उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 8 मई 2015

एक सीधे साधे को किनारे से ही कहीं को निकल लेना होता है

धुरी से खिसकना
एक घूमते
हुऐ लट्टू का
नजर आता है
बहुत साफ
उसके लड़खड़ाना
शुरु करते ही
घूमते घूमते
एक पन्ने पर
लिखी एक इबारत
लट्टू नहीं होती है
ना ही बता सकती है
खिसकना किसी का
उसका अपनी धुरी से
दिशा देने के लिये
किसी को दिशा हीन
होना बहुत
जरूरी होता है
बिना खोये खुद को
कैसे ढूँढ लेना है
बहुत अच्छी तरह से
तभी पता होता है
शब्द अपने आप में
भटके हुऐ नहीं होते हैं
भटकते भटकते ही
इस बात को
समझना होता है
भटक जाता है
मुसाफिर सीधे
रास्ते में
एक दिशा में ही
चलते रहने वाला
सबसे अच्छा
भटकने के लिये
खुद को भटकाने
वालों के भटकाने
के लिये छोड़
देना होता है
लिखा हुआ किसी
का कहीं कोई
लट्टू नहीं होता है
घूमता हुआ भी
लगता है तो भी
उसकी धुरी को
बिल्कुल भी नहीं
देखना होता है
सीधे सीधे एक
सीधी बात को
सीधे रास्ते से
किसी को समझाने
के दिन लद
गये है ‘उलूक’
भटकाने वाली
गहरी तेज बहाव
की बातों की लहरों
को दिखाने वाले
को ही आज के
जमाने को दिशायें
दिखाने के लिये
कहना होता है ।

चित्र साभार: forbarewalls.com

गुरुवार, 7 मई 2015

रोज होता है होता चला आ रहा है बस मतलब रोज का रोज बदलता चला जाता है

अर्जुन
और कृष्ण
के बीच का
वार्तालाप
अभी भी
होता है

उसी तरह
जैसा हुआ
करता था

तब जब
अर्जुन
और
कृष्ण थे
युद्ध के
मैदान
के बीच में

जो नहीं
होता है
वो ये है कि

व्यास जी ने
लिखने
लिखाने से
तौबा कर ली है

वैसे भी
उन्हे अब
कोई ना कुछ
बताता है
ना ही उन्हे
कुछ पता
चल पाता है

अर्जुन
और कृष्ण
के बीच
बहुत कुछ था
और
अभी भी है

अर्जुन के
पास अब
गाँडीव
नहीं होता है

ना ही
कृष्ण जी
को शंखनाद
करने की
जरूरत होती है

दिन भर
अर्जुन अपने
कामों में
व्यस्त रहता है

कृष्ण जी
को भी
फुरसत
नहीं मिलती है

दिन डूबने
के बाद
युद्ध शुरु
होता है

अर्जुन
अपने घर पर
कृष्ण
अपने घर पर
गीता के
पन्ने गिनता है

दोनो
दूरभाष पर ही
अपनी अपनी
गिनतियों
को मिला लेते हैंं

सुबह सवेरे
दूसरे दिन
संजय को
खबर भी
पहुँचा देते है

संजय भी
शुरु हो जाता है

अंधे
धृतराष्ट्रों को
हाल सुनाता है

सजा होना
फिर
बेल हो जाना
संवेदनशील
सूचकाँक
का लुढ़ककर
नीचे घुरक जाना

शौचालयों
के अच्छे
दिनों का
आ जाना

जैसी
एक नहीं कई
नई नई
बात बताता है

अर्जुन
अपने काम
पर लग जाता है

कृष्ण
अपने आफिस
में चला जाता है

‘उलूक’
अर्जुन और
कृष्ण के
बीच हुऐ
वार्तालाप
की खुश्बू
पाने की
आशा और
निराशा में
गोते लगाता
रह जाता है ।

चित्र साभार: vector-images.com

बुधवार, 6 मई 2015

क्यों कभी कोई कहीं आग से ही आग को गरम कर रहा होता है

आग होती है
थोड़ी सी कहीं
कहीं थोड़ी सी
बस राख होती है
कहीं धीमा सा
सुलगता हुआ
नरम एक
कोयला होता है
कहीं थोड़ा सा धुआँ
और बस कुछ
धुआँ होता है
कहीं जलता है
खुद का ही
कुछ खुद ही
के अंदर कहीं
जलने वाले को
पता होता है
कहीं कुछ कुछ
जल रहा होता है
कहीं दिखती है लपट
कहीं दिखता नहीं है
कुछ भी कहीं पर
कहीं कुछ बातों में
निकल बूँद बूँद
टपक रहा होता है
‘उलूक’ अपनी आग
लेकर साथ में अपने
इसकी आग से
उसकी आग में
आग लगने की
चिंता कर रहा होता है ।

चित्र साभार: www.clipartof.com

मंगलवार, 5 मई 2015

क्यों होता है कौन जानता है लेकिन होता है

भावुक होना
गुण नहीं है प्यारे
एक अवगुण है
समझा कर
अरे कहीं लिखा
हुआ नहीं है तो क्या
किसने कह दिया
हर बात को लिख देना
भी जरूरी होता है
ये भी जरूरी नहीं है
लिखा गया ही
सच ही होता है
भाई जमीन के
नींचे ही कुआँ होता है
अब कुआँ तो
सब ही खोदते हैं
कैसे खोदा गया
क्यों खोदा गया
ये सब पूछना
जरूरी नहीं होता है
सब को दिखता है
अपने अपने
हिसाब का पानी
सब को पता होता है
उसका पानी
कितना पानी
और कहाँ होता है
भावुकता कहाँ
काम आती है
हर किसी को
पता होता है
हर कोई जानता है
भाव भावुकता का
अब लिखे हुऐ की
बात की बात सुन
कहीं कुछ लिख देने से
कुछ नहीं होता है
सरकारी आदेशों को
पढ़ने समझने का
अलग अलग
अंदाज होता है
सरकारी आदेश
लिखा ही इस तरह
से जाता है जैसे
किसी पानी भरने के
बर्तन में नीचे से
एक बहुत बड़ा
छेद होता है
इस देश में
इन छेदो को
बनाने और काम में
लाने वालों की
कमी नहीं होती है
हर छेद माफिया के
खून का रंग भी
सफेद होता है
सारे सफेद रंगी खून
वालों की ना जात होती है
ना ही कोई मजहब होता है
ना ही कोई देश होता है
ऐसे सारे लोगों को
भावुक हो जाने वाली
किसी भी चीज से
परहेज होता है
‘उलूक’ कभी तो समझ
लिया कर अपने आस पास
के माहौल को देखकर
तुझे देखते ही सबके
चेहरे पर छपा क्यों
हमेशा एक
औरंगजेब होता है ।

चित्र साभार: printablecolouringpages.co.uk

सोमवार, 4 मई 2015

बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं

बावरे
की कलम
बेजान
जरूर होती है

पर
लिखने पर
आती है तो
बावरे की
तरह ही
बावरी हो
जाती है

बावरों
की दुनियाँ के
बावरेपन को
बावरे ही
समझ पाते हैं

जो बावरे
नहीं होते हैं
उनको
कलम से
कुछ लेना देना
नहीं होता है

जो भी
लिखवाते हैं
दिमाग से
लिखवाते हैं

दिमाग
वाले ही उसे
पढ़ना भी
चाहते हैं

बावरों
का लिखना
और दिमाग
का चलना

दोनों
एक समय में
एक साथ
एक जगह
पर नहीं
पाये जाते हैं

बावरा होकर
बावरी कलम से
जब लिखना शुरु
करता है
एक बावरा

कलम
के पर भी
बावरे हो कर
निकल जाते हैं

उड़ना
शुरु होता है
लिखना भी
बावरा सा

क्या लिखा है
क्यों लिखा है
किस पर
लिखा है
पढ़ने वाले
बावरे
बिना पढ़े भी
मजमून को
भाँप जाते हैं

‘उलूक’
घिसा
करता है
कलम को
रोज पत्थर पर

पैना
कुछ लिख
ले जाने
के आसार
फिर भी कहीं
नजर नहीं आते हैं ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

शनिवार, 2 मई 2015

सोच बदलेगी वहाँ से यहाँ आकर होती ही हैं ऐसी भी बहुत सारी गलतफहमियाँ

अब क्या
करे कोई
जिसकी कुछ
इस तरह की
ही होती हो
रोज की ही
आराधना
पूजा अर्चना
दिया बाती
फूल बताशे
छोड़ कर
करता हो
जो बस
मन ही मन में
कुछ कुछ
बुद्बुदा कर
कोशिश बनाने
की एक अनकही
कहानी और
करता हो उसी
अनहोनी
अकल्पनीय
कल्पना की
साधना
बिना किसी
हनुमान की
हनुमान चालीसा
के साथ होती हो
कुछ चैन कुछ
बैचेनी की कामना
छपने छपाने की
बात पर कर देता
हो मोहल्ले का
अखबार तक मना
कागज किताबें
डायरियां बिक
गई हों कबाड़ में
कबाड़ी को भी
रहता हो कुछ
ना कुछ कबाड़
मिलने की
आशा हर महीने
देखते ही लिखने
लिखाने वालों को
देता हो दुआ
जब भी होता
हो सामना
'उलूक' दिन में
उड़े आँख बंद कर
और रात में
कुछ खोलकर
नया कुछ ऐसा
या वैसा नहीं है
कहीं भी होना
एक ही बात है
मोहल्ले में हो
शहर में हो शोर
या फिर कुछ
चुपचाप लिख
लेना हो कुछ
कुछ यहाँ
कुछ वहाँ
किस लिये
होना है
अनमना ।


चित्र साभार: www.disneyclips.com

     

शुक्रवार, 1 मई 2015

मजबूत मजबूर मशहूर में से कौन सा और किस का दिवस ?

आज
पहली बार
सुना हो ऐसा
भी नहीं है

हर वर्ष
इसी दिन
सुनाई दिया है

मजबूती से
सुनाई दिया है

एक मजबूत
दिवस है आज
मजदूर दिवस है
मेहनत कशों
का दिवस है

उर्जा होती ही
है दिवस में

समझ में
मजदूर लेकिन
आज तक
नहीं आ पाया है

मजबूरियाँ
मगर
नजर आई हैं
समझ में भी आई हैं

कुछ
करने के लिये
सच में
चाहिये होता है
एक बहुत बड़ा
विशाल कलेजा

वो कभी ना
हो पाया है
ना ही लगता है
कभी हो पायेगा
जो कर पाये
अपने आसपास
के झूठों से
सच में प्रतिकार

उठा सके
ज्यादा नहीं
बस एक ही आवाज

जोर शोर
से नहीं
कुछ हल्की
सी ही सही

ना जा पाये
दूर तलक
ना लौटे
टकरा कर
कहीं दीवार से

कोई बात नहीं
सुनकर मजदूर
मजबूर जैसा
ना महसूस हो
मजदूर ही हो
सुनाई देने में भी
मजबूत हो
मशहूर ना हो पाये
जरूरी भी नहीं है ।

चित्र साभार: www.thewandererscarclub.com

गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

रास्ते का खोना या खोना किसी का रास्ते में

किसी
जमाने में
रोज आते थे
और
बहुत आते थे

अब नहीं आते
और जरा सा
भी नहीं आते

रास्ते
इस शहर के
कुछ बोलते नहीं

जो
बोलते हैं कुछ
वो
कुछ बताते ही नहीं

उस जमाने में
किस लिये आये
किसी ने
पूछा ही नहीं

इस जमाने में
कैसे पूछे कोई
वो अब
मिलता ही नहीं

रास्ते वही
भीड़ वही
शोर वही

आने जाने
वालों में
कोई नया
दिख रहा हो
ऐसा जैसा
भी नहीं

सब
आ जा रहे हैं
उसी तरह से
उन्हीं रास्तों पर

बस
एक उसके
रास्ते का
किसी को
कुछ पता ही नहीं

क्या खोया
वो या
उसका रास्ता
किससे पूछे
कहाँ जा कर कोई

भरोसा
उठ गया
‘उलूक’
जमाने का

उससे भी
और
उसके
रास्तों से भी

पहली बार
सुना जब से
रास्ते को ही
साथ लेकर अपने
कहीं खो गया कोई ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

इसका और उसका रहने दे ना देश सुना है जलजले से दस फिट खिसका है किसका क्या जाता है


नाम से लिखने पर बबाला हो जाता है 
इस और उस से काम चलाया जाये तो क्या जाता है 

अंधे देख रहे हैं अपने अपनो के कामों को 
कुछ कहना हो तो बहुत ही सोचना पड़ जाता है 

वैसे भी चम्मचें फैली हुई हैं इंटरनेट की दुनियाँ में 
गरीब और उसकी सोच पर बात करने वाला 
सबसे बड़ा पागल एक हो जाता है 

टी वी पर बहस देखिये 
इसका भी होता है उसका भी होता है 
देखने वाले पागलों को क्या कहा जाता है 

बूंद बूंद से भरता है घड़ा
यही बताया यही समझाया भी जाता है 
बूंद पाप की होती है बहुत छोटी सी 
उसको अंदेखा करना अभिमन्यू की तरह 
पेट के अंदर ही सिखाया जाता है 

नाम नहीं ले रहा हूँ उसका घिन आती है 
ओले पकड़ने के लिये खेतों में क्यों नहीं जाता है 
उसकी बात कही है मैंने
तेरी समझ में आ गया होगा मेरी समझ में भी आता है 

कुछ कहने की हिम्मत नहीं है तुझ में 
तेरे को क्या मतलब है

चमचे
तुझे तो उसके लिये देश को रौंदना 
अच्छी तरह आता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

कैसे लिखते हो गीत नहीं बताओगे तो रोज इसी तरह से पकाया जायेगा


प्रश्न: 
किस तरह लिखा जाये कभी बस ज्यादा नहीं एक ही सही 
गीत लय सुर ताल में तेरे गीतों की तरह
शहनाईयाँ भी खाँसना शुरु हो जाती हों जिसे देख कर 
बस यूँ ही ऐसे ही बिना बात के गुस्से से 
रुठे हुऐ मीतों की तरह ?

उत्तर: 
किसने कहा जमाने को देख अपने आस पास के 
फिर मुँह का जायका बिगाड़
समझ के 
नीम के टुकड़े खा लिये हों जैसे
पड़ोसी से ही अपने
वो भी उधार ले नोट पचास 
पचास के 

सौंदर्य देखना सीख सौंदर्य समझना सीख 
सौंदर्य के आस पास रह कर चिपकना सीख 
आँख कान मुँह अपने बंद कर लोगों के बीच में रहना सीख 

पहले इसे सीख तो सही फिर कहना कैसी कही 
खुद बा खुद ही तू एक गीत हो जायेगा 
जहाँ जायेगा जिधर निकलेगा 
सुर ताल और लय में अपने आप को बंधा हुआ पायेगा 

लिखने लिखाने की सोचना ही छोड़ देगा 
बिना लिखे पेड़ जमीन और आकाश में लिख दिया जायेगा 
जितना मना करेगा उतना छाप दिया जायेगा 
हजार के नोट में गाँधी जी की छुट्टी कर तुझे ही चेप दिया जायेगा 

इस सब में 
लपेटने की अपनी आदत से भी बाज आयेगा 
गीत लिखेगा ही नहीं फिल्मों में भी गवाया जायेगा 

शाख पर बैठे गुलिस्ताँ उजाड़ने के लिये बदनाम ‘उलूक’
गीतकार हो जायेगा ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

बचपन का खिलौना भी कभी बड़ा और जवान होता है एक खिलाड़ी जानता है इस बात को उसे पता होता है


जब तक पहचान नहीं पाता है खिलौनों को
खेल लेता है किसी के भी खिलौने से
किसी के भी साथ कहीं भी किसी भी समय

समय के साथ ही आने शुरु होते हैं समझ में खिलौने और खेल भी
खेलना खेल को खिलौने के साथ होना शुरु होता है
तब आनंददायक और भी

कौन चाहता है खेलना वही खेल उसी खिलौने से 
पर किसी और के

ना खेल ही चाहता है बदलना
ना खिलौना ही ना ही नियम खेल के
इमानदारी के साथ ही

पर खेल होना होता है उसके ही खिलौने से 
खेलना होता है खेल को उसके साथ ही
तब खेल खेलने में उसे कोई एतराज नहीं होता है

खेल होता चला जाता है
उस समय तक जब तक खेल में
खिलौना होता है और उसी का होता है ।

चित्र साभार: johancaneel.blogspot.com

रविवार, 26 अप्रैल 2015

जलजलों से पनपते कारोबार

 
मिट्टी और पत्थर के व्यापार का
फल फूल रहा है कारोबार

रोटी कपड़े और मकान की ही बात
करना बस अब हो गया है बेकार

अपनी ही कब्र खुदवा रहा है
किसी आदमी से ही आदमी

जमा कर मिट्टी और पत्थर
अपने ही आसपास
बना कर कच्ची और ऊँची एक मीनार

आदमी सच में हो गया है
बहुत ज्यादा ही होशियार

हे तिनेत्र धारी शिव
तेरे मन में क्या है तू ही जानता है
खेल का मैदान जैसा ही है तेरे लिये ये संसार

पहले केदारनाथ अब पशुपतिनाथ
तूने किया या नहीं किसे पता है
और कौन जाने कौन समझे प्रकृति की मार

मंद बुद्धि करे कोशिश समझने की कुछ

होता है अनिष्ट किस का और क्यों
कब और कहाँ किस प्रकार

दिखती है ‘उलूक’ को अपने चारों तरफ
बहुत से सफेदपोशों की
जायज दिखा कर जी ओ पढ़ा कर
की जा रही लूटमार

मरते नहीं कोई कहीं इस तरह
मर रहे हैं जलजले में तेरे इंसान
एक नहीं बहुत से ईमानदार

शुरु हो चुका है खेल आपदा प्रबंधन का
सहायता के कोष के खुल चुके हैं
जगह जगह द्वार

हे शिव हे त्रिनेत्र धारी
तू ही समझ सकता है
तेरे अपने खेलों के नियम
विकास और विनाश की परिभाषाऐं
मिट्टी और पत्थर के लुटेरों पर बरसता तेरा प्यार
उनका ऊँचाइयों को छूता कारोबार
जलजले से पनपते लोग फलते फूलते हर बार ।

चित्र साभार: www.clipartbest.co

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

जो खटकता है वही ला कर लिख पटकता है



दिमागी तरंग 
दिखाती है रंग बिना पिये भंग 

जब भी कहीं
कुछ खटकता है 
झटका जोर का मगर
धीरे से 
कहीं किसी को लगता है 

लिखा जाता है
कुछ अपने हिसाब से 

अपना
गणित पढ़ने वाला
अपने हिसाब से 
उस सवाल को हल करने लगता है 

बहुत से शब्दों के
पेटेंट हो चुके हैं 
कौन
किस पर जा कर चिपकता है 
पता कहाँ चलता है 

झाड़ू है
सफाई है भारत है अभियान है 
बेमौसम
बारिश है ओले हैं तूफान है 
कहाँ
पता चलता है
कौन कहाँ जा लटकता है 

लटकना
डूबना कूदना तो समझ में आता भी है 
बस हवा हवा में
कई बातों का हवाई जहाज 
दिमाग के
ऊपर से होकर पता नहीं
कहाँ जा उतरता है

उसके
सिर में इसका चमचा
इसके
सिर में उसका चमचा 
कौन से
लटकने झटकने
को ला कर पटकता है 

जगह जगह
हो रही लूट खसोट पर
आँख बंद कर
‘उलूक’ के
कुछ कह देते ही 
मौका पाकर
उसे नोचने खसोटने को 
समझदार होशियर
एक
तुरंत झपटता है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

नासमझी के कारण ही किस्मत जाती फूट है

एक नहीं 
कई कई हैं 

बहुत
से हैं 
सबूत हैं 

चलते फिरते 
नजर
आते हैं 

असल
में 
ताबूत हैं 

ख्वाबों
में 
कफन 
बेचते हैं

जीवन बीमा
के
दूत हैं 

नाटक
में 
पात्र हैं 

सुंदर
से 
देवदूत हैं

विज्ञापन
में 
इंसान हैं 

इंसानों
में 
भूत हैं 

बाहर
से 
सजने सवरने 
की
मन
चाही है 
और खुली छूट है 

अंदर
छुपी 
कहीं पर 
लम्बी एक 
सूची है 

पहली लिखी 
इबारत 

जिसमें 
लूट सके 
तो
लूट है । 

चित्र साभार: pixshark.com

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

जय जय जय हनुमान मतलब एक स्पेशियल मेहमान

एक होता है बन्ना
एक होती है बन्नी
बन्ने की शादी
बन्ने से होनी है होती

कुछ को देने
होते ही हैं निमंत्रण
चाहिये ही होते हैं
थोड़े बहुत गवाह

अब्दुल्ला भी होता है
दीवाना भी होता है
शादी का माहौल
कुछ अलग सा
बनाना ही होता है

कुछ खुश होते हैं
कुछ दुखी होते हैं
कुछ की निकल
रही होती है आह

सबसे गजब
का होता है
एक खास मेहमान
बन्ने और बन्नी से
भी कहीं ऊपर जैसे
बहुत ऊपर
का भगवान

भगवानों में भी
कई प्रकार होते हैं
कुछ बिना कार होते हैं
कुछ अपने होते हैं
कुछ पराये होते हैं
कुछ बेकार होते हैं

एक सबसे
अलग होता है
जैसे ही जलसे
में पहुँचता है

एक जलजला होता है
बन्ने और बन्नी को
लोग भूल जाते हैं
मेहमान के चारों
ओर घेरा बनाते हैं

मेहमान जवान हो
जरूरी नहीं होता है
जब तक जलसे
में मौजूद होता है
बस और बस वही
एक बन्ना होता है

घेरने वालों के चेहरे
में रौनक होती है
भवसागर में तैराने
की जैसे उसके हाथ में
एक ऐनक होती है

शादी कुछ देर
रुक जैसा जाती है
बन्ना बन्नी को
जनता भूल जाती है

जो होता है बस वो
मेहमान होता है
निमंत्रण में आये हुऐ
लोगों के लिये
भगवान होता है

‘उलूक’
हमेशा की तरह
आकाश में कहीं
देख रहा होता है
चम्मच बिन जैसे
एक कटोरा होता है ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

काम हो जाना ही चाहिये कैसे होता है इससे क्या होता है

क्या बुराई है
सीखने में कुछ
कलाकारी
जब रहना ही
हो रहा हो
किसी का
कलाकारों के
जमघट में
अपने ही
घर में
बनाये गये
सरकस में
जानवर और
आदमी के
बीच फर्क को
पता करने को
वैसे तो कहीं
कोई लगा
भी होता है
आदमी को
पता भी होता है
ऐसा बहुत
जगह पर
लिखा भी
होता है
जानवर को
होता है
या नहीं
किसी को
पता भी
होता है
या नहीं
पता नहीं
होता है
आदमी को
आता है
गधे को बाप
बना ले जाना
अपना काम
निकालना
ही होता है
इसके लिये
वो बना देता है
किसी शेर को
पूंछ हिलाता
हुआ एक कुत्ता
चाटता हुआ
अपने कटे हुए
नाखूँनों को
निपोरता
हुआ खींसें
घिसे हुऐ तीखे
दातों के साथ
कुतरता हुआ घास
तो भी
क्या होता है
काम को होना
ही चाहिये
काम तो
होता है
आदमी आदमी
रहता है
या फिर एक
जानवर कभी
हो लेता है
‘उलूक’ को नींद
बहुत आती है
रात भर
जागता भी है
दिन दोपहर
ऊँघते ऊँघते
जमहाईयाँ भी
लेता है ।
चित्र साभार: www.englishcentral.com

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

अर्जुन और मछली की कहानी आज भी होती है


अर्जुन
अब अपनी मछली को साथ में रखता है 
उसकी आँख पर अब भी उसकी नजर होती है 

अर्जुन का निशाना आज भी नहीं चूकता है 
बस जो बदल गया है वो 
कि मछली भी मछली नहीं होती है 

मछली भी अर्जुन ही होती है 
दोनो मित्र होते हैं दोनों साथ साथ रहते हैं 

अर्जुन के आगे बढ़ने के लिये 
मछली भी और उसकी आँख भी जरूरी होती है 

इधर के अर्जुन के लिये उधर का अर्जुन मछली होता है 
और उधर के अर्जुन के लिये इधर का अर्जुन मछली होता है 

दोनो को सब पता होता है 
दोनो मछलियाँ अर्जुन अर्जुन खेलती हैं 
दोनो का तीर निशाने पर लगता है 
दोनो के हाथ में द्रोपदी होती है 

चीर होता ही नहीं है कहीं 
इसलिये हरण की बात कहीं भी नहीं होती है 

कृष्ण जी भी चैन से बंसी बजाते है
‘उलूक’ की आदत
अब तक तो आप 
समझ ही चुके होंगे 

उसे हमेशा की तरह 
इस सब में भी खुजली ही होती है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

कभी तो लिख यहाँ नहीं तो और कहीं दो शब्द प्यार पर भी झूठ ही सही

फर्माइश
आई एक

इसी
तरह की कुछ

लिखता हुआ
देख कर
किसी को रोज

सीधे रास्ते पर
कुछ कुछ
हमेशा ही
टेढ़ा मेढ़ा

प्यार पर
दो शब्द
लिखने की
चुनौती
या
ललकार देकर

किसी ने
पता नहीं
जाने अंजाने में
या सच ही में
जान बूझ कर
जैसे हो छेड़ा

प्यार पर
तो लिख रहा है
हर जगह हर तरफ
पूरा का पूरा संसार

पढ़ रहा है
उस प्यार को भी
आ आ कर कई बार
प्यार से

सारा संसार
फैला हुआ हो जो
अथाह
एक समुद्र जैसा
मन में सब के
इस पार से उस पार

उस पर
कैसे लिखे
वो प्यार पर
बस दो शब्द केवल

जिसके दिमाग में
हर वक्त
चलता रहता हो
कोई ना कोई
उतपाती कीड़ा

प्यार पर लिखते हैं

विशेषज्ञ
प्यार में
माहिर प्रवीण या दक्ष

बिना
देखे सुने कुछ भी
अपने आस पास

सोच कर
महसूस कर
कुछ ऐसा ही खास

जिसमें होती भी है
और नहीं भी कोई पीड़ा

‘उलूक’ को
लिखने की
आदत है

रोज की
दिनचर्या

रोज का
देखा सुना सच झूठ

अपना
इसका या उसका

यहाँ
उठाया है उसने
इस बात का
ही जैसे बीड़ा

सबूत है भी
और नहीं भी
इसका

कि
माना जाता है

पर
कहता कोई
नहीं है
उसको येड़ा

प्यार पर
लिखने को
सोचे
दो शब्द

तेरे कहने पर
आज ही जैसे

देख ले
क्या क्या
लिख दिया

जैसे
होना शुरु
हो गया हो

सोच की
लेखनी 
का
मुँह
आकार टेढ़ा।

चित्र साभार: www.clker.com

रविवार, 19 अप्रैल 2015

अपने घर की छोटी बातों में एक बड़ा देश नजर अंदाज हो रहा होता है

एक बार नहीं
कई बार होता है
अपना खुद का
घर होता है और
किसी और का
करोबार होता है
हर कोई जानता है
हर किसी को
उस के घर के
अंदर अंदर तक
गली के बाहर
निकलते ही
सबसे ज्यादा
अजनबी खुद का
यार होता है
खबर होती है
घर की एक एक
घर वालों को
बहुत अच्छी तरह
घर में रहता है
फिर भी घर की
बात में ही
समाचार होता है
लिखते लिखते
भरते जाते हैं
पन्ने एक एक
करके कई
लिखा दिखता है
बहुत सारा मगर
उसका मतलब
कुछ नहीं होता है
उनके आने के
निशान कई
दिखते हैं रोज
ही अपने
आसपास
शुक्रिया कहना
भी चाहे तो
कोई कैसे कहे
नाम होता तो है
पर एक शहर
का ही होता है
शहर तक ही नहीं
पहुँच पाता है
घर से निकल
कर ‘उलूक’
देश की बात
करने वाला
उससे बहुत ही
आगे कहीं होता है ।

चित्र साभार: imgarcade.com

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

उसपर या उसके काम पर कोई कुछ कहने की सोचने की सोचे उससे पहले ही किसी को खुजली हो रही थी

‘कभी तो
खुल के बरस
अब्र इ मेहरबान
की तरह’

जगजीत सिंह
की गजल
से जुबाँ पर
थिरकन सी
हो रही थी

कैसे
बरसना
करे शुरु

कोई
उस जगह

जहाँ
बादलों को भी
बैचेनी हो रही थी

खुद की
आवाज

गुनगुनाने
तक ही
रहे अच्छा है

आवाज
जरा सा
उँची करने की

सोच
कर भी
सिहरन
हो रही थी

कहाँ
बरसें खुल के
और
किसलिये बरसें

थोड़ी
सी बारिश
की जरूरत भी
किसे हो रही थी

टपकना
बूँद का
देख कर

बादल से
पूछ लिया
है उसने
पहले भी
कई बार

क्या
छोटी सी चीज
खुद की
सँभालनी

इतनी ही भारी
खुद को हो रही थी

किसे
समझाये कोई
अपने खेत की
फसल का मिजाज

उसकी
तबीयत तो

किसी को
देख सुन कर ही
हरी हो रही थी

उसकी
सोच में
किसी की
सफेदपोशी
का कब्जा
हो चुका है

कुछ
नहीं किया
जा सकता है
‘उलूक’

‘मेरा
बजूद है
जलते हुऐ
मकाँ की तरह’

से यहाँ

मगर
गजल
फिर भी
पूरी हो रही थी ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

आइना कभी नहीं देखने वाला दिखाने के लिये रख गया

किसी ने
उलाहना दिया
सामने से एक
आइना रख दिया

जोर का झटका
थोड़ा धीरे से
मगर लग गया

ऐसा नहीं कि ऐसा
पहली बार हुआ

कई बार
होता आया है
आज भी हुआ

बेशर्म हो जाने के
कई दिनों के बाद
किसी दिन कभी
जैसे शर्म ने
थोड़ा सा हो छुआ

लगा जैसे
कुछ हुआ
थोड़ी देर के
लिये ही सही

नंगे जैसे होने का
कुछ अहसास हुआ

हड़बड़ी में अपने ही
हाथ ने अपने
ही शरीर पर
पड़े कपड़ों को छुआ

थोड़ी राहत सी हुई
अपने ही अंदर के
चोर ने खुद से ही कहा

अच्छा हुआ बच गया
सोच में पड़ गया
खुद के अंदर झाँकने
के लिये किसके कहने
पर आ कर गया

समझ में आना
जरूरी हो गया
‘उलूक’ उलाहना
क्यों दिया गया

अपने चेहरे को
खुद अपने आइने
में देखने के बदले

कोई अपना आइना
पानी से धोकर
धूप में सुखा कर
साफ कपड़े
से पोंछ कर
तेरे सामने से
क्यों खड़ा
कर गया

जोर का झटका
किसी और का
थोड़ा धीरे
से ही सही
किसी और को
लगना ही था
लग गया ।

चित्र साभार: acmaps.info.yorku.ca

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

‘उलूक’ उवाच पर काहे अपना सर खपाता है

किसी को
कुछ 
समझाने के लिये कुछ नहीं लिखा जाता है

हर कोई 
समझदार होता है
जो आता है अपने हिसाब से ही आता है

लिखे हुऐ पर अगर 
बहुत थोड़ा सा ही
लिखा हुआ नजर आता है

आने वाला 
किसने कह दिया
कुछ लिखने लिखाने के लिये ही आता है

इतनी बेशर्मी होना 
भी तो अच्छी बात नहीं होती है
नहीं लिखने पर किसी के कुछ भी
नाराज नहीं हुआ जाता है

तहजीब का देश है
पैरों के निशान तो होते ही हैं
मिट्टी उठा कर थोड़ी सी सर से लगाया ही जाता है

कोयले का ही एक 
प्रकार होता है हीरा भी
कोयले से कम से कम नमस्कार तो किया जाता है

‘उलूक’ मत 
उठाया कर ऐसे अजीब से सवाल
जवाब देना चाहे कोई तो भी नहीं दिया जाता है

ठेकेदारी करने 
के भी उसूल होते हैं
समझ लेना चहिये
लिखने लिखाने के टेंडर कहा होते हैं
कहाँ खोले जाते हैं
हर बात बताने वाला
एक मास्टर ही हो ऐसा जरूरी भी नहीं है
और माना भी जाता है ।

चित्र साभार: www.mycutegraphics.com

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

एक दिमाग कम खर्च कर के दिमाग को दिमागों की बचत कराता है

बुद्धिजीवी
की एक
खासियत
ये होती है

वो अपने
दिमाग को
कम काम
में लाता है

जानता है बचाना
खर्च होने से
दिमाग को

एक समूह
में उनके
एक समय में
एक ही अपने
दिमाग को
चलाता है

पता होता है
चल रहा है दिमाग
किसका किस समय

उस समय
बाकी सब
का दिमाग
बंद हो जाता है

पढ़ना लिखना
जितना ज्यादा
किया होता है जिसने

उसका दिमाग
उतना अपने को
बचाना सीख जाता है

सबसे ज्यादा
दिमाग बचाने
का तरीका

सबसे बड़े स्कूल के
मास्टर को ही आता है

एक छोड़ता है
राकेट एक

किसी ऐसी बात का
जिसके छूटते ही
उसके नहीं
होने का आभास
सबको हो ही जाता है

कोई कुछ
नहीं कहता है
हर कोई
बंद कर दिमाग

राकेट के
मंगल पर
कहीं उतरने
के खयालों में
खो जाता है


पढ़ने पढ़ाने वाले

सबसे बड़े स्कूल के
मास्टरों के
इस खेल को
देखकर
छोटे मोटे स्कूलों

के मास्टरों का
वैसे ही
दम
फूल जाता है


मास्टरों के
बंद दिमाग

होते देखकर
पढ़ने लिखने
वाला
मौज में आ जाता है


जब पिता ही
चुप हो जाये

किसी समाज में
बेटे बेटियों के
बोलने के लिये

क्या कुछ कहाँ
रह जाता है


वैज्ञानिक
सोच का ही

एक कमाल
है यह भी


एक दिमाग
बुद्धिजीवी का

कितने दिमागों
का
फ्यूज
इस तरह
उड़ाता है


दिमाग ही

दिमागी खर्च

बचा बचा कर

इस तरह

बिना दिमाग का

एक
नया
समाज बनाता है ।


चित्र साभार: www.clipartpanda.com

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

हैरान क्यों होना है अगर शेर बकरियों के बीच मिमियाने लगा है


पत्थर
होता होगा
कभी किसी जमाने में 
इस जमाने में
भगवान कहलाने लगा है 

कैसे
हुआ होगा ये सब 
धीरे धीरे
कुछ कुछ अब
समझ में आने लगा है 

एक साफ
सफेद झूठ को
सच बनाने के लिये 
जब से कोई
भीड़
अपने आस पास बनाने लगा है 

झूठ के
पर नहीं होते हैं
उसे उड़ना भी कौन सा है 
किसी
सच को दबाने के लिये 
झूठा
जब से जोर से चिल्लाने लगा है 

शक
होने लगा है
अपनी आँखों के
ठीक होने पर भी कभी 
सामने से
दिख रहे खंडहर को
हर कोई
ताजमहल बताने लगा है 

रस्में
बदल रही हैं
बहुत तेजी से इस जमाने की
‘उलूक’
शर्म को बेचकर
बेशर्म होने में 
तुझे भी अब
बहुत मजा आने लगा है 

तेरा कसूर
है या नहीं इस सब में
फैसला कौन करे 
सच भी
भीड़ के साथ जब से
आने जाने लगा है ।

चित्र साभार: www.clipartof.com

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

परीक्षा उत्तर पुस्तिका की आत्मा की कथा यानी उसके भूत की व्यथा

मास्टर होने
के कारण
कभी कभी
अपने हथियारों
पर नजर
चली ही
जाती है
पेन पेंसिल
किताब कापी
चौक ब्लैक बोर्ड
आदि में सबसे
महत्वपूर्ण
छात्र छात्राओं
की परीक्षा
उत्तर पुस्तिका
ही बस एक
नजर आती है
और जैसे ही
किसी दिन
अखबार या
दूरदर्शन में
कोई कापी
की खबर
सामने से
आ जाती है
अपनी ही
दुखती रग
जैसे
उधड़ कर
दुखना शुरु
हो जाती है
उत्तर पुस्तिका
तेरी कहानी
भी कोई
छोटी मोटी
नहीं होती है
तेरे छपने
के ठेके से
शुरु होती है
मुहर लग कर
सजा सँवर कर
लिखने वाले
तक पहुँचती है
लिखता भी है
लिखने वाला
पहरे में
डाकू जैसे
कक्ष निरीक्षकों
के सामने
दो से लेकर
तीन सौ
मिनट लगा कर
उसे कहाँ
पता होता है
किसी
मूल्याँकन केंद्र
नामक ठेके
पर जा कर
बड़ी संख्या में
बड़े पैसे में
बिकती है
किस्मत होती
है उसकी
अगर कोई
मास्टर उसे
जाँच पाता है
देखिये
जरा कुछ जैसे
आज का
एन डी टी वी
चपरासियों
और बाबुओं
से उनको
कहीं जाँचता
हुआ अपने
देश में ही
कहीं
दिखाता है
लोग बात
करते हैं
भ्रष्ठ होने
दिखने वाले
लोगों की
असली
सफेदपोश
इसी तरह के
शिक्षा के काले
व्यापार करने
वालों को
समाज लेकिन
भूल जाता है
जूते की माला
पहनने लायक
अपनी काली
करतूतों को
अपने मूल्यों
के भाषणों की
खिसियाहट में
छिपा ले जाता है
देखिये
इधर भी
कुछ जनाब
देश के
कर्णधार
हैं आप ही
करोंड़ों
अरबों के
इस काले धंधे
के व्यापार में
बिना सबूतों के
क्या क्या कर
दिया जाता है ।

चित्र साभार: examination paper : owl and pencil

रविवार, 12 अप्रैल 2015

जय हो जय हो कह कह कर कोई जय जय कार कर रहा था

पहले दिन की खबर
बकाया चित्र के साथ थी
पकड़ा गया था एक
सरकारी चिकित्सक
लेते हुऐ शुल्क मरीज से
मात्र साढ़े तीन सौ रुपिये
सतर्क सतर्कता विभाग के
सतर्क दल के द्वारा
सतर्कता अधिकारी था
मूँछों में ताव दे रहा था
पैसे कम थे पर खबर
एक बड़ी दे रहा था
दूसरे दिन वही
चिकित्सक था
लोगों की भी‌ड़ से
घिरा हुआ था
अखबार में चित्र
बदल चुका था
चिकित्सक था मगर
मालायें पहना हुआ था
न्यायधिकारी से
डाँठ खा कर
सतर्कता अधिकारी
खिसियानी हँसी कहीं
कोने में रो रहा था
ऐसा भी अखबार
ही कह रहा था
दो दिन की एक
ही खबर थी
लिखे लिखाये में
कुछ इधर का
उधर हो रहा था
कुछ उधर का
इधर हो रहा था
‘उलूक’ इस सब पर
अपनी कानी आँख से
रात के अंधेरे में
नजर रख रहा था
उसे गर्व हो रहा था
कौम में उसकी
जो भी जो कुछ
कर रहा था
बहुत सतर्क हो
कर कर रहा था
सतर्कता से
करने के कारण
साढ़े तीन सौ का
साढ़े तीन सौ गुना
इधर का उधर
कर रहा था
चित्र, अखबार,
उसके लोगों का
खबर के साथ
खबरची हमेशा
भर रहा था
सतर्क सतर्कता
विभाग के
सतर्क दल का
सतर्क अधिकारी
पढ़ाना लिखाना
सिखाने वालों के
पढ़ने पढ़ाने को
दुआ सलाम
कर रहा था
पढ़ने पढ़ाने के
कई फायदे में से
असली फायदे का
पता चल रहा था
कोई पाँव छू रहा था
कोई प्रणाम कर रहा था
ऊपर वाले का गुणगाँन
विदेश में जा जा कर
देश का प्रधान कर रहा था ।

चित्र साभार: www.clipartheaven.com

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

धोबी होने की कोशिश मत कर बाज आ गधा भी नहीं रह पायेगा समझ जा


चल 
अपनी सारी बातें
मुझे बता 

मेरी बातें 
समझ में तेरे नहीं आ पायेंगी 
ऐसी बातों को सुनकर 
करेगा भी क्या 
रहने दे हटा

बैठा रह घास खा 
जुगाली कर पूँछ हिला 

वैसे भी 
धोबी और गधे का रिश्ता 
होता है 
एक बहुत नाजुक रिश्ता 

माल मिलेगा मलाईदार चिंता मत कर 
जम कर सामान उठा इधर से उधर ले जा 
जो कहा जाये कहने से पहले समझ जा 

धोबी क्या करना चाह रहा है 
उस पर ध्यान मत लगा
दिये गये काम को मन लगा कर 
कम से कम समय में निपटा 

पूरा होते ही
खुद 
अपनी रस्सी का फंदा अपने गले में लटका 

खूँटे से बंध कर 
नियत व्यास का घेरा बना चक्कर लगा घनचक्कर हो जा 
दिमाग की बत्ती जलाने की बात सोच में भी मत ला 

राबर्ट फ्रोस्ट मत बन 
मील के पत्थर लम्बी दूरी 
सोने से पहले और उठने के बाद की
लम्बी दौड़ 
को
धोबी की 
सोच में रहने दे 
गोबर कर दुलत्ती झाड़ धूल उड़ा 

धोबी की इच्छा आकाँक्षाओं को 
अपने सपने में भूल कर भी मत ला 

याद रख 
धोबी होने की कोशिश करेगा 
गधा भी नहीं रहेगा 
समझ जा ।

चित्र साभार: www.momjunction.com/

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

आता माझी सटकली

आता
माझी सटकली
सोचते सोचते

किसी दिन पूरा
ही सटक जायेगा

दो और दो पाँच 

करने वालों से
पंगा लेना छोड़ दे

उनका जैसा
कभी किसी को
नहीं पढ़ा पायेगा

पाँच चार से
हमेशा ही एक
ज्यादा रहेगा
आगे बहुत दूर
निकल जायेगा

चार पर ही
अटके रहने
वाले को

गिनती करने
के काम से भी
हटा दिया जायेगा

पाँच ही से
पंच परमेश्वर
बनता है

उसे ही मंदिर में
बैठाया जायेगा

चार करने वाले
अभी भी कुछ
नहीं गया है

पाँच सीख ले
नहीं तो दो से भी
हाथ गवाँयेगा

छोड़ दे देखना

वो सब तुझे
जानबूझ कर
तेरे सामने
लाकर दिखायेगा

फर्जी
लोगों का
फर्जीवाड़ा
पंचों की राय
से ही कोई
करायेगा

शातिर जानते हैं
चार पर अटका
हुआ ही जाकर
पाँच के कारनामे
जोर शोर से गायेगा

गाना खत्म होने
से पहले फर्जी
पर्चियों के साथ
गायब हो जायेगा

भजन होंगे
भगत होंगे
रामनामी दुपट्टा
बस रह जायेगा

दो और दो पाँच
ही सिद्ध होगा
चार चार करने वाला
बस गालियाँ खायेगा

पंचों के
मंदिर बनेंगे
शिष्य भी
श्रद्धा से
फूल चढ़ायेगा

दो और दो
पाँच सीखकर
दो और दो पाँच
पढ़ायेगा

‘उलूक’
'आता माझी सटकली'
सोचते सोचते
किसी दिन पूरा
ही सटक जायेगा ।

 चित्र साभार: ingujarat.net

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

किसे मतलब है और होना भी क्यों है अगर एक बददिमाग का दिमाग शब्दों से हल्का हो रहा होता है

हाथी होने का
मतलब एक
बड़ी चीज होना
ही जरूरी
नहीं होता है
किसी चींटी
का नाम भी
कभी किसी ने
हाथी रखा
होता है
दुधारू गाय को
किसी की कोई
मरा हुआ हाथी
कभी कह देता है
परेशान होने की
जरूरत
नहीं होती है
अखबार में
जो होता है
उससे बड़ा सच
कहीं नहीं होता है
चिढ़ किसी
को लगती है
खुश होना चाहिये
चिढ़ाने वाले को
अजीब सी बात
लगती है जब
आग लगाने
वाला ही नाराज
हो रहा होता है
झूठ के साथ
एक भीड़ का
पता भी होता है
बस इसी सच
का पता
बेवकूफों को
नहीं होता है
भौंकते रहते हैं
भौंकने वाले
हमेशा ही
काम करने
वाला अपनी
लगन से ही
कर रहा होता है
लगे रहो लिखने
वाले अपने
हिसाब से कुछ
भी लिखने के लिये
जल्लाद का शेयर
हमेशा मौत से
ज्यादा चढ़
रहा होता है
शेरो शायरी में
दम नहीं होता है
‘उलूक’ तेरी
तू भी जानता है
तेरे सामने ही
तेरा अक्स ओढ़
कर भी सब कुछ
सरे आम
नंगा हो रहा
होता है ।
चित्र साभार: www.clipartof.com

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

सारे जोर लगायेंगे तो मरे हाथी को खड़ा कर ले जायेंग़े

चट्टान पर
बुद्धिमान ने
बनाया
अपना घर
और जोर की
वर्षा आई
बचपन में
सुबह की
स्कूल में की
जाने वाली
प्रार्थना का
एक गीत
याद आ पड़ा
उस समय
जब सामने
से ही अपने
कुछ दूरी पर
जोर के
धमाकों के साथ
फटते पठाकों
की लड़ियों
को घेर कर
उछलता हुआ
एक झुण्ड
दिखा खड़ा
इससे पहले
किसी से कुछ
पूछने की
जरूरत पड़ती
दिमाग के
अंदर का
फितूरी गधा
दौड़ पड़ा
याद आ पड़ी
सुबह सुबह
अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
छपी हुई
ताजी एक खबर
जनता जनार्दन
एक कददू
और कुछ तीर
साथ में अपने
गधे का जनाजा
और उसकी
खुद की ही
अपने लिये
खोदी गई
साफ सुथरी
कबर
सारी खुदाई
एक तरफ
अपना भाई
एक तरफ
जब जब
अपनी सोच
के सोच होने
का वहम
कभी हुआ है
अपना
यही गधा
सीना तान
कर अपनी
सोच के साथ
खड़ा हुआ है
‘उलूक’
इतना कम
नहीं है क्या ?
बनाने दे
दुनियाँ को
रेत के
ताजमहल
पकड़ अपनी
सोच के गधे
की लगाम
और निकल
ले कहीं
तमाशा देखने
के चक्कर में
गधा भी लग
लिया लाईन में
तो कहीं का
नहीं रह जायेगा
अकेला हो
गया तो
चना भी नहीं
फोड़ पायेगा ।
चित्र साभार: imgarcade.com