चकाचौँध रोशनी
पठाकों के शोर
और बहुत सारे
आभासी सत्यों की भीड़
बीच से
गुजरते हुऐ
कोशिश करना
पंक्तियों से नजरें चुराते हुऐ
लग जाना
बीच के निर्वात को
परिभाषित करने में
कई सारे भ्रमों से झूझते हुऐ
व्यँग खोजना
उलझन भरी सोच में
और लिख देना कुछ नहीं
इस कुछ नहीं लिखने
और कहीं
अन्दर के किसी कोने में बैठे
थोड़े से अंधेरे को
चकाचौँध से घेर कर
कत्ल कर देने की
सोच की रस्सियाँ बुनना
इंगित करता हुआ
महसूस कराता लगता है
समुद्र मंथन इसी तरह हुआ होगा
निकल कर आई होंगी
लक्ष्मी भी शायद
आँखें बंद कर लेने के बाद
दिख रहे प्रकाश को
दीपावली कहा गया होगा
लिख देना
और फिर लिखे के अर्थ को
खुद ही खुद में खोजना
बहुत आसान नहीं
फिर भी
इशारों इशारों में
हर किसी का लिखा
इतना तो बता देता है
लिखा हुआ
सीधे सीधे
सब कुछ बता जायेगा
सोचना ठीक नहीं
अंधेरा है तो प्रकाश है
फिर किसलिये
छोटे से अँधेरे को घेर कर
लाखों दियों से मुठभेड़
यही दीपावली है
यही पर्व है दीपों का
कुछ देर के लिये
अंधेरे से मुँह मोड़ कर बैठ लेने
और खुश हो लेना
कौन सा बुरा है ‘उलूक’
कुछ समझना
कुछ समझाना
बाकी सब
बेमतलब का गाना
फिर भी
बनी रहे लय
कुछ नहीं
और कुछ के
बीच की
जद्दोजहद के साथ
शुभ हो दीप पर्व
उमंगों के सपने बने रहें
भ्रम में ही सही।
चित्र साभार:
https://medium.com/the-mission/a-practical-hack-to-combat-negative-thoughts-in-2-minutes-or-less-cc3d1bddb3af