उलूक टाइम्स

शनिवार, 26 मई 2012

वकील साहब काश होते आज

मेरे शहर अल्मोड़ा
की लाला बाजार

ऎतिहासिक शहर
बुद्धिजीवियों की
बेतहाशा भरमार

बाजार में लगा
ब्लैक बोर्ड पुराना

नोटिस बोर्ड की
तरह जाता है
अभी तक भी जाना

छोटा शहर था
हर कोई शाम को
बाजार घूमने जरूर
आया करता था

लोहे के शेर से
मिलन चौक तक
कुछ चक्कर जरूर
लगाया करता था

शहर
का आदमी
कहीं ना कहीं
दिख ही जाता था

शहर की
गतिविधियाँ
यहीं आकर पता
कर ले जाता था

मेरे शहर में
मौजूद थे
एक वकील साहब

वकालत
करने वो कहीं
भी नहीं जाते थे
हैट टाई लौंग कोट
रोज पहन कर
बाजार में चक्कर
लगाते चले जाते थे

बोलने
में तूफान
मेल भी साथ
साथ दौड़ाते थे
लकडी़ की छड़ी
भी अपने हाथ
में लेके आते थे

कमप्यूटर उस
समय नहीं था
कुछ ना कुछ
बिना नागा
ब्लैक बोर्ड
पर चौक
से लिख
ही जाते थे

उस समय
हमारी समझ
में उनका
लिखा
कुछ भी
नहीं आता था

पर
लिखते गजब
का थे उस समय
के बुजुर्ग लोग
हमें बताते थे

बच्चे
उनको
पागल
कह कर
चिढ़ाते थे

आज
वकील साहब
ना जाने
क्यों याद
आ रहे हैं

भविष्य
की कुछ
टिप्पणियां
दिमाग
में आज
ला रहे हैं

मास्टर
साहब एक
कमप्यूटर
पर रोज
आया  करते थे

कुछ ना कुछ
स्टेटस पर
लिख ही
जाया करते थे।


शुक्रवार, 25 मई 2012

नंदू और पैट्रोल

पैट्रोल
के दाम
जब से
हैं बढे़

मुझे
अभी तक
नहीं दिखाई
दिये किसी के
कान खड़े

कल शाम
मैंने सोचा
आज
जब मैं
सड़क के
रास्ते से जाउंगा
गाड़ियांं स्कूटर
मोटरसाईकिल
सब को
गायब पाउंगा

पर सारे
छोरा छोरी
लोग
और जोर के
फर्राटे की
आवाज आज
बना रहे थे
कल तक
एक दो
चक्कर
टकराते थे
आज
सात आठ
चक्कर
लगा रहे थे

स्कूल
पहुंचने पर
किसी ने भी
पैट्रोल की
बात भी नहीं की
कारें सभी
लोगों ने
लाकर
मैदान में
आज जरूर
खड़ी की

ट्रक ट्राँस्पोर्ट
गाड़ियोंं
वाले नेता
जगह जगह
भीड़ लगवा रहे थे

पुतले सरकार
के बना बना कर
आग भी लगाते
जा रहे थे

पैट्रोल की
बात पर
किसी ने
जब मुझे
मुँह नहीं
कहींं लगाया

कामगार
नंदू की याद
ने मुझे घर को
वापस लौटाया

घर जल्दी
आकर
मैंने नंदू से
सहानुभूति
जब जताई

नंदू को
मेरी बात
आज
बिल्कुल भी
समझ में
नहीं आई

बोला
बाबू साहब
पैट्रोल बढे़
गैस बढे़
मेरा कुछ
भी कहीं
नहीं जाने
वाला है

मेरे परिवार
में तो कोई
घासलेट भी
नहीं खाने
वाला है

आप लोग
तो कार
गाड़ी पर
हमेशा जायेंगे

मेरे पैर
के छाले
तुम्हारी
सरकार
को
कहाँ
नजर
आयेंगे।

गुरुवार, 24 मई 2012

अंडा बिक गया

अंडे
एक टोकरी के
अपने को बस
चरित्रवान दिखाते हैं

दूसरी
टोकरी की
मालकिन को
चरित्रहीन बताते हैं

कल
दूसरी टोकरी
के अंडों ने

पहली के
एक अंडे को
फुसला लिया

चरित्रवान अंडा

चरित्रहीन
कहलाये
जाने वाले
अंडों मेंं
मिला लिया

इधर का
एक अंडा
उधर के
एक अंडे का  

रिश्तेदार भी
बताया जाता है

पहली बार
उसने चुराया था

इस बार ये वाला
बदला ले जाता है

आमलेट
बनाने वाले भी
दो तरह के
पाये जाते है

एक
माँसाहारी

दूसरे
माँस के पुजारी
बताये जाते हैं

अंडा
फोड़ों का
हर बार

इन्ही
बातों पर
झग
ड़ा
हो जाता है

ये
झगड़ा करते
रह जाते हैं

इस बीच

इनका
अपना अंडा
इनको ही
धोखा
दे जाता है

अब
पहली
टोकरी में

अंडा
जगह खाली
करके आया है

दूसरी
टोकरी का अंडा

ये बात
मुर्गी रानी को
पहुंचाके आया है

छ:
महीने के भीतर

एक
नया अंडा
मुर्गी लेकर आयेगी

अंडे
से अंडा
लड़वाया जायेगा

जो
जीत जायेगा
उसे टोकरी
का राजा
बनवाया जायेगा

आमलेट
बनाने वाले
फिर
लंगोट पहन
कर आयेंगे

चरित्र दिखा
कर लाइन के
इधर उधर जायेंगे

कब्बडी
एक बार
फिर से
मैदान में
खेली जायेगी

मैदान
के बाहर
अंडे की बोली
लगायी जायेगी

अंडों
के पोस्टर भी
बड़े बड़े
छपवाये जायेंगे

अंडे
उछलते रहेंगे
टोकरी वालों को
गंजा कर चले जायेंगे

अंडे
इस टोकरी से

उस
टोकरी में जायेंगे

टोकरी वाले

अपनी
धोती को
खिसकते हुवे

फिर से
पकड़ 
कर
खिसियायेंगे। 

बुधवार, 23 मई 2012

सुन्दर घड़ीसाज

चंदू वैसे हर
कोण से ऎलर्ट
नजर आता है
हर काम में
अपने को
परफेक्ट
वो बनाता है
मायूस होते
हुवे मैने
उसे कभी
भी नहीं पाया
समय के पाबंद
ने कल जब
अपनी घड़ी को
चलते हुवे
नहीं पाया
हाथ झटकते
हुवे तब थोड़ा
सा वो झल्लाया
पर आज सु
बह फिर से
आफिस में
सीटी बजाते
हुवे दाखिल हुवा
जैसे कल के दिन
उसकी सेहत
को रत्ती भर
भी कुछ
नहीं हुआ
घड़ी उसकी
उसकी अपनी
कलाई पर ही
नजर आ रही थी
पर टिक टिक
उसकी आज
एक बिल्कुल
नई कहानी
सुना रही थी
महिलाओं की 

ओर मुखातिब
हो कर भाई
ने बतलाया
सैल बदलने
घड़ी की
दुकान पर
कल शाम
जब वो आया
एक सुंदर
सुघड़
मोहतरमा
को काम
करते वहाँ पाया
घड़ी को बड़ी
नजाकत से
पेचकस से
खोल कर
उसने सैल
को जब से
अंदर को
सरकाया
जैसे जैसे
पूरा वाकया
सुनाता
चला गया
घड़ीसाज
के काम का
वो कायल
होता गया
चलती है
या रुकी है
अब नहीं
देखने वाला है
अपने घर की
सारी घड़ियों
के सैल एक
एक करके
बदलने वाला है
महिलायें अभी
तक चुपचाप
चंदू को सुनती
जा रही थी
बस थोड़ा
थोड़ा बीच
बीच में कभी
मुस्कुरा रही थी
बोली इस से
पहले हमारे
पतिदेव लोग
दुकान का
पता चला लेंगे
हम लोग भी
अपने घर की
सारी घड़ियों
के सारे सैल
आज ही
जा कर के
बदलवा
डालेंगे ।

मंगलवार, 22 मई 2012

चप्पल और ओपन हार्ट

हृदयाघात
होने का
जैसे ही
हुवा अंदेशा

लल्लू
शहर छोड़
हार्ट केयर
सेंटर पहुंचा

ऎंजियोग्राफी
की नौबत आई

डाक्टर ने
ओपन हार्ट
सर्जरी की
राय बनाई

तुरंत ही
कर दिया जायेगा

बस
पाँच से
छ: लाख
का ही खर्चा
इसमें आ जायेगा

क्या
करता बेचारा
किस्मत का मारा

आपरेशन
थियेटर को
जब ट्राली
ले जायी
जा रही थी

लल्लू
को अपनी
हवाई चप्पल
की चिंता
सताये जा रही थी

डाक्टर साहब
आपरेशन
थोड़ा सा
टलवा दीजिये

मेरे भाई से
मेरी चप्पल
पहले आप
सम्भलवा दीजिये

नामी सर्जन
बिल्कुल
भी नहीं
तिलमिलाया

बस
थोड़ा सा
मुस्कुराया

चप्पलों
को एक
पोलिथिन
लाकर

खुद
उस में
बंधवाया

लल्लू को
दिखा कर
बाहर खड़े
उसके भाई
पप्पू के हाथ
में थमा आया

चप्पल
देख कर पप्पू
थोड़ी देर को चकराया

फिर जा कर
चप्पल की थैली
रिसेप्शन के
एक कोने में
रखकर चला आया

आपरेशन
चल रहा था
पप्पू भी
सोफे में
लेटा लेटा
जम्हाइयाँ
भर रहा था

इतने में
पप्पू की बेगम
पप्पी
वहाँ पर आई

पप्पू ने
पप्पी को
सारी बात
फटाफट समझाई

वो जब
रिसेप्शन
पर जाकर
देख के आई

चप्पल
की थैली
वहाँ से
गायब देख कर

घबरा के
लौट के आई

उधर
आपरेशन चलता
चला जा रहा था

इधर
चप्पल का
गायब होना
पप्पू और
पप्पी का चैन
उडा़ता जा रहा था

पप्पी ने
अचानक
दिमाग अपना
खुजलाया

रिसेप्शन
पर जा कर
ह्ल्ला जोर से मचाया

सी सी टी वी
खुलवाने का
जब भय दिखाया

दरवाजे पर
खड़ा दरबान
तुरंत थैला लेकर आया

बोला
मैने आपकी
चप्पलों का
बहुत ख्याल रखा था

इसी लिये
इसको संभाल
के अपने पास रखा था।

सोमवार, 21 मई 2012

चोरवा विवाह और मास्टर

आमीरखान का
धारावाहिक
सत्यमेव जयते
हम नहीं भी देखते
दूर दर्शन का डब्बा
घर पर कपड़े से ढक
कर जरूर हैं रखते
साथियों के बीच हो
रही चर्चा से पर क्या
कह कर बचते
कल के साप्ताहिक
अंक का एक पहलू
रहा चोरवा विवाह
जिसको सुन सुन कर लोग
भर रहे थे आह पर आह
अजब गजब का किस्सा
बताया जा रहा था कि
देश के कुछ इलाकों में
होनहार बुद्धिमान वरों को
बंदूक की नोक पर उठवा
लिया जाता है
उसके बाद किसी एक कन्या
से उसका जबरदस्ती विवाह
भी करा दिया जाता है
प्रशाशक अभियंता चिकित्सक
प्राथमिकता से उठवाये जाते है
उसके बाद धमकी के देकर
वधू के साथ उसके घर
छोड़ दिये जाते हैं
वैसे तो होता क्या है
विवाह तो विवाह होता है
ऎसे होता है या वैसे होता है
किसी को भी इस किस्से में
मजा नहीं आ रहा था
तभी किसी ने एक नयी
बात वहां पर बताई
जिसको सुन कर सारे
चर्चाकारों के चेहरे पर
अच्छी सी मुस्कान आई
अब तो कभी कभी
मास्टरों को भी उठवा
लिया जाता है
उनका भी चोरवा विवाह
करवा दिया जाता है
इस बात से पता चला
मास्टर भी अब तरक्की
के रास्ते पर आ रहा है
कुछ लोकप्रियता इस तरह
से वो भी पा जा रहा है
सम्मानित लोगों के साथ
उसको भी कभी कभी
उठा लिया जा रहा है
चलो शादी के बाजार में
बड़े लोगों के बीच
कुछ कीमत कोई तो
उसकी भी लगा रहा है।

रविवार, 20 मई 2012

वट सावित्री

श्रीमती जी
सुबह से
ही आज
इधर उधर
जा रही थी


कभी
नयी साड़ी
पहन रही थी


कभी
नाक में
नथ चड़ा
रही थी


अरे
आज तो
जल्दी उठ
कर के नहा
भी लीजिये
का हल्ला
मचा रही थी


पता चला
'वट सावित्री'
का व्रत कर


पूजा
घर पर ही
करवा रही थी


मैने पूछा उनसे


अजी ये
वट सावित्री
क्या बला है


घरवाली बोली


मेरे इस व्रत
को करने से ही
आपका होने
वाला भला है


सावित्री
के पति
सत्यवान
के प्राण
वट वृक्ष के नीचे
जब लेने आता
है यमराज


वापस
लौटने में
स्वर्ग के
द्वार तक
सावित्री को
अपने ही पीछे
आता हुवा
पाता है जब धर्मराज


उसकी
जिद के आगे
जब वो हार जाता है


सत्यवान
के प्राण
उसे लौटाता
है यमराज


इसी लिये
सावित्री
वट वृक्ष
के साथ
अभी तक
पूजी जाती है


हर पत्नी को
प्राण प्यारी
का दर्जा वो
ऎसे ही
दिलवाती है


पत्नी
पति के
प्राणों को
बिल्कुल भी
निकलने देना
कभी नहीं
चाहती है


एक ही बार में
पति के प्राण
निकाल निकाल
के यमराज
अगर ले जायेगा


तो बताइये
पत्नी के
निकालने
के लिये फिर
क्या कुछ
रह जायेगा


यमराज जी
आप ये काम
पत्नियों
को ही
सौंप दीजिये


काहे
पंगे में पड़ते हैं
धीरे धीरे
प्राण प्यारी को ही
पति परमेश्वर
के प्राण
निचोड़ने दीजिये।

शनिवार, 19 मई 2012

ब्राह्मण और मीट

ब्राह्मणों ने शुरु किया
जब से मीट है खाना
बूचडो़ ने सोच लिया
मीट का दाम है बढ़ाना
चाह रहे थे बैंक वाले भाई
तिवारी जी को समझाना
कालेज को जाते समय
ये वाकया सामने आया
तिवारी जी ने जब मुझे
आवाज दे कर बुलाया
एक जमाना था पुराना
कर्म आधार था
वर्ण व्यवस्था का
चार वर्ण में मेरे देश
का आदमी आपस
में बंटता था
जमाना बहुत ही आगे
चला आज आया
आदमी ने भी अपने
कर्मों का दायरा बढा़या
मास्टर स्कूल में
पढा़ना छोड़ के आया
डाक्टर हस्पताल की
दवाई ही बेच आया
बैंक वाले ने गरीब की
भैंस के लोन पर खाया
हर कोई आज ऊपर की
कमाई चाहता है
करता खुद कुछ है और
सामने वाले को समझाता है
बिना कुछ करे किसी के भी
कंधे पर चढ़ कर ऊपर की
ओर जाना चाहता है
उस समय वो वर्ण व्यवस्था
को पूरा पूरा भुनाता है
एक वर्णी लोगों से मिलकर
कहीं भी हाथ मारने में
बिल्कुल नही हिचकिचाता है
काम पूरा जब हो जाता है
वर्ण व्यवस्था के खिलाफ
झंडा खुद उठाता है
सफेद टोपी निकाल के
अन्ना के जलूस की
आगवानी करने भी
आ जाता है
आज जब अधिकतर लोग
देश में हर तरफ कुछ
भी खाते चले जा रहे हैं
फिर भी बाजार में हम
रुपये का भाव गिरता
हुआ देखते चले जा रहे हैं
ऎसे में समझ में नहीं
मेरे आ पा रहा है
ब्राह्मण का मीट खाना
मीट के दाम को
कैसे बढा़ रहा है
तिवारी जी हम ये बात
बिल्कुल भी नहीं
पचा पा रहे हैं
हम भी वैसे शिकार नहीं
खा पा रहे हैं और आपके
प्रश्न का उत्तर भी नहीं
आज दे पा रहे हैं।

शुक्रवार, 18 मई 2012

तबादला मंत्री

नयी
सरकार
लग रहा है

कुछ
कर दिखायेगी

सुना
जा रहा है
पहाड़ी राज्य में
तबादला उद्योग
जल्दी ही लगायेगी

पिछली
सरकार के
तबादला ऎक्ट को

रद्द करने
वो जा रही है

उसके लिये

विधान सभा
की मुहर
जरूरी है
बता रही है

वैसे
तबादले
करने से
क्या हो पाता है

मेरी
समझ मेंं
आज भी
ये नहीं आता है

मेरा
विश्वविद्यालय
संस्था एक
स्वायत्तशाशी है

तबादला
करने करवाने
की यहाँ नहीं
बदमाशी है

जो
काम करता है
वो करता ही
चला जाता है

जो
नहीं करता है
उससे काम
करवाने की
हिम्मत कोई
नहीं कर पाता है

क्यों
नहीं करता 
है पूछने पर

"बने रहो पगला
काम करेगा अगला"

मुहावरा
बड़े चाव
से सुनाता है

अपनी
सरकार को
एक सुझाव
मैं देने जा रहा हूँ

पहाड़ी
राज्य को
प्रगति के पथ पर
ले जाना चाह रहा हूँ

ये
ऎक्ट वेक्ट
खाली काहे
बदलवा रहे हो

तबादला
मंत्री का
पोर्टफोलियो एक
क्यों नहीं बना रहे हो

लाल बत्ती
के एक चाहने वाले को

क्यों नहीं
इसमें खपा रहे हो

तबादले में
सुना था
पिछली बार
बहुत कुछ
खाया जा रहा था

राज्य की
उन्नति में
उसमेंं से
धेला भी
नहीं लगाया
जा रहा था

मंत्रालय
हो जायेगा तो

एक उद्योग
पनप जायेगा

कुछ हिस्सा
तबादलाखोरी का

राज्य के
खजाने में
दो चार कौड़ी
तो जमा कर जायेगा।

गुरुवार, 17 मई 2012

कड़वी चीनी

चीनी के
बारे में
सबसे
कड़वी
बात

दैनिक
हिन्दुस्तान
में छपी
एक खबर
ने हमें
बतायी
है आज

"ज्यादा
चीनी
का सेवन
बनाता है
बेवकूफ़"

बात वैसे
लग रही
है बहुत
ही खूब

इस बात
को हम
कब से
रहे थे
अपने ही
घर में सूंघ

श्रीमती जी
बहुत दिनों
से हमें
चाय
बिना चीनी
के पिलाये
जा रही थी

ये बात
मेरी समझ
में बिल्कुल
भी नहीं
आ रही थी

इसके
खिलाफ
मेरा
परम मित्र
मुझे
भड़का
रहा था
अपने
घर मेंं
एक कप
चाय में
दो चम्मच
चीनी
डाल कर
पिला
रहा था

श्रीमती जी
को कभी
महसूस
मैं फिर
भी नहीं
करा पाया

चीनी कम
खाने से
मेरी
बेवकूफी
में कुछ
अंतर
भी आया

ये समाचार
पत्र भी
अजीब
अजीब
समाचार
छाप के
ले आते हैं

किसी
दिन
चीनी
तो
किसी
दिन
नमक
खाने से
परहेज
करवाते हैंं

घूस
खाने
वाला
बनता है
या
बनाता है
बेवकूफ
नहीं बता
पाते हैं

चीनी
नमक
जैसी चीज
खाने वाले
के पीछे
ही पड़
जाते हैं

देखिये
किस तरह
बेवकूफ
बना ले
जाते हैं।

बुधवार, 16 मई 2012

सफेद बाल

मेरे सफेद बाल
हो गये हैं अब
खुद मेरे लिये
आज एक बवाल

हर कोई इनसे
दिखता है परेशान

जैसे
उड़ रहे हों
मेरे सर के
चारों ओर
कुछ अजीब
से विमान

एक मित्र जो रोज
बाल काले करता है

उसकी बीबी
का डायलाग
हमेशा ऎसा
ही रहता है

अरे आपके
कुछ बाल
अभी काले
नजर आते हैं
आप
अपने बाल
डाई क्यों
नहीं कराते हैं

हर दूसरा भी राय
देने की कोशिश
करता है एक नेक
भाईसाहब आपके
बाल इतनी जल्दी
कैसे हो गये सफेद

एक सटीक दवाई
हम आपको बताते हैं

एक ही रात में
उसको खा के सारे
बाल काले हो जाते हैं

कल जब मैं सड़क पर
बेखबर जा रहा था
देखा एक आदमी
सड़क किनारे रेहड़ी
अपनी सजा रहा था

कुछ जड़ी बूटियां
बेचने वाला जैसा
नजर आ रहा था

मुझे देखते ही दौड़
कर मेरी ओर आया
हाथ पकड़ मेरा
मुझे अपनी रेहड़ी
की तरफ उसने बुलाया

अंकल अंकल ये वाली
बूटी आप मुझ से ले जाओ
एक हफ्ते में अपने
सारे बाल काले करवाओ

सौ रुपये में इतना
आप और कहाँ पाओ
असर ना करे तो
दो सौ मुझसे ले जाओ

उसको इतना उतावला देख
कर मैं धीरे से मुस्कुराया
उसकी तरफ जाकर
उसके कान में फुसफुसाया

पचास साल लगे हैं
इन बालों को
सफेद करवाने में
तुझे क्या मजा
आ रहा है
इनको एक हफ्ते में
काले करवाने में
मेरी की गई मेहनत
पर पानी फिरवाने में

कोई दिल काला
करने की दवा है
तो अभी दे जा
सौ की जगह
पाँच सौ तू ले जा

काले दिल वालों का
जमाना आ रहा है
उन सब को जेल से
बाहर निकाला जा रहा है

उनके खुद किये गये
घोटालों पर ब्याज भी
सरकार की तरफ से
दिया जा रहा है।

मंगलवार, 15 मई 2012

कार्टून और लंगोट

विधान सभा लोक सभा में
चर्चा अभी अगर नहीं कराओगे
लिखने लिखाने कार्टून बनाने
के कुछ नियम नहीं बनाओगे
संविधान का कार्टून अब भी
कुछ बंदरों से नहीं बनवाओगे
भारत देश की नागरिकता से
कभी भी हाथ धुला पाओगे
किसी पर भी कार्टून बनाओगे
आज नहीं फंसोगे पचास साल
बाद ही सही फंसा दिये जाओगे
जिंदा रहे तो टांक दिये जाओगे
मर खप गये तो किसी जिंदे
आदमी का जनाजा निकलवाओगे
कार्टून छोड़ो मुस्कुराने पर भी
सवाल जवाब होता देख पाओगे
सबके लिये बुरके जालीदार
सिलवाते ही रह जाओगे
अपने अपने कार्टून बनाओगे
अपने ही गले में लटकाओगे
ईश्वर को मंदिर से अगर भगाओगे
आदमी को ईश्वर मान जाओगे
शायद अपनी लंगोट बचा पाओगे
नंगे होने से पक्का बच जाओगे।

सोमवार, 14 मई 2012

दिखता है आतंकवाद

बम फोड़ना
मकान उड़ाना
निरीह लोगों की हत्या
यूँ ही करते चले जाना

आतंक फैलाना
फिर
आतंकवादी कहलाना

खबर में छा जाना
पकड़े जाना
जेल चले जाना

दिखता है
हो रहा है
दिखाता है
होगा आगे भी
अभी और कुछ

देश कर सकता है तैयार
रक्षा रणनीति और हथियार

बिना रीढ़ की हड्डी
अपने ही घर की टिड्डी
उतरी हुई है मैदान मैं
उतार के अपनी चड्डी

हल्ला खूब मचाती है
लोगों को बताती है
आतंकवादियों से देश
को बचा लो बचा लो की
डुगडुगी रोज बजाती है

खूबसूरत
रंगीन पंख फैलाती है
सुंदर नाच भी दिखाती है
ध्यान बंटाती है

अंदर ही अंदर
अपने पैरों के
नाखूनों से
देश की नींव
खुरचती जाती है

अपने जैसी
सोच के लोगों को
इकट्ठा इस तरह
करती चली जाती है

एक भी
गोली नहीं चलाती
किसी को
बम से नहीं उड़ाती
बिना रीढ़ की हड्डी के
बाकी लोग माला ले आते हैं
टिड्डी को पहनाते हैं

जयजयकार के साथ
कंधे पर बैठा के जुलूस
उसका बनाते हैं

इसी सब में देश की
नींव दरकती जा रही है
सबको नींद आ रही है

आतंकवादी तो जेल में
बाँसुरी बजा रहा है
टिड्डा अपने भाई बहनों के
साथ सबका ध्यान बटा रहा है

कुछ नहीं दिखता है
कि
कुछ कहीं हो रहा है
ना दिखाता है कुछ होगा

देश कैसे कर सकता है तैयार
रक्षा रणनीति और हथियार।

रविवार, 13 मई 2012

हैप्पी मदर्स डे

गाय भी माता कहलाती है
सूखी हरी जैसी भी मिले घास
खा ही जाती है

दूध की नदियाँ बहाती है

दूध देना बंद करती है
तुरंत कसाई को बेची जाती है

कुछ नहीं कहती है
चुपचाप चली जाती है

इसी तरह कई प्रकार की माँऎं
संसार में पायी जाती हैं

जिस में भी ममता हो कुछ
माँ का प्रतिरूप हो जाती हैं

माँ की ही तरह जानी जाती हैं

कौन सी माँ किसी के द्वारा
ज्यादा भाव पाती हैं
वो तो उसकी क्वालिटी बताती है

धरती माँ है देश भी माँ है
प्रकृति माँ है ईश्वर भी माँ है

जननी देने से कभी भी घबराती नहीं है
लेने वाले को भी दोहन करने में शरम आती नहीं है

संपन्न होती है तो आती जाती रहती है
नहीं होती है
तो सबसे नालायक पुत्र को सौंप दी जाती है

कहीं नहीं भेजी जाती है तो
वृ्द्धाश्रम पहुंचायी जाती है

माँ के भी सपने होते हैं
वो ही तो सिर्फ उसके अपने होते हैं

हमें पता होता है माँ क्या चाहती है
हमारी बड़ी मजबूरियां
उसके सपनो के आढे़ आती हैं

माँ
वाकई तेरे सहने की क्षमता
दुनियाँ का आठवां आश्चर्य हो जाती है

दुनिया तेरह मई को मदर्स डे मनाती है
तरह तरह के संदेश इधर से उधर करवाती है

एक दिन के लिये माँ
किसी किसी को याद आ ही जाती है

माँ के लिये तो हर दिन
एक खास दिन हो जाता है

जननी को कुछ तो जनना है
ये बस उसे याद रह पाता है

हर क्षण में एक नयी रचना
वो रचती ही चली जाती है

माँ आज तू नहीं है
हमें तेरी बहुत ही याद आती है ।

शनिवार, 12 मई 2012

जा एक करोड़ का होजा

बीबी बच्चों का
भविष्य बना
एक करोड़ का
तू बीमा करा

इधर अफसर
तीन सौ करोड़
घर के अन्दर
छिपा रहा है

उधर उसका
अर्दली
दस करोड़
के साथ
पकड़ा
जा रहा है

तू कभी
कुछ नहीं
खा पायेगा

बस सपने
ही देखता
रह जायेगा

अपने पास
ना सही
किसी के पास
एक करोड़
इस तरह तो ला
एक करोड़ का
सपना तू होजा

चल सोच मत
किश्त जमा
कर के आ

अभी करायेगा
कम किश्त में
हो जायेगा

बूढ़ा हो जायेगा
किश्त देने में
ही मर जायेगा

आज करा
अभी करा
एक करोड़
की पेटी होजा

दो रोटी
कम खा
बीमा
जरूर करा

बीमा
करते ही
अनमोल
हो जायेगा
किसी के
चेहरे पर
रौनक
ले आयेगा

तेरे जीने
की ना सही
मरने की
दुआ करने
कोई ना कोई
अब मंदिर की
तरफ जायेगा

किसी की
मौत पर
रोना शुरु हो
जाते हैं लोग
तू पैदा हुआ
खुश हुवे
थे लोग

मरेगा
तब भी
हर कोई
मुस्कुरायेगा
चल सोचना
बंद कर

तीन सौ
का नहीं
बस एक
करोड़ का
ही सही

करा
जल्दी करा
साठ पर करा
और सत्तर पर
पार होजा पर
बीमा एक करोड़
का जरूर करा।

शुक्रवार, 11 मई 2012

धैर्य मित्र धैर्य

आज प्रात:
उठने से ही

विचार
आ रहा था

श्रीमती जी पर
कुछ लिखने का
दिल चाह रहा था

सोच बैठा
पूरे दिन
इधर उधर
कहीं भी
नहीं देखूंगा

कुछ
अच्छा सा
उन पर लिख कर
शाम को दे दूंगा

घर से
विद्यालय तक
अच्छी बातें
सोचता रहा

कूड़ा
दिखा भी तो
उसमें बस
फूल ही
ढूंढता रहा

पर
कौए की
किस्मत मेंं
कहां
मोर का
पंख आता है

वैसे
लगा
भी ले
अगर तो
वह मोर नहीं
हो जाता है

कितना भी
सीधा देखने
की कोशिश करे

भैंगे को
किनारे में
हो रहा सब
नजर आ
ही जाता है

उधर
मेरा एक साथी
रोता हुआ सा
कहीं से
आ रहा था

एक
महिला साथी से
बुरी तरह
डांठ
उसने
अभी अभी
खायी है

सबको
आ कर के
बता रहा था

ऎसा
पता चला
कि
महिला को
महिला पर ही
गुस्सा आ रहा था

मेरे को तो
भाई जी पर
बहुत तरस
आ रहा था

इसी
उधेड़बुन में
घर वापस आया
तो श्रीमती जी 
मैने अपनी भुलायी

कलम
निकाली मगर
श्रीमती तो दूर दूर
तक कहीं भी
नजर नहीं आयी

दिमाग ने
बस एक
निरीह मित्र को
किसी से मार
खाते हुवे जैसी
छवि एक दिखाई

योजना
आज की
मैंने खटाई
में डुबायी

कोई बात नहीं
कुम्भ जो क्या है
फिर कभी मना लूंगा

अपनी ही
हैंं श्रीमती
उसपर
कविता एक
किसी और दिन
चलो बना लूंगा।

गुरुवार, 10 मई 2012

आभा मण्डल

चार लोगों से
कहलवाकर
अपने लिये
अलग कुर्सी
एक चाँदी
की लगवाकर

सब्जी लेने
हुँडाई में जाकर
कपड़ो में सितारे
टंकवाकर

कोशिश होती है
अपना एक
आभा मण्डल
बनाने की

अब
आभा मण्डल हो
या
प्रभा मण्डल हो
या
कुछ और
यूँ ही अच्छी
शक्लो सूरत
से ही थोड़े ना
पाया जाता है

कुछ लोग
अच्छे
दिखते नहीं 
हैं
पर चुंबक सा
सबको अपनी
ओर  खींचते
चले जाते 
हैंं

पहनते कुछ
खास भी नहीं 
हैं
और हरी सब्जी
वो खाते 
हैं

चुपचाप रहते हैंं
और
बस थोड़ा थोड़ा
मुस्कुराते 
हैं 

लोग बस यूँ ही
उनके दीवाने
पता नहीं क्यों
हो जाते 
हैं 

बहुत कड़ी
मेहनत करके
अपने कर्मों
का कुछ भी
हिसाब
ना धर के
चमकने वाले
एक व्यक्तित्व
का मुकाबला
जब हम नहीं
कहीं भी
कर   पाते 
हैं

तो यू हीं
खिसियाते 
हैं 

मदारी
की तरह
किसी
भी तरह
की डुगडुगी
बजाना शुरू 
हो जाते 
हैं

एक बड़ी
भीड़ का घेरा
अपने चारों
ओर  बनाते 
हैं 

आभा मण्डल
की रोशनी
से पीछा
छुड़ाते 
हैं

कुछ देर के
लिये ही सही
शुतुरमुर्ग की
तरह गर्दन
रेत के अंदर 
 घुसाते 
हैं ।

बुधवार, 9 मई 2012

गैंग

सभ्य एवम
पढे़ लिखे
कहलाये
जाने वाले
एक बड़े
समूह में
छितराये
हुए से
कुछ लोग
कहीं कहीं
साथ साथ से
हो जाते है
आपस में
बतियाते हैं
रोज मिल
पाते हैं
लोगों को
दिख जाते हैं
ऎसे ऎसे
कई झुरमुट
कुकुरमुत्ते
की तरह
जगह जगह
उगते चले
जाते हैं

अब
कुकुरमुत्ते
भी तो
माहौल के
हिसाब से
ही पनप
पाते हैं
कुछ ही
कुकुरमुत्ते
मशरूम
की श्रेणी
में आते है
सँयमित
तरीके से
जब उगाये
जाते हैं
तभी तो
खाने में
प्रयोग में
लाये जाते हैंं

कभी कभी
जब इधर के
कुछ लोग
उधर के
लोगों में
चले जाते हैं
बातों बातों
में फिसल
जाते है
सामने वाले
से उसके
समूह को
गैंग कह
कर बुलाते हैं
उस समय
हम समझ
नहीं पाते हैं
कि
वो उन्हे
गिरोह
कह रहे हैं
टोली
कह रहे हैं
दल
कह रहे हैं
या
मँडली
कह रहे हैं
संग गण
वृन्द मजदूर
गुलाम भी
तो गैंग के
रूप के रूप
में कहीं कहीं
प्रयोग किये
जाते हैं

अच्छा
रहने दो
अब
बातो को
हम लम्बा
खींच कर
नहीं ले
जाते है
मुद्दे पर
आते हैं

भले लोग
बात करने
में अपनी
मानसिकता
का परिचय
जरूर
दे जाते हैं
बता जाते हैं
सभ्य एवम
पढे़ लिखे
लोग
सही समय
पर सही
शब्द ही
प्रयोग में
लाते हैं।

मंगलवार, 8 मई 2012

अज्ञानता और परमानंद

"ये विद्वांसा न कवय:"
का अर्थ
जब गूगल
में नहीं
ढूंढ पाया

कहने वाले
विद्वान का
द्वार तब
जा कर
खटखटाया

विद्वान
और कवि
दोनो का
भिन्न भिन्न
प्रतिभायें
होना पाया

कुछ
कसमसाया
दूर दूर तक
एक को भी
अभी तक
नहीं कहीं
छू पाया

कल रात
का सपना
सोच
घर पर
छोड़ आया

आज 
एक गुरु
ने जब
इन्कम
टैक्स का
हिसाब
कुछ लगाया

अचानक
सामने बैठी
महिला से
उसके वेतन
में लगने
वाला
डी ऎ
कितना है
पुछवाया

महिला ने
नहीं मालूम है
करके अपना
सिर जब
जोर से
हिलाया

गुरू जी ने
थोड़ा सा
मुस्कुराया

'इग्नोरेंस इज ब्लिस'
कह कर
फिर ठहाका
लगाया

गूगल
का पन्ना
फिर से
जब एक
बार और
खुलवाया

अज्ञानता
परमानंद है
का अनुवाद
वहाँ पर 
लिखा पाया

कल का
सपना
फिर से याद
जरा जरा
साआया

परमानंद
अभी बचा है
मेरे पास
सोच कर
'उलूक' ने
अपनी पीठ
को फिर से
खुद ही
थपथपाया।

**********


रविकर फैजाबादी
की टिप्पणी
भी देखिये

विज्ञानी सबसे दुखी, कुढ़ता सारी रात ।
हजम नहीं कर पा रहा, वह उल्लू की बात ।
वह उल्लू की बात, असलियत सब बेपर्दा ।
है उल्लू अलमस्त, दिमागी झाडे गर्दा ।
आनंदित अज्ञान, बहे ज्यों निर्मल पानी ।
बुद्धिमान इंसान, ख़ुशी ढूंढे विज्ञानी ।।

****************************

सोमवार, 7 मई 2012

श्रंगार रस सौंदर्य बोध और कबाड़ी

सौंदर्य
बोध होना
और
श्रंगार
रस लेना

जिसको
आता है
वो उसी
रास्ते पर
चलता चला
जाता है

कबाड़ी का
सौंदर्य बोध
तो कबाड़
होता है
कहीं भी
पड़ा रहे
कबाड़ी
के लिये
बस वो
ही तो
श्रंगार
होता है

कबाड़ी
जब कहीं
से कबाड़
उठाता है
घर आंगन
रास्ते शहर
को साफ
कर ले
जाता है

शाबाशी
ना किसी से
वो कभी
चाहता है

ना ही

शाबाशी
की

टिप्पणी
ईनाम में
कहीं पा
पाता है

कबाड़
उठाने
और
ठिकाने
लगाने
तक

भी सब
ठीक है

मजा तो
तब आता है
जब कबाड़ी
कविता
लिखना

शुरू हो
जाता है


सौंदर्य बोधी
श्रंगार रसियों
को हैरान
परेशान
पाता है


पर उसे तो
बस कबाड़
में ही मजा
आता है

उठाता है
दिखाता है
कबाड़
पर रोज
कुछ
ना कुछ
लिख ले
जाता है

पर भंवरे
को तो बस 

फूल ही
नजर
आता है
वो फूल पर
मडराता है

कबाड़ी
सड़क के
किनारे
खड़ा 
खड़ा
थोड़ा थोड़ा
मुस्कुराता
चला जाता है।

रविवार, 6 मई 2012

बैठे ठाले उलूक चिंतन

रविवार को
उलूक चिंतन
कुछ ढीला
पढ़ जाता है

लिखने के लिये
कुछ भी नया
आसपास जब
नहीं ढूँढा जाता है

घर पर बैठे ठाले
अगर कुछ
कोई लिखना
भी चाहता है

परिणाम के
रूप में झाड़ू
अपने सामने
से पाता है

अपनी
कमजोरियों
को दिखाना
भी कहाँ अच्छा
माना जाता है

हर कोई
अपनी छुरी को
तलवार ही
बताना चाहता है

दो काम हों
करने अगर
अच्छा काम
पहले करने को
हमेशा से
कहा जाता है

पर ऎसा
कहाँ किसी से
हर समय
हो पाता है

रावण भी
तो स्वर्ग तक
सीढ़ियाँ नहीं
बना पाता है

पहले सीता
मैया जी को
हरने के लिये
चला जाता है

पुरुस्कार
के रूप में
रामचन्द्र जी
के हाथों मार
दिया जाता है

उलूक भी
इसीलिये
सोच में कुछ
पड़ जाता है

सब्जी
बाजार से
लाने से पहले
चौका बरतन
झाड़ू पौछा
करने को चला
ही जाता है

कभी कभी
बुद्धिमानी कर
मार खाने से
बच जाता है ।

शनिवार, 5 मई 2012

चोर ना ना कामचोर

बहाने के ऊपर
जब बहाने
को चढ़ाते हैं
बहाने का समुंदर
कब वो लबालब
भर ले जाते हैं
पता कुछ कहाँ
कोई कर पाते हैं
अंदाज उस समय
ही आ पाता है
जब बहानेबाज
के जाने के बाद
हर कोई अपने को
बहाने में बहा
हुआ पाता है
ठगा सा
रह जाता है
बहाने बनाते बनाते
कुछ बहानेबाज
इतना भावुक
हो जाते हैं कि
सामने वाले
की आँखों
में आंसूँ भर
ही आते हैं
बहाने कितनी
आसानी से
किस समय
सच्चाई में
ढाल ले जाते हैंं
कितने
कलाकार हैं
उस समय
बताते है
हम देखते
रह जाते हैं
भावावेग प्रबल
हो जाता है
हर बहाना
सामने वाले
की समझ
में आता है
वो बेवकूफ
की तरह
ये दिखाता है
बहाना बनाया
तो जा रहा है
पर उसकी
समझ में
बिलकुल भी
नहीं आ रहा है
इसी तरह बहाना
बनाया जाता है
फिर भी
अन्जाने में वो
बहाना कब
सामने वाले को
बहा ले जाता है
अन्दाज ही नहीं
कोई लगा पाता है
मालूम रहता है 
वो जब भी आता है
बहाना बनाता है
बहुत अच्छा बनाता है।

शुक्रवार, 4 मई 2012

अर्जीनवीस

कैसे कैसे
पढे़ लिखे
बेवकूफ यहाँ
पाये जाते हैं
बात बात पर
प्रार्थना पत्र 
एक लिखवाये
जाते हैं
परास्नातक
परीक्षा देने
के लिये जब
आये हो
पार्थना पत्र
लिखना भी
अब तक सीख
नहीं पाये हो
कह कह कर
आंखें हमें
दिखाये
चले जाते हैं
अब आप
ही बताईये
कुछ तरस
हम लोगों
पर भी
तो खाइये
इतिहास
भूगोल की
परीक्षा में
प्रार्थना पत्र
लिखो कहाँ
कहा जाता है
कक्षाओं में
विषय पढ़ाने
के लिये ही
जब कोई
नहीं आता है 
प्रार्थना पत्र
कि कोचिंग
लेने थोड़े
कोई जाता है
न्यायालय के
वकील भी
तो स्नातक होते हैं
प्रार्थना पत्र
लिखवाने के लिये
आसपास
अर्जीनवीस होते है
आप भी कुछ
लोगों को
प्रार्थना पत्र
लिखना क्यों
नहीं सिखलाते हो
परीक्षा केन्द्रों में
उन्हे लाकर क्यों
नहीं बैठाते हो
रोजगार के
अवसर इसी बहाने
कुछ लोग
यहाँ पा जायेंगे
हम लोग भी
आप लोगों की
किच किच
से बच जायेंगे
हो सके तो
कुछ नोटरी भी
आप बैठा सकते हो
मुहर भी उनसे
प्रार्थनापत्रों में
लगवा सकते हो
उसपर लगने
वाली फीस भी
निर्धारित
कर लीजियेगा
अपने कुछ लोगों
को 
नोटरी की सीट 
दिलवा दीजियेगा
कुछ हिस्सा
फीस का
अपनी चाय
पानी के लिये
कभी कभी
इसी बहाने 
उठा भी
लीजियेगा।

गुरुवार, 3 मई 2012

इनविजिलेटर

शब्दकोष
विजिलेंट
का अर्थ
जागरूक
बताता है
महिलाओं
को परीक्षा
काल में
अच्छा निरीक्षक
माना जाता है
नकल करता
हुआ विद्यार्थी
इनके द्वारा
तुरंत पकड़
लिया जाता है
एक नकलची
विवाह हेतु
वधू की तलाश
में जब गया
लड़की शिक्षिका
है उसे वहाँ
पहुंच कर
पता लगा
पूछ बैठा
बेचारा
कितने
नकलचियों
को उसने
नकल करते
हुए पकड़वाया
कितनों का
निष्कासन कर
विद्यालय से
बाहर निकलवाया
लड़की मुस्कुराई
और बोली
मेरी नजर से
कोई नहीं
बच पाता है
नकलची कितना
भी शातिर हो
मेरे सामने नकल
नहीं कर पाता है
लड़का तो
पहले से ही
दूध से जला
बैठा था
छाँछ भी
फूँक फूँक
कर पीता था
सुनते ही
ये बात
उल्टे पैर
लौट कर आया
घर पहुँच कर
अपनी माँ को
उसने बताया
माँ इस लड़की से
शादी नहीं
कर पाऊँगा
नकल पकड़ती है
मैं तो रोज
ही धर
लिया जाऊँगा
स्कूल में
रोज नकल
पकड़वाती
हो जो
उसको दुल्हन
बना के
कैसे मैं घर
ला पाऊँगा
बीबी ला रहा हूँ
वैसे ही
घबरा रहा हूँ
दो आँख
वाली होती
तो भी चला
ही लेता
किसी तरह
इस लड़की
के पास
तो मैं
बारह आँख
देख कर
आ रहा हूँ
शादी करने
की हिम्मत
नहीं कर
पा रहा हूँ ।

बुधवार, 2 मई 2012

सरकार का आईना

उन्होंने
जैसे ही
एक बात
उछाली

मैंने तुरन्त
अपने मन
की जेब
में सम्भाली

घर आकर
चार लाईन
लिख
ही डाली

कह रहे थे
जोर लगाकर

किसी
राज्य की
सरकार का
चेहरा देखना
हो अगर 

उस राज्य के
विश्वविद्यालय 
पर सरसरी
नजर डालो

कैसी चल
रही है सरकार
तुरत फुरत में
पता लगालो

वाह जी
क्या इंडीकेटर
ढूंढ के चाचा
जी लाये हैं

अपनी पोल
पट्टी खुद ही
खोलने का
जुगाड़
बनाये हैं

मेरी समझ
में भी बहुत
दिनों से
ये नहीं
आ रहा था

हर रिटायर
होने वाला
शख्स
कोर्ट जा जा
कर स्टे
क्यों ले
आ रहा था

अरे
जब बूढ़े
से बूढ़ा
सरकार में
मंत्री हो
जा रहा था

इतने
बड़े राज्य
का बेड़ा गर्क
करने में
बिल्कुल भी
नहीं शरमा
रहा था

तो
मास्टर जी
ने 
किसी
का 
क्या 
बिगाड़ा था

क्यों
उनको साठ
साल होते ही
घर चले जाओ
का आदेश दिया
जा रहा था

काम धाम के
सपने
खाली पीली
जब राजधानी
में जा कर
सरकार जनता
को दिखाती है

उसी तरह
विश्विद्यालय
की गाड़ी
भी तो
खरामे खरामे
बुद्धि का
गोबर बनाती है

जो कहीं
नहीं हो
सकता है
उसे करने की
स्वतंत्रता भी
यहाँ आसानी से
मिल जाती है

बहुत सी
बाते तो
यहाँ कहने
की मेरी भी
हिम्मत नहीं
हो पाती है

सुप्रीम कोर्ट
भी केवल
बुद्धिजीवियों
के झांसे
में ही आ
पाती है

वाकई में
सरकार का
असली चेहरा
तो हमें
ये ही
दिखाती है।

मंगलवार, 1 मई 2012

"चर्चा जारी है"

बहुत वाद
विवाद
के बाद
कुछ निकल
कर के आया

एक वक्ता
ने बताया

बंदरों की
शक्लों में
समय
के साथ

किस
तरह का
परिवर्तन
है आया

शहर में
आजकल
हर मुहल्ले
के बंदर
अलग अलग
सूरतों के
नजर आ रहे हैं

आदतों में भी
किसी मुहल्ले
वासी से मेल
नहीं खा रहे हैं

जबकि
देखा गया है
अफ्रीका के
बंदर अफ्रीकी

योरोप के
बंदर यूरोपी

भारत के बंदर
भारतीय
जैसे ही
दिखाई
दिया करते हैं

जैसा जनता
करती है
वैसा ही
वहां के
बंदर भी
ज्यादातर
किया करते हैं

कोई
ठोस उत्तर
जब कोई
नहीं दे पाया

तो इस विषय
को अगली
संगोष्ठी में
उठाया जायेगा
करके
किसी ने बताया

वैसे भी
इस बार
थोड़ी
जल्दीबाजी
के कारण

बंदरों का
प्रतिनिधि
शरीक
नहीं हो पाया

बंदरों की
तरफ से
कोई जवाब
किसी ने भी
दाखिल
नहीं कराया।

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

शैतान बदरिया

ओ बदरिया कारी
है गरमी का मौसम
और तू रोज रोज
क्यों आ जा रही
बेटाईम आ आ के
भिगा रही
बरस जा रही
सबको ठंड लगा रही
जाडो़ भर तूने नहीं
बताया कि तू क्यों
नही बरसने
को आ रही
लगता है तू आदमी
को अपना
मूड दिखा रही
आदमी के
कर्मों का
फल उसको
दिला रही
पर तू ये भूल
क्यों जा रही
कि तेरे बदलने
से ही तो
आदमी की पौ
बारा हो जा रही
क्लाईमेट चेंज और
ग्लोबल वार्मिंग
के नाम पर
जगह जगह दुकानें
खुलते जा रही
जैसे ही नदी सूख
जाने की खबर
दी जा रही
तू शैतान बरस
के पानी से लबालब
करने क्यों आ रही
बदरिया जरा कुछ
तो बता जा री।

रविवार, 29 अप्रैल 2012

स्वामी विवेकानन्द और अल्मोड़ा 1863 - 2013


एक पूरी और एक आधी सदी
पुन : एक बार फिर से खुली
एक बंद खिड़की

आहट कुछ हुवी
नरेन्द्र के यहाँ कभी आने की

भारत के झंडे
अमेरिका में गाड़े थे
जिस युवा ने कभी

कोशिश करी किसी ने तो
उस स्मृति को हिलाने की

मेरे शहर अल्मोड़ा ने
देखा फिर से एक बार
वो अवतार

स्वामी विवेकानन्द
अवतरित होकर आया
बच्चों के रूप में इस बार

एक दिन के लिये ही कहीं
बच्चे युवा बुजुर्ग जुड़े यहीं

किया याद अश्रुपूर्ण नेत्रों से
उस अवतार को

जिसपर लुटाया था
मेरे शहर ने अपने प्यार को

कम उम्र में माना कि
वो हमेंं छोड़ कर चला गया

"उठो जागो रुको मत करो प्राप्त अपना लक्ष्य "
का संदेश पूरे जग को दे गया।

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

"चुहिया"

गीदड़ ने
अखबार में
छपवाया है
वो शेर है

ताज्जुब है
वो अब
तो गुर्राता
भी है

शेरों को
कोई फर्क
कहाँ पड़ता है

हर शेर
हमेशा
की तरह
आफिस
आता है

बॉस को
लिखाता है
वो अभी
भी शेर है

चुहिया
हमेशा
की तरह
लिपिस्टिक
लगा कर
आती है
पूंछ
उठाती है
हर शेर के
चारों तरफ
हौले हौले
कदमताल
रोज कर के
ही जाती है

शेर कुछ
कह नहीं
पाते हैं

बस
मूँछ मूँछ
में ही कुछ
बड़बड़ाते हैं
चुहिया की
मोटापे को
सुन्दरता
की पायजामा
अपने शब्दों
में पहनाते है

चूहा
शेरों की
दुकान
चलाता है
भेजता
जाता है
चुहिया को 
गीदड़ के
घर रोज

ताकि
किसी दिन
गीदड़ भटक
ना जाये
और
कबूल ना
कर ले जाये
वो शेर नहीं है ।

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

पप्पू और दुकान


पप्पू
की
दुकान में
अब
कोई नहीं आता

पिछली
सरकार से 
पप्पू
का था
कुछ नाता

पप्पू
पाँच साल
तक रहा 
पुराना राशन
बिकवाता

सभी
संभ्रांत लोगों
को
पप्पू
था बहुत ही भाता

ज्यादातर
लोगों
का 
पप्पू
की दुकान तक

इसीलिये
दिनभर में
एक
चक्कर तो था
लग ही जाता 

पप्पू
का
दीदार एकबार
होना ही
खाना पचा पाता

जब से
सरकार बदली है
अपने
कर्मों से
अभी तक
भी
नहीं वो संभली है

पता नहीं
चल पा रहा 
ऊँट
किस करवट 
बैठने को है
जाता

कौन सा
दुकानदार
अबकी बार
सरकार में
है
कुछ पैठ बनाता

बुद्धिजीवी
शाँत हो गया
कुछ नहीं है
वो बताता

पप्पू
भी
अब दुकान में
बहुत कम ही है
जाता

पप्पू की
दुकान में
अब
कोई नहीं आता।

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

सायरन बजा देवता नचा

कुछ ही दिन पहले तक
लोगों के बीच में था
एक आदमी अब
सायरन सुना रहा है
सड़क पर खड़ी जनता को
अपने से दूर भगा रहा है
सायरन बजाने वालों
में बहुत लोगों का अब
नम्बर आ जा रहा है
जिसका नहीं आ पा रहा है
वो गड्ढे खोदने को जा रहा है
काफिले बदल रहे हैं
झंडे बदल रहे हैं
कुछ दिन पहले तक
सड़क पर दिखने वाला 

चेहरा आज बख्तरबंद 
गाड़ी में जा रहा है
पुराने नेता और उनको
शहर से बाहर तक 

छोड़ने जाने वाले लोगों
को अब बस बुखार
ही आ रहा है
गाड़ियां फूलों की माला
सायरन की आवाज
काफिले का अंदाज
नहीं बदला जा रहा है
टोपी के नीचे वाला
हर पाचं साल में
बदल जा रहा है
शहर में लाने ले जाने
वाले भी बदल जा रहे हैं
बदल बदल के पार्टियों
के राजकाज को वोटर 

सिर खुजाता जा रहा है
बस सुन रहा है सायरन
का संगीत बार बार
पहले वो बजा रहा था
अब ये बजा रहा है
देव भूमि के देवताओं
को नचा रहा है
मेरा प्रदेश बस 
मातम  मना रहा है
दिन पर दिन
धरती में समाता
जा रहा है 

उसको क्या पड़ी है
वो बस सड़क पर
गाड़ियां दौड़ा रहा है
सायरन बजा रहा है।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

बदल जमाने के साथ चल

जमाने के 
साथ आ
जमाना अपना मत बना
ईमानदारी कर मत बस खाली दिखा

अन्ना की तरफदारी भी कर ले
कोई तेरे को कहीं भी नहीं रोक रहा
सफेद टोपी भी लगा 

शाम को मशाल जलूस अगर कोई निकाले
अपने सारे गिरोह कोउसमें शामिल करा लेजा

"सत्य अहिंसा भाईचारा कुछ नये प्रयोग" पर
सेमिनार करा 
संगोष्ठी करा वर्कशोप करा

इन सब कामों में हम से कुछ भी काम तू करवा

हमें चाहे एक धेला भी ना दे जा
पर हमारे लिये परेशानी मत बनजा 

कल उसने कुत्ते को देख कर बकरी कहा
कोई कुछ कर पाया
हमने कुत्ते को कागज पर 
"एक बकरी दिखी थी"
का स्टेटमेंट जब लिखवाया 

अब भी संभल जा उन नब्बे लोगों में आ
जिन्होने कुत्ते को बकरी कहने पर 
कुछ भी नहीं कहा
बस आसमान की तरफ देख कर 
बारिश हो सकती है कहा
बचे दस पागलों का गिरोह मत बना 
जिनको कुत्ता कुत्ता ही दिखा

गाड़ी मिट्टी के तेल से घिसट ही रही हो
पहुंच तो रही है कहीं
पैट्रोल से चलाने का सुझाव मत दे जा

'उलूक' जाके कहीं भी आग लगा
और हमारी तरह 
सुबह के अखबार मे अपनी फोटो पा
बधाई ले लडडू बंटवा। 

चित्र सभार: https://www.deviantart.com/kimjam/art/you-look-like-a-dog-798957425

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

कूड़ा ही लिख


किसी ने 
कहा है 
क्या 
तुझसे 

कुछ लिख

इस पर 
भी लिख
उस  पर 
भी लिख

कुछ होता 
है अगर
तो होने 
पर लिख

नहीं होता 
है
कुछ तो 
नहीं होने 
पर लिख

सब लिख 
रहे हैं
तू भी 
कुछ लिख

किताब 
में लिख
कापी 
में लिख

नहीं मिलता 
है लिखने 
को तो

बाथरूम 
की ही
दीवारों 
पर ही लिख

पर 
सुन तो 
कुछ
अच्छा सा 
तो लिख

रोमाँस 
पर लिख
भगवान 
पर लिख

फूलों 
पर लिख
आसमान 
पर लिख

औल्ड कब 
तक लिखेगा
कुछ बोल्ड 
ही लिख

लिखना 
छोड़ने को
कहने की 
हिम्मत नहीं

पर इतना 
तो बता

किसने 
कहा 
तुझसे 
'उलूक'

तू कूड़े 
पर लिख

और 
कूड़ा 
कूड़ा 
ही लिख।

चित्र साभार: imageenvision.com

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

आहा मेरा पेड़

मुर्गे
मुर्गियां
कबूतर तीतर
मेरे पेड़ की
एक मिसाल हैं

हर एक
अपना
अपनी
जगह पर
धर्म निभाते हैं

मुर्गियां
मुर्गियों के साथ
कबूतर
कबूतर के साथ
हमेशा
ही पाये जाते हैं
कव्वे
कव्वों से ही
चोंच लड़ाते हैं
धर्म
निरपेक्षता का एक
उत्तम
उदाहरण दिखाते हैं

जंगल के
कानून
किसी को भी
नहीं पढ़ाये जाते हैं
बड़े छोटे
का कोई भेद
नहीं किया जाता है
कभी कभी
उल्लू को भी
राजा बनाया जाता है

कोई
झगड़ा फसाद
नहीं होता है
मेरे पेड़ पर कभी
सरकारी चावल
ताकत के अनुसार
घौंसलों में ही
पहुंचा दिया जाता है

पेड़
के अंदर
कोई लाल बत्ती
नहीं लगाता है

जंगल
जाने पर ही
लाल बत्ती है करके
बस शेर को ही बताता है

कोई किसी
को कभी
थोड़ा सा भी
नहीं डराता है
जिसकी जो
मन में आये
कर ले जाता है

बहुत ही
भाईचारा है,
आनन्द ही
आ जाता है
साल के
किसी दिन जब
सफेद कौआ
काले कौऎ को
साथ लेकर
कबूतर के
घर जाता हुवा
दिखाई दे जाता है।

रविवार, 22 अप्रैल 2012

आज छुट्टी है

रोज कुछ कहने को
जरूरी नहीं बनायेगा

भौंपू आज बिल्कुल
नहीं बजाया जायेगा

किसी पर भी उंगली
आज नहीं उठायेगा

'उलूक' आज कोई
गाना नहीं सुनायेगा

आँख बंद रखेगा
और
सीटियां बजायेगा

रविवार है
मौन रखेगा
शांति से
छुट्टी मनायेगा

'चर्चामंच' वालो से
निवेदन किया जायेगा

कोई इस बात की चर्चा
भी वहां नहीं करायेगा

'रविकर' को भी
पता नहीं चलने
दिया जायेगा
देखते हैं आज कैसे
दिल्लगी कर पायेगा

सोमवार से शनिवार
पता रहता है
कोई यहां
देखने नहीं आयेगा

रविवार को कम से कम
बेवकूफ नहीं बन पायेगा

'ऊँ शाँति ऊँ शाँति
शाँति शाँति ऊँ'
वाला कैसेट बजा के
सबको सुनाया जायेगा

एक दिन के लिये
ब्लाग 'उलूक टाईम्स'
में ताला 'हैरीसन' का
लगाया ही जायेगा।

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

फूलों की बातें

बातों
बातों में
एक बात
निकल कर
आती है

फूलों की
उपस्थिति
तो सुकून
देती ही है
फूलों की
बातें भी
सबको
लुभाती हैं

पौपी की
कली अफीम
बनवाती है
बेनूरी पर
नरगिस
अपनी क्यों
रोती चली
जाती है
डैफोडिल
जलते भी है
रजनीगंधा
देख कर
लोगों के दिल
मचलते भी हैं

ये सब
फूल
फूलों में
अभिजात्य
कहलाये
जाते हैं

फूलों में
भी होती
है वर्ग
व्यवस्था
आदमी के
द्वारा ही
फूलों की
राजनीति में
समझाये
भी जाते हैं

हर एक
अपने
गमले के
फूल की
तारीफ में
उलझ
जाता है
खुश्बू
पाता है
खुश हो
जाता है

दूसरी ओर
जिंदगी के
अपने आप
उग आये
झाड़ों को
जब पता
चलता है

कहीं
आसपास
उनके कोई
खुश्बूदार
फूल
खिलता है

झाड़ घेर
लेते हैं
फूल को
और
दबा देते हैं
उसकी
खुश्बू को
फैलने से

सब कुछ
पूरी तैयारी
के साथ
होता है

हर झाड़
का अपनी
तरह से
इसमें कुछ
ना कुछ
हाथ होता है

उसके बाद
घर से लेकर
हर खबर में
बस
झाड़ ही झाड़
होता है

पर फूल तो
भाई 'उलूक'
फूल होता है

फैल ही
जाती है
उसकी
खुश्बू

शहर में
नहीं पर
दूर कहीं
जाकर

और
जब आती है
फूल और
उसकी
खबर

पड़ गयी
है किसी
की फूल
पर नजर

सारे झाड़
एक साथ
आते हैं
फूल को
फूलों की
माला
पहनाते हैं
और
फिर
लौट जाते है
अपने अपने
बाल
नोंंचते हुए

घर में दबाये
गये फूल
आकाश में
इसी तरह
फैल जाते हैं ।

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

नमस्ते हैलो हाय

नमस्ते हैलो हाय
वो जब उधर से आई
इधर की महिलायें भी
जवाब में मुस्कुराई
बहुत दिन से आप
नहीं दी हमको दिखाई
हाँ रे मै ना ज्यादातर
उधर से ही आती हूँ
और इधर से चली जाती हूँ
आप लोग इधर से आते होंगे
उधर से चले जाते होंगे
तभी तो हम सालभर में
कभी कभी टकराते होंगे
वैसे भी मैं तो स्कूटी
से ही आ पाती हूँ
कभी कभी ना उनसे
कार से भी छुड़वाती हूँ
पैदल रास्ते यहां के
और गाड़ी की सड़क
भी यहां कहीं मिलाये
नहीं गये हैं
मोड़ मोड़ कर
रास्तों को रास्ते से
उलझाये से गये हैं
जो जिस रास्ते से
यहां आ पाते है
उसी तरह के लोगो
से मेलमिलाप बढा़ते हैं
अब क्या करें साल में
मजबूरी हो जाती है
परीक्षाओं के बहाने
सब लोगों को एक
दूसरे से नमस्ते
हैलो हाय कह कर
मुस्कुराने की प्रैक्टिस
तो कराती है।

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

कुछ कुछ पति

अंदर का सबकुछ
बाहर नहीं लाया
जा रहा था
थोड़ा कुछ
छांट छांट कर
दिखाया जा रहा था
बीबी बच्चों के बारे में
हर कोई कुछ
बता रहा था
अपनी ओर से
कुछ कुछ
समझाये जा रहा था
तभी एक ने कहा
दुनियाँ करती पता
नहीं क्या क्या है
लेकिन पब्लिक में
तो यही कहती है
अपने बच्चे
सबसे प्यारे
दूसरे की बीबी
खूबसूरत होती है
बीबी सामने बैठी हो
तो कोई क्या कह पाये
अगल बगल झांके
सोच में पड़ जाये
भैया बीबी तो
बीबी होती है
इधर की होती है
चाहे
उधर की होती है
एक आदमी जब
बीबी वाला
हो जाता है
फिर सोचना
देखना रह ही
कहाँ जाता है
जो देखती है बीबी
ही देखती है
दूसरे की बीबी को
देखने की कोई
कैसे सोच पाता है
हाँ कुछ होते हैं
मजबूत लोग
इधर भी देख लेते हैं
उधर भी देख लेते है
ऎसे लोगो को
ऎसी जगह बैठा
दिया जाता है
जहां से हर कोई
नजर में आ जाता है
पत्नी का एक पति
कुछ और पति
भी हो जाता है
इधर उधर देखने
का फायदा
उठा ले जाता है।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

छ से छन्द

कविता सविता
तो तब लिखता
अगर गलती से
भी कवि होता

मैं सिर्फ
बातें बनाना
जानता हूँ
छंद चौपाई
दोहे नहीं
पहचानता हूँ

रोज दिखते
हैं यहां कई
उधार लेकर
जिंदगी बनाते

कुछ जुटे
होते हैं
फटती हुवी
जिंदगी में
पैबंद लगाते

जो देखता
सुनता
झेलता
हूँ अपने
आस पास
कोशिश कर
लिख ही
लेता हूँ
उसमें से
कुछ
खास खास

ऎसे में
आप कैसे
कहते हो
छंद बनाओ
हमारी तरह
कविता एक
लिख कर
दिखाओ

गुरु आप
तो महान हो
साहित्य जगत
की एक
गरिमामय
पहचान हो

खाली दिमाग
वालों पर
इतना जोर
मत लगाओ
बेपैंदे के
लोटे को तो
कम से कम
ना लुढ़काओ

क से कबूतर
लिख पा
रहा हो
अगर
कोई यहां
गीत लिखने
की उम्मीद
उससे तो
ना ही लगाओ

हो सके
तो उसे  

ख से
खरगोश
ही
सिखा जाओ

नहीं कर
सको
इतना भी
तो
कम से कम
उसके लिये
एक ताली ही
बजा जाओ।

अ धन ब का वर्ग

परीक्षाऎं हो गयी हैं शुरु
मौका मिलता है
साल में एक बार
मुलाकातें होती हैं
बहुत सी बातें होती हैं
बहुत से सद्स्यों की
टीम में एक हैं
मेरे आदरणीय गुरू
उनको बहुत कुछ
वाकई में आता है
प्रोफेसर साहब से रहा
नहीं जाता है
पढाने लिखाने की
आदत पुरानी है
किसी से कहीं भी
उन के द्वारा कुछ भी
पूछ ही लिया जाता है
कल की बात आज
वो खाली समय में
बता रहे थे
क्या होता जा रहा है
आज के बच्चों को
समझा रहे थे
सर में वैसे तो उनके
बाल बहुत कम दिखाई देते हैं
पर नाई की दुकान का
वर्णन वो अपनी कथाओं
में जरुर ले ही लेते हैं
बोले कल मैं जब एक
नाई की दुकान में गया
कक्षा नौ में पढ़ने वाली
एक बच्ची ने प्रवेश किया
नाई को बौय कट बाल
काटने का आदेश दिया
बच्ची बाल कटवा रही थी
मेरे दिमाग की नसें
प्रश्नो को घुमा रही थी
आदत से मजबूर मैं
अपने को रोक नहीं पाया
बच्ची के सामने एक प्रश्न
पूछने के लिये लाया
बेटी क्या तुम अ धन ब
का वर्ग कितना होगा
मुझे बता सकती हो
बच्ची मुस्कुराई
उसने नाई की कैंची
चेहरे के ऊपर से हटवाई
बोलते हुवे चेहरा अपना घुमाई
अरे अंकल आप तो
बड़ी कक्षाओं को पढ़ाते हो
ये फालतू के प्रश्न कैसे
अब सोच पाते हो
कैल्कुलेटर का जमाना है
बटन सिर्फ एक दबाना है
किस को पड़ी है अ या ब की
हमारी पीढी़ को तो राकेट
कल परसों में हो जाना है
तो फालतू में अ धन ब
फिर उसपर उसका वर्ग
करने काहे जाना है।

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

चमेली

चमेली
सब लोगों
की पसंद है
बूढे़ चमेली
को देख
कर जवान
हो जाते हैं
चमेली
की फालतू
अदाओं पर
कुर्बान हो
जाते हैं
चमेली
हर जगह
पायी जाती है
चमेली
कुछ नहीं
करती है
चमेली
फिर भी
खबर हो
जाती है
चमेली
होना अपने
आप में
एक क्वालिटी
हो जाता है
चमेली 

के प्रभाव
में आ जाना
चमेली इफेक्ट
कहलाता है
चमेली
को छेड़ने
पर चमेली
बस मुस्कुरा
देती है
वो एक
चमेली
है छेड़ने
वाले को
इस तरह
बता देती है
फिर
बार बार
कुछ कहने
कुछ सुनने
का रास्ता
तैयार हो
जाता है
हर कोई
चमेली
के आस पास
रहने का
जुगाड़
लगाता है
चमेली
बरसों से
इसी तरह
अपने काम
निकालती
जा रही है
चमेली
तरह तरह
लोगों को
बेवकूफ
बना रही है
सबको पता है
चमेली
चमक के
जिस दिन
आती है
कहीं ना
कहीं जा
कर के
बिजली
गिराती है
चमेली
चमेली है
बहुत से
लोग बहुत
अच्छी तरह
जानते है
अन्जान
बन कर
फिर भी
चमेली
की दुकान
सम्भालते हैं
अपने
आस पास
आप भी
ढूंढिये
तो जरा
शायद कोई
चमेली
आपको भी
दिख जाये
और
आप भी
चमेली
प्रभाव को
उदाहरण
सहित
समझ जायें।

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

बातें ही बातें

लिख लिख
कर अपनी
बातों को
अपने से ही
बातें करता हूँ

फिर
दिन भर पन्ना
खोल खोल
कई कई बार
पढ़ा करता हूँ

मेरी बातों
को लेकर
वो सब भी
बातेंं करते हैं

मैं बातेंं ही
करता रहता हूँ
बातों बातों
में कहते
रहते हैं

इन सारी
बातों की
बातों से
एक बात
निकल कर
आती है

बातें
करने का
अंदाज किसी का
किसी किसी
की आँखों में
चुभ जाती है

कोई कर भी
क्या सकता है
इन सब बातों का

वो सीधे कुछ
कर जाते हैं
वो बातें कहाँ
बनाते हैं

मैं कुछ भी
नहीं कर
पाता हूँ
बस केवल
बात बनाता हूँ

फिर
अपनी ही
सारी बातों को
मन ही मन
पढ़ पाता हूँ

फिर
लिख पाता हूँ
कुछ बातें

कुछ बातें
लिख लिख
जाता हूँ

कुछ
लिखने में
सकुचाता हूँ

बस अपने से
बातें करता हूँ

बातों की बात
बनाता हूँ

बस बातें ही
कर पाता हूँ।