हो सकता है
आवारा
नजर
आ रहे हों
पर
सच मानिये
हैं नहीं
बंधे हुऐ हैं
पट्टे गले में
और
जंजीर भी है
खूंटे
से बंधी
हुई भी
नहीं है
हाथ में है
किसी के
यानि
आजादी है
आने जाने
की
साथ में
जहाँ
ले जाने
वाला
जायेगा
वहाँ
तक तो
कम से कम
पट्टे
और
जंजीर से
मतलब
ना
निकाल
लिया जाये
कि
जानवर
की ही बात है
और
हाथ में है
किसी के से
अर्थ
नहीं निकलता है
कि
उसके
गले में
नहीं है पट्टा
पट्टे दर पट्टे
जंजीर दर जंजीर
पूरी
होती है
एक
बहुत बड़ी लकीर
यहाँ से वहाँ
कहीं
बहुत दूर तक
बहुत दूर तक
जहाँ
मिलता है
आसमान
पहाड़ से
और
उससे भी आगे
समझ में
जो
नहीं आती है
नहीं आती है
फिर भी
ये
नासमझी में
उसी तरह
लिख दी जाती है
समझ में
आ जाती
तो
काहे लिखी जाती
इसीलिये
बकवास में
गिनी जाती है
कही जाती है
जमाना
उस
समझदार का है
जिसका
पता ना चले
उसका
किस के हाथ में
सिरा टिका है
जिसे
चाहिये होता है
एक झुंड
जिसके
सोचने देखने पूछने कहने
का हर रास्ता
उसने
खुद ही
बन्द किया होता है
जंजीर
के
इशारे होते हैंं
बँधा हुआ
इशारे इशारे
चल देता है
किसी को
किसी से
कुछ नहीं
पूछना होता है
हर किसी
को
बस अपने
पट्टे
और
अपनी जंजीर
का
पता होता है
चैन
से
जीने के लिये
उसी को
केवल
भूलना होता है
‘उलूक’
पूरी जिंदगी
कट जाती है
खबर
दूर देश की
चलती चली जाती है
अपने
बगल में ही
खुद रही कब्र
से
मतलब रखना
उसपर
बहस करना
उसकी
खबर को
अखबार
तक
पहुँचने
देने
वाले से
बड़ा बेवकूफ
कोई
नहीं होता है ।