
जाता है

आदमी
की फितरत
होती है

आईना
हाथ में लेकर
वो अपनी
छोड़ कर

सामने
वाले की
फितरत
उसमें देखना
चाहता है

इसे
फीड बैक
कहा जाता है

फीड बैक

आप
के द्वारा
प्रयोग किये
जाने वाले
वाहन के
वाहन चालक
से भी
लिया जाता है

फीड बैक

आपके
घर के
सफाई
कर्मचारी
से उसकी
तबीयत
के बारे में
पूछ कर
पूछ लिया
जाता है

फीड बैक

आपकी
कामवाली
के काम की
प्रशंशा
कर के भी
खोद दिया
जाता है

ये
फीडबैक
गजब का
काँसेप्ट
हो जाता है

जब एक
फेसबुक
का मित्र
आपको

आपके
बारे में
आपकी ही
गली के
कुत्तों से
पूछ कर
कुछ आपके
भौंकने के
बारे में
आपको ही
बता ले जाता है

फीड बैक
हिन्दी नहीं है
लेकिन हिन्दी में
उसके अर्थ से
वो मजा नहीं
आ पाता है
जो फीड बैक
आपको समझा
ले जाता है

हर कोई
लगा होता है
फीड बैक लेने में
खुद का भी
अगर हो सके

लेकिन
अविश्वास का
कोई तोड़
अभी तक
बाजार में
बिकता नजर
नहीं आता है

‘उलूक’
फीड बैक लेना
तुझे नहीं आता है

तेरा
फीड बैक मगर

अगर
एक सम्मानित
लेना चाहता है

तो अपना कॉलर
तू क्यों नहीं उठाता है ?


चित्र साभार: www.dreamstime.com/

सोमवार, 20 अगस्त 2018

खुदा भगवान के साथ बैठा गले मिल कर कहीं किसी गली के कोने में रो रहा होता दिन आज का खुदा ना खास्ता अगर गुजरा कल हो रहा होता

एक आदमी
भूगोल हो रहा होता
आदमी ही एक
इतिहास हो रहा होता

पढ़ने की
जरूरत
नहीं हो
रही होती


सब को
रटा रटाया
अभिमन्यु की तरह

एक आदमी
पेट से ही
पूरा याद हो रहा होता


एक आदमी
हनुमान हो रहा होता
एक आदमी
राम हो रहा होता

बाकि
होना ना होना सारा
आम और
बेनाम हो रहा होता


चश्मा
कहीं उधड़ी हुई
धोती में सिमट रहा होता


ग़ाँधी
अपनी खुद की
लाठी से
पिट रहा होता


कहीं हिन्दू
तो कहीं उसे
मुसलमान
पकड़ रहा होता
कबीर
अपने दोहों को
धो धो कर
कपड़े से
रगड़ रहा होता


ना तुलसी
राम का हो रहा होता
ना रामचरित मानस
पर काम हो रहा होता

मन्दिर में
एक आदमी के
बैठने के लिये
कुर्सियों का
इन्तजाम
हो रहा होता


लिखा हुआ
जितना भी
जहाँ भी
हो रहा होता
हर पन्ने का एक
आदमी हो रहा होता

आदमी आदमी
लिख रहा होता
आदमी ही
एक किताब
हो रहा होता


इस से ज्यादा
गुलशन कब
आबाद
हो रहा होता


 शाख
सो रही होती
‘उलूक’
खो रहा होता

गुलिस्ताँ
खुद में गंगा
खुद में संगम
और खुद ही
दौलताबाद
हो रहा होता।


चित्र साभार: http://clipartstockphotos.com

बुधवार, 15 अगस्त 2018

बहुत खुश है गली के नुक्कड़ पर आजादी के दिन आजाद बाँटने के लिये खुशी के पकौड़े तल रहा है

कई दिन से
थोड़ा थोड़ा
फटे हुऐ
शब्दों को

एक
रफूगर
रफू कर रहा है

पूछने पर
बोला
बहुत धीमे से

बस
फुसफुसा कर

बहुत
दिनों में
मिला है
काम बाबू

एक पागल
दे गया है

कह रहा था
पन्द्रह अगस्त
नजदीक है

आजादी
लिखने का
बहुत मन
कर रहा है

फटे कपड़े
के कुछ टुकड़े

उसी गली के
अगले छोर
का एक दर्जी
मन लगा कर
सिल रहा है

किसलिये
और क्यों

क्या
नया कपड़ा
अब बाजार में
नहीं मिल रहा है

बहुत
आजाद हो चुके थे
कुछ रंगीन कपड़े

ढूँढ कर लाये
गये हैं जनाब

सिलने लगा
यूँ ही तब
देखा नहीं
गया जब

पुराना झंडा
आजादी का

अपने ही
टुकड़ों के लिये
बैचेनी में
मचल रहा है

बन्धन
नहीं है कुछ भी

कुछ भी कह देने
और
कुछ भी कर देने
को आतुर
आजाद

नये शब्दों की
नयी किताब के
आजाद पन्नों
को साथ लेकर

'उसके' घर से
तैयार होकर
बहस के लिये
अब निकल रहा है

आजादी
का मतलब
शायद इसीलिये
‘उलूक’ को

कहीं किसी भी
शब्दकोश में
नहीं मिल रहा है।

चित्र साभार: https://carwad.net

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

पट्टे के रंग के जादू में किसलिये फंसना चाह रहा है बता कहीं दिखा कोई उल्लू जो रंगीन पट्टा पहन कर किसी गुलिस्ताँ को उजाड़ने जा रहा है

एक पट्टा
गले में
पहन लूँ

कई दिन से
विचार आ रहा है

रंग उसका
क्या होना चाहिये

 बस यही
समझ में
नहीं आ रहा है

जमाने में रहकर
जमाने से कितना
पिछड़ गया हूँ

हर पट्टा
पहना हुआ
जैसे मुझे ही
चिढ़ा रहा है

किसम
किसम के हैं
सारे इंद्रधनुषी हैं

सभी पहने हुऐ हैं
एक रंग के पट्टे हैं

आभासी जंजीर
भी नजर आ रही है

मालिक है
जो चाहे करे

भौंकना तो
कम से कम
सिखा रहा है

रंग
इन्द्रधनुष
का एक
पता नहीं
किसके लिये
और क्यों
बौरा रहा है

‘उलूक’
उल्लू है
बना रह

किसी शाख
पर बैठ कर
गुलिस्ताँ को
उजाड़ने
तो तू भी
जा रहा है

किसी
एक रंग के
पट्टे को
पहन कर कोई
उसी रंग में
रंगीन कुछ
भौंकना चाह रहा है

तेरा जी
किस लिये
मिचला रहा है
यही गले से
नीचे उतर
नहीं पा रहा है

एक पट्टा
किसी का भी
तू भी अपने लिये
क्यों नहीं
बना पा रहा है

यही
एक प्रश्न
बिना उत्तर का
यहाँ वहाँ
पगला रहा है ?

चित्र साभार: http://clipartmag.com

शनिवार, 4 अगस्त 2018

आग पर लिखले कुछ भी जलता हुआ इससे पहले कह दे कोई सुन जरा सा अब कुछ बची हुयी राख पर लिख


ख्वाब
पर लिखना
है जनाब

 लिख और
बेहिसाब लिख

फेहरिस्त
छोटी सी लेकर एक
जिन्दगी के पूरे हिसाब पर लिख


रोज
लिखता है कुछ
देखे हुऐ कुछ पर
कुछ भी अटपटा बिना सोचे

सोच कर
जरा लिख कर दिखा
थोड़ा सा कुछ सुरखाब पर लिख

बना रहा है
ख्वाब के समुन्दर
कोई पास में ही

डूब कर
ख्वाबों में उसके ही सही
ले आ एक ख्वाब माँगकर कभी
लिख कुछ उसी के ख्वाब पर लिख

किसी की झूठी 
आब के रुआब से निकल कर आ
आभासी नशे में झूम रही
सम्मोहित कायनात के
वीभत्स हो गये शबाब पर लिख

लिख और
बस थोड़ी सी देर रुक
फिर उस लिखे से
मिलने वाले अजाब पर लिख


किसी ने
नहीं कहा है
फिर से सोच ले
‘उलूक’
एक बार और

ख्वाब पर
लिखने के बहाने भी
अपनी रोजमर्रा की
किसी भड़ास पर लिख ।

चित्र साभार: www.hikingartist.com


अजाब: पीड़ा, दु:ख, पापों का वह दण्ड जो यमलोक में मिलता है, यातना,
फेहरिस्त: सूची पत्र
आब: छवि, चमक, तड़क-भड़क, इज्जत, पानी
रुआब: रोब, शक्ति, सम्मान, भय, आतंक या कोई विशेष बात आदि से प्राप्त प्रसिद्धि
शबाब: यौवन काल, जवानी।

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

रोटियाँ हैं खाने और खिलाने की नहीं हैं कुछ रोटियाँ बस खेलने खिलाने के लिये हैं

वो
अपनी
रोटियाँ
सेकता है
किसी और
की आग में

चारों तरफ
लगी आग है
कुछ रोटियों
के ढेर हैं
और कुछ
राख है

ऐसा
नहीं है कि
भूखा है वो
और उसे
खानी हैं
रोटियाँ

गले तक
पेट भर
जाने के बाद
कुछ देर
खेलने की
आदत है उसे

लकड़ियाँ
सारे जंगल
की यूँ ही
जला देता
है हमेशा

दिल
जला कर
पकायी गयी
रोटी का स्वाद
लाजवाब होता है

रोटियों में
इतना दखल
होना भी
गजब की बात है

रोटियाँ
पढ़ाता है
और
पूछता भी है
फिर से
समझाऊँ
रोटियाँ शुरु से

रोटियों से
क्या करेगा
क्या करेगा
आग और
राख से ‘उलूक’

किसी की
भूख है
किसी का
चूल्हा है

रोटियाँ
किसी
और की हैं।

चित्र साभार: www.123rf.com

मंगलवार, 31 जुलाई 2018

गुलामी आजाद कर रहे हैं ये तो मनमानी है आओ किसी की पाली हुयी एक ढोर हो जायें

दूर करें
अकेलापन
बहुत
आसानी से

किसी भी
भीड़ में एक
कहीं घुसकर
खो जायें

आओ
एक चोर हो जायें

मुश्किल है
बचाना
सोच को अपनी
बहुत दिनों तक

क्या परेशानी है

आओ
जंगल में
नाचता हुआ
एक मोर हो जायें

कारवाँ
भटकने
लगे हैं रास्ते

पहुचने की
किसने ठानी है

खोने का डर
निकालें दिल से

आओ
निडर होकर

किसी गिरोह
को जोड़ने की
एक डोर हो जायें

सच रखे हैं
सबने अपने
अपनी जेब में

कौन सा
बे‌ईमानी है

बहुमत
की मानें
इतने सारे
एक से हैं

आओ
एक और हो जायें

पाठ्यक्रम
सारे बदल गये हैं
किताबें सब पुरानी हैं

‘उलूक’ की
बकबक में
दिमाग ना लगायें

आओ
किसी की
पाली हुयी
एक ढोर हो जायें।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

रविवार, 29 जुलाई 2018

बकवास करेगा ‘उलूक’ मकसद क्या है किसी दीवार में खुदवा क्यों नहीं देता है

उसकी बात
करना
सीख क्यों
नहीं लेता है

भीड़ से
थोड़ी सी
नसीहत क्यों
नहीं लेता है

सोचना
बन्द कर के
देख लिया
कर कभी

दिमाग को
थोड़ा आराम
क्यों नही देता है

तेरा मकसद
पूछता है
अगर
उसका झण्डा

झण्डा
नहीं हूँ
कहकर
जवाब क्यों
नहीं देता है

आइना
नहीं होता है
कई लोगों
के घर में

अपने
घर में है
कपड़े उतार
क्यों
नहीं लेता है

साथ में
रहता है
अंधा बन
पूरी आँखे
खोलकर

पूछता है

क्या
लिखता है
बता क्यों
नहीं देता है

शराफत से
नंगा हो
जाता है

भीड़ में भी
एक शरीफ

नंगों की
भीड़ को
अपना पता

पता नहीं
क्यों नहीं
देता है

बहुत कुछ
लिखना है

पता होता है
‘उलूक’
को भी
हर समय

उस के
ही लोग हैं
उसके ही
जैसे हैं

रहने भी
क्यों नहीं
देता है ।

चित्र साभार: www.fineartpixel.com

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

गुरु की पूर्णिमा को सुना है आज ग्रहण लगने जा रहा है चाँद भी पीले से लाल होना चाह रहा है

गुरुआइन को
सुबह से
क्रोध आ रहा है

कह कुछ
नहीं रही है

बस
छोटी छोटी
बातों के बीच

मुँह कुछ लाल
और
कान थोड़ा सा
गुलाल हो
जा रहा है

गुरु के चेले
पौ फटते ही
शुरु हो लिये हैं

कहीं चित्र में
चेला गुरु के
चरणों में झुका

कहीं गुरु चेले की
बलाइयाँ लेता
नजर आ रहा है

चेले गुरु को
भेज रहे हैं
शुभकामनाएं
गुरु मन्द मन्द
मुस्कुरा रहा है

ब्रह्मा विष्णु
महेश ही नहीं
साक्षात परम ब्रह्म
के दर्शन पा लिया
दिखा कर चेला
धन्य हुआ जा रहा है

‘उलूक’ आदतन
अपने पंख लपेटे
सूखे पेड़ के
खोखले ठिये पर
बार बार पंजे
निकाल कर
अपने कान
खुजला रहा है

गुरु चेलों की
संगत में
अभी अभी
सामने सामने
दिखा नाटक
और
तबलेबाजी
का नजारा

उससे
ना उगला
जा रहा है
ना निगला
जा रहा है

कैसे समझाये
गुरुआइन को गुरु

उसे पता है
आज शाम
पूर्णिमा को
ग्रहण लगने
जा रहा है

इतिहास का
पहला वाकया है

चाँद भी
पीले से
लाल होकर
अपना क्रोध

कलियुगी
गुरु के
साथ पूर्णिमा
को जोड़ने
की बात पर
दिखा रहा है

थूक
देना चाहिये
गुरुआइन ने भी
आज अपना क्रोध

सुनकर

गुरु की
पूर्णिमा को
आज ग्रहण
लगने जा रहा है।

चित्र साभार: www.istockphoto.com

बुधवार, 25 जुलाई 2018

दिमाग बन्द करते हैं अपने चल पढ़ाने वाले से पढ़ कर के आते हैं

बहुत
लिख लिया
एक ही
मुद्दे पर
पूरे महीने भर

इस
सब से
ध्यान हटाते हैं


शेरो शायरी
कविता कहानी
लिखना लिखाना
सीखने सिखाने
की किसी दुकान
तक हो कर
के आते हैं

कई साल
हो गये
बकवास
करते करते
एक ही
तरीके की

कुछ नया
आभासी
सकारात्मक
बनाने
दिखाने
के बाद
फैलाने का भी
जुगाड़ अब
लगाते हैं

घर में
लगने देते हैं आग
घुआँ सिगरेट का
समझ कर पी जाते हैं

बची मिलती है
राख कुछ अगर
इस सब के बाद भी

शरीर
में पोत कर खुद ही
शिव हो जाते हैं

उसके
घर की तरफ
इशारे करते हैं

जाम
इल्जाम के बनाते हैं

नशा हो झूमे शहर
बने एक भीड़ पागल
इस सब के पहले

अपने घर के पैमाने
बोतलों के साथ
किसी मन्दिर की
मूरत के पीछे
ले जाकर छिपाते हैं

बरसात
का मौसम है
बादलों में चल रहे
इश्क मोहब्बत की
खबर एक जलाते हैं

कहीं से भी
निकल कर आये
कोई नोचने बादलों को

पतली गली
से निकल कर कहीं
किनारे
पर बैठ नदी के
चाय पीते हैं
और पकौड़े खाते हैं

ये कारवाँ
वो नहीं रहा ‘उलूक’
जिसे रास्ते खुद
सजदे के लिये ले जाते हैं

मन्दिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च की
बातें पुरानी हो गयी हैं

चल किसी
आदमी के पैरों में
सबके सर झुकवाते हैं ।

चित्र साभार: www.thecareermuse.co.in