उलूक टाइम्स

बुधवार, 29 अगस्त 2012

बाबा चमन चुप हो गया

चमन अपने
घरेलू मोर्चे पर
फेल हुआ
सड़क पर
निकल
कर आया
हरकतें जब
दिखीं उसकी
कुछ अजीबोगरीब
चमन से
चमन बाबा
लोगों ने
उसे बनाया
चमन बाबा
की खासियत
उसी को
समझ में
आती है
जिसकी ऊपरी
मंजिल
चमन बाबा
की सोच से
मेल कहीं
थोड़ा सा
खाती है
चमन बाबा
सड़क पर
रोज कहीं
ना कहीं
टकराता है
जब भी कहीं
एक कौआ
उसको नजर
आता है
एक भजन
उसके होंठो पर
चला आता है
चमन हंसता है
चमन मुस्कुराता है
इधर कुछ दिनो से
चमन बाबा
कुछ उदास सा
नजर आता है
ज्यादातर
किसी टी वी की
दुकान पर खड़ा
उसे हर कोई
पाता है
समाचार वो
सुनता है
एक कोने में
खड़ा होकर
और जैसे ही
कहीं उसे
संसद भवन
नजर आता है
चमन अपनी
अंगुली अपने
मुँह के ऊपर
ले आता है
मुड़ता है
और चुपचाप
चला जाता है ।

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

मनमौजी

इधर चुपके से
बिना कुछ
किसी को बताये
जैसे पायलों को
अपनी कोई
हाथ में दबाये
बगल ही से
निकल जाये
अंदाज भी
ना आ पाये
छम छम की
ख्वाहिश में
खोऎ हुऎ
के लिये बस
एक मीठा सा
सपना हो जाये
उधर तन्हाई के
एक सौदागर
के सामने
छ्म्म से
आ जाये
जितना कर
सकती हो
उतना शोर मचाये
अपनी छोड़ कुछ
इधर उधर
की पायलें भी
लाकर बजाये
चूड़ियां छनकाये
काले सफेद को
कुछ ऎसा दिखाये
इंद्रधनुष बिल्कुल
फीका पड़ जाये
कोई प्यार
नहीं पढ़ता उसे
मोहब्बत पढ़ाये
कोई मुहब्बत
है करता
उसे ठेंगा दिखाये
बतायेगी क्या
कभी कुछ
किसी को 
तेरे को ये
सब करना
कौन सिखाये
सब्र की गोली
हम भी बैठे
हैं खाये
खूबसूरत
ऎ जिंदगी
समय ऎसा
शायद कभी
तो आये
थोड़ा सा
ही सही
तू कुछ
सुधर जाये ।

शनिवार, 25 अगस्त 2012

पैर जमीन से उठा बड़ा आदमी हो जा

जब तक
जमीन से
नहीं उठ पायेगा

बड़ा
आदमी तुझे
कोई नहीं बनायेगा

सुन
अगर
बड़ा आदमी

सच्ची
में तू बनना
बहुत ही
ज्यादा चाहता है

तो मेरी
एक सस्ती
आसान सी
सलाह को
क्यों नहीं
अपनाता है

अभी
कहना मान जा
और कल को ही
बडे़ आदमी की
सूची देखने
किसी बडे़ आदमी
के पास चला जा

वैसे
अपना खुद भी
तो सोचा कर कुछ जरा

कब तक
छोटे आदमी
की तरह करेगा मरा मरा

कोशिश कर
पाँव थोड़ा सा सही
जमीन से उठा
हवा में तो कुछ लटका

अब चाहे
इसके लिये
अपना घर बेच जेवर बेच
या फिर जमीन बेच के आ

साईकिल
ही सही
अपने नीचे तो लगा

बस
जमीन से पैर
कुछ ऊपर उठा

हैसियत
इससे ज्यादा की
समझता है अपनी अगर
तो स्कूटर लगा
मोटरसाईकिल लगा

ज्यादा ही
बड़ा होना हो अगर
तो चल
कार ही ला कर के लगा

पर देख
बड़ा आदमी
अब तो हो ही जा

सबसे
बड़ा आदमी
होने की ख्वाहिश
रखता है तू
थोड़ी सी भी अगर
तो ऎसा कर

हवाई जहाज
का टिकट एक मंगवा
उस में बैठ और
पैर छोड़ पूरा का पूरा
हवा में चला जा

सबसे
बडे़ आदमी
की सूची में जाकर
के जुड़जा और
हवा भी खा  ।

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

ज्योतिष हो गया अखबार

जन्म पत्री बाँचते हैं
बहुत ही ज्ञानी हैं
पंडित जी का
नहीं कोई सानी है
हर साल आते हैं
मेरे घर पर दो बार
माँगते हैं जन्म पत्री
सबकी हर बार
बताते हैं कुछ भूत
और कुछ भविष्य
वैसे का वैसा ही
जैसा बता गये थे
पिछली बार
आये कल भी
उसी तरह इस बार
पोथी निकाल कर
बैठे महानुभाव
शुरू किया बाँचना
हमेशा की तरह
नक्षत्रों को
सुनाने लगे
वही पुरानी रामायण
सुनते ही पुरानी कथा
जब नहीं रहा गया
पंडित जी से मैने
तब कह ही दिया
गुरू कुछ नई बात भी
कभी कभी बताया करो
जन्मपत्री से भी अगर
कुछ खोद नहीं
पा रहे हो तो
कम से से कम
अखबार तो पढ़ कर
के आया करो
आजकल तो जो
होना है आगे वो
पहले अखबार में
ही आता है
उसके बाद ही
होना है जो तभी
तो हो पाता है
मजे की बात
इसमें ये है
कि  ग्रह नक्षत्र
को भी पता नहीं
चल पाता है
कि अखबार
वालों को
ये सब कौन जा
के बताता है
इसीलिये तो
जो वाकई में
हो रहा है वो
अखबार में
कम ही
जगह पाता है
अखबार से
बढ़िया जन्मपत्री
पंडित अब तू भी
नहीं बाँच पाता है ।

सोमवार, 20 अगस्त 2012

पूरी बात

शर्ट की
कम्पनी
सामने
से ही
पता चल
जाती है
पर
अंडरशर्ट
कौन सी
पहन कर
आता है
कहाँ 
पता 
चल पाता है

अंदर
होती है
एक
पूरी बात
किसी के
पर वो
उसमें से
बहुत
थोडी़ सी
ही क्यों
बताता है

सोचो तो
अगर
इस को
गहराई से
बहुत से
समाधान
छोटा सा
दिमाग
ले कर
सामने
चला
आता है

जैसे
थोड़ी 
थोड़ी
पीने से
होता है
थोड़ा सा
नशा
पूरी
बोतल
पीने से
आदमी
लुढ़क
जाता है

शायद
इसीलिये
पूरी बात
किसी को
कोई नहीं
बताता है

थोड़ा थोड़ा
लिखता है
अंदर की
बात को
सफेद
कागज
पर अगर
कुछ
आड़ी तिरछी
लाइने ही
खींच पाता है

सामने वाला
बिना
चश्मा लगाये
अलग अलग
सबको
पहचान ले
जाता है

पूरी बात
लिखने की
कोशिश
करने से
सफेद
कागज
पूरा ही
काला हो
जाता है

फिर कोई
कुछ भी
नहीं पढ़
पाता है

इसलिये
थोड़ी
सी ही
बात कोई
बताता है

एक
समझदार
कभी भी
पूरी रामायण 
सामने नहीं
लाता है

सामने वाले
को बस
उतना ही
दिखाता है
जितने में
उसे बिना
चश्में के
राम सीता
के साथ
हनुमान भी
नजर आ
जाता है

सामने
वाला जब
इतने से
ही भक्त
बना लिया
जाता है

तो

कोई
बेवकूफी
करके
पूरी
खिचड़ी
सामने
क्यों कर
ले आता है
दाल और
चावल के
कुछ दानों
से जब
किसी का
पेट भर
जाता है ।

रविवार, 19 अगस्त 2012

खबर

बहुत से समाचार
लाता है रोज
सुबह का अखबार
कहाँ हुई कोई घटना
किस का टूटा टखना
मरने मारने की बात
लैला मजनूँ की बारात
कौन किसके साथ भागा
कहाँ पड़ गया है डाका
ज्यादातर खबर होती हैं
देखी हुई होती हैं
और पक्की होती हैं
सौ में पिचानवे
सच ही होती हैं
इन सब में से
मजेदार होती है
वो खबर जो कहीं
तैयार होती है
रात ही रात में बिना
कोई बीज को बोये
सुबह को एक ताड़
का पेड़ होती हैं
इस के लिये पड़ता है
किसी को कुछ
कुछ खुद बताना
चार तरह के लोगों से
चार कोनों में शहर के
एक जोर का ऎसा
भोंपू बजवाना
जिसकी आवाज का हो
किसी को भी सुनाई
में ना आना
जोर का हुआ था शोर
ये बात बस अखबार से ही
पता किसी को चल पाना
या कुछ बंदरों को जैसे
केलों के पेडो़ के
सपने आ जाना
बंदरों के सपनो की बातें
सियारों के सोर्स से
पता चल जाना
इसी बात को
गायों का भी
रम्भा रम्भा
कर सुनाना
पर अलग अलग
अखबार में
केलों के साईज का
अलग अलग हो जाना
बता देती है खबर किस
खेत में उगाई गयी है
मूली के बीच को बोकर
गन्ना बनाई गयी है
पर मूली गन्ने
और बंदर के केले को
किसी को भी
कहाँ खाना होता है
पता ये चल जाता है
कि किस पैंतरेबाज को
खबर पढ़ने वालों को
उल्लू बनाना होता है
बेखबर होते हैं ज्यादातर
खबर पढ़ने वाले भी
उनको कुछ समझ में
कहाँ आना होता है
पेंतरेबाजों को तो अपना
उल्लू कैसे भी सीधा
करवाना ही होता है ।

शनिवार, 18 अगस्त 2012

नागा बाबा

नागा बाबा 
एक
देखे मैंने
नंग धडंग
खडे़ 

एक टी वी 
की दुकान 
के सामने

देखते हुऎ
फ़ैशन
टी वी में
छोटे छोटे
कपड़ों में
माडलों का
कैट वाक

घर में टी वी
कभी भी
मैं नहीं
देखता हूँ
लेकिन
वहाँ
मैं भी तन
कर खड़ा
हो गया

जैसे चल
रहा हो
क्रिकेट मैच
कोई
भारत
पाकिस्तान का

फिर कीड़ा
कुलबुलाया

आम
आदमी
के पेट में
जैसे
पचती नहीं
कोई बात

टी वी को
कम
बाबा को
ज्यादा
देख रहा
था मैं
बहुत
देर तक
लेकिन
रुक
नहीं पाया
पूछ बैठा
बाबा से

बाबा जी
कौन सा
कपड़ा
आपको
पसंद आया

बाबा मुड़ा
मुझे घूरा
थोड़ा डर
भी लगा
लेकिन फिर
मुस्कुराया

पूछा मुझसे
उसने

ये बहुत
देर से
मैं भी
देख रहा हूँ
लेकिन
समझ नहीं
पा रहा था
कि
इनसे ऎसा
कौन है
जो ये
करवा
रहा था

यहाँ तो
हर आदमी
करता है
यही
कैट वाक
वो तो
टी वी में
कहीं नहीं
दिखाया
है जाता

देखते रहो
इनको
निर्विकार
भाव से
समझो
कैट और
कैट वाक
को इनके
और
मुस्कुरालो
तो जग है
जीत
लिया जाता

सभी तो
कर रहे हैं
कैट वाक
यहां
कपड़े अपने
उतार कर

पर कहलाना
नहीं चाहते
बस दिखवाना
चाहते है
अपने को
कैट वाक पर
कपड़े की बात
छोड़ कर

पर कौन
कर सकता
है ऎसा
करता तो
मेरे जैसे
बिना कपड़े
का एक
नागा बाबा
नहीं हो जाता

बच्चा
समझा कर
तू भी मुझ से
कहाँ फिर
कुछ
पूछ पाता

समझ में तेरे
कुछ आया है
तो यहाँ से
चला जा
नहीं तो
तू भी एक
नागा बाबा
बन जा
और मेरे
साथ आजा ।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

ब्लाग है या बाघ है

सपने भी
देखिये ना
कितने अजब
गजब सी चीजें
दिखाते हैं
जो कहीं
नहीं होता
ऎसी अजीब
चीजें पता नहीं
कहाँ कहाँ से
उठा कर लाते हैं
कल रात का
सपना कुछ
कुछ रहा है याद
अब किसी को
कैसे बतायेंं ये
अजीब सी बात
एक शहर जैसा
सपने में कहीं
नजर आ रहा था
घुसते ही
'ब्लाग नगर' का
बडा़ सा बोर्ड
दिखा रहा था
अंदर घुसे तो
जलसे जलूस
इधर उधर
जा रहे थे
ब्लाग काँग्रेस
ब्लाग सपा
जैसे झंडे
लहरा रहे थे
कुछ ब्लागर
कम्यूनिस्ट हैं
करके भी
समझा रहे थे
खेल का मैदान
भी दिखा जहाँ
ब्लाग ब्लाग का
खेल एक खेला
जा रहा था
टिप्पणियों का
होता है स्कोर
उस पर होती है
जीत और हार
ऎसा स्कोरबोर्ड
बता रहा था
हंसी आ रही थी
सुन सुन कर
जब सुना एक
ब्लागर ब्लाग
फिक्सिंग
करवा रहा था
टिप्पणियाँ किसी
ब्लाग की किसी
और को दे
आ रहा था
उसकी रिपोर्ट
करने दूसरा
ब्लागर ब्लाग थाने
में जा रहा था
ब्लाग पुलिस
को लाकर
घटनाक्रम की
एफ आई आर
की पोस्ट की
कापी बना
रहा था
आगे इसके
क्या हुआ
पता ही नहीं
चल पा रहा था
घड़ी का अलार्म
सुबह हो गयी
का बहुत शोर
मचा रहा था
सामने खड़ी
बिस्तरे के
श्रीमती मेरी
पूछ रही थी
मुझसे कि
तू सपने में
बाघ बाघ
जैसा क्यों
चिल्ला रहा था ।

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

भ्रम एक शीशे का घर

हम जब
शरीर
नहीं होते हैं
बस मन
और
शब्द होते हैं

तब लगता है
शायद ज्यादा
सुन्दर और
शरीफ होते हैं

आमने सामने
होते हैं
जल्दी समझ
में आते हैं
सायबर की
दुनियाँ में
कितने
कितने भ्रम
हम फैलाते हैं

पर अपनी
आदत से हम
क्योंकी बाज
नहीं आते हैं
इसलिये अपने
पैतरों में
अपने आप ही
फंस जाते हैं

इशारों इशारो
में रामायण
गीता कुरान
बाइबिल
लोगों को
ला ला कर
दिखाते हैं

मुँह खोलने
की गलती
जिस दिन
कर जाते हैं
अपने
डी एन ऎ का
फिंगरप्रिंट
पब्लिक में
ला कर
बिखरा जाते हैं

भ्रम के टूटते
ही हम वो सब
समझ जाते हैं

जिसको समझने
के लिये रोज रोज
हम यहाँ आते हैं

ऎसा भी ही
नहीं है सब कुछ
भले लोग कुछ
बबूल के पेड़ भी
अपने लिये लगाते हैं

दूसरों को आम
की ढेरियों पर
लाकर लेकिन
सुलाते हैं

सौ बातों की
एक बात अंत में
समझ जाते हैं

आखिर हम
हैं तो वो ही
जो हम वहाँ हैं
वहाँ होंगे
कोई कैसे
कब तक बनेगा
बेवकूफ हमसे

यहाँ पर अगर
हम अपनी बातों
पर टाई
एक लगाते हैं
पर संस्कारों
की पैंट
पहनाना ही
भूल जाते हैं ।

बुधवार, 15 अगस्त 2012

आजादी

देश बहुत
बड़ा है

आजादी

और
आजाद
देश को
समझने में
कौन पड़ा है

जितना भी
मेरी समझ
में आता है

मेरे घर
और
उसके लोगों
को देख कर

कोई भी
अनाड़ी

आजादी
का मलतब
आसानी से
समझ जाता है

इसलिये कोई
दिमाग अपना
नहीं लगाता है

देश
की आजादी
का अंदाज

घर
बैठे बैठे ही
जब लग जाता है

अपना
काम तो भाई
आजादी से
चल जाता है

कहीं
जाये ना जाये

आजाद
15 अगस्त
और
26 जनवरी
को तो
पक्का ही
काम पर जाता है

झंडा फहराता है
सलामी दे जाता है
राष्ट्रगीत में बकाया
गा कर भाग लगाता है

आजादी
का मतलब
अपने बाकी
आये हुऎ
आजाद भाई बहनो
चाचा ताइयों को
समझाता है

वैसे
सभी को
अपने आप में
बहुत समझदार
पाया जाता है

क्योंकी
आजादी को
समझने वाला ही
इन दो दिनो के
कार्यक्रमों में
बुलाया जाता है

फोटोग्राफर
को भी
एक दिन का काम
मिल जाता है

अखबार के
एक कालम को
इसी के लिये
खाली रखा
जाता है

किसी
एक फंड
से कोई
मिठाई सिठाई
भी जरूर
बंटवाता है

जय हिन्द
जय भारत के
नारों से
कार्यक्रम का
समापन कर
दिया जाता है

इसके
बाद के
365 दिन
कौन कहाँ
जाने वाला है

कोई
किसी को
कभी नहीं
बताता है

अगले साल
फिर मिलेंगे
झंडे के साथ
का वादा
जरुर किया जाता है

जब सब कुछ
यहीं बैठ कर
पता चल जाता है

तो
कौन बेवकूफ
इतना बडे़ देश

और
उसकी आजादी
को समझने के
लिये जाता है।

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

अब के तो छा जाना गलती मत दोहराना मलहम आने वाला है



अपने
आस पास 
गन्ने के खेत जैसे उगे हुऎ 

पता नहीं कितने 
पर देखे जरूर थे पिछली बार 
बहुत सारे अन्ना 

नतमस्तक 
हो गया था 
साथ में
कुछ दुखी भी 
हो गया था 
कहीं भी
किसी भी 
खेत में
नहीं 
उग पाया था 
बहुत झल्लाया था 

इस बार 
चांस हाथ से नहीं जाने दूंगा 
चाहे धरती पलट जाये 
मौका भुना ही लूंगा

फिर से
क्योंकी 
लग रहा है कुछ होने वाला है 
सुगबुगाहट सी दिख रही है साफ 
पिछली बार के कलाकारों में

सुना है
जल्दी ही 
इस बार वो
रामदेव 
हो जाने वाला है 

अन्ना हो गये रामदेव 
का समाचार भी 

इन
रामदेवों के 
अपने अखबार का संवाददाता

इस बार भी 
इनकी रोज आने वाली 
खबर की
जगह पर 
ही देने वाला है

सोच कर दीजियेगा 
अपनी खबर इन दिनो आप भी जरा 

आपकी खबर भी 
इनकी खबर में 
रोज की तरह मिलाकर 
वो आप से मजे भी लेने वाला है 

बस एक सबक 
सिखा गया अन्ना इन अन्नाओं को 

काम
अपने रोज के 
छोड़ के
कोई भी 
अन्ना यहां का 
नहीं इस बार मैदान में आने वाला है 

पीछे से
लंगड़ी 
देने वाला है 
गिराने वाला है 

सामने से
आकर 
उठाने वाला है 
रामदेव का मलहम 
मुफ्त में दे के जाने वाला है।

चित्र साभार: 
http://www.theunrealtimes.com/

सोमवार, 13 अगस्त 2012

एक सीधा सा टेढ़ा

सालों साल लग गये
यहाँ तो समझने में
कि आँखिर किसे
कैसे क्या किसको
समझाना आता है
सीधा सीधा कहने
वाले को कहाँ बेवकूफ
बनाना आता है
अपनी भी समझ में
कुछ आया तो वो भी
कभी भी सीधा कहाँ आया
उसका कहना ही
समझ पाये हम
जिसे उल्टा कर के
समझाना आता है
ये भी समझ में आया
कि उल्टा कर के
समझाना सबसे अच्छा
समझाना होता है
पूरा उल्टा नहीं भी
कर के आओ तो
बस थोड़ा सा टेढा़
करके आना होता है
लेकिन इस टेढा़ करके
समझाने वाले को
खुद भी टेढ़ा हो
जाना होता है
धीरे धीरे ऎसे टेढे़ को
सामने वाले से केकड़ा
कहलवाना होता है
कोई काम दुनिया के
ऎसे हो या वैसे हों
कहाँ कभी रुकते हैं
उनको करने वाले को
अपने अपने ढंग से
करते ही जाना होता है
केकडे़ भी आदत से
मजबूर होते हैं
उनको भी केकड़ापन
अपना दिखाना होता है
तब तक सब अपनी
जगह पर जैसे तैसे
चलाना होता है
पर मुसीबत तो
तब आती है जब
टेढे़ के सामने किसी
एक टेढे़
को दूसरे टेढे़ को
समझाना होता है

टेढे़ टेढे़
होकर
एक दूसरे के नजदीक
जाना होता है
केकड़ापन अपने अपने
भूल कर सीधा
हो जाना होता है
जो भी समझाना होता है
ऎसे में बिल्कुल सीधा ही
समझाना होता है ।

रविवार, 12 अगस्त 2012

सच सुन आ पर पहले बीमा करा

सच को कहने से पहले
मीठा बनाना चाहिये
सीधे सीधे नहीं कुछ
घुमा फिरा के
लाना चाहिये
सच को कहना ही
काफी नहीं होता
उसको सच की तरह
समझाना भी तो
आना चाहिये
सच कहो तो
बहुत कम पचा
पाते हैं लोग
कहने वाले को
इतना तो समझ में
आना ही चाहिये
सच को पहले तो
किसी से कहना
ही नहीं चाहिये
कहना ही पढ़ जाये
किसी मजबूरी से अगर
तो पानी मिला के पतला
कर ही लेना चाहिये
साथ में हाजमोला
टाईप की कोई गोली
को भी देना चाहिये
खुले में ना कहकर
बंद कमरे में ले जाकर
कह देना चाहिये
सब से महत्वपूर्ण
बात सुन लीजिये
कहने से पहले एक
वैधानिक चेतावनी को
सुनने वाले को जरूर
ही दे देना चाहिये
इसमें सच है सच कहा है
सच को सुनने से अगर
आपको दुख होता है
तो आपको इसको नहीं
ही सुनना चाहिये
सुनना ही चाहते हो
फिर भी अगर तो
सच सुनने से होने वाले
नुकसान का बीमा
करा लेना चाहिये ।

शनिवार, 11 अगस्त 2012

श्रीमती जी की एक राय

लिख लिख 
और लिख
लिखता ही 

चला जा
पर तुझे वो कुछ 

नहीं है पता 
जो मुझको है पता
बस लिखने से
नहीं होने वाला है
तेरा कुछ भला
इन चार लोगों की
दी हुई टिप्पणियों
पर मत इतरा
कुछ मेरी भी
कभी सुनता जा
कुछ करना ही
चाहता है तो
जूते नये ब्राँडेड
लेकर आ
पालिश लगा
कर चमका
ऎसा एक ही दिन
नहीं करना है
समझ जा
इसे अपनी
रोज की
एक आदत बना
कोट की जेब
वो भी ऊपर वाली
में सफेद रुमाल भी
एक अटका
जरा सा धूल
नजर आये
कहीं भी जूते पर
तो थोड़ा रुक जा
रुमाल फिरा
और जूता चमका
व्यक्तित्व की
एक झलक होता है
किसी का
चमकता हुआ जूता
हींग लगे ना फिटकरी
सबसे सस्ता भी
होता है ये तरीका
जूते पर
कर भरोसा
अब भी समय है
समझ जा
लिखने को
मत आजमा
किसी को नहीं
आता है
तेरे लिखे में
कोई मजा
एक बार अपनी
श्रीमती के
कहने को
भी तो आजमा
फिर देख
कैसे उठता है
लोगों के
दिल से धुआँ ।

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

स्पोक्समैन

पढ़ा लिखा
होने से

कुछ हो ना हो

आदमी
समझदार
बड़ा हो जाता है

कुछ नहीं कहता है

उसे
अपने मुँह पर
हैरीसन का
ताला लगाना
आ जाता है

सबसे
ज्यादा
होशियार
पढ़ा लिखा

पढे़ लिखों
की एक
जमात का

कहने सुनने
की जिम्मेदारी
अपने आप
ही उठाता है

बिना
किसी से पूछे हुऎ

अपने
मन की
कहानियाँ
खुद ही
बनाता पकाता है

अखबार में
अपने वक्तव्य

पढे़ लिखों
की तरफ से
भिजवाता है
छपाता है

अखबार
वाला भी
पढे़ लिखों से
कुछ पूछने
नहीं आता है

पढे़ लिखों
की बाते हैं
सोच कर

कुछ भी
छाप ले जाता है

पढे़ लिखे
ने क्या कहा
उनको अखबार में
छपी खबर से ही
पता चल पाता है

पढ़ा 
लिखा
उसको
चश्मा लगा
कर पढ़ता है

इधर उधर
देखता 
है 
कि उसे
पढ़ते हुऎ तो
कोई नहीं
देखता है

और सो जाता है

पढ़ा
 लिखा
सब्जी की
तरह होता है

बड़ी

मुश्किल से

पैदा हो पाता है

उसकी
तरफ से
बात
को
कहने वाला

झाड़ की
माफिक होता है


कहीं भी
किसी मौसम में

बिना खाद के
उग जाता है


ऎसे
पढे़ लिखे को

आजकल

स्पोक्समैन
कहा जाता है ।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

अस्थायी व्यवस्था

हर तीसरे साल
के बाद बदल दिया
जाता रहा है
मेरी सस्ते गल्ले की
दुकान का मालिक
बात है ना मजेदार

उसके बाद चाहे तो भी
रुक नहीं पाता है
कोई भी हो ठेकेदार

बहुत समय से जबकी
लग जाते हैं इस काम में
लोग सपरिवार

दुकान का ठेका
उठाना चाह कर भी
नहीं हो पाते हैं
सफल हर बार

कोशिश करते ही
रह जाते हैं बेचारे
छोटे किटकिनदार

सरकार के काम
करने के सरकारी
तरीके को खुद कहाँ
जानती है सरकार

कुछ ऎसा ही एक
नजारा देखने में
आया है इस बार

एक बादल बेकार
नाराज हो कर
फट गया जा कर
एक कोने में
कहीं सपरिवार

ठेका देने वाले को
खुद उठाना पड़ा
एक कटोरा और
जाना पड़ गया
दिल्ली दरबार

प्रश्न गंभीर हो गया
अचानक
कौन चलायेगा
इस दुकान
को इस बार
आपदा की
इस घड़ी में
कौन ढूँढने जाता
एक सस्ते गल्ले की
दुकान के लिये
एक अदद ठेकेदार

मजबूरी में तंत्र
हुआ बेचारा लाचार
पकड़ लाया एक
पकौड़ी वाला जो
बेच रहा था
आजकल
कहीं पर
अपने ही अचार

कहा है उससे
जब तक हम
देते नहीं
दुकान को
एक अपना
ठेकेदार

तुझे ही
उठाना है
गिराना है
शटर इसका
पर पकाना
नहीं पकौड़े यहाँ

नहीं आना
चाहिये ऎसा
कोई अखबार
में समाचार ।

बुधवार, 8 अगस्त 2012

दूध मत दिखा दही जमा

सब 
सब देखते हैं
तू भी देख कर आ
किसी ने नहीं है तुझको कहीं रोका

थोड़ा बतायेगा
चलेगा
सब कुछ मत बता
हमको भी तो रहता ही होगा
कुछ पता

कोई नई छमिंंया
देख कर आया है अगर तो 
किस्सा सुना जा

काले बादल की तरह रोज 
कड़कड़ाता है यहाँ
कभी रिमझिम सी बारिश की फुहार भी
दिखा जा

कभी कभी 
कहीं पर थोड़ी मेहनत भी कर लिया कर 
कहाँ जा रही है दुनियाँ नये जमाने में 
देख भी कुछ लिया कर

देखते सुनते सभी आते हैं
कुछ ना कुछ इधर उधर बनाते हैं 
अपने सपने अपने ख्वाब भी मगर

एक तू है 
लकीर को पीटने वाला फकीर बन जाता है
जो जो देख कर आता है
यहाँ ला कर उलट पलट जाता है

अरे
कुछ अच्छा होता 
तो अखबार में नहीं आ रहा होता
साथ में माला पहने हुऎ तेरी 
फोटो भी दिखा रहा होता 

कब
सुधरेगा 
अब तो सुधर जा
लोगों से कुछ तो सीख 
कब ये सब सीखेगा

दूध देख कर आता है तो 
थोड़ा जामुन भी मिला लिया कर
दही बना कर चीनी के संग भी
कभी किसी को खिला दिया कर

'उलूक'
खाली खाली
दूध यहाँ मत लाया कर

लाता ही है
किसी मजबूरी में अगर
रख दिया कर

कम से कम
रोज तो
ना फैलाया कर । 

चित्र सभार: https://economictimes.indiatimes.com/

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

नये टाईप का दांत

खाने के
अलग
और
दिखाने
के अलग
होते हैं दांत
एक हाथी
के पास

सब को
समझ में
आता है

मुझे
पता नहीं
क्या क्या
दिखाई
दे जाता है

अपने
आस पास
खाने के भी
देखता हूँ
दिखाने के भी
देखता हूँ

और
एक ऎसे
भी होते हैं
जो हाथी
के पास
होते ही
नहीं वैसे

छिपाने के
भी देखता
हूँ दांत

लीजिये खाने
में लगे हैं
खाने के  है
तो खायेंगे
बजायेंगे तो
नहीं दांत

दिखाने में भी
लगे हैं
सारी दुनिया
दिखावे में
लगी हुवी है
अब जिनके
पास होंगे
वो ही तो
दिखायेंगे दांत

पर कोई नहीं
दिखाता अपने
छुपाने वाले दांत

मुस्कुरा भी
नहीं पाता
खुल कर हंस
भी नहीं पाता

कहीं गलती से
दिख गये तो दांत

इसलिये चुप
चुप रहता है
कुछ नहीं
कहीं कहता है

पूछो तो मौनी है
बताता है
बस सामने वाले
की हरकतों से
बिलकुल भी नजर
नहीं हटाता है

सारा का सारा
ध्यान किसी के
मौन को कुरेदने
में लगाता है

अर्जुन की तरह
बस छुपाने वाला
दांत किसी तरह
पकड़ पाये
इसके लिये
हर समय कोई
ना कोई योजना
अपने दिमाग में
ऎसी घुमाता है

सामने वाला
और
ज्यादा शातिर
हो जाता है
समझ जाता है
कोई देखना
चाहता है उसका
छुपाने वाला दांत

किसी को पर
पता नहीं
चल पाता है
इसका दांत
उसकी कब
चबाता है
उसका दांत
इसकी कब
चबाता है

छिपाने वाला
दांत छिपा ही
रह जाता है
किसी को भी
नजर कहीं
नहीं आता है ।

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

बाहर कर लिया /अब अंदर जायेंगे

खबर आई है आज
सब टेंट हटाये जायेंगे
टेंट वाले जो जो हैं
अन्दर पहुँचाये जायेंगे
अन्दर जा कर होगा क्या
ये अन्दर से ही बतायेंगे
अन्दर वाले उसके बाद
क्या बाहर फेंके जायेंगे
या बाहर से अन्दर घुसने
से वो रोके जायेंगे
सारी की सारी बातें
हम तुमको आज
अभी नहीं बतायेंगे
अन्दर भेजे तो जायेंगे
पर धक्के कौन लगायेंगे
सफेद टोपियों को अब
रंगने का कारोबार चलायेंगे
एक भाई से गेरूआ रंग
उसमें करवायेंगे
दूसरे भाई से हरा रंग
भरने का काम करायेंगे
चाचा जी से सफेद टोपी
पर तिरंगा बनवायेंगे
इनको अंदर जाने देंगे
हम उद्योग लगायेंगे
अपने अपने घर को
सब बाहर  वाले जायेंगे
घर में जाकर घरवालों
का ही तो हाथ बटायेंगे
कुछ फिर से अपनी
साईकिल चलायेंगे
कुछ जाकर हाथी की
पीठ पर चढ़ जायेंगे
फूल वाले फूल का
गुलदस्ता बनायेंगे
हाथ हिलाने वाले लोग
अब भी हाथ हिलायेंगे
खबर आई है आज
सब टेंट हटाये जायेंगे
टेंट वाले जो जो हैं
अन्दर पहुँचाये जायेंगे ।

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

रक्षाबंधन मनायें चलो जुगाड़ पेटेंट करायें

रक्षाबंधन की
शुभकामनाँएं
आज काम में
ले ही आयें
भाईयों और
बहनोंं का
उत्साह
इस बहाने से
चलो कुछ बढ़ायें
जोड़ तोड़ के
लिये मशहूर
जनतंत्र में
आओ कुछ
जुगाड़
को समझें
आत्मसात करें
और जुगाड़ियों
को नजदीक से
जान कर
अपना ज्ञान बढा़यें
जुगाड़ के इस
गजब के हुनर
को कोशिश कर
देश के काम
में लाने का
कुछ जुगाड़
आज लगायें
जुगाड़ी
देश वासियों को
चलो ये संदेश
आज दे कर आयें
जुगाड़ बनाने
और इस के लिये
मनमाफिक
जुगाड़ का गणित
काम में लाने
का पेटेंट
आज करायें
कैसे किसी
असंभव काम को
जुगाड़ लगा कर
संभव हम
बना ले जायें
काम अपना
अपना निकलवाने
के लिये किस
मौके पर कौन
सा जुगाड़
हम लगायें
किस काम को
कौन सा
जुगाड़ कर
ले जायेगा
और इसके लिये
किन किन
जुगाड़ियों को
इस बार
एक कर काम
लिया जायेगा
परम्यूटेशन
काम्बीनेशन के
इस जुगाड़ी
जादू को चलो
आज एक बार
फिर कहीं
आजमायें
वाकई आज
जरूरत है
इस कठिन
दौर में एक
जुगाड़ियों के
महा सम्मेलन की
चलो कुछ 
जुगाड़ियों को
उकसायें
जुगाड़ कुछ कर
हम इसको
कर ही ले जायें
सारी दुनियाँ को
क्यों नहीं आज
जुगाड़ काँसेप्ट से
हम रूबरू करायें 
कैसे नहीं होगा
अन्नाबाबा का
आंदोलन सफल
आईये हम अपने
सारे जुगाड़ों को
सारी जुगाड़ी
ताकतों के साथ
आज झोंक ले जायें
अन्नाबाबा के
लिये जुगाड़ के
हथियार को
आजमायें
पुरानी भीड़
एक बार
फिर से जुटा
कर दिखायें
जुगाड़ की
ताकत चलो आ
ज एक बार
देश के लिये
आजमायें ।

बुधवार, 1 अगस्त 2012

जोकर बचा / सरकस बच गया

जोकर ही
चले जायेंगे
तो सरकस
बंद हो जायेँगे

ये बात
किसी किसी
के समझ में
बहुत आसानी
से आ जाती है

जो जोकरों
को बर्बाद
होने से बचा
ले जाती है

सरकार भी
बहुत संजीदगी
से अपनी
जनता के बारे
में सोचती है

किसी के
लिये कुछ
करे ना करें
जोकरों के
लिये जरूर
एक कुआँ
कहीं ना कहीं
खोदती है

ये बात
सब लोग
नहीं जान
पाते हैं

कुछ लोग
जोकरों के
बीच
रहते रहते
जोकरिंग में
माहिर हो
जाते हैं

जोकरों
की खातिर
खुद भी
जोकर
हो जाते हैं

जोकरों की
समस्या लेकर
सरकार के
पास बार बार
कई बार जाते हैं

सरकार में
भी बहुत
से जोकर
होते हैं
जिनको ये
जोकर ही बस
पहचान पाते हैं

जोकरों
की खातिर
जोकर होकर
सरकार के
जोकरों से
जोकरों
के लिये
जोकरिंग
करने के
लाईसेंस का
नवीनीकरण
करा ही लाते हैं

सरकस को
बरबाद होने
से बचा
ले जाते हैं

ये बात
जोकरों
की सभा में
सभी जोकरों
को बुला
कर बताते हैं

जोकर लोग
जोर जोर
से तालियाँ
बजाते हैं
सरकार की
जयजयकार
के नारे साथ
में लगाते हैं

सरकारी
जोकर बस
दांत ही
दिखाते है ।

मंगलवार, 31 जुलाई 2012

जो है क्या वो ही है

किसी का
लिखा हुआ
कुछ कहीं
जब कोई
पढ़ता
समझता है

लेखक
का चेहरा
उसका
व्यक्तित्व
भी गढ़ने
की एक
नाकाम
कोशिश
भी साथ
में करता है

सफेदी
दिख रही
हो सामने
से अगर

कागज पर
एक सफेद
सा चेहरा
नजर आता है

काला
सा लिखा
हुआ हो कुछ

चेहरे
पर कालिख
सी पोत
जाता है

रंग
लाल
पीले हों
कभी कभी
कहीं
गडमगड्ड
हो जाते हैं

लिखा हुआ
होता तो है
पर पहचान छुपा
सी कुछ जाते हैं

लिखने पर
आ ही
जाये कोई
तो बहुत
कुछ लिखा
जाता है

पर अंदर
की बात
कहाँ कोई
यहाँ आ
कर बता
जाता है

खुद के
सीने में
जल रही
होती है 
आग
बहुत सारी

जलते
जलते भी
एक ठंडा
सा सागर
सामने ला
कर दिखाता है

किसी
किसी को
कुछ ऎसा
लिखने में
भी मजा
आता है

आँखों
में जलन
और
धुआँ धुआँ
सा हो जाता है

वैसे भी
जब साफ
होता है पानी

तभी तो
चेहरा भी
उसमें साफ
नजर आता है

यहां तो
एक चित्र
ऎसा भी
देखने में
आता है
जो अपनी
फोटो में
भी नजरें
चुराता है

ले दे कर
एक चित्र
एक लेख
एक आदमी

जरूरी
नहीं है जो
दिखता है
वही हो
भी पाता है ।

सोमवार, 30 जुलाई 2012

बेकार तो बेकार होता है

किसी के पास
होती है कार
कोई बिना
कार के होता है
किसी का
आकार होता है
कोई कोई
निराकार होता है
और एक
ऎसा होता है जो
होता तो है
पर बेकार होता है
ये बेकार
होना भी कई
कई प्रकार
का होता है
नौकरी नहीं
मिल पाती
तो बेकार
हो जाता है
छोकरी पाकर
भी कोई कोई
बेकार हो जाता है
कुछ नहीं
आता है और
बेकार कहलाता है
कभी कभी
बहुत कुछ
जानते हुऎ
भी कोई
बेकार हो जाता है
ज्यादातर
एक बेकार
बहुत दिनों
तक बेकार
नहीं रह पाता है
मौका मिलते ही
सरकार
बना ले जाता है
एक बेकार आपको
साकार
पर लिखता
हुआ मिल जाता है
दूसरा
निराकार को
आकार अपनी
कलम से ही
दे जाता है
बहुत सारा
बेकार बेकार
के द्वारा
बेकार पर ही
लिखा हुआ
मिल जाता है
खुद ही देख
लीजिये जा कर 
आप ही अपने आप
ज्यादा कारों
को एक बेकार
बेकार पर ही
खड़ा पाता है
पर जो है
सो है
वो तो है
एक बात सौ
आने पक्की है
कि बेकार
है क्या और
क्या नहीं है
बेकार
एक बेकार
से अच्छा
कोई नहीं
किसी को
कभी बता
पाता है ।

रविवार, 29 जुलाई 2012

एक चाँद बिना दाग

एक चाँद
बिना दाग का

कब से मेरी
सोच में यूँ ही
पता नहीं क्यों
चला आता है

मुझ से
किसी से
इसके बारे में
कुछ भी नहीं
कहा जाता है

चाँद का बिना
किसी दाग के
होना
क्या एक
अजूबा सा नहीं
हो जाता है

वैसे भी
अगर 
चाँद की बातें
हो रही हों
तो दाग की
बात करना
किसको
पसंद 
आता है

हर कोई
देखने
आता है
तो 
बस
चाँद को
देखने
आता है

आज तक
किसी 
ने भी
कहा क्या

वो एक दाग को
देखने के लिये
किसी चाँद को
देखने आता है

आईने के
सामने 
खड़ा
होकर देखने
की कोशिश
कर 
भी लो
तब भी

हर किसी को
कोई एक दाग
कहीं ना कहीं
नजर आता है

अब ये
किस्मत की
बात ही होती है

कोई चाँद की
आड़ लेकर
दाग 
छुपा
ले जाता  है

किस्मत
का मारा
हो कोई
बेचारा चाँद

अपने दाग
को 
छुपाने
में ही 
मारा
जाता है

उस समय
मेरी 
समझ
में कुछ 
नहीं
आता है

जब
एक चाँद
बिना दाग का
मेरी सोच में
यूँ ही चला
आता है ।

शनिवार, 28 जुलाई 2012

हिन्दी कुत्ता अंग्रेजी में भौंका

बहुत सारे कुत्ते
अगर भौंकना
शुरु हो जायें
एक साथ

क्या कोई
बता सकता है
कि हिंदी में
भौंक रहा है
या अंग्रेजी में

लेकिन
कभी कभी
ऎसा भी
देखने में
आ जाता है
हिंदी भाषी
एक कुत्ता
अचानक
अंग्रेजी में
भौंकना शुरु
हो जाता है

हाँ
ऎसा भी बस
तभी देखने
में आता है
जब वो
हवाई जहाज
से इधर
उधर जाता है

अब आप कहेंगे
कुत्ता था
ये समझ
में आता है
भौंक रहा था
वो भी समझ में
आता है

हिन्दी में
भौंका था
या
अंग्रेजी में था
ये आप को कैसे
पता चल पाता है

अब जनाब
क्या
सारी की
सारी बात
हम ही
आपको
बताते
चले जायेंगे

कुछ बातें
आप अपने
आप भी
पता नहीं
लगायेंगे

पता लगाईये
और
हमें भी बताइये

कुछ पैसा
खर्च वर्च
कर जाईये

हवाई
जहाज से
यात्रा कर
के आईये

आप जरूर
किसी ना
किसी ऎसे
कुत्ते से
टकरायेंगे

जमीन पर
उसे हिन्दी
में भौंकता
हुआ पायेंगे

और
हवाई जहाज
के उड़ते ही
आसमान मे

आप
आश्चर्य चकित
हो जायेंगे

जब उसी
कुत्ते को

अंग्रेजी में
भाषण
फोड़ता
हुआ पायेंगे । 

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

गद्दार डी एन ए

डी एन ए से देखिये
कैसे डी एन ए
मिल गया
बाप को एक बेटा
बेटे को एक
बाप मिल गया
बहुत खुशी
की बात है
बहुत पुरानी
बात का बहुत
दिनों बाद
पता चल गया
क्या फर्क पड़ा
चाहे इसमें एक
पूरा युग लग गया
पर बहुत ही
खतरनाक चीज है
ये डी एन ए
अपना ही होता है
और गद्दारी भी
अपनो से कर लेता है
ढोल बजा देता है
और पोल खोल देता है
देखिये तो कहाँ
से होकर कहाँ
निकल जाता है
कभी किसी को
कुछ भी कहाँ बता
के जाता है
दिखता सूक्ष्मदर्शी
से भी नहीं है
पर रास्ते रास्ते में
अपने निशान छोड़ता
चला जाता है
पता ही नहीं चलता
और एक दिन
यही डी एन ए
गांंधी हो जाता है
आज भी तो
यही हुआ है
डी एन ए ने
सब कुछ
कह दिया है
अब इसे देख देख
कर बहुत से
घबरा रहे हैं
याद कर रहे हैं
कि कहाँ कहाँ
वो डी एन ए छोड़
के आ रहे हैं
कान भी पकड़ते
जा रहे हैं
अगली बार से
बिल्कुल भी
डी एन ए को साथ
नहीं ले जाना है
कसम खा रहे हैं ।

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

250 वीं पोस्ट

बात बात
पर 
कूड़ा 
फैलाने की
फिर उसको
कहीं पर

ला कर
सजाने की

आदत

बचपन से थी


बचपन में
समझ में

जितना
आता था


उससे ज्यादा
का कूड़ा
 
इक्कट्ठा
हो जाता था


आसपास
परिवार
अपना
होता था


वही
रोज का रोज

उसे उठा
ले जाता था


दूसरे दिन
कूड़ा फैलाने

के लिये
फिर वही

मैदान
दे जाता था


कूड़ा
 था
कहाँ कभी

बच पाता था
जमा ही नहीं
कभी हो
पाता था


जवानी आई
कूड़े का

स्वरूप
बदल गया


सपनों के
तारों में

जाकर
टंकने लगा


एक तारा
उसे
आसमान

में ले कर
जाता था


एक तारा
टूटते हुऎ

फिर से उसे
जमीन पर

ले कर
आता था


सब उसी
तरह से

फिर से
बिखरा बिखरा

कूड़ा
हो जाता था


कितना भी
सवाँरने की

कोशिश करो

कहीं ना कहीं

कुछ ना कुछ
कूड़ा 
हो ही
जाता था


कूड़ा लेकिन
फिर भी

जमा नहीं
हो पाता था


अब याद भी
नहीं आता

कहाँ कहाँ
मैं जाता था


कहाँ का
कूड़ा लाता था

कहाँ जा कर उसे
फेंक कर आता था

बचपन से
शुरु होकर

अब जब
पचपन की

तरफ भागने लगा

हर चीज
जमा करने

का मोह
जागने लगा


कूड़ा
जमा होना
शुरू हो गया


रोज का रोज

अपने घर का 
उसके
आसपास का

बाजार का
अपने शहर का

सारे समाज का
कूड़ा देख देख
कर आने लगा

अपने अंदर
के कूडे़ को

उसमें
थोड़ा थोड़ा

दूध में पानी
की तरह

मिलाने लगा

गुलदस्ते
बना बना के

यहाँ पर
सजाने लगा


होते होते
बहुत हो गया


एक दो
करते करते

आज कूड़ा
दो सौ पार कर

दो सौ पचासवाँ
भी हो गया ।

बुधवार, 25 जुलाई 2012

अब अलग हो जाओ चूहो

बहुत खुश
नजर
आ रहे थे

आज
लोग बाग
यहाँ वहाँ
और ना जाने
कहाँ कहाँ

चूहों को
अलग अलग
दिशाओं में
जाता हुआ
देखकर
ताली बजा रहे थे

पर ये भूल
जा रहे थे

सब कुछ
कुतरने
के बाद
का दृश्य

भूत में भी
हमेशा से
ऎसा ही हुआ
करता आया है

चूहे बिल
बनाते हैं
कहाँ कहॉं
कुतर रहे हैं
क्या क्या
कुतर रहे हैं
कैसे कुतर रहे हैं
कहाँ किसी को ये
सब कभी बताते है

जिसे
दिखता है
बस
कुतरा हुआ
दिखता है

चूहा
कोई भी
उसके
आसपास
कहीं एक भी
दूर दूर तक
नही किसी
को दिखता है

और ये भी
अगले आक्रमण
की एक सोची
समझी तैयारी है
ये बात किसी
के भी समझ में
कहीं भी तो
नहीं आ रही है

चुहिया
इस समय
सबको
समझा रही है
अलग  हो
जाने का
आदेश देती
जा रही है

जाओ
वीरो जाओ
अपने दांंत
और पंजे
फिर से
घिसने के लिये
तैयार हो जाओ

समय
आ गया है
देश को
फिर से
पाँच
साल के लिये
नये सिरे से
कुतर के
खाना है

जाओ अलग
अलग हो जाओ

सब को
सोने का मौका
दे कर सुलाना है

फिर से
लौट कर
यहीं आ जाना है

नयी ताकत
बटोर कर
फिर एक
हो जाना है

देखने वाले
गदगद
हुऎ जा रहे हैं
सोच रहे हैं
बेवकूफ चूहे
आपस में
लड़ते जा रहे हैं

सारी मलाई
उनके
खाने के लिये
ऎसे ही छोड़
के जा रहे हैं

उनको
कहाँ
मालूम है
चूहे पुराने
बिलों को
छोड़ कर
नये बिलों
को खोदने
के लिये
जा रहे हैं ।

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

कबूतर कबूतर

नर
कबूतर ने
मादा
कबूतर को

आवाज
देकर
घौंसले से
बाहर
को बुलाया

घात
लगाकर
बैठी हुई
उकड़ू

एक
बिल्ली को
खेत में

सामने
से दिखाया

फिर
समझाया

बेवकूफ
बिल्ली

पुराने
जमाने की
नजर
आ रही है

कबूतर
को पकड़ने
के लिये

खुद
ही घात
लगा रही है

जमाना
कहाँ से कहाँ

देखो
पहुँचता
जा रहा है

इस
पागल को
अब भी

बिल्ली
को देखकर

आँख बंद
करने वाला
कबूतर याद
आ रहा है

अरे
इसे कोई
समझाये

ठेका
किसी

स्टिंग
आपरेशन
करने वाले
को देकर
के आये

किसी भी

ईमानदार

सफेद
कबूतर
पर पहले

काला धब्बा
एक लगवाये

उसके बाद

उसका
जलूस एक
निकलवाये

उधर

अपने
खुद के घर

पत्रकार
सम्मेलन
एक करवाये

फोटो सोटो
सेशन करवाये

इतना कुछ

जब हो
ही जायेगा

कबूतर
खुद ही

शरम के मारे
मर ही जायेगा

समझदारी
उसके बाद

बिल्ली दिखाये

कबूतर
के घर

फूल
लेकर
के जाये

शवयात्रा
में शामिल
होकर

कबूतरों
के दिल में
जगह बनाये

फिर
जब भी
मन में आये

कबूतर
के किसी भी

रिश्तेदार
को घर बुलाये

आराम से

खुद
भी खाये

बिलौटे
को भी
खिलाये ।

सोमवार, 23 जुलाई 2012

आज बस मुर्गियाँ

आज कुछ
मुर्गियाँ
लाया हूँ

खाने वाले
खुश ना
होईयेगा

चिकन नहीं
बनाया हूँ

बस
लिख कर
मुर्गियाँ
फैलाया हूँ

सुबह सुबह
मुर्गियों ने मेरी
बहुत कोहराम
मचाया हुआ था

कल देर से
सोया था
रात को

सुबह के
शोर से जागा
तो बहुत
झल्लाया था

कल ही नयी
कुछ तमीजदार
मुर्गियाँ खरीद
के लाया था

पुराने दड़बे
में पुरानी
कम 

पढ़ी लिखी
मुर्गियों में
लाकर उन को
घुसाया था

नयी मुर्गियाँ
पुरानी 

मुर्गियों से
नाराज नजर
आ रही थी

इसलिये 

सब के सब 
जोर जोर
से चिल्लाये
जा रही थी

मुर्गियों को
मुर्गियों में
ही मिलाया था

मुर्गीखाना था
उसी में डाल
कर के 

आया था

किसी को
लग रहा हो
कबूतर खाना
मैंने तो कहीं
नहीं बनाया था

क्यों कर
रही होंगी
मुर्गियाँ ऎसा

समझने की
कोशिश
नहीं कर
पा रहा था

अपने खाली
दिमाग की
हवा को
थोड़ा सा
बस हिलाये
जा रहा था

थक हार
कर सोचा

मुर्गियों से ही
अब पूछा जाये

इस सब बबाल
का कुछ हल तो
ढूँढा ही अब जाये

मुर्गियों ने बताया
कल जब उनको
लाया जा रहा था

तब उनको ये भी
बताया जा रहा था

इधर की मुर्गियाँ
कुछ अलग
मुर्गियाँ होंगी
कुछ नहीं करेंगी

उनको बहुत
आराम से
सैटल होने को
जगह दें देंगी

पर यहाँ तो
अलग माजरा
नजर आ रहा है
हर मुर्गी में
हमारे यहाँ की
जैसी मुर्गियों का
एक डुप्लीकेट
नजर आ रहा है

मैने बहुत
धैर्य से सुना
और प्यार से
मुर्गियों को
थपथपाया
और समझाया

वहाँ भी मुर्गियाँ थी
यहाँ भी मुर्गियाँ है

वहाँ से यहाँ
आने पर मुर्गी
आदमी तो
नहीं हो जायेगी

हो भी जायेगी
तब भी मुर्गी
ही कहलायेगी

चुप रहे तो
शायद
कोई नहीं
पहचान पायेगा

मुँह खोलते
ही दही दूध
फैलायेगी

अपनी हरकतों से
पकड़ी ही जायेगी

इसलिये
ज्यादा मजे
में तो मत
ही आओ

दाना मिल
तो रहा है
पेट भर के
खाते जाओ

फिर
कुकुड़ूँ कूं
करते रहो

मेरा
बैंड बाजा
पहले से ही
बजा हुआ है
तुम उसको
फिर से तो
ना बजाओ

मुर्गियो
आदमी हो
जाने के ख्वाब
देखने से

 बाज आओ ।

रविवार, 22 जुलाई 2012

लोटा प्रतियोगिता

नीचे लिखे
लम्बे को
सब से छोटा
बनायेगा जो
प्रतियोगिता
में भाग लेगा
सब से बड़ा
लोटा भी
इनाम में ले
जायेगा वो ।


अजीब सा
महसूस होता है
अजीब अजीब
तरह के लोग
अजीब तरह से
पेश आते हैं
अजीब अजीब
सी बातें
पता नहीं
कैसे कैसे
अजीब अजीब
तरीकों से
सामने आ आ
कर गुनगुनाते हैं
अब एक
अजीब सी
शख्सियत
सामने आये
अजीब तरह
की हरकतें करे
और आशा करे
सामने वाला
मुस्कुराये
अजीब होने पर भी
किसी को कुछ भी
अजीब सा
ना लग पाये
ऎसे बहुत से
अजीब लोग
अजीब तरह
से रोज ही
तो टकराते हैं
अजीब लोगों को
कुछ हो या ना हों
हम भी तो सारा
अजीब पी जाते है
वैसे अजीब हो जाना
या अजीब सा कुछ
कर जाना ही
तो ज्यादा से
ज्यादा शोहरत
दिला जाता है
देख लीजिये
दुनिया की
सबसे अजीब
चीजों को ही
सातवें आश्चर्य की
सूची में शामिल
किया जाता है
इसलिये समय रहते
कोशिश करने में
क्या जाता है
अगर कोई अजीब
ना होते हुऎ भी
अजीब हो
जाना चाहता है
इसलिये खोजिये
अपने में भी
कुछ भी
अजीब अगर
आपको नजर
आता है
क्या पता उस
अजीब का होना
आपको भी
दुनिया का
सबसे अजीब
चीज बना
जाता है।

शनिवार, 21 जुलाई 2012

आज कुछ नहीं है

आप
कुछ भी
कह कर
के देखो
वो उस पर
कुछ कुछ
कह ही
जाते हैं

कुछ
जनाब
कुछ भी
हो जाये
कुछ नहीं
कह कर
जाते हैं

कुछ को
हमेशा
कुछ ना
कुछ होता
रहता है

कुछ ने
देखा नहीं
कुछ कहीं
कुछ कुछ
होना उनको
शुरु होता है

कुछ हुआ
है या नहीं
कुछ को
कुछ तो
जरूर पता
होता है

जाकर
देखना
पड़ता है
कुछ इस
सब के लिये
कुछ ना कुछ
कुछ जगह
पक्का ही
लिखा होता है

कुछ नहीं
भी हो कहीं
तो भी
क्या होता है

कुछ हो
जाता है
अगर तब
भी कौन
सा कुछ
होता है

कुछ होने
या ना
होने से
कुछ
बहुत कुछ
कहने से
बच जाते है

कुछ
कहूंगा
पक्का
सोचते हैं
पर कुछ
कहने से
पहले ही
कुछ भ्रमित
हो जाते हैं

कुछ
आते हैं
कुछ
जाते है
कुछ
पढ़ते हैं
कुछ
लिखते हैं

कुछ
कुछ
भी नहीं
करते हैं

बस कुछ
करने
वालों
से कुछ
दुखी हो
जाते हैं

कुछ दिन
कुछ नहीं
करते हैं

कुछ  दिन
बाद फिर
कुछ कुछ
करना शुरू
हो जाते हैं ।

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

मान भी जाया कर इतना मत पकाया कर

अब
अगर
उल्टी
आती है
तो कैसे
कहें उससे
कम आ

पूरा मत
निकाल
थोड़ा सा
छोटे छोटे
हिस्सों में ला

पूरा निकाल
कर लाने का
कोई जी ओ
आया है क्या

कुछ पेट में भी
छोड़ कर आ

लम्बी कविता
बन कर के क्यों
निकलती है
कुछ क्षणिंका
या हाईगा
जैसी चीज
बन के आ जा

अब अगर
कागज में
लिखकर
नहीं होता हो
किसी से
हिसाब किताब
तो जरूरी
तो नहीं ऎसा
कि यहाँ आ आ
कर बता जा

अरे कुछ
बातों को रहने
भी दिया कर
परदे में
बेशर्मों की
तरह घूँघट
अपना उधाड़
के बात बात
पर मत दिखा
रुक जा

वहाँ भी कुछ
नहीं होने वाला
यहाँ भी कुछ
नहीं होने वाला
नक्कार खाने
में कितनी भी
तूती तू बजाता
हुआ चले जा

इस से
अच्छा है
कुछ अच्छी
सोच अपनी
अभी भी
ले बना

मौन रख
बोल मत
शांत हो

अपना भी
खुश रह
हमको भी
कभी चाँद
तारों सावन
बरसात
की बातों
का रस
भी लेने दे

बहुत
पका लिया
अब जा ।

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

किसी का भी जुर्म हो वो तेरा बहूरानी


स्कूल कालेज 
सरकारी हो
या 
गैर सरकारी 

किसी की
संपत्ति थोड़े 
ना हो जाता है

उस पर 
अधिकार 
होता है
तो 
केवल उसका 

जिसकी
दीवार से 
आसानी से कूड़ा
शिक्षाकेन्द्र के 
अंदर तक 
किसी तरह 
फेंका जाता है

फायदे ही 
फायदे 
गिन लीजिये 
अंगुलियों में 

उस
के लिये 
जो ऎसी
जगह पर 
मकान एक 
बना ही 
ले जाता है

घर तक 
जाने के लिये
मेटल्ड रोड 
स्कूल ही
दरवाजे तक 
खुद ही 
पहुँचा जाता है

कार रख 
सकता है 
अपनी

और 
किराये पर 
दूसरे तीसरे 
की भी

गैरेज बनाने 
के खर्चे से 
सीधे सीधे 
बच जाता है

बेवकूफ 
मैदान इसी के 
तो काम 
में आता है

फर्नीचर
की 
जरूरत में 
चारपाईयों 
की ही हो 
सकती है 

क्योंकि वो ही 
एक फर्नीचर 
होता है जो 
कालेज में 
कम ही 
खरीदा 
जाता है 

कुर्सी मेज 
कितनी हैं 
कौन गिनने में 
लगा रहता है 

अगर कोई 
अपने घर 
को भी 
दो चार एक 
उठा ले 
जाता है 

गाय पालन 
आसान 
और गाय 
का दूध 
सस्ता मिल 
जाता है 

घास मैदान 
में उगती है 
और 
गोबर कालेज 
का जमादार 
जब
उठा ले जाता है

पानी बिजली 
की
जरूरत 
रात को तो 
होती नहीं वहां 

इसलिये ये 
दोनो रात के 
लिये ही बस 
ले जाता है 

देखो कितना 
मितव्ययी होकर
बर्बाद होने से 
दोनो महंगी 
चीजों को 
बचाता है

अब इन 
छोटी छोटी 
चीजों को 
कहने के लिये 
किसके पास 
फुर्सत है

स्कूल कालेज 
किसी का 
अपना ही 
घर जैसा 
थोड़े ना 
हो जाता है

ज्यादा
ही 
परेशानी
किसी 
को हो 
रही होती है 
समस्याओं
से 
इस तरह 
की
कहीं तो 

दिल्ली में 
बैठी तो है 
इंदिरा की बहू 

उसके के 
सर में जाकर 
इसका भी 
ठीकरा
फोड़ने में 
क्या जाता है।

बुधवार, 18 जुलाई 2012

उस समय और इस समय और दिल

पहलू
और उसपर
दिल का होना

पता
चल जाता है

जिस दिन से
शुरू हो जाती है
कसमसाहट

हमारे पुराने
जमाने में भी
कोई नया जो
क्या होता था

ऎसा ही होता था

पर थोड़ा सा
परदे में होता था

स्टेज एक में
धक धक करने
लगता था

स्टेज दो में
उछलने लगता था

स्टेज तीन में
किसी के कंट्रोल
में चला जाता था

स्टेज चार में
भजन गाना शुरु
हो जाता था

अब तो डरता
भी नहीं है
बस लटक जाता है

बहुत
मजबूती से
बाहर से ही
दिखाई
देता है कि है

स्टेज वैसे ही
एक से चार
ही हो रही हैं

गजब का स्टेमिना है

चौथे में जाकर
भी बहार हो रही है

इस जमाने के
कर रहे हों तो
अजूबा सा नहीं लगता

हमारे जमाने के
कुछ कुछ में
हलचल
लगातार हो रही है

ऎ छोटे से
खिलौने
मान जा
इतनी सी
शराफत
तो दिखा जा

पुराने
जमाने के
अपने भाई बहनों
को थोड़ा समझा जा

अभी भी कटेगा
तो कुछ हाथ नहीं
किसी के आयेगा

फिर से उसी बात
को दोहराया जायेगा

कतरा ए खून
ही गिरेगा
वो भी किसी के
काम में नहीं आयेगा

दिल है तो क्या
गुण्डा गर्दी पर
उतर जायेगा।