नोट: किसी शायर के शेर नहीं हैं ‘उलूक’ के लकड़बग्घे हैं पेशे खिदमत
शराफत
ओढ़ कर
झाँकें
आईने में
अपने ही घर के
और देखें
कहीं
किनारे से
कुछ
दिखाई तो
नहीं दे रहा है
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ओढ़ कर
झाँकें
आईने में
अपने ही घर के
और देखें
कहीं
किनारे से
कुछ
दिखाई तो
नहीं दे रहा है
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पता
मुझको है
सब कुछ
अपने बारे में
कहीं
से कुछ
खुला हुआ थोड़ा सा
किसी
और को
बता ही
तो
नहीं दे रहा है
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मुझको है
सब कुछ
अपने बारे में
कहीं
से कुछ
खुला हुआ थोड़ा सा
किसी
और को
बता ही
तो
नहीं दे रहा है
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खुद को
मान लें खुदा
और
गलियाँयें
गली में ले जाकर
किसी को भी घेर कर
कौन सा
कोई
थाना कचहरी
ले जा ही
जो क्या ले रहा है
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मान लें खुदा
और
गलियाँयें
गली में ले जाकर
किसी को भी घेर कर
कौन सा
कोई
थाना कचहरी
ले जा ही
जो क्या ले रहा है
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बदल रही है
आबो हवा
हर मोहल्ले शहर
छोटे बड़े की
किस लिये अढ़ा है
मुखौटा
नये फैशन का
खुद के
लिये भी
सिलवा ही
क्यों नहीं ले रहा है
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आबो हवा
हर मोहल्ले शहर
छोटे बड़े की
किस लिये अढ़ा है
मुखौटा
नये फैशन का
खुद के
लिये भी
सिलवा ही
क्यों नहीं ले रहा है
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बहुत अच्छा
कोई है
बहुत दूर है
चर्चा बड़ी है
बड़ा जोर है
श्रृँखला की
उसकी सोच का
अन्तिम छोर
पास का
दिखा रहा है
कितना मोर है
जँगल
में उसके
नाचने का
अंदाज अच्छे का
समझ में
आ रहा है
समझा ही
क्यों नहीं दे रहा है
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कोई है
बहुत दूर है
चर्चा बड़ी है
बड़ा जोर है
श्रृँखला की
उसकी सोच का
अन्तिम छोर
पास का
दिखा रहा है
कितना मोर है
जँगल
में उसके
नाचने का
अंदाज अच्छे का
समझ में
आ रहा है
समझा ही
क्यों नहीं दे रहा है
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पेट
भरना भी
जरूरी है पन्नों का
कुछ भी
खिलाना
गलत है
या सही है
सोचना बेकार है
भूख मीठी
होती है भोजन से
रोज
कुछ ना कुछ
खिला ही
क्यों नहीं दे रहा है
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भरना भी
जरूरी है पन्नों का
कुछ भी
खिलाना
गलत है
या सही है
सोचना बेकार है
भूख मीठी
होती है भोजन से
रोज
कुछ ना कुछ
खिला ही
क्यों नहीं दे रहा है
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शेर
हर तरफ से
लिखे जा रहे हैं
शेरों के लिये
बहुत हैं
शायर यहाँ
कुछ नयी चीज लिख
“लकड़बग्घे” ही सही
लिख कर
दिखा ही
क्यों नहीं दे रहा है
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हर तरफ से
लिखे जा रहे हैं
शेरों के लिये
बहुत हैं
शायर यहाँ
कुछ नयी चीज लिख
“लकड़बग्घे” ही सही
लिख कर
दिखा ही
क्यों नहीं दे रहा है
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‘उलूक’
आँख के अंधे
रख
क्यों नहीं लेता
नाम अपना
नया कुछ नयन सुख जैसा
बस
दो ही दिन
के बाद में
मत कह बैठना
कुछ भी कहीं
अपने
मतलब का
सुनाई
क्यों नहीं दे रहा है
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चित्र साभार: https://pngtree.com
आँख के अंधे
रख
क्यों नहीं लेता
नाम अपना
नया कुछ नयन सुख जैसा
बस
दो ही दिन
के बाद में
मत कह बैठना
कुछ भी कहीं
अपने
मतलब का
सुनाई
क्यों नहीं दे रहा है
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चित्र साभार: https://pngtree.com