उलूक टाइम्स

सोमवार, 2 जुलाई 2012

पहचान कौन

कभी समझ
में आता था
किस समय
आनी चाहिये

लेकिन अब
लगने लगा है
उस समय
समझ में नहीं
आ पाया था

किसी ने ठीक से
क्योंकि नहीं
कुछ बताया था

एक समय था
जब सामने से
लड़की को आता
देख कर ही
आ जाती थी

लड़की को
भी आती थी
उसका यूँ
ही सकुचाना
ये बता
कर जाती थी

घर से लेकर
स्कूल तक
स्कूल से
कालेज तक
कालेज से
नौकरी तक

नौकरी से
शादी तक
शादी से
बच्चों तक
टीचर से
होकर मास्टर
प्रोफेसर
और साहब
बीबी के
ऊपर से
निकलकर
बच्चों तक

कहीं ना
कहीं दिख
जाती थी
तेरे आने
ना आने पर
बहुत जगह
हमने डाँठ
खायी थी

बहुत जगह
डाँठ हमने
भी खिलाई थी

अरे तेरे को
क्यों नहीं
बिल्कुल भी
आती है

समय समय
पर ये बात
बहुत जगह
पर समझाई थी

अब जमाना
तो कुछ और
सीन दिखा
रहा है

हर कोई
कुछ भी
कैसे भी
कहीं भी
कर ले
जा रहा है

प्रधानमंत्री
हो या
उसका संत्री
पक्ष हो
या विपक्ष

अन्ना के
साथ हो
या गन्ने के
खेत में हो

अपने घर
में भी किसी
को आते हुए
अब नजर
नहीं आती है

बाहर तो
और भी
अजीब अजीब
से दृश्य
दिखलाती है

बच्चे हों या
उम्रदराज
दफ्तर का
चपरासी हो
या सबसे
बड़ा साहब

अब तेरे
को कोई
नहीं लाना
चाहता है

तेरे को
पहचानते
तक नहीं है
ये भी बताना
नहीं कोई
चाहता है

तेरा जमाना
अब लौट
के कभी
नहीं आ
पायेगा

शरम बहन

तेरे को
हर कोई बस
शब्दकोष का
एक शब्द
भर बनायेगा

कुछ सालों में
तेरी कब्र भी
बना ले जायेगा

फूल चढ़ाने
भी उसमे
शायद ही
कोई कभी
नजर आयेगा।

रविवार, 1 जुलाई 2012

योगी लोग

घर हमारा
आपको
बहुत ही
स्वच्छ
मिलेगा

कूड़ा
तरतीब
से संभाल
कर के

नीचे
वाले पड़ोसी
की गली में

पौलीथिन में
पैक किया
हुआ मिलेगा

पानी हमारे
घर का
स्वतंत्र रूप
से खिलेगा

वो गंगा
नहीं है कि
सरकार
के इशारों
पर उसका
आना जाना
यहां भी चलेगा

जहाँ उसका
मन चाहेगा
बहता ही
चला जायेगा

किसी की
हिम्मत नहीं है
कि उसपर
कोई बाँध बना
के बिजली
बना ले जायेगा

नालियों में
कभी नहीं बहेगा
जहां भी मन
आये अपनी
उपस्थिति
दर्ज करायेगा

हम ऎसे वैसे
लोग नहीं हैं
अल्मोड़ा शहर
के वासी हैं
गांंधी नेहरू
विवेकानन्द
जैसे महापुरुषों
ने भी कभी
इस जगह की
धूल फाँकी है

इतिहास में
बुद्धिजीवियों
के वारिसों
के नाम से
अभी भी
इस जगह को
जाना जाता है

पानी भी
पी ले
कोई मेरे
शहर का
तो बुद्धिजीवी
की सूची में
अपना नाम
दर्ज कराता है

योगा करना
जिम जाना
आर्ट आफ
लिविंग के
कैम्प लगाना
रामदेव और
अन्ना के
नाम पर
कुर्बान होते
चले जाना

क्या क्या
नहीं आता
है यहां के
लोगों को
सीखना
और
सिखाना

सुमित्रानन्दन पंत
के हिमालय
देख देख
कर भावुक
हो जाते हैं

यहाँ की
आबो हवा
से ही लोग
पैदा होते
ही योगी
हो जाते है

छोटी छोटी
चीजें फिर
किसी को
प्रभावित नहीं
करती यहाँ

कैक्टस के
जैसे होकर
पानी लोग
फिर कहाँ
चाहते हैं

अब आप को
नालियों और
कूड़े की पड़ी
है जनाब

तभी कहा
जाता है
ज्यादा पढ़ने
लिखने वाले
लोग बहुत
खुराफाती
हो जाते हैं

अमन चैन
की बात
कभी भी
नहीं करते

फालतू बातों
को लोगो को
सुना सुना
सबका दिमाग
खराब यूँ ही
हमेंशा करने
यहाँ भी
चले आते हैं।

शनिवार, 30 जून 2012

मूल्याँकन


हेलो हेलो हेलो

बोलो जी बोलो

परीक्षा मूल्याँकन
का काम
ऊपर
से
विशेष आपके
लिये ही
आया है

तीन तीन सौ
कापियों के पूरे
बीस
बंडलों का लौट
हमने अभी
ट्रक से
उतरवाया है

तुरंत उठवा के 
यहां से ले जाइये
सात दिन के अंदर
जांच के हमको
वापस भिजवाइये

किस
प्रश्नपत्र की हैं
कोई अंदाज हो 
तो हमें जरा बताइये

सूरदास तुलसीदास
टाईप की लगती हैं 
हिन्दी की हैं
यही 
मान ले जाइये

जनाब
हिन्दी की
कैसे जाँच पाऊंगा
गैर कानूनी काम है
कहीं
फंस फंसा तो
नहीं मैं जाउंगा
फिर
किसको अपना
मुँह दिखा पाउंगा

डरने
की जरूरत
बिलकुल नहीं है जनाब
सब लोग हम है
मजबूती से एक
दूसरे के पक्का साथ

जल्दी
परीक्षाफल
अगर निकाल ले जायेंगे

अपने लिये ना सही
अपने साहब के लिये
कोई
तमगा कहीं से
तो
एक बटोर लायेंगे

इसलिये
दिमाग हमने
बहुत लगाया है

जिसका
विषय जो है
उसकी कापियों
को
किसी और को जाँचने
के लिये
भिजवाया है

किसने
क्या लिखा है
अगर समझ में 
ही
नहीं आयेगा

परीक्षक
झक मारकर
कापी अंदर से देखने
का काम
नहीं बढ़ायेगा

बाहर से ही
अंक
कुछ तो
टिका ले ही जायेगा 

हमारा
काम भी 
फटाफट हो जायेगा

कौन
पूछ रहा है फिर
पेमेंट
भी आपका
हाथों हाथ जब 
हो ही
जायेगा।

शुक्रवार, 29 जून 2012

सरकारी राय

शहर का
एक इलाका
सड़क में पड़ी
पचास मीटर
लम्बी दरार
लपेट में आये
कुछ लोगों
के घर चार

जिलाधिकारी आया
साथ में
सत्ता पक्ष के
विधायक को लाया

मौका मुआयना हुआ
नीचे खुदा हुआ बहुत
बड़ा एक पहाड़
सबको सामने दिखा

कुछ दिन पहले सुना
बड़ी बड़ी मशीने
रात को आई
रात भर आवाजेंं कर
सुबह को पता नहीं
किसने कहाँ पहुँचाई

किसने खोदा
सबके मुँह
तक नाम
आ रहा था
गले तक आकर
पीछे को
चला जा रहा था

इसी लिये कोई
कुछ भी बताने
में इच्छुक नजर
बिल्कुल भी
नहीं आ रहा था

जिलाधिकारी
अपने
मातहतों के उपर
गुस्सा बरसा रहा था

अखबार में
अखबार वाला भी
खबर छपवा रहा था

नाम
पर किसी का
नहीं कहीं भी कोई
आ रहा था

हर कोई
कोई है
करके सबको
बता रहा था

सरकारी अमला
घरवालों के घरों
को तुरंत खाली
करवा रहा था

साथ में मुफ्त में
समझाये भी
जा रहा था

जब देख रहे थे
पहाड़ नीचे को
जा रहा था

तो किस बेवकूफ
के कहने पर तू यहाँ
घर बना रहा था

खोदने वाले को
कुछ नहीं
कोई कर पायेगा

भलाई तेरी
इसी में
दिख रही है
अगर
तू बिना
कुछ कहे
कहीं को
भाग जायेगा

इसके बाद
भूल कर भी
जिंदगी में
कहींं पर
घर बनाने
की गलती
दुबारा नहीं
दोहरायेगा।

गुरुवार, 28 जून 2012

दीवाने/बेगाने

चाँद
सोचना

चाँदनी
खोदना

तारों की
सवारी

फूलों पर
लोटना


तितलियों
को देख

खुश
हो जाना

मोरनियाँ
पास आयें

मोर
हो जाना

पंख फैलाना
नाच दिखाना

आँखे कहीं
दिख जायें

बिना देखे
कूद जाना

तैरना
आता हो

तब भी
डूब जाना


किसी और
को पिलाना

बहक खुद
ही जाना

जमाना
तो है ऎसे 

ही दीवानो
का दीवाना


लकड़ी की
सोचना

मकड़ियों
को देखना

सीधा कोई
मिल जाये

टेढ़ा हो जाना

मिट्टी तेल
की ढिबरी

से चाँद
तारे बनाना

जब तक
पडे़ नहीं

बैचेनी
दिखाना

पड़ी में
दो लात

ऊपर
से खाना

गधे की
सोचना

शुतुरमुर्ग
हो जाना


किसी के
भी फटे में

जाकर के
टांग अढ़ाना

किसकी
समझ में

आता है
ऎसों
का गाना

टूटे फूटे इन
बेगानों को

किसने है
मुँह लगाना।

बुधवार, 27 जून 2012

विदाई

आज मैडम जी को
विदा कर के आया
उनके अवकाश ग्रहंण
के उपलक्ष्य में था
विभाग ने एक
समारोह करवाया
विदाई समारोह में
ऎसा महसूस होने
लग जाता है
मजबूत से मजबूत
आदमी भी थोड़ा
भावुक अपने को
जरूर दिखाता है
कौऎ मुर्गी कबूतर
भी होते हैं कहीं
आस पास में मौजूद
माहौल उन सबको भी
बगुला भगत बनाता है
एक के बाद एक
मँच पर बोलने
को बुलाया जाता है
कभी कुछ नहीं
कहने वाला भी
लम्बा एक भाषण
फोड़ ले जाता है
कोई शेर लाता है
शायर हो जाता है
कोई गाना सुनाता है
किशोर कुमार की
टाँग तोड़ने में जरा
भी नहीं घबराता है
कविता ले के आने वाला
अपने को सुमित्रा नन्दन पँत
हूँ कहने में नहीं शरमाता है
सेवा काल में सबसे ज्यादा
गाली खाने वाला जो होता है
सबसे बड़ी माला
वो ही तो पहनाता है
सारे गिले शिकवे भूल कर
नम आँखों से मुस्कुराता है
आँसू बनाने के लिये
कोई भी ग्लीसरीन
तक नहीं लगाता है
शब्दों का चयन देखने
लग जाये अगर कोई
अपने को अर्थ ढूढने में
असमर्थ पाता है
भावार्थ ढूँढने के लिये
घर वापस लौट कर
शब्दकोष ढूँढने
लग जाता है
इससे सिद्ध ये जरूर
लेकिन हो जाता है
कि अवकाश ग्रहण
करना माहौल को
ऊर्जावान जरूर ही
बना ले जाता है
फिर ये समझ में
नहीँ आ पाता है
कि विभागों में
शाँति व्यवस्था
कायम करने के लिये
अवकाश लेने देने को
हथियार क्यों नहीं
सरकार द्वारा एक
बना लिया जाता है ।

मंगलवार, 26 जून 2012

सच्ची बात

दिमाग
है जितना
अपने पास में
पूरा लगाता हूँ

चालाकी
अपनी ओर
से पूरी कर
ले जाता हूँ

किस्मत
का मारा
मगर कहीं तो
फँसा फिर भी
लिया जाता हूँ

साहब
करते हैं
कोशिश मुझे
घोड़ा अपना
बनाने की

गधा
तक बन
कर बीच में ही
रुक जाता हूँ

देखलो
उनको भी
चूना लगा
इस तरह मैं
ले जाता हूँ

लदवाना
जहाँ
चाहते हैं
बोरा 
एक
मेरे ऊपर


झोला
ही उनका
बस उठा के
ले जाता हूँ

चमचागिरी
करना भी
चाहूँ कभी

ठीक
मौके पर
आकर के
शरमा
ही जाता हूँ

चालाकी
का नमूना
फिर भी
देखिये जनाब

शहर
के हर
कोने में
उनके चमचे
के नाम
से फिर भी
जाना जाता हूँ

अपनी
गली में
पहुँचा नहीं जैसे
शेर
एक बब्बर
सा हो जाता हूँ

प्लास्टिक
के नाखून
पहन कर के
सारे मोहल्ले
की बिल्लियों
को डराता हूँ

सही
जगह पर
माना कि कुछ
कह नहीं पाता हूँ

यहाँ
पहुँच कर
सच्ची बात मगर
दोस्तों को अपने
जरूर बताता हूँ

बताइये
क्या थोड़ा
सा भी
कहीं किसी से
शरमाता हूँ।

सोमवार, 25 जून 2012

कार ला दो एक उधार ला दो


सुनो जी 

सुनो जी 

एक कार 

अब तो
ले ही 
आते हैं

पैसा 
अपना 
किसी बैंक में 

पहले
फिक्स 
करवाते है 

उसके बाद 

किसी से 
कुछ उधार 
लेने की 

योजना 
एक 
बनाते हैं

बैंक से 
उधार 
लेने पर तो 

ब्याज 
सिर चढ़ता 
चला जायेगा

किसी 
पड़ोसी 
या दोस्त
को फसाने से 

काम 
बहुत आसान 
हो जायेगा

कुछ लम्बा 
समय भी 
मिल जायेगा 

और 
खाली मूलधन 
लौटाने से भी 

काम
हमारा चल 
ही जायेगा

आज से ही 
रेकी करना
आप शुरू 
कर डालिये

पहले 

पैसे वाले 
जो पैदल 
चला करते हैं

उन पर 
नजर डालिये

ऎसे लोग 
बड़ी किफायत
के साथ 
चला करते हैं

पैसा बर्बाद 
बिल्कुल नहीं
कभी करते हैं 

बस 
जरूरत 
की चीजें 
ही खरीदा 
करते हैं

छोटे 
समय में 
इन लोगों 
के पास 

अच्छी
पूंजी जमा 
हो जाती है

जो किसी 
के भी कहीं
काम में नहीं 
आ पाती है

इन 
लोगों को 
अपने 
पैसे को 

कहीं 
लगाना 
आप 
सिखलाइये

जमाना 
कहाँ से कहाँ
पहुँच गया है 

इनको 
आईना 
दिखलाइये

जीने चढ़ 
उतर कर

ये 
इधर 
उधर 
पैदल 
जाते रहें 
कहीं भी

हमें 
मतलब नहीं

बस 
हमारे ऊपर 
थोड़ा सा 
तरस 
ये खा सकें 

इसके लिये
इनके सामने 
गिड़गिड़ाने में 

आप 
बिल्कुल 
भी ना 
शर्माइये

सफाई 
कर्मचारी तक
आजकल 

झाडू़
लेकर
कार पर 
आने लगे हैं

हमें भी 
एक कार 
दिलवाकर 

इज्जत 
हमारी 

नीलाम 

सरेआम 
होने से 
बचाइये।

रविवार, 24 जून 2012

कुछ नया किया जाये

खुद के
मन के अंदर
घुमड़ रहा हो जो

जरूरी नहीं
उसका बादल
बनने दिया जाये

दूसरा बादल
कहीं और
बना के क्यों ना
बरसने दिया जाये

अपने चेहरे को
अपने आईने
में ही देखा जाये

जरूरी नहीं
जो दिखे खुद को

उसे किसी
और को
दिखाया जाये

अपने अपने
आईने को
पर्दों से
ढक दिया जाये

कोई क्या
देख रहा है
उनके अपने
आईने में
किसी से
ना पूछा जाये

वीराने
बुनने वालों को
किसी दिन
बिल्कुल भी
ना टोका जाये

एक दिन
तो ऎसा हो

जिस दिन
अपने गमलों
को बस
देखा जाये

उनकी
आवारगी
को आज
नजरअंदाज
कर दिया जाये

एक दिन
के लिये सही 

अपना ही
आवारा 
हो
लिया जाये

चुपचाप
आज दिन में ही
सो लिया जाये

कुछ पल
का ही सही
मौन ले
लिया जाये

अपनी
बक बक
की रेल को
लाल सिग्नल
दिया जाये

किसी
और का
सुरीला गीत
आज के लिये
सबको सुनने
को दिया जाये।

शनिवार, 23 जून 2012

जरूरत है

जरूरत है एक
अदद अधिकारी की
एक उसके नीचे के
भी एक कर्मचारी की
शैक्षिक योग्यता
क्या होनी चाहिये
ये अभी किसी को
नहीं बताया जायेगा
साक्षात्कार के समय
अभ्यर्थी का ये
सस्पेंस भी दूर
कर दिया जायेगा
काम के बारे में
हर राज अभी के
अभी यहीं पर
खोल दिया जायेगा
पहला काम यह है
कभी भी काम पर
कहीं नहीं आना है
जो काम पर आता है
उसके बारे में
पता करके हमें
टेलीफोन से
रोज बताना है
कामचोर और
हरामखोर लोगों का
उत्साह बढा़ना है
कामचोरी के साथ
हरामखोरी भत्ता
भी हर महीने
इनको दिलवाना है
काम करने वाले
लोगों को काली
सूची में डलवाना है
कर सको तो ऎसे लोगों
का बैण्ड बाजा भी
बजवाने में
बिल्कुल भी नहीं
हिचकिचाना है
वेतन के अलावा
कहाँ कहाँ से पैसा
उगाया जा सकता है
इस प्रकार के विषयों
पर पुन:श्चर्या कार्यक्रम
साल मे तीन चार बार
जरूर करवाना है
फीता काटने के लिये
बड़े साहब के अलावा
किसी को नहीं लाना है
वो आ रहे हैं किस दिन
इस बात को केवल
उन लोगों को बताना है
जिनको कभी भी काम
पर कहीं नहीं आना है ।

शुक्रवार, 22 जून 2012

कर नया कुछ

चलिये
आज कुछ

मूड बदल
दिया जाये


कुछ
रूमानी
बातों में

दिल को अपने

जबरदस्ती  
धकेल
लिया जाये


कहाँ से
करें शुरू
कि

मजा ही मजा
हो जाये


पिताजी
आज बिजली

वाला आया था

पुराने
बहुत से बिल

जमा नहीं हुवे हैं
समझाने आया था

छोड़िये भी
रहने दीजिये
इधर से भी
ध्यान हटाते हैं

बारिश
नहीं हो रही है

बहुत समय से
लोग बताते हैं

कुछ
बादलों की

सोच कर
सपनों में ही सही
नमी ले आते हैं

सुनते हो जी
गैस का सिलिण्डर
वापिस आ गया है

मेट को
गाड़ी वाले ने

वापिस लौटा दिया है

कल से स्टोव में

खाना बनाइयेगा

आज
अभी जा के

कैरोसिन
पाँच लीटर

जरा बाजार से
ब्लैक में ले आइयेगा


उफ
एक कोशिश
अंतिम कोशिश

क्या पता
मूड बन ही जाये

अंधे
के हाथ में
कानी बटेर
कहीं
से आ जाये

इंद्रधनुष
देखे सोचे हुवे

एक अर्सा बीत गया

रंगों को
सब काला सफेद

मौका मिलते ही
हर कोई कर गया

चलो
घर पर ही

उसे बना लिया जाये

बल्ब की
तेज रोशनी करके

पानी की फुहारों को
हवा में उडा़या जाये

आम
जनता को

सूचित किया जाता है

बिजली
कटौती से

चूंकि पम्प नहीं
चल पाता है

अगले
दो दिन पानी

नहीं आ पायेगा

जिसे प्यास
लग ही गयी

बिसलेरी बाजार से
अपने लिये खरीद
के ले आयेगा

रहने भी
दीजिये


किसी
और दिन अब

खुश रहने
का जुगाड़

कर लिया जायेगा

आज भी
कटे फटे

मुद्दों पर ही ध्यान
लगाया जायेगा

पढ़ने
वाले भी

इसी के आदी
हो चुके हैं

खाली
कहीं नई

रंगीन बात
छपी
देख
कर यहां


किसी को
तेज
बुखार
आ जायेगा ।

गुरुवार, 21 जून 2012

तुमको तो कुछ आता है

सुना है तुमको
भी कुछ आता है
मेरे को मेरे पड़ोस
में रहने वाला यहीं का
एक मास्टर बताता है
लिखते विखते हो
फिर हिन्दी में टाईप
भी कर ले जाते हो
मेरी समझ में ये
लेकिन नहीं आता
इतनी मेहनत फालतू
काहे कर जाते हो
सीधे सीधे घर के
अखबार में ही
कुछ क्यों नहीं
छपा ले जाते हो
अखबार तो बहुत से
लोगों के द्वारा देखा
और पढा़ जाता है
जिसे कुछ भी नहीं
आता है वो भी अखबार
एक जरूर खरीद
के ले जाता है
अड़ोस पड़ोस मोहल्ले वाले
नाई धोबी सब्जी वाले
को भी पता इस तरह
चल जाता है 
कोई लिख रहा है कुछ
समझ मे नहीं भी आये
तब भी वो कुछ तो
समझ जाता है
कि लिखने वाले को
कुछ आता है
कंप्यूटर में लिखने से
तुमको क्या मिल जाता है
कितने आदमी को
ये बता पाता है
कि तुमको भी
कुछ आता है
कुछ रोज के मजबूरी में
इधर से गुजरने वालोंं को
तो पता चल जरूर जाता है
उसमें से एक कुछ
पढ़ पाता है और
कुछ कह भी जाता है
एक बिना पढे़ लाईक
कर के चला जाता है
किसी को समझ में
नहीं भी आये तो भी
उसको शेयर करने में
ही मजा आ जाता है।

बुधवार, 20 जून 2012

जवान के साथ जा जवान हो जा

कुछ कुछ
खुश खुश
थोड़ा सा
रसिक मिजाज

सबसे जुदा
जुदा अंदाज
वाले एक
हमारे साहब

लगा रहे थे
दूर कहीं
नजर आ रहे एक
सज्जन को जोर
जोर से आवाज

अरे भाई कहां से
आज आ रहे हो
बड़े दिनो बाद
यहां पर हमें
शक्ल दिखा रहे हो

भैय्या जी ने
पान की गिलौरी
को गाल में थोडा़
किनारे को खिसकाया

मुँह ऊपर करके
कुछ स्पष्ट कुछ
अस्पष्ट भाषा में
उनको बताया

शैक्षिक भ्रमण
करके आ रहे हैं
बालक बालिकाओं
को देश के कई
इलाके दिखलाके
वापस ला रहे हैं

साहब ने
उत्सुकता
दिखाते हुवे
एक फार्मूला
हवा में उछाला

खूबसूरत महिलाओं
के साथ ने आदमी
की उम्र को कई बार
कई जगह बहुत
कम है कर डाला

आप भी इसीलिये
आज कुछ जवान से
नजर आ रहे हो

चेहरे से भी अपनी
उम्र कुछ कम
आज बता रहे हो

साहब जी
वैसे तो
आप सही
फरमा रहे हो

पर श्रीमती जी हमे
अकेला कभी कहीं
नहीं जाने देती
इसीलिये हमारे
साथ साथ भ्रमण
में गाइड का काम
खुद ही हैं ले लेती

जवान बच्चों का
साथ मेरी उम्र
पच्चीस साल
अगर कम कहीं कराता

बीबी की परछाई
के छूते ही समय
पचास साल आगे
चला है जाता

जवान ऎसे बताइये
मै कहाँ हो पाउंगा
दो चार भ्रमण अगर
साल में हो गये
भगवान को प्यारा
जरूर ही हो जाउंगा।

मंगलवार, 19 जून 2012

पति पर सट्टा

घर की लड़की
बहन या पुत्री
के लिये पति
एक सर्वश्रेष्ठ
ही ढूँढा जाता है
ठोक बजा कर
उसे हर कोण से
देखा परखा जाता है
जीवन संगिनी बना
कर फिर उसे प्यार
से सहेज कर भेजा
ससुराल को जाता है
यहाँ पर लेकिन
पति की खोज
एक पूरा खेल
वो भी उल्टा
नजर आता है
पहले तो हर
पाँच साल में
एक पति को
अवकाश दे
दिया जाता है
अगले पति की
खोज में नया
फिर बाजार
सजाया जाता है
पहली बार
इस बार तो
गजब सुना है
पाँच सौ करोड़
का सट्टा भी
खेला जाता है
काम का है या
बेकार का है
बिल्कुल भी
नहीं देखा जाता है
कभी कभी इस
जुए में जोकर
भी एक मौका
पा जाता है
इस बार महसूस
पता नहीं क्यों हो
रहा है कहीं कोई
उपर की मंजिल
खाली तो मौका
नहीं पा जाता है
मालूम सबको है
पर देखना भी है
ऎ राष्ट्र कि इस
बार तू किस
बेवकूफ को
वरमाला इनके
इशारों पर
पहनाता है ।

सोमवार, 18 जून 2012

नयी कबड्डी

पता ही नहीं
लग पा रहा है
मेरे घर में क्या
होने जा रहा है
हर महीने विपक्ष
से एक पक्ष में
आ कर मिल
जा रहा है
वोटर तेरे वोट
का ये सिलसिला
तेरे को दिया
जा रहा है
क्या तेरी समझ में
ये सब साफ साफ
आ रहा है
तेरा नेता तेरे को
कोई धोखा सीधे
सीधे दिये जा रहा है
सुना है तीन महीने
के अंदर विपक्ष भी
पक्ष के अंदर सेंध
लगाने के लिये
जा रहा है
बड़ा छेद करके
खुद सरकार अपनी
बनाने जा रहा है
वोटर तेरे को
सांप क्यों सूंघ
जा रहा है
तू कुछ क्यों नहीं
बोल पा रहा है
मेरी समझ में
तेरा इस
तरह शर्माना
बिल्कुल भी नहीं
आ पा रहा है
आइडियोलोजी के
कालर खडे़ करने
वालों को पसीना
क्यों आ रहा है
मुझे तो किसी पर
क्या कमेंट करूंं
कुछ कहना ही
नहीं आ रहा है
पर क्या
यह व्यवहार
वेश्यावृति से
सौ प्रतिशत मेल
नहीं खा रहा है।

रविवार, 17 जून 2012

तेरा दिन है आज

हैप्पी फादर्स डे

बापू
आज मुझे 
तू बहुत याद आ रहा है

सुना है तेरा दिन है
और तू उसे धूमधाम से
कहीं मना रहा है

अखबार टी वी मीडिया
हर जगह तेरी फोटो को
दिखाया जा रहा है

बचपन से बढ़कर
जवान भी अगर कोई हो जाता है

बापू तू सामने खड़ा
बेटे को हर जगह नजर आता है

शादी होते ही बेटे की
बापू लोगों का वेट 
थोड़ा सा कम हो ही जाता है

तू बापू के साथ
एक लड़की का ससुर जो हो जाता है

समझदार बापू अगर हो
अपने बैंक बैलेंस से
बैलेंस इसको कर ही ले जाता है

दिमागदार बापू इस तरह 
मरने मरने तक बापू का तमगा
चमकाये चला जाता है बहुत कुछ पाता है

फादर्स डे को ग्रीटिंग कार्ड
डाकिया भी उसको देने आता है

जेब अपनी हल्की कर गया
जिंदगी में गल्ती से भी कहीं
वो वाला बापू पूअर डैडी हो जाता है

फादर्स डे के दिन
अखबार के विज्ञापन में
बाप का फोटो देखता है
थोड़ी देरे को सँजीदा हो जाता है 
बेटे की  चिंता में फिर से कहीं खो जाता है ।

शनिवार, 16 जून 2012

प्रेम की परिभाषा

आखें
बंद कर
जैसे कहीं
खो बैठे वो

प्रेम के
सागर में
गोते जैसे
खाने
अचानक
लगे हों

पूछने लगे
हमसे
भैया जी
प्रेम की कोई
परिभाषा
जरा हमेंं
बताइये
प्रेम है
क्या बला
जरा हमेंं
आप आज
समझाइये

'प्रेमचंद' की
'ईदगाह'
के
'हामिद' का
उसकी
दादीजान से
'मीराबाई'
का 'कृष्ण'से
पिता का पुत्र से

या फिर
किसी भी
तरह का प्रेम
जो आपकी
समझ में
आता हो
प्रेम के
सागर की
लहरों में
हिलोरों में
झूला आपको
कभी झुलाता हो

बडा़ झंझट
है जी
हमारे
साथ ही
अक्सर
ऎसा क्यों
हो जाता है
जो सबको
मुर्गा दिखाई
दे रहा हो
हमारे सामने
आते ही
कौआ काला
बन जाता है

'हामिद' सुना
था कुछ
फालतू काम
करके आया था
अपनी दादीजान
की उंगलियां
आग से बचाने
के लिये मेले से
चिमटा एक
बेकार का
खरीद कर
लाया था

'मीराबाई'
भी जानती थी
शरीर नश्वर है
और
'कृष्ण' उसके
आसपास भी
कभी नहीं
आया था

मरने मरने
तक उसने
अपने को यूँ ही
कहीं भरमाया था

किसने
देखा प्रेम
किसी
जमाने की
कहानियाँ
हुआ करती थी

प्रेम
अब लगता है
वाकई में
इस जमाने
में ही खुल
कर आया है

सब कुछ
आकर देखिये
छोटे छोटे
एस एम एस
में ही समाया है

जिंदगी के
हर पड़ाव
में बदलता
हुआ नये
नये फंडे
सिखाता
हमें आया है

नये रंग के साथ
प्रेम ने नया एक
झंडा हमेशा ही
कहीं फहराया है

चाकलेट
खेल खिलौने
जूते कपड़े
स्कूल की फीस
छोटे छोटे
उपहार
कर देते थे
तुरंत ही
आई लव यू
का इजहार

प्रेम की
वही खिड़की
विन्डो दो हजार
से अपडेट हो कर
विन्डो आठ जैसी
जवान हो कर
आ गयी है तैयार

तनिश्क
के गहने
बैंक बैलेंस
प्रोपर्टी
कार
हवाई यात्रा
के टिकट के
आसपास
होने पर
सोफ्टवेयर
कम्पैटिबल है
करके बता जाती है

खस्ता हाल
हो कोई अगर
उसके प्रेम
के इजहार पर
अपडेट कर लीजिये
का एक
संदेश दे कर
हैंग अपने आप
ही हो जाती है।

शुक्रवार, 15 जून 2012

कुछ नहीं

अच्छा तो फिर 
आज क्या कुछ 
नया यहाँ लिखने
को ला रहे हो
या रोज की तरह
आज भी हमको
बेवकूफ बनाने
फिर जा रहे हो
ये माना की
बक बक आपकी
बिना झक झक
हम रोज झेल
ले जाते हैं
एक दिन भी नागा
फिर भी आप
कभी नहीं करते
कुछ ना कुछ
बबाल ले कर
यहाँ आ जाते हैं
लगता है आज कोई
मुद्दा आपके हाथ
नहीं आ पाया है
या फिर आपका
ही कोई खास
फसाद कहीं कुछ
करके आया है
कोई बात नहीं
कभी कभी ऎसा
भी हो ही जाता है
मुर्गा आसपास
में होता तो है
पर हाथ नहीं
आ पाता है
आदमी अपनी
जीभ से लाख
कोशिश करके भी
अपनी नाक को
नहीं छू पाता है
लगे रहिये आप
भी कभी कमाल
कर ले जायेंगे
कुछ ऎसा लिखेंगे
कि उसके बाद
एक दो लोग
जो कभी कभी
अभी इधर को
आ जाते हैं
वो भी पढ़ने
नहीं आयेंगे
कुछ कहना लिखना
तो दूर रहा
सामने पढ़ ही गये
किसी रास्ते में
देखेंगे आपको जरूर
पर बगल की गली से
दूसरे रास्ते में खिसक
कर चले जायेंगे
बाल बाल बच गये
सोच सोच कर
अपने को बहलायेंगे।

गुरुवार, 14 जून 2012

चाँद मान भी जा

गैस के सिलिण्डर
पानी बिजली
की कटौती से
ध्यान हटवा
ऎ चांद अपनी
चाँदनी और सितारों
के साथ कभी तो
मेरे ख्वाबों में भी आ
भंवरों की तरह
मुझ से  भी कभी
फूलों के ऊपर
चक्कर लगवा
खुश्बू से तरबतर कर
धूऎं धूल धक्कड़
सीवर की बदबू से
कुछ देर की सही
राहत मुझे दिला
इतनी नाइंसाफी ना कर
कोई दिये जा रहा है
किसी को अपने
घर के गुलदस्ते
और फूलों को
ला ला कर
मुझ को भी कोई
ऎसा काम कभी
पार्ट टाईम
में ही दिलवा
रोज आलू सब्जी
दाल चावल की
लिस्ट हाथों में
मेरे ना थमवा
मानता हूँ हुए
जा रहा है बहुत कुछ
अजब गजब सा
चारों तरफ हर ओर
इन सब पर कभी तो
कुछ कुछ आशिकों
से भी लिखवा
कुछ देर के लिये सही
मेरी सोच को बदलवा
मुझे भी इन सब लोगों
का जैसा बनवा
ऎ चाँद सितारों के
साथ कभी तो आ
कुछ रसीली खट्टी
मीठी बातें कभी
मुझसे भी लिखवा
बस अजूबों पर ही
मेरा ध्यान ना डलवा
आज के आदमी
का अक्स मेरे
अंदर भी ले आ
ऎ चांद अपनी
चाँदनी और सितारों
के साथ कभी तो
मेरे ख्वाबों
में भी आजा।

बुधवार, 13 जून 2012

कुछ तो सीख

रसोईया मेरा
बहुत अच्छे
गाने सुनाता है

तबला थाली से ही
बजा ले जाता है
बस कभी कभी
रोटियां जली जली
सी खिलाता है

अखबार देने
एक ऎसा
आदमी आता है
ना कान सुनता है
ना ही बोल पाता है

हिन्दुस्तान
डालने को
अगर बोल दिया
उस दिन पक्का
टाईम्स आफ इंडिया
ले कर आ जाता है

लेकिन दांत बहुत ही
अच्छी तरह दिखाता है

बरतन धोने को जो
महिला आती हैं
छ : सिम और एक
मोबाईल दिखाती है

आते ही चार्जर को
लाईन में घुसाती है
उसके आते ही
घंटियाँ बजनी शुरु
घर में हो जाती हैं

बरतनो में खाना
लगा ही रह जाता है
पानी मेरी टंकी का
सारा नाली में बह
के निकल जाता है

मेहमान मेरे घर
में जब आते हैं
अभी तक
मास्टर ही हो क्या
पूछते हैं
फिर मुस्कुराते हैं

कुछ अब कर
भी लीजिये जनाब
की राय मुझे
जाते जाते जरूर
दे के जाते हैं

अब कुछ
उदाहरण
ही यहाँ पर
बताता हूँ
चर्चा को
ज्यादा लम्बा
नहीं बनाता हूँ

बाकी लोगों के
कामों की लिस्ट
अगले दिन के
लिये बचाता हूँ

पर इन सब से
पता नहीं मैं
अभी तक भी
कुछ भी क्यों नहीं
सीख पाता हूँ।

मंगलवार, 12 जून 2012

विद्वान की दुकान

विद्वानो की छाया तक
भी नहीं पहुंच पाया
तो विद्वता कहाँ
से दिखा पाउंगा
कवि की पूँछ भी
नहीं हो सकता
तो कविता भी
नहीं कर पाउंगा
विचार तो थोड़े से
दिमाग वाले के भी
कुछ उधार ले दे के
भी पनप जाते हैं
कच्ची जलेबियाँ पकाने
की कोशिश जरूर करूंगा
हलुआ गुड़ का कम से कम
बना ही ले जाउंगा
भैया जी आपकी
परेशानी बेवजह है
किसी लेखन प्रतियोगिता
में भाग नहीं ही
कभी लगाउंगा
अब जब दुकान
खोल के बैठ ही गया
हूँ इस बाजार में
तो किसी ना किसी
तरह जरूर चलाउंगा
कहाँ कहाँ पिट पिटा
के आउंगा मलहम
कौन सा उसके बाद
हकीम लुकमान से
बनवा के लगवाउंगा
अब बोलचाल की
भाषा में ही तो यहाँ
आ के बता पाउंगा
किसी से कहलवा कर
पैसे जेब के लगवाकर
आई एस बी एन नम्बर
वाली कोई किताब भगवान
कसम नहीं छपवाउंगा
चिंता ना करें किसी नयी
विधा का अपने नाम से
जन्म/नामकरण हुवा है
कहकर कोई नया
सेल्फ फाईनेंस कोर्स
भी नहीं कहीं चलवाउंगा
आप अपनी दुकान की
चिंता करिये जनाब
अपने धंधे से आपके
व्यवसाय के रास्ते में
रोड़े नहीं बिछाउंगा
कोई नुकसान आपकी
विद्वता को मैं अनपढ़
बताइये कैसे पहुंचाउंगा।

सोमवार, 11 जून 2012

डिस्को मुर्गे

समय के
साथ चलना
जरूरी है

परिवर्तन
के साथ
बदलना
मजबूरी है

मुर्गे
स्वदेशी
इसी चीज के
पीछे पीछे
जा रहे हैं

अपनी
को टोपी
के नीचे
छिपा कर
ऊपर से
विदेशी
कलगी
लगा रहे हैं

जब तक
मुँह नहीं
खोलते
अच्छा प्रभाव
भी जमा रहे हैं

पर बाँग
देते समय
बेचारे
रंगे हाथों
पकड़े भी
जा रहे हैं

अब अपने
घर के
अपने ही
मुर्गे हैं

हम भी
कुछ कह
नहीं पा
रहे हैं

उनकी
बेढंगी चालों
पर ताल
बजा रहे हैं

ना
चाहते
हुवे भी एक
मौन स्वीकृति
दिये जा रहे हैं ।

रविवार, 10 जून 2012

लेखक मुद्दा पाठक


कोई
चैन से 
लिखता है
कोई बैचेनी 
सी दिखाता है

डाक्टर 
के पास 
दोनो ही
में से
कोई 
नहीं जाता है

लिख लेने 
को ही
अपना 
इलाज बताता है 



विषय
हर 
किसी का
बीमारी
है 
या नहीं 
की 
जानकारी 
दे जाता है

कोई मकड़ी 
की
टाँगों में 
उलझ जाता है

कोई किसी 
की
आँखों में 
घुसने का 
जुगाड़ बनाता है

किसी को 
सत्ता पक्ष 
से
खुजली 
हो जाती है

विपक्षियों 
की
उपस्थिति
किसी पर 
बिजली गिराती है

पाठक भी 
अपनी पूरी
अकड़ दिखाता है

कोई क्या 
लिखता है
उस पर 
कभी कभी
दिमाग लगाता है

जो खुद 
लिखते हैं
वो लिखते 
चले जाते हैं

कुछ नहीं 
लिखने वाले

इधर उधर 
नजर मारते
हुवे

कभी 
नजर आ जाते हैं

हर मुद्दे पर 
कुछ ना कुछ
लिखा हुवा 
मिल
ही जाता है

गूगल 
आसानी से 
उसका पता 
छाप ले जाता है

किसी को 
एक
पाठक भी 
नहीं मिल पाता है

कोई सौ सौ 
को लेकर
अपनी ट्रेन 
बनाता है

कुछ भी हो 
लिखना पढ़ना 
बिना रुके
अपने रास्ते 
चलता चला 
जाता है

मुद्दा भी 
मुस्कुराता है

अपने
काम पर 
मुस्तेदी से 
लगा हुवा

इसके बाद
भी 
नजर आता है।

शनिवार, 9 जून 2012

उल्लू की रसोई

रोज
कोशिश
करता हूँ

कुछ
ना कुछ
पका ही
ले जाता हूँ

खुद
खाने के
लिये नहीं
यहाँ परोसने
के लिये
ले आता हूँ

कुछ
खाने वाले
खीर को
आईसक्रीम
बताते हैं

चीनी
डाली है
कहने पर
नमक तेज
डाल दिया
तक
कह जाते हैं

अब
रसोईया
वही तो
पका पायेगा

जिस
चीज का
कच्चा माल
अपने आस पास
उसे मिल जायेगा

खाने
वाले को पसंद
आये तो ठीक
नहीं भी आये
तब भी परोस तो
दिया ही जायेगा

कोई
थोड़ा खायेगा
कोई पूरा
खा जायेगा

कोई कोई
थाली को
सरका कर के
किनारे से
निकल जायेगा

किसी के मन
बहुत ज्यादा
भा गया
खाना मेरा
तो रोटियाँ
अपनी थाली
के लिये भी
उठा ले जायेगा
मेरा क्या जायेगा? 

शुक्रवार, 8 जून 2012

चल मुँह धो कर के आते हैं

अपनी भी
कुछ पहचान
चलो आज
बनाते हैं

चल मुँह धो कर के आते हैं

मंजिल तक
पहुंचने के
लम्बे रास्ते
से ले जाते हैं

कुछ
राहगीरों को
आज राह से
भटकाते हैं

चल मुँह धो 
कर के आते हैं

चलचित्र 'ए'
देखने का
माहौल बनाते हैं

उनकी आहट
सुनते ही
चुप हो जाते हैं

बात
बदल कर
गांंधी की
ले आते हैं

चल मुँह धो 
कर के आते हैं

बूंद बूंद
से घड़ा
भर जाये
ऎसा
कोई रास्ता
अपनाते हैं

चावल की
बोरियों में
छेद
एक एक
करके आते हैं

चल मुँह धो 
कर के आते हैं

अन्ना जी से
कुछ कुछ
सीख  कर
के आते हैं

सफेद टोपी
एक सिलवाते हैं

चल मुँह धो कर के आते हैं

किसी के
कंधे की 
सीढ़ी एक
बनाते हैं


ऊपर जाकर
लात मारकर
उसे नीचे
गिराते हैं

सांत्वना देने
उसके घर
कुछ केले ले
कर जाते हैं

चल मुँह धो कर के आते हैं

देश का
बेड़ा गर्क
करने की
कोई कसर
कहीं
नहीं छोड़
कर के जाते हैं

भगत सिंह
की फोटो
छपवा कर के
बिकवाते हैं



चल मुँह धो कर के आते हैं


एक रुपिया
सरकारी
खाते में
जमा करके

बाकी
निन्नानबे
घर अपने
पहुंचवाते हैं



चल मुँह धो कर के आते हैं


अपनी
भी कुछ
पहचान
चलो आज
बनाते हैं

चल मुँह धो कर के आते हैं।

गुरुवार, 7 जून 2012

आपदा फिर से आना

भीषण हुवी थी
उस बार बरसात
आपदा थी
दूर कहीं एक गाँव था
एक स्कूल था
दर्जन भर बच्चे थे
मौत थी वीरानी थी
कुल जमा दो
साल पहले की
ये बात थी
सभी को हैरानी थी
निकल गयी उसके
बाद कई बरसात
मंत्री जी से ठेकेदार
पैसे की थी इफरात
स्कूल फिर से गया
उसी जगह पर बनाया
मंत्री जी
हो गये भूतपूर्व
सरकार को
इस बीच गंवाया
अखबार हो गये
सब जब दूर
खबर बनाने को
स्कूल के
उदघाटन का
मन बनाया
कार्यक्रम होने
ही वाला था
पूर्व संध्या को
स्कूल भरभराया
सीमेंट रेता
मिट्टी हो कर
जमीन में सोने
चला आया
हाय रे हाय
वर्तमान सरकार
ठीकरा तेरे सर
फूटने को आया
मंत्री जी ने अपनी
झेंप को मिटाया
सी बी आई से
होगी इन्क्वारी
का भरोसा गांव
वालों को दिलवाया
लाव लश्कर के साथ
अपना काफिला
वापस लौटाया
ऎसा वाकया
पहली बार
देखने में
है आया।

बुधवार, 6 जून 2012

आँख आँख

घर में आँख से
आँख मिलाता है

खाली
बिना बात के
पंगा हो जाता है

चेहरा फिर भाव
हीन हो जाता है

बाहर आँख वाला
सामने आता है
कन्नी काट कर
किनारे किनारे
निकल जाता है

आँख वाली से
आँख मिलाता है
डूबता उतराता है
खो जाता है

चेहरा नये नये
भाव दिखाता है

रोज कुछ लोग
घर पर आँख
को झेलते हैं

बाहर आ कर
खुशी खुशी
आँख आँख
फिर भी खेलते हैं

आँख वाली
की आँख
गुलाबी
हो जाती है

आँख वाले
को आँखें
मिल जाती हैं

सिलसिला सब ये
नहीं चला पाते हैं
कुछ लोग इस कला
में माहिर हो जाते हैं

करना वैसे तो बहुत
कुछ चाहते हैं
पर घर की आँखों
से डर जाते हैं

इसलिये बस
आँख से आँख
मिलाते हैं

पलकें झुकाते हैं
पलकें उठाते हैं
रोज आते हैं
रोज चले जाते हैं

आँख आँख में
अंतर साफ साफ
दिखाते हैं ।

मंगलवार, 5 जून 2012

पर्यावरण दिवस

कटे पेड़ों
के ठूँठ/
भूल जा
मत ढूँढ

अपने आप
जलती घास/
जंगल में आग

धुंआ धुआ
आसमान/
नदी टी बी
जैसी जान

शहर शहर
कूडे़ के ढेर/
गाँधी के
बंदर हो
गये सब
मिट्टी के शेर

आज मौका
है आजा/
भाषण कुछ
भी पका जा

स्मृति चिन्ह
से शुरु/
मानदेय है
तगड़ा गुरू

विज्ञान
ही नहीं
जरूरी
आवरण/
इतिहास
समाजशास्त्र
राजनीति विज्ञान
कला पहले
करेंगे वरण

टेंट हाउस
कुर्सी
मेज दरी/
साउंड सर्विस
कांच के
गिलास
टी कोस्टर
का कवर
बिसलेरी


पेड़
जंगल पहाड़
गूगल कट पेस्ट
पावर पोइंट
प्रेजेन्टेशन /
सूट बूट टाई
नामी
गिरामी हस्ती
बुके चेस्ट बैज
नो टेंशन

खाना वाना
लजीज /
स्वीट डिश
दिल अजीज

आना जाना फ्री /
ऎ सी रेल टिकट
फोटो कापी भी

काकटेल
पार्टी हसीन /
शाम रंगीन
बेहतरीन

फोटो सेशन
पत्रकार/
अखबार
ही अखबार

बिल विल
दस्तखत
कागज /
हिसाब
किताब
घाटे का
बजट
पर्यावरण
दिवस /
बधाई जी
बधाई
मना ही
लिया जी
अब बस।

सोमवार, 4 जून 2012

गधा बना दो भगवान

आज
गधों पर
कुछ लिखने
का मन
कर रहा है

पर
बहन जी का
बहुत डर
लग रहा है

उल्लू
बिल्ली मुर्गी
पर लिखते हो
कहकर
नाराजगी
एक दिन
वो जता रही थी

इसीलिये
हमारी हिम्मत
यहाँ आकर
बोल ही
जा रही थी

गधे
वैसे तो बहुत
काम के आदमी
हमेशा से
बताये
जाते रहे हैं

इसीलिये
धोबी के
खानदान के साथ
अभी तक
चलते आ रहे हैंं

आदमी
जब एक गधा
हो जाता है
तो लगता है
जैसे कोई
गाली खाता है

क्या करें
गधे टाईप
के आदमियों
के बीच में
जब कोई
फंस ही
कहीं जाता है

तो गधा हूँ
इसीलिये
तो यहाँ हूँ
कहता है
और
मुस्कुराता है

गधों के
किये गये
कामों पर
टल्लियाँ लगाता
चला जाता है

ना कुछ
कर पाता है
ना ही कुछ
कह पाता है

बस गधों
की किस्मत
से खार खाता है

अगले जनम
मोहे
गधा ही कीजो

की बिनती

हाथ जोड़
प्रभू के द्वार
पर लगाता है।

रविवार, 3 जून 2012

राष्ट्रीय कुप्रबंधन संस्थान

देश जहाँ निरक्षर
को साक्षर बनाता है
वहीं पर साक्षर
सबसे ज्यादा देश
को चूना लगाता है
प्रबंधन को बहुत
आसानी से कुप्रबंधन
बनाया जाता है
हर कहीं ये
दूर दूर से भी
साफ नजर
आ जाता है
व्यापार में जब
कुछ भी आजमाया
जाता है
तो किसी के
दिमाग में ये क्यों
नहीं आता है
कुप्रबंधन संस्थानों
को रोजगार का
जरिया क्यों
नहीं अभी भी
कोई बनाता है
चहेते कुप्रबंधकों
को भी कहीं
नौकरी में घुसा
ले जाता है
प्रबंधन गुरुओं की
खेप में उसे नहीं
मिलाता है
इस तरह की
सोच से देश
को क्यों नहीं
बचा ले जाता है।


शनिवार, 2 जून 2012

गोबर

गोबर के जब
उपले बनाता है
बहुत सी टेढ़ी
वस्तुओं को
गलाने की ताकत
उसे जलाने से
पा जाता है
गोबर की खाद
बनाता है
खेत खलिहान
को आबाद
कर ले जाता है
गोबर की चिनाई
करवाये चाहे
गोबर की लिपाई
कीड़े मकोड़ों की
विदाई करवाता है
गोबर के पार्थिव
पूजन से शिव का
आशीर्वाद पा जाता है
शरीर को रोगमुक्त
करवाने का एक
वरदान पा जाता है
गोबर के एक गणेश
की तीव्र इच्छा होना
हर पत्नी की विशलिस्ट
में जरूर पाया जाता है
गोबर का प्रयोग
पर्यावरण को नुकसान
भी नहीं पहुँचाता है
इतने मह्त्वपूर्ण गोबर
को जब मनुष्य अपने
दिमाग में घुसाता है
तो किसी भी वस्तु को
गोबर में बदलने की
महारत हासिल
कर ले जाता है।

शुक्रवार, 1 जून 2012

मुर्गी की दाल

समझदार मुर्गी
अपनी सूरत
और सेहत को
कभी नहीं
बढा़ती है
दुश्मनी होती है
जिस मुर्गी से
उसे खूब
खिलाती और
पिलाती है
वैसे तो हर बाडे़
में मुर्गियाँ ही
मुर्गियाँ हर तरफ
फड़फडा़ती हैं
लेकिन हर मुर्गी
की तरफ हर
किसी की नजर
कहाँ जाती है
ये वाकई
समझदारी
की बात सभी
के द्वारा
बताई जाती है
एक कानी मुर्गी
ही मुर्गियों के
द्वारा रानी
चुनवायी जाती है
बाड़े की सेहतमंद
खूबसूरत मुर्गी
सबकी नजर में
लाई जाती है
चाहने वालों
के हाथों कहीं
ना कहीं कटवा
दी जाती है
मर खप
जब जाती है
फिर पकवाई
भी जाती है
खाने वालों के
नखरे सहती है
और दाल
बताई जाती है
कानी मुर्गी
इसी बीच कहीं
जंगल में जाकर
नाच आती है
जंगल में मोर
नाचा की
एक खबर
अखबार
में आती है
कितने आसान
तरीके से
घर की मुर्गी
दाल बराबर
सबको समझा
जाती है।

गुरुवार, 31 मई 2012

निठल्ले का सपना

कौआ अगर
नीला होता
तो क्या होता

कबूतर भी
पीला होता
तो क्या होता

काले हैं कौए
अभी भी
कुछ नया कहाँ
कर पा रहे हैं

कबूतर भी
तो चिट्ठियों 

को नहीं ले
जा रहे हैं

एक निठल्ला
इनको कबसे
गिनता हुवा
आ रहा है

मन की कूँची
से अलग
अलग रंगों
में रंगे
जा रहा है

सुरीली आवाज
में उसकी जैसे
ही एक गीत
बनाता है

कौआ
काँव काँव
कर चिल्ला
जाता है

निठल्ला
कुढ़ता है
थोड़ी देर
मायूस हो
जाता है

जैसे किसी
को साँप
सूँघ जाता है

दुबारा कोशिश
करने का मन
बनाता है

कौए को छोड़
कबूतर पर
ध्यान अपना
लगाता है

धीरे धीरे तार
से तार जोड़ता
चला जाता है

लगता है जैसे
ही उसे कुछ
बन गयी
हो बात

एक सफेद
कबूतर
उसके सर
के ऊपर से
काँव काँव कर
आसमान में
उड़ जाता है।

बुधवार, 30 मई 2012

झंडा है जरूरी

ये मत समझ लेना
कि वो बुरा होता है

पर तरक्की पसन्द
जो आदमी होता है

किसी ना किसी
दल से जरूर
जुड़ा होता है

दल से जो 
जुड़ा
हुवा नहीं होता है

उसका दल तो
खुद खुदा होता है

स्टेटस उसका बहुत
उँचा उठा होता है

जिसके चेहरे पर
झंडा लगा होता है

सत्ता होने ना होने
से कुछ नहीं होता है

इनकी रहे तो
ये उनको
नहीं छूता है

उनकी रही तो
इनको भी कोई
कुछ नहीं कहता है

इस बार इनका
काम आसान होता है
उनका ये समय तो
आराम का होता है

अगली बार उनका
हर जगह नाम होता है
इनका कुन्बा दिन
हो या रात सोता रहता है

बिना झंडे वाले
बकरे का
बार बार काम
तमाम होता है

जिसे देखने
के लिये भी
वहाँ ना ये होता है
ना ही वो होता है

भीड़ काबू करने का
दोनो को जैसे कोई
वरदान होता है

भीड़ के एक छोटे
हिस्से पर इनका
दबदबा होता है
बचे हिस्से को
जो काबू में
कर ही लेता है

अपने कामों को
करने के लिये
झंडा मिलन भी
हो रहा होता है

मीटिंग होती है
मंच बनता है
उस समय इनका
झंडा घर में सो
रहा होता है

पर तरक्की पसंद
जो आदमी होता है
किसी ना किसी
झंडे से जुड़ा होता है

जिसका
कोई झंडा
नहीं होता है
वो कभी भी
ना ये होता है
ना वो होता है।

मंगलवार, 29 मई 2012

कुत्ते की पूँछ

कुत्ते सारे
मोहल्ले के

आज सुबह
देखा हमने
जा रहे थे

सब अपनी
अपनी पूँछ
सीधी करके

पूछने पर
पता चला
नाराज हैं

हड़ताल
पर जा
रहे हैं

आज
रात से
गलियों में
भौंकने के
लिये भी
नहीं आ
रहे हैं

क्या दोष
है इसमें
माना सीधी
नहीं हो पाती है
पूँछ हमारी
अगर पाईप के
अन्दर भी रख
दी जाती है

छ: महीने का
प्लास्टर भी
अगर लगाओ
फिर से वैसी
ही टेढ़ी पाओ
जब प्लास्टर
खुलवाओ

सभी लोगों का
अपना अपना
कुछ सलीका
होता है

हर आदमी का
अपने काम को
अपनी तरह
करने का 

एक अलग
तरीका 
होता है

अब अगर
किसी को
किसी का
काम पसंद
नहीं आता है

तो इसके बीच
में कोई कुत्ते
और
उसकी पूँछ
को क्यों
ले आता है

बस बहुत
हो गया

आदमी की
बीमारियों
को अब
उसके अपने
नामों से ही
पंजीकृत
करवाओ

लोकतंत्र है
कुत्तों के
अधिकारों
पर चूना
मत लगाओ

कोई सोच
खुद की
अपनी भी
तो बनाओ।

सोमवार, 28 मई 2012

कूड़ा प्रबन्धन


रोज
घर के 
कूड़े की 
एक थैली
बनाता है

मुंह अंधेरे 
एक चेहरा 
खिड़की से
बाहर
निकल 
कर आता है

ताकत लगा 
कर
थैली को
दूसरे घर
के
आंगन में
पहुँचाता है

चेहरा 
खिड़की बिना 
आवाज किये
बंद करता 
हुआ

लौट
कर अपने 
बिस्तरे पर 
जा कर 
फिर से 
लुढ़क 
जाता है

इस आँगन 
से उस 
आँगन तक
होता हुवा 
थैला

थैलों 
से टकराते
छटकते 

अंतत: 
कूडे़दान
में
समा तो 
नहीं पाता है

पर कुछ 
मुरझाये 
कुछ
थके हारे 
सा होकर 

सड़क तक 
पहुँच कर
फट फटा 
जाता है 

कूड़ा अंदर 
का निकल 
कर बाहर 
खुले में फैल 
जाता है

बाहरी कूडे़ 
का
सलीकेदार
प्रबंधन

मेरे 
शहर के हर 
पढे़ लिखे
को आता है

जैविक अजैविक
कूडे़ की थैलियाँ

आते जाते
कहीं ना कहीं
टकरा
ही जाती हैं 

घर वालों
की
औकात

कूड़े 
में फेंके गये 
सामान से 
मेल भी 
खाती हैंं

थोड़ी सी 
बात 'उलूक'
के
पाव भर 
के
हवा भरे 
दिमाग में 

बस यहाँ 
पर नहीं 
घुस पाती है 

दिमाग
में 
भरे हुवे 
कूडे़ का 
निस्तारण 

वही चेहरा 

अपने 
अंदर से 
कौन से 
थैले में 
और
कहाँ 
जा कर 
कराता है

टी वी
में 
होता है कुछ 
रेडियो
में 
होता है कुछ 

कुछ
अखबार 
के
समाचार में 
चिपका हुआ 
नजर आता है

चेहरा
अपने 
अंदर के कूड़े 
के साथ 
ईमानदारी 
दिखाता है 

कोई थैला 
कहीं भी 
फटा हुआ 
किसी गली 
किसी सड़क 
में नजर 
दूर दूर 
तक भी 
नहीं आता है ।

चित्र साभार: cliparts.co

रविवार, 27 मई 2012

एहसानमंद

एक बूढ़ा और
उसकी बुढ़िया
के एहसानो के
तले मैंने जब
अपने को गले
गले तक दबा
हुआ पाया
कुछ तो
करना ही
चाहिये उनके
लिये मेरे मन
में विचार
एक आया
हालत उनकी
देख कर
देखा नहीं
जा रहा था
एक चल नहीं
पा रहा था
दूसरे से
दाँत टूटने
के कारण
खाया ही
नहीं जा
रहा था
पैसे बच्चों
को देने से
बच्चे बिगड़
जाते हैं
किताबों में
लिखा है
आस पास
में उदाहरण
भी बहुत
मिल जाते हैं
बूढे़ लोग भी
उम्र के इस
पडा़व में
आकर बच्चे
जैसे ही तो
हो जाते हैं
ऎसा करता हूँ
समुद्र के
किनारे से
सौ कोस
दूर टापू
में एक
बडा़ सा
महल
बनाता हूँ
दोनो के
आने जाने
के लिये
दो दो
हाथी भी
रख कर
आता हूँ
खाने के
लिये एक
जहाज भर
कर अखरोट
पहुँचाता हूँ
कुछ धन
उनके नाम
से अपने
खाते में
हर महीने
जमा
करवाता हूँ
उपर वाला
जैसे ही उनको
बुलाता है
मैं समुद्र किनारे
एक मंदिर
बनवाता हूँ
उसमें दोनो
की मूर्ति
लगवाकर
माला फूलों की
पहनाता हूँ ।