उलूक टाइम्स

बुधवार, 30 जनवरी 2019

जरूरत नहीं है समझने की बहुत लम्बे समय से इकट्ठा किये कूड़े की उल्टी आज आ ही जा रही है


(उलूक को बहुत दूर तक दिखायी नहीं  देता है । कृपया दूर तक फैले देश से जोड़ कर मूल्याँकन करने का कष्ट ना करें। जो  लोग  पूजा में व्यस्त हैं  अपनी आँखे बंद रखें। बैकुण्ठी  के फिर से अवतरित होने के लिये मंत्र जपने शुरु करें)


कई
दिन हो गये

जमा करते करते

कूड़ा
फैलाने की

हिम्मत ही नहीं
आ पा रही है

दो हजार
उन्नीस में


सुना गया है


चिट्ठाकारी
पर
कोई

ईनाम

लेने के लिये

लाईन लगाइये


की मुनादी

करवायी
जा रही है


कई दिन से
ख्वाब में

मक्खियाँ ही
मक्खियाँ
नजर आ रही हैं


गिनना शुरु
करते ही
पता
चल रहा है

कुछ मकड़ी
हो चुकी हैं

खबरची
की खबर
बता रही है


मक्खियाँ
मकड़ी होते ही

मेज की
दूसरी ओर
चली जा रही हैं


साक्षात्कार
कर रही हैं

सकारात्मकता
के पाठ

कैसे
पढ़ाये जायेंगे

समझा रही हैं


मक्खियों
का राजा
मदमस्त है

लग रहा है
बिना अफीम
चाटे ही

गहरी नींद
आ रही है


खून
चूसने में
मजा नहीं है

खून
सुखाने के

तरीके
सिखा रही हैं


मकड़ियाँ
हो चुकी

मक्खियों के
गिरोह के

मान्यता प्राप्त
होने का सबूत

खबरचियों
की टीम
जुटा रही है


मकड़ी
नहीं हो सकी
मक्खियाँ

बुद्धिजीवियों
में अब
गिनी
जा रही हैं


इसलिये
उनके
कहने सुनने

लिखने पढ़ने
की बात

की बात
करने की

जरूरत ही
नहीं समझी
जा रही है


अखबार में

बस
मकड़ियों
की खबर

उनके
सरदार
के इशारों
से ही
छापी
जा रही है


गिरोह
की बैठकों
में तेजी
आती हुयी
नजर आ रही है


फिर किसी
बड़ी लूट की

लम्बी योजना पर
मुहर लगवाने के लिये

प्रस्ताव की
कापियाँ

सरकार
के पास
भेजी
जा रही हैं


अंग्रेजों के
तोड़ो और
राज करो
के सिद्धांत का

नया उदाहरण
पेश करने
की तैयारी है


एक
पुरानी दुकान की
दो दुकान बना कर

दो दुकानदारों
के लिये दो कुर्सी

पेश करने की
ये मारामारी है


गिरोह
की खबरें
छापने के लिये

क्या
मिल रहा है
खबरची को

खबर
नहीं बता रही है


हो सकता है

लम्बी लूट
की योजना में

उनको भी
कहा गया हो

उनकी भी
कुछ भागीदारी है


थाना कोतवाली
एफ आई आर
होने का
कोई डर हो

ऐसी बात
के लिये
कोई जगह
छोड़ी गयी हो

नजर
नहीं आ रही है


गिरोह
के मन मुताबिक
लुटने के लिये तैयार

प्रवेश
लेने वाले
अभ्यर्थियों की

हर साल
एक लम्बी लाईन

खुद ही
खुदकुशी
करने के लिये
जब
आ ही जा रही है


‘उलूक’
तू लिख

‘उलूक’
तू मत लिख

कुछ अलग
नहीं होना है
किसी भी जगह

इस देश में
सब वही है

सबकी
सोच वही है

तेरी खुजली

तुझे ही
खुजलानी है

इतनी सी अक्ल

तुझे पता नहीं

क्यों नहीं
आ पा रही है ।

चित्र साभार:
https://www.canstockphoto.com

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

सेब को अनार है कह देने वालों की भर्ती गिरोह का सरदार करवा रहा है

गिरोह

पर्दे के
पीछे से

जल्दी ही

कुछ उल्टा
करने
जा रहा है

सामने से
हो रही

अच्छी 

सीधी
बातों से

समझ
आ रहा है

अखबार

सरदार की
भेजी खबर को 


सजा कर
दिखा रहा है

जरूरत मंदों
के लिये

संवेदना
देख कर

सब गीला
हो जा रहा है

शहर में
कुछ नया
अजूबा होने
के आसार

मौसम विभाग
सुना रहा है

आंकड़े
बगल के देश
के मेलों में बिके

गधों के
ला ला कर
दिखा रहा है

जमीने
किस की
खरीदी हुई हैं

किस के
हैं मकान
मैदान के
शहर में

जायजा
लिया
जा रहा है

पहाड़
से उतार
मैदान में

राजा के
दरबार को
ले जाने का

आदेश
जल्दी ही
आने जा रहा है

पहाड़ों
को वीरान
करने की
एक नयी
कोशिश है

किसी
को बहुत
मजा
आ रहा है

गिरोह
पढ़ा रहा है 


सेब को
अनार
कहलवाना
किसी को 

कोई
‘उलूक’ को

अनार है
अनार है
कह कर

एक सेब
रोज
दिखा रहा है । 


चित्र साभार: www.kisspng.com

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

इस घर को उस घर से निकाल किसी और घर में मिलाने का जल्दी ही कमाल होगा

दैनिक हिन्दुस्तान 15/01/2019
नये साल

जरूर

फिर से
कोई
बबाल होगा

बिकेगा
एक बार और
बिका घर

अलग
धमाल होगा

उस घर से
उठाया था
घर कभी

सोचे बिना
कोई
सवाल होगा

इस घर में
मिलाया था
सोच कर

कल सब
अपना ही
माल होगा

घर बेच
कर बना
घर का
मालिक

कितना
निहाल होगा

कफन
तीसरे साल
बदल
देने वाला

कितना
खुशहाल होगा

पाँच साल में
निकलेगा
फिर जनाजा

क्या
सूरते
हाल होगा

किसका मरा
कुछ नहीं होगा

सबसे आगे
सिर मुँडाया

वही
माई का
लाल होगा

बेवकूफ
‘उलूक’
दौड़ेगा

छोड़ कर
चलना
घुटनों के बल

देखना
बेमिसाल होगा

समझदारों
के गिरोह में
खिल उठेंगे
चेहरे सभी

इस
नये साल
पक्का

बेवकूफों का
फिर
इन्तकाल होगा।
 

चित्र साभार: दैनिक हिंदुस्तान, मंगलवार, 15/01/2019 पृष्ठ 11

रविवार, 13 जनवरी 2019

चिट्ठाकारी और दस साल

ना
खबर पर
कुछ लिखना है

ना
अखबार पर
कुछ कहना है

सोच बैठा
एक दिन

लिखना
लिखाना ही
बन्द हो गया

दस साल
से करते हुऐ
बकवास
पर बकवास

समझ बैठा
सब तो लिख
दिया होगा

सोचना ही
सोच पर ही
एक बड़ा
पैबन्द हो गया

हर दूसरे
के चाहने
और
उसके साथ
हाथ आकर
बटाने
उसके
हिसाब से

अपना
सारा हिसाब
एक किताबी
खण्ड हो गया

कुछ
लिखना लिखाना
पन्ने पर अपने

बस इक
नुमाईश जैसा कुछ

अपनी सोच से
आती खुद की ही
सुगन्ध हो गया

पता है
कुछ नहीं
होना है इस
लिखने लिखाने से

और यूँ ही
दस साल से
लिखा लिखाया

खुद ही
झण्ड हो गया

अखबार
में खबर
और
खबर में
अखबार

सच गाँधी
नहीं रह गया
गाँधी खुद
एक इतिहास

और इतिहास
शुंड भिशुंड हो गया

गली मोहल्ले
शहर जिले
प्रदेश से
बाहर कहीं

‘उलूक’
कौन
जानता है तुझे

एक
अपने का
कहा ही
एक सदी का
कमेंट हो गया

नमन

‘अविनाश जी वाचस्पति’ 

झाड़ पर
चढ़ाया गया
‘उलूक’

आज

देख लो आकर
निगरगण्ड हो गया ।

****************


निगरगण्ड = मनमौजी, आवारा, (आँचलिक शब्द) शुंड भिशुंड= राक्षस (राक्षसी माया से तात्पर्य है)

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

जरूरी नहीं है लिखा जाये हमेशा काँव काँव


तीन अक्षर
शब्द शिशिर

दिशाहीन की कोशिश 
लिखने की दिशायें
धवल उज्जवल

प्रयास लिखे में दिखाने की
कड़ाके की ठण्ड
सिकुड़ती सोच

शब्द वाक्यों पर बनाता हुआ एक बोझ
कम होता शब्दों का तापमान
दिखती कण कण में सोच

ओढ़े सुनहली ओस
वसुन्धरा अम्बर होते एकाकार
आदमी के मौसम होने की
जैसे हो उन्हें दरकार

लिये हुऐ सूर्य की तरह
अमृत बरसाने की चाहत
सभी पूर्वाग्रह छोड़ कर
लिखने लिखाने को कुछ दे कर राहत

प्रकृति के नियम से बंधे मौसम के गुनगुने भाव
बर्फीले शब्द के साथ देते शब्द ही
अहसास जलते हुऐ कुछ मीठे अलाव

‘उलूक’ 
कोई नहीं
होता है
कभी धारा के साथ कभी धारा के विपरीत
चलाता चल अपनी
बिना चप्पुओं की खचड़ा सी नाव ।

चित्र साभार: https://www.gograph.com

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

गुलाम के इशारे पर चलता है स्वतंत्रता पढ़ाने को चला आता है


स्वतंत्र 
एक शब्द है 

स्वतंत्रता 
एक
ख्वाब है 

गुलाम 
और 
गुलामी 



आम है 
और
खास है 

नकारते रहिये 

हो गये

तो 


सीढ़ी 
आपके पास है 

नहीं 
हो पाये 


अगर 

का
 मतलब 
साँप 
कहीं ना कहीं है 

और 
बहुत नजदीक है 
और 
आसपास है 

साँप 
और सीढ़ी 
के बीच 
एक रिश्ता है 

इसीलिये 
खेला भी जाता है 

हर गुलाम 

अपने नीचे 

बस गुलाम 
देखना
चाहता है 
गुलाम
सोचना 
चाहता है 

हर गुलाम 
एक बड़े 
गुलाम का 
खास होना 
चाहता है 

गुलाम 
गुलाम होकर
भी 
गुलाम हूँ 
सोचना
भी 
नहीं चाहता है 

गुलामी 
खून में होती है 

खून 
लाल होता है 

सभी का 
एक जैसा 

आदमी से लेकर 
जानवर का तक 

सारे गुलाम 
स्वतंत्रता जीते हैं 

ख्वाब पीते हैं 

इसके 
गुलाम 
उसको 
स्वतंत्रता 
पढ़ाते हैं 

उसके 
गुलाम 

स्वतंत्रता 
सिखाने वाले 
शिक्षकों की 
पाँत में 

सबसे 
आगे खड़े 
नजर आते हैं 

नियम 
स्वतंत्र होते है 

पालन 
करने वाले 
गुलाम होते हैं 

गुलामी 
कुछ ना कुछ 
दे जाती है 

स्वतंत्रता 
पागलों के 
काम आती है 

स्वतंत्रता 
सपने जगाती है 

सोना 
बहुत जरूरी है

गुलामों को 
नींद
जरूरत से 
ज्यादा आती है 

गुलाम बहुत 
आतुरता के साथ 

स्वतंत्रता 
लिखना चाहता है 

लिखना 
शुरु करता है 

मालिक 

सपने में 
आना शुरु 
हो जाता है 

‘राम’ ईश्वर है 

‘उलूक’

गुलाम 
उसके नाम पर 
तुझे धमका कर 
तेरा क्रिया करम 
श्राद्ध सब 

अभी 
और अभी 
यहीं
कर देना 
चाहता है 

देश 
स्वतंत्र हुआ था 
गुलामों से 

कुछ सुना था 

फिर क्यों 
हर तरफ अपने 
आसपास 

अपने ऊपर 
किसी एक 
गुलाम का 
साया नजर 
आता है 

घर में ही 
घर के
भेड़िये 

नोच रहे 
होते हैं 
अपनी भेड़ें 
अपने हिसाब से 

शेर 
का गुलाम 

शेर की 
एक तस्वीर 
का
झंडा 
ला ला कर 

क्यों
लहराता है ? 

चित्र साभार: https://apptopia.com/

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

काला फिर से सफेद और सफेद फिर से काला हो जाने की घड़ी का समय खोज रहा है गणना करने वाले हाँफ रहे हैं

कुछ चूहे
सुना जा
रहा है

नाच रहे हैं

कुछ
पता चल
रहा है

भाग रहे हैं

किसी
जलजले
का डर है
या
किसी साँप
की हलचल
कहीं
आसपास
रेंगने की
भाँप रहे हैं

सफेद चूहों
को देखा है
खोदते हुऐ
एक मकान
की जड़ों को
कल तक

आज काले
उधर की तरफ
झाँक रहे हैं

बहुत
हड़बड़ी
के साथ
एक दूसरे
के ऊपर
चढ़ कूद
उछल कर
शोर मचाते

अपने
पंजे और दाँतों
को माँज रहे हैं

ठेका
बदल रहा है
कुछ देर में ही

निविदाओं
के पुराने
हो चुके
कागजों से

पुराने
ठेकेदार
सर्दी भगाने
के लिये
आग जला
कर ताप रहे हैं

खबर
गरम है
गरम पड़े
हुऐ नरम हैं

आकाश
की तरह
मुँह किये हुऐ
कई सारे

दिन में
तारे गिनने की
कोशिश करते

जैसे
आँखों ही
आँखों में

एक दूसरे की
पीड़ा नाप रहे हैं

‘उलूक’
तू भी देख

मुँह
ऊपर कर
आकाश की
तरफ कहीं

सबसे
खुशहाल
वही सब हैं

जो नहीं
सोच रहे हैं चूहे

और
मुँह उठा कर

कहीं
ऊपर
की तरफ
ताक रहे हैं।

चित्र साभार: https://clipartxtras.com

रविवार, 9 दिसंबर 2018

पूरे साल का खाता बही फिर से याद आ रहा है देश तो सागर है ‘उलूक’ के कोटर एक नाली की बातें हैं रहने दीजिये काहे परेशान होना है मत झाँकिये

नियमावली
जरूर छापिये

 मोती जैसे
अक्षरों में
छपे हुऐ पन्ने

घर घर में
हर एक को
जा जा
कर बाँटिये

करा क्या है
किस ने आकर
किससे और
क्यों पूछना है

कुछ
अपने जैसों के
साथ मिल कर

 नियमों की
धज्जियाँ टाँकिये

मूँछों हों तो
ताव दीजिये

नहीं हों तो
खाँचे में मूँछ के

अँगुलिया
फेर घुमा
चिढ़ा चिढ़ा
कर मौज काटिये

बहुत ज्यादा
गधा गधा
मत बाँचिये

गधों
की अब
तरक्की
कर ही डालिये

घोड़े
पुकार कर
उनकी खुशी में

 उनके
साथ साथ
खुद भी नाँचिये

अपने
हिसाब के
आस पास के
किसी अस्तबल के

चक्रानुक्रमानुसार

तख़्त-ए-ताऊस छाँटिये

तीन साल तक
लगातार
घोड़े बना चुके
अपने अपने
गधों को
लम्बी दौड़ के
घोड़े बाँटिये

किसी से
चिढ़ हो
उसको
तीन टाँग टूटे
गधे की नकेल
थमा कर

घोड़ों की दौड़ में
शामिल होने का
आदेश थमा कर

 उसके गिरने की
खबर दौड़ से
पहले छापिये

लिखने लिखाने से
किसलिये भागना
मत भागिये
कुछ भी लिखिये
गिनतियों से
लिखे लिखाये को
जरूर नापिये

गिनना
बहुत जरूरी है
कितना लिख गये
गिनती नहीं आती
कोई बात नहीं
बगले मत झाँकिये

पैमाना
कोई होना
जरूरी है
मयखाने में
आने जाने
वालों के
जूते चप्पलों
की लम्बाई
ले कर ही सही
 मगर
 कुछ तो नापिये

रंग देखिये
रंग समझिये
रंग से झुड़े
करतबों के
ढंग समझिये

सरदार की
कठपुतलियाँ
बिना डोर के
पगलायी हुयी

अपने
आसपास
की समझिये

 सरदार
को ही
बस खाली
एक अखबार
की खबर
पढ़ कर
मत डाँठिये

समझिये
बड़े घपले
के पर्दे होते हैं
छोटे छोटे
भ्रष्टाचार के
सुर्खियों से भरे
समाचार
थोड़ा सा रुकिये
इतनी जल्दी मत हाँफिये

पूरे के पूरे सड़े
हुऐ कद्दू के
एक बीज के
सड़े होने की
खबर को लेकर
पुतला फूँकने
के लिये मत भागिये

‘उलूक’
की बड़बड़
पूरे साल की
कोई नयी बात नहीं है

दो हजार उन्नीस में
मिलने वाला है
यहाँ कोई ईनाम
किसी एक को

उधर की ओर ताकिये

ईवीएम नहीं होगी
इस के लिये यहाँ

 कुछ और जुगाड़
करना पड़ेगा

नेटवर्किंग
का जमाना है
नेटवर्किंग
के पर्फेक्ट
वर्किंग के लिये
अपने अपने वोट
कहाँ है जरा भाँपिये

अंत में सुझाव-ए-उलूक

पढ़े लिखे
बुद्धिजीवी से
उम्मीद मत रखिये
उसका दिमाग भी
एक बड़ा सा
पेट होता है

कुछ
बुद्धिजीवी
चने हो
आपके पास
तो बाँटिये ।

चित्र साभार: http://personligutvecklingcentrum.se

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

दिसम्बर ने दौड़ना शुरु कर दिया तेजी से बस जल्दी ही साल की बरसी मनायी जायेगी



फिर 
एक साल निकल लिया 

संकेत 
होनी के होने के 
नजर आना शुरु हुए 

अपनी ही सोच में 
खुद की सोच का ही 
कुछ गीला हिस्सा 
शायद फिर से 
आग पकड़ लिया 

धुआँ नहीं दिखा 
बस जलने की खुश्बू आती हुयी 
जैसा कुछ महसूस हुआ 

निकल लिया उसी ओर को 
सोचता हुआ देखने के लिये 
अगर हुआ है कुछ तो क्या हुआ 

लेकिन इस सब के बीच 
बस इतना सा संतोष हुआ 

कि खुश्बू सोच लिया 
अच्छा किया 
सकारात्मकता की रेखा को छूता रहा 
सोच को अपना पैर 
बाहर को नहीं रखने दिया 

इससे पहले बदबू की सोचती 
सोच 
टाँग पकड़ कर 
अन्दर का 
अन्दर को ही खींंच लिया 
समझाकर दिमाग को खुद के 

अपनी ही मुट्ठी बनाकर 
अपने ही हाथ की 
जोर से ठोक लिया 

हौले से हो रहे जोर के शोर से 
कुछ हिलने का 
जैसा अनुभव किया 

फिर झिझक कर याद किया 
जमाने पहले 
गुरुजी का पढ़ाया शिष्टाचार का पाठ 

और वही अपने आप 
बड़बड़ाते हुऐ 
खुद ही खुद के लिये बोल लिया

अभी सोच में आया ही था 
कि 
सभी तो लिख दिया 

और अभी अभी फिर से 
लिखने लिखाने को 
कोने से 
कलम दबा कर खिसक लिया 

एक पुरानी किताब को 
फिर बेमन से खोल लिया

***********

रहने दे 
मत खाया कर कसम ‘उलूक’ 
नहीं लिखने की 
लिख भी देगा तब भी 
साल इसी तरह गुजरते चले जायेंगे 

करने वालों की ताकत और सक्रियता में 
वृद्धि चक्रवृद्धि होती रही है 

लिखने लिखाने की कलमें घिसेंगी 
घिसती चली जायेंगी 

अखबार रोज का रोज 
सबेरे दरवाजे पर टंका मिलेगा 
खबरें छपवाने वालों की ही छपेंगी 

साल भर की समीक्षा की किताब के हर पन्ने पर 
वही चिपकी हुई नजर आयेंगी

हर साल इसी तरह 
दिसम्बर की विदाई की जायेगी ।। 

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

रोज ही पढ़ने आता है साहिब नापागल लिखा पागल ‘उलूक’ का समझ में नहीं आता है कहता फिरता है किसी से कुछ पूछ क्यों नहीं लेता होगा

कपड़े सोच के उतार देने के बाद 
दौड़ने वाले की सोच में 
केवल और केवल यही होता होगा

अब इसके बाद कौन क्या कर लेगा 
इससे ज्यादा सोच में उसके 
होना भी नहीं होता होगा

कपड़े सोच के उतरे होते हैं कौन देखता है 
ना सोच पाता है ऐसा भी जलवा 
पहने हुऐ कपड़ों का होता होगा

कोशिश जारी रखता है उतारने की 
किसी का भी कुछ भी 
नहीं सोचता है 
खुदा भी ऊपर से कुछ तो देखता होगा

लगा रह खींचने में कपड़े रूह के 
अपने अपनों के भी 
कोई शक नहीं करता होगा कि खींचता होगा

आदत पड़ गयी हो शराब पीने की जिसे 
दिये के तेल की बोतल को देख कर 
उसी पर रीझता होगा 

आईना हो जाता है किसी के घर के हमाम का 
किसी का लिखा लिखाया 
क्या लिख दिया 
शर्मा कर थोड़ा सा तो कभी सोचता होगा

कहने को कहता फिर रहा होता है इस सब के बाद
 इक पढ़ा लिखा 
ये आदमी है या जानवर पता नहीं 

फालतू में क्या ऊल जलूल 
क्यों हर समय
कुछ ना कुछ लिखता दीखता होगा 

पागलों की भीड़ में किसी 
एक पागल के इशारे पर 
कपड़े उतार देने का खेल जमाने से चल रहा होगा 

कपड़े समझ में आना उतारना समझ में आना 
खेल समझ मे आने का खेल समझाने से चल रहा होगा

किसी भी शरीफ को शराफत के अलावा 
किसलिये क्यों देखना सुनना 

अपनी अपनी आँखें सबकी 
अपना अपना सब को अपने हिसाब का दीखता होगा

नंगे ‘उलूक’ के देखने को लिखा देख कर 
कुछ भी कहो 

टाई सूट पहन कर निकलते समय 
आईने के सामने साहिब जरा सा तो चीखता होगा।


चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

रविवार, 2 दिसंबर 2018

गिरोहबाज गिरोहबाजी सब बहुत अच्छे हैं हाँ कहीं भी नहीं होना कुछ अलग बात है

गिरोह बनाना
अलग बात है
गिरोह बनाते बनाते
एक गिरोह हो जाना

अलग बात है

पिट्सबर्ग़
के कुत्तों का
कुछ दिनों तक
खबरों में रहना

अलग बात है

पैंसेल्विनिया
के सियारों का
सब कुछ हो जाना
समय बदलने के साथ

अलग बात है

गिरोह में
शामिल होकर भी
कुछ अलग नजर आना

अलग बात है

गिरोहबाज
के साथ रहकर भी
गिरोहबाज का
नजर नहीं आना

अलग बात है

अलग बात है

किसी भी गिरोह में
शामिल ना होकर
जिंदा रह लेना

गिरोहों का जलवा होना
जलवों से कुछ अलग रह लेना

अलग बात है

अलग अलग दिखना
अलग अलग गिरोहों को
कितनी अलग बात है

इस गिरोह से
उस गिरोह तक
बिना दिखे
कहीं भी
नहीं दिखायी देना

सबसे अलग बात है

मलाई की
एक मोटी परत
दूध के ऊपर से दिखना

अलग बात है

दूध का
नीचे नीचे से
यूँ ही कहीं और
को खिसक लेना

अलग बात है

गिरोहबाजों
के आसपास ही
भीड़ का हर समय
नजर आना

अलग बात है

इस गिरोह से
उस गिरोह
किसी के
आने जाने को
नजर अन्दाज
कर ले जाना

अलग बात है

‘उलूक’
किसी ने
नहीं रोका है
किसी को

किसी भी
गिरोह के साथ
आने जाने के लिये

तेरी
मजबूरी
तू जाने

गिरोहबाजों
के बीच
रहकर भी
गिरोहबाजी
लिख ले जाना

अलग बात है

www.fotosearch.com

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

पुर्नस्थापितं भव


समर्पित समाज के लिये समर्पित
करता रहता है समय बे समय
अपना सब कुछ अर्पित

छोटे से गाँव से शुरु किया सफर 
शहर का हो गया कब
रहा हमेशा इस सब से बेखबर

नाम बदलता चलता चला गया

स्कूल से कालेज कालेज से विद्यालय
विद्यालय से विश्वविद्यालय हो गया

अचानक सफर के बीच का एक मुसाफिर
आईडिया अपना एक दे गया काफिर

स्थापना दिवस स्थापित का मनाना शुरु हो गया
एक तारा दो तारा से पाँच सितारा की तरफ
उसे खिसकाया जाना शुरु हो गया

देश के विकास की तरफ दौड़ने की कहानी
उसी बीच कोई आ कर सुनाना शुरु हो गया

नाक की खातिर किसी की नाक को
कुछ खुश्बू सी महसूस हुई
ना जाने किस मोड़ पर

नाक के ए बी सी डी से
ए को उठा ले आने का
जोड़ तोड़ करवाना शुरु हो गया

ए आया जरा सा भी नहीं शर्माया

बेशरम का रोज का ही
जगह जगह छप कर आना शुरु हो गया

निमंत्रण समर्पित जनता को
कब किसने दिया ना जाने

गायों को अपनी सुबह सुबह
छोड़ने आना शुरु हो गया

कारें स्कूटर घर की
जगह जगह खड़ी होने लगी

गैराज मुफ्त का
सब के काम आना शुरु हो गया

कुत्ते बकरियाँ बन्दर
सब दिखायी देने लगे घूमते
शौक से बिना जंगल का
चिड़ियाघर नजर आना शुरु हो गया

खेल कूद के मैदान में खुशियाँ बटने लगी
समय समय पर 
शादी विवाह कथा भागवत का पंडाल
बीच बीच में कोई बंधवाना शुरु हो गया

तरक्की के रास्ते खुलते चले गये

हर तीन साल में ऊँचाइयों की ओर ले जाने के लिये
एक कुछ और ऊँचा आ कर
ऊँचाईयाँ समझाना शुरु हो गया

क्या कहे क्या छोड़ दे कुछ कहता ‘उलूक’ भी

भीड़ में शामिल हो कर भीड़ के गीत में 
भीड़ का सिर नजर आने से

पुनर्मूषको भव: कथा को याद करते हुऐ
सब कुछ कहने से कतराना शुरु हो गया

जो भी हुआ जैसा हुआ
निकल गया दिन स्थापना का

फिर से स्थापित हो कर एक मील का पत्थर
अगले साल के स्थापना दिवस की आस लेकर

फिर से उल्टे पाँव भागना शुभ होता है
समझाना शुरु हो गया ।

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

क से कुत्ता डी से डोग भौँकना दोनों का एक सा ‘उलूक’ रात की नींद में सुबह का अन्दाज लगाये कैसे

भौंकने
की
आवाजें

कुछ
एक तरह की

कुछ
अलग तरह की

अलग अलग
तरह की पूँछें

अलग अलग
तरह का
उनका
लहराना

कुछ पूँछे
झबरीली

कुछ
पतली पलती

कुछ
काट दी
गयी पूँछे

कुछ
कुत्तों का

कुछ
जानी पहचानी
गलियों में
नजर आना

कुत्ते
काटने वाले

कुत्ते
खाली
भौंकने वाले

कुत्ते
खाली कुत्ते

कुत्ते 

बेकार के कुत्ते

कुत्ते
के लिये
जान दे
देने वाले

कुछ 

निर्भीक कुत्ते

 कुत्ते
की खाली

कुछ 

बात करने
वाले कुत्ते

 कुछ
अजीब से कुत्ते

कुछ
सजीव से कुत्ते

कुछ
नींद में कुत्ते

कुछ
उनीँदे से कुत्ते

सारे
के सारे
बहुत सारे
एक साथ
एक भीड़
वफादार
से कुत्ते

कुछ
सड़क छाप से

कुछ
सरकार के कुत्ते 

कुछ 

दूध पीते
शरमसार से 
कुत्ते
कुछ कुत्ते
खून पीते

कुछ कुत्ते
कुछ
मूँछ चाटते

कुछ
असरदार कुत्ते

कुछ
शराब पीते
शराबियों के
एक प्रकार के कुत्ते

कुछ
नहीं खाते
कुछ भी

कुछ 

बाबाओं के लिये
जाँनिसार कुछ कुत्ते

पढ़े लिखे
के घर के
पढ़े पढ़ाये
उमरदराज
कुछ कुत्ते

अनपढ़ के
घर के
आसपास के
अनपढ़
सूखे सुखाये
गली के
कुछ कुत्ते

किसलिये
तुझे
और क्यों
याद आये
कुछ कुत्ते
आज और
 बस
आज ही
‘उलूक’

जब
कुत्तों के चिट्ठे
कुत्तों की
अभिव्यक्ति के

कुत्तों ने
एक भी
अभी
तक भी

कहीं भी
बनाये
ही नहीं
‘उलूक’

चित्र साभार: https://friendlystock.com

रविवार, 25 नवंबर 2018

किसने कह दिया ‘उलूक’ कि पागलों को प्रयोग करने के लिये मना किया जाता है


ये अलग बात है 
हर तरफ तमाशा 
नजर आता है 

लम्हा-ए-सुकूँ 
सुकूँ ख़याल में 
फिर भी आ जाता है 

जिसे आता है 
उलझाना सुकूँ को 
उलझा कर ले जाता है 

सुकूँ-मआब है सुकूँ 
उलझने के बाद भी 
आ ही जाता है 

शराब 
आमेजिश-ए-सुकूँ 
बनाने में माहिर है 
कई तरह की बनाता है 

पिलाने से पहले 
सोच का रंग 
मगर पूछना शुरु 
जरूर हो जाता है 

डूब के सुकूँ मे ही 
मौत की 
तमन्नाएं होती हैं 

सुकूँ तलाशना 
कौन चाहता है 

किसे पता है 
जब होश नहीं 
होता है
सुकूँ को 
खुद को ढूँढने 
चला जाता है 

सुकूँ
लिखता है हर कोई 
दीवाना यहाँ 
बहुत खुश नजर आता है 

अलग बात है 
कभी बेख़ुदी में 
तलाश-ए-सुकूँ 
को
निकल जाता है 

समझता कहाँ है 
खरीददार है 
और 
बाजार-ए-सुकूँ
है तो बस इधर है 

देखता भी नहीं है जरा भी 
हर कोई इधर ही है 
उधर को नहीं जाता है 

सुकून-ए-अहल-ए-खरावात-ए-इश्क 
किसी हस्पताल में नहीं जाता है 

‘उलूक’ भी लगा रहता है 
लिखने में 
आगरा या बरेली 
नहीं
चला जाता है । 



सुकूँ = शांति,
लम्हा-ए-सुकूँ= शांति के क्षण,
सुकूँ-मआब= शांति देने वाला,
आमेजिश-ए-सुकूँ= शांति के साथ मिला हुआ,
बाजार-ए-सुकूँ= शांति का बाजार,
सुकून-ए-अहल-ए-खरावात-ए-इश्क= प्यार में बर्बाद हुओं की शांति,



चित्र साभार: http://themindfuljourney.me/dove-clip-art/dove-clip-art-free-clipart-peace/

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

पता ही नहीं चलता है कि बिकवा कोई और रहा है कुछ अपना और गालियाँ मैं खा रहा हूँ

शेर
लिखते होंगे
शेर
सुनते होंगे
शेर
समझते भी होंगे
शेर हैं
कहने नहीं
जा रहा हूँ


एक शेर
जंगल का देख कर
लिख देने से शेर
नहीं बन जाते हैं

कुछ
लम्बी शहरी
छिपकलियाँ हैं

जो आज
लिखने जा रहा हूँ

भ्रम रहता है
कई सालों
तक रहता है

कि अपनी
दुकान का
एक विज्ञापन

खुद ही
बन कर
आ रहा हूँ

लोग
मुस्कुराहट
के साथ मिलते हैं

बताते भी नहीं है
कि खुद की नहीं
किसी और की
दुकान चला रहा हूँ

दुकानें
चल रही हैं
एक नहीं हैं
कई हैं

मिल कर
चलाते हैं लोग

मैं बस अपना
अनुभव बता रहा हूँ

किस के लिये बेचा
क्या बेच दिया
किसको बेच दिया
कितना बेच दिया

हिसाब नहीं
लगा पा रहा हूँ

जब से
समझ में आनी
शुरु हुई है दुकान

कोशिश
कर रहा हूँ
बाजार बहुत
कम जा रहा हूँ

जिसकी दुकान
चलाने के नाम
पर बदनाम था

उसकी बेरुखी
इधर
बढ़ गयी है बहुत

कुछ कुछ
समझ पा रहा हूँ

पुरानी
एक दुकान के
नये दुकानदारों
के चुने जाने का

एक नया
समाचार
पढ़ कर
अखबार में
अभी अभी
आ रहा हूँ

कोई कहीं था
कोई कहीं था

सुबह के
अखबार में
उनके साथ साथ
किसी हमाम में
होने की
खबर मिली है
वो सुना रहा हूँ

कितनी
देर में देता
है अक्ल खुदा भी

खुदा भगवान है
या भगवान खुदा है
सिक्का उछालने
के लिये जा रहा हूँ

 ‘उलूक’
देर से आयी
दुरुस्त आयी
आयी तो सही

मत कह देना
अभी से कि
कब्र में
लटके हुऐ
पावों की
बिवाइयों को
सहला रहा हूँ ।

चित्र साभार: https://www.gograph.com

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

बधाई हो गुफा के दरवाजे खोल लेने के लिये अलीबाबा को सिम सिम वाली सिम सम्भाल कर रखें जल्दी ही फिर से काम आयेगी

तैयार
हो जाइये
खबर आई है

अलीबाबा की
मेहनत रंग लायी है

गुफा
खुल गयी है

अशर्फियाँ

दिखने लगी हैं
मतलब मिल गयी हैं


चालीस
चोरों का
पता नहीं
चल पा रहा है

खबर के
चलने के
बाद से ही
उनका
सरदार भी
मुँह छुपा रहा है

जल्दी ही
तराजुओं की
दुकानें खुलना
शुरु हो जायेंगी

तली में
गोंद लगाने की
जरूरत नहीं पड़ेगी

अशर्फियाँ
खुद ही आ आ
कर चिपक जायेंगी

मरजीना के
खुद के नाचने
का जमाना
अब रहा नहीं

इशारे
भर से उसके

नाचने
वालोंं की
लम्बी लाईनें
अपने आप
लगना शुरु
हो जायेंगी

बस
जरूरत है
महसूस करने की

एक
छोटी सी
गुफा को
खोल ले जाने के
छोटे छोटे
खुल जा सिम सिम को

यही मंत्र है
यही तंत्र है
हर बार
यही वाली सिम

सिम सिम की
काम में आयेंगी

जरूरत है
समझने की
ऐसी ही
छोटी छोटी गुफाएं

किस तरह बस
कुछ ही बचे महीनों में
बड़ी एक गुफा के
दरवाजे तक
पूरे देश को ले जायेंगी

फिर शुरु होगा

अलीबाबा का खेल

फिर से
सिम सिम
कहते ही
अशर्फियाँ दिखना
शुरु हो जायेंगी

लोग
करना शुरु
हो जायेंगे साफ
अपने अपने तराजू

अशर्फियों
के सपने
पुराने सालों के

फिर से हरे
हो जायेंगे

ढोल नगाड़े
पठाखे के
शोर के बीच

‘उलूक’
सोचना
शुरु कर देगा
कुछ नयी
बकवासों
के शीर्षक

अगले
पाँच सालों में
शायद उसकी
बकवासों की
घड़ी की सुई

क्या पता
उसके लिये
पच्चीस छब्बीस
सताईस बजाना
शुरु हो जायेगी।

चित्र साभार: http://www.ssdsnassau.org

रविवार, 18 नवंबर 2018

गधा धोबी का धोबी के लिये गधा दोनों एक दूसरे का पर्याय हो ही जाता है

हर समय
कुछ ना कुछ
किसी पर
लिखा ही
जाता है

क्यों
लिखा जाये
किस के लिये
लिखा जाये
अलग बात है

पर
प्रश्न तो एक
सामने से
आकर खड़ा
हो ही जाता है

रोकते
रोकते हुऐ
फिर भी

ज्वालामुखी
फटने की
कगार पर
होने के
आसपास

थोड़ा सा लावा
आदममुख
से बाहर
निकल कर
आ जाता है

माफ करेंगे
झेलने वाले

बकवास
करने के लिये
कोई अगर
यहाँ चला
भी आता है

‘उलूक’ की
बकवास में
एक दो शब्दों
का बहुतायत में
पाया जाना

अभी तक तो
नाजायज नहीं
माना जाता है

झेलना
परिस्थिति को
हर किसी के
आसपास

और
हिसाब की
कहना भी
जरूरी
हो जाता है

तो शुरु करें
आज का
पकाया हुआ

देखें कहाँ तक
अपनी गंध
फैला पाता है

हर गधा

गौर करियेगा
गधा

गधे की
बकवासों में
कितनी कितनी बार
प्रयोग किया जाता है

हाँ तो
हर गधा
धोबी होना
चाहता है

धोबी होकर
अपने
मातहतों को
गधा बना कर
धोना चाहता है

सबसे
अच्छा गधा
होने के लिये
वाहन चालक होना
जरूरी माना जाता है

कम्प्यूटर
जानने वाला गधा
दूसरे नम्बर पर
रखा जाता है

गधा बनाने
की प्रक्रिया में
जाति धर्म
देश प्रदेश पर
ध्यान नहीं
दिया जाता है

सोशियल
मीडिया में
भेजा गया गधा

कभी अपना
खाली दिमाग
नहीं लगाता है

खुद ही
अपने लिखे
लिखाये से

किसका
गधा हूँ
बता जाता है

किसी के
सच का आईना
सामने लाने पर
गधों का एक समूह
पगला जाता है

तर्क देना
जरूरी नहीं
माना जाता है

घेर कर
ऐसे ही सच को

गधों
के द्वारा
लपेटने या पटकने
का प्रयास
किया जाता है

हर गधा
अपने सामने वाले के
गधेपन का फायदा
उठाना चाहता है

‘उलूक’ खुद
एक गधा
समझता है
खुद को

अपने
आसपास
के धोबियों से

अपनी पीठ
बचाने का हिसाब
खुद ही लगाता है

कभी
फंस जाता है
कभी
थोड़ा कुछ
बचा भी ले जाता है

माफ करेंगे
विद्वान लोग

गधा धोबी
पुराण से
देश चल रहा
हो जहाँ

वहाँ
जो जितनी जोर से
रेंक लेता है

उतना
सम्मानित
बता कर
उपहारों से
लाद दिया जाता है

बहुत ज्यादा
एक ही बार में
लिखना ठीक
भी नहीं है

छोटी छोटी
कहानियाँ
गधों की
मिला कर भी
गधा पुराण
बनाया जाता है ।

चित्र साभार: https://moralstories29897.blogspot.com

शनिवार, 17 नवंबर 2018

निकाय चुनाव चन्डूखाना और गणित शहर की चैन की साँसों के अंतिम पड़ाव की शाम आँसू बहा रही है

कुछ
के लिये
नशा है

कुछ
के लिये
मगजमारी है

निकाय चुनाव
की पूर्व संध्या पर

हार जीत के
गणित के सवाल

हल करना
अभी अभी तक
सुना गया है

जारी है

भाई
किस को
दे रहें हैं
मत अपना

बहनें
किस धारा में
बहने जा रही हैं

पता
करने वाले
जुगाड़ी 
लगे हुऐ है
जुगाड़
लेकर अपने


किसी के
सवाल
सरल से हैं
किसी के
बहुत भारी हैं

कोई
बुजुर्गों को
बहला रहा है

उम्र के लिहाज

के पलड़े को
शरम आ रही है

कोई
जवानों के
सपनों को
ठोक रहा है

सपने

दिखा दिखा कर

दिन भी
उनके लिये
रात हो जा रही है

निचोड़
सब का
निकाल कर
देखने पर

एक
ही बात
समझ में
आ रही है

एक
दल छोड़ने
को तैयार नहीं है

देख रहा है
गधे की लगी
सामने से
ही सवारी है


एक

गधे पर ही
बाजी लगाने
का मन
बना चुका है

दल की

ऐसी तेसी
करने की
उसकी
तैयारी है


गधे
खुश हैं बहुत

इधर से नहीं

तो उधर से

उन्हीं के किसी
रिश्तेदार को
सेहरा बंधने
की तैयारी है

‘उलूक’ ने
हर हाल में
नोचने हैं खम्बे

खबर है
चन्डूखाने की

कि
शहर
की उसके

किस्मत
फूटने की घड़ी

जल्दी ही
भिजवाने की

सरकार
कहीं दूर
बियाँबान में

मुनाँदी
करवा रही है ।

चित्र साभार:
https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/kanpur/niveditas-chair-in-danger

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

कुछ नहीं हो सकता है एक पक चुकी सोच का किसी कच्ची मिट्टी को लपेटिये जनाब

फूल होकर
डाल से उतरा

पक पका गया
एक फल
हो चुकी है आज

कैसे 

फिर से वही
बीज हो जाये 



जिस से
पैदा हुयी थी
कभी जनाब

कैसे बदलें
अब इस
पुरानी सोच को

सोच भी
नहीं पा रहे हैं
अपने आप

आप यूँ ही
कह देते
हैं हम से

अपनी
सोच को 
अब बदल
लीजिये जनाब

मित्र
पढ़ते हैं
कुछ लिखा
लिखाया हमारा

तुरन्त राय
देते हैं
जरूर एक दाग

बहुत साल
गधे रह लिये हैं

अब
घोड़े ही कुछ
सोच में
देख लीजिये जनाब

बेचैनी
शुरु होती है
क्या करें
जब देख लेते हैं
कुछ धुँआ
कहीं पर बिना आग

आग की बात कर
धुँआ दिखा कर ही
रोटियाँ सेक रहे हैं
सबसे बड़े साहब

अब आज ही
दिखे थे कुछ
दलाल घूमते हुऐ
अपने घर मोहल्ले
शहर के आस पास

कोई बिकेगा
कोई खरीदेगा
जल्दी ही कुछ

बड़ी कुर्सी पर
किसी के कहीं
जाकर बैठने
का जैसा
हो रहा है आभास

उम्र हो गयी
‘उलूक’ की
सीखते सीखते
सब गलत सलत सारा

ये होगा आपका हिसाब

कुछ नहीं
हो सकता है
माटी के पक चुके
इस घड़े का

जिसपर
अपनी सोच की
कलाकारी नक्काशी
उकेर देने वाले
अब नहीं भी कहीं

बस
उनके मीठे
अहसास बचे हैं

उसके पास
उसकी रूह के
बहुत पासपास

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

थोड़े से शब्दों से पहचान हो जाना, बहुत बुरा होता है ‘उलूक’, कवि की पहचान हो कर बदनाम हो जाना

हर गधे के पास एक कहानी होती है 'उलूक'

कल फिर
कविता से
मुलाकात
हो पड़ी

बीच
रास्ते में
पता नहीं
रास्ता रोककर

ना जाने
क्यों
हो रही थी खड़ी

हमेशा ही
कविता से
बचना चाहता हूँ

फिर भी
पता नहीं

कहाँ
जा कर

किस
खराब
घड़ी में

उसी के
आगे पीछे
अगल बगल
कहीं

अपने को
उलझन में
खड़ा पाता हूँ

समझाते
समझाते
थक जाता हूँ
कवि नहीं हूँ

बस
थोड़ा बहुत
लिखना पढ़ना
कर ले जाता हूँ

सीधे सीधे
भड़ास निकालना
ठीक नहीं होता है

चोर के मुँह
चोर चोर कहकर
नहीं लिपट पाता हूँ

डरना भी
बहुत जरूरी है
सरदारों से भी
और उनके
गिरोहों से भी

नये
जमाने के

इज्जतदारों से

किसी तरह

अलग रहकर

अपनी
इज्जत

लुटने से
बचाता हूँ


बख्श
क्यों नहीं
देते होंगे

कवि
और
उनकी
कविताएं

कुछ एक
शब्दों के
अनाड़ी
खिलाड़ियों को

टूट जाते हैं
जिनसे भूलवश

कुल्हड़
भावनाओं
के यूँ ही
बेखुदी
में कभी
करते हुऐ
बेफजूल
इशारों को

पचने में
सरल सी
बातों से होती
बदहजमी को
जरा सा भी
समझ नहीं
पाता हूँ

कविताओं
की भीड़ से

दूर से ही

बस
उनसे नजरें
मिलाना
चाहता हूँ

कविता
अच्छी लगती है

पढ़ भी
ली जाती है

कभी कभी
थोड़ा बहुत
समझ में भी
आ जाती है

मजबूरियाँ
नासमझी की

बड़ी बड़ी
उलझी हुई 
लटें भी
सुलझा
कर कभी

आश्चर्यचकित

भी कर जाती हैं

पता नहीं
‘उलूक’
की
आड़ी तिरछी
लकीरें
बेशरम सी

क्यों
जान बूझ कर
कविताओं
की भीड़ में
जा जाकर
फिर फिर
खड़ी
हो जाती हैं

बहुत
असहज
महसूस
होने लगता है

ऐसे ही में
जब
एक कविता

सड़क
के बीच
खड़ी होकर
कुछ
रहस्यमयी
मुस्कुराहट
के साथ

कवि और
कविताओं
के बहाने

तबीयत
के बारे में
पूछना शुरु
हो जाती है । 


चित्र साभार:
http://www.poetrydonkey.com/

शनिवार, 10 नवंबर 2018

लिखा हुआ रंगीन भी होता है रंगहीन भी होता है बस देखने वाली आँखों को पता होता है

कुछ
रंगीन
लिखना

ज्यादा
ठीक
होता है
शायद

रंगहीन
कुछ
लिखने से

रंग जो
होते ही
नहीं हैं
कहीं भी

वो रंग

जो
बन भी
नहीं पाते हैं

कुछ
रंगों को
आपस में
मिला देने से

किसलिये लिखने ?

आभास
होना
जरूरी है
आभासी
भी हो तब भी

तितलियाँ
मधुमक्खियाँ
भटक जाती हैं
या
ऐसा प्रतीत होता है

कागज के
फूल पत्तियों पर
उतर आती हैं

हो सकता है
चाह कर
जान बूझ कर
करती हों ऐसा

वर्णान्धता
ओढ़ लेना
कहना

या
प्रयोग करना
कुछ
अजीब सा
लगता है

लेकिन
आँखों को

अपने
मन से
अपने
हिसाब से

देख लेना
सिखा दिया
गया होता है

समय
को पता
नहीं होता है

अपने
आस पास
के फूल भी
दिखते हैं

अपने
आस पास
के फूलों पर
मंडराते
भंवरे भी
साफ साफ
नजर आते हैं

हर आँख
फूल देखे
हर आँख
भँवरे पर
उतर जाये
जरूरी
नहीं होता है

रंगीन
समझने
वालों के लिये
हर रंग का
अन्दाज
अलग होता है

‘उलूक’
रात के काले
और
सुबह के
सफेद रंग
के बीच के

काले सफेद
को ही लिख
लेता कभी

रंगहीन
लिखते
चले जाने से

रंगों को
मुँह फेर ही
लेना होता है

वर्णान्ध होना

रोग भी होता है

रंगों से
बेरुखी हो
तो हो लेना भी
बुरा नहीं होता है ।


चित्र साभार: https://www.tolerance.org/