उलूक टाइम्स

बुधवार, 12 सितंबर 2018

'उलूक’ तख़ल्लुस है



साहित्यकार कथाकार कवि मित्र 
फरमाते हैं 

भाई 
क्या लिखते हो 
क्या कहना चाहते हो 
समझ में ही नहीं आता है 

कई बार तो 
पूरा का पूरा 
सर के ऊपर से 
हवा सा निकल जाता है 

और 
दूसरी बला 
ये ‘उलूक’ लगती है 
बहुत बार नजर आता है 

है क्या 
ये ही पता नहीं चल पाता है 

हजूर 

साहित्यकार अगर 
बकवास समझना शुरु हो जायेगा 
तो उसके पास फिर क्या कुछ रह जायेगा 

‘उलूक’ तखल्लुस है 
कई बार बताया गया है 
नजरे इनायत होंगी आपकी 
तो समझ में आपके जरूर आ जायेगा 

इस ‘उलूक’ के भी 
बहुत कुछ समझ में नहीं आता है 

किताब में 
कुछ लिखता है लिखने वाला 
पढ़ाने वही कुछ और 
और समझाने 
कुछ और ही चला आता है 

इस 
उल्लू के पट्ठे के दिमाग में 
गोबर भी नहीं है लगता है 

हवा में 
लिखा लिखाया 
कहाँ कभी टिक पाता है 

देखता है 
सामने सामने से होता हुआ 
कुछ ऊटपटाँग सा 

अखबार में 
उस कुछ को ही 
कोई
आसपास 
का सम्मानित
ही 
भुनाता हुआ नजर आता है 

ऐसा बहुत कुछ 
जो समझ में नहीं आता है 

उसे ही 
इस सफेद श्यामपट पर 
कुछ अपनी 
उलझी हुई लकीर जैसा बना कर 
रख कर चला जाता है 

हजूर

आपका 
कोई दोष नहीं है 

सामने से 
फैला गया हो 
कोई दूध या दही 

किसी को 
शुभ संदेश 
और किसी को 
अपशकुन नजर आता है 

आँखें 
सबकी एक सी 
देखना सबका एक सा 

बस
यही 
अन्तर होता है 

कौन
क्या चीज 
क्यों और किस तरह से देखना चाहता है 

‘उलूक’ ने 
लिखना है लिखता रहेगा 
जिसे करना है करता रहेगा 

इस देश में 
किसी के बाप का कुछ नहीं जाता है 

होनी है जो होती है 
उसे अपने अपने पैमाने से नाप लिया जाता है 

जो जिसे 
समझना होता है 
वो कहीं नहीं भी लिखा हो 
तब भी समझ में आ जाता है

'उलूक’
तख़ल्लुस  है 

कवि नहीं है 
कविता लिखने नहीं आता है 

जो उसे 
समझ में नहीं आता है 
बस उसे
बेसुरा गाना शुरु हो जाता है 
। 

चित्र साभार: www.deviantart.com

रविवार, 9 सितंबर 2018

कबूतर का जोड़ा कबूतर पकड़ना कबूतर उड़ाना सिखाने को फिर से सुना है नजर आना शुरु हो जायेगा

चल
फिर से ढूँढें
नयी
कुछ किताबें

पढ़ना पढ़ाना
लिखना लिखाना
पुराना हो चुका

सुना है
आगे से अब
नहीं काम आयेगा

किसका लिखा है
कब का लिखा है
किसका पढ़ाया है
किसने पढ़ा है

लिखकर बताना
बस कुछ ही दिनों में
जरूरी हो जायेगा

लिखने
लिखाने की
पढ़ने पढ़ाने की

सीखने
सिखाने की
दुकानों के
इश्तिहारों में

फिर से
जोड़ा एक
कबूतर का
साथ नजर आयेगा

लड़ने लड़ाने को
भिड़ने भिड़ाने को
जीतने हराने को

सारे के सारे
सोये कबूतरों को

कबूतर
पकड़ने वाले
जाबाँज बाज बनायेगा

लिखते लिखाते
पढ़ते पढ़ाते
किसी एक दिन

‘उलूक’
भी
संगत में
कबूतरों की

कबूतरबाजी
थोड़ा बहुत तो
सीख ही ले जायेगा


स्याही एक रंगीन
एक झंडे के रंग की
रंगीन एक कलम में

सालों से भरना
कभी ना कभी
किसी का किसी के
तो जरूर काम आयेगा।

चित्र साभार: http://joyreactor.cc

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

चिट्ठागिरी करने का भी उसूल होता है लिखना लिखाना कहाँ बेफजूल होता है

अपनी
आँखों
से देखता है

कुछ भी
समझ
लेता है

और भी
होती हैं
आंखें

देखती हुई
आसपास में

उन
आँखों में
पहले क्यों नहीं
देख लेता है

किसी को
कुछ भी
समझ में
नहीं आया
हर कोई
कह देता है

तेरे देखे हुऐ में
उनका देखा हुआ
कभी भी
कुछ कहाँ होता है

सब की समझ में
सब की कहीं बातें
आती भी नहीं हैं

बेवकूफ
बक देता है
कुछ भी कहीं भी

फिर
सोचता भी है
उसके बाद
क्यों पास
नहीं होता है

ये
लिखना भी
अजब होता है

लिखने
के बाद भी
बहुत कुछ होता है

टाँग देता है
कोई और
कहीं ले जा कर
लिखा हुआ

बस
उसे पढ़ने वाला
कहीं और को
गया होता है

टिप्पणी
देने और
टिप्पणी लेने
का भी कुछ
उसूल होता है

इतना
आसान नहीं है
समझ लेना
इस बात को

इस खेल को
समझने के लिये
लगातार कई साल
खेलना होता है

पता नहीं
कितनी विधायें हैं
समाहित
लिखने लिखाने में

बकवास
को विधा
बता देने वाला
खुद एक
बहुत बड़ा
बेवकूफ होता है

लिखना
सब को आता है
सब लिखते हैं
जो कुछ भी होता है

तेरा
लिखा हुआ जैसा
और किसी के
लिखे में
कहीं भी
क्यों नहीं होता है

‘उलूक’
करता चला है
बकवास
कई सालों से

एकसी
दो बकवास
कभी
कर भी दी गयी हों
हजारों बकवासों में

कौन सा
किसने
कहीं जा कर
इसे संगीत
देना होता है

कौन सा
किसी ने
इसे गा भी
देना होता है।


चित्र साभार: http://clipartstockphotos.com

बुधवार, 5 सितंबर 2018

लिखना जरूरी हो जा रहा होता है जब किसी के गुड़ रह जाने और किसी के शक्कर हो जाने का जमाना याद आ रहा होता है

नमन
उन सीढ़ियों को
जिस पर चढ़ कर
बहुत ऊपर तक
कहीं पहुँच लिया
जा रहा होता है

नमन
उन कन्धों को
जिन को
सीढ़ियों को
टिकाने के लिये
प्रयोग किया
जा रहा होता है

नमन
उन बन्दरों को
जिन्हेंं हनुमान
बना कर
एक राम
सिपाही की तरह
मोर्चे पर
लगा रहा होता है

नमन
उस सोच को
जो गाँधी के
तीन बन्दरों
के जैसा

एक में ही
बना ले जा
रहा होता है

नमन
और भी हैं
बहुत सारे हैं
करने हैं

आज ही
के शुभ दिन
हर साल की तरह

जब
अपना अपना सा
लगता दिन
बुला रहा होता है

कैसे करेगा
कितने करेगा
नमन ‘उलूक’

ऊपर
चढ़ गया
चढ़ जाने के बाद
कभी नीचे को
उतरता हुआ
नजर ही नहीं
आ रहा होता है

गुरु
मिस्टर इण्डिया
बन कर ऊपर
कहीं गुड़
खा रहा होता है

चेलों
का रेला

वहीं
सीढ़ियाँ पकड़े
नीचे से

शक्कर
हो जाने के
ख्वाबों के बीच

कहीं
सीटियाँ बजा
रहा होता है।

चित्र साभार: www.123rf.com

सोमवार, 3 सितंबर 2018

कुछ बरसें कुछ बरसात करें बात सुनें और बात सुनायें बातों की बस बात करें



किसी को लग पड़ कर कहीं पहुचाने की बात करें
रास्ते काम चलाऊ उबड़ खाबड़ बनाने की बात करें

कौन सा किसी को कभी कहीं पहुँचना होता है
पुराने रास्तों के बने निशान मिटाने की बात करें

बात करने में संकोच भी नहीं करना होता है
पुरानी किसी बात को नयी बात पहनाने की बात करें

बात है कि छुपती ही नहीं है दूर तक चली जाती है
बेशरम बात को कुछ शरम सिखाने की बात करें

खुद के धंधों में कुछ बेवकूफ होते हैं लगे ही रहते हैं
किसी और के धंधे को अपनी दुकान से पनपाने की बात करें

अपने घर के अपने बच्चे खुद ही बहुत समझदार होते हैं
दूसरों के बच्चों को अपनी बात से चलाने की बात करें

बातों का सिलसिला है सदियों से इसी तरह चलता है
कुछ बात की बरसात करें कुछ बरसात की बात करें

‘उलूक’देर रात गये बैठ कर उजाले की बात लिखता है
रहने भी दें किसलिये एक बेवकूफ की गफलतों की बात करें।

चित्र साभार: http://cliparting.com

शनिवार, 1 सितंबर 2018

देश बहुत बड़ी चीज है खुद के आस पास देख ‘कबूतर’ ‘साँप’ ही खुद एक ‘नेवला’ जहाँ पाल रहा होता है

लिखे लिखाये में
ना तेरे होता है
ना मेरे होता है

सब कुछ उतार
के खड़ा होने
वाले के सामने
कोई नहीं होता है

जिक्र जरूर होता है
डरे हुऐ इंसानो के बीच

 शैतान की बात ही
अलग होती है
वो सबसे अलग होता है

आदमी तो बस
किसी का
एक कुत्ता होता है
आप परेशान ना होवें
कुत्ता होने से पहले
आदमी होना होता है

कोई नहीं लिख रहा है
कोई भी सच कहीं पर भी
झूठ लिखने वाला भी
हमेशा ही सच से डरा होता है

बड़ी तमन्ना है
देखने की
शक्ल बन्दूक की
और गोली की भी
वहाँ जहाँ
हर कोई बन्दूक है
और गोली ठोक रहा होता है

बहुत इच्छा है
‘उलूक’ की
किसी दिन
नंगा होकर नाचने की
देखकर
साथ के एक नंगे को
जो नंगई कर के भी
नाच रहा होता है |

चित्र साभार: https://www.123rf.com

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

गिरफ्तारी सजा जेल बीमे की भी जरूरत महसूस होने लगी है आज फितूरी ‘उलूक’ की एक और सुनिये बकवास




जरूरत 
नहीं है
अब 

किसी 
कोर्ट
कचहरी 
वकील की
जनाब 


जजों
को भी 
कह दिया जाये 

कुछ
नया काम 
ढूँढ लिजिये
अब 
अपने लिये भी 

किसी
झण्डे 
के नीचे
आप 

तुरत फुरत में 
होने लगा है 
फटाफट
जब 
अपने आप 

सारा
सब कुछ 
बहुत
साफ साफ 

खबर
के
चलते ही 

छपने छपाने
तक 

पहुँचने
से
पहले ही 

जिरह 
बहस होकर 

फैसला
सुनाना 
शुरु
हो गया है 

किसी 
तरफ से 
कोई एक 

निकाल
कर 
मुँह अपना 

सुबह 
बिना धोये 
उठते उठते 
लिये हाथ में 

गरम धुआँ 
उठाता
हुआ 

चाय
का
गिलास 

दे दे रहा हो 
जैसे
खुद 
खुदा को 

यूँ ही
मुफ्त में 

उसके किये 
करवाये
का 
न्याय और इन्साफ 

गुनहगार 
और
गुनाह 
ही
बस 

जरूरी नहीं 
रह गया है
अब 

अन्दर 
हो
जाने के लिये 

बुद्धिजीवी 
कहलाये जाने 
के लिये 

जरूरी
हो गया 
है होना
लेकिन 

पढ़ाई लिखाई 
में
फीस माफ 

ताकीद है 

जाँच लें
वक्त रहते 

अपनी
सोच की 
लम्बाई और चौड़ाई 

पैमाना लेकर 
खुली धूप में 
बैठ कर 
अपने
आप

मत कह देना 
बाद में

कभी 
बताया नहीं 

छोटी
सोच के 
शेयरों में
ले आये 
अचानक उछाल 

कोई
बिना धनुष 
का
तीरंदाज 

इतनी
वफादारी 
जिम्मेदारी पहरेदारी 
नहीं
देखी होगी 

पूरी हो चुकी 
तीन चौथाई
से 
ज्यादा की
जिन्दगी में 
‘उलूक’
तूने भी 

कुछ सोच
कुछ खुजा 

अपना
खाली दिमाग 

लगा
कुछ अन्दाज 

कर शुरु 

गिरफ्तारी 
जेल सजा बीमा 

कब कौन 
अन्दर हो जाये 

रात
के सपने 
के टूटने
से पहले ही 

बाहर 
निकल कर 
आने का 

कहीं
तो हो 
किसी के पास 

अपना भी 

कुछ 
लेन देन
कर 

लेने देने
का 
हिसाब किताब 

कुछ
बिन्दास। 

चित्र साभार: https://www.dallasnews.com

सोमवार, 27 अगस्त 2018

पोस्टमैन को फिर से कभी घर पर बुलवायें चिट्ठे छोड़ें चिट्ठियाँ पढ़े और पढ़वायें

आओ
खत लिखें

जमाना हो गया
पोस्टमैन को देखे

आओ

कुछ 

कोशिश करें
देखने की भी

आओ
कुछ देखें

तू
मुझ को लिख

मैं
तुझे लिखूँ

शब्द
वाक्य
सब रहने दें

कुछ
रेखायें
ही खींचें

कौन लिखेगा
किसको लिखेगा

कौन किसका
लिखा खत

किसके लिये
पढ़ देगा

ये सब छोड़े

बस
ज्यादा नहीं
कुछ थोड़ा सा
घड़ी की
सूईं को मोढ़ें

बस बातें
करने की
आदत को
कुछ झिंझोड़े

कलम उठायें
स्याही लायें

सफेद
पन्ने पर कुछ
आढ़ी तिरछी
रेखायें खुदवायें

आओ
अपने आप

खुद से
बातें करना

कुछ देर
के लिये छोड़ें

आओ
खत पढ़ने को जायें

बिना
निशान लगाये
दरवाजों को भी

कभी कभी
खटखटायें

इन्तजार
सब करते हैं

आओ
पोस्टमैन
ही सही

किसी के
लिये हो जायें

बधें नहीं
गिरोहों के संग

स्वछंद झण्डा
खुद का लहरायें

खत लिखें
पोस्टमैंन को
ही सही

किसी दिन
उसके लिये भी

घर की डाक
घर पर
ही भिजवायें

आओ कभी
‘उलूक’ को
आईना दिखलायें

किसी क्षण
कुछ अलग
करके दिखायें

जो
रोज करते हैं
जीवन में

उसके निशान

लिखे लिखाये
के पीछे कहीं
ना छोड़ कर
चले जायें

आओ
कुछ खत लिखें

कुछ अलग से
तेरे मेरे अपने
सबके छोड़

किसी और
के लिये कुछ

नये रास्ते
खोल कर आयें ।

चित्र साभार: activerain.com

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

फीड बैक का मतलब प्रतिक्रिया दिया जाता है जिसमें लेकिन मजा नहीं आता है फीड बैक से जैसे सब कुछ पता चल जाता है

ये
फीड बैक भी
एक
गजब का
काँसेप्ट होता है

अपने
बारे में
वैसे भी
कौन
किसी से
कुछ पूछता है

फीड बैक
का मतलब
प्रतिक्रिया
होता है

गूगल बाबा
आसानी से
समझा जाता है

पर
हिन्दी
रूपाँतरण में
मजा नहीं आता है

कहाँ
पता होता है
कौन क्या होता है

देखने से
कुछ
पता नहीं
चल पाता है

साथ
रहने पर
भी धोखा
खाया
जाता है

आदमी
की फितरत
होती है

आईना
हाथ में लेकर
वो अपनी
छोड़ कर

सामने
वाले की
फितरत
उसमें देखना
चाहता है

इसे
फीड बैक
कहा जाता है

फीड बैक

आप
के द्वारा
प्रयोग किये
जाने वाले
वाहन के
वाहन चालक
से भी
लिया जाता है

फीड बैक

आपके
घर के
सफाई
कर्मचारी
से उसकी
तबीयत
के बारे में
पूछ कर
पूछ लिया
जाता है

फीड बैक

आपकी
कामवाली
के काम की
प्रशंशा
कर के भी
खोद दिया
जाता है

ये
फीडबैक
गजब का
काँसेप्ट
हो जाता है

जब एक
फेसबुक
का मित्र
आपको

आपके
बारे में
आपकी ही
गली के
कुत्तों से
पूछ कर
कुछ आपके
भौंकने के
बारे में
आपको ही
बता ले जाता है

फीड बैक
हिन्दी नहीं है
लेकिन हिन्दी में
उसके अर्थ से
वो मजा नहीं
आ पाता है
जो फीड बैक
आपको समझा
ले जाता है

हर कोई
लगा होता है
फीड बैक लेने में
खुद का भी
अगर हो सके

लेकिन
अविश्वास का
कोई तोड़
अभी तक
बाजार में
बिकता नजर
नहीं आता है

‘उलूक’
फीड बैक लेना
तुझे नहीं आता है

तेरा
फीड बैक मगर

अगर
एक सम्मानित
लेना चाहता है

तो अपना कॉलर
तू क्यों नहीं उठाता है ?


चित्र साभार: www.dreamstime.com/

सोमवार, 20 अगस्त 2018

खुदा भगवान के साथ बैठा गले मिल कर कहीं किसी गली के कोने में रो रहा होता दिन आज का खुदा ना खास्ता अगर गुजरा कल हो रहा होता

एक आदमी
भूगोल हो रहा होता
आदमी ही एक
इतिहास हो रहा होता

पढ़ने की
जरूरत
नहीं हो
रही होती


सब को
रटा रटाया
अभिमन्यु की तरह

एक आदमी
पेट से ही
पूरा याद हो रहा होता


एक आदमी
हनुमान हो रहा होता
एक आदमी
राम हो रहा होता

बाकि
होना ना होना सारा
आम और
बेनाम हो रहा होता


चश्मा
कहीं उधड़ी हुई
धोती में सिमट रहा होता


ग़ाँधी
अपनी खुद की
लाठी से
पिट रहा होता


कहीं हिन्दू
तो कहीं उसे
मुसलमान
पकड़ रहा होता
कबीर
अपने दोहों को
धो धो कर
कपड़े से
रगड़ रहा होता


ना तुलसी
राम का हो रहा होता
ना रामचरित मानस
पर काम हो रहा होता

मन्दिर में
एक आदमी के
बैठने के लिये
कुर्सियों का
इन्तजाम
हो रहा होता


लिखा हुआ
जितना भी
जहाँ भी
हो रहा होता
हर पन्ने का एक
आदमी हो रहा होता

आदमी आदमी
लिख रहा होता
आदमी ही
एक किताब
हो रहा होता


इस से ज्यादा
गुलशन कब
आबाद
हो रहा होता


 शाख
सो रही होती
‘उलूक’
खो रहा होता

गुलिस्ताँ
खुद में गंगा
खुद में संगम
और खुद ही
दौलताबाद
हो रहा होता।


चित्र साभार: http://clipartstockphotos.com

बुधवार, 15 अगस्त 2018

बहुत खुश है गली के नुक्कड़ पर आजादी के दिन आजाद बाँटने के लिये खुशी के पकौड़े तल रहा है

कई दिन से
थोड़ा थोड़ा
फटे हुऐ
शब्दों को

एक
रफूगर
रफू कर रहा है

पूछने पर
बोला
बहुत धीमे से

बस
फुसफुसा कर

बहुत
दिनों में
मिला है
काम बाबू

एक पागल
दे गया है

कह रहा था
पन्द्रह अगस्त
नजदीक है

आजादी
लिखने का
बहुत मन
कर रहा है

फटे कपड़े
के कुछ टुकड़े

उसी गली के
अगले छोर
का एक दर्जी
मन लगा कर
सिल रहा है

किसलिये
और क्यों

क्या
नया कपड़ा
अब बाजार में
नहीं मिल रहा है

बहुत
आजाद हो चुके थे
कुछ रंगीन कपड़े

ढूँढ कर लाये
गये हैं जनाब

सिलने लगा
यूँ ही तब
देखा नहीं
गया जब

पुराना झंडा
आजादी का

अपने ही
टुकड़ों के लिये
बैचेनी में
मचल रहा है

बन्धन
नहीं है कुछ भी

कुछ भी कह देने
और
कुछ भी कर देने
को आतुर
आजाद

नये शब्दों की
नयी किताब के
आजाद पन्नों
को साथ लेकर

'उसके' घर से
तैयार होकर
बहस के लिये
अब निकल रहा है

आजादी
का मतलब
शायद इसीलिये
‘उलूक’ को

कहीं किसी भी
शब्दकोश में
नहीं मिल रहा है।

चित्र साभार: https://carwad.net

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

पट्टे के रंग के जादू में किसलिये फंसना चाह रहा है बता कहीं दिखा कोई उल्लू जो रंगीन पट्टा पहन कर किसी गुलिस्ताँ को उजाड़ने जा रहा है

एक पट्टा
गले में
पहन लूँ

कई दिन से
विचार आ रहा है

रंग उसका
क्या होना चाहिये

 बस यही
समझ में
नहीं आ रहा है

जमाने में रहकर
जमाने से कितना
पिछड़ गया हूँ

हर पट्टा
पहना हुआ
जैसे मुझे ही
चिढ़ा रहा है

किसम
किसम के हैं
सारे इंद्रधनुषी हैं

सभी पहने हुऐ हैं
एक रंग के पट्टे हैं

आभासी जंजीर
भी नजर आ रही है

मालिक है
जो चाहे करे

भौंकना तो
कम से कम
सिखा रहा है

रंग
इन्द्रधनुष
का एक
पता नहीं
किसके लिये
और क्यों
बौरा रहा है

‘उलूक’
उल्लू है
बना रह

किसी शाख
पर बैठ कर
गुलिस्ताँ को
उजाड़ने
तो तू भी
जा रहा है

किसी
एक रंग के
पट्टे को
पहन कर कोई
उसी रंग में
रंगीन कुछ
भौंकना चाह रहा है

तेरा जी
किस लिये
मिचला रहा है
यही गले से
नीचे उतर
नहीं पा रहा है

एक पट्टा
किसी का भी
तू भी अपने लिये
क्यों नहीं
बना पा रहा है

यही
एक प्रश्न
बिना उत्तर का
यहाँ वहाँ
पगला रहा है ?

चित्र साभार: http://clipartmag.com

शनिवार, 4 अगस्त 2018

आग पर लिखले कुछ भी जलता हुआ इससे पहले कह दे कोई सुन जरा सा अब कुछ बची हुयी राख पर लिख


ख्वाब
पर लिखना
है जनाब

 लिख और
बेहिसाब लिख

फेहरिस्त
छोटी सी लेकर एक
जिन्दगी के पूरे हिसाब पर लिख


रोज
लिखता है कुछ
देखे हुऐ कुछ पर
कुछ भी अटपटा बिना सोचे

सोच कर
जरा लिख कर दिखा
थोड़ा सा कुछ सुरखाब पर लिख

बना रहा है
ख्वाब के समुन्दर
कोई पास में ही

डूब कर
ख्वाबों में उसके ही सही
ले आ एक ख्वाब माँगकर कभी
लिख कुछ उसी के ख्वाब पर लिख

किसी की झूठी 
आब के रुआब से निकल कर आ
आभासी नशे में झूम रही
सम्मोहित कायनात के
वीभत्स हो गये शबाब पर लिख

लिख और
बस थोड़ी सी देर रुक
फिर उस लिखे से
मिलने वाले अजाब पर लिख


किसी ने
नहीं कहा है
फिर से सोच ले
‘उलूक’
एक बार और

ख्वाब पर
लिखने के बहाने भी
अपनी रोजमर्रा की
किसी भड़ास पर लिख ।

चित्र साभार: www.hikingartist.com


अजाब: पीड़ा, दु:ख, पापों का वह दण्ड जो यमलोक में मिलता है, यातना,
फेहरिस्त: सूची पत्र
आब: छवि, चमक, तड़क-भड़क, इज्जत, पानी
रुआब: रोब, शक्ति, सम्मान, भय, आतंक या कोई विशेष बात आदि से प्राप्त प्रसिद्धि
शबाब: यौवन काल, जवानी।

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

रोटियाँ हैं खाने और खिलाने की नहीं हैं कुछ रोटियाँ बस खेलने खिलाने के लिये हैं

वो
अपनी
रोटियाँ
सेकता है
किसी और
की आग में

चारों तरफ
लगी आग है
कुछ रोटियों
के ढेर हैं
और कुछ
राख है

ऐसा
नहीं है कि
भूखा है वो
और उसे
खानी हैं
रोटियाँ

गले तक
पेट भर
जाने के बाद
कुछ देर
खेलने की
आदत है उसे

लकड़ियाँ
सारे जंगल
की यूँ ही
जला देता
है हमेशा

दिल
जला कर
पकायी गयी
रोटी का स्वाद
लाजवाब होता है

रोटियों में
इतना दखल
होना भी
गजब की बात है

रोटियाँ
पढ़ाता है
और
पूछता भी है
फिर से
समझाऊँ
रोटियाँ शुरु से

रोटियों से
क्या करेगा
क्या करेगा
आग और
राख से ‘उलूक’

किसी की
भूख है
किसी का
चूल्हा है

रोटियाँ
किसी
और की हैं।

चित्र साभार: www.123rf.com

मंगलवार, 31 जुलाई 2018

गुलामी आजाद कर रहे हैं ये तो मनमानी है आओ किसी की पाली हुयी एक ढोर हो जायें

दूर करें
अकेलापन
बहुत
आसानी से

किसी भी
भीड़ में एक
कहीं घुसकर
खो जायें

आओ
एक चोर हो जायें

मुश्किल है
बचाना
सोच को अपनी
बहुत दिनों तक

क्या परेशानी है

आओ
जंगल में
नाचता हुआ
एक मोर हो जायें

कारवाँ
भटकने
लगे हैं रास्ते

पहुचने की
किसने ठानी है

खोने का डर
निकालें दिल से

आओ
निडर होकर

किसी गिरोह
को जोड़ने की
एक डोर हो जायें

सच रखे हैं
सबने अपने
अपनी जेब में

कौन सा
बे‌ईमानी है

बहुमत
की मानें
इतने सारे
एक से हैं

आओ
एक और हो जायें

पाठ्यक्रम
सारे बदल गये हैं
किताबें सब पुरानी हैं

‘उलूक’ की
बकबक में
दिमाग ना लगायें

आओ
किसी की
पाली हुयी
एक ढोर हो जायें।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

रविवार, 29 जुलाई 2018

बकवास करेगा ‘उलूक’ मकसद क्या है किसी दीवार में खुदवा क्यों नहीं देता है

उसकी बात
करना
सीख क्यों
नहीं लेता है

भीड़ से
थोड़ी सी
नसीहत क्यों
नहीं लेता है

सोचना
बन्द कर के
देख लिया
कर कभी

दिमाग को
थोड़ा आराम
क्यों नही देता है

तेरा मकसद
पूछता है
अगर
उसका झण्डा

झण्डा
नहीं हूँ
कहकर
जवाब क्यों
नहीं देता है

आइना
नहीं होता है
कई लोगों
के घर में

अपने
घर में है
कपड़े उतार
क्यों
नहीं लेता है

साथ में
रहता है
अंधा बन
पूरी आँखे
खोलकर

पूछता है

क्या
लिखता है
बता क्यों
नहीं देता है

शराफत से
नंगा हो
जाता है

भीड़ में भी
एक शरीफ

नंगों की
भीड़ को
अपना पता

पता नहीं
क्यों नहीं
देता है

बहुत कुछ
लिखना है

पता होता है
‘उलूक’
को भी
हर समय

उस के
ही लोग हैं
उसके ही
जैसे हैं

रहने भी
क्यों नहीं
देता है ।

चित्र साभार: www.fineartpixel.com

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

गुरु की पूर्णिमा को सुना है आज ग्रहण लगने जा रहा है चाँद भी पीले से लाल होना चाह रहा है

गुरुआइन को
सुबह से
क्रोध आ रहा है

कह कुछ
नहीं रही है

बस
छोटी छोटी
बातों के बीच

मुँह कुछ लाल
और
कान थोड़ा सा
गुलाल हो
जा रहा है

गुरु के चेले
पौ फटते ही
शुरु हो लिये हैं

कहीं चित्र में
चेला गुरु के
चरणों में झुका

कहीं गुरु चेले की
बलाइयाँ लेता
नजर आ रहा है

चेले गुरु को
भेज रहे हैं
शुभकामनाएं
गुरु मन्द मन्द
मुस्कुरा रहा है

ब्रह्मा विष्णु
महेश ही नहीं
साक्षात परम ब्रह्म
के दर्शन पा लिया
दिखा कर चेला
धन्य हुआ जा रहा है

‘उलूक’ आदतन
अपने पंख लपेटे
सूखे पेड़ के
खोखले ठिये पर
बार बार पंजे
निकाल कर
अपने कान
खुजला रहा है

गुरु चेलों की
संगत में
अभी अभी
सामने सामने
दिखा नाटक
और
तबलेबाजी
का नजारा

उससे
ना उगला
जा रहा है
ना निगला
जा रहा है

कैसे समझाये
गुरुआइन को गुरु

उसे पता है
आज शाम
पूर्णिमा को
ग्रहण लगने
जा रहा है

इतिहास का
पहला वाकया है

चाँद भी
पीले से
लाल होकर
अपना क्रोध

कलियुगी
गुरु के
साथ पूर्णिमा
को जोड़ने
की बात पर
दिखा रहा है

थूक
देना चाहिये
गुरुआइन ने भी
आज अपना क्रोध

सुनकर

गुरु की
पूर्णिमा को
आज ग्रहण
लगने जा रहा है।

चित्र साभार: www.istockphoto.com

बुधवार, 25 जुलाई 2018

दिमाग बन्द करते हैं अपने चल पढ़ाने वाले से पढ़ कर के आते हैं

बहुत
लिख लिया
एक ही
मुद्दे पर
पूरे महीने भर

इस
सब से
ध्यान हटाते हैं


शेरो शायरी
कविता कहानी
लिखना लिखाना
सीखने सिखाने
की किसी दुकान
तक हो कर
के आते हैं

कई साल
हो गये
बकवास
करते करते
एक ही
तरीके की

कुछ नया
आभासी
सकारात्मक
बनाने
दिखाने
के बाद
फैलाने का भी
जुगाड़ अब
लगाते हैं

घर में
लगने देते हैं आग
घुआँ सिगरेट का
समझ कर पी जाते हैं

बची मिलती है
राख कुछ अगर
इस सब के बाद भी

शरीर
में पोत कर खुद ही
शिव हो जाते हैं

उसके
घर की तरफ
इशारे करते हैं

जाम
इल्जाम के बनाते हैं

नशा हो झूमे शहर
बने एक भीड़ पागल
इस सब के पहले

अपने घर के पैमाने
बोतलों के साथ
किसी मन्दिर की
मूरत के पीछे
ले जाकर छिपाते हैं

बरसात
का मौसम है
बादलों में चल रहे
इश्क मोहब्बत की
खबर एक जलाते हैं

कहीं से भी
निकल कर आये
कोई नोचने बादलों को

पतली गली
से निकल कर कहीं
किनारे
पर बैठ नदी के
चाय पीते हैं
और पकौड़े खाते हैं

ये कारवाँ
वो नहीं रहा ‘उलूक’
जिसे रास्ते खुद
सजदे के लिये ले जाते हैं

मन्दिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च की
बातें पुरानी हो गयी हैं

चल किसी
आदमी के पैरों में
सबके सर झुकवाते हैं ।

चित्र साभार: www.thecareermuse.co.in

सोमवार, 23 जुलाई 2018

अपना वित्त है अपना पोषण है ‘उलूक’ तेरी खुजली खुद में किया तेरा अपना ही रोपण है

(21/07/2018 की पोस्ट:‘शरीफों की बस्ती है  कुछ नहीं होना है एक नंगे चने की बगावत से’ की अगली कड़ी है ये पोस्ट। इसका देश और देशप्रेम से कुछ लेना देना नहीं है। उलूक की अपनी दुकान की खबर है जहाँ वो भी कुछ सरकारी बेचता है )
पहले से
पता था

कुछ नया
नहीं होना था

खाली टूटी
मेज कुर्सियाँ
सरकार की
दुकान में

सरकारी
हिसाब किताब
जैसा ही
कुछ होना था

सरकारी
दुकान थी
सरकार के
दुकानदार थे

सरकारी
सामान था

 किसी के
अपने घर का
कौन सा
नुकसान
होना था

दुकानदार
को भी
आदेशानुसार

कुछ देर
घड़ियाली
ही तो रोना था

दुकान
फिर से
खुलने की
खुशखबरी
आनी थी

दो दिन बस
बंद कर रहे हैं
की खबर
फैलानी थी

दुकान
बंद हो रही है
दुकानदारों की
फैलायी खबर थी

अखबार वाले
भी आये थे
अच्छी पकी
पकायी खबर थी

दस्तखत की
जरूरत नहीं थी
दुकान वालों
की लगायी
दुकान की
ही मोहर थी

सरकारी
दुकान के अन्दर
खोली गयी
व्यक्तिगत
अपनी अपनी
दुकान थी

बन्द होने की
खबर छपने से
दुकानदारों की
निकल रही जान थी

तनखा
सरकारी थी
काम सरकारी था
समय सरकारी
के बीच कुछ
अपना निकाल
ले जाने की
मारामारी थी

‘उलूक’
देख रहा था
उल्लू का पट्ठा
उसे भी देखने
और देखने
के बाद लिखने
की बीमारी थी

बधाई थी
मिठाई थी
शरीफों की
बाँछे फिर से
खिल आयी थी
दुकान की
ऐसी की तैसी
पीछे के
दरवाजों में
बहुत जान थी ।

चित्र साभार: www.gograph.com

शनिवार, 21 जुलाई 2018

शरीफों की बस्ती है कुछ नहीं होना है एक नंगे चने की बगावत से

शरीफों
ने तोड़ी
कुर्सियाँ
शरीफों की

लात
मार कर
शराफत
के साथ

मेज फेंकी
शराफत से

दी
भेंट में
कुछ
गालियाँ
शरीफों
की ही दी
इजाजत से

काँच
की बोतलें
रंगीन पानी

खुश्बू
शराफत की
और मुँह
शरीफों के

साकी
छिड़क
रही थी
अल सुबह से
वीरों पर
थोड़ी सी बस
कुछ नफासत से

शरीफों ने
इजहार किया
शराफत का
शरीफों
के सामने

शरीफ बैठे
शराफत के साथ
मिले बातें किये
और चल दिये
शराफत से

जश्ने शराफत
घर में हो रहा था
कुछ शरीफों के ही
ऐसा कहना
शराफत नहीं

सम्मानित
देश भर के

भी दिखा
रहे थे
शराफत

शरीफ
बने थे
महारथी

शराफत की
महारत से

किताबें
शराफत की
शराफत के
स्कूलों की

बातें
शरीफों की
पढ़ने पढ़ाने की

इजाजत
नहीं है
बकने की
बकाने 
की
'उ
लूक’

शरीफों
की बस्ती है
कुछ
नहीं होना है
एक नंगे
चने की
बगावत से।

चित्र साभार: forum.wordreference.com

रविवार, 15 जुलाई 2018

किसी किसी आदमी की सोच में हमेशा ही एक हथौढ़ा होता है

दो और दो
जोड़ कर
चार ही तो
पढ़ा रहा है
किसलिये रोता है

दो में एक
इस बरस
जोड़ा है उसने
एक अगले बरस
कभी जोड़ देगा
दो और दो
चार ही सुना है
ऐसे भी होता है

एक समझाता है
और चार जब
समझ लेते हैं
किसलिये
इस समझने के
खेल में खोता है

अखबार की
खबर पढ़ लिया कर
सुबह के अखबार में

अखबार वाले
का भी जोड़ा हुआ
हिसाब में जोड़ होता है

पेड़
गिनने की कहानी
सुना रहा है कोई
ध्यान से सुना कर
बीज बोने के लिये
नहीं कहता है

पेड़ भी
उसके होते हैं
खेत भी
उसके ही होते हैं

हर साल
इस महीने
यहाँ पर यही
गिनने का
तमाशा होता है

एक भीड़ रंग कर
खड़ी हो रही है
एक रंग से
इस सब के बीच

किसलिये
उछलता है
खुश होता है

इंद्रधनुष
बनाने के लिये
नहीं होते हैं

कुछ रंगों के
उगने का
साल भर में
यही मौका होता है

एक नहीं है
कई हैं
खीचने वाले
दीवारों पर
अपनी अपनी
लकीरें

लकीरें खीचने
वाला ही एक
फकीर नहीं होता है

उसने
फिर से दिखानी है
अपनी वही औकात

जानता है
कुछ भी कर देने से
कभी भी यहाँ कुछ
नहीं होना होता है

मत उलझा
कर ‘उलूक’
भीड़ को
चलाने वाले
ऐसे बाजीगर से
जो मौका मिलते ही
कील ठोक देता है

अब तो समझ ले
बाजीगरी बेवकूफ

किसी किसी
आदमी की
सोच में
हमेशा ही एक
हथौढ़ा होता है ।

चित्र साभार: cliparts.co

शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

नियम नहीं हैं कोई गल नहीं बिना नियम के चलवा देंगे हजूर हम समझा देंगे

जो भी
आप
समझायेंगे

हजूर


हम समझा देंगे

किस
किस को

समझाना है

क्या क्या

और

कैसे कैसे
बताना है

हमें
लिख कर

बता देंगे

हजूर


हम समझा देंगे

मत
समझियेगा


हम भी
समझ

ले रहे हैंं
वो सब


जो
आप

लोगों को

समझाने
के लिये


हमें समझा रहे हैं


हम
आप के

कहे को

जैसे का तैसा


इधर से उधर

पहुँचा देंगे हजूर

हम समझा देंगे

खाली
किस लिये

अपना दिमाग
लगाना है

आप के
दिमाग में
जब
सब कुछ सारा


बहुत सारा

तेज धार
का पैमाना है

इशारा
करिये तो सही  

पानी में ही

आग लगा देंगे
हजूर

हम समझा देंगे


अखबार में
आने वाली है
खबर पक कर
रात भर में

नमक
मसालों
को

ही बदलवा देंगे

हजूर

हम समझा देंगे


नहीं होगा
नहीं होगा


छपवा कर

रखवा भी
दिया होगा


कहाँ तक
रखवायेगा कोई


और
ऊपर से

जोर की डाँठ

पड़वा देंगे

हजूर


हम समझा देंगे

चिंता
जरा सा
भी
मत
कीजियेगा


ज्यादा
से ज्यादा

कुछ नहीं होगा

टेंट
लगवा कर

दो चार दिन

एक
भीड़
को बैठा देंगे


हजूर

हम समझा देंगे


‘उलूक’

तू भी

आँख बन्द कर
कान में उँगली
डाल कर बैठा रह

किसी
दिन आकर

तुझे भी

दो चार दिन

देश
चलाने की

किताब के
दो पन्ने
तेरे शहर के

पढ़ा देंगे


हजूर

हम समझा देंगें। 


चित्र साभार: http://www.newindianexpress.com

शुक्रवार, 29 जून 2018

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के साथ साथ बहुत जरूरी है थोड़ा थोड़ा बेटी धमकाओ भी

पता नहीं
क्या क्या
उल्टा सीधा
देख सुन कर
आ जा रहा है

चुपचाप
बैठ ले रहा था
कुछ दिन के लिये
बीच बीच में इधर

फिर से
जरा सा में
सनक जा रहा है

कोई
क्यों नहीं
समझा रहा है

बेटी बेटी
नहीं कही
जा सकती है

जब उम्र
पचास पचपन
के पार
हो जाती है

बेटी की
बेटियाँ पैदा
हो जाती हैं

उम्र के
किसी मोड़
पर जा कर
माँग भी
उजड़ जाती है

सुगम के
सपने
देखते देखते
दुर्गम की
कठिन हवा धूप
में सूख जाती है

ऐसी महिला को
कैसे सोच रहा है

लक्ष्मीबाई
खुद को मान
लेने का हक

बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ
के नारों के
जमाने में

फालतू में
यूँ ही मिल
जा रहा है

अखबार
रेडियो दूरदर्शन
सब देख रहे हैं
सब सही हो रहा है
इनमें से कोई भी
उसके लिये
रोने नहीं जा रहा है

बेटी
कहलवाने
का भाव उसके
सनकी हो गये
दिमाग में से
नहीं निकल
पा रहा है
उसकी समस्या है

तू किसलिये
फनफना रहा है
अगर कोई
बेटी
धमका रहा है

ठन्ड रख
उसके सनकने
का दण्ड भी उसे
निलम्बित कर के
दिया जा रहा है

बहुत सही
हो रहा है
‘उलूक’
तेरे सनकने
के लिये रोज
एक ना एक
बखेड़ा

जरूरी किताब
के जरूरी पाठ
का एक जरूरी
दोहा हो जा रहा है।

चित्र साभार: https://drawingismagic.com

गुरुवार, 28 जून 2018

कबीर दौड़ रहा है सूर को सावधान रहने के लिये कहने के लिये ढूँढ रहा है तुलसी अदालत में फंसा हुआ है





आज
अचानक
गली के
मोड़ पर
तेजी से
भागता हुआ
कबीर मिला था

एक नयी
बहुत मंहगी
चमकीली
साफ सुथरी
चादर से
ढका हुआ
उड़ता हुआ
जैसे एक
बुलबुला
बन रहा था

पूछ बैठा
था कोई
भाई तू
लगभग
पाँच सौ
साल से
यूँ ही
पड़ा रहा था

अब
किस लिये
मजार
छोड़ कर
भाग आया

एक नयी
चादर में
उलझा हुआ
अपना
एक पाँव

बाहर
निकाल
कर उसने
चादर को
किनारे लगाया

जोर से
चिल्लाया
समझा करो
कबीर था

तब तक
जब तक
किसी को
मेरे जुलाहे
होने का
पता नहीं था

पाँच सौ
साल में
बदल जाती
है कायनात तक

मैं तो
उस जमाने
के सीधे साधे
आदमियों के
बीच का था
बस एक
फकीर था

हिंन्दू रहा था
ना मुसलमान रहा था

जुलाहे होने का
थोड़ा सा बस
अभिमान रहा था

दोहे
कह बैठा था
उस समय
के हिसाब से

पर आज
उन सब में जैसे
सारी जिन्दगी का
फलसफाऐ शैतान था

किसे पता था
पाँच सौ साल बाद
रजिया गुँडों के
बीच फंस जायेगी

कबीर के दोहे
किताबों से
दब जायेंगे
ईवीएम
की मशीन
कबीर के
भजन गायेगी
संगीत सुनायेगी

‘उलूक’
कब सुधरेगा
पता नहीं
उसकी बकवास
करने की आदत
भी नहीं जायेगी

कबीर ने
कुछ कहा था
समझना जरूरी
भी नहीं था

कल शायद
सूर की भी बारी
कहीं ना कहीं
आ जायेगी

तुलसी
फंसा हुआ है
मन्दिर की
सोच रहा है

पता नहीं
कौन सी कब्र
किस समय
और किसलिये
खोली जायेगी

बकवास है
शहर की
नहीं है
विनती है आपसे

मत कह देना
कबीर की आत्मा
मेरे घर में रुकी थी
कल चली जायेगी।

चित्र साभार: http://www.pngnames.com

बुधवार, 27 जून 2018

आओ भूत खोद कर लायें भविष्य की बात आये उससे पहले उसकी कब्र वर्तमान में ही बनाकर मंगलगीत मिलकर गायें

छोड़ें
शराफतें
करें
शरारतें
कुछ
खुराफातें

अपनी
नहीं भी हों
कोई बात नहीं

पर गिनें

सामने वाले की
बड़ी या छोटी
जो भी दिख जाये
सामने से

वो वाली आतें

रोकें
लटक कर
आगे बढ़ रही
घड़ी की सूईयों पर

समय
को 
खींचें
पीछे ले जायें

बायीं नाक से
खींच कर हवा
आहिस्ता
दायीं नाक से
बाहर का रास्ता
बना कर दिखायें
उल्टा पीछे को
चलने का
रास्ता सिखायेंं

बहुत
जरूरी है
समय को भी
सीख लेना
इस जमाने में
करना प्राणायाम

उसके भी
निकाले
जा सकते हैं
कभी भी
कैसे भी
कहीं भी
प्राण

लिखाकर
थाने में

चोर रहा था
बेशरम

आने वाले
समय के
पेड़ों से
समय से
पहले ही
पके हुऐ
लाल पीले
हरे आम

पीछे चलें
उल्टे पैरों से
मुँह आगे कर

कहीं भी
जाकर गिनें
गिरे हुऐ मरे हुऐ
बटेर और तीतर
शिकारी को
बिल्कुल भी
नहीं पकड़ना
है ठानकर

गिनती बढ़ायें
सौ के दस
हजार दिखायें

उस
समय के चित्र
इस समय
के अखबार
में छपवायें
ढोल नगाड़े
बजवायें

तीतर बटेरों
की आत्मायें
आकर
बता गयी हैं
शिकारी
के नाम पते

हरे पेड़ों के
झड़ गये
पत्तों पत्तों
पर लिखवा
लिखवा
कर बटवायें
मुनादी करवायें

पिछ्ली पीढ़ी
के भूत पिशाचों
को फाँसी की
सजा दिलवायें

आओ
‘उलूक’
संकल्प करें

प्राणवान
कुछ भी
समझ
में आये
उसका श्राद्ध
गया जाकर
प्राण
निकलवाने
से पहले
करवाने
का आदेश
करवायें

आओ
भूत खोद
कर लायें
भविष्य की
बात आये
उससे पहले
उसकी कब्र
वर्तमान में
ही बनाकर
मंगलगीत
मिलकर गायें।

चित्र साभार: https://www.fotosearch.com/

गुरुवार, 21 जून 2018

कतारें खूबसूरत सारी की सारी बहुत सारी बस आज ऐसे ही बनानी हैं

तपती रेत है
बहुत तेज धूप है
हैरान नहीं होना है
रोज की परेशानी है

यहाँ की रेत की
बात यहीं तक रखनी है
किसी को नहीं बतानी है

बस हरी दूब लानी है

बहुत जगह उगी है
बहुत सारी उगी है
हरी हरी दूब है
पानी नहीं होने की
बात ही बेमानी है

बहुत तेज जोरों से
प्यास ही तो लगी है

धैर्य रख
ज्ञानी हैं विज्ञानी हैं
बस यहीं कहीं हैं
सच बात है
नहीं कोई कहानी है

करना कुछ नहीं है
सपने उगाने तो हैं
पर बोना कुछ नहीं हैं
बीज ही नहीं हैं

देखनी रेत है
दूब बस सोचनी है
कौन सा उगानी है

पानी नहीं है
पीना कुछ नहीं है

प्यास
बस एक सोच है
बातें की बहती हुई
नदी एक दिखानी है

एक साफ
चादर ही तो लानी है
गरम रेत
के ऊपर से बिछानी है

दूब हरी हरी
दूर से कहीं से भी
लाकर फैलानी है
बोनी नहीं है
उगानी नहीं है
बस एक दिन
की बात ही है
कुछ नहीं होना है
सूखनी है सुखानी है

गाय भैंस बकरी हैं
कम ज्यादा
कुछ भी मिले
बिकनी बिकानी है

कुछ खड़े होना है
कुछ देर सोना है
इसको उसको सबको
एक साथ एक बार
एक ही बात बतानी है

चोंच नीचे लानी है
पूँछ ऊपर उठानी है
‘उलूक’
कुछ भी कह देने की
तेरी आदत पुरानी है

भीड़ नहीं कहते हैं
बहुत सारे लोगों को

दूर तलक दूर दूर
कतारें खूबसूरत
सारी की सारी
बहुत सारी
बस आज
और आज
ऐसे ही
बनानी हैं।

चित्र साभार: www.123rf.com

रविवार, 17 जून 2018

‘उलूक’ तू दो हजार में उन्नीस जोड़ या इक्कीस घटा तेरी बकवास करने की आदत का सरकार पेटेंट कराने फिर भी नहीं जा रही है

झंडों को 
हो रही

इधर की
बैचेनी

कुछ कुछ
समझ में
आ रही है

शहर में
आज एक
नयी भीड़

एक नये
रंग के
एक नये
झंडे के नीचे

एक नया
झंडा गीत
गा रही है

पुराने
झंडों के
आशीर्वादों
से भर चुके

झंडा
बरदारों
को नींद से

लग रहा है
जैसे
नयी हवा
जगा रही है

कुछ उस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर

कुछ इस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर

कुछ बेरंगे
हो चुके रंगों
में नया रंग

भरने
जा रही है

एक नये रंग
के झंडे का
पुराने झंडों
में से ही

मिल जुल कर
पैदा हो जाने
की खबर

कल के
अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
सुबह सुबह
आने जा रही है

अवसरवादियों
की बाँछें
फिर से एक बार
और जोर लगा कर
मुस्कुरा रही हैं

इस झंडे को
उठाने वालों को
उस झंडे को
उठाने वालों से

मिलजुल कर
रहने का अभ्यास
नये झंडे तले
करा रही हैं

लाल गेरुआ
नीला पीला
हरा बैगनी
की बात
करने की
रुत जा रही है

मेला नजदीक है
सुनाई दे रहा है

झंडों की
नई दुकाने
सजाने के लिये

फड़ों
की लाईन
लगायी
जा रही है

झंडों के
ठेकेदारों की
नयी योजना से

बेपेंदे के लौटों
के लुढ़कने की
आदत सुना है
बदलने जा रही है

झंडे खुश हैं
झंडा बरदार
भी खुश हैं

धीरे धीरे
हौले हौले
टोपियाँ
इस सर से
उस सर
की ओर
खिसकायी
जा रही हैं

‘उलूक’
तू दो हजार
में उन्नीस
जोड़ या
इक्कीस घटा

तेरी
बकवास
करने की
आदत का
सरकार
पेटेंट कराने
फिर भी
नहीं जा
रही है।

 चित्र साभार: www.dreamstime.com

सोमवार, 11 जून 2018

जरूरी है फटी रजाई का घर के अन्दर ही रहना खोल सफेद झक्क बस दिखाते चलें धूप में सूखते हुऐ करीने से लगे लाईन में

खोल
जरूरी है

साफ
सफेद झक्क

फटी हुई
रजाई को
ढकने के लिये

सारे
सफेद खोल
लटके हुऐ
करीने से
चमचमाती
धूप में 

सूखते हुऐ

खुशनसीब
खुशफहमी
की रूईयाँ

उधड़ी 
दरारों से
झाँकती हुई

घर के अन्दर
अंधेरे की
खिड़कियों को
समझाती हुई

परहेज करना
रोशनी से 


फटी
रजाई ओढ़ते
आदमी का

बाहर
झाँकता चेहरा
साँस लेने के लिये

साफ हवा
भी जरूरी है

लेकिन खोल
ज्यादा जरूरी है

और
जरूरी है

उसका
धुला होना
साफ होना
झक्कास रहना

चमकना 
धूप में
फिर स्त्री 

किया जाना

फटी हुयी
रजाइयाँ 

और
आदत 

में शामिल
बाहर 

को लटकते
रूई के फाहे

खोल
मजबूरी
नहीं होते हैं
किसी के लिये

एक
पाठ्यक्रम
हो जाते हैं

बिना 

खोल के
उधड़ा 

हुआ आदमी
बेकार है 

बेमानी है

आइये
सजायें
ला ला कर
सफेद
झक्कास
खोलों को

अलग अलग
जगह के
अलग अलग
आदमी के

आदमी के
लिये ही
बनाने 

और
दिखाने के
लिये इंद्रधनुष

सात रंगों
के नशे में
चूर के लिये
नशे की सोच
भी पाप है

और 

प्रायश्चित
बस 

एक ही है

साफ 

सफेद
धुले हुऐ
धूप में
लाईन 

लगा कर
सुखाये 

गये खोल

फटी हुई
रजाई
कहीं भी
नजर नहीं
आनी चाहिये
'उलूक'
किसे
जरूरत है

आँखें
अच्छा देखें
कान
अच्छा सुनें
अच्छे
की आशायें
खोल में
समाहित
होती हैं

यही
फलसफा है
बकवास
करते चले
जाने का।

चित्र साभार: www.amazon.com

सोमवार, 4 जून 2018

इसकी उसकी पूजा करने के दिन लद गये ‘उलूक’ कुछ दिन अपनी अब करवाले मंदिर संदिर हो सके कहीं तो आज और अभी दो चार छोटे बड़े बनवाले

बहुत
दिन हो गये
चुपचाप बैठे

चलिये

बैठे ठाले
के
जमा किये
का
कुछ बाहर
निकालें

कथा
करा लें

ठीक नहीं
होता है

देखा भाला
सुना समझा
सम्भाल लेना

पोटली में
कहीं अंदर

अपनी
भाषा में
फिर से

कुछ
जुगाली
कर डालें

आईये
बिना तीरों
की
कमान से
कुछ तीखे
तीर निकालें

मरना
मारना
किस को
करना है

कुछ
हल्ला गुल्ला
हल्ले गुल्ले
के लिये
कर डालें

दर्ज करें
उपस्थिति
समाज में

सामाजिक
होने का दावा
मुट्ठी बन्द कर
हवा में उछालें


बैठे  
बैठे 
इधर उधर
बिखरे
कंकड़ पत्थर
जमा करें

कुछ फैलायें
कुछ उछालें

कुछ लाईन
में लगा कर
रास्ते दिखाने
भर के लिये

दीवारों में
चिपका कर
पोस्टर बाजी
ही कर डालें

आईये
चीटियों के
काटने के
निशानों की
कुछ फोटो
खिंचवालें

कुछ
फाईल में
दबा लें

कुछ
धो पोछ कर

अखबार
नवीसों
के घर जा
कर दे डालें

कुछ तो करें
कभी ही सही

थोड़ी देर
के लिये
ही सही
कहीं भी
एक लाईन
लगवालें

आईये
कुछ
कबूतरों को
कुछ
कौओं को
कुछ
चूहों को
कुछ
शेरों को

जंगल गीत
गाने
का न्योता

शहर के
पाँँच सितारा
में दे डालें
आईये 
अन्धे बन कर
कुछ आइने
ही सही
आँख वालों
को बेच डालें

कुछ बदलें
कुछ बदलने
का आह्वाहन
बस कर डालें

कुछ
श्रँगार रस
विधवाओं के
श्रँगार करने
के लिये
रच डालें
आईये रूप बदलें

बहुरूपियों
को ललकारें

शब्दों की
निकाल कर
कुछ कटारें

सफेद
पृष्ठभूमि पर
काले खून से

होली
काली सफेद
ही सही मनालें

आईये
नासमझ
‘उलूक’ को
कुछ
पढ़ालें
कुछ
समझालें

ढोंगियों
के बीच
रहकर
लिलार
पढ़ने
की आदत

बहुत हो गया
अब तो
डाल ही डाले

‘आम’
को ‘राम’
और
‘राम’ को
‘आम’
समझाना
सीखे

जगह जगह
हर जगह
‘उल्लू’ के
मन्दिर
ढलवा ले

‘आमकथा’
लिखवाले

कथावाचकों
को तैयार करे

अपनी पूजा
खुद करने
की आदत
खुद भी डाले

और भी

जिस जिस
से करवा
सके
करवाले ।

चित्र साभार: picclick.com

गुरुवार, 17 मई 2018

आसार नजर आ रहे हैं बेवकूफ होशियारों में शामिल हो कर जल्दी ही उजड़ने जा रहे हैं

सारे
होशियार
होशियारों
में शामिल
होते जा रहे हैं

सारे
होशियार
होशियारों
के लिये
होशियारी
के साथ
होशियारी
के गीत
गा रहे हैं

बचे हुओं
को महसूस
करा रहे हैं

उनका हो
खो जाना

और सियार
हो जाना

सियार सारे
मिलकर भी
मातम नहीं
मना पा रहे हैं

बहुत
नाइन्साफी है
सोचना
ठीक नहीं है

इन्साफ
करने वाले
लगे हुऐ तो हैं

अपने तराजू के
पलड़े धुलवा कर
जमी हुयी धूल
मिट्टी उड़ा रहे हैं

बेवकूफों को
साफ समझ
में आने लगा है
अपना मन भर
बेवकूफ हो जाना

पता नहीं
फिर भी क्यों

चारों तरफ से
हो रहे होशियारों
के हल्ले गुल्ले में से
होशियारी निकाल
कर होशियार
हो लेने के
मंसूबे बना रहे हैं

होशियारों को भी
समझ में आ रही है
अपनी होशियारी

होशियारी
के महलों में
पहुँच लेने के
होशियार पुल
बना रहे हैं

घर की कहानी
घर में समझ
रहे हैं अपने अपने

सारे
बेवकूफ
दूरदर्शन में
चल रही

होशियारी की
बहसों को
सुन सुन कर
होशियारी
पका पका
कर खा रहे हैं

होशियारी
गली मुहल्ले
गाँव शहर में
फैलती जा रही है

बेवकूफों के
जीने मरने के
लाले पड़ने के
दिन आ रहे हैं

‘उलूक’ बैचेन है
गणित देख कर
होशियार की
होशियारी का

उसे
बेवकूफों के
होशियारों में
शामिल होकर
उजड़ने के दिन
बहुत नजदीक
नजर आ रहे हैं ।

चित्र साभार:
zenzmurfy.deviantart.com

सोमवार, 14 मई 2018

दस टिप्पणी और एक सौ से ऊपर पेज हिट होना बहुत होता है

होता है
एक नहीं
कई बार
होता है

कुछ पर
लिखने
के लिये
कुछ भी
नहीं होता है

तो मत लिख

लिखने की
बीमारी का
इलाज सुना है

हकीम
लुक मान
के पास भी
नहीं होता है

किस ने
कहाँ लिखा है
लिखना
इतना भी
जरूरी होता है

पीछे
का लिखा
पीछे
चला गया
होता है

आगे देख
लिया कर
उधर
बहुत कुछ
होने वाला
होता है

सावन
पर ही
लिख दे कुछ
हर साल
आता है
इस बार
नहीं आयेगा
सोचना ही
नहीं होता है

सावन से
पहले अंधा
हो लेने से
सब कुछ
पहले ही
हरा हो जाये
ऐसा भी
नहीं होता है

अपनी गाय
अपनी होती है

गोबर
कोई उठा ले जाये
जरूरत के अनुसार
ही उठाना होता है

मत का दान
दान करने तक
ही छुपाना होता है

उसके बाद
पागलों के
उन्माद का मेला
हर जगह होता है

पढ़ा होता है
या नहीं
पढ़ा होता है

अनपढ़ के
फैसलों पर
यू पी एस सी
तक टिका होता है

यू जी सी
के फैसले
इण्टर पास
को ले ले ने का
बहुत बड़ा
हौसला होता है

शेर लिखने
लिखाने की
कक्षा के
मास्टर के
पास हड़काने
का लाइसेंस
होता है

‘उलूक’
की बकवास
विद्वानों
के बीच
फंस जाती
है हमेशा

बहुत
दर्द होता है
डूब मरने का
बस हौसला
नहीं होता है ।

चित्र साभार: mariafresa.ne

शनिवार, 12 मई 2018

इंतजार है इज़हार करने का गुलाब हाथ में है तसवीर ख़्वाब में है वफ़ा करने का नशा है बता तो सही तू है तो कहाँ है

रोज
अपना ही
मत गोड़

कभी
उसके
लिये भी
लगा लिया
कर दौड़

इंतजार
सबको है

किसका है
किसे
बताना है
रहने भी दे
छोड़

किस लिये
करता है
इजहार

कुछ
बदलने के
नहीं हैं
यहाँ आसार

लिख
और
लिख कर
हवा में उड़ा

धुआँ देख
खुश हो
मन
मत मार

गुलाब ही
गुलाब हैं
सारे फूल हैं

सब
लिख रहें हैं
सब ही
सुरखाब हैं

कलम घिस्सी
काली सफेद

रहने दे
मत कर

रंगों के
जमाने हैं

रंग ही बस
अब आबाद हैं

ख्वाब देख
सुबह देख

दोपहर में देख
रात में देख

संगीत मान ले
मक्खियों
की भिन भिन

कौन से
पूरे होने हैं
कौन से
अधूरे
रहने हैं

दिखाने
वाले पर
छोड़ दे
चुनाव के
दिन गिन

बेवफाई कर
जिंदा रहेगा

घर में रहेगा
खबर में रहेगा

वफा करेगा
वफादार रहेगा

कोई
कुत्ता कहेगा
बेमौत मरेगा

नशे में लिख
नशा लिख
बस लिखे में
मत लड़खड़ा

'उलूक'
लिखे
लिखाये से

कौन
सा पता
चलना है
किसी के
बारे में

कौन है
क्या है
कितना है
खड़खड़ा।

चित्र साभार www.canstockphoto.com

मंगलवार, 8 मई 2018

टिप्पणियों पर बिफरते नये शेर को देख कर पुराने हो चुके भेड़ को कुछ तो कह देना हो रहा है

सब कुछ
एक साथ
नहीं दौड़ता है

टाँगें
कलम हो जायें
बहुत कम होता है

वजूका
खेत के बीच में
भी हो सकता है
कहीं किनारे पर
बस यूँ ही खड़ा
भी किया होता है

कहने लिखने को
रोज हर समय
कुछ ना कुछ
कहीं किसी
कोने में
जरूर होता है

लिखे हुऐ
सारे में से
जान बूझ कर
नहीं लिखा गया
कहीं ना कहीं
किसी पंक्ति
के बीच से
झाँक रहा होता है

समुन्दर
लिख लेने
के बाद
नदी लिखने
का मन
किसी का
होता होगा
पता कहाँ
चलता है

कलम की
पुरानी
स्याही को
नाले के पास
लोटे में धोना
और फिर
चटक धूप में
सुखा कर
नयी स्याही
भर लेना

एक पुराना
मुहावरा
हो चुका
होता है

नये मुल्ले
और
प्याज पर
लिखने से
दंगा भड़कने
का अंदेशा
हो रहा
होता है

रोज के
रोजनामचे
को लिखने
वाले ‘उलूक’
का दिल

साप्ताहिक
हो लेने
पर भी
बाग बाग
हो रहा
होता है

लिखना
लिखाना
और
उस पर
टिप्पणी
पाने की
लालसा पर

हमेशा
की तरह
नये सिपाही
का बंदूक
तानने पर

अपनी
पुरानी
जंक लगी
बन्दूक से
खुद का
फिर से
सामना
हो रहा
होता है

अपना लिखना
अपने लिखे को
अपना पढ़ लेना
समझ में आ जाना
सालों साल में

पुराने प्रश्न से
जैसे नया
सामना हो
रहा होता है ।

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

नकारात्मकता फैला कर सकारात्मकता बेचने वालों के लिये सजदे में सर झुका जा रहा था

बिल्लियों के
अखबार में
बिल्लियों ने
फिर छ्पवाया

सुबह का
अखबार
रोज की तरह

आज भी
सुबह सुबह
उसी तरह से
शर्माता हुआ
जबर्दस्ती
घर के दरवाजे से
कूदता फाँदता
हुआ ही आया

खबर
शहर के कुछ
हिसाब की थी
कुछ किताब की थी
शरम लिहाज की थी
शहर के पन्ने में ही
बस दिखायी गयी थी

चूहों की पढ़ाई
को लेकर आ रही
परेशानियों की बात
बिल्लियों के
अखबार नबीस के द्वारा
बहुत शराफत के साथ
रात भर पका कर
मसाले मिर्च डाले बिना
कम नमक के साथ
बिना काँटे छुरी के
सजाई गयी थी

मुद्दा
दूध के बंटवारे
को लेकर हो रहे
फसाद का नहीं है

खबर में
समझाया गया था

बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था

सफेद
चूहों को अलग
और
काले चूहों को
कुछ और अलग
बताया गया था

खबर जब
कई दिनों से
सकारात्मक सोच
बेचने वालों की
छपायी जा रही थी

पता नहीं बीच में
नकारात्मक उर्जा
को किसलिये
ला कर
फैलाया जा रहा था

बात
चूहों के
शिकार की
जब थी ही नहीं

बेकार में
दूध के बटवारे
को लेकर पता नहीं
किस बात का
हल्ला
मचवाया जा रहा था

चूहे चूहों को गिन कर
पूरी गिनती के साथ
बिल से निकल कर
रोज की तरह वापस
अपने ही बिल में
घुस जा रहे थे

दूध और
मलाई के निशान
बिल्लियों की मूँछों
में जब आने ही
नहीं दिये जा रहे थे

बिल्लियों के
साफ सुथरे धंधों को
किसलिये
इतना बदनाम
करवाया जा रहा था

ईमानदारी की
गलतफहमियाँ
पाला ‘उलूक’

बे‌ईमानी के
लफड़े में
अपने हिस्से का
गणित लगाता हुआ

रोज की तरह
चूहे बिल्ली के
खेल की खबर
खबरची
अखबार की गंगा
और डुबकी
सोच कर

हर हर गंगे
मंत्र के जाप के
एक हजार आठ
पूरे करने का
हिसाब लगा रहा था।

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