सोमवार, 21 अगस्त 2023
कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर
शुक्रवार, 18 अगस्त 2023
सामने ‘उलूक’ को देख कर खुजली से भर जाता है लेकिन बाद में कही और जा कर खुजलाता है
किसको किससे होती है किसको कब होती है और
किसको कहां होती है में जरूर कुछ बात होती है
सामने से दिखे आता हुआ कोई
खुजली हो और खुजला ना सके कोई
गलत बात होती है
रास्ता संकरा होने से इधर उधर कहीं जा ना सके कोई
चहरे पर नजर आना शुरू हो जाए खुजली
आ रही है देख कर भी मुस्कुरा ना सके कोई
कैसे कहे कोई ये बाते बस इत्तेफाक होती हैं
बहुत ही खतरनाक होती है कुछ खुजली
अचानक शुरू हो लेती है कहीं पर भी कभी भी
गजब की खुजली होती है और बेबात होती है
कोई किसी को नहीं बताता है कि खुजलाता है
कोई किसी को नहीं दिखाता है कि खुजलाता है
खुजली को महसूस भर कर लेता है थोड़ा सा
दिमाग में अपने ही कुछ दही जमाता है
मौके का इंतज़ार करता है खुजलाने वाला
लोहा गरम देख कर हमेशा हथौड़ा चलाता है
खुजली हुई थी बहुत जोर से हुई थी
खुजला लिया गया है साफ़ साफ़ पता चल जाता है
एक नोटिस छोटा झंडा फहराने का
और एक नोटिस झंडे पर ज़रा सा टेड़ा डंडा लगाने का
एक डंडे वाला हाथ में जब थमा जाता है
‘उलूक’ कुछ दवा क्यों नहीं खाता है
कुछ ईलाज अपना क्यों नहीं करवाता है
बहुत से लोगों को किसलिए होने लगती है खुजली
जब भी कभी उन्हें तू
सामने से मुस्कुराता हुआ आता नजर आ जाता है ?
चित्र
साभार: https://www.dreamstime.com/
मंगलवार, 15 अगस्त 2023
आजादी के मायने सबके लिये उनके अपने हिसाब से हैं बस हिसाब बहुत जरूरी है
आज की मजबूरी है
रविवार, 6 अगस्त 2023
फटी सोच से फटी किताब में लिखे गए कुछ फटे शेर 'उलूक' ले कर के आता है
भटक कर अँगुलियों के पोरों तक आ जाता है
सामने पड़े सफ़ेद पर बस फ़ैल जाता है
खून
लाल होता है कहा जाता है
सफ़ेद होकर कब पानी में बदल जाता है
कहीं जिक्र नहीं करता है कोई
इंसान होने में अब किसे फक्र हो पाता है
कूंची
लिए हाथ में कसमसाता है
रंगों से इन्द्रधनुष बनाना चाहता है
एक रंग काफी होता है
पागल बादशाह जब जाल
अपना फैलाता है
सीधे
तू चोर है कभी भी नहीं कहना चाहिए
ना ही किसी से सीधे कहा जाता है
अलीबाबा के समय चालीस रहे होंगे
अब तो पांच सौ चालीस से देश चल पाता है
सीवर जरूरी नहीं सब बहा कर ले जाए
बहुत कुछ सब के हिस्से का बचा रह जाता है
सफाई और गन्दगी के बीच की लाइन खींचना ठीक नहीं
अब माना जाता है
सब कुछ हम्माम हो चला है देख रहे हैं खुद
को नहाते हुए इसी में
कौन हडबड़ाता है
गांधी को सोचना और उसकी बात करने वाला
अब एक निहायती गंवार माना जाता है
खोदना जरूरी है सारी खूबसूरत इमारतों को एक बार
और ये उसे करना है
तू किसलिए लरबराता
है
ईट बहुत है औकात बताने के लिए
क्यों पगलाता है
चर्च मन्दिर मस्जिद
गुरूद्वारा अगर भरभराता है
बहुत सारी गन्दगी है बहुत बदबूदार है
फेंकना भी होता है हर कोई फेंकना भी चाहता है
‘उलूक’ आसान नहीं होता है शब्द नहीं होते हैं पास में
एक वाक्य तक नहीं बनाया जाता
है |
सोमवार, 31 जुलाई 2023
टाईटैनिक के डूब लेने का मुहूरत कहीं ना कहीं तो लिखा होता है
कितना भी सांप हो लेता है
एक लम्बे समय तक कुण्डली मार लेने के बाद
सीधे हो कर लौटना आसान नहीं होता है
सांप होना काटने की आदत होना
अलग अलग बातें होती हैं
और हर सांप जहरीला हो
ये भी जरूरी नहीं होता है
सावन का महीना शिव के लिए होता है
भस्म मलने के लिए होती है
भस्मासुर हर पहर का
उसी पहर में भस्म नहीं होता है
अजीब सी बातें हैं अजीब सी आदतें हैं
अजीब सा समा है अजीब से मेहमा है
क्या होता है अगर तजुर्बा नहीं होता है
शब्द हुंकार के डमरू में सुनाई देते हैं
उसके लिए कान खड़े हों
ये भी कहीं लिखा नहीं होता है
एक लंबा समय लगता है पूँछ को टेडे होने में
सीधे कर लेने के सपने देख लेने का
कोई समय नहीं होता है
रेत पर बने महल कई सालों तक यूं ही खड़े रह सकते हैं
किसने कह दिया
इस बार की आंधी ने पहले से अगर आगाह कर भी दिया होता है
हजारों कश्तियां होती हैं समुन्दर में कही ना कहीं
जहां और जब डूबना होता है
वो समाचार अखबार में कभी भी
बहुत पहले से नहीं होता है
‘उलूक’ इंतज़ार कर
खुश हो कर सोच ले
इस बार नहीं तो अगले किसी बार
टाईटैनिक के डूब लेने का मुहूरत
कहीं ना कहीं तो लिखा होता है|
चित्र साभार: https://www.deviantart.com/
रविवार, 18 जून 2023
समझ में आना बंद हो गया
मंगलवार, 2 मई 2023
बस यूँ ही
लिखना नहीं आना नहीं होता है
अहसास लिख जाते है
कुछ को लिख दिये का अहसास होता है
बादल कहीं नहीं होता है
पानी पानी हो शर्मसार होता है
इसको उसका सब पता होता है
बस अपना कुछ पता नहीं होता है
सबको पता होता है
कोई कहता नहीं है मगर गुलाम होता है
बस लिखना जरुरी होता है
आंधी में लिखा सब कुछ सामने से ही उड़ा होता है
शराफत का यही कायदा होता है
जर्रे जर्रे में जिसने सब हलाल किया होता है
कुछ नहीं कहीं होता है
बस कुछ देखना ही होता है |
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/
शनिवार, 29 अप्रैल 2023
भीड़ से निकल बस्ती नहीं शहर लिख दे
मत निकल बाहर
थोड़ा सा कोशिश कर
जा बड़ी सी एक नहर लिख दे
रोज नहीं कभी
एक पहर लिख दे
‘उलूक’ गर गहर लिख दे |
शनिवार, 4 फ़रवरी 2023
कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं
शनिवार, 31 दिसंबर 2022
लम्हे
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शनिवार, 19 नवंबर 2022
स्वागत है: शहर आपके कदमों की बस आहट से आबाद है
सोमवार, 31 अक्तूबर 2022
कुछ रखना कुछ बकना ना कहे कोई घड़ा चिकना हो गया
शुक्रवार, 30 सितंबर 2022
इतना लिख कि लिख लिख कर कारवान लिख दे
कभी तो कोशिश कर थोड़ा सा आसमान लिख दे
छोड़ एक दिन बिना सोचे पूरा एक बागवान लिख दे
जैसे एक दिन में कोई पूरा कूड़ेदान लिख दे
बुधवार, 31 अगस्त 2022
साथ में लेकर चलें एक कपड़े उतारा हुआ बिजूका
एक कपड़े उतारा हुआ बिजूका
जो चिल्ला सके सामने खड़े उस आदमी पर
जिसको नंगा घोषित
कर ले जाने के सारे पैंतरे उलझ चुके हों
ताश के बावन पत्तों के बीच कहीं किसी जोकर से
बस शराफत चेहरे की पॉलिश कर लेना बहुत जरूरी है ध्यान में रखना
सारे शराफत चमकाए हुऐ
एक साथ एक जमीन पर एक ही समय में
साथ में नजर नहीं आने चाहिये लेकिन
बिजूका के अगल बगल आगे और पीछे
हो सके तो ऊपर और नीचे भी
सारी मछलियों की आखें
तीर पर चिपकी हुई होनी चाहिये
और अर्जुन झुकाए खड़ा हुआ होना जरूरी है अपना सिर
सड़क पर पीटता हुआ अपनी ही छाती
गीता और गीता में चिपके हुऐ
कृष्ण के उपदेशों को
फूल पत्ते और अगरबत्ती के धुऐं की निछावर कर
दिन की शुरुआत करने वाले
सभी बिजूकों का
जिंदा रहना भी उतना ही जरूरी है
जितना
रोज का रोज सुबह शुरु होकर शाम तक
मरते चले जाने वाले शरीफों की दुकान के
शटर और तालों की धूप बत्ती कर
खबर को अखबार के पहले पन्ने में दफनाने वाले खबरची की
मसालेदार हरा धनिया छिड़की हुई खबर का
सठियाये झल्लाये खुद से खार खाये ‘उलूक’ की बकवास
बहुत दिनों तक कब्र में सो नहीं पाती है
निकल ही आती है महीने एक में कभी किसी दिन
केवल इतना बताने को कि जिंदा रहना जरूरी है
सारी सड़ांधों का भी
खुश्बुओं के सपने बेचने वालों के लिये।
शनिवार, 16 जुलाई 2022
पर्व “हरेला” की बधाई और शुभकामनाओं के बहाने दो बात हरी हरी
यूँ ही खुद ब खुद स्याही उगलती लेखनी
मंगलवार, 14 जून 2022
फिर से एक आधी बकवास पूरे महीने के आधे में ही सही कुछ तो खाँस
मतलब उसका भी है कुछ तब भी
और आधा सच होने मे कोई शर्म नहीं होनी चाहिये
होती भी नहीं है
पूर्णता किसे मिलती है?
हाँ फख्र दिखता है आधे सच का
जिस पर मिलती हैं शाबाशियाँ
और पीटी जाती हैं तालियाँ
पूरा सच सिक्के के एक तरफ होता भी कहां है
हेड या टैल
दोनो और आधा आधा सच
सिक्का खड़ा भी हो जाये
तब भी दिखेगा एक तरफ का आधा सच ही
और आधे सच का खिलाड़ी
सबसे गजब का खिलाड़ी जो कभी गोल नहीं करता है
क्यों की गोल होने से खेल का परिणाम सामने से होता है
और खेल विराम लेता है
पूर्णता के साथ फिलम खतम करना कोई नहीं चाहता है
आधे भरे गिलास में भरी शराब पानी का करती इंतजार
सबसे बड़ा सपना होता है एक शराबी के लिये
शराबी को नशा होता है वो भी आधा
सुबह होती है यानि कि आधा दिन
और सपना टूट जाता है
जो हम करते हैं
उसे छोड़ कर सब कह देना
लेकिन कभी पूरा नहीं बस आधा आधा छोड़ देना
क्योंकि आधा ही पूर्ण है
पूर्ण मे खुल जाता पूरा झोल है
‘उलूक’ बखिया उधेड़ लेकिन पूरी नहीं
पूरी उधड़ने से खिसक सकती है ढकी हुई झूठ कि पुतली
इसलिये आधा देख आधा फेँक आधा सेक
और मौज में काट ले जिंदगी
वैसे भी कौन सा मरना भी पूरा होता है
कहते हैं फिर जनम होता है
बाकी आधे का हिसाब किताब देने के लिये।
चित्र साभार: https://clipart.me/
सोमवार, 16 मई 2022
महीने की एक बकवास की कसम को कभी दो कर के भी तोड़ दिया जाता है
अपनी कविता
कुछ बो देते हैं
कुछ इन्तजार करते हैं
कुछ कविता जिता ले जाते हैं कविता दौड़ में
कुछ
अपनी कविता को
पड़ोसी की कविता से मिलाते हैं
अपने घर की कविता बाजार में दे आते हैं
बहुत हैं
कविता बेच भी लेते हैं
अदभुद है
कविताओंं का सँसार
पूरा ग्रँथ तैयार हो जायेगा
कविताओं में
चुम्बक भी होते हैं
दाऊद भी है यहां कश्मीर भी है आतंकवादी भी हैं
शब्दों के ऊपर मिलेगी भूनते मूँगफली और चना थोथा ही सही
बजते चलता रहता है साथ में थोथा घना
कविता को कतार में लगाना भी यहीं दिखाई देता है
कविता एक लिखता है
तीसरा कविता पर मुहर लगाता है
कविता की नदियाँ बहती हैं दूर नहीं जाना होता है
'उलूक’
कविता में बकवास और बकवास में कविता से उबर नहीं पाता है
कविता और कविता की किताबों को
और चला जाता है
सारे कवि लगे हुऐ दिखते हैं
शनिवार, 30 अप्रैल 2022
अल्विदा ‘ऐलैक्सा’
We will be retiring Alexa.com on May 1, 2022.
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पर आज तक यहाँ है और पायी जाती है
कल चली जायेगी एक चीज यहाँ से
सूचना कई दिनोँ पहले से दी जाती है
यहाँ के हर पन्ने पर उसकी नजर दिखाई देती है
हर पन्ने की उसको खबर है कितनी है रोज का रोज बताये देती है
एक पन्ने को एक संख्या उसके द्वारा दी जाती है
ऐलैक्सा रैँक के नाम से जो अब तक जानी जाती है
जितना कम हो उतनी अच्छी मानी जाती है
गूगल डाट कोम नम्बर एक पर आती है
यू ट्यूब दूसरा स्थान पाती है
फेसबुक को तीन दिया जाता है
अमेजन का नम्बर चार पर आता है
लिंक्डिन बयालीसवां पायदान पाता है
आने जाने वाले की सँख्या से रैक का कोई नाता है
आज के दिन अंतिम बार नजर आयेगी
कल एक मई दो हजार बाईस को अवकाश पर चली जायेगी
‘उलूक टाइम्स’ करोड़ों पन्नो के बीच
एक लाख उनसठ हजार आठ सौ अठत्तर पर आज नजर आता है
कल से ये सब नजर में नहीं आ पायेगा
लेकिन ऐलैक्सा तेरी याद हमेशा ही रहेगी
तेरा किया गया काम खाली नहीं जायेगा
उतार भी आयेंगे चढाव भी बहलायेंगे
ठहराव भी दिखेंगे इतिहास लिखे जायेंगे
कई पहलुओं से भरे हुऐ इस आभासी दुनियाँ के पन्नों में
ऐलैक्सा के छोड़े हुऐ निशान कई छाप छोड़ जायेँगे
अल्विदा कहेंगे कल के दिन तेरे जाने की बेला में
‘उलूक’ के शब्द आज के दिन तुझे सोचते हुऐ कुछ भारी से होते नजर आयेंगे।
चित्र साभार: https://intellipaat.com/blog/what-is-alexa-ranking/
गुरुवार, 31 मार्च 2022
फाईल होना ही बहुत है कभी खाली खोलने ही क्यों नहीं चले आते
सोमवार, 28 फ़रवरी 2022
कई दिन के सन्नाटे के बाद किसी दिन भौंपू बजा लेने में क्या जाता है
बस सोचता रह जाता है
कुकुरमुत्तों की भीड़ में खुल के उगना
इतना आसान नहीं हो पाता है
महीने भर का कूड़ा
कूड़ेदान में ही छोड़ना पड़ जाता है
कई कई दिनों तक मन मसोस कर
बन्द ढक्कन फिर खोला भी नहीं जाता है
दो चार गिनती के पके पकायों को पकाने का शौक
धरा का धरा रह जाता है
कूड़ेदान रखे रास्तों से निकलना कौन चाहता है
रास्ते फूलों से भरे एक नहीं बहुत होते हैं
खुश्बू लिखे से नहीं आती है अलग बात है
खुश्बू सोच लेने में कौन सा किसी की जेब से
कुछ कहीं खर्च हो जाता है
समय समय की बात होती है
कभी खुल के बरसने वाले से निचोड़ कर भी
कुछ नहीं निकल पाता है
रोज का रोज हिसाब किताब करने वाला
जनवरी के बाद फरवरी निकलता देखता है
सामने ही मार्च के महीने को मुँह खोले हुऐ
सामने से खड़ा हुआ पाता है
कितने आशीर्वाद छिपे होते हैं
कितनी गालियाँ मुँह छुपा रही होती है
शब्दकोष में इतना कुछ है अच्छा है सारा कुछ
सब को हर समय समझ में एकदम से नहीं आ जाता है
चार लाईन लिख कर अधूरा छोड़ देना बहुत अच्छा है
समझने वाला पन्ने पर खाली जगह देख कर भी
समझ ले जाता है
पता नहीं कब समझ में आयेगा उल्लू के पट्ठे ‘उलूक’ को
आदतन कुछ भी नहीं लिखे हुऐ को
खींच तान कर हमेशा
कुछ बन ही जायेगा की समझ लिये हुऐ बेशरम
कई दिनों के सन्नाटे से भी निकलते हुऐ
भौंपू बजाने से बाज नहीं आता है।
चित्र साभार: https://www.clipartmax.com/
सोमवार, 31 जनवरी 2022
"नवीन चौरे" की उस कविता को सलाम जिसे सदी की कविता कहना जरूरी हो जाता है
खौलने तक
बहुत बड़ी बात है
ठंडे रहने के फायदे में जब
इंसान होने से बचने के रास्ते
गिनतियाँ सिखायी जाती हैं अब भी
कई सदियों में
ऐसा भी निकल कर आता है
आश्चर्य होता है
ऐसी
अदभुद कविता
बुना हुआ नजर आता है
भीड़ के बीच में भीड़ हो चुकी आत्मा से लेकर
परमात्मा होने के अहसास से
शब्द नहीं हैं पास में “नवीन चौरे” की कविता के लिये
शायद
इस सदी की सबसे उबलती
एक बकवास से
बन्द किया गया
नये साल के पहले महीने की अंतिम तारीख को
बहाने ही सही
‘उलूक’
स्वीकार करता है
उसी भीड़ का एक हिस्सा होने का
आँखों को बन्द कर
आँखों देखे हाल सुनाती
सदियों में
एक तूफान उबलते अशआरों का
साभार: यू ट्यूब