गुरुवार, 8 नवंबर 2018
सोमवार, 5 नवंबर 2018
खाजा को खाजा क्यों कहते हैं पूछ कर राजा से ध्यान भटकाते हैं
दिग्विजय जी के 'उलूक' की पिछली बकबक पर पूछे गये प्रश्न का ‘उलूकोत्तर’ |
रहता है
हमेशा
‘उलूक’
आप का
आप
आ ही
जाते हैं
बकवास है
मानते भी हैं
फिर भी
उकसाने को
कवि का
तमगा
टिप्पणी में
चिपका ही जाते हैं
खुद ही
प्रश्नों में
उलझे हुऐ
एक प्रश्न
के सर पर
एक फूल
प्रश्न का
आकर
आप भी
चढ़ा जाते हैं
सोचते
भी नहीं
जरा सा भी
राजाओं
की छोटी
रियासतों में
आज भी लोग
आसरा पाते हैं
चरण वन्दना
पूजन करने पर
उनके हालात
सुधारे जाते हैं
राजा
तब भी
राजा होते थे
आज भी
राजा ही होते हैं
बस राजा
कहलाने में
कुछ जतन
कुछ परहेज
कर जाते हैं
रियासतें
तब भी होती थी
किले आज भी
बनाये जाते हैं
पहले
दिखता था
सब कुछ
अपनी
आँखों से
आज
किसी के
आभासी चश्में
प्रसाद मान
आँखों में
चढ़ाये जाते हैं
राजा का
देखा ही
सबको
दिखता है
काज
अपनी आँखों
से दिखा कर
करने वाले ही
राजा
कहलाये जाते हैं
आप भी
सोचिये
कुछ
राज काज की
काहे
खाजा की
चिन्ता में
अपनी नींद
अपना चैन
उड़ाये जाते हैं
घनतेरस
मनाइये मौज से
मंगल कामनाएं
हम ले के आते हैं
खाजा को
खाजा क्यों
कहते हैं पर
काहे ध्यान
भटकाते हैं
राजा का
बाजा सुनिये
गली मोहल्ले
शहर रास्ते
पौं पौं पौं
चिल्लाते हैं
राजा राजा
राग अलापते
राष्ट्रभक्त
होये जाते हैं
काहे
ग़ंगा में
नहाने का
ऐसा शुभ
मौका गवातें है
खाजा
को खाजा
क्यों कहते हैं
सोच सोच कर
सोये जाते हैं ।
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com
रविवार, 4 नवंबर 2018
क्यों कह देता होगा कुछ भी लिखे को कविता कोई कवि नहीं करते बकबक लिखते हैं दिमाग पर लगा कर जोर
कैसे
बनती होगी
एक कविता
रस छन्द
और
अलंकार
से
सराबोर
कैसे
सोचता होगा
एक कवि
क्या
देखता होगा
और
किस दिशा
की ओर
कौन
पढ़ लेता होगा
आँखें
कवि की खोल
मन में अपने
हो लेता होगा
उतना ही विभोर
इन्द्रियाँ
बस में
होती होंगी
किस की इतनी
अवशोषित
कर लेता होगा
जो केवल
संगीत
छान कर
सारे शोर
किस के
पन्ने में
छपे अक्षर
नजर आना
शुरु
हो जाते होंगे
एक पाठक को
मोती जैसे
लपक रहा हो
चमक देख कर
उनकी
तरफ कोई
गोताखोर
शायद:
अनन्त में
होता होगा
ध्यान केन्द्रित
दूर बहुत
होते होंगे
जोकर
कलाकार
चोर छिछोर
नजर पड़ती
होगी बस
सारे सफेद
कबूतरों पर
काले कौओं
को समझा कर
ले जाता होगा
समय
कहीं किसी
मोड़ की ओर
सीख:
क्यों
बैठा
रहता होगा
‘उलूक’
करने को
बकवास
देखता
घनघोर
अमावस में भी
फाड़ कर
आँखें चार
किसी पाँचवीं
दिशा की छोर
सीखता
क्यों नहीं होगा
थोड़ा सा भी
हटकर लिखना
अच्छा लिखना
मुँह
मोड़ कर
इधर उधर से
देख देख कर
कहीं
कुछ जमीन
के अन्दर
कुछ
आकाश
की ओर।
चित्र साभार: https://melbournechapter.net
बनती होगी
एक कविता
रस छन्द
और
अलंकार
से
सराबोर
कैसे
सोचता होगा
एक कवि
क्या
देखता होगा
और
किस दिशा
की ओर
कौन
पढ़ लेता होगा
आँखें
कवि की खोल
मन में अपने
हो लेता होगा
उतना ही विभोर
इन्द्रियाँ
बस में
होती होंगी
किस की इतनी
अवशोषित
कर लेता होगा
जो केवल
संगीत
छान कर
सारे शोर
किस के
पन्ने में
छपे अक्षर
नजर आना
शुरु
हो जाते होंगे
एक पाठक को
मोती जैसे
लपक रहा हो
चमक देख कर
उनकी
तरफ कोई
गोताखोर
शायद:
अनन्त में
होता होगा
ध्यान केन्द्रित
दूर बहुत
होते होंगे
जोकर
कलाकार
चोर छिछोर
नजर पड़ती
होगी बस
सारे सफेद
कबूतरों पर
काले कौओं
को समझा कर
ले जाता होगा
समय
कहीं किसी
मोड़ की ओर
सीख:
क्यों
बैठा
रहता होगा
‘उलूक’
करने को
बकवास
देखता
घनघोर
अमावस में भी
फाड़ कर
आँखें चार
किसी पाँचवीं
दिशा की छोर
सीखता
क्यों नहीं होगा
थोड़ा सा भी
हटकर लिखना
अच्छा लिखना
मुँह
मोड़ कर
इधर उधर से
देख देख कर
कहीं
कुछ जमीन
के अन्दर
कुछ
आकाश
की ओर।
चित्र साभार: https://melbournechapter.net
शुक्रवार, 2 नवंबर 2018
परिभाषायें बदल देनी चाहिये अब चोर को शरीफ कह कर एक ईमानदार को लात देनी चाहिये
सारे
शरीफ हैं
और
एक भीड़
हो गयी है
शरीफों की
तू
नहीं है
उसमें
और
तुझे
अफसोस
भी नहीं
होना चाहिये
किसलिये
होना है
होना ही
नहीं चाहिये
किसलिये
लपेट कर
बैठा है
कुछ कपड़े
ये
सोच कर
ढक लेंगे
सारा सब कुछ
नंगों का
कुछ नहीं
होना है
नंगा
भगवान होता है
होना भी चाहिये
एक
मन्दिर में
मन्दिर
वालों के
पाले हुऐ
कुछ
कबूतरों ने
बर्थडे
केक काटा
जन्मदिन
होता है
होना है
होना भी चाहिये
मन्दिर
प्राँगण में
शोर मचाया
कुछ
लोगों
ने देखा
जो अब होना चाहिये
हिम्मत
होती ही
नहीं है
शरीफ हैं
और
एक भीड़
हो गयी है
शरीफों की
तू
नहीं है
उसमें
और
तुझे
अफसोस
भी नहीं
होना चाहिये
किसलिये
होना है
होना ही
नहीं चाहिये
किसलिये
लपेट कर
बैठा है
कुछ कपड़े
ये
सोच कर
ढक लेंगे
सारा सब कुछ
नंगों का
कुछ नहीं
होना है
नंगा
भगवान होता है
होना भी चाहिये
एक
मन्दिर में
मन्दिर
वालों के
पाले हुऐ
कुछ
कबूतरों ने
बर्थडे
केक काटा
जन्मदिन
होता है
होना है
होना भी चाहिये
मन्दिर
प्राँगण में
शोर मचाया
कुछ
लोगों
ने देखा
कुछ
बुदबुदाया
और
बुदबुदाया
और
इधर उधर
हो गये
उनमें
मैं भी एक था
आप मत मुस्कुराइये
हो गये
उनमें
मैं भी एक था
आप मत मुस्कुराइये
लिखने
लिखाने से
लिखाने से
कभी कुछ
हुआ है क्या
हुआ है क्या
जो अब होना चाहिये
हिम्मत
होती ही
नहीं है
नंगई
लिखने की
नंगों के
बीच में
रहते हैं
शराफत से
कुछ नंगे
शरीफ
भी कुछ
हम जैसे
शराफत से
नंगई
छिपाते हुऐ
कुछ
कहना है
कुछ नहीं
कहना है
कहना भी नहीं चाहिये
सारा
सब कुछ
लिख भी
दिया जाये
तो भी क्या होना है
सबने
अपनी अपनी
औकात का रोना है
लिखना पढ़ना
पढ़ना लिखना
दो चारों के बीच
ही तो होना है
घर घर में
लगे हैं
ग़णेश जी के चूहे
उन्होने ही
सारा
सब कुछ
खोद देना है
‘उलूक’
गिरते
मकान को
छोड़ने की
सोचने से पहले
गणेश
की भी
और
उसके
चूहों की भी
जय जयकार
करते हुऐ
अब सबको रोना है
रोना भी चाहिये।
चित्र साभार: http://paberish.me/clip-art-of-owl-on-book/clip-art-of-owl-on-book-read-birthday-cake-ideas
लिखने की
नंगों के
बीच में
रहते हैं
शराफत से
कुछ नंगे
शरीफ
भी कुछ
हम जैसे
शराफत से
नंगई
छिपाते हुऐ
कुछ
कहना है
कुछ नहीं
कहना है
कहना भी नहीं चाहिये
सारा
सब कुछ
लिख भी
दिया जाये
तो भी क्या होना है
सबने
अपनी अपनी
औकात का रोना है
लिखना पढ़ना
पढ़ना लिखना
दो चारों के बीच
ही तो होना है
घर घर में
लगे हैं
ग़णेश जी के चूहे
उन्होने ही
सारा
सब कुछ
खोद देना है
‘उलूक’
गिरते
मकान को
छोड़ने की
सोचने से पहले
गणेश
की भी
और
उसके
चूहों की भी
जय जयकार
करते हुऐ
अब सबको रोना है
रोना भी चाहिये।
चित्र साभार: http://paberish.me/clip-art-of-owl-on-book/clip-art-of-owl-on-book-read-birthday-cake-ideas
बुधवार, 31 अक्तूबर 2018
समझ में नहीं आ रही है ऊँचाई एक बहुत ऊँची सोच की किसी से खिंचवा के ऊँची करवा ही क्यों नहीं ले रहा है
एक
बहुत बड़ी सोच
बहुत बड़ी सोच
रख दी गयी है
बहुत ऊँचाई पर ले जाकर
बहुत दूर से अब
अंधे को भी
अंधे को भी
कुछ कुछ सोचता एक
बड़ा सा सिर दिखाई दे रहा है
दीवारों में
छपवा ही क्यों नहीं दे रहा है
छपवा ही क्यों नहीं दे रहा है
खर्चा
बहुत हो गया है कह रहे हैं कुछ लोग
जिनकी सोच शायद छोटी है
हिसाब किताब
थोड़े से हजार थोड़े से करोड़ों का
अच्छी तरह से कोई उन्हें
समझा ही क्यों नहीं दे रहा है
सोच का
भूख गरीबी या बदहाली से
भूख गरीबी या बदहाली से
कोई रिश्ता नहीं होता है
भूखा बस रोटी सोच सकता है
भूखा बस रोटी सोच सकता है
खिलाना कौन सा है
सपने ही
कुछ बड़ी सी रोटियों के
दिखा ही क्यों नहीं दे रहा है
कुछ भरे पेट
कुछ भी सोचना शुरु कर देते हैं
कुछ बड़ा सोचने के लिये
कुछ बड़े लोगों के बड़े प्रमाण पत्र
पास में होना बहुत जरूरी होता है
इतनी छोटी सी बात है
किसी भाषण के बीच में
बता ही
क्यों नहीं दे रहा है
क्यों नहीं दे रहा है
कुछ बड़ा ही नहीं
बहुत बड़ा बनाने के लिये
बहुत बड़ा बनाने के लिये
बड़ा दिल पास में होना ही होता है
रामवृक्ष बेनीपुरी के लिखे निबन्ध का
गेहूँ भी और गुलाब भी
इतना पुराना हो गया होता है
कि
सड़ गया होता है
सड़ा कुछ
बहुत बड़ा सा ला कर
बहुत बड़ा सा ला कर
सुंघा ही क्यों नहीं दे रहा है
अच्छा किया ‘उलूक’
तूने टोपी पहनना छोड़ कर
गिर जाती जमीन पर पीछे कहीं
इतनी ऊँचाई देखने में
टोपी पहनाना शुरु कर चुका है जो सबको
उसके लिये
बहुत बड़ी सी कुछ टोपियाँ
तू किसी से
खुद सिलवा ही क्यों नहीं दे रहा है ।
चित्र साभार: https://wonderopolis.org/wonder/who-is-the-tallest-person-in-the-world
रविवार, 28 अक्तूबर 2018
बकना जरूरी है ‘उलूक’ के लिये पढ़ ना पढ़ बस क्या लिखा है ये मत पूछ
शहीद राजेंद्र सिंह बुंगला |
जय हिन्द
भारत माता
की
जय
जय
वन्दे मातरम
हवाई यात्रा
करते हुऐ
एक
कॉफिन बॉक्स
एक
पत्थर से
पत्थर से
कूटी गयी
लाश
लाश
यात्रा
से
थकी हुयी
जैट लैग
से
से
कुछ
बंदूकें
बंदूकें
सलामी
मंत्री
मुख्य मंत्री
प्रधान मंत्री
संत्री
के
चित्रो से
के
चित्रो से
भरे
अखबार
अखबार
के
समाचार
समाचार
गर्व
करने
करने
साझा करने
के
आदेश
आदेश
पालन
ना
ना
करने पर
कुछ
महत्वपूर्ण
महत्वपूर्ण
जैसे
धरम
छीन लेने
की
गीदड़ भभकी
के
बीच
बीच
बहुत
दूर कहीं
पहाड़ी
गरीब
माँ बाप
माँ बाप
याद
करते हुऐ
अपने
खून को
खून को
उसके
जुनून को
जुनून को
उसी
बच्चे की
बच्चे की
जिद पर
बेच दिये गये
रोजी रोटी
दिलाने
वाले
घोड़े
सुकून को
घोड़े
सुकून को
दो तीन
दिन
दिन
की
कहानी
कहानी
जैसे
एक चिट्ठे
पर
छपी
एक
छपी
एक
पोस्ट की
जवानी
जवानी
एक
वक्तव्य
वक्तव्य
सेनाध्यक्ष
का
का
देख लेने
की
धमकी का
पत्थर
मार कर
मार कर
कत्ल
कर दिये गये
कर दिये गये
सपने
पर
सियासत
कुछ
मालायें
मालायें
कुछ
मूर्तियाँ
मूर्तियाँ
कुछ
जयजयकार
जयजयकार
एक
खींच कर
खींच कर
लम्बा
कर दिये गये
स्प्रिंग
का दोलन
का दोलन
एक
आन्दोलन
पत्थर से मर रहे जवान
वन्दे मातरम
बुलवा तो रहा है
कोई
कोई
देख रहा है
उसे
आज
पूरा हिंदुस्तान
पूरा हिंदुस्तान
‘उलूक’
बेवकूफ
बेवकूफ
हमेशा की तरह
अंगूठा चूस
सोचते हुऐ
उसे
लेमनचूस
लेमनचूस
नतमस्तक
चरणों में
लिखा
उसका
उसका
नहीं
समझ पाने वाले
समझ पाने वाले
पाठकों
के लिये
बनाता
हमेशा
की तरह
बकवासों
को
को
मिला मिला
कर
कर
कोई जूस
सोचता हुआ
बकवास
करने वालों
की
की
कोई नहीं
होती है
पूछ
पूछ
जय हिन्द
भारत माता
की जय
की जय
वन्दे मातरम
की
की
जरूरी है
बहुत
बहुत
कब्रगाहों
में
भी गूँज।
में
भी गूँज।
शनिवार, 27 अक्तूबर 2018
घोड़ा ऐनक या होर्स ब्लाइंडर किस किस को समझ आ जाता है?
कैसे
पता करे
कोई खुद
कि
वो होश में है
या बेहोश है
वहाँ जहाँ
बेहोश रहने को
होश का पैमाना
माना जाता है
आँख में
चश्में लगे हो भी
और
नहीं भी हों
दिखायी
दे जाता है
साफ साफ
बहुत दूर से
नजर भी
आ जाता है
सोच
के चश्में
किसी की
सोच में
शायद कोई
दूर वाला
बहुत दूर से
बैठ कर भी
लगा ले जाता है
एक जैसी
लकीर को
खींचते हुऐ
एक दो नहीं
एक
बहुत
बड़ी भीड़
का स्वभाव
एक सा
हो जाता है
जहाँ
बस लकीर
खींचनी ही
नहीं होती है
खींचने के बाद
एक ही तरीके से
उसे पीटना
आना भी
बहुत जरूरी
माना जाता है
बस
इसी
तस्वीर के
अन्दर
झांंकने पर
आदमी का
घोड़ा हो जाना
और
घोड़े का
ऐनक लगाकर
सीधी
एक लकीर
पर चलते चलते
एक शतरंज
की बिसात में
खड़े वजीर के लिये
फकीर हो जाना
समझ में आना
शुरु हो जाता है
घोड़े
की आँखों में
ऐनक लगाना तो
जरूरी
हो जाता है
उसे रास्ते से
भटकने से
बचाने के लिये
सामने
देखने के लिये
इसी तरह मजबूर
किया जाता है
घोड़े
वफादार भी होते हैं
ऐनक लगी रहती है
दिखायी देती है
वफादारी
देखने के लिये
चश्मा
बना बनाया
बाजार में
नहीं पाया जाता है
जरूरी भी नहीं होता है
खबर में
घोड़ों का
आदमी को काट
खाने का वाकया
छपा हुआ
नजर में नहीं
ही आता है
अजीब बात है
कब आदमी
आदमियों की
भीड़ के बीच में
आँख में
ऐनक लगे घोड़ों से
अपने को
घिरा हुआ होना
महसूस करना
शुरु हो जाता है
कौन होश में है
कौन बेहोश है
कैसे समझ में आये
किस से पूछा जाये
ऐसी बात
कोई सीधे सीधे
जो क्या बताता है
और ‘उलूक’ भी
पता नहीं
आदमी और
घोडों के बीच
एक ऐनक
को लेकर
होश और बेहोश
के पैमाने लेकर
क्या किसलिये
और क्यों नापना
शुरु हो जाता है ?
चित्र साभार: http://lakhtakiyabol.com
पता करे
कोई खुद
कि
वो होश में है
या बेहोश है
वहाँ जहाँ
बेहोश रहने को
होश का पैमाना
माना जाता है
आँख में
चश्में लगे हो भी
और
नहीं भी हों
दिखायी
दे जाता है
साफ साफ
बहुत दूर से
नजर भी
आ जाता है
सोच
के चश्में
किसी की
सोच में
शायद कोई
दूर वाला
बहुत दूर से
बैठ कर भी
लगा ले जाता है
एक जैसी
लकीर को
खींचते हुऐ
एक दो नहीं
एक
बहुत
बड़ी भीड़
का स्वभाव
एक सा
हो जाता है
जहाँ
बस लकीर
खींचनी ही
नहीं होती है
खींचने के बाद
एक ही तरीके से
उसे पीटना
आना भी
बहुत जरूरी
माना जाता है
बस
इसी
तस्वीर के
अन्दर
झांंकने पर
आदमी का
घोड़ा हो जाना
और
घोड़े का
ऐनक लगाकर
सीधी
एक लकीर
पर चलते चलते
एक शतरंज
की बिसात में
खड़े वजीर के लिये
फकीर हो जाना
समझ में आना
शुरु हो जाता है
घोड़े
की आँखों में
ऐनक लगाना तो
जरूरी
हो जाता है
उसे रास्ते से
भटकने से
बचाने के लिये
सामने
देखने के लिये
इसी तरह मजबूर
किया जाता है
घोड़े
वफादार भी होते हैं
ऐनक लगी रहती है
दिखायी देती है
वफादारी
देखने के लिये
चश्मा
बना बनाया
बाजार में
नहीं पाया जाता है
जरूरी भी नहीं होता है
खबर में
घोड़ों का
आदमी को काट
खाने का वाकया
छपा हुआ
नजर में नहीं
ही आता है
अजीब बात है
कब आदमी
आदमियों की
भीड़ के बीच में
आँख में
ऐनक लगे घोड़ों से
अपने को
घिरा हुआ होना
महसूस करना
शुरु हो जाता है
कौन होश में है
कौन बेहोश है
कैसे समझ में आये
किस से पूछा जाये
ऐसी बात
कोई सीधे सीधे
जो क्या बताता है
और ‘उलूक’ भी
पता नहीं
आदमी और
घोडों के बीच
एक ऐनक
को लेकर
होश और बेहोश
के पैमाने लेकर
क्या किसलिये
और क्यों नापना
शुरु हो जाता है ?
चित्र साभार: http://lakhtakiyabol.com
गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018
आज कुछ हड्डी की बात थोड़ा चड्डी की बात कुछ कबड्डी की बात
"चिट्ठे ‘उलूक टाइम्स’ तक पहुँचे 18 लाख कदमों के लिये दर्शकों पाठकों और टिप्पणीकारों को दिल से आभार"
किसी को लग रहा है
कबड्डी चल रही है
जी नहीं
ये एक जगह की
बात नहीं है जनाब
देश में
हर गली मोहल्ले में
ध्यान से देखिये जनाब
कान खोलिये नाक खोलिये
आँख खोलिये जनाब
बस एक हड्डी
और
बस हड्डी
चल रही है जनाब
हड्डी चलती है
उसके चल जाने के बाद
कबड्डी चलती है जनाब
कबड्डी किस के बीच में चल रही है
बस यही मत देखिये जनाब
कबड्डी के मैदान के आस पास ढूँढिये
जरूर दिखेगी
कोई ना कोई आपको
हड्डी जनाब
जमाना हड्डियों का है
इशारे से हो रही हैं
छोटे बड़े सारे मैदानों में
कबड्डियाँ जनाब
और
आप का ध्यान
भटक रहा है
बस राजधानी की कबड्डी पर
जा कर अपने आप
हो सकता है
शौक रहा हो आपको भी कभी
कबड्डी का बेहिसाब
खेलने की इच्छा हो रही हो
हो सकती है
भड़क रही हो इसलिये
क्या पता अन्दर की आग
इसीलिए बन भी रही हो
सोचते सोचते सोच की भाप
पकड़ने वाले कर रहे हैं
पकड़ पकड़
खेतों के बीच घुसे हुऐ हैं
बहुत बड़ी बड़ी उगा कर घास
छूट जा रहे हैं
इस सब में नेवलों के हाथों से
पकड़े हुऐ जहरीले साँप
जमाना बदल रहा है
इन्द्रियों बेचारी रह गयी
आप के पास अभी तक पाँच
जागृत करिये छटी इन्द्री
हो सके तो सातवीं और आठवीं भी
बन सको आप भी संजय महाभारत के
माहिर हो कर घर बैठे बैठे लो पैंतरे भाँप
‘उलूक’ क्या देखता है
रात को उठा हुआ
दिन में सोया हुआ
रहने भी दो जनाब
हड्डी हो या चड्डी या कबड्डी
कोई मेल नहीं दिखता
चलने दीजिये
मान कर उसकी
आखें कान नाक हो गयी हैं
बहुत ज्यादा खराब
छोटी सी बात को
करने लगा है बड्डी बड्डी और बड्डी
खेलने के लिये खुद
बातों की कबड्डी जनाब ।
चित्र साभार: http://www.clipartguide.com
मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018
जितनी जोर की टर्र टर्र करेगा टर्राना उतनी दूर से दिखेगा बात है बस ताड़ कर निशाना लगाने की
उदघोषणा जैसे ही हुयी
बरसात के मौसम के जल्दी ही
आने की
मेंंढक दीवाने सारे लग गये तैयारी में
ढूढना शुरु कर दिये दर्जी
अपने अपने
होड़ मच चुकी है नजर आने लगी
पायजामे बिना इजहार के सिलवाने की
टर्र टर्र
दिखने लगी हर जगह
इधर भी उधर भी
आने लगी घर घर से आवाज
करने की रियाज
टर्राने की
फुदकना
शुरु हो गये मेंढक
अपने अपने
मेंढकों को लेकर मेढ़ पर कूओं के
जल्दी मची
दिखने लगी अपनी छोड़
दूसरे की पकड़ नैया पार हो जाने की
कलगी
लग गयी देख कर
कुछ मेढकों के सर पर
दिखने लगे
कुछ नोचते हुऐ बाल अपने
खबर छपनी
शुरु हो गयी अखबारों में
कुछ के बाल नोचने की
कुछ के गंजे हो जाने की
छूटनी शुरु हो गयी पकड़
कुओं की मुडेरों पर अपने
नजर आने लगी
खूबसूरती दूसरों की
नालियों धारों की पाखानों की
बरसात का
भरोसा नहीं
कब बादल चलें कब बरसें
कब
नाचें मोर भूल चुके कब से
जो आदत
अपने पंख फैलाने की
‘उलूक’
छोटे उत्सव मेंढकों के
जरूरी भी हैं
बहुत बड़ी
नहर में तैरने कूदने को जाने की बारी
किस की
आ जाये अगली बरसात
से पहले ही
बात ही तो है
तिकड़म भिड़ाने की
आये तो सही किसी तरह
हिम्मत थोड़ी सी
शरम हया छोड़
हमाम तोड़ कर अपना
कहीं बाहर निकल कर
खुले में नंगा हो जाने की ।
चित्र साभार: https://www.prabhatkhabar.com
सोमवार, 22 अक्तूबर 2018
बकवास करना भी कभी एक नशा हो जाता है अपने लिखे को खुद ही पढ़ कर अन्दाज कहाँ आता है
कहावतें भी समय के साथ बह जाती हैं
चिंता चिता के समान होती होंगी कभी
अब मगर चितायें भी बहा ले जायी जाती हैं
लकड़ियाँ रह भी गयी अगर जलाती नहीं है
बस थोड़ा थोड़ा सा सुलगाती हैं
इसलिये लगा रह चिंता कर
लेकिन कभी कभी बकवास भी पढ़ लिया कर
अंगरेजी में कहते हैं फॉर ए चेंज
बकवास लिखने के कई फायदे जरूर हैं
फिर भी बकवास लिखने के कायदे भी
कुछ हजूर हैं
कुछ हजूर हैं
कभी कोशिश कर के देख ले लिखने की
कोई भी बकवास
देख कर समझ कर कुछ भी
अपने ही अगल बगल अपने ही आसपास
बकवास कभी इतिहास नहीं हो पाती है
ध्यान रहे एक दिन के बाद
दूसरे दिन साँस भी नहीं ले पाती है
कोई देखने नहीं आता है
कोई नहीं
हाँ तो मतलब देखना पड़ता है जो किया जाता है
उसको कितनों के द्वारा नजर के दायरे में लिया जाता है
सोचो जरा
कूड़े के ढेर में कौन कौन सा
किस प्रकार का कैसा कैसा कूड़ा गेरा गया है
कौन इतना ध्यान लगाता है
सारा मिलमिला कर सब एक जैसा
सार्वभौमिक हो जाता है
एक तरह से ईश्वरीय हो जाता है
सर्वव्यापी क्या होता है महसूस करा जाता है
अब सब लोग कूड़ा क्यों देखेंगे भला
अच्छा भी तो बहुत सारा होता है
जिस पर सबका हिस्सा माना जाता है
और जो मिलजुल कर साथ साथ
कूड़े को पाँव के नीचे दबाकर
उँचे स्वर में गाया जाता है
दुर्गंध क्या होती है
जब सड़ाँध है को होने के बावजूद
सर्वसम्मति से नकार दिया जाता है
मतलब इस सब के बीच कोई लिखने में लग जाता है
ऊल जलूल लिखा हुआ किसी को
कविता कहानी जैसा नजर आना शुरु हो जाता है
क्या किया जाये
अंधा लूला लंगड़ा काना
किस दिशा में किस चीज में रंगत देख ले जाये
कौन बता पाता है
अब ‘उलूक’ इस सब के बीच
बकवास करने के धंधें में कब पारंगत हो जाता है
उसे भी तब अन्दाज आता है
जब कोई कहना शुरु कर देता है
अबे तू किसलिये फटे में टाँग अड़ा कर
इतना खिलखिलाता है
सार ये है कि
ठंड रखना सबसे अच्छा हथियार माना जाता है
कुछ दिन चला कर देख ले
कितना मजा आता है ।
***********************************************
कुरेदना राख को उसका
देखिये जनाब बबाल कर गया
देखिये जनाब बबाल कर गया
आग बैठी देखती रह गयी बहुत दूर से
कमाल कर गया ।
***********************************************
कमाल कर गया ।
***********************************************
चित्र साभार: http://www.i2clipart.com
शनिवार, 20 अक्तूबर 2018
मिर्च का धुआँ लगा जोर से छींक नाक कान आँख जरूरी है करना जमाने के हिसाब की अब ठीक
खीज मत
कुछ खींच
मुट्ठियाँ भींच
मूल्य पढ़ा
मौका पा
थोड़ा सा
बेच भी आ
ना कर
पाये व्यक्त
ना दे सके
अभिव्यक्ति
ऐसी निकाल
कुछ युक्ति
मूल्यों के
जाल बना
जालसाजी
मूल्यों का
मूल है पढ़ा
कर फंसा
झूठ पर
कपड़ा चढ़ा
चमकीला दिखा
गाँधी जैसों
की सोच पर
आग लगा
जमाने के
साथ चल
चाँद तारे
पा लेने
के लिये
मचल
औकात कुछ
नहीं होती
मिले तो
ताली पीट
ना मिले
बजा दे
ईंट से ईंट
आराम से
टेक लगा
चंदन टीका
लगा देख कर
नेक बता
आईने
घर के
सारे छिपा
ठेका ले
ईमानदारी की
प्रयोगशाला चला
प्रयोग मत कर
सीधे
परीक्षाफल बता
काला कौआ
देख कर आ
सफेद कबूतर
के आने की
खबर बना
शंका
करे कोई
नाम
बदल दिया
गया है का
सरकारी
आदेश दिखा
‘उलूक’
सब सीधा
चल रहे हैं
अपनी
आँखें
कर ही ले
अब ठीक
नहीं दिखे
अगर सीधे
सब कुछ
थोड़ी देर
उल्टा
लटक कर
कोशिश कर
सही
और सीधा
कभी तो
देख ढीट ।
चित्र साभार: http://shopforclipart.com
कुछ खींच
मुट्ठियाँ भींच
मूल्य पढ़ा
मौका पा
थोड़ा सा
बेच भी आ
ना कर
पाये व्यक्त
ना दे सके
अभिव्यक्ति
ऐसी निकाल
कुछ युक्ति
मूल्यों के
जाल बना
जालसाजी
मूल्यों का
मूल है पढ़ा
कर फंसा
झूठ पर
कपड़ा चढ़ा
चमकीला दिखा
गाँधी जैसों
की सोच पर
आग लगा
जमाने के
साथ चल
चाँद तारे
पा लेने
के लिये
मचल
औकात कुछ
नहीं होती
मिले तो
ताली पीट
ना मिले
बजा दे
ईंट से ईंट
आराम से
टेक लगा
चंदन टीका
लगा देख कर
नेक बता
आईने
घर के
सारे छिपा
ठेका ले
ईमानदारी की
प्रयोगशाला चला
प्रयोग मत कर
सीधे
परीक्षाफल बता
काला कौआ
देख कर आ
सफेद कबूतर
के आने की
खबर बना
शंका
करे कोई
नाम
बदल दिया
गया है का
सरकारी
आदेश दिखा
‘उलूक’
सब सीधा
चल रहे हैं
अपनी
आँखें
कर ही ले
अब ठीक
नहीं दिखे
अगर सीधे
सब कुछ
थोड़ी देर
उल्टा
लटक कर
कोशिश कर
सही
और सीधा
कभी तो
देख ढीट ।
चित्र साभार: http://shopforclipart.com
मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018
गणित की किताब और रोज रोज का रोज पढ़ा रोज का लिखा हिसाब
यूँ ही
पूछ बैठा
गणित
समझते हो
जवाब मिला
नहीं
कभी
पढ़ नहीं पाया
हिसाब
समझते हो
जवाब मिला
वो भी नहीं
गणित में
कमजोर
रहा हमेशा
दिमाग ही
नहीं लगाया
मुझे भी
समझ में
कहाँ
आ पाया
गणित भी
और
हिसाब भी
खुद
गिनता रहा
जिन्दगी भर
बच्चों को
घर पर
सिखाता रहा
पढ़ाना
शुरु किया
वहाँ भी
पीछा नहीं
छुड़ा पाया
गणित से
गजब का
विषय है
गणित
गजब
गणित है
जीवन
का भी
दोनो
गणित हैं
दोनों में
समीकरण हैं
फिर भी
अलग हैं
दोनों
हर तरफ
गणित है
चलने में गणित
भागने में गणित
सोने में गणित
और
जागने में गणित
पर
मजे की बात है
किताब का गणित
बस किताब तक है
हिसाब
का गणित
दिमाग में है
मजबूत गणित
लिखा
नहीं है
कहीं भी
किसी
किताब में
कापी
कलम की
जरूरत ही
नहीं पड़ती है
जरा भी
पर
दिख जाता है
साफ साफ
हर जगह का
हर रंग का
नशे का गणित
बेहोशी का गणित
होश का गणित
पढ़ने का गणित
पढ़ाने का गणित
पढ़वाने का गणित
लिखने का गणित
लिखवाने का गणित
आने का
और
जाने का गणित
बताने का
सिखाने का
समझाने
का गणित
कितना
कितना गणित
कर लेता है आदमी
हर कदम पर
गणित
आगे जाने पर
गणित
पीछे आने का
गणित
इतना गणित
कि पागल
हो जाये किताबें
और
फेल हो जायें
सारे हिसाब
फिर भी
विषय नहीं
लिया होता है
आदमी ने
पढ़ी नहीं
होती है किताब
बस यूँ ही
कर ले जाता है
कितना सारा
बिना
समीकरणों के
समीकरण से
जोड़ता घटाता
समीकरण
फिर भी
जवाब मिलता है
नहीं
कभी पढ़
नहीं पाया
गणित में
कमजोर
रहा हमेशा
‘उलूक’
सुधर जा
अपने
खाली दिमाग
की हवा को
इस तरह
मत हिला
गरम हो
जायेगी तो
फट पड़ेगा
हर कोई
कहने लगेगा
गणित
पढ़ने लगा था
समझने लगा हूँ
समझने लगा था
हट के फितरत से
अपनी किया था
इसलिये फट गया था ।
चित्र साभार: https://drawception.com
पूछ बैठा
गणित
समझते हो
जवाब मिला
नहीं
कभी
पढ़ नहीं पाया
हिसाब
समझते हो
जवाब मिला
वो भी नहीं
गणित में
कमजोर
रहा हमेशा
दिमाग ही
नहीं लगाया
मुझे भी
समझ में
कहाँ
आ पाया
गणित भी
और
हिसाब भी
खुद
गिनता रहा
जिन्दगी भर
बच्चों को
घर पर
सिखाता रहा
पढ़ाना
शुरु किया
वहाँ भी
पीछा नहीं
छुड़ा पाया
गणित से
गजब का
विषय है
गणित
गजब
गणित है
जीवन
का भी
दोनो
गणित हैं
दोनों में
समीकरण हैं
फिर भी
अलग हैं
दोनों
हर तरफ
गणित है
चलने में गणित
भागने में गणित
सोने में गणित
और
जागने में गणित
पर
मजे की बात है
किताब का गणित
बस किताब तक है
हिसाब
का गणित
दिमाग में है
मजबूत गणित
लिखा
नहीं है
कहीं भी
किसी
किताब में
कापी
कलम की
जरूरत ही
नहीं पड़ती है
जरा भी
पर
दिख जाता है
साफ साफ
हर जगह का
हर रंग का
नशे का गणित
बेहोशी का गणित
होश का गणित
पढ़ने का गणित
पढ़ाने का गणित
पढ़वाने का गणित
लिखने का गणित
लिखवाने का गणित
आने का
और
जाने का गणित
बताने का
सिखाने का
समझाने
का गणित
कितना
कितना गणित
कर लेता है आदमी
हर कदम पर
गणित
आगे जाने पर
गणित
पीछे आने का
गणित
इतना गणित
कि पागल
हो जाये किताबें
और
फेल हो जायें
सारे हिसाब
फिर भी
विषय नहीं
लिया होता है
आदमी ने
पढ़ी नहीं
होती है किताब
बस यूँ ही
कर ले जाता है
कितना सारा
बिना
समीकरणों के
समीकरण से
जोड़ता घटाता
समीकरण
फिर भी
जवाब मिलता है
नहीं
कभी पढ़
नहीं पाया
गणित में
कमजोर
रहा हमेशा
‘उलूक’
सुधर जा
अपने
खाली दिमाग
की हवा को
इस तरह
मत हिला
गरम हो
जायेगी तो
फट पड़ेगा
हर कोई
कहने लगेगा
गणित
पढ़ने लगा था
समझने लगा हूँ
समझने लगा था
हट के फितरत से
अपनी किया था
इसलिये फट गया था ।
चित्र साभार: https://drawception.com
शनिवार, 13 अक्तूबर 2018
धरम बिना आवाज का कैसा होता है रे तेरा कैसे बिना शोर करे तू धार्मिक हो जाता है
किसलिये
खोलता है
खुद ही
हमेशा
अपनी पोल
तेरी सोच में
और
तुझमें भी हैं
ना जाने
कितने झोल
दुनियाँ पढ़
दुनियाँ लिख
कभी
बक बक छोड़
दुनियाँ सोच
की आँखें खोल
पण्डित है
सुना है
पण्डिताई
तक नहीं
दिखला
पाता है
घर के
मन्दिर के
अन्दर कहीं
पूजा करवाता है
बाहर किसी
मन्दिर को
जाता हुआ
नजर नहीं
आता है
गणपति
पूजा के
ढोल नगाढ़े
पड़ोसी एक
एक और एक
ग्यारह दिन तक
अपने घर में
बजवा जाता है
कान में
ठूस कर रूई
इतने दिन
पता नहीं
अपने घर के
किस कोने में
तू घुस जाता है
दशहरा आता है
राम की लीला
शुरु होती है
दुर्गा का पण्डाल
घर की छत से
नजर आता है
सोने की जरूरत
खत्म हो जाती है
सुबह
पौ फटते ही
फटी आवाज
का एक मंत्र
अलार्म
हो जाता है
सारा
मोहल्ला
जा जा कर
भजनों में
भाग लगाता है
तू
फिर अपने
कानों में
अंगुली ठूसे
घर के किसी
कमरे में
चक्कर
लगाता है
कोरट
कचहरी
में भी शायद
होता होगा
तेरा जैसा ही
कोई बेवकूफ
हल्ला गुल्ला
शोर शराबे पर
कानून बना कर
थाने थाने
भिजवाता है
भक्ति पर जोर
कहाँ चलता है
जोर लगा कर
हईशा के साथ
भगतों का रेला
ऐसे कागजों में
मूँगफली
बेच जाता है
कैसी तेरी पूजा
कैसी तेरी भक्ति
'उलूक'
कहीं भी तेरी
पूजा का भोंपू
किसी को
नजर नहीं
आता है
बिना
आवाज करे
बिना नींद
हराम करे
जमाने की
कैसे
तू ऊपर
वाले को
मक्खन
लगा कर
चुपचाप
किनारे से
निकल जाता है
समझ में
नहीं आता है
पूजा
करने वाला
ढोल नगाड़े
भोंपू के बिना
कैसे ईश्वर को
पा जाता है
और
समझ में
आता है
किसलिये
तू कभी भी
हिन्दू नहीं
हो पाता है ।
चित्र साभार: https://www.hindustantimes.com/mumbai-news/noise-can-make-you-deaf-this-diwali-turn-a-deaf-ear-to-noise/
खोलता है
खुद ही
हमेशा
अपनी पोल
तेरी सोच में
और
तुझमें भी हैं
ना जाने
कितने झोल
दुनियाँ पढ़
दुनियाँ लिख
कभी
बक बक छोड़
दुनियाँ सोच
की आँखें खोल
पण्डित है
सुना है
पण्डिताई
तक नहीं
दिखला
पाता है
घर के
मन्दिर के
अन्दर कहीं
पूजा करवाता है
बाहर किसी
मन्दिर को
जाता हुआ
नजर नहीं
आता है
गणपति
पूजा के
ढोल नगाढ़े
पड़ोसी एक
एक और एक
ग्यारह दिन तक
अपने घर में
बजवा जाता है
कान में
ठूस कर रूई
इतने दिन
पता नहीं
अपने घर के
किस कोने में
तू घुस जाता है
दशहरा आता है
राम की लीला
शुरु होती है
दुर्गा का पण्डाल
घर की छत से
नजर आता है
सोने की जरूरत
खत्म हो जाती है
सुबह
पौ फटते ही
फटी आवाज
का एक मंत्र
अलार्म
हो जाता है
सारा
मोहल्ला
जा जा कर
भजनों में
भाग लगाता है
तू
फिर अपने
कानों में
अंगुली ठूसे
घर के किसी
कमरे में
चक्कर
लगाता है
कोरट
कचहरी
में भी शायद
होता होगा
तेरा जैसा ही
कोई बेवकूफ
हल्ला गुल्ला
शोर शराबे पर
कानून बना कर
थाने थाने
भिजवाता है
भक्ति पर जोर
कहाँ चलता है
जोर लगा कर
हईशा के साथ
भगतों का रेला
ऐसे कागजों में
मूँगफली
बेच जाता है
कैसी तेरी पूजा
कैसी तेरी भक्ति
'उलूक'
कहीं भी तेरी
पूजा का भोंपू
किसी को
नजर नहीं
आता है
बिना
आवाज करे
बिना नींद
हराम करे
जमाने की
कैसे
तू ऊपर
वाले को
मक्खन
लगा कर
चुपचाप
किनारे से
निकल जाता है
समझ में
नहीं आता है
पूजा
करने वाला
ढोल नगाड़े
भोंपू के बिना
कैसे ईश्वर को
पा जाता है
और
समझ में
आता है
किसलिये
तू कभी भी
हिन्दू नहीं
हो पाता है ।
चित्र साभार: https://www.hindustantimes.com/mumbai-news/noise-can-make-you-deaf-this-diwali-turn-a-deaf-ear-to-noise/
गुरुवार, 11 अक्तूबर 2018
फुरसत की फितरत में ही नहीं होती है फुरसत फितरत और फुरसत से साहित्य भी नहीं बनता है
दिल होता है
किसी का भी हो
होना भी चाहिये
फुरसत से
कभी फुरसत
लिख लेने का
मगर
फुरसत है
कि मिलती
ही नहीं है कभी
फुरसत से
फुरसत की
फितरत में
नहीं होती है
फुरसत
फितरत
मतलब
सयानापन
फितरत
मतलब
मक्कारी
फितरत
मतलब
चतुराई भी
होता है
फुरसत
सयानी
कहाँ
हो पाती है
फुरसत
चतुर होती तो
फुरसत
ही फुरसत होती
कहा जा सकता है
मक्कारों
के कारण
फुरसत
नहीं होती है
माना
जा सकता है
कुछ नहीं
कुछ लोग
कुछ
नहीं होते हैं
कुछ नहीं
कर पाते हैं
अखबारों में
नहीं आ पाते हैं
बेकार
टाईप के
ऐसे लोग
लोगों को
फुरसत से
कुछ लोगों
के द्वारा
समझाये
जाते हैं
पूरा देश
चल रहा है
फुरसतियों से
वहाँ भी हैं
और
यहाँ भी हैं
सब
फुरसत से हैं
बस ‘उलूक’
बैठा रहता है
इन्तजार में
शायद कभी
फुरसत
हो जाये
और
फुरसत से
कुछ
फुरसत पर
कहा जाये
पर
पर फुरसत
ना अमिताभ
बच्चन है
ना करोड़पति
बनाने की मशीन
फुरसत
सपना है
एक
भिखारी का
बिना कटोरा
भरे
होने का
सपने
फुरसत के
बहते हुऐ ।
चित्र साभार: http://weclipart.com
किसी का भी हो
होना भी चाहिये
फुरसत से
कभी फुरसत
लिख लेने का
मगर
फुरसत है
कि मिलती
ही नहीं है कभी
फुरसत से
फुरसत की
फितरत में
नहीं होती है
फुरसत
फितरत
मतलब
सयानापन
फितरत
मतलब
मक्कारी
फितरत
मतलब
चतुराई भी
होता है
फुरसत
सयानी
कहाँ
हो पाती है
फुरसत
चतुर होती तो
फुरसत
ही फुरसत होती
कहा जा सकता है
मक्कारों
के कारण
फुरसत
नहीं होती है
माना
जा सकता है
कुछ नहीं
कुछ लोग
कुछ
नहीं होते हैं
कुछ नहीं
कर पाते हैं
अखबारों में
नहीं आ पाते हैं
बेकार
टाईप के
ऐसे लोग
लोगों को
फुरसत से
कुछ लोगों
के द्वारा
समझाये
जाते हैं
पूरा देश
चल रहा है
फुरसतियों से
वहाँ भी हैं
और
यहाँ भी हैं
सब
फुरसत से हैं
बस ‘उलूक’
बैठा रहता है
इन्तजार में
शायद कभी
फुरसत
हो जाये
और
फुरसत से
कुछ
फुरसत पर
कहा जाये
पर
पर फुरसत
ना अमिताभ
बच्चन है
ना करोड़पति
बनाने की मशीन
फुरसत
सपना है
एक
भिखारी का
बिना कटोरा
भरे
होने का
सपने
फुरसत के
बहते हुऐ ।
चित्र साभार: http://weclipart.com
बुधवार, 3 अक्तूबर 2018
पागलों को पागल बनाइये आदमी बने कोई इससे पहले इंसानियत कूएं में रख कर आइये
अपनी
अपने घर की
अपने आसपास के
ढोल की
पोल छिपाइये
कहीं दूर
बहुत दूर से
फटे गद्दे रजाई के
खोल ढूँढ कर लाइये
फोटो खींचिये
धूप
अगरबत्ती दिखाइये
दूर बैठे
मुच्छड़ सूबेदार
की बन्दूक
के गरजने
की आवाज
सुनाइये
पास में
घूम रहे उसके
आवारा कुत्तों की
लगातार
हिल रही पूँछों को
फैलाने का
जुगाड़ लगाइये
बेवकूफ
मान लीजिये सबको
खुद को छोड़ कर
बेसुरी
आवाज में
बेसुरा गाइये
लाईन
में लगे हुऐ
अपनी तरह के
ढपोर शंखों
की सेना से
बिगुल बजवाइये
चमगादड़
बन जाइये
उल्टा लटकने को
सीधा बताइये
सीधे को
उल्टा समझाइये
कुछ भी करिये
अपने
गली मोहल्ले की
तस्वीर ज्यादा दूर
पहुँचने से बचाइये
ऊपर दूर
कहीं के चाँद के
सपने दिखाइये
हो सके तो
और दूर मंगल
तक भी ले जाइये
इससे
ज्यादा कर सकें तो
अगली आकाश ग़ंगा
को खोजने के
राकेट में बैठा
कर चले आइये
रात में
देखने वाले
‘उलूक’ को
उजाले की तस्वीर
ला लाकर दिखाइये
चुपचाप
बैठे हुओं को
किसी तरह
चिल्लाने
के लिये भड़काइये
शोर
खत्म हो
इक तमाशे का
उस से पहले
एक और झोपड़ी में
जा कर दियासलाई
लगा कर आइये।
चित्र साभार: http://sucai.redocn.com
अपने घर की
अपने आसपास के
ढोल की
पोल छिपाइये
कहीं दूर
बहुत दूर से
फटे गद्दे रजाई के
खोल ढूँढ कर लाइये
फोटो खींचिये
धूप
अगरबत्ती दिखाइये
दूर बैठे
मुच्छड़ सूबेदार
की बन्दूक
के गरजने
की आवाज
सुनाइये
पास में
घूम रहे उसके
आवारा कुत्तों की
लगातार
हिल रही पूँछों को
फैलाने का
जुगाड़ लगाइये
बेवकूफ
मान लीजिये सबको
खुद को छोड़ कर
बेसुरी
आवाज में
बेसुरा गाइये
लाईन
में लगे हुऐ
अपनी तरह के
ढपोर शंखों
की सेना से
बिगुल बजवाइये
चमगादड़
बन जाइये
उल्टा लटकने को
सीधा बताइये
सीधे को
उल्टा समझाइये
कुछ भी करिये
अपने
गली मोहल्ले की
तस्वीर ज्यादा दूर
पहुँचने से बचाइये
ऊपर दूर
कहीं के चाँद के
सपने दिखाइये
हो सके तो
और दूर मंगल
तक भी ले जाइये
इससे
ज्यादा कर सकें तो
अगली आकाश ग़ंगा
को खोजने के
राकेट में बैठा
कर चले आइये
रात में
देखने वाले
‘उलूक’ को
उजाले की तस्वीर
ला लाकर दिखाइये
चुपचाप
बैठे हुओं को
किसी तरह
चिल्लाने
के लिये भड़काइये
शोर
खत्म हो
इक तमाशे का
उस से पहले
एक और झोपड़ी में
जा कर दियासलाई
लगा कर आइये।
चित्र साभार: http://sucai.redocn.com
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018
फिर से एक नया साल बापू एक और दो अक्टूबर बीत गया
बापू
फिर
टकराये हम
फिर
पता चला
एक साल
और ऐवें
ही बीत गया
समझ में
आ गयी
हों जैसे
फिर से
कुछ
और बातें
फिर से
हुऐ
कुछ भ्रम
जैसे खुद
गोल किया हो
अपने गोल पर
और
महसूस
साथ में किया
जीत गया
बापू
छोटी
छोटी बातें
दुनियाँ की
दुनियाँदारी की
लगता है
धीरे धीरे
अब
पूरा का पूरा
मन भीग गया
देखना
खुद का खुद से
ठीक नहीं
देख रहे हों
सब
जो कुछ
कुछ कुछ
देखना
लगता है
अब तो
सीख गया
बापू
पढ़ते
पढ़ते तुझको
दिखा
नहीं जमाना
बगल से
निकल
दूर कहीं
लिख चुका
कोई
धुन नयी
कोई
गीत नया
सीखा
नाच जीवन का
रख कर कदम
तेरे कदमों पर
जितना भी
नाँच ना जाने
आँगन टेढ़ा
सुनकर
नयी पौंध से
सारा
सब कुछ
जैसे रीत गया
एक पूरी
एक आधी सदी
का पैमाना बापू
सारी
दुनियाँ ने देखा
सोचा और समझा
ढाला
कुछ कुछ
जीवन में अपने
पूरब
लेकर
पश्चिम को
जैसे प्रीत गया
अपने
अन्दर के सच
ढक लेने का
हथियार बापू
अपना
खुद का सच
दुनियाँ की
आखों में
झोंकने
के लिये
झूठ नया
‘उलूक’
एक सौ
पचास साल
की
मेहनत पर
कोई आकर
कुछ दिन में
कितना कितना
गोबर लीप गया ।
चित्र साभार: http://devang-home.blogspot.com
फिर
टकराये हम
फिर
पता चला
एक साल
और ऐवें
ही बीत गया
समझ में
आ गयी
हों जैसे
फिर से
कुछ
और बातें
फिर से
हुऐ
कुछ भ्रम
जैसे खुद
गोल किया हो
अपने गोल पर
और
महसूस
साथ में किया
जीत गया
बापू
छोटी
छोटी बातें
दुनियाँ की
दुनियाँदारी की
लगता है
धीरे धीरे
अब
पूरा का पूरा
मन भीग गया
देखना
खुद का खुद से
ठीक नहीं
देख रहे हों
सब
जो कुछ
कुछ कुछ
देखना
लगता है
अब तो
सीख गया
बापू
पढ़ते
पढ़ते तुझको
दिखा
नहीं जमाना
बगल से
निकल
दूर कहीं
लिख चुका
कोई
धुन नयी
कोई
गीत नया
सीखा
नाच जीवन का
रख कर कदम
तेरे कदमों पर
जितना भी
नाँच ना जाने
आँगन टेढ़ा
सुनकर
नयी पौंध से
सारा
सब कुछ
जैसे रीत गया
एक पूरी
एक आधी सदी
का पैमाना बापू
सारी
दुनियाँ ने देखा
सोचा और समझा
ढाला
कुछ कुछ
जीवन में अपने
पूरब
लेकर
पश्चिम को
जैसे प्रीत गया
अपने
अन्दर के सच
ढक लेने का
हथियार बापू
अपना
खुद का सच
दुनियाँ की
आखों में
झोंकने
के लिये
झूठ नया
‘उलूक’
एक सौ
पचास साल
की
मेहनत पर
कोई आकर
कुछ दिन में
कितना कितना
गोबर लीप गया ।
चित्र साभार: http://devang-home.blogspot.com
शनिवार, 29 सितंबर 2018
निशान किये कराये के कहीं दिखाये नहीं जाते हैं
शेर
होते नहीं हैं
शायर
समझ नहीं पाते हैं
कुछ इशारे
गूँगों के समझ में
नहीं आते हैं
नदी
होते नहीं हैं
समुन्दर
पहुँच नहीं पाते हैं
कुछ घड़े
लबालब भरे
प्यास नहीं बुझाते हैं
पढ़े
होते नहीं हैं
पंडित
नहीं कहलाते हैं
कुछ
गधे तगड़े
धोबी के
हाथ नहीं आते हैं
अंधे
होते नहीं हैं
सच
देखने नहीं जाते हैं
कुछ
आँख वाले
रोशनी में
चल नहीं पाते हैं
अर्थ
होते नहीं हैं
मतलब
निकल नहीं पाते हैं
कुछ भी
लिखने वाले को
पढ़ने नहीं जाते हैं
काम
करते नहीं हैं
हरामखोर
बताये नहीं जाते हैं
कुछ
शरीफों के
समाचार
बनाये नहीं जाते हैं
लिखते
कुछ नहीं हैं
पढ़ने
नहीं जाते हैं
करते
चले चलते हैं
बहुत कुछ
‘उलूक’
निशान
किये कराये के
दिखाये नहीं जाते हैं ।
चित्र साभार: www.fotolia.com
होते नहीं हैं
शायर
समझ नहीं पाते हैं
कुछ इशारे
गूँगों के समझ में
नहीं आते हैं
नदी
होते नहीं हैं
समुन्दर
पहुँच नहीं पाते हैं
कुछ घड़े
लबालब भरे
प्यास नहीं बुझाते हैं
पढ़े
होते नहीं हैं
पंडित
नहीं कहलाते हैं
कुछ
गधे तगड़े
धोबी के
हाथ नहीं आते हैं
अंधे
होते नहीं हैं
सच
देखने नहीं जाते हैं
कुछ
आँख वाले
रोशनी में
चल नहीं पाते हैं
अर्थ
होते नहीं हैं
मतलब
निकल नहीं पाते हैं
कुछ भी
लिखने वाले को
पढ़ने नहीं जाते हैं
काम
करते नहीं हैं
हरामखोर
बताये नहीं जाते हैं
कुछ
शरीफों के
समाचार
बनाये नहीं जाते हैं
लिखते
कुछ नहीं हैं
पढ़ने
नहीं जाते हैं
करते
चले चलते हैं
बहुत कुछ
‘उलूक’
निशान
किये कराये के
दिखाये नहीं जाते हैं ।
चित्र साभार: www.fotolia.com
सोमवार, 24 सितंबर 2018
बेकार की ताकत फालतू में लगाकर रोने के लिये यहाँ ना आयें
पता नहीं
ये मौके
फिर
कभी और
हाथ में आयें
चलो
कुछ भटके
हुओं को
कुछ और
भटकायें
कुछ
शरीफ से
इतिहास
पन्नों में
लिख कर लायें
बेशरम सी
पुरानी
किताबों को
गंगा में
धो कर के आयेंं
करना कराना
बदसूरत सा
अपना ना बतायें
खूबसूरत तस्वीरें
लाकर गलियों
में फेंक आयें
अच्छा लिखा
अच्छे आदमी
अच्छी
महफिल सजायें
तस्वीरें
झूठी समय की
समय की
नावों में रख
कर के तैरायें
अपने थाने
अपने थानेदार
अपने गुनाह
सब भुनायें
कल बदलती
है तस्वीर
थोड़ा उधर
को चले जायें
मुखौटे ओढ़ें नहीं
बस मुखौटे
ही खुद हो जायें
आधार पर
आधार चढ़ा कर
आधार हो जायें
मौज में
लिखे को
समझने के
लिये ना आयें
सारी बातें
सीधे सीधे
लिखकर
बतायें
‘उलूक’
जैसों की
बकबक को
किनारे लगायें
सच
का मातम
मनाना भी
किसलिये
खुश होकर
मिलकर
झूठ का
झंडा फहरायें ।
चित्र साभार: https://www.colourbox.com/
ये मौके
फिर
कभी और
हाथ में आयें
चलो
कुछ भटके
हुओं को
कुछ और
भटकायें
कुछ
शरीफ से
इतिहास
पन्नों में
लिख कर लायें
बेशरम सी
पुरानी
किताबों को
गंगा में
धो कर के आयेंं
करना कराना
बदसूरत सा
अपना ना बतायें
खूबसूरत तस्वीरें
लाकर गलियों
में फेंक आयें
अच्छा लिखा
अच्छे आदमी
अच्छी
महफिल सजायें
तस्वीरें
झूठी समय की
समय की
नावों में रख
कर के तैरायें
अपने थाने
अपने थानेदार
अपने गुनाह
सब भुनायें
कल बदलती
है तस्वीर
थोड़ा उधर
को चले जायें
मुखौटे ओढ़ें नहीं
बस मुखौटे
ही खुद हो जायें
आधार पर
आधार चढ़ा कर
आधार हो जायें
मौज में
लिखे को
समझने के
लिये ना आयें
सारी बातें
सीधे सीधे
लिखकर
बतायें
‘उलूक’
जैसों की
बकबक को
किनारे लगायें
सच
का मातम
मनाना भी
किसलिये
खुश होकर
मिलकर
झूठ का
झंडा फहरायें ।
चित्र साभार: https://www.colourbox.com/
रविवार, 23 सितंबर 2018
श्रद्धांजलि डाo शमशेर सिंह बिष्ट
1947- 22/09/2018 |
शब्द
नहीं होते हैं
सब कुछ
बताने के लिये
किसी के बारे में
थोड़ा
कम पड़ जाते हैं
थोड़े से
कुछ लोग
भीड़ में
होते हुऐ भी
भीड़
नहीं हो जाते हैं
समुन्दर के
पानी में
मिल चुकी
बूँद
होने के
बावजूद भी
दूर से
पहचाने जाते हैं
जिंदगी भर
जन सरोकारों
के लिये
संघर्ष करने
वालों के चेहरे ही
कुछ
अलग हो जाते हैं
अपने
मतलब के लिये
भीड़ खरीद/
बेच/ जुटा कर
कहीं से कहीं
पहुँच जाने वाले
नहीं पा सकते हैं
वो मुकाम
जो
कुछ लोग
अपनी सोच
अपने सत्कर्मों से
अपनी बीनाई
से पा जाते हैं
एक
शख्सियत
यूँ ही नहीं
खींचती है
किसी को
किसी
की तरफ
थोड़े से
लोग ही
होते हैं
कुछ अलग
बस
अपने लिये
नहीं जीने
वाले
ऐसे ही लोग
जब
महफिल से
अचानक
उठ कर
चले जाते हैं
सरकारी
अखबार
वालों को भी
कुछ
लिखने लिखाने
की याद
दिला कर जाते हैं
बहुत कमी
खलेगी आपकी
'डा0 शमशेर सिंह बिष्ट'
कुछ
सरोकार
रखने वालों
को हमेशा
अल्विदा नमन
विनम्र श्रद्धांजलि
‘उलूक’
कुछ लोग
बना ही
जाते हैं
कुछ रास्ते
अलग से
जिसपर
सोचने वाले
सरोकारी
हमेशा ही
आने वाले
समय में
आते हैं
और जाते हैं ।
गुरुवार, 20 सितंबर 2018
चूहों से बचाने के लिये बहुत कुछ को थोड़े कुछ को कुछ चूहों पर दाँव पर लगाना ही होता है
होता है
निगाहें
कहीं और
को लगी होती हैं
और
निशाना
कहीं और को
लगा होता है
इस
सब के लिये
आँखों का
सेढ़ा होना
जरूरी
नहीं होता है
ये भी होता है
बकवास को
पढ़ना नहीं होता है
बढ़ती
आवत जावत
की घड़ी की सूईं
पढ़ने पढ़ाने का
पैमाना नहीं होता है
ये मजबूरी होता है
हरी भरी
कविताओं से भरी
क्यारियों के बीच में
पनपती हुयी भुर भुरी
खरपतवार को
उखाड़ने के लिये
ध्यान देना
बहुत जरूरी होता है
इसे होना होता है
देर रात
सड़क पर
दल बल सहित
निकले पहरेदार को
सायरन
बजाना ही होता है
किनारे हो लो
जहाँ भी हो
सेंध में लगे
चोर भाईयों को
सन्देश दूर से
पहुँचाना होता है
ये जरूरी होता है
ज्यादा चूहों से
अनाज को
बचाने के लिये
दिमाग
लगाना होता है
कुछ चूहों की
एक समीति बनाकर
सारे अनाज को
उनकी देखरेख में
थोड़ा थोड़ा कर
कुतरवाना होता है
इसका
कुछ नहीं होता है
गाय की तरह
बातों की घास को
दिनभर निगल कर
‘उलूक’ ने
रातभर
जुगाली
करने में
बिताना ही
होता है।
चित्र साभार: https://www.deviantart.com
निगाहें
कहीं और
को लगी होती हैं
और
निशाना
कहीं और को
लगा होता है
इस
सब के लिये
आँखों का
सेढ़ा होना
जरूरी
नहीं होता है
ये भी होता है
बकवास को
पढ़ना नहीं होता है
बढ़ती
आवत जावत
की घड़ी की सूईं
पढ़ने पढ़ाने का
पैमाना नहीं होता है
ये मजबूरी होता है
हरी भरी
कविताओं से भरी
क्यारियों के बीच में
पनपती हुयी भुर भुरी
खरपतवार को
उखाड़ने के लिये
ध्यान देना
बहुत जरूरी होता है
इसे होना होता है
देर रात
सड़क पर
दल बल सहित
निकले पहरेदार को
सायरन
बजाना ही होता है
किनारे हो लो
जहाँ भी हो
सेंध में लगे
चोर भाईयों को
सन्देश दूर से
पहुँचाना होता है
ये जरूरी होता है
ज्यादा चूहों से
अनाज को
बचाने के लिये
दिमाग
लगाना होता है
कुछ चूहों की
एक समीति बनाकर
सारे अनाज को
उनकी देखरेख में
थोड़ा थोड़ा कर
कुतरवाना होता है
इसका
कुछ नहीं होता है
गाय की तरह
बातों की घास को
दिनभर निगल कर
‘उलूक’ ने
रातभर
जुगाली
करने में
बिताना ही
होता है।
चित्र साभार: https://www.deviantart.com
मंगलवार, 18 सितंबर 2018
तू समझ तू मत समझ राम समझ रहे हैं उनकी किसलिये और क्यों अब कहीं भी नहीं चल पा री
मानना
तो
पड़ेगा ही
इसको
उसको
ही नहीं
पूरे
विश्व को
तुझे
किसलिये
परेशानी
हो जा री
टापू से
दूरबीन
पकड़े
कहीं दूर
आसमान में
देखते हुऐ
एक गुरु को
और
बाढ़ में
बह रहे
मुस्कुराते हुऐ
उस गुरु के
शिष्य को
जब
शरम नहीं
थोड़ा सा
भी आ री
एक
बुद्धिजीवी
के भी
समझ में
नहीं आती हैंं
बातें
बहुत सारी
उसे ही
क्यों
सोचना है
उसे ही
क्यों
देखना है
और
उसे ही
क्यों
समझना है
उस
बात को
जिसको
उसके
आसपास
हो रहे पर
जब
सारी जनता
कुछ भी
नहीं कहने को
कहीं भी
नहीं जा री
चिढ़ क्यों
लग रही है
अगर
कह दिया
समझ में
आता है
डी ए की
किश्त इस बार
क्यों और
किसलिये
इतनी
देर में आ री
समझ तो
मैं भी रहा हूँ
बस
कह कुछ
नहीं रहा हूँ
तू भी
मत कह
तेरे कहने
करने से
मेरी तस्वीर
समाज में
ठीक नहीं
जा पा री
कहना
पड़ता है
तेरी
कही बातें
इसीलिये
मेरी समझ
में कभी भी
नहीं आ री
‘उलूक’
बेवकूफ
उजड़ने के
कगार पर
किसलिये
और
क्यों बैठ
जाता होगा
किसी शाख
पर जाकर
गुलिस्ताँ के
जहाँ बैठे
सारे उल्लुओं
के लिये
एक आदमी
की सवारी
राम जी की
सवारी हो जा री ।
चित्र साभार: https://store.skeeta.biz
तो
पड़ेगा ही
इसको
उसको
ही नहीं
पूरे
विश्व को
तुझे
किसलिये
परेशानी
हो जा री
टापू से
दूरबीन
पकड़े
कहीं दूर
आसमान में
देखते हुऐ
एक गुरु को
और
बाढ़ में
बह रहे
मुस्कुराते हुऐ
उस गुरु के
शिष्य को
जब
शरम नहीं
थोड़ा सा
भी आ री
एक
बुद्धिजीवी
के भी
समझ में
नहीं आती हैंं
बातें
बहुत सारी
उसे ही
क्यों
सोचना है
उसे ही
क्यों
देखना है
और
उसे ही
क्यों
समझना है
उस
बात को
जिसको
उसके
आसपास
हो रहे पर
जब
सारी जनता
कुछ भी
नहीं कहने को
कहीं भी
नहीं जा री
चिढ़ क्यों
लग रही है
अगर
कह दिया
समझ में
आता है
डी ए की
किश्त इस बार
क्यों और
किसलिये
इतनी
देर में आ री
समझ तो
मैं भी रहा हूँ
बस
कह कुछ
नहीं रहा हूँ
तू भी
मत कह
तेरे कहने
करने से
मेरी तस्वीर
समाज में
ठीक नहीं
जा पा री
कहना
पड़ता है
तेरी
कही बातें
इसीलिये
मेरी समझ
में कभी भी
नहीं आ री
‘उलूक’
बेवकूफ
उजड़ने के
कगार पर
किसलिये
और
क्यों बैठ
जाता होगा
किसी शाख
पर जाकर
गुलिस्ताँ के
जहाँ बैठे
सारे उल्लुओं
के लिये
एक आदमी
की सवारी
राम जी की
सवारी हो जा री ।
चित्र साभार: https://store.skeeta.biz
शुक्रवार, 14 सितंबर 2018
कितनी छलक गयी कितनी जमा हुई बूँदें बारिश की कुछ गिनी गयी कुछ गिनते गिनते भी यूँ ही कहीं और ही रह गयी
कितनी
शरमा
शरमी से
यहाँ तक
पहुँच ही गयी
कितनी
बेशरमी से
कहीं बीच में
ही छूट गयी
कुछ
कबाड़ सी
महसूस हुयी
फाड़ कर
बेखुदी में
फेंक भी
दी गयी
कुछ
पहाड़ सी
कही
जानी ही थी
बहुत
भारी हो गयी
कही ही नहीं गयी
कुछ
आधी अधूरी सी
रोज की आवारा
जिन्दगी सी
पिये
खायी हुयी सी
किसी कोने में
उनींदी हो
लुढ़क ही गयी
खुले
पन्ने में
सामने से
फिलम की
खाली एक रील
एक नहीं
कई बार
खाली खाली ही
खाली चलती
ही चली गयी
कहाँ
जरूरी है
सब कुछ
वही कहना
जो दिखे
बाहर बाजार
में बिकता हुआ
रोज का रोज
‘उलूक’
किसी दिन
आँखें बन्द
कर के
झाँक भी
लिया कर
अपनी ही
बन्द
खिड़कियों
की दरारों के पार
कभी
छिर के गयी
थोड़ी सी रोशनी
अभी तक
बची भी है
या
यूँ ही
देखी
अनदेखी में
बुझ भी गयी।
चित्र साभार: https://wewanttolearn.wordpress.com
शरमा
शरमी से
यहाँ तक
पहुँच ही गयी
कितनी
बेशरमी से
कहीं बीच में
ही छूट गयी
कुछ
कबाड़ सी
महसूस हुयी
फाड़ कर
बेखुदी में
फेंक भी
दी गयी
कुछ
पहाड़ सी
कही
जानी ही थी
बहुत
भारी हो गयी
कही ही नहीं गयी
कुछ
आधी अधूरी सी
रोज की आवारा
जिन्दगी सी
पिये
खायी हुयी सी
किसी कोने में
उनींदी हो
लुढ़क ही गयी
खुले
पन्ने में
सामने से
फिलम की
खाली एक रील
एक नहीं
कई बार
खाली खाली ही
खाली चलती
ही चली गयी
कहाँ
जरूरी है
सब कुछ
वही कहना
जो दिखे
बाहर बाजार
में बिकता हुआ
रोज का रोज
‘उलूक’
किसी दिन
आँखें बन्द
कर के
झाँक भी
लिया कर
अपनी ही
बन्द
खिड़कियों
की दरारों के पार
कभी
छिर के गयी
थोड़ी सी रोशनी
अभी तक
बची भी है
या
यूँ ही
देखी
अनदेखी में
बुझ भी गयी।
चित्र साभार: https://wewanttolearn.wordpress.com
सदस्यता लें
संदेश (Atom)