चिट्ठाकार दिवस की शुभकामनाएं ।
आधा
पूरा
पूरा
हो चुके
साल
के
अंतिम दिन
यानि
ठीक
ठीक
बीच में
ना इधर
ना उधर
सन्तुलन
बनाते हुऐ
कोशिश
जारी है
बात
को
को
खींच तान
कर
लम्बा
लम्बा
कर ले
जाने
की
की
हमेशा
की
तरह
तरह
आदतन
मानकर
अच्छी
और
और
संतुलित सोच
के
लोगों को
लोगों को
छेड़ने
के लिये
बहुत जरूरी है
थोड़ी सी
हिम्मत कर
फैला देना
उस
सोच को
सोच को
जिसपर
निकल
कर
आ जायें
उन बातों
के
पर
पर
जिनका
असलियत
से
कभी
कभी
भी कोई
दूर दूर
तक
का
का
नाता रिश्ता
नहीं
हो
बस
सोच
सोच
उड़ती हुई
दिखे
और
लोग दिखें
दूर
आसमान
में कहीं
अपनी
नजरें
गढ़ाये हुऐ
अच्छी
उड़ती हुई
इसी
चीज पर
बंद
मुखौटों
मुखौटों
के
पीछे से
पीछे से
गरदन तक
भरी
सही
सही
सोच को
सामने लाने
के
लिये ही
लिये ही
बहुत
जरूरी है
गलत
सोच के
मुद्दे
सामने
सामने
ले कर
आना
आना
डुगडुगी
बजाना
बेशर्मी के साथ
शरम
का
का
लिहाज
करने वाले
कभी कभी
बमुश्किल
निकल कर
आते हैं
खुले में
‘उलूक’
खुले में
‘उलूक’
सौ सुनारी
गलत बातों
पर
पर
अपनी अच्छी
सोच
की
की
लुहारी
चोट
मारने
के
लिये।
के
लिये।